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मंगलवार, 10 जनवरी 2012

प्रेम गीत ~~~~~~

हे यौ प्रियतम आँचर छोइर दीय भेल प्रात आँगन हम जाइब कोना ,
हेयै सुंदरी आँचर छोरब कोना ,अहाँ जाइब आँगन हम रहब कोना ,

अछि लाजक बात बतएब कोना ,हम माई क़ सन्मुख जाइब कोना ,
हे यौ प्रियतम आँचर छोइर दीय भेल प्रात आँगन हम जाइब कोना .

‎''प्रियतम सरस''

हे यौ प्रियतम सरस अहाँ आएब कहिया ,
हमर मोनक आशा पूराएब कहिया ,

नीक लागए नै आब माँ बाबु के दुलार ,
अहाँ अपन प्रेमक ज्योति जरायेब कहिया ,
हे यो प्रियतम सरस ........................!

बड़देखलो बम्बई आ दिल्ली शहर ,
मधुबनी दैरभंगा घुमाएब कहिया ,
हे प्रियतम सरस ..........................!

नीक लागए नै दायेल भात आ माँछ मांगुर ,
अहाँ गरम जिलेबी खूअयेब कहिया ,
हे यो प्रियतम सरस ........................!

बनी बैसल छि ओतेय कूमुन्दनी के फूल ,
मोनक ऊपवन में बेली फूलायेब कहिया ,
हे यो प्रियतम सरस .........................!

बनी बैसल छि कहिया साँ नवकी दुलिहीन,
अहाँ नैहर साँ हमरा लो जाएब कहिया ,
हे यो प्रियतम सरस .........................!

स्वप्न देखि अहाँ छि जेना दुतिया केर चान,
अहाँ पूनम के चान बैन आएब कहिया,
हे यो प्रियतम ..............................!

बिसरल नै होइत अछि अहांक मुस्कुराबित छवि ,
अहाँ अपना संगे हमरो हंसायेब कहिया ,
हे यो प्रियतम ..............................!

निक लागए नै अहाँ बिनु कोनो श्रिंगार,
हाथ अपने अहाँ सिन्नुर लगाएब कहिया ,
हे यो प्रियतम ..............................!

अनेरो खनयेक अछि चुरी कंगन ,
हमर हाथ केर कंगन खनकएब कहिया ,
हे यो प्रियतम ..............................!

देखू प्यासे त गेल हमर अधरों सुखाई,
अपन अधर साँ अमृत पियाएब कहिया ,
हे यो प्रियतम सरस ...........................!

पत्र लिखैत-लिखैत हमर हाथो पिरायेल ,
हमर दर्दक दाम अहाँ चुकाएब कहिया ,
हे यो प्रियतम सरस अहाँ आएब कहिया !!

स्वस्नेह [रूबी झा ]

‎'' बचपन ''

कतेक नीक छल वो ,
हंसनाई वो खेल वो मुस्कान ,

रहेत छलहूँ एही जग सां दूर,
सबटा गम सां अनजान,

नै त कोनो दुःख छल नै छल कोनो सपना ,
भावुक नै होएत छलो के अछि आन के अपना ,

खेला में होइत छले कखनो हार,
कखनो त होइत छलय जीत ,

कखनो होइत छले झगरा झांटी,
कखनो गबेत छलो हम गीत ,

थोरबा छल लड़ाई थोरबा छल रंग ,
कतेक सुहावन छले सखी सहेली केर संग ,

वो गुड्डा गुड्रिया के कतेक नीक छल खेल ,
वो आम गाछी के अपन संगी सभ सां मेल ,

तखन कतेक करेत छलो माँ बाबु जी क हरान,
कतेक नीक छल हंसनाई आ वो मुस्कान ,
सदीखन रहेत छलो सभ गम सां अनजान .

