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शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

बाल रूबाइ

बाल रूबाइ-1

बौआ कान नै चोरबा आबि जेतै
चन्ना गेलै सूतऽ फेर काल्हि एतै
बौए लेल जागल छै आब तरेगण 
भोरे सूर्यक संग गीत नाद हेतै

बाल रूबाइ-2

बड़का पोखरि पोखरिमे बड माँछ छै
मलहा जालसँ बौआ बंशी लऽ मारै
बड़का माँछ फँसै छै महाजालेमे
बौआ मात्र टेँगरा पोठिये पकड़ै


बाल रूबाइ-3

पोथी पढ़ब इस्कूलमे मोनसँ आइ
खेबै खूब इमली तोड़ि गाछसँ आइ
खेलब साँझमे कबड्डी खूब दौड़ब
ज्ञानक बात सीखब हमहुँ खेलसँ आइ



बाल रूबाइ-4

भोरक नव लाल इजोत छेँ तूँ बुचिया
देशक जीत लेल खेलाड़ी तूँ बौआ
माँ बाबूक लाठी साँस तूँहीँ तऽ छेँ
उड़िया नै मातल हवामे तूँ बेटा


बाल रुबाइ-5

बौआ रे चोरी नै करबाक चाही
सदिखन पैघक बात मानबाक चाही
बुचिया तोहर नाम हेतौ दुनियाँमे
अपनामे कखनो नै लड़बाक चाही



बाल रूबाइ-6

हे गै करिकी गाय गरम दूध दे ने
तोरो दऽ दै छी हरियर जनेर ले ने
देबेँ दूध तऽ दही पेड़ा घी खेबौ
मानेँ मैया नै तऽ उपास भेले ने


बाल रुबाइ-7

पीठपर झोरा और हाथमे बोरा
बौआ चलल इस्कूल लऽ पोथी जोड़ा
कारी सिलेट चारि टा उजरा पेन्सिल
संगी बनि नीक पेन्सिल देतौ तोरा

कर्तव्य निर्वाह


शहरक एक मात्र नामी सरकारी हाँस्पिटलक इमरजेँसी वार्डमे होइत कन्ना-रोहट पूरा प्रांगनकेँ कपाँ रहल छल । अगल-बगलकेँ लोक सेहो जुटि नोराएल नैन लेने ठाढ़ छलैए । 50 वर्षक बूढ़ मरीजकेँ नाँकसँ आँक्सीजनक पाइप बान्हल छलै मुदा साँस बड तेजीसँ उपर-नीच्चा होइत छलै । 14 वर्षक बच्चा दौड़ कऽ डाँक्टर साहेबकेँ कहलक मुदा डाँक्टर साहेब कहलनि ,"नर्सकेँ कहू सुइया लगा दै लेए।"
बच्चा हाँफैत नर्सकेँ  खोजऽ लागल मुदा नर्स नञि भेटलै ओ दोसर वार्डकेँ नर्सकेँ कहलक सुइया लगा दै लेए ,नर्स जबाब देलनि ,"हम एखन ड्यूटीपर नञिछी , किनको दोसरकेँ कहू ।"
बच्चाकेँ आँखिसँ खसैत नोर गालके भीजाबैत उज्जर फर्शपर पसरि रहल छल ।ओ फेर डाँक्टरकेँ जा कऽ कहलक । डाँक्टर साहेब फटकारैत बाजलाह ,"हम डाँक्टरीके डिगरी सुइया भोँकै लेल नञि लेलौँ ।"
बच्चा हतास भेल ओहि मरैत शरीर लग बैसि गेल । साँस आरोह-अवरोह करैत बन्न भऽ गेलै । ओहि 14 वर्षक अनाथके आँखिसँ नोर झहरैत रहल आ एहि ब्रम्हांडक दोसर भगवान अपन कर्तव्य निर्वाह करैत रहलाह ।

अमित मिश्र

बाल गजल


बेलगोबना नहि सुनलक गप्प 
ओकर माथसँ बेल खसल धप्प 

बरखा बुनि ल' क' एलै कारी मेघ 
पएर तर पानि करे छप्प छप्प 

बोगला भेल देखू कतेक चलाक
एके पएरे करे दिन भरि जप्प 

बुढ़िया नानीकेँ दुनू काने हरेलै   
चाह पीबे भरि दिनमे दस कप्प 

बैस 'मनु' झोँटा छटा ले चुपचाप
नै तँ काटि देतौ कान हजमा खप्प 

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१३)     

