मैथिलीपुत्र ब्लॉग पर अपनेक स्वागत अछि। मैथिलीपुत्र ब्लॉग मैथिली साहित्य आ भाषा लेल समर्पित अछि। अपन कोनो तरहक रचना / सुझाव jagdanandjha@gmail.com पर पठा सकैत छी। कृपया एहि ब्लॉगकेँ subscribe/ फ़ॉलो करब नहि बिसरब, जाहिसँ नव पोस्ट होएबाक जानकारी अपने लोकनिकेँ भेटैत रहत।

मंगलवार, 15 मई 2012

गजल


हम ढोलक छी सदिखन बजिते  रहलहुँ
नहि सुनलक कियो बात पिबिते रहलहुँ

हमर मोनक बात मोने में रहिगेल बंद
कहब कोना जीबन भरि सोचिते रहलहुँ

जएकर छल आस ओ सभ तँ छोरि देलक
अनचिन्हार सँ ससिनेह भेटिते रहलहुँ

चीरो क' करेजा देखाएब तँ पतियाएत केँ
अपन टूटल करेज केँ जोडिते  रहलहुँ

बुझाएब कोना मोन केँ शराबो भेल महग
आँखि निहारि मनु आब तँ तकिते रहलहुँ

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१७)
जगदानन्द झा 'मनु'

रविवार, 13 मई 2012

गजल

आँचरक छाँव बिसरल नै आब जेतै
अंङुरी छुटल टहलल नै आब जेतै
देखलौँ माँ जखन दर्द वाण सहलेँ
दर्द दोसरक देखल नै आब जेतै
गीत तूँ तूँ गजल आनंदक लहर छेँ
कात सुरसरिक छोड़ल नै आब जेतै
धैर्य के बानगी माँ तूँ एहि जग मे
नेह कैलाश बहकल नै आब जेतै
डाँट तोहर त' देखेलक बाट हमरा
तोर छवि छोड़ि भटकल नै आब जेतै
हमर अपराध हेबे करतै बहुत माँ
रूसलौँ माँ त' चहकल नै आब जेतै
फाइलातुन-मफाईलुन-फाइलातुन
2122-1222-2122
बहरे-असम-
अमित मिश्र

हम मनुख, मनुख छी

अहंकार इश्वर कए भोजन छैक 
मनुख कए प्रविर्ती छैक 
आ दानब कए पोषक छैक 

इश्वर हम भय नहि सकै छी 
दानब बनै कए तैयार नहि छी 
मनुख बनै कए प्रयाश नहि करैत छी 

हम मनुख, मनुख छी 
मनुखता सँ खसलहुँ त दानव छी 
ऊपर भएलहुँ त देबता छी

कोना मदर डे हैप्पी ?


आब केहन जमाना आबि गेल
बर्खमे एक्के दिन
माएकेँ  यादि करै छी,
मदर डेकेँ  नाम पर
माएकेँ याद  करै छी
की हुनक सुखएल घाकेँ 
काठी कए कs जगाबै छी। 

हम बिसैर गेलहुँ
अपन माएकेँ 
मुदा ओ नहि बिसरली,
जाहिखन हुनका भेटलनि 
सुन्दर कार्ड 'हैप्पी मदर डे' लिखल
भेलनि  करेजा तार-तार
नोर टघैर कs
अपन स्पर्शसँ
गालकेँ  छुबैत
हुनक करेजा तक चलि गेल
आ करेजामे बंद
महामाएकेँ  कोंढ़सँ
सोनितमे डुबल शव्द निकलल
आह !
की ई हमर ओहे लाल ?
जेकरा पोसलहुँ खूनसँ
पाललहुँ  अपन दूधसँ
अपने सुतलहुँ भिजलमे
ओकरा  लगेलहुँ करेजसँ। 
आई
चारि बर्खसँ भेटल नहि
रहि रहल अछि परदेश
अपन  कनियाँ सँग
बिसरि गेल बिधवा माएकेँ 
आई अकस्मात माए  यादि  एलैह
ई सुन्दर चिट्ठी (कार्ड) पठेलक
मुदा की लिखल ?
'हैप्पी मदर डे'
नमहर साँस  लैत
हुनक मोन आगू बाजल
जखन मदरे नहि हैप्पी
तँ  कोना मदर डे हैप्पी ?
कोना मदर डे हैप्पी ?
✍🏻जगदानन्द झा 'मनु'

शनिवार, 12 मई 2012

गजल


छुपि-छुपि क' सदिखन कनै छी हम 
घुटि-घुटि क' दिन राति मरै छी हम 

लगन एहन है छै छल नै बुझल  
विरह के आगि में आब जरै छी हम 

छन भरि के दूरी सहलो नै जाइए
छन-छन घुटि-घुटि क' कनै छी हम 

सब त बताह कहैत अछि हमरा 
हुनक ध्यान में रमल रहै छी हम 

जाहि बाट पर चलि प्रियतम गेला 
मनु ओ बाट के निहारि तकै छी हम 

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१४)
जगदानन्द झा 'मनु'   

