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गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

गजल

‎आब आगिक पता पुछतै पानि ऐठाँ ,
नै जड़त यौ कतौ घर लिअ जानि ऐठाँ ,
कखन धरि लोक जड़तै चुप जानवर बनि ,
तोड़बै जउर से लेतै ठानि ऐठाँ ,
छै दहेजो त' महगाई कम कहाँ छै ,
ओझरी सोझरेतै लिअ मानि ऐठाँ ,
बदलतै समय सगरो नवका जमाना ,
नै जँ बदलत त' ओ मरतै कानि ऐठाँ ,
जे जनम देलकै हुनका बिसरलै सब ,
माँथ पर जनक के रखतै फानि ऐठाँ ,
भाइ मे उठम-बजड़ा नै आब हेतै ,
आइ त' स्वर्ग के देबै आनि ऐठाँ ,
आगि पर पानि नेहक हँसि ढ़ारि दिअ ने ,
"अमित" सब के मिला सुख लिअ सानि ऐठाँ . . . । ।
फाइलातुन-मफाईलुन-फाइलातुन
2122-1222-2122
बहर-असम
अमित मिश्र

जगह



महानगरीय जीवनक अव्यवस्थित आ व्यस्त जीवनमे समयकेँ  आगू लचार आजुक जीवन शैली |
रामप्रकाशकेँ माए अपन बेटा-पुतहु आ पाञ्च बर्खक पोता कए दर्शन आ किछु दिन हुनक संग बिताबैक लोभमे अपन गामसँ दिल्ली रामप्रकाश लग एलथि |
रामप्रकाश एहिठाम सरकारी दू कोठलीक मकानमे रहै छथि | माए  कए आगमनक बाद, जगहकेँ दिक्कत कारणे हुनकर ओछैन बालकोनीमे एकटा फोल्डिंग खाटपर लगाएल गेल |
रातिमे एसगर निन्दक अभाबे करट बदलैत, माएकेँ  मनमे ओहि दिनक सुमरण आबि गेलन्हि, जखन गामक फुशकेँ  एक कोठलीक घरमे केना ओ दुनू बियक्ति अपन तिनटा बच्चा संगे गुजारा करैत छलथि, मुदा आइ एहिठाम ओ बच्चा दू कोठलीक घरमे माएक निर्वाहमे असमर्थ बालकोनीमे ओछैन केलक |
माएकेँ आँखिसँ नोरक बूंद टपकैत, नै जानि केखन आँखि लाइग गेलन्हि |

बुधवार, 4 अप्रैल 2012

बलिक छागर

ब्याहक मंडप, चारू-कात हँसी- मजाक, हर्ष-उल्लासक वातावरण, मुदा दुल्हा चूप,शांत |
बरातीमे सँ एक दोस्त दोसरसँ,  "बताऊ एतेक खुशिक वातावरणमे सब प्रशन्य अछि परञ्च वरक मुँहपर खुशी  नहि देखा रहल अछि |"
दोसर दोस्त भांगक निसामे हिलैत-डूलैत, "भाइ  बलिसँ पूर्व छागर कएतौ प्रशन्य रहलैए |"

गजल


करेज में बसा कs कनी हमरो तs पिआर करु
ओहि काबिल तs छी अहाँ हमरा सँ दुलार करु

छोरि एलहुँ जग में अहाँ केँ खातिर सब किछ
आब अहाँ केँ ऊपर अछि कि अहाँ स्वीकार करु

हमरो तs मोनमे अछि कि कियो अपना मानए
दुनिआ में कियो तs होई जेकरा सँ पिआर करु

हम सिखलौं दुनिआ में पिआर केनाई सब सँ
नहि सिखलौं पिआर में हम कोना बेपार करु

नहि कियो बुझलक, नहि केकरो हम बुझलौं
एहि दुनिआ में पिआर केकरा सँ उधार करु

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१८)
***जगदानन्द झा 'मनु'

गीत@प्रभात राय भट्ट



गीत-

जहिया सँ देखलौं हम हुनकर सुरतिया
ईआद आबैय ओ हमरा आधी आधी रतिया
पूर्णिमा के पूनम सन हुनकर सुरतिया
हुनके रूप सँ होएत छैक सगरो ईजोरिया

