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गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

कुण्ठित मानवता

घरमे मुरारीजिक कनियाँ अपन आठ बर्खक बेटा आ पाञ्च बर्खक बेटीकेँ  कोनोना सम्हारैमे लागल, मुदा हुनक मोनक भावसँ साफ देखा रहल छल जे हुनकर मोन पुर्णतः मुरारीजीपर लागल छलनि, जे की रातिक दस बजला बादो एखन धरि  नोकरीसँ घर नहि एलथि |
कोनोना दुनू  बच्चाकेँ  सुतेलथि | समयक सुइया सेहो आगू  वरहल | दससँ एगारह बाजल | हुनक मोनमे संका सभक आक्रमण भेनाइ स्वभाबिक छल | एना तँ एतेक राति पहिले कहियोक नहि भेल रहनि  | सहास करैत घरसँ बाहर निकैल, अपन भैंसुरक अँगना पहुँचली | हुनका सभकेँ  कहला बाद शुरू भेल युद्धस्तरपर मुरारीजिक खोज | मुदा सभ  मेहनत खाली मुरारीजिक कोनो पता नहि | हुनक आड़ामिल जाहिठाम ओ काज करैत छलथिसँ ज्ञात भेल जे हुनक छुट्टी तँ  साँझु पहर पाँचे बजए भए गेल रहनि आ ओ अपन साईकिलसँ एहिठामसँ बिदा सेहो भए गेल रहथि |
तकैत-तकैत भोरे चारि बजे हुनक लाश  पिपरा घाटक सतघारा बला धूरि पर भेटल | देखते मातर सभक हाथ-पएर सुन्न | कनाहोर मचल | बादमे स्थानीय प्रतक्षदर्शीसँ ज्ञात भेल की ओ एहिठाम साँझकेँ  साते बजेसँ छथि, किछु गोटे हुनका हाथ-पएर मारैत देखि बैजतो रहेजे, 'बेसी शराब पि क' ड्रामा कए  रहल अछि |'
मुदा हाय रे कुण्ठित मानवता कियोक हुनक बास्तबीक कारण बुझहक प्रयास नहि कएलक, नहि तँ ओ एखन जिबैत रहितथि | हुनका तँ  एपेडेंसीक दर्दक बेग रहैन आ समय पर उपचार नहि हेबाक कारणे ओ चलि बसला |

*****
जगदानन्द झा 'मनु'

गजल@प्रभात राय भट्ट



गजल
दिल के दर्द दिल में दबौने नैयन में नोर नुकौने छि
के जानत हमर दिल के ब्यथा मुश्कैत ठोर देखौने छि

वेदना कियो कोना देखत चमकैत चेहरा कें भीतर
प्रियम्बदा केर एकटा राज हम बड जोर दबौने छि

वेकल अछ मोन धधकैत आईग में जरैत करेज
अशांत मोन भीतर मधुकर भावक शोर मचौने छि

तिरोहित भगेल अछि जीवनक उत्कर्ष केर संगम
मधुर मिलन कें अनुपम राग सं भोर गमकौने छि

आएल अमावस खत्म भेल ख़ुशी केर अनमोल पल
"प्रभात" इआदके बाती नोरक तेल सं ईजोर कौने छि

.......................वर्ण-२१...............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

गजल

रहबय कोहबर कत्तेक दिन
बनिकय अजगर कत्तेक दिन

शादी तऽ एक संस्कार छी
जीबय असगर कत्तेक दिन

बिना काज के मान घटत नित
फूसिये दीदगर कत्तेक दिन

बैसल देहक काज कोन छै
एहने मोटगर कत्तेक दिन

आबहुँ जागू सुमन आलसी
खेबय नोनगर कत्तेक दिन

कविता-मिथिला में मचल हुर्दंग

मिथिला में मिथिलाक कर्णधार सभक बिच किछुदीन सं शीतयुद्ध चली रहलअछ कखनो होलिक रंग भजेतअछ वेरंग कखनो जुड़सीतल में फेकल थाल कादो क दाग कखनो फागक चर्चा उगलैय आईग यही विषय पर हमर मोनक व्यथा कविताक रूप में प्रस्तुत कएलगेलअछ ! साधुवाद !!होली में देखलौं अजब गजब के रंग

