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बुधवार, 16 मई 2012

की हौऊ तों कमजोर भ गेलह

की हौऊ तों कमजोर भ गेलह 
नांगरी कटा क गाम बिसरलह
अप्पन भाषा आ ठाम बिसरलह
मिथिला के पहिचान बिसरलह
बैमानी पोरी पोर भ गेलह
की ............................................

तिलकोर के पाठ बिसरलह
मिथिला के ठाठ बाट बिसरलह
पेंट शर्ट आ हेट फेट में
धोती कुरता पाग बिसरलह
बिन मुद्दा के शोर भ गेलह
की.....................................
अनका लेल भरी दिन खटई  छः
बाल आ बच्चा किहरी कटयी छः
बाबु छोरी क मोम आ पोप बजय छः
तों सुनी सुनी क खूब नचय छः 
बिन बुझने तूं चोर भ गेलह
की ..........................................
कनिया मनिया जॉब करय छः
अपना पर पेटो नै भरय छः
अपने हाथे करम कुटय छः
बात बात में झगरी परई छः
एहन कोना धकलोल भ गेलह
की ..........................................
गामक शान के कतय नुकेलह
बिन सोचने सब किछ हेरेलह
बाप माय के कोना बिसरी क
अपन "आनंद" में घोर भ गेलह
की हउ.........................आनंद
एही रचना के किओ व्यक्ति अपना जीवन स नहीं जोरी इ मात्र एक टा रचना थीक| एही रचना के रचना कार आनंद झा हम स्वं छी | बिना पूछने एकर उयोग नहीं करी
जय मिथिला जय मैथिलि   

आब हम जबान भ गेलहुँ (हास्य कथा)

