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रविवार, 29 जनवरी 2012

जातिवादिता के बढावा कोना आ के दऽ रहल अछि?



मंथन योग्य विषय बुझा रहल अछि - उपरोक्त प्रश्न! कारण जे अक्सरहाँ सुनैक लेल भेटत जे ब्राह्मणवादिता के प्रदर्शन तऽ अगड़ा-पिछड़ा तऽ आरक्षण - छुआछुत, अन्तर्जातिय विवाह, समावेशी प्रशासन एवं सरकारी तंत्र - आ पता नहि जातिय पहचान सँ जुड़ल अनेको विषय संग एहेन कोनो दिन नहि जहिया पाला नहि पड़ैत हो। ओ कोनो समाज होइक - हम अपन व्यक्तिगत अनुभवके आधार पर ४ गो राष्ट्रके विभिन्न समाजमें वस्तुगत स्थितिके अध्ययनके आधारपर कहि सकैत छी जे जातिवादिता के प्रकोप हर जगह भेटल। कतहु कोन रूप में तऽ कतहु कोन रूपमें। मिथिलामें सभसँ बेसी आ परिपक्व अनुभव भेटल अछि आ जखन आरो गहराई में अध्ययन के लऽ जाइत छी तखन बुझयमें अबैछ जे एहि जातिवादिताके मूल कारण कथी छैक। नेपाल में मधेशके मिश्रित जातिसंग आरो बहुत तरहके अनुभव समेटय लेल आइयो भेटि रहल अछि।

लोक में अन्तर्मन अन्तःकरणके कार्य-प्रणालीके आधारपर तय कैल जाइछ जे हम के - हमर असल पहचान कि - हमर जाइत कोन! वर्णाश्रम धर्म के जे व्यवस्था वास्तवमें सनातन धर्ममें चर्चा कैल गेल छैक, तेकर शुद्ध स्वरूप में परिवर्तन आबयके चर्चा सेहो धर्मशास्त्रमें कैल गेल छैक। एतेक तक कहि देल गेल छैक जे कलियुगमें व्यवस्था केहेन रहत। इ सभ कोनो आइ-काल्हिके नेता वा विधायिका वा न्यायपालिका वा प्रशासिका के लिखल बात नहि - आजुक कोनो नाटककार - कलाकार - कवि विद्वान् के मत नहि बल्कि पूर्वहि सऽ प्रख्यात वेद - पुराण - श्रुति आ ताहिपर आधारित अनेको उपशास्त्र, काव्य, आदिमें उल्लेख कैल गेल छैक। अपन आ दोसर - एहि अनुभवके हिन्दू दर्शनमें ‘माया’ के प्रभाव कहल गेल छैक। समत्त्व दृष्टि आ सभमें केवल एक परमात्माके असल दर्शन करब असल आध्यात्म चिन्तन के बात अनेको बेर कहल गेल छैक। तखन लोक यदि वर्णाश्रम धर्ममें अपन पहचान उच्च वा निच श्रेणीमें करैत ठमैक जाय तऽ एहिमें धर्मशास्त्रके वा वर्णाश्रम धर्मके कोन दोष? :)

आजुक समाजमें अनेको संघ आ संस्थाके निर्माण जातिय आधार पर कैल गेल छैक। अबैत-जाइत फेशबुक पर सेहो नजरि अबैछ जे लोक में जातियताके खुमारी कतेक प्रवेश केने छैक। मिथिलाके नाम पर जु्ड़ब तऽ एक हद तक मातृभूमि आ क्षेत्रवादके आधारपर जातीयता के निर्धारण करैछ, लेकिन मिथिलाके अन्दर प्रवेश कयलापर तमाशा देख लियौक। वैश्य समाज, केवट समाज, यादव समाज, कुर्मी समाज, कायस्थ समाज, ... सभ अपन-अपन जातिगत कल्याणके नामपर अपन समूह के निर्माण करैछ। जखन कि एक समय समाजमें धर्मके शुद्ध संस्करण रहलैक तखन तऽ ब्राह्मण समाजके लेल अलग सम्मान रहलैक आ फेर ब्राह्मण समाज अपन तीव्र बुद्धिके आ श्रेष्ठता के अवश्य दुरुपयोग कयलैथ, जेकर कारण सम्मान आ यशमें कमी आयल आ आजुक परिस्थिति एहेन बदतर अबस्था छन्हि जे इ सभ नहि तऽ अपन कोनो संस्थाके - संघके निर्माण कय सकैत छथि आ ने हिनका सभके पुरान सम्मान के तुरन्त पुनरावृत्ति संभव छैक। आ इहो बात तय छैक जे गैर सेहो ब्राह्मणे के सुनय पड़तन्हि कारण आइयो अग्र भुमिका निर्वहन के असल क्षमता हिनकहि में छन्हि। तखन आब इ सब केवल चाणक्य बनि नीति-निर्धारण के काज करैथ आ जेना चाणक्यके माता हुनका संग अपन आशंका व्यक्त केने छलखिन जे राजा बनि गेलाके बाद मायके सेवामें बेटाके ध्यान नहि लागत - ज्योतिषके कथन जे चाणक्य राजा बनताह से माय के चिन्तित कयने छलन्हि... आब मायके समाधान लेल चाणक्यके निर्णय जे हम राजा नहि बनब माय अहाँ निश्चिन्त रहू, हम कदापि अहाँके सेवा सँ विमूख नहि होयब... बस एहने निर्णय करैत ब्राह्मणकेँ आब केवल मातृसेवामें समर्पित होवय के उचित समय आबि गेल अछि। रहल बात, ओ कायस्थ समाज होइ वा कोनो अन्य जातिगत समाज - अपन कल्याण हेतु सोच बनाबयमें अग्रसर रहय में कदापि नकारात्मकता वा जातियताके प्रदर्शन नहि... लेकिन अनावश्यक पूर्वाग्रही बनब आ अन्य जातिपर अपन स्वार्थविरुद्ध ठाड़्ह रहब देखनाइ जरुर गलत बात होइछ। एहिसँ समाजिक सौहार्द्रता बनय के जगह आरो आपसी विश्वासमें कमी अबैछ। तखन पैघ-पैघ बात करब, ब्राह्मण समाजके दोषी मानब, सभ बात लेल ब्राह्मण समाज ऊपर आँगुर उठायब अनर्थ होयबाक संकेत दऽ रहल अछि। विप्रमें एकता नहि होयब प्राकृतिक स्वभाव होइछ। तखन सभकेँ ब्राह्मण सँ एतेक भय होयबाक कारण कि? हमरा बुझने जातियताके प्रदर्शन में केवल कल्याणकारी योजना आ सामुदायिक विकास हेतु प्रयास के चर्चा करब जरुरी अछि।

हरिः हरः!
द्वारा:-
प्रवीन नारायण चौधरी


शनिवार, 28 जनवरी 2012

सभसँ आगू-आगू छी

के  कहैत अछि निर्धन छी हम 
थाकल हारल मारल छी 
हम छी मैथिलीपुत्र 
दुनियामे सभसँ आगू-आगू छी। 

देखू श्रृष्टिक   संगे देलहुँ 
विदेह, जनक, जानकी हम 
आर्यभट्ट, चाणक्य 
दोसर नहि, बनेलहुँ  हम। 

पहिल कवि  श्रृष्टिक 
वाल्मीकि बनोलक  के
कालिदास केर कल-कल वाणी 
छोरि मिथिला दोसर देलक के

विद्यापति आ मंडन मिश्रसँ 
छुपल नहि ई विश्व अछि 
दरभंगा महाराजक नाम 
भारतवर्षमे  बिख्यात अछि। 

राष्टकविक उपाधि भेटल जिनका 
मैथिलीशरण  कतए केर  छथि 
दिनकरकेँ  जनै छथि सभ  
यात्री छुपल नहि छथि। 

