की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। sadhnajnjha@gmail.com पर e-mail करी Or call to Manish Karn Mo. 91 95600 73336

बुधवार, 30 मई 2012

गजल


जाति पाति पर आब हम नहि लड़ब यौ
हम मैथिलपुत्र मिल क' आगु बढ़ब यौ

अप्पन  माटि पानि पर आब जीयब हम
प्राण  अप्पन छोरब वचन नै तोरब यौ

बाहर बहुत छैक दूध मलाई राखल
मडुआ रोटी नून लेल सभटा छोरब यौ

खून पसीना सँ अप्पन धरती पटाएब
मेहनत सँ सोना उपजा कय रहब यौ

बिसरल मान सम्मान फेर सँ जगाएब
दुनिआक नक्सा में 'मनु' फेर सँ उठब यौ

वर्ण-१६
जगदानन्द झा 'मनु'

रुबाइ

पीलौं नहि तँ की छै शराब बूझब की 

बिन पीने दुनियाँमे करब तँ करब की 

एक दोसरकेँ सभ अछि खून पीबैत 

खून छोड़ि शराबे पी कय देखब की 

                       ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

मंगलवार, 29 मई 2012

रुबाइ



पियक्कड़ के कहैय कियो खराब एही जमाना में
ओ खुद नुका कs पिबैय शराब एही ताडिखाना में
घुटुर घुटुर पीवगेल भरल गिलास शराब
छोडीगेल एक राज की किताब एही ताडिखाना में

---प्रभात राय भट्ट -----

रुबाइ



गम गम गमकै छै महफ़िल सजल छै गुलाब
छल छल छलकै छै गिलास में भरल छै शराब
एक घूंट में कियो पीगेल उठाके बोतल समूचा
मातल पियक्कड़ कहैत छै गंगाजल छै शराब

---प्रभात राय भट्ट -----



सोमवार, 28 मई 2012

गजल @ प्रभात राय भट्ट


ई धरती ई  गगन रहतै जहिया धरि 
अप्पन प्रेम अमर रहतै तहिया धरि

कहियो तँ  ई  दुनियाँ  बुझतै प्रेमक मोल
प्रेमक दुश्मन जग रहतै कहिया धरि

बाँझ परतीमे खिलतै नव प्रेमक फूल
प्रेमक फूल सजल रहतै बगिया धरि

कुहू कुहू कुहकतै कोयल चितवनमे
जीवनक उत्कर्ष रहतै सिनेहिया धरि 

प्रीतम "प्रभात" संग नयन लड़ल मोर
भोरसँ  दुपहरिया साँझसँ  रतिया धरि 

..........वर्ण-१६...............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गजल


पी कs शराब जे बनैय नबाब
झूठ जिन्गी के ओ करैय बचाब

पी क शराब जे देखाबै नखरा
जमाना ओकरा कहैय खराब

नीसा सं मातल ओ ताडिखाना में
लडैत पडैत पिबैय शराब

ओ खोजैय प्रीतम के बोतल में
बोतल शराब लगैय गुलाब

---प्रभात राय भट्ट -------


रुबाइ

भेटल नहि सिनेह तेँ शराबे पीलौं

दर्शन हुनक हरदम गिलासमे केलौं 

के कहैत अछि शराब छैक खराब ‘मनु’

बिन हुनक रहितौं शराबे सँ हम जीलौं

                        ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

रुबाइ

ढोलक धम-धमा-धम बजैत किएक छै

घुँघरू खन-खना-खन खनकैत किएक छै

दुनू भीतरसँ छैक एक्केसन  खाली 

दुनू अपन गप्प नहि बुझैत किएक छै

                      ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मन’

गजल

चान सँ सुन्नर सजनी हमर एहेन  नै  केखनो सोचलौं हम
भाग में लिखलाहा छल हमर जे अहाँ केँ  अपन  बनेलौं हम
 
एक चान अछि धरती केँ  ऊपर जेकरा सभ  कियो देखते छी
दोसर हमर हृदय में बसल पाँज में जकरा भरलौं हम
 
अहाँ छी सुन्नर हे मनमोहनी तन मन सभ निश्छल अहाँ केँ
एहि सादगी पर मरि मीटलौं अहीँक पूजा करै लगलौं हम
 
आँखि मुनि आ खोलि हम  सामने हमर अहाँ रहै छी सदिखन
सुन्नर छबी निहारैत अहाँ केँ अहीँक लौलसा में रहलौं हम
 
चन्ना ताराक संग जेना छैक सुख दुख पल-पल जीबन भरि
रहि जीबन भरि 'मनु' सुगँधाक जीबन अहाँ केँ सोपलौं हम 
 