आब हम जबान भ गेलहुँ   
              (हास्य कथा)
समाचार पढ़ि के स्टूडियो सँ निकलले रही कि मोबाइलक घंटी बाजल हम धरफरा के फोन उठेलहुँ की ओम्हर सँ अवाज आयल हौ कारीगर आब हम जवान भ गेलहुँ। ई सुनि त हमरा किछु ने फुरा रहल छल मुदा तइयो हम सहास कए के बजलहुँ अहाँ के बाजि रहल छी। ओम्हर सँ फेर अवाज आयल हौ कारीगर एना किएक बताह जेंका बजैत छह अवाजो ने चिन्हैत छहक। कहअ त इहे गप ज कोनो बचिया तोरो फोन कए के कहने रहितह त तोरो मोन धनकुटिया मशिन जेंका धक-धक करितह। मुदा हम कहैत छियह त तों बहन्ना बतियाअैत छह।
              हम बजलहुँ से गप त ठीके मुदा अहाँ के बाजि रहल छी से कहू ने तखने चिन्हब ने कि ओम्हर सँ फेर अवाज आएल हौ बच्चा हम बाबा भोलेनाथ बाजि रहल छी तोरे स भेंट करैए लेल आएल छलहुँ। ई सुनि हम बाबा के प्रणाम कए पुछलियैन यौ बाबा अहाँ कतेए छी। ओ खिसियाअैत बजलाह हौ बच्चा हम यूनिवार्ता लक ठाढ़ भेल छी तोहर आकाशवाणीबला सभ कहलक जे बसहा बरद लए के भीतर नहि जाए देब। तहि दुआरे  हम यूनिवार्ता चलि अएलहुँ अहि ठाम कोनो रोक टोक नहि बसहो बरद मगन स घास खा रहल अछि आ हमहूँ रौद मे बैसल छी। तूं जल्दी आबह देखैत छहक सस्पेन महक चाह उधिया-उधिया कहि रहल अछि जे आब हम जवान भ गेलहु। दुनू गोटे चाहो पीअब आ गपो नाद करब।हम बजलहुँ ठीक छै बाबा अहाँ ओतए रहू हम 5 मिनट मे आबि रहल छी।
बाबा सँ भेंट करबाक लेल हम आकाशवाणी के गेट न0-2 स बाहर निकैलि रोड टपि के पीटीआई बिल्डिंग लक आएले रहि कि फेर फोनक घंटी बाजल। कान मे हेडफोन लगले रहैए बिना नम्बर देखनहियै हम फोन उठेलहुँ कि ओम्हर सँ अवाज आयल यौ किशन बौआ अहाँ कहिया गाम आबि रहल छी आब हम जवान भ गेलहुँ। हम धरफराइत बजलहुँ ग ग गोर लगैत छि काकी। ओम्हर सँ फेर कोनो महिलाक अवाज आयल अई यौ बौआ अहाँ सभ दिन बकलेले रहबैह भौजी के लोक कहूं काकी कहलकैए ओ खिखिया के हँसैत बजलीह अप्पन सप्पत कहैत छी यौ बौआ आब हम जवान भ गेलहुँ। अहाँ त साफे हमरा बिसैर गेलहुँ कहियो मोनो ने पड़ैत छी। ई सुनि त एक बेर फेर हमरा किछु ने फुरा रहल छल मुदा तइओ हम बजलहुँ अहाँ कतए स बाजि रहल छि यै काकी। महिलाक अवाज आयल यौ बौआ हम भराम वाली भाउजी बाजि रहल छी। एक्को रति मोन पड़ल ।हम अपसियाँत भेल हकमैत बजलहुँ ह ह भाउजी मोन पड़ल अच्छा त अहाँ छि भराम वाली। भाउजीक गप सुनि त हँसि स हमरा रहल नहि गेल हा हा क हँसैत हम बजलहुँ अई यै भाउजी अहाँक चिल्का बच्चा नमहर भ गेल आ तइयो अहाँ कहैत छी जे आब हम जवान भ गेलहुँ ठीके मे की मजाक कए रहल छी।
भाउजी खिखिया क हँसैत बजलीह अप्पन सप्पत कहैत छि यौ बौआ अहाँ एक बेर गाम आबि देखू हमरा देखि त बुढ़बो सबहक धोति निचा माथे ससैर जायत छैक। आ तहू स बेसी हाल त मैटिक वला विद्यार्थी सभहक हाल त और बेहाल छैक। टीशन पढै जायत काल हमरे घूरि घूरि क देखैत रहैत छैक आ सबटा सुध बुध बिसैर के धरफड़ा के साइकिलो पर स खसि पड़ैत छैक। सबटा गप कि कहू यौ बौआ गाम-गमाइत जेनिहार अनठिया लोक सभ त मोटरसाइकिल पर सँ ओंघरा पोंघरा के खसि पडैत छैक आ मुँहो कान चिक्कन भए जायत छैक।