गजल


सुख भरल संसार चाही
दुखक नै अंबार चाही

मोन सदिखन खूब हरखे 
बमक नै टंकार चाही

भरल घर मिथलाक ज्ञानसँ 
अन्नकेँ भंडार चाही 

डोलि अम्बर फूल बरखे 
भक्तकेँ झंकार चाही  

सभ कियो 'मनु' हँसिक' भेटे 
एहने संसार चाही  
 
बहरे रमल, (२१२२-२१२२)  

मैथिलपुत्र पुरस्कार योजना मास प्रथम (अगस्त २०१२)




बहुत हर्खक गप्प जे मैथिलपुत्र मासिक पुरस्कार योजनाक, प्रथम मासक (अगस्त २०१२) चयन भ' गेल अछि | किशन कारीगर "नादान" जीकेँ हुनक  हास्य कविता  "घोंघाउज आ उपराउंज"  के लेल  चयन कएल गेलैन्हि । हुनका बधाइ।
 किशन कारीगर "नादान" 


घोंघाउज आ उपराउंज

हम अहाँ के गरिअबैत छि
अहाँ हमरा गरिआउ
बेमतलब के करू उपराउंज
धक्कम-धुक्की करू खूम घोघाउंज.

कोने काजे कहाँ अछि
आब ताहि दुआरे त
आरोप-प्रत्यारोप मे ओझराएल रहू
मुक्कम-मुक्की क करू उपराउंज .

श्रेय लेबाक होड़ मचल अछि
अहाँ जूनि पछुआउ
कंट्रोवर्सी मे बनल रहू
फेसबुक पर करू खूम घोघाउंज.

मिथिला-मैथिल के नाम पर
अहाँ अप्पन रोटी सेकू
अपना-अपना चक्कर चालि मे
रंग-विरंगक गोटी फेकू.

अहाँ चक्कर चालि मे
लोक भन्ने ओझराएल अछि
अहाँ फेसबूकिया ग्रुप बनाऊ
अपनों ओझराएल रहू हमरो ओझराऊ.

ई काज हमही शुरू केलौहं
नहि नहि एक्कर श्रे त हमरा अछि
धू जी ई त फेक आई.डी छि
अहाँ माफ़ी किएक नहि मंगैत छी?

बेमतलब के बड़-बड़ बजैत छी
त अहाँ मने की हम चुप्पे रहू?
हम की एक्को रति कम छी
फेसबुक फरिछाऊ मुक्कम-मुक्की करू.

आहि रे बा बड्ड बढियां काज
गारि परहू, लगाऊ कोनो भांज
कोनो स्थाई फरिछौठ नहि करू
सभ मिली करू उपराउंज आ घोंघाउज.
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सोमवार, 3 सितंबर 2012

गजल


दड़ड़िते खेसारी     बखाडी बनेलक
बीच तरहत्थीपर दही ओ जमेलक

बिसरि रौदी दाही   अपन कष्ट सभटा
कर्म पथपर खेतिहर चलि हर चलेलक

केखनो नहि पढ़ि रहल मड़राति सगरो 
राजमंत्री बनि    जीनगी भरी कमेलक

पहिर चश्मा दिन राति जे खूब पढ़लक
घूस दय चपरासी      किरानी कहेलक

देख आगाँ इस्कूलकेँ   घुरि परेए
बनि कवी 'मनु' सभकेँ गजल ओ सुनेलक

(बहरे खफीक, मात्राक्रम- २१२२-२२१२-२१२२)

शनिवार, 1 सितंबर 2012

गजल


कतेक छल टीश कतेक दर्द उमरैत रहल
छल दर्द करेजा में आंखि सँ नोर खसैत रहल

बनि हम माटि क' मूरति ठार बकोर भेल ओत'
सोंझा में हमर घरारि टूटि क' पसरैत रहल

दियाद क' झगरा में बखरा लागल केहन देखू
माँ किनको दीश बाप भेल मनुखो बंटैत रहल

खचा-खच करेज में घोंपी रहल छुरा जेना कियो
आब नै निकालि सकै कियो आर इ धसैत रहल

बिनु बाँट बखरा क' जीबी नै सकै मनुख कहुना
ब्याकुल भेल माई आ बाप सोचि क' मरैत रहल

एहन होश उरल 'रूबी' क' आन्हर भेल छैक ओ
नोर बहल कखनो रक्त जनु बरसैत रहल

सरल वार्णिक बहर वर्ण -१९
रूबी झा

गजल


बिनु बातक ऐना भs के अपन नै रुसय ककरो
बिनु चोटक सपन नै ऐना कs के टुटय ककरो

राखल आगु में होय लाखे कियेक नै भोग छप्पन
प्रेमक बिहीन आ स्वादक बिनु नै रुचय ककरो

ईर्ष्या जलन में भs गेल छैक सबटा नाश चौपट
मुदा अन्तोकाल में आंखि किएक नै खुजय ककरो

नारी के छै नारी शत्रु छी हम कुरूप छै ओ सुन्नरि
ढारि तेज़ाब खुश ऐना करेजो नै जरय ककरो

व्यर्थहिं जनु अपन मांथ कs खपा रहल छै 'रूबी'
जानि बुझी बनल अज्ञानी बातो नै बुझय ककरो
-----------------------वर्ण १९ -------------------
रूबी झा

गजल


हे यै सुन्नरी कनेक अहाँ त' सम्हारि चलु
ऐना बहकैत नै आँचर सँ बहारि चलु

भरल यौबन अहाँक मादकता अपार
लोक हुलकै नै अहाँ घोघक' उघारि चलु

अल्हर छी एहन बयार पुरबैया जेना
एलो सासुरक' लगीच नै झटकारि चलु

अछि कांचे वयस कनेक पपनी खसाओ
करबै चौपट नै एना आंखि तरारि चलु

हमर इज्जत सम्मानक नै करू भंडूल
हे यै नहु नहु कने पियाक' दुलारि चलु

------------------वर्ण -१६ -------------
रूबी झा

गजल


जीबन धन अहाँ बिनु जीबन कोना कs बचतय यौ
हँसे छी फुसिये अहाँ बिनु मुस्की कोना कs सजतय यौ

छोरि गेलौ झरकैत आगि में कहुना जीबैत रहलौ
मुदा बिनु पानि कs चानन कियो कोना कs घसतय यौ

बीतल बात हम कतेक दिन राखब जोगा जोगा कs
नै जौं हेते नव बात तs पूरना कतेक चलतय यौ

पलक कs पंखुरी में अहिं केर सुधि समाहित अछि
आंखि केर काजर अशोधार भs कतेक बहतय यौ

उलहन आ उपरागक तs पोथी भरने अछि रूबी
शरिपहूँ नै अहाँ एबे तs कतेक दिन जपतय यौ

-----------------वर्ण -२० -----------------
रूबी झा

हजल


देखियो ई बबुआन कs केश बुझू मांथ पर की छत्ते बुझू
छथ सिकीया पहलवान मुदा पेट जनु कोनो खत्ते बुझू

अछि आगु मे चुरा दही कs पुजौर अधक्की जकाँ परसने
फूँक मारू तs ऊरता मनुख बुझू चाहे सुखेल पत्ते बुझू

कार्यक बिहून आ बाजब में छथ कने बेसिए होशियार
मजलिस लगेता सौंसे जा' रोपल जेना गोबरछत्ते बुझू

लाज शर्मक शब्दों नै बुझल ग्लानी हिनका ओतs की हेतेन
हर्ष विषाद हिनका लेल की ईहो पुरुख अलबत्ते बुझू

धोती अंगा कहिये छोरलैन जिन्सक पेन्ट चुबैत रहे छै
शहर कs ओ अंखियो नै देखल रहै मुदा कलकत्ते बुझू

बेगारी बैसल 'रूबी' लिखs चाहलक किछ लिखा गेल किछ
जनु कियो लेब अपना पर एहनो नै सबटा सत्ते बुझू

वर्ण -२२

रूबी झा

गजल


भेटते जौं समय कहियो तs अपनों लेल सोचब हमहूँ
एखन धरि मरलौं दुनियाँ लs अपना लs जियब हमहूँ

