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सोमवार, 16 अप्रैल 2012

गजल

उठलै करेजामे दरदिया हो राम
भेलै पिया जुल्मी बहरिया हो राम

कुक कोइली कें सुनि हिया सिहरल हमर
आँखिसँ बहे नोरक टघरिया हो राम

साउन बितल जाए, सुहावन मन सुखल
एलै पिया कें नै कहरिया हो राम

जरलै हमर जीवन बिना स्नेहक आगि
लागल हमर सुख में वदरिया हो राम

जीवन हमर बनलै बिना तेलक बाति
कोना जरत मोनक बिजुरिया हो राम

(दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ+ दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ+ दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व,
बहरे सरीअ)

जगदानन्द झा 'मनु'

रविवार, 15 अप्रैल 2012

गजल

प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक एकटा गजल ---

ओ नहि भेलाह कहियो जौँ हमर त' की भेल
होयत आब हुनके बिन गुजर त' की भेल

जेठक दिवस काटल भदबरियाक रैन
आइ बितइत नहि अछि पहर त' की भेल

बिलक्षण आर मधुर बजैत छलथि बोल
एकबेर बाजि देलथि जौ जहर त' की भेल

प्रेम मे मीरा सनक भऽ गेल छी बताहि हम
हुनका यदि परबाह नै तकर त' की भेल

युग-युग सँ गाबै छी गीत हुनक पथपर
नै एलाह एकोबेर एहि डगर त' की भेल

हुनक आश मे अछि फाटल साड़ी आ चुनरी
जोगिनिये कहैत अछि जौ नगर त' की भेल

हुनके आश तकैत पिबि गेलौ बिषक प्याला
बदनाम भेलहुँ जौ जग सगर त' की भेल

वर्ण>>१७
रुबी झा

गजल

रीति बिगड़ि गेल जानय छी
चलू बैसिकय केँ कानय छी

असगरुआ जौं
नहि नीक लागय
आओर लोक केँ आनय छी

समाधान आ कारण हमहीं
बात कियै नहि मानय छी

पैघ लोक के बात, सोचबय
के के एखन गुदानय छी

आस व्यर्थ छी बिना प्रयासक
फुसिये गप केँ तानय छी

नीक आओर अधलाह लोक केँ
कियै एक सँग सानय छी

लऽ कऽ चालनि सुमन हाथ मे
नीक लोक केँ छानय छी

गजल@प्रभात राय भट्ट


चन्दन कें गाछ पर बसेरा होए छै सांप कें
जेना कान्हा पर बौआ सबारी होए छै बाप कें

बड दुःख उठा बाप बौआ के पैघ बनाबै छै
चोट लागैछै बौआ कें दर्द होए छै बाप कें

प्रेम स्नेह माया ममताक पात्र थिक संतान
सैतान छै संतान भान कहाँ होए छै बाप कें

काहि काटी कें बाप बेट्टा पर जीन्गी लुट्बैय
आला आफिसर भS कS बेट्टा नै होए छै बाप कें

सांप कें कतबो दूध पियाबू डैस लै छै सांप
बाप मागै छै भीख बेट्टा कहाँ होए छै बाप कें
..............वर्ण:-१७ .................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शनिवार, 14 अप्रैल 2012

प्रेम नै जहर छै

बड हिम्मत क एकटा खिस्सा लिखवाक कोशिश केलौं | हम्मर मैथिली मे पहिल कहानी अछि . विषय कोनो नव नै अछि मुदा हम अपना तरीका सँ लिखबाक भरिसक कोशिश केने छी |
आशा करै छी जे अहांके नीक लागत |

