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बुधवार, 21 मार्च 2012

गजल

बेटी नहि होइ दुनिआ में, कहु बेटा लाएब कतए सँ
जँ दीप में बाती नहि तँ, कहु दीप जलाएब कतए सँ

आबै दियौ जग में बेटी के, के कहे ओ प्रतिभा,इन्द्रा होइ
भ्रूण-हत्या करब तँ कल्पना,सुनीता पाएब कतए सँ

मातृ-स्नेह, वात्सलके ममता, बेटी छोरि कें दोसर देत
बिन बेटी वर कें कनियाँ कहु कोना लाएब कतए सँ

धरती बिन उपजा कतए, घर बिनु कतए घरारी
बिन बेटी सपनो में, नव संसार बसाएब कतए सँ

हमर कनियाँ, माए बाबी हमर किनको बेटीए छथि
बिन बेटी एहि दुनिआ में, मनु हम आएब कतए सँ 


जगदानन्द झा 'मनु'

मैथिली गीत

एगो बात छिए भौजी मोन में विचारे निरुपमा से नहिं हेतेह बियाह त मरि जएबे कुमारे सपना देखेय छी हम आब दिन के ... यै भौजी लगबु जोगार अहाँ अपना बहिन से जहिया से हम अहाँ के बहिन के देखलौं सुधि बुधि अपन भौजी सबटा बिसरलौं भ गेलेय प्यार हमरा अहाँ बहिन से यै भौजी लगबु जोगार अहाँ अपना बहिन से रुपया पैसा भीैजी किछुओ नहिं लेबेय ऊपर सॅ जेे माँगब सब किछु देबेय गहना हम आनि देबेय चुनि चुनि के यै भौजी लगबु जोगार अहाँ अपना बहिन से बात चलाबु भौजी बात बढ़ाबु अपना बहिन से हमर बियाह कराबु नहिं त खाई लेबे जहर किन के यै भौजी लगबु जोगार अहाँ अपना बहिन से एगो बात छिए भौजी मोन में विचारे निरुपमा से नहिं हेतेह बियाह त मरि जएबे कुमारे सपना देखेय छी हम आब दिन के यै भौजी लगबु जोगार अहाँ अपना बहिन से आशिक ’राज’

प्राचीन मिथिला


मिथिला के मिथिलेश्वर महादेव हम की कहू यौ
स्वम अहाँ छि अन्तरयामी अहाँ सभटा जनैतछी यौ
बसुधाक हृदय छल हमर महान मिथिला
इ हमही नै शाश्त्र पुराण कहैय यौ

मिथिलाक जन जन छलाह जनक एही ठाम
ताहि लेल नाम पडल जनकपुर धाम
राजा जनक छलाह राजर्षि जनकपुरधाम में
सीता अवतरित भेलन्हि मिथिले गाम में

मिथिलाक पाहून बनी ऐलाह चारो भाई राम
विद्यापती के चाकर बनलाह उगना एहि ठाम
चारो दिस अहिं छि महादेव जनकपुर के द्वारपाल
पुव दिस मिथिलेश्वरनाथ पश्चिम जलेश्वरनाथ

उत्तर दिस टूटेश्वरनाथ दक्षिण कलानेश्वरनाथ
किनहू भs सकय मिथिलाक प्राणी अनाथ
इ ध्रुव सत्य अछि प्राचीन मिथिलाक परिभाषा
एखुनो अछि एहन सुन्दर मिथिलाक अभिलाषा

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गजल@प्रभात राय भट्ट

गजल@प्रभात राय भट्ट



गजल:-
अहाँ विनु जिन्गी हमर बाँझ पडल अछि
सनेह केर पियासल काया जरल अछि


दूर रहितो प्रीतम अहाँ मोन पडैत छि
प्रीतम अहिं सं मोनक तार जुडल अछि


तडपैछि अहाँ विनु जेना जल विनु मीन
अहाँ विनु जिया हमर निरसल अछि


नेह लगा प्रीतम किया देलौं एहन दगा
मधुर मिलन लेल जिन्गी तरसल अछि


अहाँ विनु प्रीतम जीवन व्यर्थ लगैय
की अहाँक प्रेमक अर्थ नहीं बुझल अछि
..............वर्ण-१६...........
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

मंगलवार, 20 मार्च 2012

प्रवीन नारायण चौधरी जिक कविता -बेटी अहाँ विद्यालय जाउ!

भले जे हेतै बाद में देखबै - एखन अहाँ विद्यालय जाउ!
शिक्षा के शक्ति जगके जननी - अहुँ अपन अस्मिता बनाउ!
जुनि पिछड़ू कोनो विधामें पाछू - अस्तित्वक रक्षा-किला बनाउ!
बेटी अहाँ विद्यालय जाउ!

देखू आइ संसार में नारी - अग्रपाँति नेत्री बनि चलैथ!
जतय दहेजक चाप आ मारि - सैह समाज पिछड़ल छैथ!
शिक्षाके पूँजी सभसऽ बड़का - दहेज-दान के त्याग कराउ!
बेटी अहाँ विद्यालय जाउ!

भारतमें नारी छथि आगू - मिथिला बेसी पिछड़ल अछि!
बीति गेल देखू कते जमाना - गार्गी - भारती पड़ल अछि!
पुनः प्रीतिके रीति सऽ सभके - अपन दिव्य शक्तिके देखाउ!
बेटी अहाँ विद्यालय जाउ!

हरिः हरः!
प्रवीन नारायण चौधरी

रवि मिश्रा जिक प्रस्तुति

हम छी मिथीलाक बेटी हमर की दोस अछी
अहाँ हमरा सँ प्रेम केलौ कहु हमर की दोस अछी

अहाँक पिताजी माँगै छथि दहेज
हमर पिताजी छथि निर्धन कहु हमर की दोस अछी

क निर्धन केर बेटी सँ प्रेम- वीलाप
आब भेलौ कठोर कहु हमर की दोस अछी

मन में बसी अहाँ भेलौ निठुर
हमर जीनजी केलो बेकार कहु हमर की दोस अछी

टुतल मोन झरै या नयन सँ नोर
नै रुकै या नोर कहु हमर की दोस अछी

हमर नोर देखी हंसै या लोक
हम कनैत छि हुनक हंसी सँ कहु हमर

रवि मिश्रा

गजल

प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक एकटा गजल सरल वार्णिक बहर में