कुवर सिंह आ मंगल पाण्डे
फिरंगीक  सिर झुकोगे छथि 
गाँधीजी  असहयोग आन्दोलन 
एहिठामसँ केने छथि। 

देशक प्रथम राष्टपति भेटल 
मिथिलाक पानिक शुद्धिसँ 
दिल्ली  के  बसेलक कहू
ए.एन.झाक  बुद्धिसँ

आईआईटीमे अधिकार केकर अछि 
मेडिकल हमरे जीतल अछि 
विश्वास नहि हुए तँ आंकड़ा देखू
सभटा आइएएस हमरे अछि

✍🏻 जगदानन्द झा 'मनु'

गजल @प्रभात राय भट्ट


गजल
हम अहां केर प्रीतम नहि बनी सक्लहूँ
मुदा अहांक करेजक दर्द बनी गेलहुं

अहां हमर प्रेम दीवानी बनल रहलौं
हम अहांक दीवाना नहि बनी सक्लहूँ

अहां हमर प्रेम उपासना करैत गेलौं
हम आनक वासना शिकार बनी गेलहुं

अहांक कोमल ह्रदय तडपैत रहल
हम बज्र पाथर केर मूर्ति बनी गेलहुं

हम अहांक निश्च्छल प्रेम जनि नै सकलौं
अनजान में हम द्गावाज बनी गेलहुं

आब धारक दू किनार कोना मिलत प्रिये
मजधार में हम नदारत बनी गेलहुं
................वर्ण:-१६ ...............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

गजल


कहि कऽ नै मोनक हम तँ बड्ड भेल तबाह छी बाबू।
कहब जे मोनक, अहीं बाजब हम बताह छी बाबू।

हुनकर गप हम रहलौं जे सुनैत तँ बनल नीक छलौं,
गप हुनकर हम नै सुनल, कहथि हम कटाह छी बाबू।

सदिखन रहलथि मूतैत अपने आगि सभ केँ दबने,
हम कनी डोलि गेलौं, ओ कहै अगिलाह छी बाबू।

बनल छल काँचक गिलास हुनके मोनक विचार सुनू,
इ अनघोल सगरो भेलै हम तँ टुनकाह छी बाबू।

सचक रहि गेल नै जुग, सच कहि कऽ हम छी बनल बुरबक,
गप कहल साँच तऽ अहीं कहब "ओम" धराह छी बाबू।
(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ)--- ४ बेर

गजल

अहाँक चमकैत बिजली सँ  काया ओई अन्हरिया राती  में 
आह ! कपार हमहुँ की पएलहुँ  मिलल जे  छाती छाती  में 

सुन्नर सलोनी मुह अहाँ केँ कारी घटा घनघोर केशक 
होस गबा बैसलौं हम अपन पैस गेल हमर छाती  में

बिसरि नै  पाबि सुतलो-जगितो ध्यान में सदिखन अहीं केँ 
अहाँक कमलिनी सुन्नर आँखि देखलौं जे नशिली राती  में 

बिधाता  बनेला  निचैन सँ   धरती पर पठबै सँ पहिले
मिलन अहाँ केँ अंग अंग में जे नहि अछि दीप आ बाती में 

सुन्नर अहाँ छी सुन्नर अछि काया अंग-अंग सुन्नर अहाँ केँ 
नै कहि सकैत छी एहि सँ बेसी अहाँक बर्णन हम पाती में 

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-२२)
जगदानन्द झा 'मनु'  : गजल संख्या-१३ 

