अहाँक चौवनीया मुस्की केलक घायल
मोन हरौलक अहाँक छमछमायत पायल
केलक एहेन जादु अहाँक नैना के तीर यै
देखलौव बहुत मुद कियो दोसर नै भायल
कतय चुरौलौ अहाँ हमर मोन यै
कने कहु कतय अछि हमर मोन हरायल
आँखि सँ चुरा क नुकौलौ करेजा मे
फसल एना ककरो घिचनौ ने बहरायल
बुधवार, 28 दिसंबर 2011
• 'गजल'
लेबल:
गजल,
रवि मिश्रा’भारद्वाज’
नवकी बहुरीया
शहर सँ एलि नवकी बहुरीया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
पहिरने जिंस ताहि पर टँप्स गजवे
घुमे सौसे चौक चौबटिया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
जेहने ढीठ तेहने निर्लज
टुकुर टुकुर देख हाँसे बुढिया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
के जान आर के अन्जान
लागे जेना सब हुनक संगतुरीया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
कतेक करब गुनगान हुनक
मुँह मे राखैत हैदखन पुरीया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
बुढ सास सँ काज कराबैथ
ठोकने रहैत दिनो के केवरिया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
पहिरने जिंस ताहि पर टँप्स गजवे
घुमे सौसे चौक चौबटिया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
जेहने ढीठ तेहने निर्लज
टुकुर टुकुर देख हाँसे बुढिया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
के जान आर के अन्जान
लागे जेना सब हुनक संगतुरीया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
कतेक करब गुनगान हुनक
मुँह मे राखैत हैदखन पुरीया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
बुढ सास सँ काज कराबैथ
ठोकने रहैत दिनो के केवरिया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
लेबल:
कविता,
रवि मिश्रा’भारद्वाज’
• 'गजल'
जिनगी की कहु एहेन अंजान बाट मे चलल जा रहल अछि
भोर ठीक सों भेल नहि मुदा सांझ ढलल जा रहल अछि
मोजर त खूब लागल छल गाछ मे
टुकला ठीक सों भेल नही मुदा मोजर झरल जा रहल अछि
कियो अन्न बिन तरपै अछि त कियो पानी बिन
ककरो पानी भेटल नई मुदा ककरो गिलास मे मदिरा भरल जा रहल अछि
ककरो चूल्हा अन्न बिन बुझायल अछि
महगा बेचे के चक्कर मे ककरो कोठी मे अन्न सरल जा रहल अछि
बाहारक लगाल आगी देखी सब कियो बुझायात
के बुझायेत मोनक आगी जे बिन धधरे जरल जा रहल अछि
कियो मरि के जिब रहल अछि
कियो जी के जेना मरल जा रहल अछि
भोर ठीक सों भेल नहि मुदा सांझ ढलल जा रहल अछि
मोजर त खूब लागल छल गाछ मे
टुकला ठीक सों भेल नही मुदा मोजर झरल जा रहल अछि
कियो अन्न बिन तरपै अछि त कियो पानी बिन
ककरो पानी भेटल नई मुदा ककरो गिलास मे मदिरा भरल जा रहल अछि
ककरो चूल्हा अन्न बिन बुझायल अछि
महगा बेचे के चक्कर मे ककरो कोठी मे अन्न सरल जा रहल अछि
बाहारक लगाल आगी देखी सब कियो बुझायात
के बुझायेत मोनक आगी जे बिन धधरे जरल जा रहल अछि
कियो मरि के जिब रहल अछि
कियो जी के जेना मरल जा रहल अछि
लेबल:
गजल,
रवि मिश्रा’भारद्वाज’
'कलेश"
करेजा मे घूसल एहेन कलेश
पल मे बदैल गेल सुन्दर रुप आ भेश
एहेन बज्र खसौलक विधाता