कविता
शब्दक प्रहार सं भेलाह कतेको तंग
आपतिजनक शब्द शब्द सं घोरल छल रंग
अपमानक पिचकारी मारैय में कियो छलाह मतंग

मैथिल सभ में छै एकटा बड़का हुनर
आन के बेवकूफ बना अपना के कहत सुनर
फन्ना गदहा चिन्ना कीनर
मिथिला में मचल हुर्दंग हुलर

वितगेल होली मुदा रंगक दाग लागले रहिगेल
ईर्ष्या द्वेष प्रतिशोधक भावना जागले रहिगेल
देश दुनिया नर्क सं स्वर्ग भगेल
मुदा मिथिला स्वर्ग सं नर्क बनिगेल

होली पर भगेल जुड़ सीतल के प्रहार भारी
एक दोसर के गर्दन पर चलल चरित्र हत्या के आरी
जातपातक भेद भाव अछि विनाशकारी
संवेदनशील मुदा पर भरहलअछ घीऊढारी

अपने में अछि सभ एक दोसर के विरुद्ध
मिथिलाक विद्द्वजन में भरहलअछ शीतयुद्ध
जातपात सं नै होइअछ कियो शुद्ध अशुद्ध
धर्म पुन्य सत्कर्म ज्ञान विवेक होइतअछ शुद्ध

मातल छथि सभ पी कS अभिमानक तारी
समय समय सं पढैय एक दोसर के गारी
लागल ऐछ फेक आईडी कय महामारी
छद्मभेदी सभक बिच भरहल छै मारामारी

हे मैथिल मिथिलाक कर्मनिष्ठ कर्णधार
कने देखाउ सद्भाव सद्प्रेमक उद्दगार
भलाबुरा तं छै समूचा जग संसार
एना कटाउंझ केला सं नै लागत कोनो जोगार

अवगुण दुर्गुण वैर भाव कय दूर भगाऊ
गुण शील विवेक प्रेम स्नेह मोन में जगाऊ
भाईचारा प्रेमक एकता दुनिया के देखाऊ
सुन्दर शांत समृद्ध विशाल मिथिला बनाऊ

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट


एकटा बात कहू सजनी जौं हम नै रहब तं अहाँ रहब कोना
छोड़ी चलिजाएब जौं परदेश विरह कें दुःख अहाँ सहब कोना

पल पल हर पल हम रहैत छि प्रिया अहाँक संग सदिखन
हमर रूचि सं श्रृंगार करैत छि हमरा बिनु अहाँ सजब कोना

हमरा सँ सजनी अहाँ नुका कS नहि रखने छि दिल में राज कोनो
किछु बात जे हमही जानैत छि लाज सं ककरो अहाँ कहब कोना

मधुर मिलन लेल जी तरसत पिया पिया अहाँक मोन कहत
नैना सँ अहाँक नीर बहत तडपी तडपी अहाँ सम्हरब कोना

श्रृंगार बहत नोरक धार सँ ह्रिदय तडपत विछोडक पीड़ा सँ
भूख पियास नीन सभ त्यागी कें "प्रभातक"बाट अहाँ जोहब कोना
..............वर्ण-२५......................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

सोमवार, 16 अप्रैल 2012

आयी फेर याद आयल, किएक मिथिला देश कें

आयी फेर याद आयल, किएक मिथिला देश कें

छोरी देने छी जहन, हम सब अप्पन खेत कें

आयी फेर याद ..............................
माय के कोना बिसरलौं , की भेले इ की कहू

चली परल छी लय पिपासा, छोरी अप्पन भेष कें

भाई छुटल , मित्र छुटल, छुटि गेल सब याद सब

हम तरपी क रही गेलौं, बस हाथ धेने केस कें

आयी फेर याद आयल ........................

