बुधवार, 22 मई 2013
उत्तरक खगता
-पापा, अखबारमे बड छपै छै भ्रुण हत्याक बारेमे ।ई की होइत छै ?
-बेटा, जनमैसँ पहिने जँ ककरो मारि देल जाइ छै तँ एकरा भ्रुण हत्या कहल जाइ छै ।
-मुदा किए मारि देल जाइ छै ?
-जहिना मच्छर, साँप सन जीवकें खतरा बूझि लोक मारि दै छै तहिना भ्रुणोकें . . .
-(बीच्चेमे बात लोकैत) से तँ बुझलियै, मुदा जनमसँ पहिने केहन खतरा रहैत छै ?
-पढ़ाइ कर ।ई सब एखन नै बुझबें ।
-अच्छे एकटा बात कहू ।खाली कन्ये भ्रुणकें किए मारल जाइ छै ।बालककें किए नै ? की एकरासँ खतरा नै होइ छै ।
ई सूनि पापाकें किछु नै फुरेलै ।एकटा छोट नेनाक प्रश्नक उत्तर ओकरा लऽग नै छलै ।उत्तरक खगताक अनुभव भऽ रहल छलै ओकरा ।
अमित मिश्र
मंगलवार, 21 मई 2013
किछु भऽ जाए विआह करबे करब
अरे . . .एना जुनि कर . . .खसि पड़बें . . .रे छौड़ा . . .कोठीसँ उतर चोकलेट देबौ . . .रे . . .
आधा घंटासँ झा जीक घरसँ एहने आवाज आबि रहल छलै ।हुनकर पाँच बर्षक बेटा कोनो बातपर रूसि कऽ कोठीपर बैस गेल छलै ।ओकरे उतारबाक प्रयासमे लागल छल झा जीक परिवार ।
"बौआ, की चाही अहाँकें ।हम एखने देब " झा जी बेटाकें पोल्हबैत कहलनि ।
बेटा ठेसगरसँ बाजल "कनियाँ ।"
सबहक होश उड़ि गेलै ।बाबा तमसाइत कहलनि "कनियाँ !ई सब के सिखेलकौ ।"
"आइ मैडम पढ़बै छलखिन जे लड़कीक संख्या तेजीसँ घटि रहल छै।लोक एखने कुमारे जीब रहल छथि ।तखन तँ हमर समयमे एक्को टा नै बचतै ।पापा तँ मम्मी बिना खाइतो नै छथि , हम कोना रहब ।तें किछु भऽ जाए विआह करबे करब ।" पाँच वर्षक नेनक मुँहे ई कटु सत्य सूनि सब सोचमे पड़ि गेलाह ।
अमित मिश्र
आधा घंटासँ झा जीक घरसँ एहने आवाज आबि रहल छलै ।हुनकर पाँच बर्षक बेटा कोनो बातपर रूसि कऽ कोठीपर बैस गेल छलै ।ओकरे उतारबाक प्रयासमे लागल छल झा जीक परिवार ।
"बौआ, की चाही अहाँकें ।हम एखने देब " झा जी बेटाकें पोल्हबैत कहलनि ।
बेटा ठेसगरसँ बाजल "कनियाँ ।"
सबहक होश उड़ि गेलै ।बाबा तमसाइत कहलनि "कनियाँ !ई सब के सिखेलकौ ।"
"आइ मैडम पढ़बै छलखिन जे लड़कीक संख्या तेजीसँ घटि रहल छै।लोक एखने कुमारे जीब रहल छथि ।तखन तँ हमर समयमे एक्को टा नै बचतै ।पापा तँ मम्मी बिना खाइतो नै छथि , हम कोना रहब ।तें किछु भऽ जाए विआह करबे करब ।" पाँच वर्षक नेनक मुँहे ई कटु सत्य सूनि सब सोचमे पड़ि गेलाह ।
अमित मिश्र
आस्था
" यौ डाक्टर बाबू ।एकटा बात बुझलियै ।"
"की?"
"इएह विआहक 20 साल बाद सोनी दाइकें बौआ भेलै हें ।"
"हे मजाख जुनि करू ।जकरापर मेडिकल विज्ञान लाल कलम चला देलकै ।ओकरा बच्चा कोना भऽ सकैछ ।"
"भऽ सकै नै, भऽ गेलै ।सोनी दाइ एहन पुजेगरी देखलियै अहाँ कतौ ?"