                                                        *** प्रेम नै जहर छै ***

एकटा गाम | मननपुर | भोरक समय | गामक बीच दुर्गा मंदिर सँ उठैत नारी स्वर , गीतक एहन प्रवाह लगे छल जे स्वयं सरस्वती कमलक आसन पर बैस अपन हाथक वीणा संग मधुर भजन गाबि रहल छथिन | यैह भजन " जय जय भैरबी .........." सँ ऐ गामक मनुष्य आ अपन अंखि खोलै छथि | आब फरिच्छ भs गेल छै | किसान अपन बरदक संग खेत दिश चललाह |बरदक घेट मे बान्हल घंटी , ओही मधु भरल स्वर संग ताल -में ताल मिलायवाक भरिसक कोशिश कs रहल छै | भोर सात बजे एहि गाम सँ ओही नारी के पहिल भेंट होई छै | किरण , जी हाँ ,किरण नाम छै ओकर | सोलह -सत्रह वर्ष के घेट लगेने , मानु कोनो आधा खिलल गुलाबक कली | यौवनक चिन्ह आब उजागर होबs लागल छै | सुन्दरताक चलैत-फिरैत दोकान । ककरो सँ कोनो उपमा नै अनुपम । एकदम मासुम मुँह ,समाजक रीति-रिवाज सँ अंजान ।गाम मे सबहक चहेती ।कोनो काज एहन नै जे ओ नै क' सकैए ।सब काज मे पारंगत ,किरण ।

" किरण ,गै किरण ,कतS चल गेलही ,स्कुलक देर भs रहल छौ ", सुलोचना टिफिन बन्न करैत किरण कए सोर केलखिन ।

" आबै छियौ ,बस दू मिनट ", कहैत किरण घर सँ बहरायल ।कनेक काल ठमकि ठोर पर मुस्की नचबैत बाजल ," माँ आइ कने देर सँ एबौ ,आइ ने हमर सहेली पिंकी कए जनमदिन छै ,"
आ इ कहैत साइकिल लs स्कूल दिश चल देलक ।

स्कूल मे एकटा लड़का छलैए ,राकेश, पढ़ै-लिखै मे गोबरक चोत ,मुदा पाइबाला बापक एकलौता बेटा ,से पाइ कए गरमी जरूर छलैए ।सब साल मास्टर कए दु टा हजरीया दs दै आ वर्ग मे प्रथम कs जाए ।एक नम्मर कए उचक्का ।ओ जखन-तखन किरण कए देखैत रहैए ।आब किरण गरीब घरक सुधरल बेटी ,ओ की जानS गेलै ,जे कनखी कए अर्थ की होइ छै ।जहिना आन सब छात्र-छात्रा राकेशक किनल चाँकलेट ,मलाइबर्फ ,बिस्कुट आदि अनेको चिज सब खाइ छल ओहिना किरणो बिना छल-प्रपंच कए राकेशक संग रहै छल ।इम्हर किछ दिन सँ राकेश मंहगा सँ मंहगा आ सुन्नर सँ सुन्नर चिज-बित सब आनि कs किरण कए
चुप्पे-चाप दै छलै ।जै अवस्था मे एखन किरण छल ओहि मे विपरीत लिंगक प्रति आकर्षण भेनाइ स्वभाविक छै ,आ जौँ पैसा कए गमक लागि जाए तs फेर बाते कोन छै । इएह कारण छै जे राकेशक संग आब नीक लागS लागलै । राकेशक जादु एहन चलले जै मे फँसि पढ़ाइ-लिखाइ सब पाछु छुटि गेलै आ मस्ती हावी भ' गेलै । ऐ आकर्षण कए नाम देलक "प्रेम" । प्रेम ,जाहि शब्दक एखन धरि कोनो उपयुक्त परिभाषा नै भेटल । प्रेम ,जकरा बेरे मे जतेक लिखब ततेक कम ।प्रेम ,शायरक तुकबंदी ,दिल कए मिलन ।प्रेम , जे मौत सँ लड़बाक साहस दै छै । लैला-मजनु बाला प्रेम भेल छलै अकी किछु और जानी नै ।