नया जमाना आबी गेलय, पाई टा भगवन छई

जाकरा देखू एके रस्ता , पायी के इन्सान छई

सखी छुटल मीत छुटल, रुसी गेल सबटा कोना

आब त बिसरी रहल छी, नेंपन के खेल कें

आयी......................................

गाम पर पीपर तर में , खेलाइत रहिये कोना कहू

रोज एतय परदेश में छी , दिन खुजिते रोज बहु

मोन कनाल अंखि कनाल, देखि के कोना सहू

सोचिते सबटा मिटा मितायल, सपना अपने देखि कें

आयी .....................................
संस्कार सेहो बिसरलौं , चललौं पश्चिम के बाट पर

मिथिला बस कल्पैत रहली, उएह टूटलहिया खाट पर

अंत में मिथिले टा पूछती , राखू नै एकरा ताख पर

सुनु आनंद के बात मिता, घर नै बनाबू बालू आ रेत कें

आयी फेरो .................................

रचनाकार

आनंद झा 'परदेशी'


(रचनाकार आनंद झा एकरा कतौ हमरा स बिना पूछने नै उपयोग करी )

गजल

गलती बारम्बार करू
अधलाहा सँ प्यार करू

दुर्गुण सँ के दूर जगत मे
निज-दुर्गुण स्वीकार करू

दाम समय के सब सँ बेसी
सदिखन किछु व्यापार करू

अपने नीचा, मोन पालकी
एहि पर कने विचार करू

बल भेटत स्थायी, पढ़िकय
ज्ञानो पर अधिकार करू

भाग्य बनत कर्मे टा फल सँ
आलस केँ धिक्कार करू

प्रेमक बाहर किछु नहि भेटत
प्रीति सुमन-श्रृंगार करू

अगिला अंक मे छपत (हास्य कविता)

 अगिला अंक मे छपत
(हास्य कविता)
रचना भेटल अहाँ के
मुदा अगिला अंक मे ओ छपत
बेसी फोन फान करब त
फुसयाँहिक आश्वासन टा भेटत।

अहाँ के लिखल कहाँ होइए
तयइो हमरा अहाँ तंग करैत छी
हमरा त लिखैत लिखैत आँखि चोन्हराएल
अहाँक रचना हम स्तरीय कहाँ देखैत छी।

रचना कोना क स्तरीय हेतैय सेहो त
फरिछा के अहाँ किएक नहि कहैत छी
हम रचना पर रचना पठबैत छी
मुदा अहाँ त कोनो प्रत्युतरो ने दैत छी।

हम त कहलहुँ अहाँ के लिखल ने होइए
नवसिखुआ के ने लिखबाक ढ़ग अछि
कोनो पत्रिका में त छैपिए जाएत
इहए टा एकटा भ्रम अछि।

ई भ्रम नहि सच्चाई थिक
नवसिखुओ एक दिन नीक लिखत
नहि छपबाक अछि त नहि छापू
लिखनाहर के कतेक दिन के रोकत।

संपादक छी हम अहाँ की कए लेब
मोन होएत त नहि त नै छापब
बेसी बाजब त कहि दैत छी
अहाँ के कनि दिन और टरकाएब।

रचना नुकाउ आ की हमरा टरकाऊ
आँखि तरेरू अहाँ खूम खिसियाऊ
कारीगर ने अछि डरैए वला
किएक ने अहाँ पंचैती बैसाउ।

हे यौ वरीय रचनाकार महोदय
पहिने अहुँ त नवसिखुए रही
आ कि एक्के आध टा रचना लिखी
समकालीन सर्वश्रेष्ठ बनि गेल रही।

सच गप सुनि अहाँ के तामस उठत
तहि दुआरे किछु ने कहब कविता हम लिखब
आश्वासन भेटिए गेल त आब की
ओ त अगिला अंक मे छपत।

