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शनिवार, 14 जनवरी 2023

जगदानन्द झा ‘मनु’क पच्चीस टा रुबाइ एक्केठाम

रुबाइ १
आँचर नहि उठाबू आँखिसँ पीबय दिअ
हम जन्मसँ पियासल करेज जुड़बय दिअ

ताड़ीसँ  बेसी निसा  अहाँक  हँसीमे

प्रेमक निसामे अपन कनी जीबय दिअ

 

 

रुबाइ २

पीलौं हम तँ लोक कहलक शराबी अछि 

एतअ के नहि कहु बहसल कबाबी अछि

बुझलौं अहाँ सभ   दुनियाक ठेकेदार 

हमरो  आँखिसँ देखू की खराबी अछि  

 

 

रुबाइ 

नै पीब शराब तँ हम जीब कोना कय

फाटल करेजकेँ हम सीब कोना कय

सगरो जमाना भेल दुश्मन शराबक

सबहक सोंझा तँ आब पीब कोना कय

 

 

रुबाइ ४

पीलौं शराब तँ दुनियाँ कहलक बताह 

बिन पीने ई दुनियाँ भेल अछि कटाह

जे नहि पीलक कहाँ अछि ओकरो महल

पीबिए क' किएक नहि बनि जाइ घताह

 

 

रुबाइ ५

भेटल नहि सिनेह   तेँ शराबे पीलौं

दर्शन हुनक हरदम गिलासमे केलौं 

के अछि कहैत शराब छैक खराब ‘मनु’

बिन रहितौं हुनक शराबेसँ हम जीलौं

 

 

रुबाइ 

पीलौं नहि तँ की छै शराब बूझब की 

बिन पीने दुनियाँमे करब तँ करब की 

सभ अछि एक दोसरकेँ खून पीबैत 

खून छोड़ि शराबे पी कय देखब की 

 

 

रुबाइ  

एतेक नेहमे लीबैत किएक छी

दुनिया पुछलनि हम जीवैत किएक छी 

सभ बुझला उत्तर ‘मनु’ अहूँ इ जुनि पूछू 

दिन राति एतेक पीबैत किएक छी 

 

 

 

रुबाइ

कर्जा कय क जीवन हम जीव रहल छी 

फाटल अपनकेँ कहुना सीब रहल छी 

सभ किछु लूटा कय ‘मनु’ अपन जीवनकेँ

निर्लज जकाँ हम ताड़ी पीब रहल छी   

 

 

 

रुबाइ ९

गोरी तोहर काजर जान मारैए 
छौंरा सभ सगर हाय तान मारैए 
पेएलक बड़ भाग काजर विधातासँ 

तोहर आँखिमे कते शान मारैए 

 

 

रुबाइ १०

लाली मानि कय अहाँ ठोरसँ लगा लिअ

आँखिक अपन  करीया काजर बना लिअ

एना जुनि अहाँ   कनखी नजरिसँ देखू
प्रियतम बना ‘मनु’केँ करेजसँ लगा लिअ

 

रुबाइ ११

फूसियो जँ कनी अहाँ इशारा करितहुँ

भरि जीवन हम अहीँक बाटमे रहितहुँ

मुस्कीमे अहाँक अपन मोन लूटा क’

तरहत्थीपर जान लेने  हम अबितहुँ

 

 

रुबाइ १२

साँवरिया पिया अहाँ की कएलहुँ   

साउन चढ़ल छोड़ि चलि कोना गएलहुँ

शीतल हवा बहल सिहरैए हमर तन

कोना रहब बिनु अहाँ बुझि नै पएलहुँ  

 

 

रुबाइ १३

गोरी तोर मुस्कीमे छौ जहर भरल 

नै एना मुँह खोल कते घायल परल 

तोहर फुलझड़ी सन मारुक हँसी सुनि क

भेटत बाटपर कतेको छौंड़ा मरल 

 

 

रुबाइ १४

तोरा देख सुन्नरी सीटी बजैए

धरकन बंद ई कतेकोकेँ करैए

परमाणु बम दुनिया फालतू बनेलक

तोहर कनखीसँ मनुख लाखो मरैए

 

 

रुबाइ १५

जे घाव अहाँ हमर करेजकेँ देलहुँ

सबटा ओ दर्द दुनियाँसँ नुका लेलहुँ  

मुस्कीसँ हमर नै बुझू जे हम खुश छी

खूनक घुट अहाँक खुशीमे पी गेलहुँ

 

 

रुबाइ १६

घुमि कनखीसँ कनि जे अहाँ ताकि देलहुँ

तन मन अपन एहिपर हम हारि देलहुँ

नहि आब बैकुंठकेँ रहि गेल इच्छा

सगरो अहाँकेँ लेल ‘मनु’ बारि देलहुँ

 

 

रुबाइ १७

नाथक पजारल नेह धधैक रहल अछि

असगर करेजा हमर तड़ैप रहल अछि 

लगने कोन अहाँसँ हम नेह लगेलौं

प्रेमक गरमीसँ देह बरैक रहल अछि

 

 

रुबाइ १८

दुनिया जँ नै पुछलक तँ कोनो बात नहि

राखू मोन अहाँ इ तेहनो बात नहि

चिन्है सगर समाज आइ धनीकेकेँ

‘मनु’केँ जँ जाइ बिसरि एहनो बात नहि

 

रुबाइ १९

तोरा नहि हम छोड़लौं नहि हम बेवफा

तोरा बिन नहि मरलौं नहि हम बेवफा

तोहर प्राण गेल बुझि नहि जीवैत ‘मनु’

बिन काठीए जरलौं  नहि हम बेवफा

 

 

रुबाइ २०

आपस दे हमरा  हमर बितल दिन

किरया तोरा दे   ओ सगर बितल दिन

रहि जाएब आब असगरे तोरा बिन

नै यादि करब संगे तोहर बितल दिन

 

 

रुबाइ २१

छी हम जरैत   की अहाँ प्रकाशित रही

सुख लेल अहाँक खुशीसँ हम आँच सही 

बातीकेँ जरैत   ई दुनिया देखलक

बनि तेल हम तँ जरलौं दुख कतेक कही

 

 

रुबाइ २२

पागल हम दुनियामे पियार तकै छी

भलमानुस सब सगर वेपार तकै छी

नै कोनो दाम मनुख मनुखताकेँ

स्वार्थी लोकसँ ‘मनु’ सरोकार तकै छी

 

 

 

रुबाइ २३

बाबूजीक करेजमे  सदिखन रहलहुँ

तन मन धन हुनक सगरो हम पेएलहुँ 
दाही पानि रौदसँ सदिखन बचेलन्हि

सेबाक बेड़मे हम परदेश भगलहुँ 

 

 

रुबाइ २४

बाबूजी देह जान सबटा  देलन्हि 
जे किछु छी एखन बाबूजी केलन्हि
भूखे रहि अपने   हमर पेट भरलन्हि
सुधि बिसरि अपन हमरा मनुख बनेलन्हि

 

 

रुबाइ २५

फगुआ अहाँक बिनु कतेक बेरंग अछि 

बाँकी बस अहाँक यादेटा संग अछि

एही दुनियासँ जहन अहाँ चलि गेलौं 

बुझलौं कतेक कठिन जीवनक जंग अछि

                  ✍🏻जगदानन्द झा ‘मनु’

गुरुवार, 5 जनवरी 2023

गजल

भगवती जकर माए ओ टुगर कहल कोना 

हाथ छै दुनू भेटल रंक ओ रहल कोना

  

माथ पर हमर सदिखन जखन हाथ मैयाकेँ

एहिठाम रहलै कोनो  कठिन टहल कोना 

 

लेब छोरि कखनो देबाक बात कनि सोचू

सगर गाम देखू सुख शांति नहि बहल कोना

 

शेरकेँ घरे बैसल   नहि शिकार भेटै छै

घरसँ जे निकलबै नहि घर बनत महल कोना

 

काज नहि अपन हिस्सा केर ‘मनु’ करी हम सब

ई सहज सगर दुनिया नहि  बनत जहल कोना

(मात्राक्रम : 212-1222/ 212-1222 सभ पाँतिमे)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

मंगलवार, 27 दिसंबर 2022

रुबाइ

दुनिया जँ नै पुछलक तँ कोनो बात नहि

राखू मोन अहाँ इ तेहनो बात नहि

चिन्है सगर समाज आइ धनीकेकेँ

‘मनु’केँ जँ जाइ बिसरि एहनो बात नहि

                 ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’


 

रविवार, 25 दिसंबर 2022

रुबाइ

जे जन्म देलन्हि ओ कहलन्हि गदहा 

जे पोसलन्हि ओ  मानलन्हि गदहा

गदहा जँका सगरो जिन्दगी बितेलहुँ

जिनका बियाहलहुँ बुझलन्हि गदहा 

                ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’


बुधवार, 21 दिसंबर 2022

रुबाइ

मुँह पर दरद आबि जेए मरद नै

जे हर बहैत  बसि जेए बरद नै 

जिम्मेदारी घरक गेल विदेशमे 

केनामनु’ बुझलक जेए दरद नै

            ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’


 

बुधवार, 14 दिसंबर 2022

गजल

जखन सगरो दर्द भेटल 

अपन सीलौं ठोर रेतल 

 

द’बल अपने हाथ गरदनि 

तखन के ई नोर मेटल 

 

घरक बन्हन छोरि दुनिया

सटल जतए नोट गेटल 

 

भरोसा करु आब कोना 

लखन भेषे चोर फेटल 

 

दहेजक ‘मनु’ चारिचक्का  

बियाहक पहिनेसँ सेटल 

(बहरे मजरिअ, मात्राक्रम 1222-2122)

जगदानन्द झा ‘मनु’

शनिवार, 10 दिसंबर 2022

हमरा तँ चिन्हते होएब ?

आइ भोरे भोर एकटा अजोध वयोवृद्ध मैथिली साहित्यकार, गीतकार सो कॉल ग़ज़लकारकेँ फ़ोन आएल- “ट्रीन ट्रीन ट्रीन….”
हम- “हेलो”
उम्हरसँ- “के ? मनु।”
हम– “जी”
उम्हरसँ खूब खिसीयाति- “ई की अहाँ सभ फ़ेसबुकपर उल्टासिधा लिखैत रहै छी ? एक दू, एक दू। हम सब तँ भरि ज़िंदगी घास छिललौं।”
हम – “अपने के ?”
उम्हरसँ- “हम सा रे गा मा, हमरा तँ चिन्हते होएब ?”
हम – “हाँ”
उम्हरसँ- “कतेक ?”
हम – “जतेक अहाँ हमरा चिन्है छी।”
की ओ झट फोन राखि देला।
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’


शुक्रवार, 9 दिसंबर 2022

गजल

जखन मोन कानल गजल कहलौं

रहल कोंढ़ छानल गजल कहलौं 

 

जमाना सुतल छल जखन नींदसँ

तहन राति जानल गजल कहलौं 

 

लगन भेल तीसम बरख धरि नहि

पड़ोसनसँ गानल गजल कहलौं 

 

जुआ छल लदल कांहपर लोकक

पसीनासँ सानल गजल कहलौं 

 

उमर ‘मनु’ बितल आर की करबै 

अपन मोन ठानल गजल कहलौं 

(मात्राक्रम सभ पाँतिमे 122-122-1222)

जगदानन्द झा ‘मनु’

गुरुवार, 8 दिसंबर 2022

रुबाइ

नैन्हेटा हाथमे केहन लकीड़ छै

नै माय बाप केहन तकदीर छै

धो धो कऽ ऐँठ कप लकीड़ो खीएलै

नै सुनलक कियो दुनियाँ बहीर छै

            ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

 

सोमवार, 28 नवंबर 2022

रुबाइ

सगरो मैथिली साहित्य दहकैत अछि

नव नव विधाक आँच आइ पजरैत अछि

कोटी नमन जिनकर बिछल जारैन अछि 

बारल आगि विदेहक 'मनु' लहकैत अछि 

                    ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’


 

शनिवार, 3 सितंबर 2022

सरकारी नौकरी

"गै दाई ! लाल कक्का, ई करीक्का वऽर कतएसँ  लअ अनलनि ?"
"रहअ दहक ! सुनलह नै जे काम पियारा की चाम पियारा, ई करीक्का सरकारी नौकरी करै छै।"
✒ जगदानन्द झा 'मनु' 


रविवार, 11 जुलाई 2021

एकटा मैथिली जमेएकें उत्तर

मिथिलामे जमेएकें भोजन परसैत काल साउस पुछलथिन : "झा जी खीर खेबइ कि हलुआ..??"

जमेए : "किएक घरमे कटोरी एक्के टा छैक की ?''

गुरुवार, 20 मई 2021

गजल

अहाँ रहूँ घरे हम   ठानि अबै छी
एहि पापी पेट लेल छानि अबै छी

रोटी पर नून नै घी पीबि सपना 
हुनक भोजक मंत्र जानि अबै छी 

कमौआ पुतक लातो सोहनगर 
गरीब घरक कोड़ो गानि अबै छी 

चानि पर तेलक अभाबे केश नै
कनियाँगतक खेत फानि अबै छी 

गप्पक कोनो खतिहान नै भेलैए
'मनु' बैसू हम पीबि पानि अबे छी
(सरल वार्णिक बहर - वर्ण १३)
जगदानन्द झा 'मनु'

शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

भक्ति गजल

मैया हमर जगतारनि कल्याणी 

सबहक अहाँ सुधि लेलौं महरानी 


नै हम मिलब माँ बाटक गरदामे

चिंता किए जेकर माय भवानी  


जग ठोकरेलक सदिखन ढेपासन 

देलौं शरण निर्बलके हे दानी


दर्शन अपन दिअ हे अम्बे माता 

नै सोन झूठक चाही नै चानी


धेलक चरण 'मनुतोहर हे मैया 

नै आब जगमे ककरो हम जानी 

(मात्रा क्रम : २२१२-२२२-२२२)

जगदानन्द झा 'मनु'