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शनिवार, 23 जून 2012

गजल




देख  मुहँ मूंगबा बहुतो बटाई छै
नाम ककरो गरीबक नै सुहाई छै

भेट निर्धन कए नै भेटलै मिसियो
पेट भरि जाइ सभ  दीनक दबाई छै

मीठ भाषण बरख पाँचे  कते दै छै
जीतकेँ बाद नेतोसभ  नुकाई छै

घूस खा खा  कs बनलै भोकना पारा
आन दमड़ीसँ चमड़ी बड चबाई छै

भ्रष्ट नेता घुमै    बीएमडब्लूमे
एखनो हक गरीबक 'मनु' बटाई छै

(२१२२  १२२२ १२२२, बहरे-मुशाकिल )
जगदानन्द झा 'मनु'  : गजल संख्या -५८

शुक्रवार, 22 जून 2012

गजल


हमर अहाँकेँ प्रीतक खिस्सा आब  दुनियाँ  बिसरत नहि 
युग-युग तक लोकक मोन सँ अपन नाम घटत  नहि 


सूर्य चान केँ प्रेमालाप सँ ई दुनियाँ प्रकाशित अछि भेल 
हुनकर संग बिनु कखनहुँ  ई दुनियाँ चमकत  नहि 


भोला शंकर डमरू बजाबथि पारवती नाचैत अँगना
हुनकर दुनू केँ इक्षा बिनु कएखनो श्रृष्टि चलत नहि


कृष्ण नचाबथि सगरो गोकुल गोबरधन  पर्वत उठा 
बिनु राधिका संग कएखनो हुनक मुरली बजत नहि 


फूल भोंडा केँ प्रीतक खिस्सा सभतरि बहुत पुरान भेलै
'मनु' 'सुगँधाक' नाम बिनु प्रेम कथा आब गमकत नहि  


(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-२२) 
जगदानन्द झा 'मनु'  : गजल संख्या-५६ 

गुरुवार, 21 जून 2012

गजल

आई काईल क' प्रेम प्रीत एकटा जेना खेल भ' गेल छैक 
शहेर बंबई केर बड़ा पाव आ पूरी भेल भ' गेल छैक 

एकटा क' आंखि सौं दोसर ,तेसर क' कहल प्रेम अहिं सौं
लागै अछि जेना कोनो वस्त्र आभुषनक सेल भ' गेल छैक

नै बुझै माई बहिन नै बुझै काकी मामी भठल छै ई जुग
कहू कतेक यौ नरको में जेना ठेलम ठेल भ' गेल छैक

की बुढ्बा की जुअनका अधेर बालक त' आरो बिगरल
जेना बुझा रहल बिनु टिकट क' कोनो रेल भ' गेल छैक

कहुना अहाँ बचा क' राखु ''रूबी'' बेटी पुतहु केर लाज क'
ई भठीयेल जुग में विद्वानो त' बकलेल भ' गेल छैक