" आउ ,आउ , आइ बड़ देर कs देलियै ," किरण कए आबैत देख राकेश बाजल ।
" हाँ ,की करब साइकिल पंगचर भ' गेल छल " किरण जबाब देलक ।
राकेश मक्खन लगाबैत बाजल ," आहा , हम्मर जान कए आइ बुलैत आबS पड़लै . . . काल्हि चलब नवका स्कुटी किन देब . . . तखन नै ने कोनो दिक्कत ।"
किरण मुस्कुराइत बाजल ," दुर जाउ ,स्कुटी पर चढ़बै त' गामक लोग की कहतै । कहतै जे छौड़ी बहैस गेलै ।"

" लोग किछु कहैए कहS दियौ ,अहाँ बताबू वेलेंटाइन डे अबि गेल छै गीफ्ट की लेबै ," राकेश एक्के साँस मे बाजल ।
" हम किछु नै लेब ,जखन प्रेम केलौ आ बियाह करबे करब तखन अहाँक सब किछ अपने आप हम्मर भ' जेतै ," किरण विश्वास के साथ बाजल ।

कनेक काल मौन ब्रत कए पालन केला कए बाद राकेश किरणक हाथ पकरैत बाजल ," किरण ,हम चाहै छी ऐ बेर वेलेंटाइन डे पर दरभंगा घुमै लेल चलब । जौं अहाँ कहब त' एखने होटल बुक करबा दै छी " फेर कने और लग आबि बाजनाइ शुरू केलक ." ओतS खुब मस्ती करब ,फिलम देखब आ राज मैदान मे पिकनिक मनायब आओर बहुतो रास गप्प करब ।"

किरण अपन हाथ छोड़बैत बाजल ," नै नै हम असगर अहाँ संग दरभंगा नै जायब । माँ हम्मर टाँग तोड़ि देत , अहाँ जायब त' जाउ हम एतै ठिक छी ।"

" हे . . .हे . . . हे . . . हे . . . एना जुनी बाजु " राकेश किरण कए पँजियाबैत बाजल ," हम अहाँ होइ बाला घरबाला छी आ पति संग घुमै मे कोन हर्ज छै , मात्र एक्के दिन कए त' बात छै , अहाँ कोनो बहाना बना लेब ।"

जेना-तेना क' राकेश अप्पन बात मना लेलक ।तय दिन किरण आ राकेश शिवाजीनगर सँ बस पकैड़ दरभंगा दिश चल देलक । भरि रस्ता प्यार-मोहब्बत कए बात बतियाइत रहल । दरभंगा आबि राज किला देखलक ,श्यामा मंदिर ,मनोकामना मंदिर मे पुजा केलक , टावर चौक सँ शाँपिँग केला कए बाद साँझ होटल मे आयल ।

आब एक कमरा ,एक बेड ,दु जन ।बड़ मुश्किल घड़ी छलै ।
राकेश कहलक ."आउ कने सुस्ता लै छी ,काल्हि भोरे एहि ठाम सँ विदा हएब ।"
किरण प्यार कए कारी पट्टी सँ अपन आँखि बान्हि लेने छलै ।बिना किछु बाजने ओ सब करैत गेल जे राकेश चाहै छलै ।जौं कखनो बिरोधो करै त' प्रेमक दुहाई दs राकेश मना लै छलैए ।और अन्ततः ओ भेलै जे नै हेबाक चाही ।प्रेमक मायाजाल मे फसल प्रेमक मंत्र सँ वशिभुत कएल किरण किछु नै बाजल .शायद अप्पन प्रेम पर हद सँ बेसी विश्वास छलै । भोरे नीन खुजलै तs अपना आप कए असगर देखलक । कनेक काल प्रतिक्षा केलक मुदा राकेशक कोनो अता-पता नै छलै । काउन्टर पर सँ पता चललै जे राकेश तs तीन बजे भोरे चल गेल छलै ।