गुरुवार, 26 जनवरी 2012

॥ वाणीकेँ बूझू महत्व ॥

वसंत पंचमी पर विशेष
॥ वाणीकेँ बूझू महत्व ॥
वाग्देवी सरस्वती माए वाणी , विद्या ,
ज्ञान-विज्ञान एवं कला-कौशल आदिकेँ
अधिष्ठात्री मानल जायत छथि । ई प्रतीक
छथि मानवमे निहित ओहेन चैतन्य केँ , जे मानुष्यकेँ
अंधकार सँ ज्ञान रूपी प्रकाश दिश अग्रसर
करबैयत छथि ।
सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेदमे सरस्वतीकेँ दू
रूपक दर्शन होइत अछि - प्रथम वाग्देवी आओर
द्वितीय सरस्वती । हिनका वुद्धि सँ सम्पन्न ,
प्रेरणादायिनी आ प्रतिभाकेँ तेज करय
वाली शक्ति कहल गेल अछि । ऋग्वेद संहिताकेँ
सूक्त संख्या 8/100 मे वाग्देवीक महिमा केँ
वर्णन अछि । ऋग्वेद संहिताकेँ दशम मंडलकेँ
125म सूक्त पूर्णतया वाक्(वाणी)केँ समर्पित
अछि । एहि सूक्तकेँ आठ ऋचाकेँ माध्यम सँ स्वयं
वाक्शक्ति अपन सामर्थ्य , प्रभाव , सर्वव्यपकता आओर महत्ताकेँ उद्घोष करैय छथि ।
@वाणीकेँ महत्व :-
बृहदारण्य उपनिषदमे राजा जनक महर्षि याज्ञवल्क्य सँ पूछैत छथि - जखन सूर्य
डूबि जाइत अछि , चन्दमाकेँ चाँदनी नहि रहैत
अछि आ आगि सेहो मिझा जायत अछि , एहन समय
मनुष्यकेँ प्रकाश देय वाली वस्तु की अछि ???
ऋषि उत्तर दैय छथि - ओ "वाक्(वाणी)"केँ
अधिष्ठात्री भगवती सरस्वती छथि । तखन वाक्
मानवकेँ प्रकाश दैयत अछि । मानवकेँ लेल परम
उपयोगी मार्ग देखाबैय वाली शक्ति "वाक
(वाणी)"केँ अधिष्ठात्री छथि भगवती सरस्वती । छांदोग्य उपनिष्दकेँ अनुसार , जौँ वाणीकेँ अस्तित्व
नहि रहैत तँ नीक-बेजायकेँ ज्ञान नहि होयत ,
सत्य-असत्यक ज्ञान नहि होयत अछि , सहृदय-
निष्ठुरमे भेदक पता नहि चलैत अछि । तैँ वाक्(वाणी)केँ उपासना करू । ज्ञानक एकमात्र अधिष्ठान वाक् अछि । प्राचीन
कालमे वेदादि समस्त शास्त्र कंठस्थ कयल जाइत
छल । गुरू द्वारा शिष्य सभकेँ शास्त्रक ज्ञान
वाणीक माध्यम सँ भेटैत छल । शिष्य सभकेँ गुरूमंत्र
वाणी माध्यम सँ भेटैत छल ।
वाग्देवी सरस्वती केँ आराधनाक प्रसांगिकता आधुनिक युगमे सेहो अछि । मोबाइल द्वारा वाणी(ध्वनि) केँ संप्रेषण एक स्थान सँ
दोसर स्थान होइत अछि । ई ध्वनि-तरंग "नाद-
ब्रह्म"क रूप छी ।
@वसंत पंचमी छी वागीश्वरी जयंती :-
जी खाली रसास्वादनक माध्यम नहि , बल्कि वाग्देवी केँ सिंहासन सेहो छी । "देवी भागवत"क अनुसार वाणीकेँ अधिष्ठात्री सरस्वती देवीक अविर्भाव
श्रीकृष्णक जिह्वाकेँ अग्रभाग सँ भेल अछि ।
परमेश्वरकेँ जिह्वा सँ प्रकट भेल वाग्वेदी सरस्वती कहबैत छथि । अर्थात वैदिक कालक वाग्देवी बादमे सरस्वतीकेँ नाम सँ
प्रसिद्ध भेली । ग्रन्थ सभमे माघ शुक्ल पंचमी (वसंत पंचमी)केँ वाग्देवीकेँ प्रकट होयके तिथि मानल जायत अछि । एहि कारण वसंत
पंचमीकेँ दिन "वागेश्वरी जयंती" मनाइल जाइत
अछि , जे सरस्वती-पुजाकेँ नाम सँ प्रचलित अछि ।
@वाणीकेँ महत्ता पहचानु :-
वाग्देवीकेँ आराधनामे निहित आध्यात्मिक संदेश
अछि कि अपना सभ जे किछु बाजी , सोचि-समैझकेँ
बाजू । मधुर वाणी सँ शत्रुओ केँ मित्र बना सकैत
छी , जखन कि कटु वाणी अपनोकेँ आन बना दैत
अछि । वाणीक बाण जिह्वाकेँ कमान सँ
निकलि गेल , तँ फेर वापस नहि होइत अछि ।
एहि द्वारे वाणीक संयम आओर सदुपयोग
वाग्देवीकेँ प्रसत्र करैयकेँ मूलमंत्र अछि । जखन
व्यक्ति मौन होइत रहैत छथि , तखन वाग्देवी अंतरात्माकेँ आवाज
बनि सत्प्रेरणा दैयत छथि ।
जय माँ सरस्वती