वर्ण --२२
रूबी झा

गजल


हम कहानी जीवन केर सुनाऊ कोना
करेज चिर कs घाऊ हम देखाऊ कोना

नाम हुनके जपैतछि जे देलक दगा
द्गावाज प्रीतम सँ दिल लगाऊ कोना

चमकैत रूप पाछू जे भागल दीवाना
ओहन दगावाज के हम मनाऊ कोना

विछोडक पीड़ा सँ सुल्गैत अछि करेज
धुँवा धुँवा अछि जीनगी बताऊ कोना

विसरल नै जाईए ओ मिलनक पल
प्रीतमक ईआद दिल सँ भगाऊ कोना

जरल करेज में प्रेम जगाएब कोना
दिल में प्रेमक दीया आब जराऊ कोना

वर्ण-१५------
रचनाकार-प्रभात राय भट्ट

बुधवार, 20 जून 2012

गजल

भरल जोवन में दुःख देलौं अपार सजाना
विरह जीनगी लगैय आब अन्हार सजना

छोड़ी हमरा पिया गेलौं परदेश जहिया सँ
फूटल तहिया सँ इ करम कपार सजना

सहि जाएत छि बैषाख जेठक गर्मी कहुना
सहल नै जइए जुवानी के गुमार सजना

अहींक वियोग में धेने छि विरहिन भेष यौ
निक लागैय नै हमरा शौख श्रृंगार सजना

चान देखैय चकोर दिल में उठेय हिलोर
टुक्रा टुक्रा भेल दिल हमर हजार सजना

मोन करैय माहुर खा छोइड दितौं दुनिया
मुदा मरहू नै दैय अहाँक पियार सजना

वर्ण-१७-
रचनाकार-प्रभात राय भट्ट

मंगलवार, 19 जून 2012

पद के दुरूपयोग (हास्य कविता)

फेर भेटत नहि एहेन सुयोग
अपना स्वार्थ द्वारे कानून बनाऊ-तोरू
मनमर्जी सँ करू ओकर उपयोग
अहाँ करू अपना पद के दुरूपयोग

सत्ताक कुर्सी पर बैसल छि अहाँ
कोनो समस्या देखैत छि कहाँ
मोन मोताबिक सी.बी.आइ के करू उपयोग
अहाँ करू अपना पद के दुरूपयोग !

अरब-खरब घोटाला करू मुदा
दाँत चिआरैत तिहर जेल सँ निकलू
फेर मंत्री पद हथिआउ आ घोटाला करू
सरकारी खजाना सुडाह क बैसू !

सत्ता कुर्सी आ सरकारी धन
जन्मजात अहाँक बपौती छि
अहाँ करू एककर खूब उपयोग
करू अपना पद के दुरूपयोग

मूलभूत समस्याक समाधान किएक करब ?
एही सँ किछु ने होयत ताहि दुआरे
एहने योजना बनाऊ जाही सँ
अहाँ अप्पन जेबी टा भरब

करू अन्याय मुदा बर्दी चमकाऊ
अपनों घुस खाऊ नेताजी के सेहो खुआउ
डरे कियो किछु बाजत कोना
दमनकारी नीति अहाँ अपनाऊ

न्यायक कुर्सी बिका गेल
देशक रक्षक बनी गेल भक्षक
कागजी पन्ना पर आर्थिक योजना
आम आदमीक कष्ट बुजहब कोना

मंत्री छि लालाबती गाड़ी में घूमूं
जनताक खोज खबरि एकदम नहि करू
एक्के बेर आब अगिला इलेक्शन में
भोंट दुआरे जनता के मुहं देखू

दंगा फसाद अहींक इशारा पर
पहिने सँ फिक्स भेल अछि
वोट बैंक पोलिसी के करू उपयोग
अहाँ करू अपना पद के दुरूपयोग !!

लेखक :- किशन कारीगर

गजल


आजुक नेता सबहक कूटनीति आ चाल देखू त'
मातृभूमि क' नोचि- नोचि खा गेल अछि खाल देखू त'

जनता धन सौं जेब भरि, करे कते निम्मन बात
ऊहे जनता क' कोना केने एहन छै हाल देखू त'

निर्धन लोक क भेटै रोटी ओ अन्न सौं भरैथ कोठी
खा बैमानी क' रोटी भेल छै केहन ई लाल देखू त'

मुहँ चिबा भाषण दै कनेको एकरा लाजो नै होए
हैरत छी हैत की हिनकर अगला चाल देखू त'

जे भारत माँ क' नै छोरल ओ अपन माँ क' छोरत
जन्म द' हिनका हिनक माँ क' होए मलाल देखू त'

शनि राहु ग्रह देखू चाहे आजुक कुपात्र नेता क'
कतेक बढ़ल जाई ''रूबी'' जुग में जपाल देखू त'
वर्ण -१९
रूबी झा

गजल

अपन आंखिक पुतली अहाँ क बना ली जों अहाँ कहि त'
हम त अपन करेजक खोह में नुका ली जों अहाँ कहि त'

सौंस जग केर नजेर सौं राखब ओझल क' अहाँ कहू
अपन आंखिक काजरक रेख सजा ली जों अहाँ कहि त

