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शनिवार, 18 फ़रवरी 2023

भक्ति गजल

आई महाशिवरात्रि केर शुभ अवसर पर श्रीशिव जीकेँ कृपासँ प्रस्तुत अछि एकटा शिव गजल, भक्ति गजल 

गजल 

चलू देखब हे बहीना शिवकेँ 

अपन गौरीकेँ सजनमा शिवकेँ 

 

सभक ई खाली भरै छथि झोली 

सरण आइब जे सुमरला शिवकेँ 

 

गरीबोकेँ छथि इहे सुननाहर 

दियौ जल भरि एक लोटा शिवकेँ 

 

मनुख दानव देव भूत प्रेतो 

सगर दुनिया मिल मनेला शिवकेँ 

 

सिया रामोकृष्ण हुनके पुजलनि 

बनेलनि सगरो अराध्या शिवकेँ 

 

कृपानिधि कैलाशवासी जय भव

चरण वंदन जग रचैता शिवकेँ 

 

मनोरथ सब पूर्ण करता शम्भू 

कहल ‘मनु’ जे मनसँ भजता शिवकेँ 

(मात्राक्रम- 1222-2/ 1222-2)

सुझाव, मार्गदर्शन व आलोचना सादर आमंत्रित अछि। 

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

रविवार, 5 फ़रवरी 2023

गजल

जखन कखनो जे सोचब हमरा

अपन लअगेमे पायब हमरा

 

गजल हमर शव्द बनि तनमनमे 
कचोटत तँ अहाँ ताकब हमरा 

 

बहुत दुर छी कोनो बाते नै

अपन मोनेमे देखब हमरा


दुनू दू तन  एक्के जिनगी छी

अहाँ कखनो नै बिसरब हमरा


अहाँकेँ हम छी कहलौं जे ‘मनु’

कि मुइला बादो मानब हमरा 

(बहरे गोविंद, मात्राक्रम : 12 22 22 22 2, सभ पाँतिमे। दोसर शेरकेँ दोसर पाँतिमे दूटा अलग-अलग लघुकेँ दिर्ध मानक छुट लेल गेल अछि)

 ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

रविवार, 29 जनवरी 2023

गजल

दर्द देखायब करेजाक मानब की

काल्हि सपनोमे हँसी छोरि कानब की 

 

प्रेम पुरुषक छैक गोबर अहाँ कहलौं

चीर देखायब करेजा तँ गानब की

 

दोख सभमे नै कतउ एकमे हेते

संग हमरा ओहिमे सभक सानब की 

 

आइ छै अन्हार सगरो अहाँ कहलौं

आँखि मुनि लाइटसँ अन्हार आनब की

 

कनिक हमरोपर भरोसा क कय देखू

प्रेम ककरा छै कहै  'मनु'सँ जानब की

(बहरे कलीब, मात्राक्रम : 2122-2122-1222)

 ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

शनिवार, 14 जनवरी 2023

जगदानन्द झा ‘मनु’क पच्चीस टा रुबाइ एक्केठाम

रुबाइ 1
आँचर नहि उठाबू आँखिसँ पी दि
हम जन्मसँ पियासल करेज जुड़ब दि
के कहैत अछि निसाँ शराबमे बड़ अछि 
कनी अपन प्रेमक निसाँमे जीबय दि
 
 
रुबाइ 2
हम पीलौं तँ लोक कहलक शराबी अछि 
कहू एतअ के नहि बहसल कबाबी अछि
बुझलौं अहाँ सभ   दुनियाक ठेकेदार 
हमरो  आँखिसँ देखू की खराबी अछि  
 
 
रुबाइ 3
पीब नै शराब तँ हम जी कोना क
फाटल करेजकेँ हम सी कोना क
सगरो जमाना भेल दुश्मन शराबक
सबहक सोंझा तँ आब पीब कोना क
 
 
रुबाइ 4
पीलौं शराब तँ दुनियाँ कहलक बताह 
बिन पीने ई दुनियाँ भेल अछि कटाह
जे नहि पीलक कहाँ अछि ओकरो महल
तँ पिबिए क' किएक नहि बनि जाइ घताह
 
