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शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

गजल


चढल फागुन हमर मोन बड्ड मस्त भेल छै।
पिया बूझै किया नै संकेत केहन बकलेल छै।

रस सँ भरल ठोर हुनकर करै ए बेकल,
तइयो हम छी पियासल जिनगी लागै जेल छै।

कोयली मधुर गीत सुना दग्ध केलक करेज,
निर्मोही हमर प्रेम निवेदन केँ बूझै खेल छै।

मद चुबै आमक मज्जर सँ निशाँ चढै हमरा,
रोकू जुनि इ कहि जे नै हमर अहाँक मेल छै।

प्रेमक रंग अबीर सँ भरलौं हम पिचकारी,
छूटत नै इ रंग, ऐ मे करेजक रंग देल छै।
सरल वार्णिक बहर वर्ण १८
फागुनक अवसर पर विशेष प्रस्तुति।

गजल-२०

गुमान जिनका पर छल ओ मुँह मोरि लेलैंह
दर्दक इनाम दय, खुसी सँ नाता जोरि लेलैंह

हमर दर्द कए आब ओ समझै छथि मखोल
छन में हँसि कय, हमरा सँ नाता तोरि लेलैंह

ओ की बुझता पियार केनाई ककरा कहैत छै
जए घरी-घरी में अपन करेज जोरि लेलैंह

पियारक फूल पर चलब आब ओ की सीखता
विरह के अंगार पर चलब जे छोरि लेलैंह

'मनु' नादान, नै हुनका मिसियो भरि चिन्हलहुँ
मोनक बात की, करेजो हमर ओ फोरि लेलैंह
***जगदानंद झा 'मनु'

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

कविता-मखानक पात


जहिना मखानक पात नया मे काँट सँ भरल होइ छै ,
आ पुरान भेला पर कोमल भs जाइ छै ,
एकटा छोट बच्चा एक्के हाथे मसैल सकै छै .
ओहिना मनुष्यक जीवन होइ छै ,
जखन धरि जुआनी तखन धरि बड़ बलगर ,
जखने देह खसल आँखि धसल दाँत बाहर ,
बस लाति-मुक्का सँ स्वागत शुरू भ' जाइ छै ,
जुआनी मे जे पाँच-पाँच सेर दुध पिबै छल ,
आब आधा कप चाह गारिक बिस्कुट संग भेटै छै ,
जीवन भरि जे अपन कपड़ा नै खिचलक ,
पुतहु कए साड़ी चुप-चाप खिचs लागै छै ,
जकर चरणक धुल इलाका कए लोग माथ लगबै छल ,
अपन बेटा कए चरण पकड़ै लए विवश भ' जाइ छै ,
ताहि पर जै कोनो बिमारी भs जाइ ,
सोचू जौँ लकवा मारि जाइ ,
त' केहन हाल हेतै ,
सच मे मनुष्यक जीवन मखानक पात छै ,
अमित मिश्र

गजल-- अमित मिश्र

चाँन देखलौ त' सितारा की देखब ,
अन्हारक रूप दोबारा की देखब ,
प्रेमक सागर मे बड़ मोन लागै ,
डुबS चाहै छी त' किनारा की देखब ,
एहि ठामक मिठाई सँ बेसी मिठ ,
रूपक छाली दोबारा की देखब ,
अपने आप राति रंगीन भ' जाए ,
फेर बोतलक ईशारा की देखब ,
मेघक डरे चान नै बहरायल ,
ओ नै औता त' नजारा की देखब ,
जखन यादिक सहारे जी सकै छी ,
तखन चानक सहारा की देखब . . . । ।
अमित मिश्र

{{ होली कए गजल}}

चढ़लै फगुआ सुनि लिअ ,
मस्ती चढ़ल छै जानि लिअ ,
जोगीरा संग झुमै जाउ यौ ,
मौसम सँ खुशी छानि लिअ ,
रोक-टोक नै सब पिने छै ,
झुमु-नाचु छाती तानि लिअ ,
लाल पियर गुलाबी कारी ,
सब रंगक गड्ढा खुनि लिअ ,
अबिरक खुशबू गमकै ,
रंगक चादर तानि लिअ ,
रामा छै सासुर मे बैसल ,
सारि कने रंग मानि लिअ ,
अबिर द' क' गोर लागै छी ,
माथ हम्मर ,हाथ आनि लिअ . . . । ।
अमित मिश्र

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

गजल


धूप आरती हम अनलहुँ नहि 
जप-तप करब सिखलहुँ नहि 

सदिखन कर्तव्यक बोझ उठोने
अहाँक ध्यान किछु धरलहुँ नहि 

की होइत अछि माए पुत्रक नाता
एखन तक हम बुझलहुँ नहि

हम बिसरलहुँ अहाँकेँ जननी 
अहुँ एखन तक सुनलहुँ नहि

अपन शरणमे लऽ लिअ हे माता
ममता अहाँक तँ जनलहुँ नहि

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१३ )


