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रविवार, 15 जुलाई 2012

गजल


चमकल मुख अहाँक इजोर भऽ गेलै
अधरतिए मे लागै जेना भोर भऽ गेलै

काजर बूझि हमरा नैन मे बसा लिअ
अहाँक नैना मारूक चितचोर भऽ गेलै

कुचरै कौआ रहि रहि मोर आंगन मे
जानि अबैया अहाँक मोन मोर भऽ गेलै

नैनक इशारा दैए प्रेमक निमन्त्रण
आब लाजे कठुआ कऽ बन्न ठोर भऽ गेलै

बनल नाम अहींक "ओम"क प्राण-डोरी
अहाँक आस मे करेज चकोर भऽ गेलै

(सरल वार्णिक- १५ वर्ण)

गजल


जन-गणक सेवक भेल देशक भार छै
जनताक मारि टका बनल बुधियार छै

चुप छी तँ बूझथि ओ, अहाँ कमजोर छी
मुँह ताकला सँ कहाँ मिलल अधिकार छै

बिन दाम नै वर केर बाप हिलैत अछि
घर मे गरीबक सदिखने अतिचार छै

हक नै गरीबक मारियौ सुनि लियऽ अहाँ
जरि रहल पेटक आगि बनि हथियार छै

झरकल सिनेहक बात "ओम"क की कहू
सगरो पसरल जरल हँसी भरमार छै

(बहरे-कामिल)
मुतफाइलुन(ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ)- ३ बेर प्रत्येक पाँति मे

शनिवार, 14 जुलाई 2012

गजल- सदरे आलम "गौहर"


जैह देखू सैह बाजू हम त यैह पढने छी
राति  के दिन कहैले हमरा केना कहै छी

चम्चागिरी चाटुकारिता नहि केलहुँ हम
ताहि  द्वारे फूसक घर में हम रहै छी

मिथिला देशक वासी छी हम मैथिली बाजब
अपन इ पहचान नहि कहियो बिशरै छी

सभ दिन एके रंग नहि होएत छै कान धरु ई
कहियो नाह पर कहियो गाडी पर नाह देखै छी

सतयुग कलयुग में नहि हम मोन के ओझराबी
दुनियाँ त ठीके छै जँ हम  ठीक रहै छी

हँसै मे सभ हँसत कानै मे नहि कानत
कानि के देखु तखन कहब जे ठीक कहै छी

सदरे आलम "गौहर"
पुरसौलिया, जयनगर, मधुबनी
मो. 09006326629

गजल



एक बेर नजैर मिला झूका लेलियै किए
मिला नैन सँ नैन अहाँ हाँसी देलियै किए

अहाँक किछु कहवाक मोन होइत छल
फेर किछु सोचि चुप भs अहाँ गेलियै किए

नाम तs नहि अछि बुझल अहाँक हमरा
मुदा नैन देख किछु सोइच लेलियै किए

सब दिन तs देखी अहाँक जाइत आबैत
आइ नै देख हम व्याकुल भs गेलियै किए

अहाँ सब दिन चुपे चाप चलि जाइत छी
आइ ''मुकुंद'' कने मुस्किया क गेलियै किए

वर्ण-१६
मुकुंद ''मयंक''

शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

गजल


 
गजल नहि लिखतौं तँ हम करितौं की 
गजल बिन जिनगी अपन  जिबतौं की 

शराब  में  निसा  छैक   बुझलहुँ हमहुँ
शराब  नहि पीबितौं तँ हम पीबितौं की 

सभ  कहलक नहि दिमाग हमरा में 
एहि सँ बेसी लए कए हम करितौं की 

दुनियाँ में  सभतरि   भ ' जाइ सोने सोना 
तँ कहु सोना केँ कियो कनिको पूछितौं की 

मन मारने 'मनु'  बैसल छी  नहि   बुझू
एते हल्ला में बजितौं तँ अहाँ सुनितौं की 

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण - १५) 
जगदानन्द झा 'मनु'