हम बजलहुँ अई यौ भाउजी भैया नहि किछु कहैत छथि हुनका ने किछु होइत छैन्हि। भाउजी बजलीह धू जी महराज की कहू आनहरो लोक अहाँ भैया स बेसी देखैत हेतै। पामर वला चश्मा मे एक्को रति कि अहाँ भैया के देखाइए। सबटा गप कि कहू अहाँ भैया के हकैम-हकैम के कहैत कहैत हम थाकि गेलहुँ जे आब हम जवान भ गेलहुँ। मुदा तइयो अहाँ भैया के वैहए गउलहे गीत इस्कूल पर सँ गाम आ गाम पर सँ इस्कूल सेहो आखि मुनने जाउ आ आउ। रस्ता पेरा कि सभ भेलै सेहो ने बुझबाक काज। ई गप सुनि त हँसि स हमरा रहल नहि गेल हा हा क हँसैत हम बजलहुँ आहि रे बा एहेन जुलुम त देखल नहि।
हमर गप सुनि भाउजि खूब जोर स खिखिया क हँसैत बजलीह जुलुम की महाजुलुम कहियोअ। ओना अहूँ कि अपना भैया स एक्को रति कम छी। अहाँ त हरदम समाचार बनबै-सुनबै मे बेहाल रहैत छी हमर हाल के पुछैए। आई काल्हि त आनहरो लोक ईशारा स गप बुझि जायत छैक मुदा अहुँक हाल त निछटे आनहर वला अछि ने गबैए जोकर ने सुनैए जोकर। अहाँ स नीक त कोनो अनठिया के कहने रैहतियै जे आब हम जवान भ गेलहुँ त निछोहे पराएल ओ गाम चलि आएल रहितैह मुदा अहाँ त गाम अएबाक नामे नहि लैत छी। हम बजलहुँ भाउजी अहाँ जुनि खिसियाउ अहि बेर नहि त अगिला बेर हम जरूर आएब आ दुनू दिअर भाउज उला ला उ ला ला मदमस्त होरी खेलाएब। एखन हम फोन राखि रहल छी केकरो फोन आबि रहल छैक। भाउजी बजलीह मारे मुँह ध के  अहूँ के मोबाइल हरदम टनटनाइते रहैए भरि मोन गप करब सेहो आफद। जहिना जवान लोक फेनाइते रहैए तहिना अहाक फोन टनटनाइते रहैए बड्ड बढ़िया त राखू।
              भाउजीक फोन डिसकनेक्ट करैते मातर फेर कोनो अनठिया नम्बर सँ फेर फोनक घंटी बाजल अवाज सुनि हमर मोन धकधकाएल जे आब फेर के अछि। हम हेल्लो बजलहुँ कि ओम्हर स अवाज आएल एकटा गप बुझहलियै अहाँ । हम बजलहुँ बिना कहनहिए अपनेमने अन्तरयामी केना बुझि जेबैए ओना कोन एहेन जुलुम भए गेलैए से जल्दीए कहू। कोनो महिलाक अवाज आयल यौ पाहुन हम कोना क कहू हमरा त लाज होइए। हम बजलहुँ अहाँ के लाजो होइए आ उल्टे हमरा पाहुनो कहैत छी। ओम्हर स फेर अवाज आयल चुपु ने अनठिया अनठा-अनठा के बजैत छी जेना अहाँ के बुझहले ने हुएअ ।हम बजलहुँ सत्ते कहैत छी हमरा त एक्को मिसीया ने बुझहल अछि जल्दी कहू। एतबाक मे फेर अवाज आयल अहा कहैत छी त हयैए लियअ सुनू आब हम जवान भ गेलहुँ। एतबाक बाजि ओ हा हा के खूब जोर स हँसैए लगलीह। हुनकर गप सुनि त हँसि स हमरा रहल नहि गेल मुदा तइयो हम बजलहुँ जबान भ गेलहुँ त अपना माए बाप के कहियौअ अहि मे हम कि करू। ओ बजलीह अई यौ बुढ़बा पाहुन अहूँ बरि खान्हे बुझहैत छियैक। कहू त इहो गप केकरो कहैए पड़तैह लोक अपने मने नहि बुझतैह जे घोरि घोरि के कहैए पड़तैह जे आब हम जबान भ गेलहुँ। एतबका बाजि ओ खूब जोर स हाँ हाँ के हसैए लगलीह। ओइ महिलाक हँसि सुनि त बुझहु हमर मोन धनकुटिया मशिन जेंका धक-धक करैए लागल। हकमैत हकमैत अपसियात भेल हम बजलहुँ अईं यै मैडम अहाँ जबान नहि भेलहुँ कि बुढ़ारि मे हमरा जहल टा कराएब। ओ बजलीह अईं यौ पाहुन अहाँ के डर किएक होइए एतेक काल त कोनो अनठिया गाम चलि आएल रहैतैए आ अहाँ के त होरी मे गाम अबैत बड्ड माश्चर्ज लगैए अहाँ होरी खेलाए लेल गाम आएब कि नहि। हम बजलहुँ अहाँक पाहुन से कहिया स त ओ बजलीह अईं यौ  पाहुन हम जवान भेलहु आ हमरा अहा साफे बिसैर गेलहु। हम नीलू बाजि रहल छी एक्को रति मोन पड़ल कि नहि।