[रूबी झा ]

पर्वत एहन दर्द ~~~~~~~~~~

कोलाहल अछि सागर एहेन ,
लहर एहेन अछि भरल द्वन्द ,

पर्वत एहन दर्द भरल अछि ,
आ ढेपा एहन अछि आनंद ,

जिनगी क इ रस देखु त ,
कतेक लगेत नुनगर अछि ,

जीत जाई अछि दुःख दर्द सभ,
एसकर सुखे टा हारल अछि ,

फूल सरीखा मांछाक ऊपर ,
बिछायल अछि काटंक फंद,

पर्वत एहन दर्द भरल अछि ,
आ ढेपा एहन अछि आनंद ,

जतबे ताकि हम शीतलता ,
ओतबे लहरल आइग भेटाए,

प्यास त चुप चाप भेल अछि ,
मौनक् मदिरा हम पिलहूँ,

संपन्न भा गेल सबटा गीत ,
शेष बांचल अछि व्यथा केर छंद ,

पर्वत एहन दुःख भरल अछि ,
आ ढेपा एहेन अछि आनंद ,

स्वस्नेह [रूबी झा ]

गीत

चाँद के इ अनुप रूप देखते-2
नैन झुकायल नै जाए .मन रोकल नै जाए
दाग चन्ना(MOON)मे होई छै तैयो .
हमर चाँन त' सच मे बेदाग छै
चमकैत लाल गाल देखते-2 नैन झुकायल नै जाए . . . .

बोली सरगम सुनाबै यै सदिखन .
केश कारी सँ' झहरैत फुहार छै
मद-मस्त भरल यौवन देखते-2
नैन झुकायल नै जाए . . . . .
कोन ठाम सँ' आयल इ परी
आई लुट' लेल दिल के खजाना
"अमित" बहकल इ तिरछी नजैर सँ'
मन रोकल नै जाए नैन झुकायल नै जाए

भविष्यवाणी

पंडितक भविष्यवाणी सुनने हेबै .
सुनने हेबै वैग्यानिकक .
आइ सुनू कवि के भविष्यवाणी .
गणना क' जे लिखलक .
जौँ एहिना फुलायत महगाई .
त' बाजारक की हेतै भाव ,
पचास पैसा मे चिन्नी के 100 दाना .
10 मे भेटत एकटा चाउर ,
गहुमक हाल एहिना रहत .
दाम लागत जौँ किनब छाउड़ .
पाँच बूँद दुध एक टका मे भेटत ,
घी .म'ध डेढ़ मे मात्र सूंघब ,
पेट्रोल सबके क' देत तवाह .
की लिखत "अमित" की आगु बाजत ,
कवितो भ' जेतै बड्ड मंहगा । ।


अमित मिश्र

कविता-जमाना बदल गेलै यै

बुचनू काका कहै छैथ .
जे भिखमंगा के देख
समझ अबै यै
ओकरा देह पर कपड़ा कम किएक छै ।
कारण ओ गरीब छै
नै किन सकै छै .
मुदा ई समझ नै आबै यै .
अमिरक देह पर कपड़ा कम किएक छै .
कारण पाइ के कमी त' नै भ' सकै यै .
आइ देखलौं त' लागै यै .
जे वर्षोँ सँ' अन्हार कोन मे बैसल छलौँ .
आइ बहरेलौँ त' देखै छी
जमाना बदली(Change) गेलै यै


{अमित मिश्र }

कविता -नव वर्षक पहिल दिन

नव वर्षक पहिल दिन .
देखल जाऊ किछु नवका सीन .
राग-द्वेष के नामोँ नइ अछि .
कहबा लेल आइ केऊ नइ भिन्न .

सबके अपन-अपन अभिलाषा .
केऊ करती आइ छैक क' नशा .
प्रेमि युगल झुमि रहल छै .
इंग्लीस धुन के खुब बजा .
किछु निर्लज्ज एहनो लए आनन्द .
अर्द्धनंग नारी के नचा .
किछु टका उड़ब' मे तल्लीन .
नव वर्षक पहिल दिन . . . . .

