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शनिवार, 14 अप्रैल 2012

प्रश्न

प्रेम कएल जाई य की भ जाई य ?
कएल जाई य त ओ कियै नहिं केलेथि ?
जौं भ जाई य त हुनका कियै नहिं भेलेनि ?
की हमर प्रेम सच छल की झूठ ?
जौं सच छल त हुनका कियैक नहिं मलाल भेल ?
जौं झूठ छल त हमर कियैक एहेन हाल भेल ?
डर छल जमाना क की हुनका प्रेम नहिं छल ?
जमाना सॅ डर छल ई उचित नहिं ?
निश्छल प्रेम के ठुकरा देलेथि अनुचित नहिं ?
दोख किनका दई छी एको बेर नहिं सोचलहुँ ?
दिल म रहि के दिल के नहिं बुझलहुँ ?
हमरा लागेति अछि आशिक अहाँ पागल छी
एना जुनि कहू मीत सौं बिछुड़ल अभागल छी

गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

बाल-गजल

प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक बाल- गजल--

रुसिये गेल बौआ मनाएब कोना कए
निर्धन माय बौआ बुझाएब कोना कए

ठाढ भेल कटोरी भरि माँगय छै दूध
चिक्कस के झोर ले बजाएब कोना कए

एहन किए निर्धन बनाओल विधाता
दूधो नहि जूडय जुड़ायब कोना कए

देलक जे जन्म पुराओत सैह विधाता
लाज हुए अनका बताएब कोना कए

मानि जाउ बाबू अहाँ छी बड्ड बुधियार
छूछ माय जिद्द के पुराएब कोना कए

(वर्ण १५)

रुबी झा

बाल-गजल

प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक बाल-गजल--

चलय ठुमकि बौआ कते सोहावन लागय छै
बाजय बौआ तोतल माँ मनभावन लागय छै

दादी केर आँचर तर जाए नुकाय गेल बौआ
खेलै चोरीया नुकैया मोन भुलावन लागय छै

दादी केर पनबसन सँ बौआ खाय लेल पान
ठोर लाल पिक दाढी पर लुभावन लागय छै

उल्टे खराम बाबा केर एना पहिर लेल बौआ
खसय खन उठय जिया जुरावन लागय छै

जिद्द ठानलैन बौआ लेब देवी आगुक मिसरी
डटलैन माँ फुसीये नोर बहावन लागय छै

--वर्ण १८--

--रुबी झा

बुधवार, 11 अप्रैल 2012

गजल

प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक गजल

कहल जनम के संग अछि अपन दिन चारियो जौँ संग रहितौ त' बुझितौं
जनै छलौँ अहाँ नहि चलब उमर भरि बाँहि ध कनियो चलितौँ बुझितौं

जिनगी के रौद मे छौड़ि गेलौँ असगर संग मे जौ अहुँ जड़ितहु त' बुझितौं
पीलौँ त' अमृत एकहि संगे माहुरो जँ एकबेर संगे पिबितहु त' बुझितौं

देखल अहाँ चकमक इजोरिया रैन करिया जौँ अहूँ कटितहु त' बुझितौं
सूतल फुल सजाओल सेज कहियो कांटक पथ पर चलितहु त' बुझितौं

भटकैत छी अहाँ लेल सगरो वेकल कतौ जौँ भेटियौ अहाँ जेतौँ त' बुझितौं
गरजैत छि नित बनि घटा करिया बरखा बुनी बनि बरसितौ त बुझितौं

हँसलौँ संगे खिलखिला दुहु आँखि नोरहु जँ संगहि बहबितहु त' बुझितौं
प्रेमक मोल अहाँ बुझलहु नहि कहियो "रूबी" के बात जँ मानितौँ त' बुझितौं

(वर्ण २९)

रूबी झा

रूबी झाजिक गजल

प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक गजल ---

बात जँ मोनक एकै दिन मेँ बता दैतौ तँ नीक छल
सताबै छी पल मे एकै बेर सतालैतौ तँ नीक छल