आब बुझु किरण पर बिपत्ती कए पहाड़ टुटि पड़लै । बिभिन्न तरहक बात मोन मे आबै ।माँ कए की कहब .आगु जीवन कोना काटब ,लोग की कहतै ।सोचैत-सोचैत मोन घोर भs गेलै । गाम दिश जायबाक लेल डेगे नै उठै । कतS जायब ,की करब । चलैत-फिरैत लहाश भs गेल छलै किरण । भीड़-भाड़ मे रहितो एकदम तन्हा ।मनक तुफान रूकबे नै करै । बेकार , जीवन बेकार भs गेलै ।सबटा सोचल सपना क्षण मे टुटि गेलै । सोचै ,माँ कए अफसर बनि कs के देखेते , भगबती कए गीत के गेतै ।

एतेक दिन दुर्गा माँ कए पुजा केलौ... तकर इनाम इ भेटल ।....सब झुठ छै ,... देवी-देवता सब बकबास छै ..... गरीबक साथ कोनो देवी-देवता नै दै छै ।...... सब कहै छै ,. प्रेम बड़ नीक शब्द छै ,..........प्रेम सँ पत्थर दिल मोम भs जाइ छै ,.....मुदा नै....... ,प्रेम तs जहर छै ,जहर ... जै सँ केवल मौत भेटै छै ,मौत कए सिवा किछु और नै ,मौत . . . मृत्यु . . . .मौत . . .जहर . . . । हम जानि-बुझी कs इ जहर पिलौँ ।........ हम अपवित्र छी , हम कुलक्षणी छी ......., हम धरती परक बोझ छी ......हमरा जीबाक कोनो अधिकार नै । हमरा सन के लेल ऐ दुनिया मे कोनो जगह नै । ............हम माँ-बाप कए इज्जत और निलाम नै करब ।......हम मरि जायब , ककरो किछु खबर नै हेतै । ......हम अप्पन बलिदान करब ।अनेको रास बात सँ माँथ लागै फाटि जेतै । ओ एक दिश दौड़ल ,किम्ह
 .से ओकरो नै पता , ओ कतS जा रहल छै ....., नै जानी । ....दोड़ैत-दौड़ैत भीड़ मे कत्तो चल गेलै । अप्पन अन्जान मंजील दिश ।

भोरे आखबारक मुख्य पृष्ट पर मोट-मोट अक्षर मे लिखल छल " सोलह-सतरह साल कए एकटा गोर-नार युवती रेलवे पटरी पर दू टुकड़ी मे भेटल ।नाम-गाम कए पता नै चलल अछि । पोस्टमार्टम कए लेल लाश भेज देल गेलै यै । अंतिम दाह-संस्कार पुलिसक निगरानी मे होयत . . . । ।

                                                                        { समाप्त }

ऐ कहानी कए घटना .पात्र .नाउ सब काल्पनीक अछि । कोनो सत्य घटना सँ प्रेरीत नै छी ।हम्मर उद्येश्य किनको ठेस पँहुचयबाक नै छल । हम ओ सब नवयुवक-नवयुवती ,जे प्रेमक सागर मे डुबकी लगेने छथि वा लगाबS चाहै छि , सँ कहS चाहब जे प्रेम खराब नै छै ,लेकिन प्रेम सोचि-समैझ कए करबाक चाही । बिना सब किछ जानने एकांत मे नै जायबाक चाही ।
पाठकगण , जौ कत्तौ कोनो गलती बुझाए त' हमरा कहब हम सुधारबाक कोशिश करबै । ऐ मे कत्तौ-कत्तौ आन भाषाक शब्दक प्रयोग भेल हेतै आ टाइपिंग मे गलती भ' सकै छै । तै लेल क्षमा चाहब । केहन लागल से जरूर बतायब । अहाँक

