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शुक्रवार, 7 जून 2013

वेश्या



- हे...हे...जा एना नै सट...पूजा-पाठक समान छै सब छुआ जाएत ।
- एना किए बाजैत छथि ।हमर देहमे कोनो मैला लागल छै जे छुआ जाएत ।
- तोहर कर्मे एहन छौ जे सब छुआ जेतै ।कतबो नील-टिनोपाल झाड़ि ले रहबे तँ वेश्याक वेश्ये . . . ।
-चुप. . .चुप रहू. . .जँ हम वेश्या छी तँ अहाँ की छी. . .?
- हम पुजारीन छी ।सीता छी, सावित्री छी ।
- बड़ा एलनि राधा बाली ।अहूँ वएह छी जे हम छी ।सब मौगी अपन मरद लऽग वैह रहैत अछि जे हम रहै छी ।हमरसँ तूँ छुआ जेबें ,गै हमरा वेश्या तँ तोरे सभक मरदबा बनबै छौ ।एकटा वेश्याक सप्पत छौ जो पहिने अपन मरदकेँ शुद्ध करा तखन छुआ-छूत मानिहें ।

अमित मिश्र

इनभेस्टमेन्ट



- छोटू भाइ, किए रौदमे कपड़ा बेच-बेच चाम कारी करै छऽ ।अरामसँ ठण्ढ़ामे बैस कऽ तास खेलऽ ।
- नै भाइ, तास खेलबाक फुरसत नै छै ।बाबूक दबाइ निंघटि गेलै ।घूमि-फिर कऽ किछु बेच लेब तँ दबाइ भऽ जेतै ।
- लोक तँ बुढ़ माए-बापकेँ दबाइ अनठेने रहै छै ।देरीसँ इलाज हेतै तँ जल्दी छुआछन भेंटि जेतै ।तूँ किए अगुताएल रहै छऽ ।
- नै बुझलहो भाइ ।ई इनभेस्टमेन्ट छै ।आइ हमरा सेवा करैत हमर बेटा देखतै तखने ने काल्हि ओ हमर सेवा करतै ।बुझलऽ. . . ।

अमित मिश्र

टीस



- गे बड़की सखी बड दिन बाद तोरासँ भेंट भेल ।तोहर मोन करै छौ, कने संगी-सहेलीसँ भेंट कऽ लेब ?
- हँ गे छोटकी सखी मोन तँ बड होइ छै, मुदा की करियै हमर घरबला हमरा बिनु रहिते नै छथि ।
- उहो की करथुन ।गामसँ कहियो बहरेबो नै ने केलनि ।
- छोड़ ई सब ।ई बता जे एते सोना किए पहिरने छें ? बुझल नै छौ जमाना कते खराप छै ?
- हमर घर बला दुबाइमे कमाइ छै ।कह, सोना नै पहिरबै तँ कि तोरा सन पीत्तर पहिरबै ।
- तोसर साज-श्रृंगार तँ व्यर्थ छो सखी ।हम पीत्तरो पहिरै छी तँ सदिखन पतिक पिआर भेटैत अछि हमरा, मुदा तूँ कतबो बनि-ठनि ले पतिक पिआरसँ दूरे रहबें, तड़पैत . . . ।
छोटकी सखीकेँ लागलै जे करेजमे असहनिय टीस उठि गेलै ।किओ दूखाइत घावपर नोन रगड़ि देलकै ।

अमित मिश्र

ड्रामा



- रौ झगड़ूआ तोरा माँथपर सींघ जनमल हौ की ?
- से किए रौ घोघबा ?
- तोरा घरसँ हरदम हल्ले होइत रहै हौ ।लागैत हौ जे आब ककरो कपार फूटिये जेतौ ।
- नै बझलहीं ।हम-तूँ ठहरलौं मूरख, अनपढ़ ।तें लोक अपना आरकेँ छोट बुझै हौ ।
- लेकिन ऐसँ ई ड्रामकेँ कोन समबन्ध है ।
- अरे, आइ-काल्हि पढ़लो-लिखलकेँ घरमे एनाहिते नवाह जैसन झगड़ा होइ है ।तेँ हमहूँ झगड़ा बला फुसियाही ड्रामा करै छी जैसँ लोक हमरो शिकछित बुझै ।

अमित मिश्र

७९म सगर राति दीप जरय- विहनि आ लघु कथाक सगर राति पाठ- दिनांक १५ जून २०१३ क संध्यासँ १६ जून २०१३ क भोर धरि- स्थान- गाम औरहा (जिला मधुबनी) संयोजक- श्री उमेश पासवान।

 79th "Sagar Raati Deep Jaray" -Night long Maithili Seed and Short  Story recitation- at Village Auraha (District Madhubani)-night of 15th-16th June 2013 Convener Sh. Umesh Paswan
Village Aurha is on NH57.
Those Coming by bus should disembark at "Bhutha Chauk" 3 kms from Nirmali. From here Aura Village is around 3km (Via Vangama Chowk).
Those Coming by train should disembark at Nirmali Station and proceed to Village Auraha via Bhutha Chowk and Vangama Chowk.
Contact- UMESH PASWAN 09931235944
७९म सगर राति दीप जरय- विहनि आ लघु कथाक सगर राति पाठ- दिनांक १५ जून २०१३ क संध्यासँ १६ जून २०१३ क भोर धरि- स्थान- गाम औरहा (जिला मधुबनी) संयोजक- श्री उमेश पासवान। बससँ एनिहार एन.एच. ५७ पर निर्मलीसँ ३ कि.मी. दूर भुतहा चौकपर उतरू आ ओतएसँ वनगामा चौक होइत औरहा गाम ३ कि.मी. छै। ट्रेनसँ एनिहार निर्मली स्टेशनपर उतरू, ओतएसँ भुतहा चौक आ वनगामा चौक होइत औरहा गाम उमेश पासवान जीक दरबज्जापर संध्या ६ बजेसँ आयोजन छै। अहाँक उपस्थिति प्रार्थनीय। संपर्क श्री उमेश पासवान फोन ०९९३१२३५९४४
Your presence is highly Solicited.

तरकारीबाली


- तरकारी लिअ ।हरियर, ताजा . . . ।
- गै पालक कोना छौ ?
- नै बेसी पचासे लगा देब ।
- पचास, बाप रे बाप. . .बड बेसी छौ . . . अच्छे ई खाइमे केहन लागै छै ?हम नै खेने छी ।
- नीके लागैत हेतै ।तीत तँ नहिये हेतै ।
- हेतै ?मने तूँहूँ नै खेने छहीं ।तोरा तँ अपन खेतेमे छौ तखन. . .
- एते ने मँहगाइ हइ जे एकरा खाइत ममता लागैत हइ ।बेच देबै तँ दू टाका कमा लेब, खेलासँ तँ किछु नै भेटतै ।
हम सोचमे पड़ि गेलौं ।जखन खेत बलाकेँ अपन उपजा खाइमे कोढ़ फटै छै तँ आम जनताक हाल केहन हेतै ?

अमित मिश्र

शिक्षाक दूत



अधवयसु सासु चुल्हिमे जाड़न लगबैत बाजल " यै कनियाँ, एना बनि-ठनि कऽ बौएनाइ ठीक नै अछि ।कने लाज-धाख कएल करू ।"
चौकीपर बैसल पुतौह नऽहपर अलता लगबैत उत्तर देलक " हम सजै छी तैसँ अहाँकेँ किए कोढ़ फटैए ?अपना लूरि नै छन्हि तँ दोसरकेँ दूसै छथि ।"
" यै एहिमे लूरि आ दूसै बला कोन बात छै ? अहाँ गामक पुतौह छी ।एना जँ करबै तँ लोक की कहत, दूसबै करत नै ? "
" अहाँ मोने हम पाँच हाथ घोघ तानि बाटपर चली जाहीसँ ठामे-ठाम ठोकर लागत आ हम खसि पड़ब ।अहाँ चाहिते छी जे हम मजाक बनि जाइ ।"
" हम से नै कहलौं ।कने दाबि-पीच कऽ रहू बस, और किछु नै ।"
" यै हम मास्टरनी छियै ।नेनाक आदर्श छीयै ।जँ हमहीं दबल रहब तँ नेना कोना उठि सकत ?नवका जमानाक शिक्षाक दूत छी, नवके जकाँ रहऽ पड़तै ।कतबो अहाँ जरि कऽ धुँआइत रहू, अहाँ जकाँ फाटल-चिटल पहिर चुल्हि नै ने फूकब ।"
सासु एक टक देखिते सोचि रहल छलीह जे एहन शिक्षाक दूतसँ समाजक उत्थान हेतै वा पतन ?

अमित मिश्र

गुरुवार, 6 जून 2013

मातृभूमि

- बाबा. . .ई बैग सब किए पैक कऽ रहल छी ?कतौ जाएबाक अछि की ?
- हँ बौआ, गाम जाएब ।
- गाम . . .!गाम जा कऽ की करब ? एको क्षण नीक लागत ओत ?
- नीक किएक ने लागत ? हौ . . .हमर नेनपन ओतै बीतल अछि ।
- एहि दुआरे जे ओतऽ ए॰सी॰, फ्रीज, कार किछु नै छै ।45 वर्षसँ बाहर छी घरो टूटि कऽ ढनमना गेल हेतै ।
- कोनो बात नै ।गामक शीतल हवा ए॰सी॰, फ्रीजक कान काटतै ।नै हेतै तँ कोनो गाछ तऽर खोपड़ी ठाढ़ कऽ लेबै ।
- तैयो बाबा शहर लऽग गाम पासङगो बराबर नै छै ।मरि जाएब ओतऽ जा कऽ ।
- चिन्ता जुनि कर बाउ ।ओ हमर मातृभूमि अछि ।ओतऽ मरबो करब तँ सीधे स्वर्गे जाएब ।जाए दे. . . ।
बाबा चलि गेलथि मातृभूमिक दर्शन लेल ।

अमित मिश्र

बुधवार, 5 जून 2013

सुरक्षित


- हौ गुलटन भाइ, एना स्वतंत्र भऽ किए घुमै छऽ ?
- से किए हौ? देश परतंत्र भऽ गेलै वा कर्फ्यू लागल छै?
- नै हौ एहन बात नै छै ।असलमे तोरापर हत्यक आरोप छऽ ।कखनो पुलिस पकड़ि लठियाबैत लऽ जेतऽ ।
- केहन गप करै छऽ ।एहन किछु नै हेतै ।उपर धरि सब टेबूलपर दक्षिणा दऽ आएल छियै ।दस टा हत्या आरो कऽ देबै तखनो सुरक्षित छी, सुरक्षित . . . बुझलऽ ने ?
गुलटेन भाइ नम्हर-नम्हर डेग बढ़बैत, पानक पीक थुकैत, ठहक्का मारैत चलि गेलाह ।

अमित मिश्र

साक्षर


- रौ बिदेसरा, काल्हि सब बापुत आबि जैहें ।
- से किएक मालिक ?
- काल्हि बाबूक बरखी छै ।भोज-भात हेतै ।पात तँ तुँही सब उठेबहीं ने ?
- हम किए उठेबै? अपनेसँ उठा लेब अहाँ ।
- रौ, तोहर बापे-बाबा करैत एलौ ।छोट जातिक तँ ई काजे छै ।
- मालिक, अहाँ ककरा छोट कहैत छी ?बाप-बाबा कऽ एलाह हम सब नै करब ।
- एना जुनि बाज ।काज तँ पूजा होइत छौ ।कर्म कर ।
- यौ मालिक, आब हमहूँ सब बुझि गेलियै जे कोन काज हमर हितमे अछि ।आब हमहूँ सब साक्षर भऽ गेलियै ।डाकडर-इन्जिनियर बनि टाका छापब ।पात नै उठाएब ।

अमित मिश्र

पियक्कर



ओ पियक्कर छलै ।भरि दिन पिबिते रहै ।सदिखन तलमलाइत रहै ।कतेको बेर नालीमे खसल, सड़कपर ओंघराएल भेटलै ।मुँहक दुर्गन्धक चलते लोक ओकरासँ दूर रहै ।घर-परिवारसँ जलखैयो नै भेटै ओकरा ।लोक ओकरा गरियाबैत रहै, शरापैत रहै ।मुदा आइ. . . . . . . ।
आइ अपन साहस देखेलकै ओ ।भरल बजारमे नवालीक लड़कीक इज्जत बचेलकै, मुदा मारल गेलै ।खूने-खूनाम भऽ गेलै माँझ चौबटियापर ।छटपाइत मरि गेलै ।आब समाजक कमजोरहा, हिजड़ा सब ओकर बड़ाइ करै छै, मुदा ओ लड़की भगवानसँ माँगि रहल छै जे एहने पियक्कर भऽ जाइ ई दुनियाँ ।

अमित मिश्र

भगवानक रूप


हम ऑफिस जाइ लेल निकलिते रही कि एकटा भीखमंगा आबि गेल ।शुभ-शुभ बात बाजैत भीखक माँग केलक ।हम कनियाँकेँ सोर केलियै आ किछु बचल-खुचल रोटी-तरकारी दऽ दै लेल कहलियै ।ओ घरमे गेली आ हमरा लेल बनाओल गेल भात-दालि, तरूआ-पापड़, चटनी थारीमे साजि भीखमंगाकेँ दऽ देलनि ।भीखमंगा परसन लऽ लऽ कऽ खेलक ।ओकरा गेलाक बाद पता चलल जे सबटा भोजन खतम भऽ गेलै ।हम कनियाँपर तमसाए लागलियै तँ ओ कहलनि "नै बुझलियै, अतिथि भागवानक रूप होइ छै तेँ ओकरा बासी कोना कऽ दितियै ।"
हम तामसे आँखि गुड़ेड़ैत कहलियै "ओ भीखमंगा छल भगवान नै ।ओनाहितो स्त्री लेल पति परमेश्वर होइ छै ।
ओ मुस्कैत कहलनि " भगवानक कोनो रूप होइ छै, ओ तँ कोनो रूप धऽ आबि सकै छथि ।दोसर जे पति धरतीपर परमेश्वर छथि, मुइलाक बाद तँ भगवाने मोक्ष देथिन आ ओ भगवान भीखमंगे होइथ ?
हम बिना किछु बाजने भूखले ऑफिस चलि गेलौं ।