लाख करी कोशिस नै बुझे किओ ठोर पर अहाँक नाम
हम अपन वाणी क' मीठ शब्द बना ली जों अहाँ कहि त'

सगर नग्र भेल छी बदनाम अहिं क' प्रेम में साजन
सौंस नगर सौं हम प्रेम ग्रन्थ पढ़ा ली जों अहाँ कहि त'

मोन छल उडीतौ पैंख पसारि दुनु मिली नील गगन
बनि पखेरू ''रूबी''अहूँ क' संग उड़ा ली जों अहाँ कहि त'

वर्ण -२१
रूबी झा

गजल@प्रभात राय भट्ट


नीरास जिनगीक अहिं हमर नव आस छी
हम विहिनी कथा अहाँ हमर उपन्यास छी

हम पतझर बगिया केर मुर्झाएल फुल
अहाँ रजनीगंधा गुलाब फूलक सुवास छी

हम नीम गाछ तित अछ हमर सभ पात
मधुर फल में अहाँ सभ फल सं मिठास छी

कर्मक मरल छलहूँ हम जग सं हारल
नीरसल जीनगीक अहिं हमर पियास छी

देखलौं बड खेला ई जग अछि स्वार्थक मेला
स्वार्थक संसार में अहिं निस्वार्थ विस्वास छी

साँस लेब छल मुश्किल छलहूँ हम वेजान
इ बांचल प्राण "प्रभात"अहिं हमर साँस छी

--------वर्ण-१७---------
रचनाकार-प्रभात राय भट्ट

गजल@प्रभात राय भट्ट


श्रद्धा सुमन मोन उपवन में प्रीतम
अहिं हमर मोन चितवन में प्रीतम

प्रेम परागक अनुराग अछि जीवन
श्याम राधा मिलन वृन्द्रावन में प्रीतम

चलू जतय बहैय प्रेम स्नेह सरिता
सिया रामक संग रामवन में प्रीतम

रुक्मिणी बनी विरह कोना हम जियब
हमहू जाएब लक्ष्मणवन में प्रीतम

अढाई अक्षर प्रेमक प्रेम में संसार
प्रेम विनु जीव कोना भवन में प्रीतम

वर्ण-१५.......
रचनाकार-प्रभात राय भट्ट

सोमवार, 18 जून 2012

गजल



सभकेँ हम करि सम्मान सभ बुझैत अछि गदहा 
सभकेँ गप्प हम सुनै छी सभ  कहैत अछि गदहा  

सभतरि मचल हाहाकार मनुख खाय  गेल चाडा
भ्रष्टाचार में डूबि  आई  देश चलबैत अछि गदहा 

नवयुवक फँसल भमर में साधू करए कबड्डी 
देखू  गाँधी टोपी पहिर किछ कहबैत अछि गदहा 

भगवा चोला पहिर-पहिर आँखि में झोँकै मिरचाई 
धर्माचार बनल बैसल    धर्म बेचैत अछि गदहा 

जंगल बनल समाज में, सोनित  सँ भिजल धरती 
शेर सगरो पडा गेलै  चैन सँ सूतैत अछि गदहा 

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-२०)
 जगदानन्द झा 'मनु'  : गजल  संख्या -५५