चम् चम् चमकैय छै ओ जेना अगहन के ओस
नैयन मिलल हुनका उडिगेल हमर होस
छम छम बजबैत पाएल ओ लग हमरा आएल
देख कS हुनक अधर उर्र भS गेलौं हम घाएल

मधुर बोली हुनक मादकता सं भरल जोवन
हिरन के चाल हुनक चंचल चितवन
अंग अंग सोन हुनक सूरत हिरामोती
हुनक स्पर्श सं भेटैय आन्हर के ज्योति

गाल हुनक लागैय जेना सुभ प्रभातक लाली
ठोर हुनक लगैय जेना मदिरा कें पियाली
मटैक मटैक चलनाए जेना मधुमासक पवन
सपना में आबी करै छथि ओ हमरा सं मिलन

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

बाल-गजल

प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक बाल-गजल, हुनक अनुरोध पर --

बुच्ची कें पजेब बजे बड्ड रुनझुनियाँ
पजेब झनका कय चलै टूनमुनियाँ

खने उठए ओ खने बैस कय देखए
केखनो पग उठा झंकाबे पएजनियाँ

पल में कानें ओ पले में हँसी-हँसी खेले
कखनो माँ कें कोरा में दय ओंघरनियाँ

माँ कें टिकुली लs अपन माथ पर साटे
खने माँ कें साड़ी लय बनि जए कनियाँ

वर्ण-१५
रूबी झा

गजल

प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक गजल , हुनक अनुरोध पर--

अनेरो बैसि बीताओल सगर रैन भोर धरि
काजर हमर बहि गेल नोर बनि ठोर धरि

मजरल महुआ आम गोटाएल यौ प्रियतम
तितिर पपिहरा नाचि-नाचि थाकल मोर धरि

बीतल मधुमास गेना गुलाब सेहो मौलाएब
आएल एहेन खरमास सुखा गेल नोर धरि

कखनो त बुझु आँहा हमर अंतर तिमिर कें
हमर काया जरै अछि क्रोधे सोर साँ पोर धरि

अभिलाषा मोन केर ज्यो अखनो अहाँ पुरायब
आबी जाउ गाम कहत "रूबी"ओर साँ छोर धरि
(वर्ण-१८ )
(रुबी झा )

सोमवार, 2 अप्रैल 2012

नाटक: "जागु"
दृश्य:तेसर
समय:भोर
(विष्णुदेव दालान में कुर्सी पर बैस अख़बार पढैत छथि, तहने अकबर मियां के प्रवेश )
अकबर:: राम! राम !! विष्णुदेव भाई ....

विष्णुदेव::(ध्यान तोडैत )...ओ अकबर भाई ! अस्सलाम  अलैकुम ! अरे , अहाँ  त' दुतिया के चाँद भ' गेल छी ! कतअ नुका रहल छलौं ? आऊ, बैसू-बैसू (अकबर कुर्सी पर बैसइत छथि )...अओर हाल-समाचार सुनाऊ |  कनियाँ आ धिया -पुता सभ ठीक छथि ने ?

अकबर:: हाँ ....! (चिंतित मुद्रा में ) एखन तइक त' ठीक छथि , मुदा.....

विष्णुदेव:: ....मुदा की ? कोनो विशेष गप ??

अकबर:: भाई ! हम रोजी -रोटी कें जुगार में अपन मातृभूमि छोइड़ मुंबई गेल छलौं , मुदा, ओतअ त' साम्प्रदयिक्ताक आगि में समूचा शहर धू-धू  क ' जरि रहल छै ! लोक सभ रक्त पिशाचू बनल अछि ! कतेकों लोक अकाल काल कें गाल में समां गेल ! कतेकों घर सँ  बेघर भ' गेल ! कतेकों बच्चा अनाथ भ' गेल ! कतेकों नारी विधवा भ' गेली !....भाई ! हमरा त' डर लागि रहल अछि --कहीं ई आगि मिथिलांचल के सेहो ने जराए दाए ?