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

गजल-६१@प्रभात राय भट्ट


आजुक दुनियाँ में मोल नै रहिगेलै इन्सान के
देखू जग में रावनराज आबिगेलै सैतान के

जीवन कष्टकर भगेल छै जग में इन्सान के
सता शाशन कुर्सी हाथ चलीगेलै सैतान के

बाहुबली सभ निर्बल के सोनितपान करै छै
गाम शहर सगरो दम्भ मचीगेलै सैतान के

रक्तरंजीत भेल छै माए बहिन केर आँचर
इन्सान केर खून सं हाथ रंगीगेलै सैतान के

चौक चौराहा गली गली में जुवा भठ्ठी केर अड़ा
चौक चौक बार रेस्टुरेंट फूजीगेलै सैतान के

चरस गाँजा हफिमक बाजार सेहो गरम छै
बाल किशोर सभ शिकार बनिगेलै सैतान के

वर्ण-१८
रचनाकार-प्रभात राय भट्ट

गजल


अहाँ सं कतेक प्रेम अछि हमरा हम बताऊ कोना
करेज अप्पन चिर सजनी प्रेम हम देखाऊ कोना

अहाँ विनु गोरी करेज हमर कराहि रहल अछि
कोना कोना हम रहैत छि ब्यथा सभटा सुनाऊ कोना

नीन नै अबैय गोरी स्वप्न में हम अहिं के देखैत छि
अहाँ केर सुन्दर छवी नयन सं हम हटाऊ कोना

अहाँक स्नेह मोन पडैय जागी जागी राईत बितैय
अहाँक प्रेम में भेल बताह दिल केर मनाऊ कोना

बड मुश्किल सं बितैय सजनी हमर राईत दिन
साँस साँस में अहिं छि अहाँक विनु दिल लगाऊ कोना

(वर्ण-२०)
रचनाकार-प्रभात राय भट्ट   :  गजल संख्या -६२

Maithili Song - PREM KE NAJUK BANDHAN by Suman Kumar


मसोमात


चारि बरखक बाद, गामक माटि-पानि जेँ देह में बहि रहल अछि हिलकोर मारलक  तँ सभ काज-बाज छोरि नोकरी सँ सात दिनक छुट्टी लय कए गाम बिदा भेलहुँ | जेना-जेना गामक दुरी  कम भेल जए तेना-तेना हृदयक बेग आओर गामक माटिक गंध दुनू तेज भेल जए | ट्रेन आ बसक यात्रा क्रमसँ  खत्म भेला बाद गामक चौक सँ पएरे गाम हेतु बिदा भेलहुँ जेकर दुरी करीब एक किलोमीटर रहै | ओनाहितो असगर, समानक नाम पर कन्हा पर एकटा बैग आ दोसर गाम देखक लौलसा, रिक्सा छोरि पएरे चलैक लेल प्रेरित कएलक |
अपन  टोल में प्रबेश करिते सभसँ पहिले छोटकी काकी पर नजैर परल | ओना गामक सम्बन्ध में ओ हमर बाबी लगैत छलथि मुदा गाम में सभ कियो हुनका छोटकी काकी कहि सम्बोधित करैत छलनि तइँ हमहुँ हुनका छोटकी   काकी कहैत छलियैन | उज्जर पढिया सारी पहीरने आँचर सँ माथ आ एकटा खूट सँ नाक तक मुह झपने | रस्ता सँ आँगन जाईत  घरक कोन्टा पर ओहो हमरा देखलथि, जा हुनका गोर लागि आशीर्वाद लेलहुँ |
"केँ... बच्चू" छोटकी काकी केँ मुह सँ खडखराइत अबाज निकलल
"हाँ काकी "
"कहीया एलअ"
"एखन आबिए रहल छी काकी "
"एसगरे एलअ हेँ "
"हाँ "
"आ दिल्ली में कनियाँ, धिया-पुता सब ठीक"
"अहाँक आशीर्वाद सँ सभ कुशल-मंगल, अहाँक की समाचार नीके छी ? "
ई प्रश्न सुनिते हुनका आँखि सँ नोर झहरअ लगलनि नोर रोकैक असफल प्रयास करैत -" कि बौआ, एहि मसोमात केँ की नीक आ की बेजए, बेजए तँ ओहि दिन भय गेलहुँ जहिया अहाँक काका नबाडिये में छोरि स्वर्ग चलि गेला, आब तँ एहि बुढ़ारी में कियोक धूओ नहि देखए चाहैए, देखला सँ सभ केँ अमंगल होएत छैक | नहि जानि बिधाता एहि अभागनि केँ आओर कतेक ओरदा देने छथि | आई महीनों केँ बाद ककरो सँ दूमुह गप्प केलहुँ आ कियो हमरो द पुछलक ....."
ई  कहैत काकी अपन नोर केँ नुकबैत कोन्टा सँ अँगना दीस चलि गेली आ हमहुँ गामक जिनगीक, बिधबा, मसोमात, बुढ़ारी सोचैत आगु  बढि गेलहुँ |  