तरहत्थी दीप जरा हम ठारै छलौ,
अहाँक जोहैत रस्ता हम ठारै छलौँ ,

अहाँ आएब एहि बाटे फुईसे छलै ,
लेलौं किए हाथो पका हम ठारै छलौँ ,

कठोर अहाँ देखलौं नै आँखिक नोर ,
मुदा कानि आँखि फुला हम ठारै छलौँ ,

हमर दर्दक मोल नै जनलौ अहाँ ,
कनी बुझितहुँ व्यथा हम ठारै छलौँ ,

अहीं केर आशमें जँ मरब कहियो ,
नै आनब नामो कदा हम ठारै छलौँ ,

बेदर्दी अहाँ दर्द बुझब कि हमर,
मुदा व्यर्थ पिडा बता हम ठारै छलौँ|

-----------वर्ण -१४ ---------
रूबी झा

सोमवार, 19 मार्च 2012

दहेज

दहेजक नाम सुनि कऽ
कांइपि उठैत अछि ,माए-बापऽक करेज
कतबो छटपटायब तऽ
लड़कवला कम नहि करताह अपन दहेज।
ओ कहताह, जे बियाह करबाक अछि
तऽ हमरा देबैह परत दहेज
पाई नहि अछि तऽ
बेच लिय अपना जमीनऽक दस्तावेज।
दहेज बिना कोना कऽ करब
हम अपना बेटाक मैरेज
दहेज नहि लेला सऽंॅ खराब होयत
समाज में हमर इमेज।
एहि मॉडर्न जुग मे तऽ
एहेन होइत अछि मैरेज
आयल बरियाति घूरीकऽ जाइत छथि
जऽंॅ कनियो कम होइत अछि दहेज।
मादा-भूर्ण आओर नव कनियाक
जान लऽ लैत अछि इ दहेज
ई सभ देखि सूनि कऽ
काइपि उठैत अछि किशन के करेज।
समाज के बरबाद केने
जा रहल अछि ई दहेज
बचेबाक अछि समाज के तऽ
हटा दियौ ई मुद्रारूपी दहेज।
खाउ एखने सपत ,करू प्रतिज्ञा
जे आब नहि मॅंागब दहेज
बिन दहेजक हेतै आब सभ ठाम
सभहक बेटीक मैरेज।

लेखक:- किशन कारीगर
संवाददाता, आकाशवाणी दिल्ली

मऊगी के बड़ाई

भाई की कहि कोना हम रहे छी
भरिदिन त डयूटी करय छी राइतो के खटय छी
जौं किछु कहब हम हुनका
चट द कहती अहाँ की बुझय छी
साग सब्जी दुर परायत
भेटत ओहि दिन नुन मरचाई
नहिं किछु कहब त देतीह ठिठियाई
किछु कहब त लेती मुँह फुलाई
पन्द्रह दिन ओ घर चलयती
पैसा खतम क के कहती
पन्द्रह दिन आब अहुँ घर चलाबी
नहिं चलाबी त बेलुइर बनइती
सनडे दिन कहती अहीं हाथक किछु खाई
बड़ मऊगी देखलौं भाई
की कहबौ मऊगी के बड़ाई

(मित्र क डायरी स)
आशिक ’राज’

रविवार, 18 मार्च 2012

गजल

प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक एकटा गजल सरल वार्णिक बहर में

जग में बेटी के सम्मान भेटै कहियो
माई बापक अभिमान भेटै कहियो

माँ केर कोईख सँ लेलें दुनु जनम
मुदा अधिकार समान भेटै कहियो

भैर देश के आई सम्हारने छै बेटी
अपन समाजो में मान भेटै कहियो

पहुँच गेलै बेटी अंतरिक्ष अखन
वसुंधरा पर सम्मान भेटै कहियो

भेल चौपट मिथिला दहेज प्रथा सँ
दहेज़ बिनु वरदान भेटै कहियो

घुटि मरे "रूबी" पुरुखक समाज में
एको दिन नारी प्रधान भेटै कहियो

रुबी झा

गजल@प्रभात राय भट्ट

गजल@प्रभात राय भट्ट



गजल:-
वसंत ऋतू में आएल सगरो वसंत बहार
वनस्पतिक पराग गमकौने अनन्त संसार


हरियर पियर उज्जर पुष्प आर लाले लाल
पुष्पक राग केर उत्कर्ष अछि वसंत बहार


झूमी रहल कियो गाबी रहल नाचे कियो नाच
पलवित भेल प्रेम मोन में अनन्त उद्गार


सीतल सुन्दर सजल बहैय वसंत पवन
मनोरम प्रकृतिक दृश्य अछि वसंत बहार


मोर मयूरक नृत्य मधुवन कुह्कैय कोईली
मधुर मुस्कान सगरो आनंद अनन्त संसार


प्रेम मिलन मग्न प्रेमी पुष्पित वसंत बहार
मोन उपवन सुरभित भेल अनन्त संसार
.............वर्ण-१८.............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शनिवार, 17 मार्च 2012

गजल

प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक एकटा गजल सरल वार्णिक बहर में