"नै ।"
"तखन ।एकटा बात तँ मानिये लियौ जे डाक्टर आ मेडिकलसँ बढ़ि कऽ छै भगवानक विधान ।"
" हँ यै ।ठीके कहै छी ।आब तँ हमरो विज्ञानसँ बेसी भगवानपर आस्था भऽ गेल ।"
अमित मिश्र
"की?"
"इएह विआहक 20 साल बाद सोनी दाइकें बौआ भेलै हें ।"
"हे मजाख जुनि करू ।जकरापर मेडिकल विज्ञान लाल कलम चला देलकै ।ओकरा बच्चा कोना भऽ सकैछ ।"
"भऽ सकै नै, भऽ गेलै ।सोनी दाइ एहन पुजेगरी देखलियै अहाँ कतौ ?"
"नै ।"
"तखन ।एकटा बात तँ मानिये लियौ जे डाक्टर आ मेडिकलसँ बढ़ि कऽ छै भगवानक विधान ।"
" हँ यै ।ठीके कहै छी ।आब तँ हमरो विज्ञानसँ बेसी भगवानपर आस्था भऽ गेल ।"
अमित मिश्र
सोमवार, 20 मई 2013
गजल
अछि जँ जिनगी तँ प्रेम केनाइ सिख लिअ
दुख बिसरि जगमे मन लगेनाइ सिख लिअ
काल्हिकेँ नै कोनो भरोसा बचल अछि
आइपर हिल मिल आबि जेनाइ सिख लिअ
जीवनक सुख दुख बाट दू छैक बुझलहुँ
दूबटीयापर हँसि कऽ गेनाइ सिख लिअ
अपन मनमे प्रेमक जगाबैत बाती
आँखि सभकेँ सोझाँ उठेनाइ सिख लिअ
के बुझेलक ‘मनु’ छै अछूतगर पापी
पाप आबो संगे मिटेनाइ सिख लिअ
(बहरे खफीक, मात्रा क्रम – २१२२-२२१२-२१२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’
दुख बिसरि जगमे मन लगेनाइ सिख लिअ
काल्हिकेँ नै कोनो भरोसा बचल अछि
आइपर हिल मिल आबि जेनाइ सिख लिअ
जीवनक सुख दुख बाट दू छैक बुझलहुँ
दूबटीयापर हँसि कऽ गेनाइ सिख लिअ
अपन मनमे प्रेमक जगाबैत बाती
आँखि सभकेँ सोझाँ उठेनाइ सिख लिअ
के बुझेलक ‘मनु’ छै अछूतगर पापी
पाप आबो संगे मिटेनाइ सिख लिअ
(बहरे खफीक, मात्रा क्रम – २१२२-२२१२-२१२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’
लेबल:
गजल,
जगदानन्द झा 'मनु'
रविवार, 19 मई 2013
भूख
विहनि कथा-22
भूख
ओ पगली छलै ।पच्चिस-छब्बिस वर्षक भरल-पूरल देह मुदा दिमाग घसकल ।नित दिन टीसनपर इम्हरसँ उम्हर टहलनाइ ओकर मुख्य काज छलै । फेकल पन्नी वा अखबारक टूकड़ामे सटल अन्नक किछु दाना ओकर भोजन छलै ।आबैत-जाइत ट्रेन दिश एकटक देखैत ,कखनो कऽ कोनो खिड़की लऽग चलि जाइ ।फेर की टी॰टी॰क दबाड़ सुननाइ आ पुलिसक लाठी सहनाइ ,ओकरा लेल सबदिना छलै ।किओ ओकरा छूअ नै चाहै ।
एक दिन भोरे-भोर अखबारमे छपल एकटा खबरपर नजरि अटकि गेल ।काल्हि राति किओ ओहि पगली संग बलात्कार कऽ ओकर घेंट चापि देने छलै ।हमर मोनमे एकटा प्रश्न बेर-बेर उठि रहल छल ।की वासनाक भूख एते ताकतबर होइ छै जे जाति-पाति ,धर्म-कर्म आ मनुखक स्थिती धरि नै देखै छै ?लागि रहल छल जँ भूख एहिना बढ़ैत रहत तँ महाप्रलय आबैमे कम्मे दिन शेष छै ।