गजल

उठलै करेजामे दरदिया हो राम
भेलै पिया जुल्मी बहरिया हो राम

कुक कोइली कें सुनि हिया सिहरल हमर
आँखिसँ बहे नोरक टघरिया हो राम

साउन बितल जाए, सुहावन मन सुखल
एलै पिया कें नै कहरिया हो राम

जरलै हमर जीवन बिना स्नेहक आगि
लागल हमर सुख में वदरिया हो राम

जीवन हमर बनलै बिना तेलक बाति
कोना जरत मोनक बिजुरिया हो राम

(दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ+ दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ+ दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व,
बहरे सरीअ)

जगदानन्द झा 'मनु'

रविवार, 15 अप्रैल 2012

गजल

प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक एकटा गजल ---

ओ नहि भेलाह कहियो जौँ हमर त' की भेल
होयत आब हुनके बिन गुजर त' की भेल

जेठक दिवस काटल भदबरियाक रैन
आइ बितइत नहि अछि पहर त' की भेल

बिलक्षण आर मधुर बजैत छलथि बोल
एकबेर बाजि देलथि जौ जहर त' की भेल

प्रेम मे मीरा सनक भऽ गेल छी बताहि हम
हुनका यदि परबाह नै तकर त' की भेल

युग-युग सँ गाबै छी गीत हुनक पथपर
नै एलाह एकोबेर एहि डगर त' की भेल

हुनक आश मे अछि फाटल साड़ी आ चुनरी
जोगिनिये कहैत अछि जौ नगर त' की भेल

हुनके आश तकैत पिबि गेलौ बिषक प्याला
बदनाम भेलहुँ जौ जग सगर त' की भेल

वर्ण>>१७
रुबी झा

गजल

रीति बिगड़ि गेल जानय छी
चलू बैसिकय केँ कानय छी

असगरुआ जौं
नहि नीक लागय
आओर लोक केँ आनय छी

समाधान आ कारण हमहीं
बात कियै नहि मानय छी

पैघ लोक के बात, सोचबय
के के एखन गुदानय छी

आस व्यर्थ छी बिना प्रयासक
फुसिये गप केँ तानय छी

नीक आओर अधलाह लोक केँ
कियै एक सँग सानय छी

लऽ कऽ चालनि सुमन हाथ मे
नीक लोक केँ छानय छी

गजल@प्रभात राय भट्ट


चन्दन कें गाछ पर बसेरा होए छै सांप कें
जेना कान्हा पर बौआ सबारी होए छै बाप कें

बड दुःख उठा बाप बौआ के पैघ बनाबै छै
चोट लागैछै बौआ कें दर्द होए छै बाप कें

प्रेम स्नेह माया ममताक पात्र थिक संतान
सैतान छै संतान भान कहाँ होए छै बाप कें

काहि काटी कें बाप बेट्टा पर जीन्गी लुट्बैय
आला आफिसर भS कS बेट्टा नै होए छै बाप कें

सांप कें कतबो दूध पियाबू डैस लै छै सांप
बाप मागै छै भीख बेट्टा कहाँ होए छै बाप कें
..............वर्ण:-१७ .................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शनिवार, 14 अप्रैल 2012

प्रेम नै जहर छै

बड हिम्मत क एकटा खिस्सा लिखवाक कोशिश केलौं | हम्मर मैथिली मे पहिल कहानी अछि . विषय कोनो नव नै अछि मुदा हम अपना तरीका सँ लिखबाक भरिसक कोशिश केने छी |
आशा करै छी जे अहांके नीक लागत |

