कए साल स सुनइत आइब रहल छी,
बेटि त पराया धन होइत अछि ,
जकरा हम सहेजइ छी, संभारइ छी ,
अपन जान स बेसी मानैत छी ,
और फेर चैल जाइत अछि वो एक दिन,
अपन तथाकथित स्वामीक लग|
मुदा एक बात के उत्तर देता कियो हमरा ,
भला किएक कियो अपन धन के ,
वापस लय में सेहो धन माँगइत अछि ,
या फेर अपन धन के अनैहते ,
जर्बैत अछि या घर स निकाइल बाहर करइत अछि |
यदि नय त किएक दहेज के आइग में ,
जरइत अछि हजारो बेटि,
या दर दर ठोकर खाय के लेल मजबूर अछि ,
अपन बाबु के वो राजदुलारी ,
दोष नियत के अछि या अय समाज़ के ,
की यशोदा सेहो आन बुझलक ,
और देवकी सेहो नय अपनेलक |
निशांत झा
गुरुवार, 22 मार्च 2012
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ@प्रभात राय भट्ट
मिथिला के हम बेट्टी छि मैथिलि हमर नाम यौ
जनक हमर पिता छथि जनकपुर हमर गाम यौ
जगमे भेटत नै कतहूँ एहन सुन्दर मिथिलाधाम यौ
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ
मिथिला के हम बेट्टा ची मिथिलेश हमर नाम यौ
मिथिला के हम वासी छि जनकपुर हमर गाम यौ
ऋषि महर्षि केर कर्मभूमि अछि मिथिलाधाम यौ
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ
मिथिलाक मैट सं अवतरित भेल्हीं सीता जिनकर नाम यौ
उगना बनी महादेव एलाह पाहून बनी कय राम यौ
धन्य धन्य अछि मिथिलाधाम,मिथिलाधाम जगमे महान यौ
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ
हिमगिरी के कोख सं ससरल कमला कोशी बल्हान यौ
मिथिला के शान बढौलन मंडन,कुमारिल,वाचस्पति विद्द्वान यौ
हमर जन्मभूमि कर्मभूमि स्वर्गभूमि मिथिलाधाम यौ
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ
कपिल कणाद गौतम अछि मिथिलाक शान यौ
विद्यापति के बाते अनमोल ओ छथि मिथिलाक पहिचान यौ
जगमे भेटत नै कतहूँ एहन सुन्दर मिथिलाधाम यौ
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
जनक हमर पिता छथि जनकपुर हमर गाम यौ
जगमे भेटत नै कतहूँ एहन सुन्दर मिथिलाधाम यौ
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ
मिथिला के हम बेट्टा ची मिथिलेश हमर नाम यौ
मिथिला के हम वासी छि जनकपुर हमर गाम यौ
ऋषि महर्षि केर कर्मभूमि अछि मिथिलाधाम यौ
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ
मिथिलाक मैट सं अवतरित भेल्हीं सीता जिनकर नाम यौ
उगना बनी महादेव एलाह पाहून बनी कय राम यौ
धन्य धन्य अछि मिथिलाधाम,मिथिलाधाम जगमे महान यौ
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ
हिमगिरी के कोख सं ससरल कमला कोशी बल्हान यौ
मिथिला के शान बढौलन मंडन,कुमारिल,वाचस्पति विद्द्वान यौ
हमर जन्मभूमि कर्मभूमि स्वर्गभूमि मिथिलाधाम यौ
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ
कपिल कणाद गौतम अछि मिथिलाक शान यौ
विद्यापति के बाते अनमोल ओ छथि मिथिलाक पहिचान यौ
