सोमवार, 31 दिसंबर 2012
MAITHILI SEED STORIES- मैथिली विहनि कथा संग्रह
शनिवार, 29 दिसंबर 2012
गजल
दिल्लीँ मेँ भेल हिंसा आ बलात्कार पीड़िता के फोटो देख के मोनसँ अनायास निकलल किछु पाँति -
गजल
बिना दागक हमर छल ई चान सन मुँह
कुकर्मी नोचि लेलक मिल राण सन मुँह
कि सपना देखलौँ आ लुटि गेल जिनगी
घटल एहन बनल देखूँ आन सन मुँह
रमल रहियै अपन धुनमेँ आ कि एलै
चिबा गेलै हमर सुन्नर पान सन मुँह
बनल नै स्त्री समाजक उपभोग चलते
किए तैयो मनुख नोचै चान सन मुँह
हमर सभ लूटि गेलै ईज्जत व चामोँ
कि करबै जी कऽ लेने छुछुआन सन मुँह
बहरे-करीब मने
"मफाईलुन - मफाईलुन-फाइलातुन"
मात्रा क्रम-1222 - 1222 - 2122
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
बिना दागक हमर छल ई चान सन मुँह
कुकर्मी नोचि लेलक मिल राण सन मुँह
कि सपना देखलौँ आ लुटि गेल जिनगी
घटल एहन बनल देखूँ आन सन मुँह
रमल रहियै अपन धुनमेँ आ कि एलै
चिबा गेलै हमर सुन्नर पान सन मुँह
बनल नै स्त्री समाजक उपभोग चलते
किए तैयो मनुख नोचै चान सन मुँह
हमर सभ लूटि गेलै ईज्जत व चामोँ
कि करबै जी कऽ लेने छुछुआन सन मुँह
बहरे-करीब मने
"मफाईलुन - मफाईलुन-फाइलातुन"
मात्रा क्रम-1222 - 1222 - 2122
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
गजल
प्रेम नै भाइ ई जहर छै
पोखिरसँ उठल बुझु लहर छै
प्रेम मेँ जान जाएत चलि
तड़पि के मरब ई जहर छै
नै परु प्रेमके जाल मेँ
एखनो एकरे पहर छै
नै करु प्रेमके ई नशा
ई तँ मिसरी धुलल जहर छै
ई मुकुन्दोँ फसिकँ ऐहिमेँ
कहलक प्रेम नै जहर छै
*बहरे- मुतदारिक ।
फाइलुन मने दीर्ध-ह्रस्व-दी र्ध चारि बेर ।
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
प्रेम नै भाइ ई जहर छै
पोखिरसँ उठल बुझु लहर छै
प्रेम मेँ जान जाएत चलि
तड़पि के मरब ई जहर छै
नै परु प्रेमके जाल मेँ
एखनो एकरे पहर छै
नै करु प्रेमके ई नशा
ई तँ मिसरी धुलल जहर छै
ई मुकुन्दोँ फसिकँ ऐहिमेँ
कहलक प्रेम नै जहर छै
*बहरे- मुतदारिक ।
फाइलुन मने दीर्ध-ह्रस्व-दी र्ध चारि बेर ।
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
हजल
हजल
देखियौ देखियौ जुग केहन भऽ गेलै कक्का यौ
टोपी चश्मा पहिर कऽ चलै छै छौड़ा उचक्का यौ
छमकि कऽ चलैए संगे नटुआ सन केश छै
जीँस टीशर्ट पहिर कऽ अंग्रेज भेल पक्का यौ
चौक पर घूमैत छै बोतल चढ़ा कऽ भोरेसँ
सिगरेटक दिन भरि ई उड़ाबै छोहक्का यौ
अपनाकेँ बड़का ई बुझैत अछि हीरो छौड़ा
मुहँ नै लगाबूँ एकरासँ अछि ई लड़क्का यौ
स्त्री जकाँ श्रृंगार करै छै लगाबैये ठोररंगा
भोरेसँ कटाके दाढ़ी मोछ लागे जेना छक्का यौ
छौड़ी पाछाँ पागल भेल छै काज धाज छोड़िकेँ
हुलिया एकर देखि कऽ मुकुन्द हक्काबक्का यौ
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण17
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
देखियौ देखियौ जुग केहन भऽ गेलै कक्का यौ
टोपी चश्मा पहिर कऽ चलै छै छौड़ा उचक्का यौ
छमकि कऽ चलैए संगे नटुआ सन केश छै
जीँस टीशर्ट पहिर कऽ अंग्रेज भेल पक्का यौ
चौक पर घूमैत छै बोतल चढ़ा कऽ भोरेसँ
सिगरेटक दिन भरि ई उड़ाबै छोहक्का यौ
अपनाकेँ बड़का ई बुझैत अछि हीरो छौड़ा
मुहँ नै लगाबूँ एकरासँ अछि ई लड़क्का यौ
स्त्री जकाँ श्रृंगार करै छै लगाबैये ठोररंगा
भोरेसँ कटाके दाढ़ी मोछ लागे जेना छक्का यौ
छौड़ी पाछाँ पागल भेल छै काज धाज छोड़िकेँ
हुलिया एकर देखि कऽ मुकुन्द हक्काबक्का यौ
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण17
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
गजल
हमरासँ जौँ दूर जाएब अहाँ
रहि रहि इयादि आएब अहाँ
सिनेह लेल अहीँके बेकल छी
छोड़ि कऽ हमरा कि पाएब अहाँ
खोजि खोजि के तँ पागल बनलौँ
बताउ कि कतऽ भेँटाएब अहाँ
किएक लेल एहन प्रेम केलौँ
जौँ ई बुझलौँ नै निभाएब अहाँ
बदलि गेलियै अहाँ कोना कऽ यै
हमरासँ नै बिसराएब अहाँ
हमरा छोड़ि गेलौँ मुकुन्द संग
आब कतेक के फसाँएब अहाँ
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण12
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
हमरासँ जौँ दूर जाएब अहाँ
रहि रहि इयादि आएब अहाँ
सिनेह लेल अहीँके बेकल छी
छोड़ि कऽ हमरा कि पाएब अहाँ
खोजि खोजि के तँ पागल बनलौँ
बताउ कि कतऽ भेँटाएब अहाँ
किएक लेल एहन प्रेम केलौँ
जौँ ई बुझलौँ नै निभाएब अहाँ
बदलि गेलियै अहाँ कोना कऽ यै
हमरासँ नै बिसराएब अहाँ
हमरा छोड़ि गेलौँ मुकुन्द संग
आब कतेक के फसाँएब अहाँ
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण12
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
गजल
सुनु अहाँ कियै हमरा सँ दूर गेलौँ यै
अहीँक चलतै हम तँ नाको कटेलौँ यै
रुप अहाँक देखिकऽ हम तँ मुग्ध भेलौँ
ओहि परसँ कियै ई कनखी चलेलौँ यै
मगन छलौँ अहाँ मेँ काज धाज छोड़िकऽ
प्रेम मेँ तँ हे प्रेयसी जग बिसरेलौँ यै
पढ़बाक उमरि छल छलौँ इक्कीस के
काँलेज के छोड़िकऽ अहाँमेँ ओझरेलौँ यै
मुकुन्द अछि प्रेमी अहाँकँ सभ जानैये
जानसँ बेसी चाहे जे तकरा गंवेलौँ यै
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 15
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
सुनु अहाँ कियै हमरा सँ दूर गेलौँ यै
अहीँक चलतै हम तँ नाको कटेलौँ यै
रुप अहाँक देखिकऽ हम तँ मुग्ध भेलौँ
ओहि परसँ कियै ई कनखी चलेलौँ यै