कृष्णानन्द चौधरी

लगमा , दरभंगा ,

मिथिला , भारत

बुधवार, 25 जनवरी 2012

गीत @ प्रभात राय भट्ट


छोड़ी दिय आँचर पिया परेशान नै करू
सदिखन प्रेमलीला पैर एतेक धियान नै धरु
रखु सम्हैर जुवानी जिआन नै करू
होबए दिय कने राईत एखन हैरान नै करू

प्रेम सागर में डुबकी लगाएब हम अहांक संग
मोन के सम्हैर रखु पिया एखन नै करू तंग
अरमान अहांक पुराएब हमरो मोन में अछि उमंग
रखु मोन पैर काबू पिया हम आएब अहांक संग

सास मोर आँगन नंदी बैसल छथि ओसार
ससुर मोर दलान दियर जी बैसल छथि दुवार
लाज सरम सं देह कपैय नीक लगैय नहि दुलार
पैयाँ परैतछि सैयां जी खोलिदिय नए केवार

घरक मर्यादा रखु पिया करू नै नादानी
घर केर जुनी बुझियौ बलम फ़िल्मी कहानी
लोक बेद्क रखु मन बनू नै अज्ञानी
छोड़ी दिय आँचर सैयां करू नै मनमानी

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

लाल ठोर कारी केश गोर गाल बबाल करैए


लाल ठोर कारी केश गोर गाल बबाल करैए,
अहांक  नैन कटार, करेजक निहाकरैए

यौवन आयल उफान देखि हिमवानों हेरा गेल,
ओहि स ढलकइत अहाँक ओढ़नी बबाल करैए

अहांक चालिक ठुमका पर आपण हाल की कहु,
ओहि पर चौवन्नी मुस्की सबके बेहाल करैए

अहांक मोहिनी मुख देखिक ते चानो लजा गेल,
ताहि पर जुल्मी तिलबा सजनी कमाल करैए

अहांक आंखिक नशा से  ते “अमित बौराये गेल,
मुदा अहाँ हेबे किनक? सब नजर सबाल करैए 

रचनाकार--अमित मोहन झा
ग्राम- भंडारिसम(वाणेश्वरी स्थान), मनीगाछी, दरभंगा, बिहार, भारत।

नोट..... महाशय एवं महाशया से हमर ई विनम्र निवेदन अछि जे हमर कुनो भी रचना व हमर रचना के कुनो भी अंश के प्रकाशित नहि कैल जाय।

‎हास्य कविता~कंप्यूटर

कंप्यूटर सँ प्रेम होई छै
कंप्यूटर सँ शादी
कंप्यूटर सँ हेतै बच्चा
बैसल बढ़त आबादी
कंप्यूटर सँ किनब सब किछ
जाएब नइ कोनो मंडी
घरक नोकर कंप्यूटर भेलै
मनुक्ख बजाबै घंटी
कंप्यूटर सँ देश चलए
छुक छुक गाड़ी हवा जहाज
एहि सँ बनए कुंडली पंचांग
पंडितक नइ कोनो काज
कंप्यूटर पर पढ़ब पोथी
एहि पर लिखब नइ चाही सिलेट
कोनो काज नइ छुटत "अमित"
दुनिया कए लेलक समेट ।
{अमित मिश्र}}

गजल- अमित मिश्र

कोनो परी जकाँ लागै छी अहाँ
पुनिम कए राति सन चमकै छी अहाँ

आइ राति खसतै अहाँक बिजुरी कत
सागर कए लहर जकाँ खसै-उठै छी अहाँ

गुलाब सन अहाँक ठोर आँखि झिल लागए
सावन कए मेघ घेरल जखन केश खोलै छी अहाँ

वियहुती साड़ी सींथ सिनुर अनुपम छटा देखाबै यै
चँदा लाजा कs भागल मुस्की जखन मारै छी अहाँ

कखनो कतबो ककरो क्रोध सँ होई काँपैत तन
मिठ बोल मे अमृत मिला परसै छी अहाँ

नैन मिलल तs हटै कए नाम नइ लै यै
हमर दिल कए सब कोन मे बसै छी अहाँ

किछु और लिखत "अमित " मुदा शब्द नइ भटल
ककरो सोच सँ बेसी सुन्नर लगै छी अहाँ

गजल@प्रभात राय भट्ट


आई हमर मोन एतेक उदास किये
सागर पास रहितों मोनमें प्यास किये

निस्वार्थ प्रेम ह्रिदयस्पर्श केलहुं नहि
आई मोनमे बहै बयार बतास किये

हम प्रगाढ़ प्रेमक प्राग लेलहुं नहि
आई प्रीतम मोन एतेक हतास किये


प्रेम स्नेह सागर हम नहेलहूँ नहि
आई प्रेम मिलन ले मोन उदास किये

हम मधुर मुस्कान संग हंस्लहूँ नहि
आई दिवास्वपन एतेक मिठास किये

"प्रभात" संग पूनम आएत आस किये
नहि आओत सोचिक मोन उदास किये
.................वर्ण-१५............................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

मंगलवार, 24 जनवरी 2012

पुरस्कार लऽ के नाचू

केकरो स चिन्हा परिचे अछि कारीगर
नहि यौ सरकार तऽ अहिं कहू की हम करू
त आउ हमरे स चिन्हा परिचे कए लियअ
आ पुरस्कार लऽ के नाचू।

अपने कुटुम बैसल छथि
अकेडमी आ चयन बोर्ड मे
लिख्खा परही करबाक कोन काज
तिकड़मबाजी कए लगबै छी पुरस्कारक भाँज।

हिनके कृपा स भेटल पुरस्कार
खुशी स लागल बोखार
कविता कहानी तऽ तेरहे बाईस मुदा
पुरस्कार लेल लगेलहुँ खूम जोगार।

अहाँ जे लिखलहुँ कारीगर
ओ लागल बड्ड नूनगर
मुदा बिनमतलबो हम जे लिखलियै
ओ लागल बड्ड चहटगर।

बिनमतलब के कथा साहित्य पर
अकेडमी सँ एक दिन आयल हकार
कुटुम बैसले रहथि ओहि ठाम
टटके भेटल पुरस्कार।

आन कतबो नीक किएक ने लिखलक
मुदा ओकरा ने कहियो आएत हकार
नहि छै ओकरा कोनो चिन्हा परिचे
पिछलगुआ टा के जल्दी भेटत पुरस्कार।

पुरस्कारक बदरबाँट भऽ रहल अछि
जाति वर्गक नाम पर लेखक के बाँटू
जूनि पछुआउ पिछलगुआ सभ आउ आगू
अहाँ पुरस्कार लऽ के खूम नाचू।

साहित्यक मठाधीश सभ
शुरू केलैन पुरस्कार
यथार्थवादी चितंक आ लिखनिहार
हुनका लेल भऽ गेलैथ बेकार।