  हम बजलहुँ अच्छा त अहाँ छी बड्ड जल्दी जबान भ गेलहुँ। ओ महिला बजलीह त अहाँ मने कि अगिला कोजगरा तक अहाँक बाट तकितहुँ कि अपन जबान भ गेलहुँ। आब बुढ़ लोकक जमाना गेलैए आई काल्हि त जबान लोकक जमाना एलैए बुढ़ारी मे अहाँ भसिया गेलहुँ की। हमरे छोटकी सारि नीलू छलीह। हुनकर एहेन सुनर बचन सुनि त  हम अपना देह मे अपने मने बिट्ठू काटैए लगलहु खुशि सँ मोन मयूर जेंका नाचए लागल। भेल जे सासुरे मे तिलकोरक तरूआ खा रहल छी मुदा फोन दिसि देखि इ भ्रम टूटल जे हम त संसंद मार्ग दिल्ली मे छी आ फोन पर गप कए रहल छी।  हम बजलहुँ यै नीलू ठीक छैक ई बुझहु जे अगिला होरी मे हम एब्बे टा करब एतबाक कहि हम फोन राखि देलियै।
    फोन पर गप करैते करैते हम चाह दोकान लक चलि आएल रहि सेहो नहि बुझहलियै। हमरा देखैत मातर  बाबा बजलाह अईं हौ कारीगर तोहर गप सधलहे नहि देखैत छहक तोरा फेरी मे चाहो ठंढ़ा गेल तहि दुआरे चाहो वला हमरे पर मुँह फुलेने अछि। बाबाक गप सुनि हुनका हम प्रणाम कए पुछलियैन से किएक यौ बाबा। त ओ बजलाह चाहवला के कहब छैक जे अहि दारही वला बाब दुआरे कएक टा न्यू कपल्स माने जबान छौड़ा-छौंड़ी बिना चाह पीने आपिस चलि गेलैह। आब तोंही कहअ त कारीगर छौंड़ा-छौंड़ी त अपना फेरी मे गेल चाह नहि बिकेलै त एहि मे हमर कोन दोष। चाहवला अपने मिथिला के रहैए ओकरा हम कहलियै हौ भाए दू कप चाह बनाबह  बाबा सेहो पिथहिन। हम बाबा के कहलियैन बड्ड दिन बाद अपने दिल्ली अएलहुँ त गाम घरक हाल समाचार कहू। बाबा बजलाह हौ बच्चा जुनि पुछह गाम घरक हाल बुझहक छौंड़ा छौंड़ी अगिया बेताल। हम बजलहुँ से किएक यौ बाबा त ओ बजलाह  हौ बच्चा गामो घर  रहबा जोग नहि रहि गेल। आई काल्हिक छौंड़ा छौंड़ी एकदम निरलज भए गेल एक्को रति लाज धाक नहि रहि गेलैए आब त मंदिरो मे रहब परले काल भए गेल।
हम बजलहुँ से किएक यौ बाबा त ओ बजलाह हौ बच्चा सबटा गप तोरा कि कहियअ आब त छौंड़ा मारेर सभ पूजा करैत काल  उला ला उला ला गबैत अछि एतबाक सुनैते मातर छौंड़ियो सभ कुदि-कुदि के कहतह छुबू ने छुबू हमरा आब हम जवान भ गेलहुँ। कह त के जबान के बुढ़ पुरान से त पूरा गौंआ बुझैत छैक एहि मे हल्ला करबाक कोन काज जे आब हम जबान भ गेलहुँ। देखैत छहक इ गप सुनि त बुढ़बो सबहक धोति निच्चा माथे ससैर जाएत छैक। ई भागेसर पंडा हमरा सुखचेन स नहि रहैए देत। एतबाक मे चाह वला 2 गिलास चाह देलक दुनू गोटे चाह पिबअ लगलहुँ एक घोंट चाह पिनैहे रहि कि हम पुछलियैन भागेसर कि केलक यौ बाबा। ओ बजलाह हौ कारीगर की कहियअ भागेसर पंडा त आब निरलज भ गेल। एतेक दिन ओम नमः शिवाय के जाप करैत छल आब उला ला उला ला गबै मे मगन रहैए हम जे किछु कहैत छियैक हौ भागेसर एना किएक अगिया बेताल भेल छह। त ओ हमरा कहैत अछि यौ बाबा किछु कहू ने हमरा आब हम जबान भ गेलहुँ।
 

मंगलवार, 15 मई 2012

गजल

हम त' छी कनेक नादान ताहि लेल चुप छी
ई जग अछि बेसी सियान ताहि लेल चुप छी

कतेक नुकाएल अन्देख में निर्मम निर्दय
अखनो अछि बड़ हेवान ताहि लेल चुप छी

नित मार काट  खून  खुनामय  होएत  रहै
मांगे अछि  दुष्ट वरदान  ताहि  लेल चुप छी

सभदिन होए अछि गर्भे में बेटी केर हत्या
मुदा बनलि सब अंजान ताहि लेल चुप छी 

जौं कहूना मैर क' बांचल जे बेटी समाज में
दहेज प्रथा लेतेन जान ताहि लेल चुप छी

कहवाक हिम्मत बहुते राखने छैक ''रूबी''
किन्नो भ्रष्ट नै होय सम्मान ताहि लेल चुप छी

--------सरल वार्णिक बहर वर्ण --१७----------
[रूबी झा ]

गजल


हम ढोलक छी सदिखन बजिते  रहलहुँ
नहि सुनलक कियो बात पिबिते रहलहुँ

हमर मोनक बात मोने में रहिगेल बंद
कहब कोना जीबन भरि सोचिते रहलहुँ

जएकर छल आस ओ सभ तँ छोरि देलक
अनचिन्हार सँ ससिनेह भेटिते रहलहुँ

चीरो क' करेजा देखाएब तँ पतियाएत केँ
अपन टूटल करेज केँ जोडिते  रहलहुँ

बुझाएब कोना मोन केँ शराबो भेल महग
आँखि निहारि मनु आब तँ तकिते रहलहुँ

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१७)
जगदानन्द झा 'मनु'

रविवार, 13 मई 2012

गजल

आँचरक छाँव बिसरल नै आब जेतै
अंङुरी छुटल टहलल नै आब जेतै
देखलौँ माँ जखन दर्द वाण सहलेँ
दर्द दोसरक देखल नै आब जेतै
गीत तूँ तूँ गजल आनंदक लहर छेँ
कात सुरसरिक छोड़ल नै आब जेतै
धैर्य के बानगी माँ तूँ एहि जग मे
नेह कैलाश बहकल नै आब जेतै
डाँट तोहर त' देखेलक बाट हमरा
तोर छवि छोड़ि भटकल नै आब जेतै
हमर अपराध हेबे करतै बहुत माँ
रूसलौँ माँ त' चहकल नै आब जेतै
फाइलातुन-मफाईलुन-फाइलातुन
2122-1222-2122
बहरे-असम-
अमित मिश्र

हम मनुख, मनुख छी

अहंकार इश्वर कए भोजन छैक 
मनुख कए प्रविर्ती छैक 
आ दानब कए पोषक छैक 

इश्वर हम भय नहि सकै छी 
दानब बनै कए तैयार नहि छी 
मनुख बनै कए प्रयाश नहि करैत छी 

हम मनुख, मनुख छी 
मनुखता सँ खसलहुँ त दानव छी 
ऊपर भएलहुँ त देबता छी

कोना मदर डे हैप्पी ?


आब केहन जमाना आबि गेल
बर्खमे एक्के दिन
माएकेँ  यादि करै छी,
मदर डेकेँ  नाम पर
माएकेँ याद  करै छी
की हुनक सुखएल घाकेँ 
काठी कए कs जगाबै छी। 

हम बिसैर गेलहुँ
अपन माएकेँ 
मुदा ओ नहि बिसरली,
जाहिखन हुनका भेटलनि 
सुन्दर कार्ड 'हैप्पी मदर डे' लिखल
भेलनि  करेजा तार-तार
नोर टघैर कs
अपन स्पर्शसँ
गालकेँ  छुबैत
हुनक करेजा तक चलि गेल
आ करेजामे बंद
महामाएकेँ  कोंढ़सँ
सोनितमे डुबल शव्द निकलल
आह !
की ई हमर ओहे लाल ?
जेकरा पोसलहुँ खूनसँ
पाललहुँ  अपन दूधसँ
अपने सुतलहुँ भिजलमे
ओकरा  लगेलहुँ करेजसँ। 
आई
चारि बर्खसँ भेटल नहि
रहि रहल अछि परदेश
अपन  कनियाँ सँग
बिसरि गेल बिधवा माएकेँ 
आई अकस्मात माए  यादि  एलैह
ई सुन्दर चिट्ठी (कार्ड) पठेलक
मुदा की लिखल ?
'हैप्पी मदर डे'
नमहर साँस  लैत
हुनक मोन आगू बाजल
जखन मदरे नहि हैप्पी
तँ  कोना मदर डे हैप्पी ?
कोना मदर डे हैप्पी ?
✍🏻जगदानन्द झा 'मनु'