अमित मिश्र
भूख
ओ पगली छलै ।पच्चिस-छब्बिस वर्षक भरल-पूरल देह मुदा दिमाग घसकल ।नित दिन टीसनपर इम्हरसँ उम्हर टहलनाइ ओकर मुख्य काज छलै । फेकल पन्नी वा अखबारक टूकड़ामे सटल अन्नक किछु दाना ओकर भोजन छलै ।आबैत-जाइत ट्रेन दिश एकटक देखैत ,कखनो कऽ कोनो खिड़की लऽग चलि जाइ ।फेर की टी॰टी॰क दबाड़ सुननाइ आ पुलिसक लाठी सहनाइ ,ओकरा लेल सबदिना छलै ।किओ ओकरा छूअ नै चाहै ।
एक दिन भोरे-भोर अखबारमे छपल एकटा खबरपर नजरि अटकि गेल ।काल्हि राति किओ ओहि पगली संग बलात्कार कऽ ओकर घेंट चापि देने छलै ।हमर मोनमे एकटा प्रश्न बेर-बेर उठि रहल छल ।की वासनाक भूख एते ताकतबर होइ छै जे जाति-पाति ,धर्म-कर्म आ मनुखक स्थिती धरि नै देखै छै ?लागि रहल छल जँ भूख एहिना बढ़ैत रहत तँ महाप्रलय आबैमे कम्मे दिन शेष छै ।
अमित मिश्र
अधिकार
'रौ कोनमा काल्हि कने रधियाक सासुर भार दऽ आबिहें ।'
"मालिक ककरो आर कहियौ । काल्हि हमरासँ नै हएत ।"
'से किएक रौ ?'
"अहाँकें नै बूझल अछि काल्हि एलेक्सन छै ।"
'ओहिसँ की ? पेट तँ तोरा हमरे देल पाइसँ भरतौ ।नेता तँ नै एतौ ।'
"तैयो मालिक जहिना हमर अधिकार अछि जे काज केलाक बाद अहाँसँ पाइ लेब तहिना भारत माता आ संविधानक अधिकार लेबैये पड़त ।छोड़ि कोना देब ।"
अमित मिश्र
"मालिक ककरो आर कहियौ । काल्हि हमरासँ नै हएत ।"
'से किएक रौ ?'
"अहाँकें नै बूझल अछि काल्हि एलेक्सन छै ।"
'ओहिसँ की ? पेट तँ तोरा हमरे देल पाइसँ भरतौ ।नेता तँ नै एतौ ।'
"तैयो मालिक जहिना हमर अधिकार अछि जे काज केलाक बाद अहाँसँ पाइ लेब तहिना भारत माता आ संविधानक अधिकार लेबैये पड़त ।छोड़ि कोना देब ।"
अमित मिश्र
आइ मिथिलामे सीया सीया शोर भऽ गेलै
आइ मिथिलामे सीया सीया शोर भऽ गेलै
राति कारी छलै से इजोर भऽ गेलै
जनकक धिया जानकी एली घर घर बाजए बधैया
छम छम नाचए बरखा रानी दूर भऽ गेलै बलैया
धरती उज्जर, हरियर कचोर भऽ गेलै
राति कारी . . . . .
उमरिक संग संग ज्ञानो बढ़ल बनली चंचल धिया
आँगुर कंगुरिया शिव धनुष उठेलनि सगरो एकर चर्चा
सीया धिया जगतमे बेजोर भऽ गेलै
राति कारी . . . .
नित दिन गौरीक पूजा कएलनि वर परमेश्वर पएलनि
त्याग तपस्या एहन देखू महलछोड़ि विपिन बौएलनि
लव-कुशक प्रेम पुरजोर भऽ गेलै
राति कारी . . . .
जानकी उत्सव आउ मनाबी बैसाखक शुक्ल नवमी
जिनकर ऋणसँ उऋण ने हेतै ई मिथिलाक धरती
"अमित" जागू नव दिवसक भोर भऽ गेलै
राति कारी . . . . .