सगरो नगरी मे कतेक , शोर भs गेलए
हुनक रुपक इजोत सँ , भोर भs गेलए

यौबन केर रौद चम-चम चमकै एना
नहा इजोरिया, रसीक चकोर भs गेलए

केखनो गुदरी ज्यो फाटल, लेलैंह पहीर
देह हुनकर सजल , पटोर भsगेलए

अनुपम सुन्नैर लगैत जेना ओ अप्सरा
मेनका के रुप जेना कोनो ठार भsगेलए

वो लेलेन अन्गराई ,करेज बुढबो पिटे
छौरा देखैक लेल त हलखोर भsगेलए
--- -- -- -- -- - --वर्ण -१६ --- -- -- -- --
रुबी झा

शुक्रवार, 16 मार्च 2012

गजल

प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक एक गोट गजल सरल वार्णिक बहर में ----
गजल -
हे यै शोना,आँहाक रुप लगै सोना जेकाँ
गोर गालक तील कोनो जादु टोना जेकाँ

मेघ सन कारी केश गरदन शोभैय
जुट्टी एँचल आँहाक नागक फेना जेकाँ

चितवन चंचल जेहन कामी हिरनी
ताहु पर काजर मशीह भौं शोना जेकाँ

देह छर-हर गाछ कुसियारक जेना
रस पोरे-पोर चीनीक बसोना जेकाँ

आँहा चली बाट मोन होय बड्ड उचाट
गम गम गमकै छी फुलक दोना जेकाँ
-------------वर्ण -१५ ---------
रुबी झा

गुरुवार, 15 मार्च 2012

गजल

आई काल्हि तँ राजनीतिक बाजार बहुत गर्म अछि
देखू नेता सभहँक हाल बनल बड्ड बेशर्म अछि

चानन टिका लगा कs ओ बनल बडका-बडका भक्त
नहि पुछू एहि संसार में केने कतेक कुकर्म अछि

जए अछि कर्मयोद्धा धीर बीर, ओ बजैत नहि अछि
चुप्प भs करैत सदिखन अपन-अपन कर्म अछि

भैय्यारी आ सद्भावना इ तँ सबसँ बड़का प्रेम अछि
जे लडाबए एक दोसर सँ ओ नहि कोनो धर्म अछि

हम छी मैथिल, आ नहि कोनो आन हमर धर्म अछि
सपनो में एकरा त्यागि,सबसँ बडका अधर्म अछि
- - - - - - - - -- - वर्ण-२० - - - - - - - -
***जगदानन्द झा 'मनु'

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मंगलवार, 13 मार्च 2012

जगदीश प्रसाद मण्डल- एकटा बायोग्राफी द्वारा...गजेन्द्र ठाकुर


सन् सैंतालीस...
भारतक स्वतंत्रताक त्रिवार्णिक झण्डा फहरा रहल छल।
मुदा कम्यूनिस्ट पार्टीक माननाइ छल जे भारत स्वतंत्र नै भेल अछि।
असली स्वतंत्रता भेटब बाँकी छै...
मिथिलाक एकटा गाम…
जन्म होइत अछि एकटा बच्चाक.. ओही बर्ख ...
ओइ स्वतंत्र वा स्वतंत्र नै भेल भारतमे...
पिताक मृत्यु...गरीबी..
केस मोकदमा...
वंचितक लेल संघर्षमे भेटलै स्वतंत्र भारतक वा स्वतंत्र नै भेल भारतक जेल....
आइ बेरमामे पाँच-दस बीघासँ पैघ जोत ककरो नै..
ओइ गाम मे आइ जीवित अछि आइयो किसानी आत्मनिर्भर संस्कृति...
पुरोहितवादपर ब्राह्मणवादक एकछत्र राज्यक जतऽ भेल समाप्ति..
संघर्षक समाप्तिक बाद जिनकर लेखन मैथिली साहित्यमे आनि देलक पुनर्जागरण...

जगदीश प्रसाद मण्डल- एकटा बायोग्राफी द्वारा...गजेन्द्र ठाकुर