की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। sadhnajnjha@gmail.com पर e-mail करी Or call to Manish Karn Mo. 91 95600 73336

सोमवार, 18 जून 2012

गजल



सभकेँ हम करि सम्मान सभ बुझैत अछि गदहा 
सभकेँ गप्प हम सुनै छी सभ  कहैत अछि गदहा  

सभतरि मचल हाहाकार मनुख खाय  गेल चाडा
भ्रष्टाचार में डूबि  आई  देश चलबैत अछि गदहा 

नवयुवक फँसल भमर में साधू करए कबड्डी 
देखू  गाँधी टोपी पहिर किछ कहबैत अछि गदहा 

भगवा चोला पहिर-पहिर आँखि में झोँकै मिरचाई 
धर्माचार बनल बैसल    धर्म बेचैत अछि गदहा 

जंगल बनल समाज में, सोनित  सँ भिजल धरती 
शेर सगरो पडा गेलै  चैन सँ सूतैत अछि गदहा 

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-२०)
 जगदानन्द झा 'मनु'  : गजल  संख्या -५५

शुक्रवार, 15 जून 2012

मार बाढ़नि तेसरो बेटीए




हेमंत बाबूक बेटी रोशनी, अपन नामक अनुरूपे अपन कृतीक पताका  चारू कात लहराबति, आईएएसकेँ परीक्षामे भारत वर्षमे प्रथम दसमे अपन स्थान अनलथि | समाचार सुनि हेमंत बाबू दुनू परानीक  प्रशन्नताक कोनो ठीकाने नहि | जे सsर सम्बंधी आ समाजक लोक सुनलनि सेहो सभ  दौड़-दौड़ आबि हेमंत बाबूकेँ बधाइ दैत | रोशनी बड्डका जेठका सभकेँ प्रणाम करैत आशीर्वाद लैत |
फूलो काकी फूल जकाँ हँसैत- बजैत एलि, रोशनी हुनक दुनू पेएर पकरि आशीर्वाद  लेलनि  | फूलो काकी रोशनीकेँ अपन करेजासँ लगबैत टपाकसँ बजलिह, "हे यौ हेमंत बौआ, अहाँक तेसर ई  फेक्लाही बेटी तँ सगरो खनदानकेँ जगमगा देलक |"
हुनकर  एहि गप्पपर सभ कियो ठहाका मारि कए  हँसय लागल | मुदा हेमंत बाबू आइसँ एक्किश बर्ख पाछूक इआदमे विलीन भए  गेला - - | दूटा बेटी भेला बाद कोना ओ बेटाक इक्षामे मंदिरे-मंदिरे  देवता पितरकेँ आशीर्वाद लेल  भटकैत   रहथि | मुदा  हुनकर सभटा मेहनत बेकार भेलनि जखन हुनक कनियाँक तेसर प्रसब पीड़ाकेँ बाद फूलो काकीक स्वर  हुनकर कानमे परलनि,  " मार बाढ़नि  तेसरो बेटीए ....."
एहिसँ  आँगा हुनका किछु नहि सुनाई देलकन्हि  | जेना की अपार दुखसँ मोनमे कोनो झटका लागल होइन, ओ अपन जगहपर ठारकेँ ठारे रहि गेल रहथि    |
*****
जगदानन्द झा 'मनु'

मंगलवार, 12 जून 2012

गजल


हम अहाँ संग चलैत रहब जाधैर छै जीनगी
दुःख सुख हम सभटा सहब जाधैर छै जीनगी

हावा बयार कतबो तेज बहतै छोडब नै संग
अहाँक सूरत देख कs जीयब जाधैर छै जीनगी

नीरास भाव केर त्याग करू आशाक दीप जरा कs
जीवन सं हम संघर्ष करब जाधैर छै जीनगी

विपतिक घड़ीमें देखैत चलु भाग्य केर तमाशा
अपनो भाग्य बदलतै कहब जाधैर छै जीनगी

"प्रभात" पतझर गुलजार जीवनक बगिया में
प्रेम सनेह नदिया में बहब जाधैर छै जीनगी

-----------वर्ण-१९----------
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

सोमवार, 11 जून 2012

गजल


घोड कलियुग घडी केहन आबि गेलै   
एकटा कंस घर घर में  पाबि गेलै  


बनल अछि रक्षके भक्षक आब  सगरो   
विवश जनताक हक सबटा  दाबि गेलै 


अन्न खा ' थाह पेटक किछु नै पएलक  
मालकेँ सगर भूस्सा चुप  चाबि गेलै  



शहर नै गाम आ  घर- घर आब देखू 
पूव देशक हबा में सभ आबि गेलै 


आजु  फेशन कए नव पोसाक  में डुबि
एक गज में अरज देहक पाबि गेलै  


(बहरे असम, मात्रा क्रम- २१२२-१२२२-२१२२)
जगदानन्द झा 'मनु' 

रविवार, 10 जून 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट




अप्पन जीनगी के अप्पने सजाएल करू
अप्पन स्वर्णिम भविष्य रचाएल करू

राह ककर तकैत छि इ व्यस्त जमाना में
अप्पन राह के कांट खुद हटाएल करू

बोझ कतेक बनल रहब माए बाप कें
कर्मशील बनी कय दुःख भगाएल करू

असफलता सं लडै ले अहाँ हिमत धरु
कर्मक्षेत्र सं मुह नुका नै पडाएल करू

हार मानु नै जीनगी सं जाधैर छै जीनगी
जीत लेल अहाँ हिमत के बढ़ाएल करू

चलल करू डगर सदिखन एसगर
ककरो सहारा कें सीढ़ी नै बनाएल करू

उलझन बहुत भेटत जीवन पथ में
पथिक बनी उलझन सोझराएल करू

हेतए कालरात्रिक अस्त नव-प्रभात संग
अमावस में आशा के दीप जराएल करू

------------वर्ण -१६------------
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शुक्रवार, 8 जून 2012

की भगवती हमर घर एती ?

मोहंती बाबा | भरि गामक बाबा | भरि गामक लोक  हुनका बाबा कहि कए संबोधित करैत छनि जेकर कारण छैक  हुनकर बएस  | पनचानबे बर्खक मोहंती बाबा अपन कद काठी आ डीलडोलसँ एखनो अपन उम्रकेँ पछुआबैत, लाठी टेक कए गामक दू चक्कर लगा कए आबि जाइ छथि | मुदा अपन गाम भगवतीक दर्शन करैक हेतु कहियो नहि जाइ छथि | गाममे बनल विशाल भगवतीक मंदिर, भगवती बड्ड जागरन्त चारू कातक बीस गाममे भगवतीक महिमाक चर्चा छन्हि | गामक नियमकेँ हिसाबे गामक  सभ  कियो दिनमे  एक ने एक बेर भगवती घर भगवतीक  दर्शन हेतु अबश्य जाइ  छथि |
गर्मीक छुट्टीमे बाबाक पोता जे की दिल्लीमे कोनो प्रतिष्ठित काज करै छला, गर्मी बिताबै आ आम खेबाक इक्छासँ गाम एला | ओहो गामक परम्पराक निर्वाह करैत भगवतीक दर्शन कए  ' एला | एला बाद दलानपर बैसल बाबा संगे गप सप होइत रहलै | गपक बिच संजय बाबासँ पुछलथि,  " बाबा अहाँ भगवती घर नहि  जाइ  छियैक |"
बाबा, "नहि "
संजय, "किएक"
बाबा, "हौ बौआ, भगवती घर तँ  सभ  कियोक  जाइत अछि, मुदा भगवती केकरो-केकरो घर जाइ  छथिन | हम अपन मन आ स्वभाबकेँ एहेन बनाबैक प्रयासमे छी जे भगवती हमर घर आबथि |"
संजय बाबाक मुँहसँ एहेन दार्शनिक गप सुनि अबाक रहिगेल आ सोचय लागल जे की ओकर मन आ स्वभाब  एहेन छैक जे कहियो  भगवती ओकर घर एती ? ओकर अबाक रहैक कारण रहै शाइद  नहि  |
*****
जगदानन्द झा 'मनु'

गजल@प्रभात राय भट्ट





अप्टन सुन्दरता के बढ़ा रहल छै
पुष्प दूध सं सुनरी नहा रहल छै

कोमल कोमल देह लागैछै दुधिया
आईख सं बिजुरिया गिरा रहल छै

पैढ़लिय इ सुनारी छै खुला किताब
अंग अंग सुन्दरता देखा रहल छै

पातर पातर ठोर लागै छै शराबी
गाल गुलाबी रस टपका रहल छै

घिचल घिचल नाक चमकै छै दाँत
काजर के धार तीर चला रहल छै

अप्टन लगा गोरी सुनरी लागै छै
मोन मोहि पिया के ललचा रहल छै

दुतिया चान सन चकमक करै छै
ताहि ऊपर श्रृंगार सजा रहल छै

सैज धैज सजनी इन्द्रपरी लागै छै
देख सुनरी के चान लजा रहल छै

-------वर्ण-१४-------
रचनाकार-प्रभात राय भट्ट

गुरुवार, 7 जून 2012

ऐना किएक ई की ? हास्य कविता

एक्के कोइख सँ जनमल दुनू
बेटा के डाक्टरी इंजीनियरिंग कराऊ
मुदा बेटी के संस्कृते सँ मध्यमा कराऊ
एहेन बेईमानी ऐना किएक ई की ?

दूल्हा अहाँ गरम-गरम खीर खाऊ
अप्पन सुखलाहा देह के फुलाऊ
दुल्हिन भुखले सन्ठी जेंका सुखाऊ
ओकरा ने अहाँ सब पढाऊ-लिखाऊ ||

बेटी के पढ़ा लिखा के करब की ?
ओकरा त चूल्हे फूकै लेल कहैत छी
मुदा बेटा के पढ़ा लिखा के
दाम दिग्गर में रुपैया खूब गनबैत छी ||

हाय रे नारा लगौनिहार सभ
कागजी पन्ना पर बेटा बेटी एक समान
मुदा असलियत में बेटा तों स्कूल जो
बेटी तों भनसा-भात के कर ओरीयान ||

दुनू त अहींक संतान छी
फेर एहेन बेईमानी ई की?
बेटियों के पढ़ा लिखा मनूख बनाऊ
अहाँ ओकरो त शिक्षित प्रशिक्षित बनाऊ ||

बेटा के पढबय के खर्चा
अहाँ बेटीवाला सँ वसूल करैत छी
हाय रे दहेज़ लोभी दलाल
अहाँ के तैयो संतोख नहि भेल ई की ?

सामाजिक विकास लेल कही लेल "कारीगर"
मुदा अहाँ इ गप किएक नहि बुझहैत छी
समाज सँ पैघ अहाँक अप्पन स्वार्थ
एहेन जुलुम ऐना किएक ई की ?

रुपैया गनै सँ नीक त ई
जे बेटी के शिक्षित बनाऊ
नहि गनाब रुपैया आ नहि केकरो सँ गनायब
एखने सभ गोटे मिली सप्पत खाऊ ||

समाज आगू बढ़त त उन्नति होयत
ई गप अहाँ किएक नहि बुझहैत छी
आबो संकीर्ण सोच बदलू
एही सँ बेसी फरिछा के "कारीगर" कहत की ?

गजल


मारी माछ नहि ऊपछी खत्ता
भरि समाज घोडनकेँ छत्ता 

परचट्ट बनल जनता छी 
खाइ  छी गरदनिपर कत्ता

काँकोड़  बिएल काँकोड़े  खए 
भए  गेल देशक लत्ता-लत्ता 

सगरो  नाँघल जाइत अछि 
छन छन मरीयादाकेँ हत्ता   

रहब भरोसे कतेक दिन 
भेटे एक दिन हमरो भत्ता   

(वर्ण-११)
जगदानन्द झा 'मनु' 