                                   
अमित मिश्र

प्रेमक अंत

हम अपन एकटा नव कथा कए एकटा छोट भाग अपने सबहक समक्ष डी रहल छी शेष जल्दीए देब| 

कथा - प्रेमक अंत 

आइ भोरे सँ आनंदक मोन कतौ अनत' अटकि गेल छलै । की करबाक चाही , की नै करबाक चाही ? गाम -घर मे की भ रहल छै ? एहि तरहक कोनो प्रश्नक जबाब पता नहि छलै । अपन सूधि-बूधि बिसरि गामक अबारा पशु जकाँ इम्हर-उम्हर भटकि रहल छल । पैघ केश-दाढ़ी , मैल-चिकाठि गंजी-पेँट मे अपना -आप सँ बतियाइत देख जँ केउ अनचिन्हार पागल बूझि ढेपा मारत त' कोनो आश्चर्यक बात नहि । आनंदक इ डेराउन रूप देख क' गामक लोक सब अपना मे बतियाइ छल जे परसू जखन दिल्ली सँ गाम आएल छल त' बड-बढ़ियाँ सब कए गोर लागि , काकी-कक्का , कहि क' नीक-नीक गप करै छलैए मुदा इ एके राति मे की भ' गेलै जानि नहि? लागै छै जे मगज कए कोनो नस दबा गेलै आ रक्तसंचार बंद भ' जाएबाक कारण मोन भटकि रहल छै । इहो भ' सकै यै जे बेसी पाइ कमा लेलकै तेए दिमाग खराप भ' गेलै वा भ' सकै छै जे पागल कए दौड़ा पड़ल होइ । आब एसगर कनियाँ काकी की सब करथिन , आब टोलबैये कए मिल क' राँची कए पागल वला अस्पताल मे भर्ती कराब' पड़तै , नै त' काल्हि जँ टोलक कोनो नेना कए पटकि देतै त' ओकर जबाबदेही के लेतै ? अनेक तरहक प्रश्न-उतर , सोच-बिचार के बाद टोलबैया सब निर्णय लेलक जे आइ साँझ धरि देखै छीये ,जँ ठीक नै हेतै त' साँझ मे सब गोटा मिल जउर सँ हाथ पएर बान्हि देबै आ काल्हि भोरका ट्रेन सँ राँची चलि जेबै । जे खर्च-बर्च लागतै से कनियाँ काकी देथिन ,जँ एन.एच लग बला एको कट्ठा घसि देथिन त' ओतबे मे आनंदक बेरा पार भ' जेतै ,आखीर जमीन बेचथिन किएक नहि ,बेटो त' एके टा छेन । कनियाँ काकी मतलब आनंदक माए सँ बीन पुछने टोलबैया ,सब हिसाब-किताब क' लेलक ।

गीत

तर्ज - चाँदी की दीवार ना तोड़ी
लड़का - समाज के अहाँ रीत नहिं तोडि़ के हमरा दिल के तोडि़ देलौं
बेर्ददी केहेन भेलौं हमरा सॅ नाता तोडि़ लेलौं
खएलौं जे सपथ हम दुनु जिनगी भरि संगहि रहब
सौंसे दुनिया छोडि़ देबय अहाँ बिना नहिं हम जियब
सौंसे दुनिया छोडि़ देबय अहाँ बिना नहिं हम जियब
आई सबटा बिसरि के सजनी देह सौ प्राण निकलि गेलौं
समाज के अहाँ रीत नहिं तोडि़ के हमरा दिल के तोडि़ देलौं
जखन अहाँ के डोली गाम क सीमा टपल
तखन हमरा लागल सजनी देह के ऊपर व्रज खसल
तखन हमरा लागल सजनी देह के ऊपर व्रज खसल
कोना अहाँ हमरा बिसरलौं कोना के मुँह मोडि़ लेलौं
समाज के अहाँ रीत नहिं तोडि़ के हमरा दिल के तोडि़ देलौं
लड़की - बिसरि जाउ हमरा यौ सजना एहि प्यार के एगो सपना बुझि
माफ क दियऽ यौ सजना अहाँ हमरा अपना बूझि
माफ क दियऽ यौ सजना अहाँ हमरा अपना बूझि
बड़ गलती भेल हमरा सौं एहेन हाल में एलौं
समाज के हम रीत नहिं तोडि़ के अहाँ दिल के तोडि़ देलौं
ल्ड़का - बिसरि जाउ कोना ये सजनी अहाँ सॅ जे प्रेम कएलौं
अहीं कहू हमरा सजनी कोना के अहाँ बिसरि गएलौं
अहीं कहू हमरा सजनी कोना के अहाँ बिसरि गएलौं
जीबय छी हम जीबते रहब याद अपन संग छोडि़ देलौं
समाज के अहाँ रीत नहिं तोडि़ के हमरा दिल के तोडि़ देलौं
समाज के हम रीत नहिं तोडि़ के अहाँ दिल के तोडि़ देलौं