 
रुबाइ 5
भेटल नहि सिनेह   तेँ शराबे पीलौं
दर्शन हुनक हरदम गिलासमे केलौं 
के कहैत अछि शराब छैक खराब ‘मनु’
बिन हुनक रहितौं शराबे सँ हम जीलौं
 
 
रुबाइ 6
ढोलक धम-धमा-धम बजैत किएक छै
घुँघरू खन-खना-खन खनकैत किएक छै
दुनू भीतरसँ छैक एक्केसन  खाली 
दुनू अपन गप्प नहि बुझैत किएक छै
 
 
रुबाइ 7
पीलौं नहि तँ की छै शराब बूझब की 
बिन पीने दुनियाँमे करब तँ करब की 
एक दोसरकेँ सभ अछि खून पीबैत 
खून छोड़ि शराबे पी कय देखब की 
 
 
रुबाइ 8
गोरी तोहर काजर जान मारैए 
छौंरा सभ सगर हाय तान मारैए 
पेएलक बड़ भाग काजर विधातासँ 
तोहर आँखिमे कते शान मारैए 
 
 
रुबाइ 9
काजर बुझि क अपन आँखिमे बसा लि
मित बना क कनीक करेजसँ लगा लि
ऐना जुनि अहाँ   कनखी नजरि घुमाऊ
आँखिक अपन  करीया काजर बना लिअ
 
 
रुबाइ 10
फूसियो जँ कनी अहाँ इशारा करितहुँ
भरि जीवन हम अहीँक बाटमे रहितहुँ
मुस्कीमे अहाँक अपन मोन लूटा क
तरहत्थीपर जान लेने  हम अबितहुँ
 
 
रुबाइ 11
अनकर घर जड़ा हाथ सेकै सभ कियो 
दोसरक करेजा तोरि हँसै सभ कियो 
अपना पर जे बिपति एलै कएखनो 
माथा पकडि हिचुकि-हिचुकि कनै सभ कियो
 
 
रुबाइ 12
कोन बिधि मरि क हम रुपैया कमेलौं
सुख चैन निन्न रातिकेँ अपन हरेलौं
गाम घरक सबटा सऽर संबंध तियागि
बिन कसूरे बाहर    वनवास बितेलौं
 
 
रुबाइ 13
घाट-घाट पर सुतल कतेको गोहि अछि 
साउध लोककेँ मोन लेने मोहि अछि 
धर्मक नाम पर खुजल कतेक दोकान
टाका लs  छनमे सभटा पाप धोहि अछि
 
 
रुबाइ 14
बाबूजीक करेजमे  सदिखन रहलहुँ
हुनक तन मन धन सगरो हम पेएलहुँ 
रौ पानि दाहीसँ सदिखन बचेलन्हि
सेबाक बेड़मे हम परदेश भगलहुँ 
 
 
रुबाइ 15
देह जान सबटा    बाबूजी देलन्हि 
जे किछु छी एखन बाबूजी केलन्हि
अपने रहि भूखे   हमर पेट भरलन्हि
सुधि अपन बिसरि हमरा मनुख बनेलन्हि
 
 
रुबाइ  16   
जे जन्म देलन्हि ओ कहलन्हि गदहा 
जे पोसलन्हि ओ  मानलन्हि गदहा
गदहा जँका सगरो जिन्दगी बितेलहुँ
जिनका बियाहलहुँ ओ बुझलन्हि गदहा 
 
 
रुबाइ 17
मैथिली साहित्यक आँच सुगैत अछि 
सगरो नव विधाक ज्वला पजरैत अछि 
कोटी नमन जिनकर बिछल जारैन अछि 
विदेहक बारल आगि 'मनु' लहकैत अछि
 
 
रुबाइ 18
सिस्टम आइकेँ किए बबाल बनल अछि 
नेता सभ तँ  एकटा जपाल बनल अछि 
बड़ बड़ बागर बिल्ला राज चलबैए
जनताक प्राणेपर सबाल बनल अछि  
 