तौर देलक जिनगी केर डोर
ईजोतो मे सिर्फ अन्हार अछि
संतोष धरब ककरा पर
रोकने नै रुकै या आखिक नोर
हे सखी पहिने आबि
रांगल जिनगी केर रांगै छलौ
करम हमर फूटल
अपन सँ संग छूटल
अहुँ किया फेरै छी मुँह
कनेक खूशी देबय मे किया लागै या अबुह
जी के जेना रोज मरै छी
ककरा देखायब ई नोर
रोज आँचर मे धरै छी
ई नोर नै निकलैत अछी सिर्फ,
अपन दुखमयी जिनगी आ दशा पर
बल्कि किछू लोकक अवहेलना आ कुदशा पर
शूभ काज सँ राखल जाय या हमरा दुर
किछू लोकक मोन अछि कतेक क्रुर
हे सखी हमहु अही जेना नारी छी
मुदा भेद अछी सिर्फ एतवा
लोक कहैत अछी हमरा विधवा
पल मे बदैल गेल सुन्दर रुप आ भेश
एहेन बज्र खसौलक विधाता
तौर देलक जिनगी केर डोर
ईजोतो मे सिर्फ अन्हार अछि
संतोष धरब ककरा पर
रोकने नै रुकै या आखिक नोर
हे सखी पहिने आबि
रांगल जिनगी केर रांगै छलौ
करम हमर फूटल
अपन सँ संग छूटल
अहुँ किया फेरै छी मुँह
कनेक खूशी देबय मे किया लागै या अबुह
जी के जेना रोज मरै छी
ककरा देखायब ई नोर
रोज आँचर मे धरै छी
ई नोर नै निकलैत अछी सिर्फ,
अपन दुखमयी जिनगी आ दशा पर
बल्कि किछू लोकक अवहेलना आ कुदशा पर
शूभ काज सँ राखल जाय या हमरा दुर
किछू लोकक मोन अछि कतेक क्रुर
हे सखी हमहु अही जेना नारी छी
मुदा भेद अछी सिर्फ एतवा
लोक कहैत अछी हमरा विधवा
लेबल:
कविता,
रवि मिश्रा’भारद्वाज’
'गजल'
जिनगी किया एना तंग लागै या
रांगल त छि मुदा बेरंग लागै या
बचपन बितेलौ रेत, मे जवानी खेत मे
कोना कततै बुढापा ऐकता जंग लागै या
जे दोस्त बनि दूस्मन भेल छल दूर
बेचारा भेल लाचार आब त ऒहो संग लागै या
मोजर नहि केलौ जकरा कहीयो
भैल शक्ति क्षिन्न आब ऒहो दबंग लागै या
रांगल त छि मुदा बेरंग लागै या
बचपन बितेलौ रेत, मे जवानी खेत मे
कोना कततै बुढापा ऐकता जंग लागै या
जे दोस्त बनि दूस्मन भेल छल दूर
बेचारा भेल लाचार आब त ऒहो संग लागै या
मोजर नहि केलौ जकरा कहीयो
भैल शक्ति क्षिन्न आब ऒहो दबंग लागै या
लेबल:
गजल,
रवि मिश्रा’भारद्वाज’
मंगलवार, 27 दिसंबर 2011
गीत-3
(आलू कोबी मिरचाई यै,
की लेबै यै दाय यै / दाय यै )-२
कोयलखकेँ आलू, राँचीकेँ मिरचाई यै
बाबा करता बड्ड, बड़ाई यै / बड़ाई यै
आलू कोबी - - - - - - -दाय यै
नहि लेब तँ कनी देखियो लियौ
देखएकेँ नहि कोनो पाई यै / पाई यै
आलू कोबी - - - - - - - - दाय यै
दरभंगासँ अन्लौंह विलेतिया ई कोबी
खाए कs तs कनियाँ बिसरती जिलेबी
कोयलखकेँ आलू ई चालू बनेतै
धिया-पुताकेँ बड्ड ई सुहेतै
राँचीसँ अन्लौंह मिरचाई यै
की लेबै यै दाय यै / दाय यै
( आलू कोबी मिरचाई यै,
की लेबै यै दाय यै / दाय यै )-२
***
की लेबै यै दाय यै / दाय यै )-२
कोयलखकेँ आलू, राँचीकेँ मिरचाई यै
बाबा करता बड्ड, बड़ाई यै / बड़ाई यै
आलू कोबी - - - - - - -दाय यै
नहि लेब तँ कनी देखियो लियौ
देखएकेँ नहि कोनो पाई यै / पाई यै
आलू कोबी - - - - - - - - दाय यै
दरभंगासँ अन्लौंह विलेतिया ई कोबी
खाए कs तs कनियाँ बिसरती जिलेबी
कोयलखकेँ आलू ई चालू बनेतै
धिया-पुताकेँ बड्ड ई सुहेतै
राँचीसँ अन्लौंह मिरचाई यै