प्रश्न

प्रेम कएल जाई य की भ जाई य ?
कएल जाई य त ओ कियै नहिं केलेथि ?
जौं भ जाई य त हुनका कियै नहिं भेलेनि ?
की हमर प्रेम सच छल की झूठ ?
जौं सच छल त हुनका कियैक नहिं मलाल भेल ?
जौं झूठ छल त हमर कियैक एहेन हाल भेल ?
डर छल जमाना क की हुनका प्रेम नहिं छल ?
जमाना सॅ डर छल ई उचित नहिं ?
निश्छल प्रेम के ठुकरा देलेथि अनुचित नहिं ?
दोख किनका दई छी एको बेर नहिं सोचलहुँ ?
दिल म रहि के दिल के नहिं बुझलहुँ ?
हमरा लागेति अछि आशिक अहाँ पागल छी
एना जुनि कहू मीत सौं बिछुड़ल अभागल छी

गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

बाल-गजल

प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक बाल- गजल--

रुसिये गेल बौआ मनाएब कोना कए
निर्धन माय बौआ बुझाएब कोना कए

ठाढ भेल कटोरी भरि माँगय छै दूध
चिक्कस के झोर ले बजाएब कोना कए

एहन किए निर्धन बनाओल विधाता
दूधो नहि जूडय जुड़ायब कोना कए

देलक जे जन्म पुराओत सैह विधाता
लाज हुए अनका बताएब कोना कए

मानि जाउ बाबू अहाँ छी बड्ड बुधियार
छूछ माय जिद्द के पुराएब कोना कए

(वर्ण १५)

रुबी झा

बाल-गजल

प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक बाल-गजल--

चलय ठुमकि बौआ कते सोहावन लागय छै
बाजय बौआ तोतल माँ मनभावन लागय छै

दादी केर आँचर तर जाए नुकाय गेल बौआ
खेलै चोरीया नुकैया मोन भुलावन लागय छै

दादी केर पनबसन सँ बौआ खाय लेल पान
ठोर लाल पिक दाढी पर लुभावन लागय छै

उल्टे खराम बाबा केर एना पहिर लेल बौआ
खसय खन उठय जिया जुरावन लागय छै

जिद्द ठानलैन बौआ लेब देवी आगुक मिसरी
डटलैन माँ फुसीये नोर बहावन लागय छै

--वर्ण १८--

--रुबी झा

बुधवार, 11 अप्रैल 2012

गजल

प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक गजल

कहल जनम के संग अछि अपन दिन चारियो जौँ संग रहितौ त' बुझितौं
जनै छलौँ अहाँ नहि चलब उमर भरि बाँहि ध कनियो चलितौँ बुझितौं

जिनगी के रौद मे छौड़ि गेलौँ असगर संग मे जौ अहुँ जड़ितहु त' बुझितौं
पीलौँ त' अमृत एकहि संगे माहुरो जँ एकबेर संगे पिबितहु त' बुझितौं

देखल अहाँ चकमक इजोरिया रैन करिया जौँ अहूँ कटितहु त' बुझितौं
सूतल फुल सजाओल सेज कहियो कांटक पथ पर चलितहु त' बुझितौं

भटकैत छी अहाँ लेल सगरो वेकल कतौ जौँ भेटियौ अहाँ जेतौँ त' बुझितौं
गरजैत छि नित बनि घटा करिया बरखा बुनी बनि बरसितौ त बुझितौं