(वर्ण- २४)  
जगदानन्द झा 'मनु'
 

रविवार, 27 मई 2012

बचल रहय परिवार

बात कहय मे नीक छल, बेटा गेल विदेश।
मुदा सत्य ई बात छी, असगर बहुत कलेश।।

विश्व-ग्राम केर व्यूह मे, टूटि रहल परिवार।
बिसरि गेल धीया-पुता, दादी केर दुलार।।

हेरा गेल अछि भावना, आपस के विश्वास।
भाव बसूला के बनल, भोगि रहल संत्रास।।

शिक्षित केलहुँ कष्ट मे, पूजि पूजि भगवान।
जखन जरूरत भेल तऽ, दूर भेल सन्तान।।

शिक्षित नहि करबय अगर, लोक कहत छी पाप।
मुदा एखन सन्तान लय, मातु-पिता अभिशाप।।

लागय अछि जिनगी एखन, बनल एक अनुबन्ध।
सभहक घर मे देखियौ, टूटि रहल सम्बन्ध।।

बेसी टाका की करब, करियौ सुमन विचार।
सुन्दर एहि सँ बात की, बचल रहय परिवार।।

गजल



 

आई फेर पुछैय लोक हमरा अहाँ किएक उदास छि
आ हम पूछलएन हुनका सं अहाँ किएक नीरास छि

जातपातक भेदभाव कोना उत्तपन भेल मधेश में
ताहि चिंतन में हम डुबल छि अहाँ किएक नीरास छि

थरुहट अबध मिथिला भोजपुरा नै चाही मधेश के
मधेशी के चाही स्वतंत्र मधेश अहाँ किएक नीरास छि

अखंड मधेश केर विखंडन में शाषक अछि लागल
हेतै क्रूरशाषक के अवसान अहाँ किएक नीरास छि

सहिदक सपना मधेश एक प्रदेश बनबे करतै
निरंकुश शाषक मुईल जेतै अहाँ किएक नीरास छि
............वर्ण-२१..............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शनिवार, 26 मई 2012

गजल

ओ निसाँ शराब में कतए चाहि जे पिबैक लेल 
बहाँना माहुर  में कतए चाहि जे चिखैक लेल   
 
सगरो बहल अछि धाड आब शराबक देखू
लाबू कतय सँ सूई-ताग ई धाड सिबैक लेल
 
बचल किए आब शराबे टूटल करेज लेल
बहुतो छै  जीबन में एकर बादो जिबैक लेल 
 
जँ डगमगएल डेग शराबे किएक थामलौं   
बाँकी अछि एकर बादो बहुत सिखैक लेल
 
बहाँना बहुत अछि दुनियाँ में एखनो जिबै के
आबू मनु देखू बहुत किछ अछि पिबैक लेल  
 
वर्ण- १८
जगदानन्द झा 'मनु'

रुबाइ

पीलौं शराब तँ दुनियाँ कहलक बताह 

बिन पीने ई दुनियाँ भेल अछि कटाह

जे नहि पीलक कहाँ अछि ओकरो महल

तँ पिबिए क' किएक नहि बनि जाइ घताह

                              ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

 

गुरुवार, 24 मई 2012

नाकाम

हर दम दुःख अपन भुलाबै चाहलौं

एकरा आन सँ हमेशा बचाबै चाहलौं

वोहे किस्सा हमरा दिस बढ़ि रहल अछि अखनिधरि

वोहे आगि सीना में धधकि रहल अछि अखनिधरि

वोहे व्यर्थ के चुभन अछि छाती में अखनिधरि

वोहे बेकार इच्छा हमर बनल अछि अखनिधरि

दुःख बढैत गेल मुदा इलाज नहि भए सकल

हमर बेचैन हालात के आराम कहाँ भेटल

मोन दुनिया के हर दर्द के अपना त' लेलक

व्याकुल आत्मा के उन्मादक ढंग नहि भेटल

हमर कल्पना के बिखरल क्रम अछि वहै

हमर बुझैत अहसास के स्तिथि अछि वहै

वोहे बेजान इरादा आ वोहे बेरंग सवाल

वोहे बेकार खींचातानि आर बेचैन ख्याल

आह ! ई रोजक कश्मकश्क के अंजाम

हमहुं नाकाम, हमर  कोशिशो नाकाम !!!!!!!!!!!!!

रुबाइ

पीब नै शराब तँ हम जी कोना क

फाटल करेजकेँ हम सी कोना क

सगरो जमाना भेल दुश्मन शराबक

सबहक सोंझा तँ आब पीब कोना क

                    ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मन’