साल भैर जे हाल नइ पुछलक .
से कहए hello how are you ?
ई छौड़ी के कमाल कने देखू .
सब मुर्गा सँ बतियाबे नहू-नहू .
अमृत दुध आइ विष बनल .
माछी मारैत दुधवाला बैसल .
किछु समझ नइ आबि रहल .
बिकै मदिरा मांस आ मिन .

नव वर्षक पहिल दिन देखल जाऊ किछु नवका सीन .

कहल गेलै यै जे पहिल दिन खेबै .
से भेटत सालों भैर .
जौं हेतै हलाल पहिल दिन खस्सी .
सालों भैर मरब लैड़-लैड़ .
हेतै पहिल दिन उघार नारी के इज्जत .
त' बहिनक इज्जत सँ के हटायत नजैर .
सोचु किछ अहाँ सब प्रियजन .
ई सब हेतै की नीक हेतै .
मदिरा मांस नीक नइ .
नारी के नचायब नीक नइ .
अहिंसा इज्जत सँ करू .
स्वागत नव वर्ष के .
तोड़ू "अमित" कुंभकरणक नीन्न .
नव वर्षक पहिल दिन देखल जाऊ किछु नवका सीन . , . . . .
राग-द्वेष के नामो नइ अछि . . . .

{अमित मिश्र }

नहि हम कोनो शायर छी

नहि हम कोनो शायर छी .
नहि हमर कोनो शायरी .
अपन जीन्दगी आइना मिता .
अपन छै एगो डायरी
हम जतए कतौ जाइ छी
देखै छी बस तोरा .
तु ही बनल छहीँ हमर गजल
शायर सब कहै हमरा .
हमर लिखाबट तु ही
छेँ
तोरे छौ शायरी . . . .
अपन जीन्दगी आइना मिता अपन छै एगो डायरी ...

दिल के चलते मजबुर छी
जे किछु कहलक लिख देलौँ .
तोहर झिल सन आँखि मे
जे किछु देखलौँ लिख देलौँ .
तु ही छहीँ जन्नत हमर
तोरे छौ इ जीन्दगी . . .

अपन जीनगी आइना मिता अपन छै एगो डायरी . .
नहि हम कोनो शायर छी नहि हमर कोनो शायरी । ।

{ अमित मिश्र}

नोरायल नैना



याद अहाँ के सहब कोना ,
किछु नै फुराई ये रहब कोना ,
जखन धरी रहए छै बोतल के नशा ,
तखन धरी रहए छै मदिरायल नैना ,
नशा टुटल याद आबै छी ,
भय जाइ छै नोरायल नैना . . . ।


{ अमित मिश्र }

बुढ़ी काकी

ई अन्हार कोठरी मे रहै छथि बुढ़ी काकी .
एकदम शांत जेना पत्थर के मुरत .
धिरे-धिरे चरखा पर आंगुर चलाबैत बुढ़ी काकी .
हवेली जे बगल मे खड़ा छै .
ओकर महरानी छलथिन बुढ़ी काकी .
सजै छल फुलक सेज .
लागै छलै मजदुरक भीड़ ,
सहारा दैत छली सबके बुढ़ी काकी ,
पर हाय; राम के ई सब नइ मंजुर छलै ,
नइ त' ठाकुर साहेब मरितैथ {मरते} किएक ,
लक्ष्मी विधवा हेतैथ किएक ,
आब एलै जुआनक राज ,
नवका जमाना के पुतौह के नीक नइ लागलै बुढ़ी काकी ,
आखीर मातृत्व हारल आ कलयुग जीतल ,
घर सँ निकालि देल गेलए बुढ़ी काकी .
जीवन भैर सहारा दै वाली खुद बेसहारा भ' गेलै .
हुनक ई हालत के जिम्मेदार के छै .
ह'म अहाँ वा खुद बुढ़ी काकी . . . . . . . . .