शुक्रवार, 15 जून 2012

मार बाढ़नि तेसरो बेटीए




हेमंत बाबूक बेटी रोशनी, अपन नामक अनुरूपे अपन कृतीक पताका  चारू कात लहराबति, आईएएसकेँ परीक्षामे भारत वर्षमे प्रथम दसमे अपन स्थान अनलथि | समाचार सुनि हेमंत बाबू दुनू परानीक  प्रशन्नताक कोनो ठीकाने नहि | जे सsर सम्बंधी आ समाजक लोक सुनलनि सेहो सभ  दौड़-दौड़ आबि हेमंत बाबूकेँ बधाइ दैत | रोशनी बड्डका जेठका सभकेँ प्रणाम करैत आशीर्वाद लैत |
फूलो काकी फूल जकाँ हँसैत- बजैत एलि, रोशनी हुनक दुनू पेएर पकरि आशीर्वाद  लेलनि  | फूलो काकी रोशनीकेँ अपन करेजासँ लगबैत टपाकसँ बजलिह, "हे यौ हेमंत बौआ, अहाँक तेसर ई  फेक्लाही बेटी तँ सगरो खनदानकेँ जगमगा देलक |"
हुनकर  एहि गप्पपर सभ कियो ठहाका मारि कए  हँसय लागल | मुदा हेमंत बाबू आइसँ एक्किश बर्ख पाछूक इआदमे विलीन भए  गेला - - | दूटा बेटी भेला बाद कोना ओ बेटाक इक्षामे मंदिरे-मंदिरे  देवता पितरकेँ आशीर्वाद लेल  भटकैत   रहथि | मुदा  हुनकर सभटा मेहनत बेकार भेलनि जखन हुनक कनियाँक तेसर प्रसब पीड़ाकेँ बाद फूलो काकीक स्वर  हुनकर कानमे परलनि,  " मार बाढ़नि  तेसरो बेटीए ....."
एहिसँ  आँगा हुनका किछु नहि सुनाई देलकन्हि  | जेना की अपार दुखसँ मोनमे कोनो झटका लागल होइन, ओ अपन जगहपर ठारकेँ ठारे रहि गेल रहथि    |
*****
जगदानन्द झा 'मनु'

मंगलवार, 12 जून 2012

गजल


हम अहाँ संग चलैत रहब जाधैर छै जीनगी
दुःख सुख हम सभटा सहब जाधैर छै जीनगी

हावा बयार कतबो तेज बहतै छोडब नै संग
अहाँक सूरत देख कs जीयब जाधैर छै जीनगी

नीरास भाव केर त्याग करू आशाक दीप जरा कs
जीवन सं हम संघर्ष करब जाधैर छै जीनगी

विपतिक घड़ीमें देखैत चलु भाग्य केर तमाशा
अपनो भाग्य बदलतै कहब जाधैर छै जीनगी

"प्रभात" पतझर गुलजार जीवनक बगिया में
प्रेम सनेह नदिया में बहब जाधैर छै जीनगी

-----------वर्ण-१९----------
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

सोमवार, 11 जून 2012

गजल


घोड कलियुग घडी केहन आबि गेलै   
एकटा कंस घर घर में  पाबि गेलै  


बनल अछि रक्षके भक्षक आब  सगरो   
विवश जनताक हक सबटा  दाबि गेलै 


अन्न खा ' थाह पेटक किछु नै पएलक  
मालकेँ सगर भूस्सा चुप  चाबि गेलै  



शहर नै गाम आ  घर- घर आब देखू 
पूव देशक हबा में सभ आबि गेलै 


आजु  फेशन कए नव पोसाक  में डुबि
एक गज में अरज देहक पाबि गेलै  


(बहरे असम, मात्रा क्रम- २१२२-१२२२-२१२२)
जगदानन्द झा 'मनु' 

रविवार, 10 जून 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट




अप्पन जीनगी के अप्पने सजाएल करू
अप्पन स्वर्णिम भविष्य रचाएल करू

राह ककर तकैत छि इ व्यस्त जमाना में
अप्पन राह के कांट खुद हटाएल करू

बोझ कतेक बनल रहब माए बाप कें
कर्मशील बनी कय दुःख भगाएल करू

असफलता सं लडै ले अहाँ हिमत धरु
कर्मक्षेत्र सं मुह नुका नै पडाएल करू

हार मानु नै जीनगी सं जाधैर छै जीनगी
जीत लेल अहाँ हिमत के बढ़ाएल करू

चलल करू डगर सदिखन एसगर
ककरो सहारा कें सीढ़ी नै बनाएल करू

उलझन बहुत भेटत जीवन पथ में
पथिक बनी उलझन सोझराएल करू

हेतए कालरात्रिक अस्त नव-प्रभात संग
अमावस में आशा के दीप जराएल करू

------------वर्ण -१६------------
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट