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सोमवार, 10 सितंबर 2012

"राड़केँ सुख बलाय" केर लेखक रोशन कुमार झा रामदेव झाक बेटा, विद्यानाथ झा विदितक जमाए आ चन्द्रनाथ मिश्र "अमरक" नैत शंकरदेव झा-विजयदेव झाक संग मिलि कऽ एकटा ब्लैकमेलिंग ब्लॉग ई-पत्रिका (!!) मातृभाषा शुरू केलक अछि।(रिपोर्ट पूनम मण्डल)



राड़केँ सुख बलाय" केर लेखक रोशन कुमार झा रामदेव झाक बेटा, विद्यानाथ झा विदितक जमाए आ चन्द्रनाथ मिश्र "अमरक" नैत शंकरदेव झा-विजयदेव झाक संग मिलि कऽ एकटा ब्लैकमेलिंग ब्लॉग ई-पत्रिका मातृभाषा शुरू केलक अछि।
धूर्त रोशन कुमार झा:राअर के सुख बले :
मिथिलाक गाम घर :

राअर के सुख बले :

पढुआ काका किछु काज स दरभंगा आयल छलाह . जखन सव काज भ गेलैन त बस पकर्बाक लेल बस स्टैंड गेलाह , मुदा गामक बस छुट्टी गेलैन .
पधुआ काका हमरा फ़ोन केलैने ? रोशन कतय छ: ? हम आकाशवाणी लग ठाढ़ छि ? हाउ हम तोहर घरे बिसरी गेलिय . तो आबी क हमरा ल जा .

जखन हम पढुआ काका क ल के घर पर आय्लाहू त घर पर लाइन छल .चुकी गर्मी काफी छल ताहि कारने पंखा चला हुनका लग बैसी गेलहु आ हुनका अपन कंप्यूटर पर फसबूक के खोली हुनका देखाबय लाग्लाहू ?
अचानक ललका पाग केर देखैत देरी हुनक मन गडद-गडद भ गेलैने . ओ कह्लैने जे की " इ थिक मिथिला वासी केर पहचान , आ पाग पहिर्ला स बाढ़ी जाइत अछि मान "

हम कहलियैक , काका किछू लोक केर कथन अछि जे की पाग मात्र उपनयन , विवाह में पहिरे वाला एक टा परिधान अछि जे की बाभन आ लाला सब मे पहिरल जाइत अछि ?

ओ कह्लैने हौ जे इ गप करैत अछि ओ पागल हेताह ?
हम कहलियैक , कका ओ सब पढ़ल लिखल आ पैघ-पैघ साहित्यकार छैथ आ विदेह सनक पत्रिका सेहो निकालैत छैथ ?

किछु काल केर उपरान्त पढुआ कका कह्लैने जे की एकटा , दूटा ओही महानुभाव केर नाम त कहक जे सब पाग केर मिथिला केर मान नहीं बुझैत अछि आ मात्र ओकरा जातिगत स जोरी रहल अछि ?

हम कहलियैक आशीष अनचिन्हार , उमेश मंडल , पूनम मंडल प्रियंका झा आ विदेह केर सम्पादक गजेन्द्र ठाकुर .
कका कह्लैने हौ अहि मे त कोनो पैघ साहित्य कार लोकनि केर नाम कहा अछि ?
कका आजुक समय केर इ सब करता धर्ता छैथ साहित्य जगत के .
हौ यदि आजुक साहित्य केर करता एहन छैथ त नहीं जानी की होयत भविष्य मे ?

हमरा सब केर समर में हरिमोहन झा , नागार्जुन , दिनकर सब सनक महान रचना कार लोकिन छलाह . से इ सब कोनो हुनका स पैघ छैथ जखन ओ लोकिन पाग पहिर अपना केर गौरवान्वित बुझैत छलाह तखन आजुक नौसिखुआ सब के की औकात ?

ओ कह्लैने हौ बाऊ ब्रह्मण एकर विरोध किअक क रहल अछि से नहीं जानी मुदा जिनकर बाप दादा कहियो पहिर्बे नहीं केने हैथ हुनका त अवस्य ने असोहाथ बुझेतैन .
ओहुना मिथिलाक गाम घर मे कहल जाइत अछि जे की " राअर केर सुख बले " .
 ·  ·  · 3 hours ago


  • 9 minutes ago ·  · 1

  • Ashish Anchinhar एहि पत्रिका केर सम्पादक महान ब्राम्हणवादी अम्लेन्दु शेखर पाठक अछि
    9 minutes ago via mobile ·  · 1

  • Umesh Mandal जगदीश प्रसाद मण्डल जीकेँ गौहाटी विद्यापति समारोहमे मुख्य अतिथि बनाओल गेलापर वैद्यनाथ बैजू आ अमलेन्दु शेखर पाठक आदि हंगामा केने रहथि, अमलेन्दु शेखर पाठक कहि रहल रहथि "सपनोमे नै सोचने हेतै", एकर वीडियो देखू www.purvottarmaithil.org पर

शनिवार, 8 सितंबर 2012

गजल


होए मोन हरखीत ढोलो सोहाइ 
नै बिनु कारने मीठ बोलो सोहाइ 

प्रियगर भेट नवकी कनियाँ गेलै जँ 
हाथक हुनकर नोनगर ओलो सोहाइ 

जेबीमे जखन भरल रुपैया होइ
तहने महग सस्ताक मोलो  सोहाइ 

सिम्बर तूरकेँ नीक गदगर मसलंग 
सुन्नर ओहिपर आब खोलो सोहाइ 

भरि सन्दूक घर जाहिमे भेटै सोन 
एहन घरक महकैत झोलो सोहाइ 

(बहरे हमीद, २२२१-२२१२-२२२१)

गजल


चुपचाप बैसल छी एकातमे
छै मोन मारल हमर प्रातमे

भेलै लऽ कर्जा बेँउँत भोजकेँ
भीड़सँ पड़ल किछुओ नै पातमे

खैनी चुना मिथिला बुधियार छै
बेचलक घर भांगसँ लऽकऽ भातमे

आलस कने छोरु देखू तखन
केहन मजा घामक बरिसातमे

चुप्पा बनू नै चुप्पी तोड़ि दिअ
साहसक संगे चल निर्यातमे

पार्टी खसै फेरो हँसिते उठै
आचरण खसतै लोकक बातमे

2212-22-2212

अमित मिश्र

गजल


अपहरण भेल अछि हमर किस्मतकयौ
नीक नै भेल छै लिखल पाथरक यौ

भेँटकेँ मीठ लाबा बनल छै मनुख
पेट कतबो भरै काज लेबरक यौ

तुच्छ नै होइ छै छोट सब बस्तु यौ
मोल कखनो बहुत गरल विषधरक यौ

छै मलेमास लागल अपन देशपर
कोयला नोट छीनैछ धारकक यौ

क्रोधमे दुर्दशा देख लिअ ने "अमित"
घेँट अपने कटल धार शोणितक यौ

फाइलुन चारि बेर
212-212-212-212
बहरे-रमल

अमित मिश्र

गजल



ट्रेन चलि चुकल अछि
समय नै थम्हल अछि

मास कोनो मुदा
ज्वार बड उठल अछि

दोष नै हमर दिअ
किस्मते जड़ल अछि

धार उलटे बहल
नाह नै चलल अछि

बेँग छै साँप छै
दोस्त के बनल अछि

माँटिमे प्राण नै
गाछ नै फड़ल अछि

मोनमे मीत नै
बैर बड भरल अछि

फाइलातुन दू बेर
212-212
बहरे-रमल

अमित मिश्र

गजल



जँ करबै विश्वास भेटत दर्द सगरो
खसल लोकक नेत संगे नेह नजरो

गजल माँगै भाव संगे शब्द हल्लुक
अपन भाषा संग राखू मोन बहरो

सिनेहसँ छै भरल पति-पत्नी जगतमे
मुदा ओतौ होइ छै कखनो कऽ झगड़ो

बरसि जेतै मेघ रौदी भागि जेतै
खसै छै अमृत बहै ठनकाक नहरो

कते मोनक बात मोनेमे रहै छै
हुनक चुप्पी अमित देलक तोड़ि हमरो

मफाईलुन-फाइलातुन-फाइलातुन
1222-2122-2122

बहरे-सरीम

अमित मिश्र



गजल


नैन खोलिकऽ कने देखू ने भवानी
काँट पसरल सगर सोचू ने भवानी

बाट दरबार के माँ देखल तऽ नै अछि
अंगुरी पकड़ि देखाबू ने भवानी

राति कारी बनल दिन तऽ स्याह भेलै
घोर युग समय फरिछाबू ने भवानी

झूठ छल हम कऽ मिझरेलौँ आगि पेटक
आब की करब किछु बाजू ने भवानी

एतऽ नेता पड़ल हिँसा ओतऽ भड़कल
"अमित" थाकल कहै जागू ने भवानी

फाइलातुन-मफाईलुन-फाइलातुन
2122-1222-2122
बहरे-असम

अमित मिश्र

गजल


चुप्प रहलासँ दुनियाँ नीक मानै छै
देख लिअ गाम घर शमसान लागै छै

घैल छै फूटल मुदा छै पानि के चिन्ता
देश तेँए सुखारक हाल जानै छै

आँपरेसन भऽ गेलै छोट सन घावक
चोट जकरा बहुत से हकन कानै छै

मोन मानै कहाँ छै जे अड़ल रहतै
घोषणा मदति के सुनि लोक फानै छै

जाड़ि देलक सभ ज्ञानसँ भरल पोथी
देखियौ "अमित" केहन समय आनै छै

फाइलातुन-मफाईलुन-मफाईलुन
2122-1222-1222
बहरे-मुशाकिल

अमित मिश्र

शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

गजल

सुख भरल संसार चाही
हमर सब अधिकार चाही

धार शोणित संग बहतै
बायुमे टंकार चाही

नै महल गाड़ी नम्हर नै
छोट सन ओहार चाही

नै दहेजक माँग राखब
बस मखानक भार चाही

दैव नै देखै मनुख केँ
भगतकेँ गोहार चाही

चुल्हि अलगे भाइ केलक
माइ के पेटार चाही

नीक कनियाँ संग लुरि बुधि
दोखदर नै सार चाही

फाइलातुन
2122 दू बेर

बहरे रमल

अमित मिश्र

बाल रूबाइ

बाल रूबाइ-1

बौआ कान नै चोरबा आबि जेतै
चन्ना गेलै सूतऽ फेर काल्हि एतै
बौए लेल जागल छै आब तरेगण 
भोरे सूर्यक संग गीत नाद हेतै

बाल रूबाइ-2

बड़का पोखरि पोखरिमे बड माँछ छै
मलहा जालसँ बौआ बंशी लऽ मारै
बड़का माँछ फँसै छै महाजालेमे
बौआ मात्र टेँगरा पोठिये पकड़ै


बाल रूबाइ-3

पोथी पढ़ब इस्कूलमे मोनसँ आइ
खेबै खूब इमली तोड़ि गाछसँ आइ
खेलब साँझमे कबड्डी खूब दौड़ब
ज्ञानक बात सीखब हमहुँ खेलसँ आइ



बाल रूबाइ-4

भोरक नव लाल इजोत छेँ तूँ बुचिया
देशक जीत लेल खेलाड़ी तूँ बौआ
माँ बाबूक लाठी साँस तूँहीँ तऽ छेँ
उड़िया नै मातल हवामे तूँ बेटा


बाल रुबाइ-5

बौआ रे चोरी नै करबाक चाही
सदिखन पैघक बात मानबाक चाही
बुचिया तोहर नाम हेतौ दुनियाँमे
अपनामे कखनो नै लड़बाक चाही



बाल रूबाइ-6

हे गै करिकी गाय गरम दूध दे ने
तोरो दऽ दै छी हरियर जनेर ले ने
देबेँ दूध तऽ दही पेड़ा घी खेबौ
मानेँ मैया नै तऽ उपास भेले ने


बाल रुबाइ-7

पीठपर झोरा और हाथमे बोरा
बौआ चलल इस्कूल लऽ पोथी जोड़ा
कारी सिलेट चारि टा उजरा पेन्सिल
संगी बनि नीक पेन्सिल देतौ तोरा

कर्तव्य निर्वाह


शहरक एक मात्र नामी सरकारी हाँस्पिटलक इमरजेँसी वार्डमे होइत कन्ना-रोहट पूरा प्रांगनकेँ कपाँ रहल छल । अगल-बगलकेँ लोक सेहो जुटि नोराएल नैन लेने ठाढ़ छलैए । 50 वर्षक बूढ़ मरीजकेँ नाँकसँ आँक्सीजनक पाइप बान्हल छलै मुदा साँस बड तेजीसँ उपर-नीच्चा होइत छलै । 14 वर्षक बच्चा दौड़ कऽ डाँक्टर साहेबकेँ कहलक मुदा डाँक्टर साहेब कहलनि ,"नर्सकेँ कहू सुइया लगा दै लेए।"
बच्चा हाँफैत नर्सकेँ  खोजऽ लागल मुदा नर्स नञि भेटलै ओ दोसर वार्डकेँ नर्सकेँ कहलक सुइया लगा दै लेए ,नर्स जबाब देलनि ,"हम एखन ड्यूटीपर नञिछी , किनको दोसरकेँ कहू ।"
बच्चाकेँ आँखिसँ खसैत नोर गालके भीजाबैत उज्जर फर्शपर पसरि रहल छल ।ओ फेर डाँक्टरकेँ जा कऽ कहलक । डाँक्टर साहेब फटकारैत बाजलाह ,"हम डाँक्टरीके डिगरी सुइया भोँकै लेल नञि लेलौँ ।"
बच्चा हतास भेल ओहि मरैत शरीर लग बैसि गेल । साँस आरोह-अवरोह करैत बन्न भऽ गेलै । ओहि 14 वर्षक अनाथके आँखिसँ नोर झहरैत रहल आ एहि ब्रम्हांडक दोसर भगवान अपन कर्तव्य निर्वाह करैत रहलाह ।

अमित मिश्र

बाल गजल


बेलगोबना नहि सुनलक गप्प 
ओकर माथसँ बेल खसल धप्प 

बरखा बुनि ल' क' एलै कारी मेघ 
पएर तर पानि करे छप्प छप्प 

बोगला भेल देखू कतेक चलाक
एके पएरे करे दिन भरि जप्प 

बुढ़िया नानीकेँ दुनू काने हरेलै   
चाह पीबे भरि दिनमे दस कप्प 

बैस 'मनु' झोँटा छटा ले चुपचाप
नै तँ काटि देतौ कान हजमा खप्प 

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१३)     

गजल


सुख भरल संसार चाही
दुखक नै अंबार चाही

मोन सदिखन खूब हरखे 
बमक नै टंकार चाही

भरल घर मिथलाक ज्ञानसँ 
अन्नकेँ भंडार चाही 

डोलि अम्बर फूल बरखे 
भक्तकेँ झंकार चाही  

सभ कियो 'मनु' हँसिक' भेटे 
एहने संसार चाही  
 
बहरे रमल, (२१२२-२१२२)  

मैथिलपुत्र पुरस्कार योजना मास प्रथम (अगस्त २०१२)




बहुत हर्खक गप्प जे मैथिलपुत्र मासिक पुरस्कार योजनाक, प्रथम मासक (अगस्त २०१२) चयन भ' गेल अछि | किशन कारीगर "नादान" जीकेँ हुनक  हास्य कविता  "घोंघाउज आ उपराउंज"  के लेल  चयन कएल गेलैन्हि । हुनका बधाइ।
 किशन कारीगर "नादान" 


घोंघाउज आ उपराउंज

हम अहाँ के गरिअबैत छि
अहाँ हमरा गरिआउ
बेमतलब के करू उपराउंज
धक्कम-धुक्की करू खूम घोघाउंज.

कोने काजे कहाँ अछि
आब ताहि दुआरे त
आरोप-प्रत्यारोप मे ओझराएल रहू
मुक्कम-मुक्की क करू उपराउंज .

श्रेय लेबाक होड़ मचल अछि
अहाँ जूनि पछुआउ
कंट्रोवर्सी मे बनल रहू
फेसबुक पर करू खूम घोघाउंज.

मिथिला-मैथिल के नाम पर
अहाँ अप्पन रोटी सेकू
अपना-अपना चक्कर चालि मे
रंग-विरंगक गोटी फेकू.

अहाँ चक्कर चालि मे
लोक भन्ने ओझराएल अछि
अहाँ फेसबूकिया ग्रुप बनाऊ
अपनों ओझराएल रहू हमरो ओझराऊ.

ई काज हमही शुरू केलौहं
नहि नहि एक्कर श्रे त हमरा अछि
धू जी ई त फेक आई.डी छि
अहाँ माफ़ी किएक नहि मंगैत छी?

बेमतलब के बड़-बड़ बजैत छी
त अहाँ मने की हम चुप्पे रहू?
हम की एक्को रति कम छी
फेसबुक फरिछाऊ मुक्कम-मुक्की करू.

आहि रे बा बड्ड बढियां काज
गारि परहू, लगाऊ कोनो भांज
कोनो स्थाई फरिछौठ नहि करू
सभ मिली करू उपराउंज आ घोंघाउज.
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सोमवार, 3 सितंबर 2012

गजल


दड़ड़िते खेसारी     बखाडी बनेलक
बीच तरहत्थीपर दही ओ जमेलक

बिसरि रौदी दाही   अपन कष्ट सभटा
कर्म पथपर खेतिहर चलि हर चलेलक

केखनो नहि पढ़ि रहल मड़राति सगरो 
राजमंत्री बनि    जीनगी भरी कमेलक

पहिर चश्मा दिन राति जे खूब पढ़लक
घूस दय चपरासी      किरानी कहेलक

देख आगाँ इस्कूलकेँ   घुरि परेए
बनि कवी 'मनु' सभकेँ गजल ओ सुनेलक

(बहरे खफीक, मात्राक्रम- २१२२-२२१२-२१२२)