तीर अहाँक आँखि के गरैत रहय अछि सदिखन
एकै बेर मेँ बाण जँ करेज धसा दैतौ तँ नीक छल

हमर मोन उबडुबा रहल अछि अथाह सागर मेँ
अहाँ चितवन के सागर मेँ डुबा लैतौ तँ नीक छल

अहाँ त नित स्वप्न मेँ आबि- आबि सतबय छी हमरा
अपनो सपना मेँ कहियो जँ बजा लैतौ तँ नीक छल

परोछ मे सदिखन देखबय छी अद्भुत प्रेमलीला
प्रत्यक्ष मेँ आबि जँ करेजा सँ सटालैतौ तँ नीक छल

रुबी अहाँक कते कहती तोरि तोरि गाथा विरह के
दरस देब अहाँ कहिया जँ बता दैतौ तँ नीक छल

( वर्ण २०) रुबी झा

बाल-गजल

मएगै हमर फुकना की भेल
दाई हमर झुनझुना की भेल

बाबा कें कहबैन सब हरेलौं
सबटा हमर खिलौना की भेल

दूध-भात आब हम नहि खेबौ
पेटमुका हमर सन्ना की भेल

हम जे बुललौं बाबा-बाबी संगे
रातिक हमर सपना की भेल

चंदामामा कईल्ह जे अनलैंह
हमर निकहा चुसना की भेल
(वर्ण-१२)
जगदानन्द झा "मनु'

आठलाखक कार



कलुआही जयनगर राजमार्ग, बरखाक समय, पिचक काते-कात खधिया सभमे पानि भड़ल | दीनानाथजी आ हुनक जिगरी दोस्त रामखेलाबनजी, दुनू गोटा अपन-अपन साईकिलपर उज्जर चमचमाईत धोती-कूर्ता पहिर, पान खाइत, मौसमकेँ आनन्द लैत बतियाइत चलि  जाइत रहथि | कि पाछुसँ एकटा नव चमचमाईत बड्डका एसी बुलेरो कार दीनानाथजीकेँ  उज्जर धोती-कूर्तापर थाल-पानि उड़बैत दनदनाईत आगू निकैल गेलन्हि |
दुनू दोस्तक साईकिल एका-एक रुकल | रामखेलाबनजी हल्ला करैत कारबलाकेँ  गरिएनाइ शुरू केलन्हि |
दीनानाथजी,  "रहए दियौ दोस्त किएक अपन मुँह खराप करै छी, एसी कारमे बंद ओ  कि सुनत, भागि गेल | ओनाहो ओ आठ लाखक कारपर चलैत अछि, हम आठ सएकेँ  साईकिलपर छी तँ  पानि- थालक छीत्ता तँ हमरे परत |"

मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट


रिमझिम सावन बरसलै मोर अंगना

देखू सखी अंगना चलीएलै मोर सजना


अंगना में नाचाब हम खनका के कंगना
जन्म जन्मक पियास मेटलै मोर सजना


देखलौ मधुमास हम मनोरम सपना
अहाँ विनु करेज धरकलै मोर सजना


बैशाख जेठक अग्न सँ जरल छल मोन
अंग अंग में जलन उठलै मोर सजना


अहाँक छुवन सँ दिल में उठल जलन
मिलन लेल दिल तरसलै मोर सजना
वर्ण:-१६
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

संबाद@:-प्रभात राय भट्ट

                   संबाद !!

काका:- सुन रे बौआ  देशक हाल बड बेहाल छै 
             जनता के लुईट लुईट चोर नेता सभ नेहाल छै 


भतीजा:- सुन हो काका गामक छौरा सभ भSगेलैय चोर डाका 
               लुईट लुईट आनक धन ताडिखाना में उड़बैय छै टाका


काका:- कह रे बौआ पैढ़लिख तोहूँ आब करबे की ?
            भेटतहूँ  नहि कतहु नोकरी चाकरी कह तोहूँ आब करबे की ?