जगदानन्द झा 'मनु' 

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

गजल


चलल बाण एहन इ नैनक अहाँक, मरलौं हम।
सुनगल इ करेज हमर सिनेह सँ बस जरलौं हम।

भिडत आबि हमरा सँ, औकाति ककरो कहाँ छै,
जखन-जखन लडलौं, हरदम अपने सँ लडलौं हम।

हम उजडल बस्ती बनल छी अहाँक इ सिनेह सँ,
सिनेहक नगर मे सदिखन बसि-बसि उजडलौं हम।

हम तँ देखबै छी अपन जोर मुँहदुब्बरे पर,
कियो जँ कमजोर छल, पीचि कऽ बहुत अकडलौं हम।

अहाँ डरि-डरि कऽ देखलौं जाहि धार दिस सुनि लिअ,
सब दिन उफनल एहने धार मे उतरलौं हम।
फऊलुन (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)--- ५ बेर प्रत्येक पाँति मे।

गजल



ह्रदयसँ सटा तँ लिअ 
अहाँ प्रीत लगा तँ लिअ  

हम जन्मसँ अहाँकेँ छी 
प्रियतम बना तँ लिअ 

सभकेँ छोरने छी हम 
हृदयमे बसा तँ लिअ 

नै हमरा बिसरल छी 
ई हमरो जता तँ लिअ 

आब दिन बीते नै राति 
मरबसँ बचा तँ लिअ 

जीनै सकी बिनु अहाँकेँ
नै हमरा कना तँ लिअ 

ई नोर विरहकेँ अछि 
मिलनकेँ बना तँ लिअ 

सुगँधा अहाँ 'मनु'केँ छी  
ई सभकेँ बता  तँ लिअ   

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-९ )
जगदानन्द झा 'मनु'


वासंती गीत



कोइली कुहू -कुहू कुहुके हो रामा वन उपवन में 
नव किसलय सँ गाछ लागल अछि
मंजरि गम -गम गमकि रहल अछि
रंग बिरंगक फुल गाछ में 
प्रकृति कयल श्रृंगार हो रामा वन उपवन में ........
टिकुला सँ अछि झुकि गेल मंजरि 
नेना सब हर्षित अछि घर -घर 
गाछ -गाछ  पर विरहिणी कोइली 
कुहू -कुहू पिया कय बजाबै हो रामा वन उपवन में ....
श्वेतवसन कचनार पहिरी कय 
भ्रमर आंखि केर काजर बनि कय 
कामदेव क लजा रहल अछि
बढ़वय रूप हज़ार हो रामा वन उपवन में .....
महुआ  गम -गम गमकि रहल अछि
नेना चहुँदिसि दौरि रहल अछि
डाली -झोरी मं अछि महुआ 
गाबय चैत बहार हो रामा वन उपवन में ......

प्रजा आ तंत्र


लोहा सँ लोहा कटे अछि
विष काटै अछि विष कें,
मुदा भ्रष्ट सँ कहाँ उखड़े अछि
भ्रष्टाचारक ओइद ...?
निज स्वार्थ हेतु आश्वासन सँ
सागर में सेतु बना दै अछि,
रामक दूत स्वयं बनि सब
मर्यादा कें दर्शाबे अछि,
जनमत केर हार पहिर क ओ
रावणदरबार सजाबे अछि,
जौं करब विरोध त शंकर बनि
ओ तेसर नेत्र देखाबे अछि,
थिक प्रजातंत्र तें रावणों क
भेटल अछि समता केर अधिकार,
हमरे सबहिक शोणितपोषित
थिक प्रजातंत्रक सरकार.....

-अंजनी कुमार वर्मा "दाऊजी"

कोसी




हिमगिरी के आँचर सँ ससैर,
मिथिला केर माटि म पसैर
दुहु कूल बनल सिकटाक ढेर,
पसरल अछी झौआ कास पटेर
मरू प्रान्त बनल कोसी कछार,
निस्सिम बनल महिमा अपार
सावन भादो केर विकराल रूप,
पाबि अहाँ यौवन अनूप
उन्मत्त मन ,मदमस्त चालि,
भयभीत भेल मानव बेहाल
कि गाम-घर,कि फसल-खेत,
कि बंजर भू ,लय छि समेट
प्रलयलीन छि अविराम,
मानव बुद्धि नहीं करय काम
कतय कखन टूटे पहाड़,
भीषण गर्जन अछी आर-पार
तहियो हम सब संतोष राखि,
कर्तव्यलीन भेल दिन-राति
वर्षा बीतल हर्षित किसान,
खेती म लागल गाम-गाम
लहलहाइत खेत देखै किसान,
कोसी मैया कए शत-शत प्रणाम .......
- अंजनी कुमार वर्मा