                                                        *** प्रेम नै जहर छै ***

एकटा गाम | मननपुर | भोरक समय | गामक बीच दुर्गा मंदिर सँ उठैत नारी स्वर , गीतक एहन प्रवाह लगे छल जे स्वयं सरस्वती कमलक आसन पर बैस अपन हाथक वीणा संग मधुर भजन गाबि रहल छथिन | यैह भजन " जय जय भैरबी .........." सँ ऐ गामक मनुष्य आ अपन अंखि खोलै छथि | आब फरिच्छ भs गेल छै | किसान अपन बरदक संग खेत दिश चललाह |बरदक घेट मे बान्हल घंटी , ओही मधु भरल स्वर संग ताल -में ताल मिलायवाक भरिसक कोशिश कs रहल छै | भोर सात बजे एहि गाम सँ ओही नारी के पहिल भेंट होई छै | किरण , जी हाँ ,किरण नाम छै ओकर | सोलह -सत्रह वर्ष के घेट लगेने , मानु कोनो आधा खिलल गुलाबक कली | यौवनक चिन्ह आब उजागर होबs लागल छै | सुन्दरताक चलैत-फिरैत दोकान । ककरो सँ कोनो उपमा नै अनुपम । एकदम मासुम मुँह ,समाजक रीति-रिवाज सँ अंजान ।गाम मे सबहक चहेती ।कोनो काज एहन नै जे ओ नै क' सकैए ।सब काज मे पारंगत ,किरण ।

" किरण ,गै किरण ,कतS चल गेलही ,स्कुलक देर भs रहल छौ ", सुलोचना टिफिन बन्न करैत किरण कए सोर केलखिन ।

" आबै छियौ ,बस दू मिनट ", कहैत किरण घर सँ बहरायल ।कनेक काल ठमकि ठोर पर मुस्की नचबैत बाजल ," माँ आइ कने देर सँ एबौ ,आइ ने हमर सहेली पिंकी कए जनमदिन छै ,"
आ इ कहैत साइकिल लs स्कूल दिश चल देलक ।

स्कूल मे एकटा लड़का छलैए ,राकेश, पढ़ै-लिखै मे गोबरक चोत ,मुदा पाइबाला बापक एकलौता बेटा ,से पाइ कए गरमी जरूर छलैए ।सब साल मास्टर कए दु टा हजरीया दs दै आ वर्ग मे प्रथम कs जाए ।एक नम्मर कए उचक्का ।ओ जखन-तखन किरण कए देखैत रहैए ।आब किरण गरीब घरक सुधरल बेटी ,ओ की जानS गेलै ,जे कनखी कए अर्थ की होइ छै ।जहिना आन सब छात्र-छात्रा राकेशक किनल चाँकलेट ,मलाइबर्फ ,बिस्कुट आदि अनेको चिज सब खाइ छल ओहिना किरणो बिना छल-प्रपंच कए राकेशक संग रहै छल ।इम्हर किछ दिन सँ राकेश मंहगा सँ मंहगा आ सुन्नर सँ सुन्नर चिज-बित सब आनि कs किरण कए
चुप्पे-चाप दै छलै ।जै अवस्था मे एखन किरण छल ओहि मे विपरीत लिंगक प्रति आकर्षण भेनाइ स्वभाविक छै ,आ जौँ पैसा कए गमक लागि जाए तs फेर बाते कोन छै । इएह कारण छै जे राकेशक संग आब नीक लागS लागलै । राकेशक जादु एहन चलले जै मे फँसि पढ़ाइ-लिखाइ सब पाछु छुटि गेलै आ मस्ती हावी भ' गेलै । ऐ आकर्षण कए नाम देलक "प्रेम" । प्रेम ,जाहि शब्दक एखन धरि कोनो उपयुक्त परिभाषा नै भेटल । प्रेम ,जकरा बेरे मे जतेक लिखब ततेक कम ।प्रेम ,शायरक तुकबंदी ,दिल कए मिलन ।प्रेम , जे मौत सँ लड़बाक साहस दै छै । लैला-मजनु बाला प्रेम भेल छलै अकी किछु और जानी नै ।

" आउ ,आउ , आइ बड़ देर कs देलियै ," किरण कए आबैत देख राकेश बाजल ।
" हाँ ,की करब साइकिल पंगचर भ' गेल छल " किरण जबाब देलक ।
राकेश मक्खन लगाबैत बाजल ," आहा , हम्मर जान कए आइ बुलैत आबS पड़लै . . . काल्हि चलब नवका स्कुटी किन देब . . . तखन नै ने कोनो दिक्कत ।"
किरण मुस्कुराइत बाजल ," दुर जाउ ,स्कुटी पर चढ़बै त' गामक लोग की कहतै । कहतै जे छौड़ी बहैस गेलै ।"