मगन छलौँ अहाँ मेँ काज धाज छोड़िकऽ
प्रेम मेँ तँ हे प्रेयसी जग बिसरेलौँ यै
पढ़बाक उमरि छल छलौँ इक्कीस के
काँलेज के छोड़िकऽ अहाँमेँ ओझरेलौँ यै
मुकुन्द अछि प्रेमी अहाँकँ सभ जानैये
जानसँ बेसी चाहे जे तकरा गंवेलौँ यै
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 15
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
गजल
आइ हमर मोन बड्ड खनहन अछि
ककरोसँ हमरा तँ नै अनबन अछि
तरुआ तरकारी आ पापड बनि गेल
देखूँ चूल्हा पर भातो ले अदहन अछि
आसिन एलै बजरखसुआँ गर्मी गेलै
ठंढा ठंढा पुरबा बहै सनसन अछि
फेर दुर्गा मेला हेतै नाच आ लीला हेतै
देखूँ खुदरा पैसा बाजै झनझन अछि
घर परिवार मे तिहार के दिन एलै
अंगना मे चलैत नेना ढ़नमन अछि
कनिये दिनके तँ छै ई पावैनक मजा
कातिकक बाद तँ ऊहे अगहन अछि
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 15
€€बाल मुकुंद पाठक
आइ हमर मोन बड्ड खनहन अछि
ककरोसँ हमरा तँ नै अनबन अछि
तरुआ तरकारी आ पापड बनि गेल
देखूँ चूल्हा पर भातो ले अदहन अछि
आसिन एलै बजरखसुआँ गर्मी गेलै
ठंढा ठंढा पुरबा बहै सनसन अछि
फेर दुर्गा मेला हेतै नाच आ लीला हेतै
देखूँ खुदरा पैसा बाजै झनझन अछि
घर परिवार मे तिहार के दिन एलै
अंगना मे चलैत नेना ढ़नमन अछि
कनिये दिनके तँ छै ई पावैनक मजा
कातिकक बाद तँ ऊहे अगहन अछि
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 15
€€बाल मुकुंद पाठक
गजल
गजल
अहाँ बैसला पर कि पाएब एतौ
रहब काजके
बिन कि खाएब एतौ
कतोऽ दुख कतोऽ सुख लिखल अछि तँ सबटा
कियै
हाथ कर्मसँ हटाएब एतौ
हयौ दोष आ गुणतँ हाएत सभँमेँ
बिना गलत
हम नै पराएब एतौ
अहाँ बिसरि अप्पन पुरनका बबंडर
चलूँ नव
विचारसँ नहाएब एतौ
कहल केकरो मानबै बात नै जौँ
तँ भूखल अहाँ
मरि कनाएब एतौ
बहरे-मुतकारिब ।फऊलुन(मने122)चारि बेर।
~ ~ ~ ~
~ ~ ~ ~ बाल मुकुन्द पाठक ।।
कियै हाथ कर्मसँ हटाएब एतौ
हयौ दोष आ गुणतँ हाएत सभँमेँ
बिना गलत हम नै पराएब एतौ
अहाँ बिसरि अप्पन पुरनका बबंडर
चलूँ नव विचारसँ नहाएब एतौ
कहल केकरो मानबै बात नै जौँ
तँ भूखल अहाँ मरि कनाएब एतौ
बहरे-मुतकारिब ।फऊलुन(मने122)चारि बेर।
~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
गजल
अहाँ हमरा बिसरि रहलौँ
वियोगे हम तँ
मरि रहलौँ
घुसिकँ कोनाकँ देहेमेँ
अहाँ हमरा पसरि
रहलौँ
बिसरऽ ई लाख चाही हम
बनिकऽ लस्सा लसरि रहलौँ
कियै केलौँ अहाँ ऐना
करेजसँ नै ससरि रहलौँ
छुटल घर आ अहूँ
छुटलौँ
दुखेँ हम आब मरि रहलौँ
बहरे -हजज ।
'मफाईलुन'
(मने 1222) दू बेर ।
~ ~ ~ ~ ~ बाल मुकुन्द पाठक ।।
अहाँ हमरा पसरि रहलौँ
बिसरऽ ई लाख चाही हम
बनिकऽ लस्सा लसरि रहलौँ
कियै केलौँ अहाँ ऐना
करेजसँ नै ससरि रहलौँ
छुटल घर आ अहूँ छुटलौँ
दुखेँ हम आब मरि रहलौँ
बहरे -हजज ।
'मफाईलुन' (मने 1222) दू बेर ।
~ ~ ~ ~ ~ बाल मुकुन्द पाठक ।।
बाल गजल
बाल गजल
मेला चलब हमहुँ कक्का यौ
पहिरब आइ सूट पक्का यौ
खेबै जिलेबी आ झूलब झूला
संगे संग किनब फटक्का यौ
बैट किनब क्रिकेट खेलै ले
आबि कऽ खूब मारब छक्का यौ
साझेसँ अखारामे कुश्ती हेतै
पहलवानोँ तँ छै लडक्का यौ
अन्तिम बेर छी एतौ हम तँ
जाएब बाबू लऽग फरक्का यौ
कोरा मे कने लिअ ने हमरा
ई भीड़ मेँ मारि देत धक्का यौ
चलू ने जल्दी किनै ले जिलेबी
नै तँ उड़ि जाएत छोहक्का यौ
बाबूओसँ बेसी अहीँ मानै छी
छी बड्ड नीक हमर कक्का यौ
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 11
~ ~बाल मुकुन्द पाठक ।।
मेला चलब हमहुँ कक्का यौ
पहिरब आइ सूट पक्का यौ
खेबै जिलेबी आ झूलब झूला
संगे संग किनब फटक्का यौ
बैट किनब क्रिकेट खेलै ले
आबि कऽ खूब मारब छक्का यौ
साझेसँ अखारामे कुश्ती हेतै
पहलवानोँ तँ छै लडक्का यौ
अन्तिम बेर छी एतौ हम तँ
जाएब बाबू लऽग फरक्का यौ
कोरा मे कने लिअ ने हमरा
ई भीड़ मेँ मारि देत धक्का यौ
चलू ने जल्दी किनै ले जिलेबी
नै तँ उड़ि जाएत छोहक्का यौ
बाबूओसँ बेसी अहीँ मानै छी
छी बड्ड नीक हमर कक्का यौ
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 11
~ ~बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
गजल
आँखिसँ खसैत नोर रुकत की नै
नोरक सरस
आबो सुखत की नै
सुखिकऽ ठोर आब गेल अछि फाटि
फाटल ठोर
फेरोसँ जुटत की नै
बेकल जिनगी भरि गेल दर्दसँ
करेजक बेकलता
मेटत की नै
आँखिक पलक फूलि गेल कानि कऽ
बंद भेल आँखि फेरो
खुजत की नै
जीबाक चाह तँ हटि गेल मोनसँ
मरलोऽ पर दुख ई छुटत
की नै
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
...............बाल मुकुंद
पाठक ।।
फाटल ठोर फेरोसँ जुटत की नै
बेकल जिनगी भरि गेल दर्दसँ
करेजक बेकलता मेटत की नै
आँखिक पलक फूलि गेल कानि कऽ
बंद भेल आँखि फेरो खुजत की नै
जीबाक चाह तँ हटि गेल मोनसँ
मरलोऽ पर दुख ई छुटत की नै
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
...............बाल मुकुंद पाठक ।।
बाल गजल
बाल गजल
हाएत दिवाली जड़तै दीप
आँगने
आँगन बड़तै दीप
घर दुआरि आँगन सँभमेँ
डेगे डेऽग पर जड़तै
दीप
अन्हार रातिमेँ इजोत दैले
मोमबत्ती संगे लड़तै दीप
हम सब खेलब हुक्का पाती
लेसै लेल काज पड़तै दीप
चुक्का
डिबिया सबसँ मिलके
गाम प्रकाशसँ भरतै दीप
करै लेल घरकँ
द्वारपाली
अन्हार रातिसँ लड़तै दीप
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 11.