अमित मिश्र
राति कारी छलै से इजोर भऽ गेलै
जनकक धिया जानकी एली घर घर बाजए बधैया
छम छम नाचए बरखा रानी दूर भऽ गेलै बलैया
धरती उज्जर, हरियर कचोर भऽ गेलै
राति कारी . . . . .
उमरिक संग संग ज्ञानो बढ़ल बनली चंचल धिया
आँगुर कंगुरिया शिव धनुष उठेलनि सगरो एकर चर्चा
सीया धिया जगतमे बेजोर भऽ गेलै
राति कारी . . . .
नित दिन गौरीक पूजा कएलनि वर परमेश्वर पएलनि
त्याग तपस्या एहन देखू महलछोड़ि विपिन बौएलनि
लव-कुशक प्रेम पुरजोर भऽ गेलै
राति कारी . . . .
जानकी उत्सव आउ मनाबी बैसाखक शुक्ल नवमी
जिनकर ऋणसँ उऋण ने हेतै ई मिथिलाक धरती
"अमित" जागू नव दिवसक भोर भऽ गेलै
राति कारी . . . . .
अमित मिश्र
गुरुवार, 16 मई 2013
गजल
रौद आ बिहाड़िसँ जे लड़ल अछि एहि ठाम
ओतबे गाछ पैघ भऽ बचल अछि एहि ठाम
भूखल छथि राति दिन जाहि लेल गरीब यौ
किनको खरिहानमे सड़ल अछि एहि ठाम
एहि टेक्निकल युगमे बी ए केने होएत की
एम ए कऽ गाम गाम पड़ल अछि एहि ठाम
जे विपत्तिमे धैर्य राखि लागल अछि काजमे
ओ नभमे चान बनि सजल अछि एहि ठाम
भ्रष्टाचारी शासनमेँ बीकल सरकारी सीट
चुप्पी मारि लोक घरे सूतल अछि एहि ठाम
गेल युग श्रवणकेँ माँ बापक कोनो मोले नै
बूढ़ पूराण पूतसँ डरल अछि एहि ठाम
(सरल वार्णिक बहर ,आखर -१७)
© "बाल मुकुन्द" ।।
गजल
मिललौँ अपन चानसँ भेल पुलकित मोन
बीतल पहर विरहक भेल हर्षित मोन
छल आँखि सागर ताहिसँ सुनामी उठल
बहलौँ तकर वेगसँ भेल विचलित मोन
बाजल तँ जेना बुझु फूल झहरल मुखसँ
ठोरक मधुर गानसँ भेल शोभित मोन
ओकर बढ़ल डेगसँ दर्द हरिया उठल
पायलक सुनते स्वर भेल जीबित मोन
प्रीतक तराजू पर तौललौँ धन अपन
विरहक दिया जड़ते भेल पीड़ित मोन
(बहरे सलीम, मात्रा क्रम २२१२-२२२१-२२२१)
© बाल मुकुन्द पाठक
मंगलवार, 14 मई 2013
चोर
गाममे एलै एकटा चोर
किओ नै देखै ओकर गोर*
हवा बनि कऽ आबै छल
सबहक घरमे घूसै छल
दिन देखै नै राति आ भोर
चोरबै छल ओ सबहक नोर
सबकें खूब हँसेने जाए
तामस दूर भगेने जाए
नाम छल ओकर हँसी-खुशी
बचल नै गाममे किओ दुखी
*गोर = पएर
अमित मिश्र
किओ नै देखै ओकर गोर*
हवा बनि कऽ आबै छल
सबहक घरमे घूसै छल
दिन देखै नै राति आ भोर
चोरबै छल ओ सबहक नोर
सबकें खूब हँसेने जाए
तामस दूर भगेने जाए
नाम छल ओकर हँसी-खुशी
बचल नै गाममे किओ दुखी
*गोर = पएर
अमित मिश्र
रविवार, 12 मई 2013
विहनि कथा - महत्व