जगमे भेटत नै कतहूँ एहन सुन्दर मिथिलाधाम यौ
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
बुधवार, 21 मार्च 2012
गजल
जीनाइ भेलै महँग, एतय मरब सस्त छै।
महँगीक चाँगुर गडल, जेबी सभक पस्त छै।
जनता ढुकै भाँड मे, चिन्ता चुनावक बनल,
मुर्दा बनल लोक, नेता सब कते मस्त छै।
किछु नै कियो बाजि रहलै नंगटे नाच पर,
बेमार छै टोल, लागै पीलिया ग्रस्त छै।
खसि रहल देबाल नैतिकताक नित बाट मे,
आनक कहाँ, लोक अपने सोच मे मस्त छै।
चमकत कपारक सुरूजो, आस पूरत सभक,
चिन्तित किया "ओम" रहतै, भेल नै अस्त छै।
(बहरे-बसीत)
गजल
बेटी नहि होइ दुनिआ में, कहु बेटा लाएब कतए सँ
जँ दीप में बाती नहि तँ, कहु दीप जलाएब कतए सँ
आबै दियौ जग में बेटी के, के कहे ओ प्रतिभा,इन्द्रा होइ
भ्रूण-हत्या करब तँ कल्पना,सुनीता पाएब कतए सँ
मातृ-स्नेह, वात्सलके ममता, बेटी छोरि कें दोसर देत
बिन बेटी वर कें कनियाँ कहु कोना लाएब कतए सँ
धरती बिन उपजा कतए, घर बिनु कतए घरारी
बिन बेटी सपनो में, नव संसार बसाएब कतए सँ
हमर कनियाँ, माए बाबी हमर किनको बेटीए छथि
बिन बेटी एहि दुनिआ में, मनु हम आएब कतए सँ
जगदानन्द झा 'मनु'
जँ दीप में बाती नहि तँ, कहु दीप जलाएब कतए सँ
आबै दियौ जग में बेटी के, के कहे ओ प्रतिभा,इन्द्रा होइ
भ्रूण-हत्या करब तँ कल्पना,सुनीता पाएब कतए सँ
मातृ-स्नेह, वात्सलके ममता, बेटी छोरि कें दोसर देत
बिन बेटी वर कें कनियाँ कहु कोना लाएब कतए सँ
धरती बिन उपजा कतए, घर बिनु कतए घरारी
बिन बेटी सपनो में, नव संसार बसाएब कतए सँ
हमर कनियाँ, माए बाबी हमर किनको बेटीए छथि
बिन बेटी एहि दुनिआ में, मनु हम आएब कतए सँ
जगदानन्द झा 'मनु'
लेबल:
गजल,
जगदानन्द झा 'मनु'
मैथिली गीत
एगो बात छिए भौजी मोन में विचारे निरुपमा से नहिं हेतेह बियाह त मरि जएबे कुमारे सपना देखेय छी हम आब दिन के ... यै भौजी लगबु जोगार अहाँ अपना बहिन से जहिया से हम अहाँ के बहिन के देखलौं सुधि बुधि अपन भौजी सबटा बिसरलौं भ गेलेय प्यार हमरा अहाँ बहिन से यै भौजी लगबु जोगार अहाँ अपना बहिन से रुपया पैसा भीैजी किछुओ नहिं लेबेय ऊपर सॅ जेे माँगब सब किछु देबेय गहना हम आनि देबेय चुनि चुनि के यै भौजी लगबु जोगार अहाँ अपना बहिन से बात चलाबु भौजी बात बढ़ाबु अपना बहिन से हमर बियाह कराबु नहिं त खाई लेबे जहर किन के यै भौजी लगबु जोगार अहाँ अपना बहिन से एगो बात छिए भौजी मोन में विचारे निरुपमा से नहिं हेतेह बियाह त मरि जएबे कुमारे सपना देखेय छी हम आब दिन के यै भौजी लगबु जोगार अहाँ अपना बहिन से आशिक ’राज’
प्राचीन मिथिला
मिथिला के मिथिलेश्वर महादेव हम की कहू यौ
स्वम अहाँ छि अन्तरयामी अहाँ सभटा जनैतछी यौ
बसुधाक हृदय छल हमर महान मिथिला
इ हमही नै शाश्त्र पुराण कहैय यौ
मिथिलाक जन जन छलाह जनक एही ठाम
ताहि लेल नाम पडल जनकपुर धाम
राजा जनक छलाह राजर्षि जनकपुरधाम में
सीता अवतरित भेलन्हि मिथिले गाम में
मिथिलाक पाहून बनी ऐलाह चारो भाई राम
विद्यापती के चाकर बनलाह उगना एहि ठाम
चारो दिस अहिं छि महादेव जनकपुर के द्वारपाल
पुव दिस मिथिलेश्वरनाथ पश्चिम जलेश्वरनाथ
उत्तर दिस टूटेश्वरनाथ दक्षिण कलानेश्वरनाथ
किनहू भs सकय मिथिलाक प्राणी अनाथ
इ ध्रुव सत्य अछि प्राचीन मिथिलाक परिभाषा
एखुनो अछि एहन सुन्दर मिथिलाक अभिलाषा
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
स्वम अहाँ छि अन्तरयामी अहाँ सभटा जनैतछी यौ
बसुधाक हृदय छल हमर महान मिथिला
इ हमही नै शाश्त्र पुराण कहैय यौ
मिथिलाक जन जन छलाह जनक एही ठाम
ताहि लेल नाम पडल जनकपुर धाम
राजा जनक छलाह राजर्षि जनकपुरधाम में
सीता अवतरित भेलन्हि मिथिले गाम में
मिथिलाक पाहून बनी ऐलाह चारो भाई राम
विद्यापती के चाकर बनलाह उगना एहि ठाम
चारो दिस अहिं छि महादेव जनकपुर के द्वारपाल
पुव दिस मिथिलेश्वरनाथ पश्चिम जलेश्वरनाथ
उत्तर दिस टूटेश्वरनाथ दक्षिण कलानेश्वरनाथ
किनहू भs सकय मिथिलाक प्राणी अनाथ
इ ध्रुव सत्य अछि प्राचीन मिथिलाक परिभाषा
एखुनो अछि एहन सुन्दर मिथिलाक अभिलाषा
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
गजल@प्रभात राय भट्ट
गजल@प्रभात राय भट्ट
गजल:-
अहाँ विनु जिन्गी हमर बाँझ पडल अछि
सनेह केर पियासल काया जरल अछि
दूर रहितो प्रीतम अहाँ मोन पडैत छि
प्रीतम अहिं सं मोनक तार जुडल अछि
तडपैछि अहाँ विनु जेना जल विनु मीन
अहाँ विनु जिया हमर निरसल अछि
नेह लगा प्रीतम किया देलौं एहन दगा
मधुर मिलन लेल जिन्गी तरसल अछि
अहाँ विनु प्रीतम जीवन व्यर्थ लगैय
की अहाँक प्रेमक अर्थ नहीं बुझल अछि
..............वर्ण-१६...........
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
अहाँ विनु जिन्गी हमर बाँझ पडल अछि
सनेह केर पियासल काया जरल अछि
दूर रहितो प्रीतम अहाँ मोन पडैत छि
प्रीतम अहिं सं मोनक तार जुडल अछि
तडपैछि अहाँ विनु जेना जल विनु मीन
अहाँ विनु जिया हमर निरसल अछि
नेह लगा प्रीतम किया देलौं एहन दगा
मधुर मिलन लेल जिन्गी तरसल अछि
अहाँ विनु प्रीतम जीवन व्यर्थ लगैय
की अहाँक प्रेमक अर्थ नहीं बुझल अछि
..............वर्ण-१६...........
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
मंगलवार, 20 मार्च 2012
प्रवीन नारायण चौधरी जिक कविता -बेटी अहाँ विद्यालय जाउ!
भले जे हेतै बाद में देखबै - एखन अहाँ विद्यालय जाउ!
शिक्षा के शक्ति जगके जननी - अहुँ अपन अस्मिता बनाउ!
जुनि पिछड़ू कोनो विधामें पाछू - अस्तित्वक रक्षा-किला बनाउ!
बेटी अहाँ विद्यालय जाउ!
देखू आइ संसार में नारी - अग्रपाँति नेत्री बनि चलैथ!
जतय दहेजक चाप आ मारि - सैह समाज पिछड़ल छैथ!
शिक्षाके पूँजी सभसऽ बड़का - दहेज-दान के त्याग कराउ!
बेटी अहाँ विद्यालय जाउ!
भारतमें नारी छथि आगू - मिथिला बेसी पिछड़ल अछि!
बीति गेल देखू कते जमाना - गार्गी - भारती पड़ल अछि!
पुनः प्रीतिके रीति सऽ सभके - अपन दिव्य शक्तिके देखाउ!
बेटी अहाँ विद्यालय जाउ!
हरिः हरः!
प्रवीन नारायण चौधरी
शिक्षा के शक्ति जगके जननी - अहुँ अपन अस्मिता बनाउ!
जुनि पिछड़ू कोनो विधामें पाछू - अस्तित्वक रक्षा-किला बनाउ!
बेटी अहाँ विद्यालय जाउ!
देखू आइ संसार में नारी - अग्रपाँति नेत्री बनि चलैथ!
जतय दहेजक चाप आ मारि - सैह समाज पिछड़ल छैथ!
शिक्षाके पूँजी सभसऽ बड़का - दहेज-दान के त्याग कराउ!
बेटी अहाँ विद्यालय जाउ!
भारतमें नारी छथि आगू - मिथिला बेसी पिछड़ल अछि!
बीति गेल देखू कते जमाना - गार्गी - भारती पड़ल अछि!
पुनः प्रीतिके रीति सऽ सभके - अपन दिव्य शक्तिके देखाउ!
बेटी अहाँ विद्यालय जाउ!
हरिः हरः!
प्रवीन नारायण चौधरी
लेबल:
कविता,
प्रवीन नारायण चौधरी
रवि मिश्रा जिक प्रस्तुति
हम छी मिथीलाक बेटी हमर की दोस अछी
अहाँ हमरा सँ प्रेम केलौ कहु हमर की दोस अछी
अहाँक पिताजी माँगै छथि दहेज
हमर पिताजी छथि निर्धन कहु हमर की दोस अछी
क निर्धन केर बेटी सँ प्रेम- वीलाप
आब भेलौ कठोर कहु हमर की दोस अछी
मन में बसी अहाँ भेलौ निठुर
हमर जीनजी केलो बेकार कहु हमर की दोस अछी
टुतल मोन झरै या नयन सँ नोर
नै रुकै या नोर कहु हमर की दोस अछी
हमर नोर देखी हंसै या लोक
हम कनैत छि हुनक हंसी सँ कहु हमर
रवि मिश्रा
अहाँ हमरा सँ प्रेम केलौ कहु हमर की दोस अछी
अहाँक पिताजी माँगै छथि दहेज
हमर पिताजी छथि निर्धन कहु हमर की दोस अछी
क निर्धन केर बेटी सँ प्रेम- वीलाप
आब भेलौ कठोर कहु हमर की दोस अछी
मन में बसी अहाँ भेलौ निठुर
हमर जीनजी केलो बेकार कहु हमर की दोस अछी
टुतल मोन झरै या नयन सँ नोर
नै रुकै या नोर कहु हमर की दोस अछी
हमर नोर देखी हंसै या लोक
हम कनैत छि हुनक हंसी सँ कहु हमर
रवि मिश्रा
गजल
प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक एकटा गजल सरल वार्णिक बहर में
तरहत्थी दीप जरा हम ठारै छलौ,
अहाँक जोहैत रस्ता हम ठारै छलौँ ,
अहाँ आएब एहि बाटे फुईसे छलै ,
लेलौं किए हाथो पका हम ठारै छलौँ ,
कठोर अहाँ देखलौं नै आँखिक नोर ,
मुदा कानि आँखि फुला हम ठारै छलौँ ,
हमर दर्दक मोल नै जनलौ अहाँ ,
कनी बुझितहुँ व्यथा हम ठारै छलौँ ,
अहीं केर आशमें जँ मरब कहियो ,
नै आनब नामो कदा हम ठारै छलौँ ,
बेदर्दी अहाँ दर्द बुझब कि हमर,
मुदा व्यर्थ पिडा बता हम ठारै छलौँ|
-----------वर्ण -१४ ---------
रूबी झा
तरहत्थी दीप जरा हम ठारै छलौ,
अहाँक जोहैत रस्ता हम ठारै छलौँ ,
अहाँ आएब एहि बाटे फुईसे छलै ,
लेलौं किए हाथो पका हम ठारै छलौँ ,
कठोर अहाँ देखलौं नै आँखिक नोर ,
मुदा कानि आँखि फुला हम ठारै छलौँ ,
हमर दर्दक मोल नै जनलौ अहाँ ,
कनी बुझितहुँ व्यथा हम ठारै छलौँ ,
अहीं केर आशमें जँ मरब कहियो ,
नै आनब नामो कदा हम ठारै छलौँ ,
बेदर्दी अहाँ दर्द बुझब कि हमर,
मुदा व्यर्थ पिडा बता हम ठारै छलौँ|
-----------वर्ण -१४ ---------
रूबी झा
सोमवार, 19 मार्च 2012
दहेज
दहेजक नाम सुनि कऽ
कांइपि उठैत अछि ,माए-बापऽक करेज
कतबो छटपटायब तऽ
लड़कवला कम नहि करताह अपन दहेज।
ओ कहताह, जे बियाह करबाक अछि
तऽ हमरा देबैह परत दहेज
पाई नहि अछि तऽ
बेच लिय अपना जमीनऽक दस्तावेज।
दहेज बिना कोना कऽ करब
हम अपना बेटाक मैरेज
दहेज नहि लेला सऽंॅ खराब होयत
समाज में हमर इमेज।
एहि मॉडर्न जुग मे तऽ
एहेन होइत अछि मैरेज
आयल बरियाति घूरीकऽ जाइत छथि
जऽंॅ कनियो कम होइत अछि दहेज।
मादा-भूर्ण आओर नव कनियाक
जान लऽ लैत अछि इ दहेज
ई सभ देखि सूनि कऽ
काइपि उठैत अछि ‘किशन’ के करेज।
समाज के बरबाद केने
जा रहल अछि ई दहेज
बचेबाक अछि समाज के तऽ
हटा दियौ ई मुद्रारूपी दहेज।
खाउ एखने सपत ,करू प्रतिज्ञा
जे आब नहि मॅंागब दहेज
बिन दहेजक हेतै आब सभ ठाम
सभहक बेटीक मैरेज।
लेखक:- किशन कारीगर
संवाददाता, आकाशवाणी दिल्ली ।
मऊगी के बड़ाई
भाई की कहि कोना हम रहे छी
(मित्र क डायरी स)
आशिक ’राज’
भरिदिन त डयूटी करय छी राइतो के खटय छी
जौं किछु कहब हम हुनका
चट द कहती अहाँ की बुझय छी
साग सब्जी दुर परायत
भेटत ओहि दिन नुन मरचाई
नहिं किछु कहब त देतीह ठिठियाई
किछु कहब त लेती मुँह फुलाई
पन्द्रह दिन ओ घर चलयती
पैसा खतम क के कहती
पन्द्रह दिन आब अहुँ घर चलाबी
नहिं चलाबी त बेलुइर बनइती
सनडे दिन कहती अहीं हाथक किछु खाई
बड़ मऊगी देखलौं भाई
की कहबौ मऊगी के बड़ाई
(मित्र क डायरी स)
आशिक ’राज’
रविवार, 18 मार्च 2012
गजल
प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक एकटा गजल सरल वार्णिक बहर में
जग में बेटी के सम्मान भेटै कहियो
माई बापक अभिमान भेटै कहियो
माँ केर कोईख सँ लेलें दुनु जनम
मुदा अधिकार समान भेटै कहियो
भैर देश के आई सम्हारने छै बेटी
अपन समाजो में मान भेटै कहियो
पहुँच गेलै बेटी अंतरिक्ष अखन
वसुंधरा पर सम्मान भेटै कहियो
भेल चौपट मिथिला दहेज प्रथा सँ
दहेज़ बिनु वरदान भेटै कहियो
घुटि मरे "रूबी" पुरुखक समाज में
एको दिन नारी प्रधान भेटै कहियो
रुबी झा
जग में बेटी के सम्मान भेटै कहियो
माई बापक अभिमान भेटै कहियो
माँ केर कोईख सँ लेलें दुनु जनम
मुदा अधिकार समान भेटै कहियो
भैर देश के आई सम्हारने छै बेटी
अपन समाजो में मान भेटै कहियो
पहुँच गेलै बेटी अंतरिक्ष अखन
वसुंधरा पर सम्मान भेटै कहियो
भेल चौपट मिथिला दहेज प्रथा सँ
दहेज़ बिनु वरदान भेटै कहियो
घुटि मरे "रूबी" पुरुखक समाज में
एको दिन नारी प्रधान भेटै कहियो
रुबी झा
गजल@प्रभात राय भट्ट
गजल@प्रभात राय भट्ट
गजल:-
वसंत ऋतू में आएल सगरो वसंत बहार
वनस्पतिक पराग गमकौने अनन्त संसार
हरियर पियर उज्जर पुष्प आर लाले लाल
पुष्पक राग केर उत्कर्ष अछि वसंत बहार
झूमी रहल कियो गाबी रहल नाचे कियो नाच
पलवित भेल प्रेम मोन में अनन्त उद्गार
सीतल सुन्दर सजल बहैय वसंत पवन
मनोरम प्रकृतिक दृश्य अछि वसंत बहार
मोर मयूरक नृत्य मधुवन कुह्कैय कोईली
मधुर मुस्कान सगरो आनंद अनन्त संसार
प्रेम मिलन मग्न प्रेमी पुष्पित वसंत बहार
मोन उपवन सुरभित भेल अनन्त संसार
.............वर्ण-१८.............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
वसंत ऋतू में आएल सगरो वसंत बहार
वनस्पतिक पराग गमकौने अनन्त संसार
हरियर पियर उज्जर पुष्प आर लाले लाल
पुष्पक राग केर उत्कर्ष अछि वसंत बहार
झूमी रहल कियो गाबी रहल नाचे कियो नाच
पलवित भेल प्रेम मोन में अनन्त उद्गार
सीतल सुन्दर सजल बहैय वसंत पवन
मनोरम प्रकृतिक दृश्य अछि वसंत बहार
मोर मयूरक नृत्य मधुवन कुह्कैय कोईली
मधुर मुस्कान सगरो आनंद अनन्त संसार
प्रेम मिलन मग्न प्रेमी पुष्पित वसंत बहार
मोन उपवन सुरभित भेल अनन्त संसार
.............वर्ण-१८.............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
शनिवार, 17 मार्च 2012
गजल
प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक एकटा गजल सरल वार्णिक बहर में
सगरो नगरी मे कतेक , शोर भs गेलए
हुनक रुपक इजोत सँ , भोर भs गेलए
यौबन केर रौद चम-चम चमकै एना
नहा इजोरिया, रसीक चकोर भs गेलए
केखनो गुदरी ज्यो फाटल, लेलैंह पहीर
देह हुनकर सजल , पटोर भsगेलए
अनुपम सुन्नैर लगैत जेना ओ अप्सरा
मेनका के रुप जेना कोनो ठार भsगेलए
वो लेलेन अन्गराई ,करेज बुढबो पिटे
छौरा देखैक लेल त हलखोर भsगेलए
--- -- -- -- -- - --वर्ण -१६ --- -- -- -- --
रुबी झा
सगरो नगरी मे कतेक , शोर भs गेलए
हुनक रुपक इजोत सँ , भोर भs गेलए
यौबन केर रौद चम-चम चमकै एना
नहा इजोरिया, रसीक चकोर भs गेलए
केखनो गुदरी ज्यो फाटल, लेलैंह पहीर
देह हुनकर सजल , पटोर भsगेलए
अनुपम सुन्नैर लगैत जेना ओ अप्सरा
मेनका के रुप जेना कोनो ठार भsगेलए
वो लेलेन अन्गराई ,करेज बुढबो पिटे
छौरा देखैक लेल त हलखोर भsगेलए
--- -- -- -- -- - --वर्ण -१६ --- -- -- -- --
रुबी झा
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