.................................................
डेगे डेऽग पर जड़तै दीप
अन्हार रातिमेँ इजोत दैले
मोमबत्ती संगे लड़तै दीप
हम सब खेलब हुक्का पाती
लेसै लेल काज पड़तै दीप
चुक्का डिबिया सबसँ मिलके
गाम प्रकाशसँ भरतै दीप
करै लेल घरकँ द्वारपाली
अन्हार रातिसँ लड़तै दीप
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 11.
..............बाल मुकुंद पाठक ।।
गजल
गजल
आस टूटल भाग भूटल
आँखि इनहोरे सँ शीतल
घुरिकँ आबूँ ई जिनगी मेँ
यै छी अहाँ कियैक रुसल
सिनेह केलौँ तेँऽ दुख पेलौँ
कानियोँ के नै चैन भेटल
लहर उठल करेजासँ
लागै कि जेना साँस छूटल
कि करबै जीके ई जिनगी
अहाँक जौँ ना संग भेटल
आस टूटल भाग भूटल
आँखि इनहोरे सँ शीतल
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 10
- - - - - - - बालमुकुंद पाठक ।।
आस टूटल भाग भूटल
आँखि इनहोरे सँ शीतल
घुरिकँ आबूँ ई जिनगी मेँ
यै छी अहाँ कियैक रुसल
सिनेह केलौँ तेँऽ दुख पेलौँ
कानियोँ के नै चैन भेटल
लहर उठल करेजासँ
लागै कि जेना साँस छूटल
कि करबै जीके ई जिनगी
अहाँक जौँ ना संग भेटल
आस टूटल भाग भूटल
आँखि इनहोरे सँ शीतल
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 10
- - - - - - - बालमुकुंद पाठक ।।
गजल
गजल
कि लिखूँ हम गजल उमर नादान अछि
हुनकर दीवाना ई दुनिया जहान अछि
रुपकँ जलवा देखूँ लागै छथि चान सन
गोल गोल गोर गाल पूर्णिमा समान अछि
केश अहाँक रेशम सन आँखि मृग जेना
धायल भेलौँ देखिकँ होश नै ठेकान अछि
...
गुलाबी गाल पर नीक लागै ठोरक लाली
अहीँमे अटिकगेल छौड़ासभँकँ जान अछि
कमर जे लचकैये देखि मोन बहकैये
'मुकुन्द' के लागे जेना हुस्नके दोकान अछि
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 16
. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .
. . . . . . . . .बाल मुकुन्द पाठक ।।
कि लिखूँ हम गजल उमर नादान अछि
हुनकर दीवाना ई दुनिया जहान अछि
रुपकँ जलवा देखूँ लागै छथि चान सन
गोल गोल गोर गाल पूर्णिमा समान अछि
केश अहाँक रेशम सन आँखि मृग जेना
धायल भेलौँ देखिकँ होश नै ठेकान अछि
...
गुलाबी गाल पर नीक लागै ठोरक लाली
अहीँमे अटिकगेल छौड़ासभँकँ जान अछि
कमर जे लचकैये देखि मोन बहकैये
'मुकुन्द' के लागे जेना हुस्नके दोकान अछि
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 16
. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .
. . . . . . . . .बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
गजल
फेर आइ आँखिसँ नोर बहाबै छी
रहि रहि अहीकँ बात घुराबै छी
कतै छै सिनेह ई कोना हम कहूँ
चलि आउ एखनो कियै सताबै छी ।
...
फेर आइ आँखिसँ नोर बहाबै छी
रहि रहि अहीकँ बात घुराबै छी
कतै छै सिनेह ई कोना हम कहूँ
चलि आउ एखनो कियै सताबै छी ।
...
गेलौँ चलि कतौ हमरा बिसरिकँ
साँझेसँ अँहीँ लेल नोर खसाबै छी ।
देखूँ कानि कानि साँझसँ भोर भेलै
भोरे भोर हम मदिरा चढाबै छी ।
मदिरोसँ बढिकँ अँहीँ मे नशा ये
ओहि नशा लेल फेरसँ बजाबै छी ।
नीन्नोँ नै आबै जौँ सपनो मेँ देखतौँ
सुतबा ले कतै मोनकेँ मनाबै छी ।
हाथ जोडिकँ ई कहौँ हे भगवान
कियै नै अहाँ मुकुन्दसँ मिलाबै छी ।।
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
€€ "बाल मुकुन्द पाठक"
साँझेसँ अँहीँ लेल नोर खसाबै छी ।
देखूँ कानि कानि साँझसँ भोर भेलै
भोरे भोर हम मदिरा चढाबै छी ।
मदिरोसँ बढिकँ अँहीँ मे नशा ये
ओहि नशा लेल फेरसँ बजाबै छी ।
नीन्नोँ नै आबै जौँ सपनो मेँ देखतौँ
सुतबा ले कतै मोनकेँ मनाबै छी ।
हाथ जोडिकँ ई कहौँ हे भगवान
कियै नै अहाँ मुकुन्दसँ मिलाबै छी ।।
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
€€ "बाल मुकुन्द पाठक"
गजल
गजल
आइ हम बड़ उदास छी ,कोना कहौँ ककरासँ
ओहि दिनसँ कानैत छी यौ,अहाँ गेलौँ जहियासँ
हे यौ हमर प्रीतम ,अहाँ एखनो तऽ घर आबूँ
दिन राति हम एतबे , प्रार्थना करै छी दैबासँ
चारिये दिन तँ बुझियौ ,चारि साल सन बीतल
अहाँसँ बतियाइ लेल फोनो माँगलौँ अनकासँ
पछबा के बहलासँ ,बात एगो इयाद आएल
चलि गेलौँ नैहर हम तँ ,रुसल छलौँ अहाँसँ
चाही नै कपडा लत्ता ,और चाही नै धन दौलत
एतबे कहौँ मुकुन्द चलि आबु,जल्दी पटनासँ
सरल वार्णिक बहर
वर्ण-18
गजल
हे भगवान अपन ताकत देखा दिअ
हुनका क्षण मे हमरा लग बजा दिअ
बहुत दिनसँ तरसैत छी प्रेम लेल
सोलहो श्रृंगार मे एहि ठाम पठा दिअ
दिन- राति आँखि सँ कोसी गंडक बहबौँ
बान्ह टूटल ई गामक गाम बहा दिअ
कानैत कानैत हमरा अहाँ हँसा दिअ
हुनको हमरे सन हालत बना दिअ
असगर बैसल छी नै नीन्न नै चैन आबै
मुकुन्द हमरासँ तँ गले लगबा दिअ
दिन- राति आँखि सँ कोसी गंडक बहबौँ
बान्ह टूटल ई गामक गाम बहा दिअ
कानैत कानैत हमरा अहाँ हँसा दिअ
हुनको हमरे सन हालत बना दिअ
असगर बैसल छी नै नीन्न नै चैन आबै
मुकुन्द हमरासँ तँ गले लगबा दिअ
गजल
गजल
अहाँक बिना कोना कऽ रहबै हम
चाँन जकाँ मुँह नै बिसरबै हम
बड़ दिनसँ प्यासल छी मिलनक
सिन्धुक गहराई मेँ डुबबै हम
अहाँ रुप केर भरल खजाना छी
तँए रुपक दीवाना बनबै हम
अछि मोरनी सन के चालि अहाँ के
अहाँक संगे नाँचि के देखबै हम
ई मोन कहै छै एक ना एक दिन
अहाँ सँ कतौ नै कतौ भेटबै हम
'मुकुन्द' पुछैत अछि हे मृगनैनी
कहि दिअ कनियाँ बनबै हम ।।
बाल मुकुन्द पाठक ।
अहाँक बिना कोना कऽ रहबै हम
चाँन जकाँ मुँह नै बिसरबै हम
बड़ दिनसँ प्यासल छी मिलनक
सिन्धुक गहराई मेँ डुबबै हम
अहाँ रुप केर भरल खजाना छी
तँए रुपक दीवाना बनबै हम
अछि मोरनी सन के चालि अहाँ के
अहाँक संगे नाँचि के देखबै हम
ई मोन कहै छै एक ना एक दिन
अहाँ सँ कतौ नै कतौ भेटबै हम
'मुकुन्द' पुछैत अछि हे मृगनैनी
कहि दिअ कनियाँ बनबै हम ।।
बाल मुकुन्द पाठक ।
गजल
अहाँक गेलासँ आब जिनगी एकारी लागै
हमरा तऽ एको दिन ,साल जकाँ भारी लागै
देह हाथ सुखल हमर ,केशोँ नै माथा मेँ
अईना मेँ देखलासँ बडका बेमारी लागै
खाई पीयै मेँ हमरा किछो ,नीको नै लागैये
भात दालि कि खाईब ,निको नै सोहारी लागै
कि कहब हम बाबूकेँ ,केना देखेबै मुँह
पटना मेँ पढ़ल अनेरे मोन भारी लागै
देखै छी फोटो जौँऽ , उ और याद आबैत छथि
मुकुन्द के अहाँ बिना रहल लचारी लागै ।।
हमरा तऽ एको दिन ,साल जकाँ भारी लागै
देह हाथ सुखल हमर ,केशोँ नै माथा मेँ
अईना मेँ देखलासँ बडका बेमारी लागै
खाई पीयै मेँ हमरा किछो ,नीको नै लागैये
भात दालि कि खाईब ,निको नै सोहारी लागै
कि कहब हम बाबूकेँ ,केना देखेबै मुँह
पटना मेँ पढ़ल अनेरे मोन भारी लागै
देखै छी फोटो जौँऽ , उ और याद आबैत छथि
मुकुन्द के अहाँ बिना रहल लचारी लागै ।।
गजल
लोक कहैत छथि जे हम छी शराबी शराब पीबै छी
कियो बात मानै नै छी छै की खराबी शराब पीबै छी
हम तँ दिन राइत घुरिआइ छी मोन पाड़ि रहि रहि
हुनकर याद आएल बात घुराबी शराब पीबै छी
एक दिन उ हमरा नजरमे बसेला प्यार जगेला
हम दिलकेँ हुनक प्यारमे दौड़ाबी शराब पीबै छी
कहियो गाछीमे बैस नयन मिलेला मोबाइलसँ बतियेला
कियो बात मानै नै छी छै की खराबी शराब पीबै छी
हम तँ दिन राइत घुरिआइ छी मोन पाड़ि रहि रहि
हुनकर याद आएल बात घुराबी शराब पीबै छी
एक दिन उ हमरा नजरमे बसेला प्यार जगेला
हम दिलकेँ हुनक प्यारमे दौड़ाबी शराब पीबै छी
कहियो गाछीमे बैस नयन मिलेला मोबाइलसँ बतियेला
दिन राति हुनक यादसँ अपनाकेँ सताबी शराब पीबै छी
उ अपन दुनिया बसेलाऽ हमरा पागल बनेला
हुनकर चक्करमे मुकुन्द भेलै शराबी शराब पीबै छी
उ अपन दुनिया बसेलाऽ हमरा पागल बनेला
हुनकर चक्करमे मुकुन्द भेलै शराबी शराब पीबै छी
शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012
लाशसँ भरल ट्रेन
दिल्लीसँ चलल ट्रेन । सेकेंड क्लास स्लीपर आरक्षित डिब्बा । ठसाठस भीड़सँ भरल डिब्बा सभ । एकटा डिब्बाक एक हिस्सामे; तीन व्यक्तिक सीटपर एक पुरुष हुनक स्त्री आ तीनटा 7 सँ 12 बर्खक बच्चा, अर्थात कुल पाँच गोटे बैसल । ई परिवार दिल्लीएसँ आबि रहल छलथि । हुनकर सभक सामनेक सीटपर सेहो पाँच व्यक्ति बैसल आ करीब- करीब सम्पूर्ण डिब्बाक कही तँ सम्पूर्ण ट्रेनक एहने हाल । नाम मात्रक आरक्षित डिब्बा, हालत जेनरलोसँ बत्तर ।
अपन लक्ष्यक पाँछा करैत ट्रेन बिहारक सीमामे प्रवेश कएलक । ट्रेन बक्सर स्टेशनपर रुकल । तीनटा, 24-25 सँ 30 बर्खक बिचक बलिस्ट युवक एके संगे भीड़केँ चिड़ैत जबड़दस्ती डिब्बामे प्रवेश कएलक । ओ तीनू सभकेँ ठेलैत धकलैत आगू बढ़ि ओतए जा कए ठार भेल जतए दिल्लीसँ चढ़ल परिवार बैसल छल । ओ तीनू अपनामे हा-हा-ही-ही ठठ्ठा करैत ओतेकदूरक वातावरणकेँ अभद्र बना देलक । ओतबोपर नहि माइन तीनूकेँ तीनू सिगरेट निकाइल कए ओकर नम्हर - नम्हर कश मारै लागल । तीनूक विषाक्त गप्पेकेँ पचेनाइ मुश्किल भए रहल छल ओहिपर आब सिगरेटक लछेएदार धुवाँक जहर, असहनीय होएत । दिल्लीसँ आबिरहल परिवारक पुरुष विनम्रसँ बजलनि - "भाइ साहब ! सिगरेट बंद करू, एहिठाम स्त्री धिया-पुता सभ छैक एकर धुवाँ सहनाइ असहनीय भs रहल छैक ।"
तीनू उदण्डमे सँ एकटा - "अरे वाह ! सिगरेट हमर, पाइ हमर, मुँह हमर तेँ हम सभ किएक नहि पीबू ?"
दिल्लीसँ आबिरहल परिवारक पुरुष - "मुदा हमरा सभकेँ असुबिधा भs रहल अछि ।"
"असुबिधा ! अरे वाह, बेसी असुबिधा अछि तँ अहीँ सभ दोसर डिब्बामे चलि जाउ ।"
"हम सभ दोसर डिब्बामे किएक चलि जाउ, हमरा सभ लग रिजर्वेशन अछि, बिना रिजर्वेशनक तँ अहाँ सभ छी ओहूपर अनैतिक काज कए रहल छी । ट्रेनमे बीड़ी सिगरेट पीनाइ अपराध छैक ।"
"अरे वाह ! अपने तँ उकील साब छी (दुनू हाथ जोरैत ) धन्य छी उकीलसाब, अपराध ! हा हा हा .... अपराध ई कोन अपराध भेलैह, अपराध होएत जखन अहाँक सुन्नर कनियाँकेँ लs कए भागि जाइ ।"
एतबा कहैत तीनूकेँ तीनू भीतर आगू बढ़क प्रयास कएलक आ एहि प्रयासमे किछु धक्का- मुक्की सेहो भेलै । तीनू आगू बढ़ि मर्यादाक सीमासँ बाहर बढ़ैए बला छल की रेलवे पुलिसक दूटा जवान कन्हापर बन्दूक रखने गस्त लगबैत ओहि डिब्बामे आएल । ओकरा देखते मातर तीनू ओहिठामसँ लंकलागि कए भागि गेल । मुदा ओहि डिब्बाक ठसाठस भरल भीड़मे सँ केकरो सहास नहि भेलै जे मात्र तीन गोट कपाटक मनुखसँ बाजि लड़ि कए एकटा नीक परिवार, जेकरा संगे की करीब 17-18 घंटा पाछूसँ यात्रा कए रहल छल रक्षा करी । आ ओ सहास हेतैक कोना । कियो जीबित होए तहन ने । सभ के सभ लाश अछि । एहन लाश जे अखबार पढ़ैत अछि, समाचार सुनैत अछि, यात्रा करैत अछि मुदा कोनो अनैतिक बातक पाँछा आबाज नै उठाबैत अछि ।
*****
जगदानन्द झा 'मनु'
अपन लक्ष्यक पाँछा करैत ट्रेन बिहारक सीमामे प्रवेश कएलक । ट्रेन बक्सर स्टेशनपर रुकल । तीनटा, 24-25 सँ 30 बर्खक बिचक बलिस्ट युवक एके संगे भीड़केँ चिड़ैत जबड़दस्ती डिब्बामे प्रवेश कएलक । ओ तीनू सभकेँ ठेलैत धकलैत आगू बढ़ि ओतए जा कए ठार भेल जतए दिल्लीसँ चढ़ल परिवार बैसल छल । ओ तीनू अपनामे हा-हा-ही-ही ठठ्ठा करैत ओतेकदूरक वातावरणकेँ अभद्र बना देलक । ओतबोपर नहि माइन तीनूकेँ तीनू सिगरेट निकाइल कए ओकर नम्हर - नम्हर कश मारै लागल । तीनूक विषाक्त गप्पेकेँ पचेनाइ मुश्किल भए रहल छल ओहिपर आब सिगरेटक लछेएदार धुवाँक जहर, असहनीय होएत । दिल्लीसँ आबिरहल परिवारक पुरुष विनम्रसँ बजलनि - "भाइ साहब ! सिगरेट बंद करू, एहिठाम स्त्री धिया-पुता सभ छैक एकर धुवाँ सहनाइ असहनीय भs रहल छैक ।"
तीनू उदण्डमे सँ एकटा - "अरे वाह ! सिगरेट हमर, पाइ हमर, मुँह हमर तेँ हम सभ किएक नहि पीबू ?"
दिल्लीसँ आबिरहल परिवारक पुरुष - "मुदा हमरा सभकेँ असुबिधा भs रहल अछि ।"
"असुबिधा ! अरे वाह, बेसी असुबिधा अछि तँ अहीँ सभ दोसर डिब्बामे चलि जाउ ।"
"हम सभ दोसर डिब्बामे किएक चलि जाउ, हमरा सभ लग रिजर्वेशन अछि, बिना रिजर्वेशनक तँ अहाँ सभ छी ओहूपर अनैतिक काज कए रहल छी । ट्रेनमे बीड़ी सिगरेट पीनाइ अपराध छैक ।"
"अरे वाह ! अपने तँ उकील साब छी (दुनू हाथ जोरैत ) धन्य छी उकीलसाब, अपराध ! हा हा हा .... अपराध ई कोन अपराध भेलैह, अपराध होएत जखन अहाँक सुन्नर कनियाँकेँ लs कए भागि जाइ ।"
एतबा कहैत तीनूकेँ तीनू भीतर आगू बढ़क प्रयास कएलक आ एहि प्रयासमे किछु धक्का- मुक्की सेहो भेलै । तीनू आगू बढ़ि मर्यादाक सीमासँ बाहर बढ़ैए बला छल की रेलवे पुलिसक दूटा जवान कन्हापर बन्दूक रखने गस्त लगबैत ओहि डिब्बामे आएल । ओकरा देखते मातर तीनू ओहिठामसँ लंकलागि कए भागि गेल । मुदा ओहि डिब्बाक ठसाठस भरल भीड़मे सँ केकरो सहास नहि भेलै जे मात्र तीन गोट कपाटक मनुखसँ बाजि लड़ि कए एकटा नीक परिवार, जेकरा संगे की करीब 17-18 घंटा पाछूसँ यात्रा कए रहल छल रक्षा करी । आ ओ सहास हेतैक कोना । कियो जीबित होए तहन ने । सभ के सभ लाश अछि । एहन लाश जे अखबार पढ़ैत अछि, समाचार सुनैत अछि, यात्रा करैत अछि मुदा कोनो अनैतिक बातक पाँछा आबाज नै उठाबैत अछि ।
*****
जगदानन्द झा 'मनु'
लेबल:
जगदानन्द झा 'मनु',
बीहनि कथा
गजल
भूतलेलौं किए एना मन लगा लिअ
आउ चलि संगमे हमरो अप्पना लिअ
नै बचन देब हम नै किछु मोल एकर
संग हमरा लऽ मोनक संसय हटा लिअ
जुनि बुझू आन जगमे सपनोसँ कखनो
बुझि कऽ अप्पन कनी छू ठोरसँ सटा लिअ
जीवनक काँट एते कोना बिछब ई
छोड़ि सगरो जमानाकेँ वर बना लिअ
रूप सुन्नर अहाँकेँ ई ओहिपर बदरा
जीब कोना करेजामे 'मनु' बसा लिअ
(बहरे - असम, मात्राक्रम : 2122-1222-2122)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
लेबल:
गजल,
जगदानन्द झा 'मनु'
बुधवार, 26 दिसंबर 2012
मंगलवार, 25 दिसंबर 2012
गजल
नीक नीक लोकक ई केहन काज अछि
बेटा बेचैत नै कनिको किए लाज अछि
मायाक महिमा सगरो पसरल अछि
जतए देखू आब रुपैयाक राज अछि
धर्म निकलैत अछि पाखण्डमे बोड़ि क'
नवका आइ केहन एकर शाज अछि
बैमानी शैतानी बिच्चेठाम पोसाइ छैक
शुद्धाक जीवनमे तँ खसल गाज अछि
अप्पन बड़ाइमे 'मनु' बुड़ाइ करै छी
माथक बनल ई कएहन ताज अछि
(सरल वार्णिक वर्ण, वर्ण - 15)
लेबल:
गजल,
जगदानन्द झा 'मनु'
रविवार, 23 दिसंबर 2012
मैथिलीक समानान्तर साहित्य आ संस्कृति: एकटा उदार आन्दोलनी स्वरूप
शनिवार, 22 दिसंबर 2012
सभसँ प्रिय बस्तु
दादाजी दिन भरिकेँ थाकल झमारल घरमे अबैत छथि । हुनका बैसति देरी दादीक तेज स्वर गुइज उठै छनि - " आबि गेलहुँ दिन भरि बौवा कए । ई जे दिन भरि छिछियाइत रहै छी से एहि मिथिला मैथिली सँ की घरक चूल्हो जड़त ।"
दादाजी शांत गंभीर होइत - "चूल्हा तँ नहि जड़त मुदा हमर सभ्यता संस्कृति हमर माएक भाषा जे हमर सभक हाथसँ छूति रहल अछि एनाहिते छुटैत रहल तँ एक दिन लोप भए जाएत आ एहन अवस्थामे कि जरुड़ी अछि ? घरक चूल्हा जड़ेनाइ की अपन माति पानि सभ्यता आ सरोस्वतीक कंठसँ निकलल मैथिलीक मिझएल आगिकेँ जड़ा कए प्रचंड केनाइ ।"
दादीजी हुनकर गप्प सुनि चुप्प । ओ शाइद सभ्यता संस्कृति माएक भाषा माति पानि एहेन भारी भारी शव्दक कोनो अर्थ नहि बूझि पएलि मुदा दादाजीक छोड़ैत साँससँ एतेक तँ अबस्य बूझि गेलि जे हुनकासँ हुनक कोनो सभसँ प्रिय बस्तु दूर भए रहल छ्लनि ।
लेबल:
जगदानन्द झा 'मनु',
बीहनि कथा
रुबाइ
साउन चढ़ल छोड़ि चलि कोना गएलहुँ
बहए हवा शितल सिहरैए हमर तन
कोना रहब बिनु अहाँ बुझि नै पएलहुँ
लेबल:
जगदानन्द झा 'मनु',
रुबाइ
रुबाइ
सिस्टम आइकेँ किए बबाल बनल अछि
नेता सभ तँ एकटा जपाल बनल अछि
बड़का बड़का बागर सभ राज चलबैए
जनताक प्राणेपर सबाल बनल अछि
लेबल:
जगदानन्द झा 'मनु',
रुबाइ
रुबाइ
गामक अधिकारी भेला सैयाँ हमर
कोना क पकड़तै कियोक बैयाँ हमर
सभक पेटीक माल आब हमरे छैक
सैयाँ लएथिन सभटा बलैयाँ हमर
लेबल:
जगदानन्द झा 'मनु',
रुबाइ
शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012
FARMHOUSE CHICKEN EFFECT-ALL WHITE, BRAHMIN AND IMPOTENT -SAHITYA AKADEMI ANNOUNCES YUVA AWARD IN MAITHILI (REPORT GAJENDRA THAKUR)
१
साहित्य अकादेमी द्वारा युवा पुरस्कारक भेल घोषणा। हिन्दीमे लिखैबला द्वारा मैथिलीमे मात्र पुरस्कार लेल लिखल जेबाक प्रवृत्ति, जे सुखाएल मुख्यधारामे पहिनेसँ रहल अछि, आ तकरा (नव) ब्राह्मणवादक अन्तर्गत पुरस्कृत कएल जेबाक प्रवृत्ति ओइमे सेहो रहल अछि, आब तकर प्रसार ओ अपन जातिवादी युवा मध्य केलक अछि । चेतना समिति आदि संस्था (नव) ब्राह्मणवादी कट्टरताकेँ ब्राह्मण युवा वर्ग मध्य पसारैत रहबाक चेष्टा करैत रहैत अछि। पोथीक क्वालिटीक स्थानपर चमचागिरी, लेखकीय दायित्वक स्थानपर जातिवादी कट्टरता चलिते रहत? स्टेटस कोइस्ट युवाकेँ, वैज्ञानिक (नव) ब्राह्मणवादी युवा जे अहाँक जातिवादी विचारधाराकेँ चैलेन्ज केनाइ तँ दूर, ओइमे सहयोग करए, की ऐ तरहक तत्वकेँ बढ़ावा दऽ अहाँ मैथिली साहित्यक पुनर्जागरण बाधक तत्व नै बनि रहल छी।
"निश्तुकी" कविता संग्रहकेँ पुरस्कार नै भेटए ओइ लेल महेन्द्र झाकेँ सहरसा" सँ, देवेन्द्र झाकेँ मधुबनी (संप्रति मुजफ्फरपुर)सँ आ योगानन्द झाकेँ बदनाम कबिलपुर गैंगसँ बजाओल गेल आ ई भार देल गेल। आ ओ सभ चुनलन्हि अरुणाभ "झा" सौरभ केँ। सायास "निश्तुकी" कविता संग्रह साहित्य अकादेमी द्वारा नै मंगाओल गेल, जे एकटा इलीगल काज अछि। हरबर-दरबरमे निर्णय कएल गेल, आब जएह पोथी आबि सकल ओही मध्यसँ ने निर्णय हएत, से तर्क देल गेल। पूर्ण रूपसँ फार्म हाउस चिकेन (उज्जर, ब्राह्मण आ नपुंसक) मैथिल ब्राह्मण जूरी चुनल गेल जे कोनो रिस्क नै रहए।
ऐ इलीगल काजकेँ हर स्तरपर चुनौती देल जाएत।
मूल पुरस्कार लेल शेफालिका वर्माकेँ चुनल गेल छन्हि आ अनुवाद पुरस्कार लेल महेन्द्र नारायण रामकेँ- दुनू गोटेकेँ बधाइ। संगमे नचिकेताक "नो एण्ट्री: मा प्रविश", सुभाष चन्द्र यादवक "बनैत बिगड़ैत" आ जगदीश प्रसाद मण्डलक "गामक जिनगी"क विरुद्ध "निश्तुकी" विरोधी तत्व जे तीन सालसँ जान प्राण लगेने अछि जे ऐ पोथी सभकेँ मूल पुरस्कार नै भेटैक, से घोर निन्दनीय अछि। "नो एण्ट्री: मा प्रविश" २००८ मे प्रकाशित रहै आ ई किताब अगिला सालसँ पुरस्कारक रेसमे नै रहत, ऐ पोथीकेँ मूल साहित्य अकादेमी नै भेटि सकत। मुदा की एकर स्थान मैथिलीक पहिल आ एखन धरिक एकमात्र पोस्टमॉडर्न ड्रामाक रूपमे बरकार नै रहत, की ब्राह्मणवादी विचारधारा ई स्थान ऐ पोथीसँ छीनि सकत? सुभाष चन्द्र यादवक "बनैत बिगड़ैत" आ जगदीश प्रसाद मण्डलक "गामक जिनगी" अगिला साल सेहो रेसमे रहत। मुदा तारानन्द वियोगी आ महेन्द्र नारायण राम किए (नव वैज्ञानिक) ब्राह्मणवाद द्वारा स्वीकृत छथि आ सुभाष चन्द्र यादव आ मेघन प्रसाद अस्वीकृत ओइ आलोकमे सुभाष चन्द्र यादवक "बनैत बिगड़ैत" क विरुद्ध रामदेव झा- योगानन्द झा- महेन्द्र मलंगिया-मोहन भारद्वाज-मायानन्द मिश्र आदिक षडयंत्र सफल भैयो जँ जाए तँ की सुभाष चन्द्र यादवक मैथिली पाठकक हृदए मे जे स्थान छै, से की कम कऽ सकत ई षडयंत्रकारी सभ? जगदीश प्रसाद मण्डलक "गामक जिनगी"क स्थान मैथिलीक आइ धरिक सर्वश्रेष्ठ लघुकथा संग्रहक रूपमे बनि गेल अछि, की ओ स्थान कियो दोसर छीनि सकत?
पढ़ू निश्तुकी आ चमेटा मारू महेन्द्र झा, देवेन्द्र झा आ योगानन्द झाकेँ -
निश्तुकी
नीचाँमे युवा पुरस्कारक साहित्य अकादेमीक निर्णय तीन पन्ना दऽ रहल छी, एकर प्रिंट आउट करू आ मिथिलाक गाम-गाममे जराबू।
२
विदेहक सम्बन्धमे धीरेन्द्र प्रेमर्षिकेँ एकटा फकड़ा मोन पड़ल छलन्हि- "खस्सी-बकरी एक्कहि धोकरी"। राजा सलहेसक गाथामे जतऽ सलहेस राजा रहै छथि चूहड़मल चोर भऽ जाइ छथि आ जतऽ चूहड़मल राजा रहै छथि सलहेस चोर भऽ जाइ छथि। साहित्यक ब्राह्मणवाद जातिक आधारपर समीक्षा करैए, समानान्तर परम्पराक उदारवाद कट्टरता विरोधी अछि। समानान्तर परम्परा मिथिला आ मैथिलीक उदार परम्पराकेँ रेखांकित करैए तँ ब्राह्मणवादी समीक्षाकेँ मिथिलाक कट्टर तत्व प्रभावित करै छै। समानान्तर परम्पराक घोड़ा ब्राह्मणवादी समीक्षामे गधा बनि जाइए, आ ब्राह्मणवादी साहित्यमे तँ गधा छैहे नै, सभ घोड़ाक खोल ओढ़ने छै। आ सएह कारण रहल जे मैथिलीक सुखाएल मुख्य धाराक साहित्य दब अछि। आ सएह कारण रहल जे अतुकान्त कविता हुअए बा तुकान्त, बहरयुक्त गजल हुअए बा आजाद गजल; रोला, दोहा,कुण्डलिया, रुबाइ, कसीदा, नात, हजल, हाइकू, हैबून बा टनका-वाका सभ ठाम समानान्तर परम्परा कतऽ सँ कतऽ बढ़ि गेल; नाटक-उपन्यास-समीक्षा, विहनि-लघु-दीर्घ कथा सभ क्षेत्रमे अद्भुत साहित्य मैथिलीक समानान्तर परम्परामे लिखल गेल मुदा ब्राह्मणवादी सुखाएल मुख्यधारा आ जातिवादी रंगमंच छल-प्रपंच आ सरकारी संस्थापर नियंत्रणक अछैत मरनासन्न अछि।
नीचाँमे युवा पुरस्कारक साहित्य अकादेमीक निर्णय तीन पन्ना दऽ रहल छी, एकर प्रिंट आउट करू आ मिथिलाक गाम-गाममे जराबू।
मंगलवार, 18 दिसंबर 2012
ज्योतिरीश्वर पूर्व गएर ब्राह्मण-परम्पराक महाकवि विद्यापति (चित्र पनकलाल मंडल) -पनक लाल मण्डलकेँ विदेह सम्मान -चित्रकला लेल -भेटल छन्हि।
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ज्योतिरीश्वर पूर्व गएर ब्राह्मण-परम्पराक महाकवि विद्यापति (चित्र पनकलाल मंडल) -पनक लाल मण्डलकेँ विदेह सम्मान -चित्रकला लेल -भेटल छन्हि। |
ज्योतिरीश्वर पूर्व गएर ब्राह्मण-परम्पराक महाकवि विद्यापति (चित्र पनकलाल मंडल) -पनक लाल मण्डलकेँ विदेह सम्मान -चित्रकला लेल -भेटल छन्हि। |
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ज्योतिरीश्वर पूर्व गएर ब्राह्मण-परम्पराक महाकवि विद्यापति (चित्र पनकलाल मंडल) -पनक लाल मण्डलकेँ विदेह सम्मान -चित्रकला लेल -भेटल छन्हि। |
मैथिलीक आदिकवि विद्यापति
कवीश्वर ज्योतिरीश्वर(लगभग १२७५-१३५०)सँ पूर्व (कारण ज्योतिरीश्वरक ग्रन्थमे हिनक चर्च अछि), मैथिलीक आदि कवि। संस्कृत आ अवहट्ठक विद्यापति ठक्कुरःसँ भिन्न। सम्भवतः बिस्फी गामक बार्बर कास्टक श्री महेश ठाकुरक पुत्र। समानान्तर परम्पराक बिदापत नाचमे विद्यापति पदावलीक (ज्योतिरीश्वरसँ पूर्वसँ) नृत्य-अभिनय होइत अछि।
बोधि कायस्थ
विद्यापति ठक्कुरःक पुरुष परीक्षामे हिनक गंगालाभक कथा वर्णित अछि। महाकवि विद्यापति (ज्योतिरीश्वर पूर्व मैथिली पदावली सभक लेखक) क विषयमे सेहो गंगालाभक ई कथा प्रचलित आ बादमे विद्यापति ठक्कुरक (संस्कृत आ अवहट्ठक लेखक) विषयमे सेहो गंगालाभक ई कथा प्रचलित भेल।
महाराज शिव सिंह
मिथिला नरेश विद्यापति ठक्कुरः (संस्कृत आ अवहट्ठक लेखक)क आश्रयदाता ओइनवार वंशक महाराज शिव सिंह।
उगना महादेव
महादेव (उगनारूपी) विद्यापतिक अहिठाम गीत सुनबा लेल उगना नोकर बनि रहैत छलाह। मैथिलीक आदिकवि विद्यापति (ज्योतिरीश्वर पूर्व) आ विद्यापति ठक्कुरः (संस्कृत आ अवहट्ठक लेखक आ राजा शिवसिंहक दरबारी) दुनूसँ सम्बद्ध कऽ उगनाक ई कथा प्रसिद्ध भेल।
महाकवि विद्यापति ठाकुर 1350-1435
विद्यापति ठक्कुरः 1350-1435 विषएवार बिस्फी-काश्यप (राजा शिवसिंहक दरबारी) आ संस्कृत आ अवहट्ठ लेखक। कीर्तिलता, कीर्तिपताका, पुरुष परीक्षा, गोरक्षविजय, लिखनावली आदि ग्रंथ समेत विपुल संख्यामे कालजयी रचना। ई मैथिलीक आदिकवि विद्यापति (ज्योतिरीश्वर पूर्व)सँ भिन्न छथि।
सोमवार, 17 दिसंबर 2012
की मैथिली मात्र मैथिल ब्राह्मणक भाषा छी? -(रिपोर्ट गजेन्द्र ठाकुर)
सेन्टर फॉर स्टडी ऑफ इण्डियन ट्रेडिशन्स- मैथिली साहित्यसँ ऐ संस्थाक की सरोकार
छै? विद्यापति सेवा संस्थान आ चेतना
समिति राजनैतिक संस्था अछि- पागबला संस्कृत आ अवहट्ठक विद्यापतिक सालाना
विद्यापति पर्व
करबाक अतिरिक्त एकर सभक की काज छै? ऑल इण्डिया मैथिली
साहित्य समितिक
पड़ोसीयोकेँ पता नै छै जे ई संस्था छैहो
बा नै, जयकान्त मिश्रक
मृत्युक बाद ऐ संस्थाक मान्यता बरकरार
किए छै, की जयकान्त मिश्रक मैथिली
लेल कएल अहसानक पारिश्रमिक हुनकर बेटी-जमाए लऽ रहल छथि। अखिल भारतीय
मैथिली साहित्य परिषद की अछि आ एम.बी.बी.एस. डॉक्टर, जिनका साहित्यसँ कोनो
सरोकार नै छन्हि, किए वोटक अधिकार
लेल ऐ मुइल संस्थाक पता अपन नामसँ दै लेल तैयार भेल छथि। मिथिला सांस्कृतिक परिषद तँ विद्यापतिकेँ पागबला
फोटो पहिरा
कऽ विद्यापतिक नै मैथिलीक यज्ञोपवीत संस्कार करबाक दोषी
अछिये। तँ की ई मैथिल ब्राह्मणक खाँटी संस्था
सभ मैथिलीकेँ मैथिल ब्राह्मणक भाषा बनबै
लेल (साहित्य अकादेमी दिल्लीमे) मात्र वोट आ कब्जाक राजनीतिक अन्तर्गत साहित्य अकादेमीक मैथिली कन्वीनर चुनबाक लेल संस्थाक रूपमे
काज कऽ रहल अछि, आ तेँ अस्तित्वमे अछि?
की मैथिली मात्र मैथिल ब्राह्मणक भाषा अछि?
साहित्य अकादेमी, दिल्लीक पुरस्कारक बँटवारा
(!!!) देखी तँ उत्तर की अछि?
(कुल बँटवारा ४३ बेर- 2011 धरि)
मैथिल ब्राह्मण -३६ बेर!!
कायस्थ-५ बेर
राजपूत-२ बेर
गएर सवर्ण- 0000 बेर!!!!
१९६६- यशोधर झा (मिथिला
वैभव, दर्शन)
मैथिल ब्राह्मण
१९६८- यात्री (पत्रहीन नग्न
गाछ, पद्य)
मैथिल ब्राह्मण
१९६९- उपेन्द्रनाथ झा “व्यास” (दू पत्र, उपन्यास) मैथिल ब्राह्मण
१९७०- काशीकान्त मिश्र “मधुप” (राधा विरह, महाकाव्य) मैथिल ब्राह्मण
१९७१- सुरेन्द्र झा “सुमन” (पयस्विनी, पद्य) मैथिल ब्राह्मण
१९७३- ब्रजकिशोर वर्मा “मणिपद्म” (नैका बनिजारा, उपन्यास) कर्ण कायस्थ
१९७५- गिरीन्द्र मोहन मिश्र
(किछु देखल किछु सुनल, संस्मरण)
मैथिल ब्राह्मण
१९७६- वैद्यनाथ मल्लिक “विधु” (सीतायन, महाकाव्य) कर्ण कायस्थ
१९७७- राजेश्वर झा (अवहट्ठ:
उद्भव ओ विकास, समालोचना)
मैथिल ब्राह्मण
१९७८- उपेन्द्र ठाकुर “मोहन” (बाजि उठल मुरली, पद्य) मैथिल ब्राह्मण
१९७९- तन्त्रनाथ झा (कृष्ण
चरित, महाकाव्य)
मैथिल ब्राह्मण
१९८०- सुधांशु शेखर चौधरी
(ई बतहा संसार, उपन्यास)
मैथिल ब्राह्मण
१९८१- मार्कण्डेय प्रवासी
(अगस्त्यायिनी, महाकाव्य)
मैथिल ब्राह्मण
१९८२- लिली रे (मरीचिका, उपन्यास) मैथिल ब्राह्मण
१९८३- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (मैथिली पत्रकारिताक इतिहास)
मैथिल ब्राह्मण
१९८४- आरसी प्रसाद सिंह
(सूर्यमुखी, पद्य)
गएर ब्राह्मण- राजपूत
१९८५- हरिमोहन झा (जीवन
यात्रा, आत्मकथा)
मैथिल ब्राह्मण
१९८६- सुभद्र झा (नातिक
पत्रक उत्तर, निबन्ध)
मैथिल ब्राह्मण
१९८७- उमानाथ झा (अतीत, कथा) मैथिल ब्राह्मण
१९८८- मायानन्द मिश्र (मंत्रपुत्र, उपन्यास) मैथिल ब्राह्मण
१९८९- काञ्चीनाथ झा “किरण” (पराशर, महाकाव्य) मैथिल ब्राह्मण
१९९०- प्रभास कुमार चौधरी
(प्रभासक कथा, कथा)
मैथिल ब्राह्मण
१९९१- रामदेव झा (पसिझैत
पाथर, एकांकी)
मैथिल ब्राह्मण
१९९२- भीमनाथ झा (विविधा, निबन्ध) मैथिल ब्राह्मण
१९९३- गोविन्द झा (सामाक
पौती, कथा)
मैथिल ब्राह्मण
१९९४- गंगेश गुंजन
(उचितवक्ता, कथा)
मैथिल ब्राह्मण
१९९५- जयमन्त मिश्र (कविता
कुसुमांजलि, पद्य)
मैथिल ब्राह्मण
१९९६- राजमोहन झा (आइ
काल्हि परसू, कथा
संग्रह) मैथिल ब्राह्मण
१९९७- कीर्ति नारायण मिश्र
(ध्वस्त होइत शान्तिस्तूप, पद्य)
मैथिल ब्राह्मण
१९९८- जीवकान्त (तकै अछि
चिड़ै, पद्य)
मैथिल ब्राह्मण
१९९९- साकेतानन्द (गणनायक, कथा) मैथिल ब्राह्मण
२०००- रमानन्द रेणु (कतेक
रास बात, पद्य)कर्ण
कायस्थ
२००१- बबुआजी झा “अज्ञात” (प्रतिज्ञा पाण्डव, महाकाव्य) मैथिल ब्राह्मण
२००२- सोमदेव (सहस्रमुखी
चौक पर, पद्य)
कायस्थ
२००३- नीरजा रेणु (ऋतम्भरा, कथा) मैथिल ब्राह्मण
२००४- चन्द्रभानु सिंह
(शकुन्तला, महाकाव्य)
गएर ब्राह्मण- राजपूत
२००५- विवेकानन्द ठाकुर
(चानन घन गछिया, पद्य)
मैथिल ब्राह्मण
२००६- विभूति आनन्द (काठ, कथा) मैथिल ब्राह्मण
२००७- प्रदीप बिहारी
(सरोकार, कथा)कर्ण
कायस्थ
२००८- मत्रेश्वर झा (कतेक
डारि पर, आत्मकथा)
मैथिल ब्राह्मण
२००९- स्व.मनमोहन झा
(गंगापुत्र, कथासंग्रह)
मैथिल ब्राह्मण
२०१०-श्रीमति उषाकिरण खान
(भामती, उपन्यास)
मैथिल ब्राह्मण
२०११- श्री उदयचन्द्र झा
"विनोद" (अपक्ष, कविता
संग्रह) मैथिल ब्राह्मण
की मैथिली मात्र मैथिल
ब्राह्मणक भाषा अछि?
साहित्य अकादेमी, दिल्लीक पुरस्कारक बँटवारा
(!!!) देखी तँ उत्तर की अछि?
(कुल बँटवारा ४३ बेर- २०११ धरि)
मैथिल ब्राह्मण -३६ बेर!!
कायस्थ-५ बेर
राजपूत-२ बेर
गएर सवर्ण- 0000 बेर!!!!
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