सभ कहैत अछि अहाँक रुप चाँद सन अछि , हमरासॅ पूछू चंदा अहाँ सन अछि
सभ कहैत अछि बोली कोईली सन अछि ,नहिं कोईलीके बोली अहाँ सन अछि
फूलके महक सभसॅ नीक होयति अछि ,ओ खूशबू कहँा जे अहाँ बदनमे अछि
कथी सॅ तुलना करी अहाँ के फॅुराय नहिं अछि ,
नहिं किछु जमीं पर अहाँ सन अछि
ताजमहल सौं तुलना अहाँ के कोना करी , ओ बेजान अछि अहाँ में त जीवन अछि
डाँड़ के लचक जेना फूल के अछि डाली , मुदा डाली के लचक कहाँ अहाँ सन अछि
अहाँ बात करी त मुँह सॅ फूल झरैति अछि , ई मिठास कहाँ फूलक गंध मे अछि
बलखा के चलय छी धार के पानि जकाँ , मुदा धार के लहर कहाँ अहाँ सन अछि
अहाँ नयन तीर सॅ कतेको कत्ल कएलौं , कत्ल भ के सभ कतेक मगन में अछि
मुसकी सॅ कतेको दिल पर बिजुरी गिरेत अछि , बिजुरी में बात कहाँ अहाँ सन अछि
सृंगार अहाँ करी त ई सृंगारके अहो भाग्य ,सिंगारके जरुरत अहाँके कखन अछि
आईना जौं देखब त आईना टूटि जाईत होयत , आईना में रुप कहाँ अहाँ सन अछि
विधनों देख के सोचिमे पडि़ जायत अछि , एहेन रुपक फरमा कहाँ हमरा लगन में अछि
कुनु षायर के षायरी त कहि नहिं सकेत छी , षायरो क कल्पना कहाँ अहाँ सन अछि
केकरा सॅ पूछी अहाँ कोन लोक सॅ अएलौं , एहेन परियो कहाँ इन्द्र के भवन में अछि
अहाँ के देखि के कामदेव के रति लजा गेल , सोचति अछि रुप कहाँ अहाँ सन अछि
जकरा देखिके सभक मनमे प्रेम उमडि़ जाय , एहेन वयस अहाँके अखन अछि
किनकर बनब अहाँ किनकर छनि एहेन नसीब , हुनकर नसीब , रुप अहाँ सन अछि
सत्य कहैति छी जे अहाँ सन एगो अहीं छीं , और दोसर नहिं किछु अहाँ सन अछि
एक बेर हुलकी मारि कऽ देखयो ’आशिक’क दिलमे बस एगो सूरत अहाँ सन अछि
आशिक ’राज’
सभ कहैत अछि बोली कोईली सन अछि ,नहिं कोईलीके बोली अहाँ सन अछि
फूलके महक सभसॅ नीक होयति अछि ,ओ खूशबू कहँा जे अहाँ बदनमे अछि
कथी सॅ तुलना करी अहाँ के फॅुराय नहिं अछि ,
नहिं किछु जमीं पर अहाँ सन अछि
ताजमहल सौं तुलना अहाँ के कोना करी , ओ बेजान अछि अहाँ में त जीवन अछि
डाँड़ के लचक जेना फूल के अछि डाली , मुदा डाली के लचक कहाँ अहाँ सन अछि
अहाँ बात करी त मुँह सॅ फूल झरैति अछि , ई मिठास कहाँ फूलक गंध मे अछि
बलखा के चलय छी धार के पानि जकाँ , मुदा धार के लहर कहाँ अहाँ सन अछि
अहाँ नयन तीर सॅ कतेको कत्ल कएलौं , कत्ल भ के सभ कतेक मगन में अछि
मुसकी सॅ कतेको दिल पर बिजुरी गिरेत अछि , बिजुरी में बात कहाँ अहाँ सन अछि
सृंगार अहाँ करी त ई सृंगारके अहो भाग्य ,सिंगारके जरुरत अहाँके कखन अछि
आईना जौं देखब त आईना टूटि जाईत होयत , आईना में रुप कहाँ अहाँ सन अछि
विधनों देख के सोचिमे पडि़ जायत अछि , एहेन रुपक फरमा कहाँ हमरा लगन में अछि
कुनु षायर के षायरी त कहि नहिं सकेत छी , षायरो क कल्पना कहाँ अहाँ सन अछि
केकरा सॅ पूछी अहाँ कोन लोक सॅ अएलौं , एहेन परियो कहाँ इन्द्र के भवन में अछि
अहाँ के देखि के कामदेव के रति लजा गेल , सोचति अछि रुप कहाँ अहाँ सन अछि
जकरा देखिके सभक मनमे प्रेम उमडि़ जाय , एहेन वयस अहाँके अखन अछि
किनकर बनब अहाँ किनकर छनि एहेन नसीब , हुनकर नसीब , रुप अहाँ सन अछि
सत्य कहैति छी जे अहाँ सन एगो अहीं छीं , और दोसर नहिं किछु अहाँ सन अछि
एक बेर हुलकी मारि कऽ देखयो ’आशिक’क दिलमे बस एगो सूरत अहाँ सन अछि
आशिक ’राज’
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