" लोग किछु कहैए कहS दियौ ,अहाँ बताबू वेलेंटाइन डे अबि गेल छै गीफ्ट की लेबै ," राकेश एक्के साँस मे बाजल ।
" हम किछु नै लेब ,जखन प्रेम केलौ आ बियाह करबे करब तखन अहाँक सब किछ अपने आप हम्मर भ' जेतै ," किरण विश्वास के साथ बाजल ।

कनेक काल मौन ब्रत कए पालन केला कए बाद राकेश किरणक हाथ पकरैत बाजल ," किरण ,हम चाहै छी ऐ बेर वेलेंटाइन डे पर दरभंगा घुमै लेल चलब । जौं अहाँ कहब त' एखने होटल बुक करबा दै छी " फेर कने और लग आबि बाजनाइ शुरू केलक ." ओतS खुब मस्ती करब ,फिलम देखब आ राज मैदान मे पिकनिक मनायब आओर बहुतो रास गप्प करब ।"

किरण अपन हाथ छोड़बैत बाजल ," नै नै हम असगर अहाँ संग दरभंगा नै जायब । माँ हम्मर टाँग तोड़ि देत , अहाँ जायब त' जाउ हम एतै ठिक छी ।"

" हे . . .हे . . . हे . . . हे . . . एना जुनी बाजु " राकेश किरण कए पँजियाबैत बाजल ," हम अहाँ होइ बाला घरबाला छी आ पति संग घुमै मे कोन हर्ज छै , मात्र एक्के दिन कए त' बात छै , अहाँ कोनो बहाना बना लेब ।"

जेना-तेना क' राकेश अप्पन बात मना लेलक ।तय दिन किरण आ राकेश शिवाजीनगर सँ बस पकैड़ दरभंगा दिश चल देलक । भरि रस्ता प्यार-मोहब्बत कए बात बतियाइत रहल । दरभंगा आबि राज किला देखलक ,श्यामा मंदिर ,मनोकामना मंदिर मे पुजा केलक , टावर चौक सँ शाँपिँग केला कए बाद साँझ होटल मे आयल ।

आब एक कमरा ,एक बेड ,दु जन ।बड़ मुश्किल घड़ी छलै ।
राकेश कहलक ."आउ कने सुस्ता लै छी ,काल्हि भोरे एहि ठाम सँ विदा हएब ।"
किरण प्यार कए कारी पट्टी सँ अपन आँखि बान्हि लेने छलै ।बिना किछु बाजने ओ सब करैत गेल जे राकेश चाहै छलै ।जौं कखनो बिरोधो करै त' प्रेमक दुहाई दs राकेश मना लै छलैए ।और अन्ततः ओ भेलै जे नै हेबाक चाही ।प्रेमक मायाजाल मे फसल प्रेमक मंत्र सँ वशिभुत कएल किरण किछु नै बाजल .शायद अप्पन प्रेम पर हद सँ बेसी विश्वास छलै । भोरे नीन खुजलै तs अपना आप कए असगर देखलक । कनेक काल प्रतिक्षा केलक मुदा राकेशक कोनो अता-पता नै छलै । काउन्टर पर सँ पता चललै जे राकेश तs तीन बजे भोरे चल गेल छलै ।

आब बुझु किरण पर बिपत्ती कए पहाड़ टुटि पड़लै । बिभिन्न तरहक बात मोन मे आबै ।माँ कए की कहब .आगु जीवन कोना काटब ,लोग की कहतै ।सोचैत-सोचैत मोन घोर भs गेलै । गाम दिश जायबाक लेल डेगे नै उठै । कतS जायब ,की करब । चलैत-फिरैत लहाश भs गेल छलै किरण । भीड़-भाड़ मे रहितो एकदम तन्हा ।मनक तुफान रूकबे नै करै । बेकार , जीवन बेकार भs गेलै ।सबटा सोचल सपना क्षण मे टुटि गेलै । सोचै ,माँ कए अफसर बनि कs के देखेते , भगबती कए गीत के गेतै ।