की लेबै यै दाय यै / दाय यै
( आलू कोबी मिरचाई यै,
की लेबै यै दाय यै / दाय यै )-२
***
लेबल:
गीत,
जगदानन्द झा 'मनु'
रविवार, 25 दिसंबर 2011
गजल
ज्ञानी नहि हम किछु जानी नहि
अल्प वुद्धि किछु पहचानी नहि
हम छी मैथिल मिथिला हमर
मिथिला छोरि क ' किछु मानी नहि
इतिहास भूगोल सँ अनभिक
राजनीती किछु पहचानी नहि
कविता-गजल कए ज्ञान नहि
गद्य-पद्य विधा हम जानी नहि
मोनक भाब राखि कागज पर
लेखन कलाकेँ हम ज्ञानी नहि
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१२)
जगदानन्द झा 'मनु' : गजल संख्या-४
अल्प वुद्धि किछु पहचानी नहि
हम छी मैथिल मिथिला हमर
मिथिला छोरि क ' किछु मानी नहि
इतिहास भूगोल सँ अनभिक
राजनीती किछु पहचानी नहि
कविता-गजल कए ज्ञान नहि
गद्य-पद्य विधा हम जानी नहि
मोनक भाब राखि कागज पर
लेखन कलाकेँ हम ज्ञानी नहि
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१२)
जगदानन्द झा 'मनु' : गजल संख्या-४
लेबल:
गजल,
जगदानन्द झा 'मनु'
गुरुवार, 22 दिसंबर 2011
गजल (३) जगदानन्द झा 'मनु'
पहड राईत बीत गेल निन्द नहि आबैए हमरा
रैह-रैह कs अहाँक सुन्नर याद सताबैए हमरा
सुन्नर-मोहनी छवि अहाँक,आँखि में जए बसोने छी
सिनेहिया सलोनी हमर,बड्ड तरसाबैए हमरा
घरी-घरी बजाबै छी,अहाँ अपन चंचल इशारा सँ
मुइन लिय कोना कs आँखि अपन,काचोतैए हमरा
जुनि खसाबू एतेक अहाँ,अपन दाँतक बिजुडिया
एतेक इजोरिया अहाँक ,आब तरपाबैए हमरा
मधुर मिलन होएत अपन,कखन कोन बिधि सँ
ओही के विचारे सँ,करेजा हमर जुराबैए हमरा
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-२०)
रैह-रैह कs अहाँक सुन्नर याद सताबैए हमरा
सुन्नर-मोहनी छवि अहाँक,आँखि में जए बसोने छी
सिनेहिया सलोनी हमर,बड्ड तरसाबैए हमरा
घरी-घरी बजाबै छी,अहाँ अपन चंचल इशारा सँ
मुइन लिय कोना कs आँखि अपन,काचोतैए हमरा
जुनि खसाबू एतेक अहाँ,अपन दाँतक बिजुडिया
एतेक इजोरिया अहाँक ,आब तरपाबैए हमरा
मधुर मिलन होएत अपन,कखन कोन बिधि सँ
ओही के विचारे सँ,करेजा हमर जुराबैए हमरा
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-२०)
लेबल:
गजल,
जगदानन्द झा 'मनु'
रविवार, 18 दिसंबर 2011
गीत-2
लगबियौन-लगबियौन हिनकर बोली ई, दूल्हा आजुकेँ
हिनकर बड्ड मोल छैन, ई तँ दूल्हा आजुकेँ
हिनकर बाबू बिकेलखिन लाखे, बाबा कए हजारी
लगबियौन मिल जुइल कs बोली ई दूल्हा आजुकेँ
हिनकर गुण छैन बरभारी, ई रखै छथि दूटा बखारी
दरबज्जा पर जोड़ा बडद,रंग जकर छैन कारी
भैर दिन ई पाउज पान करैत छथि, जेना करे पारी
भोरे उठि ई लोटा लs कs पीबए जाए छथि तारी
साँझु-पहर चौक पर जेता, चाहीयनि हिनका सबारी
ई छथि माएक बड्ड -दुलरुआ,हिनका दियौंह एकटा गाड़ी
हिनकर गुण छैन बरभारी ई पिबई छथि खाली तारी
हिनका पहिरs आबै छैन नहि धोती, दियौन जोर भैर सारी
लगबियौन-लगबियौन हिनकर बोली ई,दूल्हा आजुकेँ
हिनकर बर मोल छैन, ई तँ दूल्हा आजुकेँ
***
हिनकर बड्ड मोल छैन, ई तँ दूल्हा आजुकेँ
हिनकर बाबू बिकेलखिन लाखे, बाबा कए हजारी
लगबियौन मिल जुइल कs बोली ई दूल्हा आजुकेँ