अमित मिश्र

ठूँठ गाछ


हम ठूँठ गाछ छी .
नहि द' सकए छाहड़ी छी .
आ नहि कोनो मिठगर आम ,
किएक त हम ठूँठ गाछ छी .
नहि बैन सकए छी कोयलक आशियाना ,
नहि क' सकए छी वर्षा के स्वागत ,
नहि खेलत डोल-पाती नेना ,
किएकी हम ठूँठ गाछ छी ,
माली चाहए कखन उखाड़ी दी ,
महिसक ढाही सँ तवाह छी ,
कोनो पुछ नहि आब उपवन मे ,
किएकी हम ठूँठ गाछ छी ,
{ भाग-2}
एकटा एहने ठूँठ रहै छै अपनो समाज मे ,
गरीब पड़ल अछि जेकर नाम ,
अमिरक मइर गाइर खा ओ ,
बिता देलक जीनगी तमाम ,
लिखल भेटत हमर देश गरीब अछि ,
त' की तिरंगा फाइर देबै .
वा खोजि अनंत सँ भारत माँ के .
गरीब कैह माइर देबै ,
नहि ने ,
हम मनुख छी हम एक छी ,
जुनी करू कियो कनको भेद भाव .
ह'म "अमित" अपने गरीब छी ,
मुदा राखब सब संग लगाव ,
तखने फुलायत ठूँठ गाछ . . . । ।

रविवार, 8 जनवरी 2012

गजल


जखन-जखन सोचब हमरा
अपने में अहाँ पायब हमरा

हमर शव्द गीत  बनि कान में
कचोटे त ' अहाँ सोचब हमरा

हम दूर छी त ' कोनो बात नहि
मोन में अपन पायब हमरा

दू काया एक प्राण छी हम दुनू
भे
ब त ' अहाँ बुझब हमरा


अहाँ कहलौं जे हम अहाँक  छी
मरला बादो निभायब हमरा 

(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-१२)
जगदानन्द झा 'मनु' : गजल संख्या -६ 

कविता-सियासत एक मंडी


//१//

जिवन कए अंतिम साँझ पर, कहैत अछि आब काज करब
लूट मचाबैत छल जए काईल्ह तक ,कहैत अछि आब दान करब |
वोट जुटाबै कए लोभ में, इ कि की कs सकैत अछि
दलितक मोन कए बहलाबै लेल ,कहैत अछि उत्थान करब |

//२//

कखनो ओकर कखनो एकर इ संग पकैर लैत अछि
हवा किम्हर बहैत अछि ओ इ जैन लेत अछि
जकरा काईल्ह तक ओ हिकारत के नजैर सँ देखैत छल
सब किछु बिसरा कs तकरा , इ अपन मैन लैत अछि

//३//

सियासत एक मंडी अछि ,अतए इमान बिकाईत अछि
एक मनुख नहि बाँकी, सब सैतान भरल अछि
अतए ओहे सिंकन्दर अछि, जकरा में लाज होबै नहि बाकि
नहि दरिद्र हुए जे धन सँ , भले नजैर सँ खसैत अछि

कविताक रचना कार-निशांत झा


कविता -लाचारी

नै जानि किएक हमर डेग
ओय माँ के देख कs रुइक गेल
ओतय तs ओकर नन्किरवा
भूख सँ कनैत जा रहल छल
नन्किरवा कए भूख कए अनुभव कय कs
माय कए नोर सेहो लाल रंग
पकैर लेने छल
ओकर अध्खुजल छाती में
दूध सुखा गेल छल
ओतय किछु हवसी सैतान
माँ के गुम्हैर रहल छल
ओ ओए माँ में
औरत के खोइज रहल छल
अपन आँखि सँ जेना
निमंत्रण दय रहल छल
ओए लाचारी कए
मजबूर माँ दुबिधा कए
सागर में डूबैत
बच्चा कए भूखक वास्ते
कोनो काज करै कए
लेल तैयार छल
समाज कए एहेन व्यथा
कए देख कs हमरा घिरना
भय गेल अपने सँ
हमरा लागल जेना
इ समाज हमरे तs नाम अछि.