शनिवार, 12 मई 2012

गजल


छुपि-छुपि क' सदिखन कनै छी हम 
घुटि-घुटि क' दिन राति मरै छी हम 

लगन एहन है छै छल नै बुझल  
विरह के आगि में आब जरै छी हम 

छन भरि के दूरी सहलो नै जाइए
छन-छन घुटि-घुटि क' कनै छी हम 

सब त बताह कहैत अछि हमरा 
हुनक ध्यान में रमल रहै छी हम 

जाहि बाट पर चलि प्रियतम गेला 
मनु ओ बाट के निहारि तकै छी हम 

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१४)
जगदानन्द झा 'मनु'   

शुक्रवार, 11 मई 2012

गजल


किछु बात एहन जे कना गेल हमरा
एही दुनिया क रित डरा गेल हमरा

बेटीक बाप त करेज पिटे अछि देखू
हुनक ब्यथा देखि क' बजा गेल हमरा

कतेक निर्दय छैथ बेटा क बाप सब
नै अछि पाई त देखू भगा गेल हमरा

येह उचित थिक धन धान्य भरल छी
किछु पाई ल' किएक नचा गेल हमरा

अखनो चेतु अखनो सुधारू मिथिला के
अछि चिंतित ध्वस्त नै करा गेल हमरा

------सरल वर्णिक बहर वर्ण --१५-------

रूबी झा

गजल


ज' नाराज छी मानि जाऊ
पिया प्रेम बिधि जानि जाऊ 


महिस भेल पारी तरे अछि 
घरक खीरसा सानि जाऊ 


मरल माछ पौरल दही अछि 
हिया हमर  सभ गानि जाऊ 


करीया बडद मुइल परसू
किछो नै कनी कानि जाऊ 


छिटल रोपनी हेत कोना 
घरो घुरि अहाँ जानि जाऊ 


(बहरे-मुतकारिब, 122 -122-122)
जगदानन्द झा 'मनु'   

कविता-मधेश


नित दिन स्वपन देखैत छलहूँ
एक मधेश स्वायत प्रदेश कें
नव प्रभात सं कामना करैत छलहूँ
एक मधेश स्वायत प्रदेश कें
नहि जानि कोन बज्रपात गिरल
सपनाक शीशमहल ढहल
सहिद्क शोणित सं
बाग़ में छल एकटा फुल खिलल
छन में फुल मौलाएल
सुबास नहि भेट सकल
टुकरा टुकरा शीशा चुनी
कोना महल बनाएब
मौलाएल फुल सं
कोना घर आँगन गमकाएब

नित दिन स्वपन देखैत छलहूँ
एक मधेश स्वायत प्रदेश कें
नव प्रभात सं कामना करैत छलहूँ
एक मधेश स्वायत प्रदेश कें
वीर सहिदक आहुति सं
छल आशा केर दीप जरल
नीरस भेलहु जखन
स्वार्थक बयार सं दीप मिझल
नित दिन स्वपन देखैत छलहूँ
एक मधेश स्वायत प्रदेश कें
नव प्रभात सं कामना करैत छलहूँ
एक मधेश स्वायत प्रदेश कें

रंग विरंगक फुल के
हम सब छलहूँ एकैटा माला
स्वार्थक बाट में टुटल माला
काटल गेल मधेश माए केर गाला
मैटुगर बनी गेलहुं हम
मधेश माए पिविगेल्ही हाला
नित दिन स्वपन देखैत छलहूँ
एक मधेश स्वायत प्रदेश कें
नव प्रभात सं कामना करैत छलहूँ
एक मधेश स्वायत प्रदेश कें

बन्ह्की पडल माए छलहीन
सिस्कैत हुनक ठोर
बैसल छलन्हि आशा में
कहियो तं हेतइए भोर
षड्यंत्र नामक खंजर ल क
एलई अमावस कठोर
नव प्रभात देख नै पैलन्ही नहि भेलै भोर
नित दिन स्वपन देखैत छलहूँ
एक मधेश स्वायत प्रदेश कें
नव प्रभात सं कामना करैत छलहूँ
एक मधेश स्वायत प्रदेश कें