एक्को मिनट देरी नहि अहाँ करू
हुनके गुणगान कए कथा अहाँ बाचू
नहि तऽ जिनगी भरि पाछुए रहि जाएब
पुरस्कारक जोगार मे जीजान स लागू।

अहि दुआरे पछुआले रहि गेल कारीगर
कहियो ने केलक केकरो आगू-पाछू
देखैत छियै आब हम दोसर पुरस्कार दुआरे
जोगार लगा करैत छी हुनकर आगू-पाछू।

बेस त बड्ड बढ़िया हम शुभकामना दैत छी
दोसर पुरस्कार अहाँ के जल्दीए भेट जाए
जल्दी जोगार मे अहाँ लागू
अहाँ पुरस्कार लऽ के खूम नाचू।

लेखकः- किशन कारीगर

गजल



लाल-दाई केँ  ललना लाले लाल लगैत छथि
लाली अपन माए केँ चोरा क' नुकाबैत  छथि 

छैन आँखि में हिनकर काजरक बिजुडिया
माइयो सँ सुन्नर झिलमिल झलकैत छथि

लटकल माथ पर सुन्नर लट हिनकर
देखियौंह  चंद्रमा केँ आब ई  लजाबैत छथि 

सुनि-सुनि बहिना सब हिनकर किलकाडि
कियो खेलाबैत कियो हिनका झुलाबैत छथि

रंग-रूप चाल-चलन सबटा निहाल छैन
मुस्की सँ इ त' अपन 'मनु' केँ लुभाबैत छथि 



(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१७)
जगदानन्द झा 'मनु'  :  गजल संख्या - ११

कवि शमशेर के यादि करैत


डिमेंशिया

ओ देख‍लकइ शेक्‍सपीयर के उज्‍जैन मे जनमैत
आ कालिदास के 'हेमलेट' लिखैत
विद्यापतिक लिखल लैटिन नाटकक मूलप्रति ओकरे पास रहए
ओ देखलकइ गोट तोरीक लाल लाल फूल
ओ कारी गहूमक आटा पिसेलकइ
ओ उज्‍जर बगुलाक सवारी केलकइ
उ केवल कविता लिखलकइ
पता नइ हिंदी ,उर्दू या हरियाणवी मैथिली मे
अली सरदार जाफरी के हिंदी कवि कहबाक साहस ऐ जमाना मे ककरा छैक शमशेर
उ आदमी के आदमी कहलकइ
एक्‍स वा वाई गुणसूत्र नइ
पत्‍नी ,प्रेमिका ,मित्र सँ आगू बांधवीयो कोनो चीज छैक
हमर गवाही रंजना अरगड़े जरूर देतीह
उ अरस्‍तू नइ रहइ
मम्‍मटो नइ
मुदा कहलकइ
कविता इएह ओएह नइ
ईहो कविते थिक
आ स्‍मृतिक नाश डिमेंशिया नइ
समान ओएह रहए
केवल घरे बदलि गेलइ ।
(रवि भूषण पाठक)

सोमवार, 23 जनवरी 2012

'' निष्ठुर प्रियतम''

केहेन निष्ठुर जकां प्रियतम,
अपन जन के सताबे छि ,

करेय छि सिनेह अतिसय हम,
ताहि सा अहाँ क बताबे छि ,

उठे ये पीर करेजा में किएक ,
अहाँ जनि बुझी दुखाबे छि ,

सुने छि प्रेम अहाँ अप्पन ता ,
आंजुर भरी- भरी लूटाबे छि ,

आबे ये बेर जखन हम्मर ता,
देखू किय निकुती नपाबे छि ,

नै जानि कतेक निदर्दी छि अहाँ ,
सबटा बुझितो न लजाबय छि ,

बुझै छि बात ता सबटा हम,
अहाँ हमरा की सिखाबाई छि ,

रहे ये मोन टांगल कतो अहाँक,
आ प्रेम हमरा सां जताबे छि ,