विष्णुदेव:: (भावुक आ संवेदनशील भाव )..नै भाई, नै ! हम मिथिलावाशी  एतेक निष्ठुर आ निर्दयी नै छी ! जेहन हमर बोली मीठ अछि , तेहने कोमल आ स्नेहमयी ह्रदय  अछि !...हाँ , कहिओ -काल भाई-भाई में टना-मनी भ' जाइत अछि , मुदा, एहि कें अर्थ  इ नै जेँ हम एक -दोसरक घर फूँकि देब !!

अकबर:: से त' ठीके कहै छी भाई | हम मिथिलावाशी सदा सँ 'शांति आ प्रेम ' कें पूजारी रहलौंहाँए | एतअ सीता सन बेटी जन्म लेली , जेँ नारी हेतु आदर्श थिक | राजा जनक 'विदेह' कहबैत छलाह अर्थात राजा होइतो ' माया सँ मुक्त छलाह ' | प्रजा हेतु स्वयं ह'र जोतलाह | एतअ कें अन्न-पानि ततेक पोष्टिदायक आ बुद्धिवर्धक छल,  जेँ विद्वानक भरमार छल | मुदा,  |आब लागि रहल अछि जेँ एतौ राक्षस आ अमानुष प्रवृति कें लोक जन्म ल' रहल अछि !!

विष्णुदेव:: इ सत्य थिक जेँ किछु लोक आगि लगा अपन हाथ सेकबा में लागल रहैत अछि ....

अकबर:: ...त' भाई ! एहन लोक सँ समाज कें कोना बचाएल जाए ? कारण ! अशिक्षा आ गरीबी  कें अन्हार चारू दिश पसरल अछि ! एहि कें लाभ उठा समाजक दुष्ट व्यक्ति भाई-भाई कें लड़ा दैत अछि !!

विष्णुदेव:: याह त' सभ सँ पैघ समस्या थिक ! यावत लोक शिक्षित  नै होएत तावत एकर पूर्ण रूपेण समाधान संभव नै |

अकबर:: भाई ! की मात्र पढि-लिख लेला सँ व्यक्ति शिक्षित भ' जाइत अछि ?

विष्णुदेव:: नै, कदापि नै ! शिक्षाक अर्थ थिक प्रेम, सहयोग  , ज्ञान आ अनुशासन
   | जँ  एही  में  सँ   एकौटाक  आभाव होएत त' शिक्षा  पूर्ण  नै  भ'  सकैत अछि ।  जेना  आहि -काहिल देखबा में अबैत अछि --बहुतों डॉक्टर , वकील , कलेक्टर आदि बहुते पढ़ल -लिखल छथि, मुदा , अनेकों  असामाजिक क्रिया -कलाप में लिप्त रहैत छथि , जाहि सँ समाज के अनेको हानी होइत छै ।

अकबर:: ....अर्थात लोक के जागरूक होएबाक जरुरत अछि । लोक के इ बुझअ पड़तै  कि जँ  एक भाई के घर जरतै  त' दोसरों के घर में आगि लगतहि  । जँ एक कें नैन्ना  भूखे कनतै  त' दोसर कें कोना नींद हेतहि  !!

विष्णुदेव:: बिल्कुल सच कहलौं ! हम पूछै  छी ---जँ  गाम में आगि लागैत अछि, केओ बीमार पडैत अछि , बाहिर अबैत अछि ---तखन के काज अबैया ? अपने भाई आ समाजक लोक ने ! त' फेर कियाक हम कोनो नेता आ असामाजिक व्यक्ति कें बहकाव में आबि अपन ' वर्तमान आ भविष्य ' दूनू  ख़राब क' लैत छी ?

अकबर:: हाँ भाई ! यावत लोकक बिच सामंजस नै होएत , तावत व्यक्ति आ समाज कें पूर्ण विकास संभव नै अछि !! (लम्बा सांस लैत )...ओना हम जाहि काज सँ आएल छलौं गप करबा में बीसैरे गेलौं ! ..भाई , काहिल ''ईद''  थिक , अपने सपरिवार सादर  आमंत्रित छी ...जरुर आएब ।

विष्णुदेव:: अवश्ये! अवश्ये!!
अकबर:: (कल जोइर )...तखन आब आज्ञा दियअ ...।
प्रस्थान (पर्दा खसैत अछि )
  दृश्य: तेसर (समाप्ति)