आइ ट्रेनमे बेसीए भीड़ छलै ।दुर्गा पूजा, छठि, दिवाली सन पावनि एक्कै मासमे होइ बाला छै ।परदेशसँ साल-साल भरि बाद गाम घूरि रहल मजदूरसँ ट्रेन भरल छलै ।जेनरल आ रिजर्वेसनमे कोनो अन्तर नै ।रसे-रसे सबारी गाड़ी सन बढ़ैत सुपरफास्ट ट्रेन कोनो टीसनपर थम्हलै ।एकटा 20-22 वर्षक गोर-नार लड़की अपन सीटसँ उठि गेल ।एते देरसँ जाँघपर राखल झोड़ाकें नुरिया कऽ बर्थक तऽरमे राखि देलकै ।इम्हर-उम्हर ताकैत पर्स टाँगि ट्रेनसँ उतरि गेल ।अपन गन्तव्य दिश बढ़ैत ट्रेन सब टीसनपर खाली होइत गेलै ।एकाएक ओहि सीटक नीच्चाँसँ नेनाक चित्कार सुनाइ देलकै ।झटपटमे यात्री झोड़ाकें ताकि खोललक ।ओहिमे 10-15 दिनक एकटा कन्या कानि रहल छलै ।यात्री परेशान भऽ गेल जे आब की करी ।लाख प्रयासक बादो कननाइ बन्द नै भेलै ।तखने एटका कुजरनी ओकरा अपन छातीसँ सटा लेलकै ।कननाइ बन्द भऽ गेल आ दूध पीबाक स्वर तीब्र ।कुजरनीक मैल, माहकैत आँचरक तऽरसँ निकलैत ओ स्वर धिक्कारि रहल छल एकर असली माएकें आ बता रहल छल मामता भरल माएक महत्व ।
अमित मिश्र
अमित मिश्र
बुधवार, 8 मई 2013
गजल
कनी हमरो बजा दिअ माँ
अपन दर्शन करा दिअ माँ
कते आशा लगोने छी
अपन चाकर बना दिअ माँ
जनम भरि बनि टुगर रहलहुँ
सिनेहक निर चटा दिअ माँ
जँ हम नेना अहाँकेँ छी
अलख मनमे जगा दिअ माँ
सुखेलै नोर जरि आँखिक
चरण ‘मनु’केँ दखा दिअ माँ
(बहरे हजज, मात्रा क्रम – १२२२-१२२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’
अपन दर्शन करा दिअ माँ
कते आशा लगोने छी
अपन चाकर बना दिअ माँ
जनम भरि बनि टुगर रहलहुँ
सिनेहक निर चटा दिअ माँ
जँ हम नेना अहाँकेँ छी
अलख मनमे जगा दिअ माँ
सुखेलै नोर जरि आँखिक
चरण ‘मनु’केँ दखा दिअ माँ
(बहरे हजज, मात्रा क्रम – १२२२-१२२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’
लेबल:
गजल,
जगदानन्द झा 'मनु',
भक्ति गजल
मंगलवार, 7 मई 2013
हमर ई मतलब नै छल
एकटा
लड़का अपन होइ बाली पत्नीकें देखबाक लेल गेल । ओकरा सुन्दर लड़की चाही छल आ ओ लड़की
बहुत बेसी खूबसूरत छली ।लड़का अपन पत्नीक रूपमे एकटा सुशील, कर्मठ आ सर्व गुण समपन्न लड़की चाहैत छल
।ओ चाहै छल जे लड़की ओकर माँ-बाबूकें जानसँ बढ़ि कऽ प्रेम आ सेवा
करै, परञ्च बढ़ैत फैसनक
दौरमे एहन लड़कियोंसँ
ओ डरै छल जे एसगर रहनाइ पसन्द करैत अछि, तें ओ किछु प्रश्न पुछबाक विचार केलक ।लड़का पुछलक,
"असलमे व्याहक बाद हम
माँ-बाबूकें छोड़ि कऽ एसगर रहऽ चाहैत छी ।एहि बारेमे अहाँक की सोच अछि? ऐमे अहाँ हमर पत्नीक रूपमे संग देब ने
?"
लड़की
गर्वसँ बाजल, "अहाँक जे सोच अछि ओहिसँ ठीक
उल्टा हम सोचै छी। हम अपन माए-बापक संग रहनाइ पसीन करब ।"
लड़काकें लागलै जे लड़की जानि
-बूझि कऽ एहन बात बाजल किएक तँ आइ-काल्हिक लड़की केवल अपन पतिक संग रहनाइ
पसीन करैत अछि ।इहे
सोचि ओ एकटा नव नाटक केलक ।ओ ठाढ़ भऽ गेल आ बाजल- तऽ हम अहाँसँ
व्याह नै
कऽ सकब ।
लड़कियो
ठाढ़ भऽ गेल आ
कड़कि कऽ बाजल , "अहाँ
की, अहाँसँ हम व्याह
नै करऽ चाहै छी ।जे अपन माए -बापकें नै भऽ
सकलै, ओ हमर की हेतै ।"
ई
कहि कऽ लड़की जाए लगल ।आब तँ लड़काक पएरक नीच्चाक धरती घुसकि गेलै ।दिमाक ठीक भऽ गेलै ।ओ
लड़कीकें मनेबाक
प्रयासमे लागि गेल ।लड़का नै चाहैत छल जे लड़कीकें एहि नाटक आ झूठक कारण पता चलै ।लाख
मनेलाक बादो लड़की
नै मानल ।अन्तमे ओकरा एहि झूठक रहस्य बतबऽ पड़लै ।दुनू खुश भऽ गेल आ एक संग
बाजल, "असलमे
हमर ई मतलब नै छल।"
ई सुनि दुनू एक दूसरकें देख कऽ मुस्कुराए
लागल ।लड़का बूझि गेल जे लड़कियो झूठ बाजै छल आ उहो अलग रहऽ चाहै छल
।लड़का व्याहसँ मना करऽ चाहैत छल मुदा सुन्दर पत्नी रूपी लड़कीकें संग देख
मातृ-पितृ सेवा बिसरि अलग रहैक लेल तैयार भऽ गेल ।
अमित
मिश्र
सोमवार, 6 मई 2013
गारेन्टी
सुजीतजी मोटर साइकिल
ड्राइव करैत पाँछा प्रशांत जीकेँ बैसोने | मिशर जीक दलानपर रुक्ला | आँगा-आँगा
सुजीतजी हुनक पाछू प्रशांतजी, मिशरजी लग जा सुमितजी, “नमस्कार मिशरजी, हम कहने रही
ने आयुर्वेदसँ समंधित, माँजीक गठियाक दवाइ | हिनकासँ मिलु ई प्रशांतजी, हमर सीनियर
छथि | अपनेक सभ गप्पक उचीत उत्तर देता |”
जगदानन्द झा 'मनु'
मिशरजी, “नमस्कार-
नमस्कार (कुर्सी दिस इशारा कए) बैसल जाउ |”
तीनु गोटा कुर्सी
ग्रहण कएला, तदुपरांत मिशरजी, “हाँ कहियौ |”
प्रशांतजी, “हम
एकगोट आयुर्वेदिक कम्पनीसँ जुड़ल छी आ हमरा सभ लग किछु असाध्य रोग जेना मधुमेह,
गठिया, बी०पी०, हार्ड प्रोब्लेम आदिक सफल उपचार अछि | सुजीत भाइसँ ज्ञात भेल अपनेक
माए गठिया---“
मिशरजी, प्रशांत जीक
गप्प बिच्चेमे रोकैत, “हाँ, से सभ ठीके पहिले कहु गारेन्टी छैक |”
प्रशांतजी, “गारेन्टी ! गारेन्टी कोना कहु मुदा ठीक होबाक सए टका विस्वास छैक |”
मिशरजी, “हाँ इहे,
जखन गारेन्टीए नहि तखन हम अपनेक गप्प कोना मानव |”
प्रशांतजी, “सुनू-सुनू,
हमर सभक पद्धति सुनला वाद अहाँ अपनो बुझबै आ मानबै जे गठियाक उपचार संभव छैक |”
मिशरजी, “कोना मानू,
अपने गएरेन्टी देबै तहन ने मानब | आइ बिस बरखसँ कोनो डॉक्टर कोनो अस्पतालसँ ठीक
नहि भेलै, अहुँ गारेन्टी नहि लए रहल छी आ अहीँ की दुनियाँक कोनो डॉक्टर गारेन्टी नहि
लएत तखन कोना मानू |”
प्रशांतजी, “देखू ई
गप्प ठीके अछि जे दुनियाँक कोनो डॉक्टर गारेन्टी नहि लेत किएक तँ दुनियाँक कोनो
डॉक्टर लग एकर इलाह नहि छैक | गठिया की भेलै ?.... अपन ठेहुनक दुनू हड्डीकेँ जोड़क बीचमे एकटा माँसुक
टुकड़ा होएय छैक जेकरा कार्टिलेज कहल जाइ छैक आ ओहि कार्टिलेजकेँ ठीक आ तन्दुरुस्त
राखैक लेल, हम जे भोजन खाए छी ओहि भोजनसँ एकटा ग्रीस जकाँ चिपचिपा पदार्थ निकलै
छैक जेकरा साइनोवियस फ्लूड कहल जाइ छैक | भोजनमे पोष्टिक तत्वक कमी, प्रदुषण, बएसकेँ
बेसी भेलासँ, आन आन कतेको कारणे अपन देहमे साइनोवियस फ्लूड बननाइ बन भए जाइ छै |
जखने साइनोवियस फ्लूड अर्थात चिपचिपा पदार्थ ग्रीस खत्म भेल तखने दुनू हड्डीक बिचमे
दबा पिचा कए मासुक टुकड़ा अर्थात कार्टिलेज कइट जाइ छैक | दुनू हड्डीक बिचमे गएप भए
जाइ छैक आ दुनू हड्डीमे हड्डी घसेलासँ असहाय दर्द होइत छैक | कतेक गोटेकेँ तँ चलला
उत्तर हड्डीमे हड्डी घसेलासँ आवाज सेहो होइत छै | आब देखियौ एहिठाम डॉक्टर कहैत
अछि जे साइनोवियस फ्लूड अर्थात चिपचिपा पधार्थ ग्रीस बननाइ बंद तँ बंद एकर कोनो
इलाज नहि, बेसीसँ बेसी जीवन भरि दर्द निवारक गोटी खाए कए दर्दसँ बँचि सकै छी |
बेसी दर्द निवारक दवाई खेलासँ हार्ड आ किडनीपर से खराबअसर | आब देखियौ, हमरा सभ लग
अछि समुद्री जड़ी बूटीसँ निर्मित -------, आ जिनक शरीरमे एक्को आना साइनोवियस फ्लूड
बचल अछि एकर नियमित सेवन कएला बाद हुनक शरीरमे ई साइनोवियस फ्लूड बनेनाइ शुरू करत
आ जखने साइनोवियस फ्लूड बननाइ शुरू होएत, मासुक टुकड़ा अर्थात कार्टिलेज पुनः
मरम्मत भेनाइ आरम्भ भए जाएत | शरीरमे वर्तमान साइनोवियस फ्लूडकेँ उपस्थित मात्राक
हिसाबे ६ महिनासँ एक सबा बरखक अधिकतम सेवन कएला बाद कोनो व्यक्ति अपन पएरपर चलएटा
नहि दौड़ए लगता |”
एतेक बड़का गठियापर
व्याख्यान सुनि मिशरजी चुप्प, चुप्पी तोरैत, “हूँ ! सभ ठीक मुदा गारेन्टी....”