*****
जगदानन्द झा 'मनु'
   

मंगलवार, 10 जुलाई 2012

गजल



वेदरदिया नहि दरदिया जानै हमर 
टाका सँ जुल्मी प्रेम केँ गानै हमर 

सदिखन जरैए मन विरह केँ आगि में 
तैयो पिया नहि किछु दरद जानै हमर 

साउन बितल घुरियो कँ नहि एला पिया 
नहि खीच हुनका  प्रेम ल'कँ आनै हमर    

बरखा खुबे बरिसय तँ  गरजय बदरबा 
छतिया दगध भेलै हिया कानै हमर 

बसला पिया 'मनु' दूर बड परदेश में 
झरकल हिया कनिको तँ  नहि मानै हमर 

(बहरे रजज, मात्राक्रम- २२१२)
जगदानन्द झा 'मनु'    :  गजल संख्या-६१ 

रविवार, 8 जुलाई 2012

नारिये,नारिक संतापक कारण छथि

जौं सोचि-विचारि निष्पक्ष मोन सँ मानथि
आ घुमा फिरा क सब तथ्य के देखथि 
त पैयती एहि कटु सच के मुंह बाबति
जे नारिये,नारिक संतापक कारण छथि

कतहूँ सासु त दियादिनी कत्तहूँ
कतहूँ भाउज त ननैद कत्तहूँ
जखने कनिको जे अवसर पाबथि
सब मिलि नवकनियाँ  के दबाबथि 

कनियाँक आंखि छोट आ नाक मोट 
घरक नारिये एहि सब पर करथि चोट
नहिं पुरुष के अहि सब सँ मतलब 
भोर-साँझ बस नारिये खोजति खोट

अहि विवाह में ई चाहि आ एतेक दहेज़ गनेबई
कनिया के त चारि बहिन बाप कोना द पैतई 
जौं सासुर में सार नै त सासुर के मोजर की
अप्पन नईहर खूब पियरगर दोसर जिबय-मरई 

हे मिथिलानी! छोडू ई सब आ बदलू अपना के
नारी भ क नहि कारण बनू नारी यातना के
अपना पर जे बीतल से सहलहूँ राखि भरोस   
मुदा तकर बदला नै तोडू ककरो सपना के

राजीव रंजन मिश्र 

गामक ओ भंगिमा

लहलहाईत खेत आ,
खरिहानक ओ रंगिमा!
ओ मनोरम दृश्य,
आ सूरजक ओ लालिमा!
मोन के लोभा जाईत अछि ,
हमर गामक ओ भंगिमा!!

चारू तरफ खिलखिलाईत,
मदमस्त फूलक ओ छटा!
ताजगी समां के दईत,
मेघक ओ कारी घटा!  
मोन के  दईत अछि रमा,
हमर गामक ओ भंगिमा!!

चिंता स कोसों दूर,
आ प्रपंचक नै कोनो चिन्ह अछि,
शहरक प्रदूषित हवा सँ,
सब तरहे ओ भिन्न अछि!
देह में फुर्ती  दईत अछि जमा,
हमर गामक ओ भंगिमा!!