एतेक दिन दुर्गा माँ कए पुजा केलौ... तकर इनाम इ भेटल ।....सब झुठ छै ,... देवी-देवता सब बकबास छै ..... गरीबक साथ कोनो देवी-देवता नै दै छै ।...... सब कहै छै ,. प्रेम बड़ नीक शब्द छै ,..........प्रेम सँ पत्थर दिल मोम भs जाइ छै ,.....मुदा नै....... ,प्रेम तs जहर छै ,जहर ... जै सँ केवल मौत भेटै छै ,मौत कए सिवा किछु और नै ,मौत . . . मृत्यु . . . .मौत . . .जहर . . . । हम जानि-बुझी कs इ जहर पिलौँ ।........ हम अपवित्र छी , हम कुलक्षणी छी ......., हम धरती परक बोझ छी ......हमरा जीबाक कोनो अधिकार नै । हमरा सन के लेल ऐ दुनिया मे कोनो जगह नै । ............हम माँ-बाप कए इज्जत और निलाम नै करब ।......हम मरि जायब , ककरो किछु खबर नै हेतै । ......हम अप्पन बलिदान करब ।अनेको रास बात सँ माँथ लागै फाटि जेतै । ओ एक दिश दौड़ल ,किम्ह
 .से ओकरो नै पता , ओ कतS जा रहल छै ....., नै जानी । ....दोड़ैत-दौड़ैत भीड़ मे कत्तो चल गेलै । अप्पन अन्जान मंजील दिश ।

भोरे आखबारक मुख्य पृष्ट पर मोट-मोट अक्षर मे लिखल छल " सोलह-सतरह साल कए एकटा गोर-नार युवती रेलवे पटरी पर दू टुकड़ी मे भेटल ।नाम-गाम कए पता नै चलल अछि । पोस्टमार्टम कए लेल लाश भेज देल गेलै यै । अंतिम दाह-संस्कार पुलिसक निगरानी मे होयत . . . । ।

                                                                        { समाप्त }

ऐ कहानी कए घटना .पात्र .नाउ सब काल्पनीक अछि । कोनो सत्य घटना सँ प्रेरीत नै छी ।हम्मर उद्येश्य किनको ठेस पँहुचयबाक नै छल । हम ओ सब नवयुवक-नवयुवती ,जे प्रेमक सागर मे डुबकी लगेने छथि वा लगाबS चाहै छि , सँ कहS चाहब जे प्रेम खराब नै छै ,लेकिन प्रेम सोचि-समैझ कए करबाक चाही । बिना सब किछ जानने एकांत मे नै जायबाक चाही ।
पाठकगण , जौ कत्तौ कोनो गलती बुझाए त' हमरा कहब हम सुधारबाक कोशिश करबै । ऐ मे कत्तौ-कत्तौ आन भाषाक शब्दक प्रयोग भेल हेतै आ टाइपिंग मे गलती भ' सकै छै । तै लेल क्षमा चाहब । केहन लागल से जरूर बतायब । अहाँक