शुक्रवार, 11 मई 2012

गजल


किछु बात एहन जे कना गेल हमरा
एही दुनिया क रित डरा गेल हमरा

बेटीक बाप त करेज पिटे अछि देखू
हुनक ब्यथा देखि क' बजा गेल हमरा

कतेक निर्दय छैथ बेटा क बाप सब
नै अछि पाई त देखू भगा गेल हमरा

येह उचित थिक धन धान्य भरल छी
किछु पाई ल' किएक नचा गेल हमरा

अखनो चेतु अखनो सुधारू मिथिला के
अछि चिंतित ध्वस्त नै करा गेल हमरा

------सरल वर्णिक बहर वर्ण --१५-------

रूबी झा

गजल


ज' नाराज छी मानि जाऊ
पिया प्रेम बिधि जानि जाऊ 


महिस भेल पारी तरे अछि 
घरक खीरसा सानि जाऊ 


मरल माछ पौरल दही अछि 
हिया हमर  सभ गानि जाऊ 


करीया बडद मुइल परसू
किछो नै कनी कानि जाऊ 


छिटल रोपनी हेत कोना 
घरो घुरि अहाँ जानि जाऊ 


(बहरे-मुतकारिब, 122 -122-122)
जगदानन्द झा 'मनु'   

कविता-मधेश


नित दिन स्वपन देखैत छलहूँ
एक मधेश स्वायत प्रदेश कें
नव प्रभात सं कामना करैत छलहूँ
एक मधेश स्वायत प्रदेश कें
नहि जानि कोन बज्रपात गिरल
सपनाक शीशमहल ढहल
सहिद्क शोणित सं
बाग़ में छल एकटा फुल खिलल
छन में फुल मौलाएल
सुबास नहि भेट सकल
टुकरा टुकरा शीशा चुनी
कोना महल बनाएब
मौलाएल फुल सं
कोना घर आँगन गमकाएब

नित दिन स्वपन देखैत छलहूँ
एक मधेश स्वायत प्रदेश कें
नव प्रभात सं कामना करैत छलहूँ
एक मधेश स्वायत प्रदेश कें
वीर सहिदक आहुति सं
छल आशा केर दीप जरल
नीरस भेलहु जखन
स्वार्थक बयार सं दीप मिझल
नित दिन स्वपन देखैत छलहूँ
एक मधेश स्वायत प्रदेश कें
नव प्रभात सं कामना करैत छलहूँ
एक मधेश स्वायत प्रदेश कें

रंग विरंगक फुल के
हम सब छलहूँ एकैटा माला
स्वार्थक बाट में टुटल माला
काटल गेल मधेश माए केर गाला
मैटुगर बनी गेलहुं हम
मधेश माए पिविगेल्ही हाला
नित दिन स्वपन देखैत छलहूँ
एक मधेश स्वायत प्रदेश कें
नव प्रभात सं कामना करैत छलहूँ
एक मधेश स्वायत प्रदेश कें

बन्ह्की पडल माए छलहीन
सिस्कैत हुनक ठोर
बैसल छलन्हि आशा में
कहियो तं हेतइए भोर
षड्यंत्र नामक खंजर ल क
एलई अमावस कठोर
नव प्रभात देख नै पैलन्ही नहि भेलै भोर
नित दिन स्वपन देखैत छलहूँ
एक मधेश स्वायत प्रदेश कें
नव प्रभात सं कामना करैत छलहूँ
एक मधेश स्वायत प्रदेश कें

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गुरुवार, 10 मई 2012

गजल

काइल्ह सौं काग क्रूरे भीतक कगनी पर
आशो निराश भ'बैसल हुनक करनी पर

करिया काग देखि सोचीक लगेये डॉर
अनहोनी नै भ' जाय कागक कथनी पर

झहरे नोर झर- झर अछि किछु फुरै नै
जा क' क्यो त' सगुन ऊचारहू कहनी पर

बरखो बितल लागेय हुनकर एनाई
बताहि छी आयेल छला धनरोपनी पर

आई जौं कागा कहब अहाँ हुनक उदेश
सोना मेरहायेब लोल अहाँ बजनी पर

सरल वार्णिक बहर वर्ण --१६
(रूबी झा )

बाल-गजल

हे रौ गुलेटेनमा  सुन रौ टुनटुनमा एलै छुट्टी गर्मी  क'
चल इस्कूल क' कहिये हम टाटा आब भेलै छुट्टी गर्मी क'

अन्हर बताश में खूब हम घुमब गाछी जा आमो चुनब
पाकल आमक रस निचोरब आई चढ़लै छुट्टी गर्मी क'

मेघ बुन्नी में खूब नहायेब माई क' हम बातो नै मानब
हत्ता-खत्ता में चल मान्छ जा' क' मारब बढ़लै छुट्टी गर्मी क'