हिनकर गुण छैन बरभारी, ई रखै छथि दूटा बखारी
दरबज्जा पर जोड़ा बडद,रंग जकर छैन कारी
भैर दिन ई पाउज पान करैत छथि, जेना करे पारी
भोरे उठि ई लोटा लs कs पीबए जाए छथि तारी
साँझु-पहर चौक पर जेता, चाहीयनि हिनका सबारी
ई छथि माएक बड्ड -दुलरुआ,हिनका दियौंह एकटा गाड़ी
हिनकर गुण छैन बरभारी ई पिबई छथि खाली तारी
हिनका पहिरs आबै छैन नहि धोती, दियौन जोर भैर सारी
लगबियौन-लगबियौन हिनकर बोली ई,दूल्हा आजुकेँ
हिनकर बर मोल छैन, ई तँ दूल्हा आजुकेँ
***
लेबल:
गीत,
जगदानन्द झा 'मनु'
शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011
गजल @ जगदानन्द झा 'मनु'
भाइ आब हमहूँ लिखब अपन फूटल कपारपर
जेना ई
भात-दालि तीमन ओकर उपर अचारपर
सोन सनक घर-आँगन स्वर्ग सन हमर परिवार
छोड़ि एलहुँ देश अपन दू-चारि टकाक बेपारपर
कनिको आटा नहि एगो जाँता नहि करछु कराही
नहि
नून-मिरचाइ आनि लेलहुँ सभटा पैंच-उधारपर
चिन्हलक नै केओ नै जानलक तूअर बनि
रहलहुँ
गेलहुँ ई अपन माटि-पानि छोड़ि दोसरक
द्वारपर
हम कमेलौं घर ओ भरलक हमर खोपड़ी खालिए
आब बैसल ’मनु’ कनैए बरखामे
चुबैत चारपर
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-२१)
@ जगदानन्द झा ‘मनु’
लेबल:
गजल,
जगदानन्द झा 'मनु'
बुधवार, 7 दिसंबर 2011
कविता- हम मौन किएक छी ?
हम मौन किएक छी?
हम चुप किएक छी?
निष्ठुर हमर समाज बनल अछि
निराकार सरकार
निर्लज सोनित आताताई
निर्भीक गुंडा राज
हम मौन किएक छी?
हम चुप किएक छी?
परवाशी बैन हम रहब कतेक दिन
दूर - परायब कतेक दिन
हमर समाज हमहि सुधारव
हमर सरकार हमहि बनायब
आताताई गुंडा के आब हमहि सतायब
हम मौन किएक छी?
हम चुप किएक छी?
*** जगदानंद झा 'मनु'
---------------------------
("विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका,१ नवम्बर २०११,में प्रकाशित)
हम चुप किएक छी?
निष्ठुर हमर समाज बनल अछि
निराकार सरकार
निर्लज सोनित आताताई
निर्भीक गुंडा राज
हम मौन किएक छी?
हम चुप किएक छी?
परवाशी बैन हम रहब कतेक दिन
दूर - परायब कतेक दिन
हमर समाज हमहि सुधारव
हमर सरकार हमहि बनायब
आताताई गुंडा के आब हमहि सतायब
हम मौन किएक छी?
हम चुप किएक छी?
*** जगदानंद झा 'मनु'
---------------------------
("विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका,१ नवम्बर २०११,में प्रकाशित)
लेबल:
कविता,
जगदानन्द झा 'मनु'
गुमान
बहुत गुमान अछि हम मैथिल छी
मिथला हमर शान अछि
उदितमान ई अछि धरती पर
कोनो स्वर्ग समान अछि !
कण-कण खल-खल कोसी कमला
बुझु एकर पहचान अछि
जनक-जानकी आ विद्यापति
मिथलाक शिर कए पाग अछि !
भक्ती रस कए कथा की कहू
स्वयं संकर चाकरी कने छथि
एकर बिद्व्ता जुनी कियो पुछू
मुंडनमिश्र आ अजानी
भारतीक नाम बिख्यात अछि !
*** जगदानंद झा 'मनु'
("विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका,१ नवम्बर २०११,में प्रकाशित)
मिथला हमर शान अछि
उदितमान ई अछि धरती पर
कोनो स्वर्ग समान अछि !
कण-कण खल-खल कोसी कमला
बुझु एकर पहचान अछि
जनक-जानकी आ विद्यापति
मिथलाक शिर कए पाग अछि !