मिथिला के माछक सुनू महिमा

मिथिला के माछक सुनूमहिमा,
मिथिला के ई चिन्हप्रतीक,
रंग-बिरंगक माछभेटइत अछि,
मैथिल के बड्ड माछ सप्रीत।

मारा माछक सुर-सुरझोर,
पिबते भागे ठंढ कठोर,
रोहू के ते बात नेपुछू,
दैवो सबहक नमरइछठोर।

ईचना माछ जो ठोर तरजाय,
मोनक सब दुख-दर्दबेलाय,
कातिक मास जे गईंचाखाय,
लसईक-फसईक बैकुंठोंजाय।

गोलही-भाकुर-नैनीकस्वाद,
खतम करे सब ढंगकविवाद,
पोठी, गरई, आ कांकोरक सन्ना,
सरलों भुन्ना अछिरोहूक दुन्ना।

सिंगही, मांगुर, कबईक बात,
वर्णातीत, सब हृदय जुरायत,
कोमलकाठ, बुआरी, भौरा, सौरा,
मुह पनियायल की बूढ़की छौरा।

गाबै “अमित” नितमाछक महिमा,
अछि मिथिला के ई एकगरिमा,
ब्याह श्राद्ध वा आनप्रयोजन,
करू माछ भोज के सबआयोजन।

रचनाकार- अमित मोहन झा

ग्राम-भंडारिसम(वाणेश्वरी स्थान), मनीगाछी, दरभंगा, बिहार, भारत।



नोट..... महाशय एवंमहाशया से हमर ई विनम्र निवेदन अछि जे हमर कुनो भी रचना व हमर रचना के कुनो भी अंशके प्रकाशित नहि कैल जाय।

गजल@प्रभात राय भट्ट


ठुमैक ठुमैक नै चलू गोरी जमाना खराब छै
मटैक मटैक चलब कें जुर्वना वेहिसाब` छै

जान मरैय सबहक अहाँक चौवनी मुश्कान
अहिं पर राँझा मजनू सन दीवाना वेताब छै

कोमल कंचन काया अहाँक चंचल चितवन
जेना हिरामोती सं भरल खजाना लाजवाब छै

निहायर निहायर देखैय अहाँ कें सभ लोक
प्रेम निसा सं मातल सभ परवाना उताव छै

जमाना कहैय अहाँक रूप खीलल गुलाब छै
झुका कS नजैर अहाँक मुश्कुराना अफताव छै
............वर्ण:-१८.....................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गजल

अप्पन अप्पन काज बिसरलहुँ
सच पूछू तऽ लाज बिसरलहुँ

सिखलहुँ लूरि जीबय के जतय
कियै ओहेन समाज बिसरलहुँ

छूटल अरिपन, सोहर सब किछु
लागल एहेन रिवाज बिसरलहुँ

सासुर मे छल खूब रईसी
घर मे नखरा-नाज बिसरलहुँ

मन गाबय छल गीत मिलन के
सुर के सँग मे साज बिसरलहुँ

संस्कार के बात करी नित
जीबय के अन्दाज बिसरलहुँ

चुप रहलहुँ अन्याय देखिकय
सुमन हृदय आवाज बिसरलहुँ

रविवार, 1 अप्रैल 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट


गजल:-

जिन्गी तोंहू केहन निर्दय निष्ठुर भSगेलाए
छन में सभ सपना चकनाचूर कSदेलाए


छोट छीन छल बसल हमर नव संसार
संसार सं किएक तू हमरा दूर कSदेलए


दुःख सुख तं जीवन में अविते रहैत छैक
मुदा दुःख ही टा सं जिन्गी भरपूर कSदेलए


भईर नहि सकैत छि अप्पन दिल के घाऊ
चालैन जिका गतर गतर भुर कSदेलए


उज्जारही के छलौं हमर जीवनक फुलबारी
तेंह दिल झकझोरी किएक झुर कSदेलए


तडपी तडपी हम जीवैत छि एहन जिन्गी
जिन्गी तोंह दिल में केहन नाशुर कSदेलए


कर्मनिष्ठ बनी कय कर्मपथ पर चलैत छलौं
नजैर झुका चलै पर मजबूर कSदेलए
.............वर्ण-१७........
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

फूल डे

विहनि कथा
चारि बजे भोरे करीया उठि गेल । स्नान-ध्यान क' कोयला सिलौट पर पिसलक , लोढ़ी पर अक्षत-फूल चढ़ा , कोयला कए गर्दा कए चानन बना माँथ , पिठ , बाँहि ,छाती , गर्दन पर लगेलक । करिका सर्ट-पेण्ट पहीर गामक मंदिर दिश चलि देलक । कारी चाम पर कारी तिलक आ कारी वस्त्र ,डेराउन रूप लागैए , आधा पाकल केश ओहि रूप कए और भयानक बनेने छलैए । छ' बजे भोरे मंदिर पहुँचल तेँ कोनो भीड़-भाड़ नहि छलै । करीया तीन -चारि बेर चारू कात हियासलक मुदा केउ नजर नहि एलै ।थाकि-हारि क' पाया मे पिठ सटा बैस गेल । सुरज चढ़ति गेलाह , 12 बाजि गेल । तखने मंदिरक कोना मे करीया कए अपन दोस्त देखाइ देलकै , ओकरा लग जा क' बाजलै , "बेचना . जेना-जेना तूँ कहने छलैँ तेना-तेना पूजा क' हम भोरे सँ एत' छी , आब रहल नहि जाइ यै , जल्दी ओकरा देखा जेकरा संग जीवन काटब ।"
बेचना आ और संगी सब ठहक्का मारैत बाजल ,"बड़का मूर्ख छेँ तूँ रौ , तोरा सन 40 वर्षक बूढ़बा सँ के बियाह करतौ? हम सब तोरा उल्लू बनेलियौ ,जानै नहि छहीँ आइ फूल डे छै ।"
सब ठहक्का मारि करीया कए खिसियाब' लागल आ करीया सोच' लागल जे इ नाम त' कहियो नहि सुनलौँ आखीर कोन लड़की वा कोन जानवर कए नाम छै फूल डे?
अमित मिश्र

हजल

आगू नाथ नै पिछु पगहा ,
देखियौ कोना कूदै गदहा ,
होर लागल फल-फूल मे ,
के सब सँ बड़का बतहा ,
मुर्ख दिवस मुर्खक नामेँ ,
केरा बनि गेलै यै गदहा ,
बत्तीस मार्च के सम्मेलन ,
मुर्खीस्तान मे हेतै सबहा ,
पाइ कमाइ छै चारि लाख ,
मुदा सब्जी लेलनि दबहा ,
चुन्नू सुतल अपन घर ,
मुदा उठल जा क' भूतहा ,
मोनूआँ चढ़ल साइकिल .
उठेने माँथ पर बोझहा ,
बीस टका मे दर्जन केरा ,
मुन्नू लै छै बीस मे अदहा ,
माँथ उठेने छलै छै गोनू ,
खसलै खद्दा , भेलै पटहा ,
चुन्नू , मुन्नू , गोनू वा "अमित "
कहू के छथि पैघ बतहा . . . । ।
अमित मिश्र

तखने जीयब शान सँ

समय के सँग मे डेग बढ़ाबी तखने जीयब शान सँ
किछु ऊपर सँ रोज कमाबी तखने जीयब शान सँ

काका, काकी, पिसा, पिसी रिश्ता भेल पुरान यौ
कहुना हुनका दूर भगाबी तखने जीयब शान सँ

सठिया गेला बूढ़ लोक सब हुनका बातक मोल की
हुनको नवका पाठ पढ़ाबी तखने जीयब शान सँ

सासुर अप्पन कनिया, बच्चा एतबे टा पर ध्यान दियऽ
बाकी सब सँ पिण्ड छोड़ाबी तखने जीयब शान सँ

मातु-पिता के चश्मा टूटल कपड़ा छय सेहो फाटल
कनिया लय नित सोन गढ़ाबी तखने जीयब शान सँ

पिछड़ल लोक बसल मिथिला मे धिया-पुता सँ कहियो
अंगरेजी मे रीति सिखाबी तखने जीयब शान सँ

सुमन दहेजक निन्दा करियो बस बेटी वियाह मे
बेटा बेर मे खूब गनाबी तखने जीयब शान सँ