प्रीतक उताहुल लोक आ,
वात्सल्य हुनक नेह केर!
मोन के करैत अछि विह्वल,
अमोल भेंट हुनक स्नेह केर!
अछि जीवय के सदिखन प्रेरणा,
हमर गामक ओ भंगिमा!!

राजीव रंजन मिश्र 

आगु डेग बढाबी

आयल छी अवधारि क,किछु करबाक टा अछि!
रोडा त बड्ड अछि मुदा,नहि घबरैबाक अछि!!
संग जौं रहल सबहक,भ जैबे टा करतय!
मोन बेर-बेर कहति अछि,ई होयबे टा करतय!!

नहि जानि किएक, बड्ड असमंजस में परल छी!
कतय सँ आर कोना,कथी शुरू करी हम!!
आबु सब मिल बैसी,आर करी पुनर्विचार!
नव स्फूर्ति आर तेज़क,होबै पुनीत संचार!!

गत काल्हि तक जे कयलौं,ठीके छल सब ओहो!
जुनि परी अहि प्रपंच में,ई किएक,ओना किएक भेल!!
जे भेल,जे कयलौ सब ठीक,आगु डेग बढाबी!
दृढ संकल्पित भ फेर सँ,जन-गन के संग लाबी!!
संग्रामी अभिनन्दन के संगहि,संग्रामी एक शपथ ली!
पूर्वाग्रह के छोरि,निष्कपट भ,आबु किछु काज करी!!
किछु बदली हम सब,किछु समय बदलतय,आ सबटा भ जेतय!
मोन बेर-बेर कहति अछि,ई होयबे टा करतय!!
---राजीव रंजन मिश्रा

आश जे लागल अछि

संतप्त धरातल अछि  
दुष्कृति स पाटल अछि 
मनुख बिसारि स्वरुप 
अनेड़ो फाटल अछि 
तइयो नै जानि किया 
ई मोन त पागल अछि
बदलत ई सब एक दिन 
ई आश जे लागल अछि

निःशब्द ई धरती अछि 
खेत पथार जे परती अछि 
बिलटल उपजा बारी
रौदी जे छायल अछि 
तइयो नै जानि किया 
ई मोन त पागल अछि
उपजत  ई सब एक दिन 
ई आश जे लागल अछि

गाछ बृक्ष मूड़झायल अछि 
बारी झाड़ी भकुआयल अछि
देख मनुख केर चालि-प्रकृति 
विधनो के मोन घायल अछि 
तइयो नै जानि किया 
ई मोन त पागल अछि
पलटत ई सब एक दिन 
ई आश जे लागल अछि

आशान्वित छी सदिखन
सम्हरत ई जनजीवन 
रहला जौं दैव सहाय
पुरत सब आश फूलाय
विस्वास त जागल अछि 
तैं मोन त पागल अछि
सुधरत ई सब एक दिन 
ई आश त लागल अछि

राजीव रंजन मिश्र 

शनिवार, 7 जुलाई 2012

गजल

जँ कहीयो हमरा प्रेम केलहुँ तँ ओकर सप्पत मानियो  जाउ 
कुटि-कुटि कँ हम प्रेम केने छी हमर मनोरथ बुझियो जाउ 

सभ तरहे हम अहीँ केँ बुझलौं अपन अहाँ केँ मानलौं हम 
मोनक हाल बनल की हमर आबि  कनीक अहाँ सुनियो जाउ 

छन-छन हमर बीतैए कोना कँ बिन अहाँक दुख बुझत केँ 
नामे केँ हम जीबैत छी हमर जीवन केँ मुइल बुझियो जाउ 

हाड माँस गलि गेल हमर सभटा प्राण बचा कए रखने छी 
सहि नै सकै छी विरह आगि 'मनु' घुरि अहाँ कनी आबियो जाउ 

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-२४)
जगदानन्द झा 'मनु'