हाट बजार में त' बाबु संग जेबै लेमंचुस बिस्कुट खेबै
मेला में जा' क' हम झुला झुलब कम बचलै छुट्टी गर्मी क'

इस्कूल क' गृहकार्य बांचल अछि रत्तियो नै त' वक्त छैक
अछि मोन विधुआयेल किये ख़तम भ' गेलै छुट्टी गर्मी क'

(सरल वार्णिक बहर वर्ण -२२)

रूबी झा

कलाकन्द भऽ गेलहुँ (बाल-गीत)

धिया-पुता देखिकय आनन्द भऽ गेलहुँ
लड्डू नहि जिलेबी कलाकन्द भऽ गेलहुँ

केहेन सहज मुख पर मुस्कान छै
छन मे झगड़ा छनहि मिलान छै
तीरथ बेरागन  व्यर्थ करय छी 

सद्यः धिया-पुता सोझाँ भगवान छै
हँसी खुशी देखिकय बुलन्द भऽ गेलहुँ
लड्डू नहि जिलेबी कलाकन्द भऽ गेलहुँ

बनि कियो इन्जन रेल चलाबय
कियो फूँक मारय पीपही
बजाबय
बिनु पैसा के हँसि हँसि घूमय
छन कलकत्ता दिल्ली पहुँचाबय
लागय बच्चा सँगे जुगलबन्द भऽ गेलहुँ
लड्डू नहि जिलेबी कलाकन्द भऽ गेलहुँ

कियो जोर खसलय कियो जोर हँसलय
कियो ठेलि देलकय कहुना
सम्हरलय
देखलहुँ निश्छल रूप मनोहर
सुमन अपन सब कष्ट बिसरलय
मोन साफ भेल शकरकन्द भऽ गेलहुँ
लड्डू नहि जिलेबी कलाकन्द भऽ गेलहुँ

बुधवार, 9 मई 2012

हे मिथिला तूं कानय नै

हे मिथिला तूं कानय नै
जानय छी तोरा बड़ दुःख होई छौ
लेकिन नोर खासबय नै
हे मिथिला ...........................
हमहूँ तोहर कर्जदार छी
अपने कर्मे शर्मसार छी
भागी गेल छी गाम छोरी क
एबऊ तूं घबराबई नै
हे मिथिला.......................
याद अबैये खेत पथार
एतय बनल छी हम लाचार
पेट के खातिर भटैक रहल हम
लग किओ बैसाबई नै
हे मिथिला तूं .....................
तू त में छे दुःख के बुझ्बें
अप्पन कस्ट के तू नै कहबे
जनई छी तोहर ममता गे में
मिथिला में फेर बजाबई ने
हे मिथिला तूं कानय नै 


रचनाकार -आनंद झा ....

गजल

जुलुम ऐना करै छी कोना
अहाँ ऐना बिसरै छी कोना

ककर राखी करेज मांथ
धक् सौ क' बजरै छी कोना

बैरिन मुख क' देखि अहाँ
हाथे छाहेर करै छी कोना

हमर आत्मा छाउर बना
आनक संग धरै छी कोना

सात जन्म क' संग फुसिये
एके जन्म में छोरै छी कोना

कहलों जिबी अहिं ल' ''रूबी''
सौतिन पर मरै छी कोना

(सरल वार्णिक बहर,वर्ण --१०)
स्व्स्नेह- रूबी झा 

गजल


अहाँक गहिर झील सन आइंख क' जौं हम नील कमल कैह दी'
सौंस नगर जैर क' मैर जैत जौं एही पर कोनो गजल कैह दी'

अहाँ चली जखन थामि-थामि क' हजारो नजेर अहिंक तकै अछि
अहाँक संगमरमर सन देह क' किये नै ताजमहल कैह दी'

इठला- इठला क' छुवी-छुवी जाई अहाँक बदन पवन पुरिवा
आई अहाँ लेल पुरिवा क' हम कियेक नै पवन चंचल कैह दी'

कमला- कोशी क' देखू धार बहे अछि अहींक चलब अनुकूले त'
देखू किये नै हम सबटा धारो के अहिंक नाम सौं बहल कैह दी'

मेघो बरसय अछि अहींक केशक करि घटा सौं पूछीये -पूछीये
कहू किएक हम नै अहाँक केशो क' घन करिया बादल कैह दी'

(सरल वर्णिक बहर, वर्ण --२५)

 रूबी झा 

गजल

मीठगर बोली हम जनय छी
तैयो तीतगर बात करय छी

जौं साहित्य समाजक दर्पण
पाँती मे दर्पण देखबय छी

मिथिला के गुणगान बहुत भेल
जे आजुक हालात, कहय छी

भजन बहुत मिथिला मे लिखल
अछि पाथर, भगवान देखय छी

रोटी पहिने या सुन्दरता
सभहक सोझाँ प्रश्न रखय छी

भूख, अशिक्षा, बेकारी सँग
साल साल हम बाढ़ि भोगय छी

सुमन लिखत श्रृंगारक कविता
पहिने हालत केँ बदलय छी