भतीजा:- पैढ़लिख हम नेता बनब काका करब देशक सेवा 
               भूख गरीबी दूर भगा करब हम जनसेवा 


काका:- देश डुबल छै कर्जा में बौआ नेता सभक खर्चा में 
            भ्रष्टाचारी नेता सभक नाम छपल छै अख़बार पर्चा में 


भतीजा:- भ्रष्टाचारी  नेता सभ कें मुह कारिख पोती गदहा चढ़ाऊ
               राजनीती में कुशल सक्षम युवा सभ के आगू बढ़ाऊ


काका:- जे जोगी एलई काने छेदेने नै छै ककरो ईमान रौ
            कायर गद्दार नेता सभ बेच  देलकैय स्वाभिमान रौ 


भतीजा:- क्रांतिकारी युगांतकारी युवा नेता में दियौ मतदान यौ
               सुख समृद्धवान  देश बनत ,बनत सभ कें अपन पहिचान यौ 
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट 

सोमवार, 9 अप्रैल 2012

गजल

मोन कियै सिंहासन पर
घर मे आफत राशन पर

काज करय मे दाँती लागय
तामस झाड़ी बासन पर

लाज करू जे पाहुन जेकाँ
खाय छी कोना आसन पर

खोज-खबर नहि धिया-पुता के
बात सुनाबी शासन पर

बिना कमेने किछु नहि भेटत
जीयब खाली भाषण पर

कहू सोचिकय कहिया सुधरब
जखन उमरि निर्वासन पर

सुमन समय पर काज करू
आ सोचू निज अनुशासन पर

विहनि कथा-नव अंशु

विहनि कथा-नव अंशु
प्रभात बाबू माँजल संगीतकार-गायक आ शिवाजीनगर काँलेजक संगीत विभागक प्रधान प्रोफेसर छलखिन ।एक बेर पटना सँ प्रोग्राम क' ट्रेन सँ गाम आबैत छलाह ।भरि रातिक झमारल तेँए आँखि बंद केने सुतबाक अथक कोशिश केलनि मुदा हो-हल्ला सँ नीन कोसोँ दूर भागि गेल ।तखने एकटा नारी कंठ कोलाहल के चिरैत हुनक कान के स्पर्श केलकै ,आरोह-अवरोह के फूल सँ सजल सप्त-सुरी माला मे गजबे आकर्षण छलै । प्रभात बाबू आँखि खोलि चारू कात हियासलाह मुदा केउ देखाइ नै देलकै ,मुदा आभास भेलै जे ओ कोकिल-कंठ लग आबि रहल छै ।कने कालक बाद लागलेन जे ओ बगल मे आबि गेल छै ,आंखि खोललनि त' नीच्चा 10-12 वर्षक बच्ची झारू लेने फर्श साफ करैत आ लोक सब के एक टकिया दैत देखलनि ।प्रभात बाबू ओकरा लग बजा नाम-पता पुछलनि ,हुनका बूझहा गेलै जे ओहि अनाथ मे शारदा बसल छथिन ।ओकरा अपना संग चलबाक लेल आ नीक स्कुल मे नाम लिखा देबाक बात कहलनि , ओ तैयार भ' गेल ।अपना लग बैसा प्रभात बाबू गीत सुनैत रहलखिन ,ओकर हर-एक स्वर संग दुनूक दिल सँ निकलैत नव किरण आँखिक बाटे निकलि सगरो संसार के प्रकाशित क' रहल छल ।आशक नव अंशु पिछला जीवनक अन्हार के इजोर क' देने छल ।
अमित मिश्र

अपन महिष कुरहैरिये नाथब हम्मर अपने ताल

धरती के आकास कहब , आ अकास के पाताल
अपन महिष कुरहैरिये नाथब हम्मर अपने ताल
धरती .......................................................
चिबा चिबा क बात बजई छी, मिथिला हम्मर गाम
टांग घिचय में माहिर छी, बस हम्मर अतबे काम
तोरब दिल के सदिखन सबहक, पुइछी पुइछी क हाल
अपन महिष ......................................
आदि काल स लोक कहई ये , छी हम बड़ विद्वान
झूठक खेती खूब कराइ छी, झूठे के अभिमान 
दोसर के बुरबक बुझई छी, क के हाल बेहाल
अपन महिष .......................................
इक्कर गलती ओक्कर गलती, गलती टा हम तकाई 
एकरा उलहन ओकरा उलहन, जत्तेक हम सकई छी
भेटत फेर "आनंद" कोना क बनब अगर कंगाल
अपन महिष ....................................................

गजल


मन होइए हम मरि जाइ
बस पाञ्च काठी परि जाइ

छै झूठ में सदिखन रमल
दुनिआ तs ओ सब गडि जाइ

नै घुस बिना जतए काज
ओ सगर सासन जरि जाइ

एको सडल पोखरि में जँ
सब माछ ओकर सडि जाइ

कुल जाहि में एको भक्त
ओ सगर कुल मनु तरि जाइ

(बहरे-मुन्सरक, SSIS+SSSI)
***जगदानन्द झा 'मनु'

गजल

प्रस्तुत अच्छी रूबी झाजिक गजल, हुनक अनुरोध पर --

सिहकल जखन पुरबा बसात अहाँ अयलहु किये नहि
मोन उपवन गमकल सूवास अहाँ अयलहु किये नहि

चिहुकि उठि जगलहु आध-पहर राति सपन हेरायल
आँखि खुजितहि टुटिगेल भरोस अहाँ अयलहु किये नहि

चेतना हमर प्रियतम फेर किएक देलहु अहाँ बौराय
बेकल उताहुल भेलहु हताश अहाँ अयलहु किये नहि

नम्र-निवेदन हम करइत छी अहाँ सँ प्रियतम हमर
गेलहु कतय नुकाय जगा आस अहाँ अयलहु किये नहि

भेल आतुर मोन रूबी केर निरखि-निरखि सुरत अहाँके
फागुन-चैत बित गेल मधुमास अहाँ अयलहु किये नहि

रुबी झा

रविवार, 8 अप्रैल 2012

नाटक:"जागु"
दृश्य:पाँचम
समय:दुपहरिया
(लाल काकी आँगन में धान फटकैत )

(विष्णुदेवक प्रवेश )

विष्णुदेव: गोड़ लागे छी  लाल काकी !

लाल काकी: के..? विष्णुदेव ! आऊ, खूब निकें रहू ।

विष्णुदेव: लाल काकी ! बुझि परैया--एहि बेर धान खूब उपजलाए ?

लाल काकी : हाँ , सब भगवतिक कृपा ! जँ एहि तरहे अन्न-पानि उपजाए , त' मिथिलावाशी कें अपन गाम-घर छोइड़ भदेस नै जाए पड़तैं ।

(प्लेट में एक गिलास आ एक कप चाय  ल' गीताक प्रवेश , गीता दुनु गोटे के चाय द' दुनु गोटे के पाएर छू प्रणाम करैत )

विष्णुदेव: खूब निकें रहू ! पढू-लिखू  यसस्वी बनूँ ! अपन गीता नाम के चरितार्थ करू ।

गीता: से कोना होएत कका ?

विष्णुदेव:...किएक ? अहाँ  स्कूल नै जाइत छी की ?

गीता:...नै !
 लाल काकी: (बीचे में )...आब स्कूल जा' क' की करतै ! बेटी के बेसी पढ़ेनाहि ठीक नै , चिट्ठी-पुर्जी लिखनाई-पढ़नाई आबि गेलहि , बड्ड भेलहि ..