भटकि रहल छै कतेक आखर मोने में जतय ततय
कागत पर जोरि जोरि कोनो नामी शाएर बनब हमहूँ

एखन पाप पुन्य क्यो नै बुझे छथ भेलैन सभ भ्रष्ट एत'
भ्रस्टाचारक बहैत गंगा में नै चाहितो तs बहब हमहूँ

जोश में सबटा होश गमेलौं हाथ रहल नै खाको पाथर
भव्य जौं चलन राखब त स्वर्गहि इजोर करब हमहूँ

कथी लs करै छी अनकर अप्पन एता नै छै किछ ककरो
सबटा एते रहते राखल राम नाम कs मरब हमहूँ

-------------------वर्ण-२२ ---------------------
रूबी झा

गजल


मोनमें बसल गमकल हँसी
कोंढ में जा' क' अटकल हँसी

सांझ भिनसर परय मोन ओ
चान बनि ओत' पसरल हँसी

ठोर छल पातरे पान सन
दांत छल गचल चमकल हँसी

आँचरक खूट दाबिक' हँसै
कोन दोगे भ' ससरल हँसी

आश मोनक त' भेलै पुरण
आबि ओ निकट धमकल हँसी

२१२ २१२ २१२ सभ पांति में
रुबी झा

गजल


मानू नहि मानू मुदा सताबू नै यौ
संग में राखु नै राखु पराबू नै यौ

देखै जे छी मुख बरखो में अहाँके
स्वप्न सोझा सँ अप्पन हटाबू नै यौ

हम बूझै छी सबटा मोनक भाषा
बहला फुसियाक त' मनाबू नै यौ

करू नै दाबा झूठौका प्रेमक' एता
दोख कोनो नै हम्मर भूकाबू नै यौ

जोगौने छी अखनो प्रेमक पिहानी
अनका के संग भ' के जराबू नै यौ

जौं बुझै छी रूबी क' सजनी अपन
सभके सोझा में प्रेम जताबू नै यौ

सरल वार्णिक बहर वर्ण -१३
रूबी झा

फोंफ काटि रहल सरकार (हास्य कविता)


रंग विरंगक डिग्री डिप्लोमा लेने
रोड पर घूमि रहल युवक बेकार
देशक कर्ता-धर्ता चुप्पी लधने छथि
आ फोंफ काटि रहल सरकार।

बुनियादी शिक्षाक दरस एक्को मिसिया ने
खाली किताबी ज्ञान देल गेल छैक
आ परीक्षा पास कए डिग्री लेने
घूमि रहल अछि युवक बेरोजगार।

ओकरा नहि कोनो लुड़ि-भास
तोतारंटत आ परीक्षा पास
बेबहारिक जिनगी मे फेल भ गेल
कियो भूखले मरै अहाँ के कोन काज।

परीक्षा प्रणाली आ पाठ्यक्रम एहेन किएक
अहिं फरिछा के कहू औ सरकार
फुसियाँहिक डिग्री डिप्लोपा कोन काजक
कतेक लोक एखनो अछि बेकार।

कुर्सी पर बैसल छी त कोना बुझहब
कि होइत छैक लाचारी आ बेकारी
रोजगारक अवसर बंद केलियै
कतेक बढ़ि गेल अछि बेरोजगारी।

अहिंक पैरवी पैगाम सँ
अलूइड़ लोक सभ के नोकरी भेट गेल
मुदा मेहनत क पढ़निहार सभ
पक्षपात नीति दुआरे बेकार भ गेल।

दू टा पद दू लाख आवेदन कर्ता
एकटा पद मंत्री कोटा सँ
विज्ञापन पूर्व फिक्स भेल अछि
बिधपुरौआ परीक्षा टा करौताह।

मेहनत क ईमानदारी सँ
लिखित परीक्षा पास क लेब
मुदा इंटरव्यू मे अहाँ के
तेरह डिबिया तेल जरतौह।

ईमानदारी पर अड़ल रहब कारीगर
त इंटरव्यू मे कैंची चलत
योग्यता रहैतो अहाँ भ जाएब बेकार
मुदा फोंफ काटि रहल सरकार।।