गीत @प्रभात राय भट्ट

                 गीत  
यौ  पिया मारु नै जुल्मी नजरिया
की लच लच लचकय मोर कमरिया //२ मुखड़ा

हमर  मोन  नै बह्काबू यौ पिया
रखु अहां अपना दिल पर काबू
कोमल कोमल अंग की मोर बाली उमरिया
थर थर कापे देह की धक् धक् धरके जिया

ऐ धनी लचकाबू नै पतरकी कमरिया
की मोन भेल जैय हमर बाबरिया
देख अहाँक सोरह वसंतक चढ़ल जवानी
धनी बहकल जैय हमरो  जुवानी

यौ पिया हम सभटा बात बुझैतछि
हमरा संग अहां की की कS  र चाहैतछि
छोड़ी दिय ने आँचर पिया
की धक् धक् धर्कैय हमर जिया

एखन नै जाऊ सजनी छोड़ी कें
हमर मोनक उमंग झकझोरी कें
ये गोरी आब एतेक नै नखरा धरु
की झट सं प्रेमक मिलन करू

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

MAITHILI KAVYA: MAITHILI STRUCTURE

MAITHILI KAVYA: MAITHILI STRUCTURE: II. STRUCTURE OF THE LANGUAGE 2.1. Segmental phonemes: Maithili has 47 segmental phonemes or distinctive minimal speech sounds as sh...

गजल


अहाँ केँ हमर इ करेज बिसरत कोना।
छवि बसल मोन मे आब झहरत कोना।

हवा सेहो सुगंधक लेल तऽ जरूरी,
बिन हवा फूलक सुगंध पसरत कोना।

अहीं टा नै, इ दुनिया छै पियासल यौ,
बिन बजेने इ चान घर उतरत कोना।

जवानी होइ ए नाव बिन पतवारक,
कहू पतवारक बिना इ सम्हरत कोना।

हमर मोन ककरो लेल पजरै नै ए,
बनल छै पाथर करेज पजरत कोना।
मफाईलुन (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ) ३ बेर प्रत्येक पाँति मे।

हर-हर-खट-खट! फुसियांही के मेल! :-)

हर-हर-खट-खट! फुसियांही के मेल! ;)

बात हर्ख के ओ होयत जे अपन मूल सँ निकलत!
अपन संस्कृतिके ऊपर दुनिया के जे प्रेरित करत!
ओ कि जे बस देखादेखी दोसरक नंगटइ सिखलहुँ!
नारीके मर्यादा के बाजार में आम निलामी कयलहुँ!

एहनो नहि जे आधुनिकता के धार में नहि छै बहब!
कोना आइ इन्टरनेट के माध्यम बात कहलहुँ कहब!
अक्सर बेसीकाल मिथिला राज्य बिहार सँ अलगै छै!
तेलांगाना आ छत्तीसगढक तर्ज पर उतारय नकल छै!

देखियौ छुद्र राजनीति - इतिहासे के नोंचत आ पटकत!
अपना दम पर एको कोनियां काउनो नहि आबै फटकत!
बड़का बोली दम्भ सऽ भरल ब्राह्मण के छै झाड़ैत-मारैत!
ई जनितो जे मिथिला सदिखन ब्राह्मणहि हाथे झबरत!

कतबू करतै राजनीति कि चलतै एहि धरती पर ओकर!
एहि धरतीपर एकहि गप छै धर्म के सार हरदम ऊपर!
ई थीक तांत्रिक मिथिला भूमि एहिठाम उपजय विदेह!
याज्ञवल्क्य आ बाल्मीकि सम्‌ त्यागी-तपी निःसंदेह!

नाम उच्च आ कान बुच्च के तर्ज पर खाली चमचम!
पाउडर फाड़ि बनाबय दही तहि पर भोजक कोन दम!
पोखैर गाछी सभटा बिकेलैय आब कि बचलौ डीह टा!
ताहू पर छौ नजैर गड़ल रे हरासंख कोढिया जैनपिट्टा!

सम्हर-सम्हर कर सत्यक लेखा जुनि जोखे झूठे ढेपा!
तौल-बनियां-तौल-भैर राति तों तौल ले अगिलो खेपा!
जातिवादी नारा के बल सऽ किछु नहि हेतौ रे मूढकूप!
आइयो दुनियाँ सीतारामके प्रतापे भजि ले वैह सुरभूप!

हरिः हरः!
रचना:-
प्रवीन नारायण चौधरी