गजल@प्रभात राय भट्ट



आजुक दुनियां में सब किछ विकाऊ भsगेलै
अनैतिक कुकर्म करैबला कें नाऊ भsगेलै


बेच अप्पन इज्जत कमबै छै टाका रुपैया
ठस ठस गन्हईत छौड़ी सभ कमाऊ भsगेलै


उठलै लोकलाजक पर्दा भsगेलै गर्दा गर्दा
चौक चौराहा नगरबधू के गाँउ ठाऊ भsगेलै


इज्जत केर धज्जी उर्लै एलै केहन जवाना
पुलिस प्रहरी थाना एकर जोगाऊ भsगेलै


वर्ण -17
रचनाकार--प्रभात राय भट्ट

मंगलवार, 5 जून 2012

गजल


भ्रष्टाचार केँ ठेका आजुक सरकार लेने 
कारी रुपैयाक करमान धर्माचार लेने 


बोगला भगत छै बैसल घाट-घाट पर 
खून पिबैक लेल तैयार हथियार लेने 


कर्तव्य बिसरल अछि मिडिया समाज में 
नीक बेजाए  छोरि कमाऊ समाचार लेने 


प्रेमक भाषा सिमैट गेल अछि पाई तक 
पाई  अछि एक दोसर सँ सरोकार लेने 


सुनलौं कोयला दलाली में मुँह कारी हैछै 
सगरो मुँह कारी छैक मिथ्या प्रचार लेने 


(वर्ण-१६ )
जगदानन्द झा 'मनु'

गजल

सोना दहेल जाइए जुनि काँटी केँ पकरू 
छोरि अपन भाषा नहि खराँटी केँ पकरू 

दोसर  घर धेने भेटत नहि ओ सनेह 
छोरि आनक बोझ अपन आँटी केँ पकरू  

आदी काल सँ अपन शिक्षा लेने विश्व अछि 
नवीनता केँ धार में नहि काँटी केँ  पकरू   

संपन्न हमर संस्कृति मधुर भाषा अछि 
लात मारि टल्हा केँ अपन खाँटी केँ पकरू 

छोरु दिल्ली मुंबई घुरि आऊ अपन घ 'र
आब  दरभंगा मधुबनी  राँटी केँ पकरू 

(वर्ण-१६)
जगदानन्द झा 'मनु'


गजल@प्रभात राय भट्ट



मरि रहल छै सीता सन बेट्टी दहेजक खेल में
बेट्टी पुतोहू जरी रहल छै किरोसिन तेल में

बेट्टा के बाप बेचीं रहल छै मालजालक मोल में
बेट्टीबाला के घर घरारी सब लागल छै सेल में

कs देलन घर घरारी दुलहा के नाम नामसारी
बनी गेलाह ओ दाता भिखारी बाप बेट्टा के मेल में

फेर दुलहा मोटर आ गाड़ी लेल कटैय खुर्छारी
कनिया संग आबैय ओ ससुरारी चैढ कS रेल में

नै भेटला सं मोटर गाड़ी कनिया के देलक मारि
दहेजक लोभी ओ बाप बेट्टा चकी पिसैय जेल में

------------वर्ण-१९-----------
रचनाकार-प्रभात राय भट्ट

सोमवार, 4 जून 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट


गजल

प्रेमक दुनियाँ में संसारक रित धनी तोईर दिय
शराबी ठोरक रस हमरा ठोर पर घोईर दिय

प्रेमक बैरी इ दुनिया की जाने प्रेम सनेहक मोल
अनमोल प्रेम सं दिल टूटल हमर जोईर दिय

अहिं हमर जिनगी छि हम अहिं प्रेम केर दीवाना
दिल लगा कs हमरा सं जमाना के पाछु छोईर दिय

प्रेमक पंछी हम अहाँ उईर चलू प्रेम नगर में
कियो देखैय खराप नजैर सं ओकर मुह मोईर दिय

अप्पन प्रेम देख क दुनिया जैईर जैईर मरतै
प्रेमक दुश्मन जमाना के अहाँ धनी झकझोईर दिय

-----------वर्ण-२०------------
रचनाकार-प्रभात राय भट्ट

शनिवार, 2 जून 2012

गजल


सब दान सं पैघ दुनिया में कन्यादान छै
धन टाका सं पैघ दुनिया में स्वाभिमान छै

निर्लज मनुख की जाने मान-स्वाभिमान
दहेज़ मांगब याचक केर पहिचान छै 



मांगी दहेज़ टाका रुपैया देखबैय शान
बेचदैय बेट्टा के लोक केहन नादान छै

जैइर मरैय बेट्टी दहेजक आईग में
विआहक नाम सुनीते बेट्टी परेशान छै

सपथ लिय बंधू दहेज़ नै लेब नै देब
आदर्श विआह जे करता ओहे महान छै

आब नै बेट्टी मरत नै पुत्रबधू जरत
दहेज़ मुक्त मिथिलाक एही अभियान छै

---------वर्ण-१६-----------
रचनाकार-प्रभात राय भट्ट