प्रशांतजी, “अच्छा लिअ
हम अहाँक माए केर ठीक होबैक गारेन्टी लै छी, अहाँक माए हमर माए | अहाँ एक सबा बरख
हमर दवाइ दियौन, ठीक नहि भेली तँ पाइ वापिस |”
आब तँ मिशरजीक बोल
बन, जेबीसँ मोबाईल निकाइल बामे हाथे कएकटा न० लगेला बाद, “यौ सभ ठीक, आब तँ अहाँ गारेन्टीयो
लए लेलहुँ मुदा एखन हमर छोटका भाइ फोन नहि उठा रहल अछि बादमे ओकरासँ गप्प कएला बाद
हम कहब किएक तँ गप्प एक दू महिनाक नहि छै एक सबा बरखक छै |”
एतवामे दलानक कोन्टासँ
मिशरजीकेँ कनियाँक चूड़ीकेँ खनखनाइक आवाज एलन्हि | मिशरजी घुमि कए देखला उत्तर
प्रशांतजीसँ, “ कनीक अबै छी |” कहैत उठि कनियाँ दिस चलि गेला |
मिशर जीसँ हुनक
कनियाँ, “हम सभटा सुनलहुँ, ई तँ ठीके अचूक इलाज छै आ अहाँ बुझिते छीऐ जे हमरो माए
गठियासँ परेसान छै | अहाँ अपन माए लेल ली की नै हमरा नै बुझल मुदा काइल्ह चिन्टू
गाम जा रहल छै, ६ महिनाक दवाइ लए कऽ चिन्टू दिया हमरा माए लेल पठा दियौ बांकी ६
महिना बाद फेरो कियो गाम जेबे करतै तखन |”
कनियाँक गप्प सुनि
मिशरजी वापस आबि कुर्सीपर बैसैत, “ठीक सर, आब अपने एतेक कहैत छी तँ ६ महिनाक दवाइ हमरा
दए दिअ |”
प्रशांतजी, “ठीक छैक
परशु सुजीतजी अहाँकेँ दए देता |”
मिशरजी, “परशु नहि
हमरा काइल्ह भोरे चाही किएक तँ ई हमर माए लेल नहि हमर सासु लेल छन्हि आ काइल्ह
भोरे १० बजे हमर सार चिन्टू गाम जा रहल छथि | तेँ तँ एक्के बेर ६ महीनाक दवाइ मंगा
रहल छी |”
प्रशांतजी, “कोनो
बात नै काइल्ह भोरे ९ बजे तक मिल जाएत | सुजीत जीकेँ पाइ दए दियौन्ह मुदा हाँ गएरेन्टी नहि भेटत |”
मिशरजी, “किएक |”
प्रशांतजी, “ई गारेन्टी
अहाँक माए लेल छल, किएक तँ अहाँक माए हमर माए दोसर ओ हमर आँखिक सोझाँ छथि हुनका हम
देखो सकै छीएन्हि, ठीक भेली की नहि मुदा अहाँक सासु... “
मिशर जी, जेबीसँ पाइ
निकालि कए दैत, “यौ प्रशांतजी अहुँ की गप्प करै छी अहाँ देलहुँ हमरा बिस्वाश भऽ
गेल ई पाइ राखू मुदा हाँ भोरे ९ बजे धरि दबाइ भेट जेबा चाही नहि तँ अपने बुझिते
छियै कनियाँ सार सासु |”
प्रशांतजी, “हाँ
अवस्य, (उठैत) अच्छा आब आज्ञा दिअ |”
दुनू
गोटे बिदा भेला
| मोटर साईकिलपर बैसला बाद बैसले- बैसल सुजीतजी, “प्रशांत भाइ देखलियैन्ह,
माए लेल गारेन्टी चाही भाइ सभक सहमति चाही आ सासु नामे चट्टे ६ महिनाक पाइ
निकैल गेलन्हि |”
*****जगदानन्द झा 'मनु'
लेबल:
जगदानन्द झा 'मनु',
बीहनि कथा
रविवार, 5 मई 2013
अहाँक मैथिली बड्ड कमजोर अछि
“अहाँक मैथिली बड्ड कमजोर अछि”
“धूरि बु-- कहीँक, हमर मैथिली बड़ कमजोर अछि | कमजोर की तागतवर केहनो अछि तँ, आ जकरा लग किछु छै हे नै | जे जिनगी भरि अंग्रेजी वा हिंदीक घड़ीघंटा बन्हने अपनो घुमैत रहैए आ दोसरोकेँ
ओहे सिखाबैत रहैए ओकरासँ तँ नीक | रहल हमर खराप मैथिलीक गप्प तँ जखन जगदानंद मनु एहन लोक मैथिलीक मओ नै जनै वला
आइ अ०आ० केँ पाँछा घुमि गजलक सेकड़ा टपि गेल | लोशन कुमार मैथिल म-थ म-थ करैत आइ मैथिल नाम राखि सभकेँ मैथिली सिखाबैए तखन तँ
हमर कमजोरे अछि |”
सदस्यता लें
संदेश (Atom)