विष्णुदेव:...काकी !! पढाई त' सब लेल अनिवार्य थिक, चाहे ओ बेटी होइथ वा बेटा । आओर , खास क' बेटी कें त' बेसी  पढबाक चाही , कारण, बेटीए त' माए बनैया । माए परिवारक ध्रुव केंद्र होइत छथि । हुनक संस्कार आ शिक्षाक प्रभाव सीधा -सीधा धिया-पुता आ समाज पर परैत अछि ।

लाल काकी:..सें त' बुझलौं ! मुदा, बेसी पढि-लिख लेला सँ विआहक समस्या उत्पन्न भ' जाइत  अछि ! बेसी पढ़त त' बेसी पढ़ल जमाए चाही । बेसी पढ़ल जमाए ताकू त' बेसी दहेज़ --कहाँ  सँ पा'र लागत ?...एक त' पढ़ाइक खर्च , ऊपर सँ दहेजक बोझ , बेटी वाला त' धइस जाइत अछि ।

गीता :....कका ! की बेटी एतेक अभागिन होइत अछि ? ... जकर जन्म लइते माए- बाप दिन-राइत चिंतित रहे लगैत छथि ! बेटीक जन्मइते माए-बाप  "वर" ताकअ लगैत छथि ! आओर ओकर हिस्साक कॉपी-किताबक टका विआह हेतु जमा होबअ लगैत अछि !....कका ! की मात्र दहेजक डर सँ बेटी कें अपन अधिकार सँ वंचित काएल जाइत अछि वा पुरुष प्रधान समाज कें ई डर होइत छन्हि ----जँ नारी बेसी ज्ञानी भ' जेती त' हुनका सँ आगू नै भ' जाए ......???

विष्णुदेव:..नै बेटी , नै ! बेटी अभागिन नै सौभागिन होइत छथि ! बेटी त' दुर्गा , सरस्वती आ लक्ष्मी रूप छथि ! नारी त' पत्नी रूप में दुर्गा अर्थात "शक्तिदात्री ", माए रूप में सरस्वती  अर्थात "ज्ञानदात्री" आ बेटी रूप में लक्ष्मी अर्थात सुखदात्री छथि । हमर शास्त्र में त' नारी कें उच्च स्थान देल गेल अछि , जेना ----
     "यत्र नारी पूज्यन्ते , तत्र लक्ष्मी रमन्ते "
    " या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण सवंस्थिता ।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै  नमो: नम: ।।"---आदि -आदि ...
 ई जें समाज में उहा-पोह आ दहेजक प्रकोप देख रहल छी , एकर एकटा मात्र कारण  थिक --'मिथ्या प्रदर्शन ' ! एक-दोसर कें नीच देखेबाक होड़ आओर बेसी-स-बेसी दोसरक सम्पति हड़पबाक लोभ ।

गीता: कका ! त' की हम पढि-लिख नै सकैत छी ? की डॉक्टर बनि समाजक सेवा करबाक हमर सपना पूर्ण नै भ' सकैत अछि ? की हमर आकांक्षा के दहेजक बलि चढअ परतै ?

विष्णुदेव: (गीता सँ )...बेटी , अहाँ जुनि निराश हौ ! अहाँ पढ़ब आ जरुर पढ़ब ! हम सब मिल अहाँ कें जरुर डॉक्टर बनाएब । होनहार पूत केकरो एक कें नै बल्कि समाजक पूत होइत अछि । (लाल काकी सँ )... लाल काकी , ई त' कोनो जरुरी नै जे जँ बेटी डॉक्टर छथि त' "वर" डॉक्टर आ इंजिनियर हौक ! जँ बेटी स्वंम  आत्मनिर्भर छथि त' कोनो नीक संस्कारी आ पढ़ल-लिखल लड़का सँ विआह करबा सकैत छी । अपन सबहक नजरिया के बदले परत, तहने ई समाज आगू बढ़ी सकैत अछि । ... काहिल सँ गीता कें स्कूल जाए दिऔ । पढि-लिख क' अहाँक संग सम्पूर्ण समाज कें नाम रौशन करत । अच्छा आब हम चलैत छी ।(प्रस्थान)
   दृश्य:तेसरक समाप्ति