भक्ती रस कए कथा की कहू
स्वयं संकर चाकरी कने छथि
एकर बिद्व्ता जुनी कियो पुछू
मुंडनमिश्र आ अजानी
भारतीक नाम बिख्यात अछि !
*** जगदानंद झा 'मनु'
("विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका,१ नवम्बर २०११,में प्रकाशित)
लेबल:
कविता,
जगदानन्द झा 'मनु'
कविता -मिथला राज
हम धीर-वीर बलवान मैथिल
मिथला राज चाहैत छी,
ई हमर भीख नहि बुझु,
अधिकार अपन माँगे छी |
मिथला राज चाहैत छी,
ई हमर भीख नहि बुझु,
अधिकार अपन माँगे छी |
जाहि दिन धीर हम अधीर भेलौह
वीर हम वीरता दिखा देव,
नहि, फेर विश्वाश करू हमर
की एक चाणक्य हम आर बना देव |
***जगदानंद झा 'मनु'
------------------------------------------------
लेबल:
कविता,
जगदानन्द झा 'मनु'
सोमवार, 5 दिसंबर 2011
मिथिलाक गुणगान
सुनू मिथिलाकेँ गुणगान अहाँ, हम की कहु अपन मोनेंसँ
सभ किछु तँ अहाँ जनिते छी मुदा, हम कहैत छी ओरेसँ
उदितमान ई अछि अती प्राचीन, ज्ञानक अती भंडार अछि
ऋषि-मुनिकेँ पावन धरती, महिमा एकर अपार अछि
ड्यौढ़ी-ड्यौढ़ी फूलबारी, आँगनमे तुलसी सोभति
कोसी-कमला मध्य बसल ई, भारतकेँ सुंदर
मोती
भक्ती-रससँ कण-कण डूबल, अछि महिमा एकर अपार
शिव जतए एला चाकर बनि कए, सुनि भक्तकेँ
करुण पुकार
काली विष्णु पूजल जाइ छथि, मिथिलाक एके आँगनमे
छैक कतौ आन ई सामर्थ कहु, होई जे आँखिक देखनेमे
एहि धरतीसँ जानकी जनमली, श्रृश्टीक करै लेल कल्याण
श्रीराम संग ब्याहल गेली, पतिवर्ताक देलैन उदाहरण महान
आजुक-काइल्हुक गप्प जुनि पुछू, भ्रस्ट बनल
अछि दुनियाँ
मुदा मिथिलामे एखनो देखूँ, शुरक्षित
घरमे छथि कनियाँ
माए-बापकेँ आदर दए छथि, एखनो धरि मिथिले
बासी
पूज्य मानि पूजा करैत छथि, घर आबए जे कियो सन्यासी
आजुक युगमे धर्म बचल अछि, जे किछु एखनों
मिथिलेमे
आँखिक पानि बचल अछि देखू, जे किछु एखनों मिथिलेमे
की कहु आब मिथिलाक महिमा, समेएल जाए नहि
लेखनीमे
हमरामे ओ सामर्थ नहि अछि, बाँधि सकी जे पाँतिमे
जगदानन्द झा ‘मनु’
ग्राम पोस्ट – हरिपुर डीहटोल, मधुबनी
लेबल:
कविता,
जगदानन्द झा 'मनु'
शनिवार, 3 दिसंबर 2011
मैथिलिक विकासक बाधा
मैथिलीक विकाशक बाधा थिक
आजुक युवाशक्ति मिथिलाक
पढि लिख कए बनि जाईछथि
डाक्टर आ कलक्टर
मुदा नहि पढि-लिख सकैत छथि
मिथिलाक दू अक्षर
घरसँ निकलैत
ओ कहथिन "चलो स्टेशन"
लागैत छनि संकोच
कहैमे की "चलु स्टेशन"
जेता जखन गामक चौक पर
लागत जेना
बैस रहला मैथिलीक कोखिपर
शैद्खन दुगोत समभाषी
बाजत अपने भाषा
परन्च दूगोत मैथिल
जतबैलेल अपन प्रशनेल्टी
मैथिली तियागि कए
बजए लगता सिसत्मेती
अपन माएक भाषासँ
प्रेस्टीज पर लागैत छनि बट्टा
लोग की कहतनि
संस्कारीसँ भए गेला मर्चत्ता
संस्कारीसँ भए गेला मर्चत्ता |
*****
जगदानन्द झा 'मनु'
लेबल:
कविता,
जगदानन्द झा 'मनु'
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