अमित मिश्र

रविवार, 2 जून 2013

गजल



हम जँ पीलहुँ शराबी कहलक माना
टीस नै दुख करेजक बुझलक माना

भटकलहुँ बड्ड   भेटेए नेह  मोनक
देख मुँह नै करेजक सुनलक माना

लिखल कोना कहब की की अछि कपारक
छल तँ बहुतो मुदा सभ छिनलक माना

दोख नै हमर नै ककरो आर कहियौ
देख हारैत हमरा   हँसलक माना

दर्द जे भेटलै      बूझब नै कनी 'मनु'
आन अनकर कखन दुख जनलक माना

(बहरे असम, मात्रा क्रम : २१२२-१२२२-२१२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’  

शनिवार, 1 जून 2013

बड़का बाबू



दस बर्खक नेना अक्षत अपन माएसँ, “माए माँछ बनेलहुँ मुदा बड़का बाबूकेँ तँ खाए लेल कहबे नहि केलियन्हि |”
माए, “रहअ दहि, तोहर बड़की माएकेँ एनाहिते बड़काटा ब्याम छनि | ओ अपना घरमे पिआउज, लहसुन, माँछ-माँसु नहि बनेता आ हम अपना घरमे बनाबी तँ तोहर बड़का बाबूकेँ खुआबू |”
अक्षत, “मुदा माए जँ बड़का बाबू बूझि गेलखिन्ह कि अक्षतक घरमे माँछ बनलै आ हुनका खाए लेल नहि कियो कहलकनि तहन ?”
माए टपाकसँ, “तहन की हमरा कोनो केकरो डर नहि लगैए |”
अक्षत, “ई गप्प नहि छै माए....(कनिक काल चुप्प, आगू ) जखन हम कमाए लागब तँ सभ दिन माँछ-माँसु बना बड़का बाबूकेँ खुएब.. |”
*****                                           
जगदानन्द झा ‘मनु’ 

शुक्रवार, 31 मई 2013

वसिअतनामा




सु०केँ व्याह दूतीवरसँ भेलन्हि | हुनक बएससँ करीब बीस बर्खक बेसी हुनक वर | हुनक वरकेँ पहिलुक कनियाँसँ एकटा बारह बर्खक बेटा | व्याहक पाँच वर्ख बादो सु०केँ एखन धरि कोनो संतान नहि | अपन माएक आग्रहपर सु० दू दिनक लेल अपन नैहर एली | एहिठाम माएकेँ केशमे तेल दैत –
सु० केर छोट भाइ, “दीदीसँ पैघ पतिवरता स्त्री आइकेँ दुनियाँमे कियो नहि होएत |”
सु०, “ ई एनाहिते कहैत छैक |”
छोट भाइ, “नहि गे माए, दीदीकेँ देखलहुँ अपन बुढ़बा वरकेँ एतेक सेवा करैत जतेक आजुक समयमे कियोक नहि करतै | नहबैत-सुनाबैत तीन तीन घंटापर हुनका चाह नास्ता भोजन दैत भरि दिन हुनके सेवामे लागल आ हुनकासँ कनी समय भेटलै तँ हुनक बेटामे लागल अपन देहक तँ एकरा सुधियो नहि रहै छै |”
सु०, “एहन कोनो गप्प नहि छै आ नहि हम कोनो पतिवरता छी | ओ तँ, ओ अपन वसिअतनामा बनोने छथि जेकर हिसाबे हुनक एखन मुइलापर हुनक सभटा सम्पतिकेँ मालिक हुनक बेटा होएत | आ जखन हमरा एकगो संतान भए जाएत तखन हुनक सम्पति, हुनक पहिलका बेटा आ हमर संतान दुनूमे बराबर बटा जाएत ताहि दुवारे बुढ़बाकेँ एतेक सेवा कए कऽ जीएने छी जे कहुना कतौसँ एकटा बेटा की बेटी भऽ जे नहि तँ एहेन बुढ़बाकेँ के पूछैए |”