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गुरुवार, 10 मई 2012

गजल

काइल्ह सौं काग क्रूरे भीतक कगनी पर
आशो निराश भ'बैसल हुनक करनी पर

करिया काग देखि सोचीक लगेये डॉर
अनहोनी नै भ' जाय कागक कथनी पर

झहरे नोर झर- झर अछि किछु फुरै नै
जा क' क्यो त' सगुन ऊचारहू कहनी पर

बरखो बितल लागेय हुनकर एनाई
बताहि छी आयेल छला धनरोपनी पर

आई जौं कागा कहब अहाँ हुनक उदेश
सोना मेरहायेब लोल अहाँ बजनी पर

सरल वार्णिक बहर वर्ण --१६
(रूबी झा )

बाल-गजल

हे रौ गुलेटेनमा  सुन रौ टुनटुनमा एलै छुट्टी गर्मी  क'
चल इस्कूल क' कहिये हम टाटा आब भेलै छुट्टी गर्मी क'

अन्हर बताश में खूब हम घुमब गाछी जा आमो चुनब
पाकल आमक रस निचोरब आई चढ़लै छुट्टी गर्मी क'

मेघ बुन्नी में खूब नहायेब माई क' हम बातो नै मानब
हत्ता-खत्ता में चल मान्छ जा' क' मारब बढ़लै छुट्टी गर्मी क'

हाट बजार में त' बाबु संग जेबै लेमंचुस बिस्कुट खेबै
मेला में जा' क' हम झुला झुलब कम बचलै छुट्टी गर्मी क'

इस्कूल क' गृहकार्य बांचल अछि रत्तियो नै त' वक्त छैक
अछि मोन विधुआयेल किये ख़तम भ' गेलै छुट्टी गर्मी क'

(सरल वार्णिक बहर वर्ण -२२)

रूबी झा

कलाकन्द भऽ गेलहुँ (बाल-गीत)

धिया-पुता देखिकय आनन्द भऽ गेलहुँ
लड्डू नहि जिलेबी कलाकन्द भऽ गेलहुँ

केहेन सहज मुख पर मुस्कान छै
छन मे झगड़ा छनहि मिलान छै
तीरथ बेरागन  व्यर्थ करय छी 

सद्यः धिया-पुता सोझाँ भगवान छै
हँसी खुशी देखिकय बुलन्द भऽ गेलहुँ
लड्डू नहि जिलेबी कलाकन्द भऽ गेलहुँ

बनि कियो इन्जन रेल चलाबय
कियो फूँक मारय पीपही
बजाबय
बिनु पैसा के हँसि हँसि घूमय
छन कलकत्ता दिल्ली पहुँचाबय
लागय बच्चा सँगे जुगलबन्द भऽ गेलहुँ
लड्डू नहि जिलेबी कलाकन्द भऽ गेलहुँ

कियो जोर खसलय कियो जोर हँसलय
कियो ठेलि देलकय कहुना
सम्हरलय
देखलहुँ निश्छल रूप मनोहर
सुमन अपन सब कष्ट बिसरलय
मोन साफ भेल शकरकन्द भऽ गेलहुँ
लड्डू नहि जिलेबी कलाकन्द भऽ गेलहुँ

बुधवार, 9 मई 2012

हे मिथिला तूं कानय नै

हे मिथिला तूं कानय नै
जानय छी तोरा बड़ दुःख होई छौ
लेकिन नोर खासबय नै
हे मिथिला ...........................
हमहूँ तोहर कर्जदार छी
अपने कर्मे शर्मसार छी
भागी गेल छी गाम छोरी क
एबऊ तूं घबराबई नै
हे मिथिला.......................
याद अबैये खेत पथार
एतय बनल छी हम लाचार
पेट के खातिर भटैक रहल हम
लग किओ बैसाबई नै
हे मिथिला तूं .....................
तू त में छे दुःख के बुझ्बें
अप्पन कस्ट के तू नै कहबे
जनई छी तोहर ममता गे में
मिथिला में फेर बजाबई ने
हे मिथिला तूं कानय नै 


रचनाकार -आनंद झा ....