 
रुबाइ 19
गामक अधिकारी भेला सैंया हमर 
कोना क पकड़तै कियोक बैंया हमर 
सभक पेटीक माल आब हमरे छैक 
सैंया लऽ लेथिन सभटा बलैंया हमर 
 
 
रुबाइ 20 
साँवरिया पिया अहाँ ई की कएलहुँ   
साउन चढ़ल छोड़ि चलि कोना गएलहुँ
बहल हवा शीतल सिहरैए हमर तन 
कोना रहब बिनु अहाँ बुझि नै पएलहुँ  
 
 
रुबाइ 21
गोरी तोर मुस्कीमे छौ जहर भरल 
नै एना मुँह खोल कते घायल परल 
जँ निकैल गएलौ फूलझड़ी सन हँसी 
बाटपर भेटत कतेको छौंड़ा मरल 
 
रुबाइ 22
नैन्हेटा हाथमे केहन लकीड़ छै
नै माय बाप ई केहन तकदीर छै
धो धो कऽ ऐँठ कप लकीड़ो खीएलै
नै सुनलक कियो ई दुनियाँ बहीर छै
 
 
रुबाइ 23
कर्जा कय क जीवन हम जीव रहल छी 
फाटल अपनकेँ कहुना सीब रहल छी 
सभ किछु लूटा क ‘मनु’ अपन जीवनकेँ
निर्लज जकाँ हम ताड़ी पीब रहल छी   
 
 
रुबाइ 24 
भिमन्यु जकाँ   चक्रव्यूहमे फसलौं 
नै बचब सिख हम अर्जुन बनि पेएलौं 
'मनुजीवनकेँ   एही  महाभारतमे
सगरो ठार हम कौरव के देखलौं
 
 
रुबाइ 25
हम जरैत छी    की अहाँ प्रकाशित रही
अहाँक सुख लेल खुशीसँ हम आँच सही 
बातीकेँ जरैत    दुनिया देखलक
तेल बनि हम तँ जरलौं दुख कतेक कही 
✍🏻  जगदानन्द झा ‘मनु’
                       

गुरुवार, 5 जनवरी 2023

गजल

भगवती जकर माए ओ टुगर कहल कोना 

हाथ छै दुनू भेटल रंक ओ रहल कोना

  

माथ पर हमर सदिखन जखन हाथ मैयाकेँ

एहिठाम रहलै कोनो  कठिन टहल कोना 

 

लेब छोरि कखनो देबाक बात कनि सोचू

सगर गाम देखू सुख शांति नहि बहल कोना

 

शेरकेँ घरे बैसल   नहि शिकार भेटै छै

घरसँ जे निकलबै नहि घर बनत महल कोना

 

काज नहि अपन हिस्सा केर ‘मनु’ करी हम सब

ई सहज सगर दुनिया नहि  बनत जहल कोना

(मात्राक्रम : 212-1222/ 212-1222 सभ पाँतिमे)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

मंगलवार, 27 दिसंबर 2022

रुबाइ

नेह पजाड़ल अहाँक धधैक रहल अछि

एसगर करेज हमर तड़ैप रहल अछि 

कोन लगने अहाँसँ  मनु नेह लगेलौं

प्रेमक गरमीसँ देह बरैक रहल अछि

© जगदानन्द झा ‘मनु’

 

 

रविवार, 25 दिसंबर 2022

रुबाइ

घुमि अहाँ कनखीसँ कनि जे ताकि देलहुँ 

अपन तन मन एहि पर हम हारि देलहुँ

आब नहि बैकुंठकेँ रहि गेल इच्छा 

‘मनु’ अहाँके लेल सगरो बारि देलहुँ 

© जगदानन्द झा ‘मनु’

बुधवार, 21 दिसंबर 2022

रुबाइ

धाब जे अहाँ हमर करेजकेँ देलहुँ

 सबटा दर्द दुनियाँसँ नुका लेलहुँ  

मुस्कीसँ हमर नै बुझू जे हम खुश छी

अहाँक खुशी लेल नोरकेँ पी गेलहुँ 

© जगदानन्द झा ‘मनु’

 

बुधवार, 14 दिसंबर 2022

गजल

जखन सगरो दर्द भेटल 

अपन सीलौं ठोर रेतल 

 

द’बल अपने हाथ गरदनि 

तखन के ई नोर मेटल 

 

घरक बन्हन छोरि दुनिया

सटल जतए नोट गेटल 

 

भरोसा करु आब कोना 

लखन भेषे चोर फेटल 

 

दहेजक ‘मनु’ चारिचक्का  

बियाहक पहिनेसँ सेटल 

(बहरे मजरिअ, मात्राक्रम 1222-2122)

जगदानन्द झा ‘मनु’

शनिवार, 10 दिसंबर 2022

हमरा तँ चिन्हते होएब ?

आइ भोरे भोर एकटा अजोध वयोवृद्ध मैथिली साहित्यकार, गीतकार सो कॉल ग़ज़लकारकेँ फ़ोन आएल- “ट्रीन ट्रीन ट्रीन….”
हम- “हेलो”
उम्हरसँ- “के ? मनु।”
हम– “जी”
उम्हरसँ खूब खिसीयाति- “ई की अहाँ सभ फ़ेसबुकपर उल्टासिधा लिखैत रहै छी ? एक दू, एक दू। हम सब तँ भरि ज़िंदगी घास छिललौं।”
हम – “अपने के ?”
उम्हरसँ- “हम सा रे गा मा, हमरा तँ चिन्हते होएब ?”
हम – “हाँ”
उम्हरसँ- “कतेक ?”
हम – “जतेक अहाँ हमरा चिन्है छी।”
की ओ झट फोन राखि देला।
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’


शुक्रवार, 9 दिसंबर 2022

गजल

जखन मोन कानल गजल कहलौं

रहल कोंढ़ छानल गजल कहलौं 

 

जमाना सुतल छल जखन नींदसँ

तहन राति जानल गजल कहलौं 

 

लगन भेल तीसम बरख धरि नहि

पड़ोसनसँ गानल गजल कहलौं 

 

जुआ छल लदल कांहपर लोकक

पसीनासँ सानल गजल कहलौं 

 

उमर ‘मनु’ बितल आर की करबै 

अपन मोन ठानल गजल कहलौं 

(मात्राक्रम सभ पाँतिमे 122-122-1222)

जगदानन्द झा ‘मनु’

गुरुवार, 8 दिसंबर 2022

रुबाइ

देख तोरा सुन्नरी सीटी बजैए 

बन्द धरकन ई कतेकोकेँ करैए 

फालतू परमाणु बम दुनिया बनेलक

तोर कनखीपर मनुख लाखो मरैए 

© जगदानन्द झा ‘मनु’

 

सोमवार, 28 नवंबर 2022

रुबाइ

हम जरैत छी की अहाँ प्रकाशित रही

अहाँक सुख लेल खुशीसँ हम आँच सही 

बातीकेँ जरैत  दुनिया देखलक

तेल बनि हम तँ जरलौं दुख कतेक कही 

© जगदानन्द झा 'मनु' 

 

शनिवार, 3 सितंबर 2022

सरकारी नौकरी

"गै दाई ! लाल कक्का, ई करीक्का वऽर कतएसँ  लअ अनलनि ?"
"रहअ दहक ! सुनलह नै जे काम पियारा की चाम पियारा, ई करीक्का सरकारी नौकरी करै छै।"
✒ जगदानन्द झा 'मनु' 


रविवार, 11 जुलाई 2021

एकटा मैथिली जमेएकें उत्तर

मिथिलामे जमेएकें भोजन परसैत काल साउस पुछलथिन : "झा जी खीर खेबइ कि हलुआ..??"

जमेए : "किएक घरमे कटोरी एक्के टा छैक की ?''