                                   
अमित मिश्र

प्रेमक अंत

हम अपन एकटा नव कथा कए एकटा छोट भाग अपने सबहक समक्ष डी रहल छी शेष जल्दीए देब| 

कथा - प्रेमक अंत 

आइ भोरे सँ आनंदक मोन कतौ अनत' अटकि गेल छलै । की करबाक चाही , की नै करबाक चाही ? गाम -घर मे की भ रहल छै ? एहि तरहक कोनो प्रश्नक जबाब पता नहि छलै । अपन सूधि-बूधि बिसरि गामक अबारा पशु जकाँ इम्हर-उम्हर भटकि रहल छल । पैघ केश-दाढ़ी , मैल-चिकाठि गंजी-पेँट मे अपना -आप सँ बतियाइत देख जँ केउ अनचिन्हार पागल बूझि ढेपा मारत त' कोनो आश्चर्यक बात नहि । आनंदक इ डेराउन रूप देख क' गामक लोक सब अपना मे बतियाइ छल जे परसू जखन दिल्ली सँ गाम आएल छल त' बड-बढ़ियाँ सब कए गोर लागि , काकी-कक्का , कहि क' नीक-नीक गप करै छलैए मुदा इ एके राति मे की भ' गेलै जानि नहि? लागै छै जे मगज कए कोनो नस दबा गेलै आ रक्तसंचार बंद भ' जाएबाक कारण मोन भटकि रहल छै । इहो भ' सकै यै जे बेसी पाइ कमा लेलकै तेए दिमाग खराप भ' गेलै वा भ' सकै छै जे पागल कए दौड़ा पड़ल होइ । आब एसगर कनियाँ काकी की सब करथिन , आब टोलबैये कए मिल क' राँची कए पागल वला अस्पताल मे भर्ती कराब' पड़तै , नै त' काल्हि जँ टोलक कोनो नेना कए पटकि देतै त' ओकर जबाबदेही के लेतै ? अनेक तरहक प्रश्न-उतर , सोच-बिचार के बाद टोलबैया सब निर्णय लेलक जे आइ साँझ धरि देखै छीये ,जँ ठीक नै हेतै त' साँझ मे सब गोटा मिल जउर सँ हाथ पएर बान्हि देबै आ काल्हि भोरका ट्रेन सँ राँची चलि जेबै । जे खर्च-बर्च लागतै से कनियाँ काकी देथिन ,जँ एन.एच लग बला एको कट्ठा घसि देथिन त' ओतबे मे आनंदक बेरा पार भ' जेतै ,आखीर जमीन बेचथिन किएक नहि ,बेटो त' एके टा छेन । कनियाँ काकी मतलब आनंदक माए सँ बीन पुछने टोलबैया ,सब हिसाब-किताब क' लेलक ।

गीत

तर्ज - चाँदी की दीवार ना तोड़ी
लड़का - समाज के अहाँ रीत नहिं तोडि़ के हमरा दिल के तोडि़ देलौं
बेर्ददी केहेन भेलौं हमरा सॅ नाता तोडि़ लेलौं
खएलौं जे सपथ हम दुनु जिनगी भरि संगहि रहब
सौंसे दुनिया छोडि़ देबय अहाँ बिना नहिं हम जियब
सौंसे दुनिया छोडि़ देबय अहाँ बिना नहिं हम जियब
आई सबटा बिसरि के सजनी देह सौ प्राण निकलि गेलौं
समाज के अहाँ रीत नहिं तोडि़ के हमरा दिल के तोडि़ देलौं
जखन अहाँ के डोली गाम क सीमा टपल
तखन हमरा लागल सजनी देह के ऊपर व्रज खसल
तखन हमरा लागल सजनी देह के ऊपर व्रज खसल
कोना अहाँ हमरा बिसरलौं कोना के मुँह मोडि़ लेलौं
समाज के अहाँ रीत नहिं तोडि़ के हमरा दिल के तोडि़ देलौं
लड़की - बिसरि जाउ हमरा यौ सजना एहि प्यार के एगो सपना बुझि
माफ क दियऽ यौ सजना अहाँ हमरा अपना बूझि
माफ क दियऽ यौ सजना अहाँ हमरा अपना बूझि
बड़ गलती भेल हमरा सौं एहेन हाल में एलौं
समाज के हम रीत नहिं तोडि़ के अहाँ दिल के तोडि़ देलौं
ल्ड़का - बिसरि जाउ कोना ये सजनी अहाँ सॅ जे प्रेम कएलौं
अहीं कहू हमरा सजनी कोना के अहाँ बिसरि गएलौं
अहीं कहू हमरा सजनी कोना के अहाँ बिसरि गएलौं
जीबय छी हम जीबते रहब याद अपन संग छोडि़ देलौं
समाज के अहाँ रीत नहिं तोडि़ के हमरा दिल के तोडि़ देलौं
समाज के हम रीत नहिं तोडि़ के अहाँ दिल के तोडि़ देलौं