हँसलौँ संगे खिलखिला दुहु आँखि नोरहु जँ संगहि बहबितहु त' बुझितौं
प्रेमक मोल अहाँ बुझलहु नहि कहियो "रूबी" के बात जँ मानितौँ त' बुझितौं

(वर्ण २९)

रूबी झा

रूबी झाजिक गजल

प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक गजल ---

बात जँ मोनक एकै दिन मेँ बता दैतौ तँ नीक छल
सताबै छी पल मे एकै बेर सतालैतौ तँ नीक छल

तीर अहाँक आँखि के गरैत रहय अछि सदिखन
एकै बेर मेँ बाण जँ करेज धसा दैतौ तँ नीक छल

हमर मोन उबडुबा रहल अछि अथाह सागर मेँ
अहाँ चितवन के सागर मेँ डुबा लैतौ तँ नीक छल

अहाँ त नित स्वप्न मेँ आबि- आबि सतबय छी हमरा
अपनो सपना मेँ कहियो जँ बजा लैतौ तँ नीक छल

परोछ मे सदिखन देखबय छी अद्भुत प्रेमलीला
प्रत्यक्ष मेँ आबि जँ करेजा सँ सटालैतौ तँ नीक छल

रुबी अहाँक कते कहती तोरि तोरि गाथा विरह के
दरस देब अहाँ कहिया जँ बता दैतौ तँ नीक छल

( वर्ण २०) रुबी झा

बाल-गजल

मएगै हमर फुकना की भेल
दाई हमर झुनझुना की भेल

बाबा कें कहबैन सब हरेलौं
सबटा हमर खिलौना की भेल

दूध-भात आब हम नहि खेबौ
पेटमुका हमर सन्ना की भेल

हम जे बुललौं बाबा-बाबी संगे
रातिक हमर सपना की भेल

चंदामामा कईल्ह जे अनलैंह
हमर निकहा चुसना की भेल
(वर्ण-१२)
जगदानन्द झा "मनु'

आठलाखक कार



कलुआही जयनगर राजमार्ग, बरखाक समय, पिचक काते-कात खधिया सभमे पानि भड़ल | दीनानाथजी आ हुनक जिगरी दोस्त रामखेलाबनजी, दुनू गोटा अपन-अपन साईकिलपर उज्जर चमचमाईत धोती-कूर्ता पहिर, पान खाइत, मौसमकेँ आनन्द लैत बतियाइत चलि  जाइत रहथि | कि पाछुसँ एकटा नव चमचमाईत बड्डका एसी बुलेरो कार दीनानाथजीकेँ  उज्जर धोती-कूर्तापर थाल-पानि उड़बैत दनदनाईत आगू निकैल गेलन्हि |
दुनू दोस्तक साईकिल एका-एक रुकल | रामखेलाबनजी हल्ला करैत कारबलाकेँ  गरिएनाइ शुरू केलन्हि |
दीनानाथजी,  "रहए दियौ दोस्त किएक अपन मुँह खराप करै छी, एसी कारमे बंद ओ  कि सुनत, भागि गेल | ओनाहो ओ आठ लाखक कारपर चलैत अछि, हम आठ सएकेँ  साईकिलपर छी तँ  पानि- थालक छीत्ता तँ हमरे परत |"

मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट


रिमझिम सावन बरसलै मोर अंगना

देखू सखी अंगना चलीएलै मोर सजना


अंगना में नाचाब हम खनका के कंगना
जन्म जन्मक पियास मेटलै मोर सजना


देखलौ मधुमास हम मनोरम सपना
अहाँ विनु करेज धरकलै मोर सजना


बैशाख जेठक अग्न सँ जरल छल मोन
अंग अंग में जलन उठलै मोर सजना


अहाँक छुवन सँ दिल में उठल जलन
मिलन लेल दिल तरसलै मोर सजना
वर्ण:-१६
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट