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सोमवार, 5 मार्च 2012

{< मुन्ना कक्का होली मे>}

{< मुन्ना कक्का होली मे>}
किनको मुँहेँ सुनने छलौँ इ गान हौ
"बुढ़बा कए दिल होइ छै बेसी जुआन हौ"
होलीका दहन मे जरबै सब लाज-लेहाज छै ,
होली सन दिन मे लाजक कोन काज छै ,
चारि बजे भोरे मुन्ना कक्का उठि गेलाह ,
बड़का टा शंक्वाकार टोपी पहिर लेलाह ,
बड़का टा बाल्टी मे रंग छलै घोरल ,
गोला छल भांगक आधा किलो पिसल ,
होली कए उमंग सबटा सिगनल तोड़ैए ,
केउ अपन केउ भैया कए सासुर धरि दौड़ैए ,
भोर सँ दुपहर .दुपहर सँ साँझ भ गेलै ,
मुन्ना कक्का सँ होली खेल= केउ नै एलै ,
थाकि-हारि चललाह गाम घुमै लए ,
भरल बाल्टी रंग ककरो पर उझलै लए ,
कक्का कए देख सब केउ पड़ाई छल ,
नवका-नवका गाल खोजि रंग लगबै छल ,
ककरा अबीर लगेता ,कनियाँ भेल स्बर्ग वासी ,
भौजी बिमार छेन .सारि बसैए काशी .
मुन्ना कक्का देख इ बड तमसा गेलाह ,
अन्त मे भरल बाल्टी रंग अपने पर उझैल लेलाह ,
ऐ तरह सँ मुन्ना कक्का होली मनेलाह . . . । ।
कविता रूपि लाल गुलाल अपने सबहक चरण मे आ जे छोट छथि हुनकर गाल पर । खराप नै मानब होली छै ।
अमित मिश्र

होली स्पेसल २१ टा हुरदंग शेर

एक साथ होली स्पेसल २१ टा हुरदंग शेर द रहल छी जकरा परंपरागत रूप सन ऍम घर में गायन होई यै \
होली मे किछु अलगे तरहक शेर साब गाओल जाइ छै ।किछ शेर हम द रहल छी ।जँ कत्तौ कोनो शब्द नीक लागैए त क्षमा चाहब । ।
{सारा रा रा //8 । वाह भाइ वाह //8 बेर वा अपन तरीका सँ सब शेर मे लगा लेब }
{1} होली मेँ रंग बरसै, उड़ै अबीरा
(पहिल शेरक अन्त वाला आधा भाग सब मे दोहराएब) मुँह किय तुम्मा केने गाबू जोगीरा । ।
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया (सब शेर में द सके छी )
{2} आमक पत्ता छोट होइ छै, पैघ केला कए पत्ता
बुढ़बा लाठी ल' क' दौगल, खसलै बड़का खत्ता । ।
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{3} सगरो अन्हार पसरल , डुबि रहल छै देश
बाबा जी पड़ा रहल छथि ध' नारी कए भेश । ।
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{4} केऊ पिबै भांग दारू ,केऊ पिबै यै ताड़ी
नटुआ बनि नाचि रहल छै दियौ जोड़ा साड़ी ।
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{5}मौगी भेलै मुखिया ,आ बनलै प्रधान
मनसा करै उठक-बैठक पकड़ै छै कान । ।
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{6}हुलुत-बुलुक कुदैत-फानैत ,सासुर सब पहुँचल
ऊहो ठाम मारि पड़लै गाल दुनू फुलल
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{7}उड़लै खुब एरोपलेन ,हावाजहाज
उड़बै हमरा कनियाँ देखू करी सब काज
{8} ऐ दफ्तर ओइ दफ्दर ,करी दौड़ा-दौड़ी
गामक छौड़ा संग भागलै गामे कए छौड़ी
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{9} कुत्ता गदहा गाय भैँस ,सब कए होइ छै नंगरी
भौजी संग होली खेलै मे टूटि गेल टंगरी
{10}गाम छोड़ि शहर गेलै ,शहर छोड़ि विदेश
हकन कानै छौड़ा सब छोड़ि अपन देश ।
{11}मुखिया कए करिखा लागलै ,तैयो नाचै छैँया-छैँया
घोरि क' पि गेलै इंदरा आवास वाला रूपैया । ।
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{12}कुरती-सलबार केऊ नै पहिरै ,पहिरै छै जींस
मोछ कटा छौड़ा सब लागै अलच्छे प्रिँस
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{13}राति विधायक जीक ,घर मे लागलै आगि
मुखिया जीक कनियाँ गेलै चमचा संग भागि
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{14}सारि सँ रंग लगेबै ,सरहोजि सँ पिबै भांग
सार बुढ़बा की करतै खीच देबै टाँग
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{15}बहकल छै ढोल वाला ,मातल सब लोग
दारू पिनाइ भ गेलै एड्स बाला रोग
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{16}भिरहा मे नाच भेलै ,भुतहा मे उड़लै पैसा
रोसड़ा मे देख भाई जाम लागल कैसा
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{17} नेना सब करै ,दोकान पर नोकरी
नशा करै लए बाप लगेलक बेटा कए फसरी
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{18}प्रेम मे पागल भ' क' ,मुन्ना खेलक जहर
मुन्ना कए दोस्त कए बनेलकै छौड़ी शौहर
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{19}तमाकुल होइ छै करू आ ,चिन्नी होइ छै मिठ
लैते जनम आइ-काल्हि बच्चा भ जाए ढिठ
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{20} दरभंगा मे दंगा भेलै ,रन्नी मे उड़लै ओढ़नी
समस्तीपुर मे आबिते सब कए काटि लेलकै बिढ़नी
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{21} बान्हि ले झालि-ढोल ,आ मंजीरा मित
जोर सँ बाज सा रा रा रा खतम भेलै गीत ।
बोल बोल रे सा रा रा रा रा रा रा रा रा रा रा . . . । ।
एकरा होली अहन सब गायब से आशा अछि
सब रंगक शेर सँ भरल बाल्टी अपने सबहक लेल । खराप नै मानब होली छै । ।
अमित मिश्र

रविवार, 4 मार्च 2012

"विआह"


सुनि गप्प विआह कें

मन अध्हर्षित अध्दुखित भेल |


सुझाए लागल ब्रह्माण्ड हमरा

तन-मन आकुल-व्याकुल भेल ||



क्षणिक सोइच आनन्द विआह कें

हम कुदअ लगलौं चाईर-चाईर हाथ |


द' चौबनियाँ मुस्कान

हम गुद्गुदाए लगलौं भईर-भईर राइत ||



नै छलौं देखने हुनका

नै छल हुनकर कोनो ज्ञान |


नै जानि तइयौ हुनके

कियाक बुझैत छलौं अपन प्राण ||



अचानक केखनो क' हमरा

मन मे भ' जाइत छल  साइत --

नै जानि ओ केहन हेती

अनाड़ी हेती या व्यावहारिक हेती !

बुझल छल हमरा एतबाए

हुनक व्यस(उम्र) छनि सोलह साल |


तांए डेराइत छलौं हम

कोना करब "प्रेमक' बात ||



बुझल छल हमरा एतबाए

ओ नैन्ना हम स्यान |

तांए डेराइत छलौं हम

कोना करब एकहि घाट हम स्नान ||



मुदा मन के बुझअलौं- की करबअ ?

मिथिला कें छै इहाए विधान

"कनियाँ नैन्ना " आ "वर स्यान " ||



:गणेश कुमार झा "बावरा"

गुवाहाटी
गजल:- होली
रंग विरंगक रसरंग सं भौजी के रंगाएल चोली
रंग उडैए छै अवीर उडैए छै देखू आएल होली

होली के रंग में रंगाएल सभक एकही रूपरंग
... दोस्ती के रंग में रंगाएल दुश्मन देखू आएल होली

प्रेम स्नेहक पावैन होली गाबैए गीत फगुआ टोली
रसरंग सरोवर भेल दुनिया देखू आएल होली

रंग में रंगाएल शरीर गाबैए गीत जोगी फकीर
गाबैए जोगीरा बजाबैए मृदंग देखू आएल होली

रंग उड़ाबैए रंगरसिया कियो उड़ाबैए अवीर
तन मोन सभक रंगाएल देखू आएल होली

......................वर्ण-२०.............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शनिवार, 3 मार्च 2012

गजल-२७

अहाँ कखनो तँ बाट हमर घरक धरबै
अहाँक हाथे ओहि दिन हम वरक धरबै

लाली सेनुर टुकली श्रृंगार हमर सबटा
अहाँ बिनु एकरा हम कोनो सरक धरबै

एही जीबन में सिनेहिया अहाँ नहि भेटबै
जिबते जीबैत हम तs बुझु नरक धरबै

अहाँ हमर जिबनक पूर्निमाक इजोरिया
अहीं हमर मोन में इजोत भोरक धरबै

अहाँ आब त फूसीयो सँ आबियो घर जाउ यौ
मनु कखनो त कनिको कोनो सरक धरबै
***जगदानन्द झा 'मनु'

गजल

अहाँ कखनो तs बाट हमर घरक धरबै ,,
हमरा संगे-संगे अहूँ एक्के सड़क धरबै ,
भाग्य मे जे लिखल अछि तें विरह मे मरै छी ,
आशा केने छी कहियो तs मान नोरक धरबै ,
राहू-केतू केने अन्हरीया ताशक सियाह छी ,
हेतै जँ तेज मंगल तs ध्यान भोरक धरबै ,
काँट कलपाबैए कने काल कनेक दर्द दs ,
फुलो भेटबे करत , बाट नै ने डरक धरबै ,
सिनेह जँ हारत तs समझू दुनियाँ डोलत ,
लड़ाइ जीत, कहियो तs झण्डा प्यारक धरबै ,
ठार दलान पर स्वागतक थारी सजेने छी ,
माँग हमर राँगल हाथ सेनुरक धरबै ,
नै मागै छी अकाशक लाख तरेगण हम यौ ,
"अमित" कहियो तs गजल हजारक धरबै . . . । ।
अमित मिश्र

गीत:-

गीत:-
टुईट नै सकैय विधना के विधानक लकीर
बदैल नै सकैय कियो अप्पन तक़दीर //२

पंचतत्व रचित इ अधम शरीर
घाऊ अछि सभक मोन में गंभीर
सुख के खोज में दुनिया लागल
राजा रंक जोगी फकीर .............
हो भैया, राजा रंक जोगी फकीर
टुईट नै सकैय विधना के विधानक लकीर//
बदैल नै सकैय कियो अप्पन तक़दीर //२

सुख नहि हुनका भेटल जग में
जे दुःख सं मुह मोड़ी पड़ाएल

जराबू मोन में जीवन दर्शन ज्योति
दुःख क सागरमे भेटै छैक
सुख स्वरुप अपार हिरामोती
टुईट नै सकैय विधना के विधानक लकीर//
बदैल नै सकैय कियो अप्पन तक़दीर //२

भाग्य सं बढ़ी के जगमे किछु नहीं बलवान
पल में राजा रंक भेल विप्र बनल धनवान
राजपाठ सभ त्यागी भेल राम लखन वनवासी
बिक गेल राजा हरिश्चंद्र बनल डोमक दासी
हो भैया,राजा हरिश्चंद्र बनल डोमक दासी
टुईट नै सकैय विधना के विधानक लकीर //
बदैल नै सकैय कियो अप्पन तक़दीर //२

जीवन एक संघर्ष दुःख छै महा संग्राम
कांटक डगैर चलैत रहू लिय नै विश्राम
दुःख क संघर्ष सं भेटैय छै सुख आराम
दुःख सुख छै जीवन,जिनगी एकरे नाम
हो भैया,जिनगी एकरे नाम ..............
टुईट नै सकैय विधना के विधानक लकीर //
बदैल नै सकैय कियो अप्पन तक़दीर //२
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शुक्रवार, 2 मार्च 2012

शिवताण्डवस्तोत्रम् : अनुवाद :-डा0 चन्द्रमणि

जटारूप अटवी वन निकसलि जाह्नवीक पावन धारा
गरदनि अवलम्बित फणिमाला ताण्डव नृत्य प्रचण्ड परा,
डिमिक डिमिक डिम डमरु बाजे स्वर लहरी अनुगुंज करे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।1।
जटा कड़ाही मध्य तरंगित गंग सुशोभित शीश जनिक,
धह-धह ज्वाल ललाटक मध्ये राजित बालक शोम तनिक,
शुचि शरीर सुन्दर शशि शेखर सदा हृदय अनुराग भरे
करु कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।2।
धन-धन गिरि तनया विलास निर्लिप्त निरासक्ते योगी,
हुलसित लखि चहुँदिशि प्रकाश निज शिर-भूषण जन-उपयोगी,
सतत् कृपा दृग पाबि दिगम्बर कष्ट हरे आमोद भरे,
करु कल्याण हमर शिव शंकर जयशिव जयशिव हरे-हरे ।3।
जटाजूट आवर्तित फणि-मणि कुंकुम रागालेप प्रभा,
आलोकित चहुँ दिशा हस्ति चर्माम्बर पहिरन हरक सदा,
ताहि विलक्षण भूतनाथ मे मन विनोद सदिकाल करे,
करू कल्याण हमर शिव शंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।4।
इन्द्रादिक मस्तक आवर्तित पुष्प पराग चरण-पनही,
नागराज केर हार निबद्धित जटा शिखर शशि टा धनही,
चिर संपत्ति घटय नहि कहियो रिक्त हमर भंडार भरे,
करु कल्याण हमर शिव शंकर जयशिव जयशिव हरे-हरे ।5।
अग्नि प्रज्वलित भालक वेदी मन्मथ शमन तेज सं भेल,
भाल विशाल कलाधर शोभित छथि आराध्य इन्द्रहुक लेल,
मस्तक महाजटिल शिवशंभुक मम अभिष्ट श्री सिद्ध करे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे ।6।
धह धह अनल भाल विकराले कयल कामदेवहुक हवन,
गिरितनया-कुच पत्रभंग रचना कारीगर शिवा रमण,
अटल भक्ति एकाग्रचित्त हो तीन नयन मे ध्यान धरे,
करू कल्याण हमर शिव शंकर जयशिव जयशिव हरे हरे ।7।
अमारात्रि केर नवल मेघमाला सन कारी कण्ठ जनिक,
हस्तिचर्म धारक तारक विश्वेश गंगपति चन्द्रमणिक,
परम मनोहर कान्तिवान भगवान धनक विस्तार करे,
करू कल्याण हमर शिव शंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।8।
नील कमल दल श्याम प्रभा अनुगमना हरिणी-छवि ग्रीवा,
त्रिपुर काम भव दक्ष यक्ष हरि अन्धक यम हति देव-शिवा,
विघ्न विनाशक पिता महादेव सकल ताप परिताप हरे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।9।
दंभ रहित गिरिजाक मधुप जे कला कदम्ब मंजरी पान,
दक्ष यक्ष हरि यम भव अन्तक मन्मथ त्रिपुर असुर अवशान,
महादेव मम कष्ट विनाशक दिवा राति मन भजन करे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।10।
सिर भुजंग फुफकार वेग सं अनल ललाट धधकि रहलइ,
शिव प्रचणड ताण्डव आलोकित धिमि धिमि नाद धमकि रहलइ,
गुंजित मंगल घोष चहुँदिशि मंगल मंगल सदा करे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।11।
पाथरवत् पुनि कोमल सेजे साँप आर मुक्ता माला,
रत्न माँटि मित शत्रु अभेदे दुर्वादल अक्षी-कमला,
प्रजा आर पृथ्वीपति में समभाव राखि मन जपन करे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।12।
ललित ललाट भाल चन्दा मे सदिखन स्थिर चित्त रहय,
सुरसरि तट करजोरि भाव निर्मल मन शिव केँ जाप करय,
सजल नेत्र शिव चरण कमल मे पल पल छिन छिन नमन करे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे ।13।
अति उत्तम स्तोत्रक वर्णन पाठ नित्य स्मरण करय,
शिवगुरू भक्ति मिलय तहि जन केँ नहि विलोम गति लेश रहय,
गिरिजापति पद भक्ति अहर्निश भवबंधन सं मुक्त करे,
करू कल्याण हमर शिव शंकर जयशिव जयशिव हरे हरे ।14।
इति पूजा संध्याकाले दसकंधर पठितक पाठ करे,
से नर गज रथ सुत धन पावे सदा सुखी संतान रहे,
अटल भक्ति सं अचल संपदा आशुतोष धन धान्य भरे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव जयशिव हरे हरे ।15।
अनुवादक: डा0 चन्द्रमणि.

Koyali Ke Kuhu-Kuhu!

प्रकृतिके सुन्दर लीला - बसन्त ऋतुके आगमन आ बाग-बगिया सँ - बारी-झारी सँ - कलम-गाछीसँ - खेत-खरिहानसँ - चर-चाँचरसँ कोयलीके कू-कू कानमें पड़ैछ, आवाज एहेन सुरम्य - एहेन मीठ जे स्वतः मनमें मिश्री घोरैछ। जेम्हर देखू तेम्हर मादकता आ सरसता छलैक रहल अछि एहि सुन्दर सुहावन मौसममें। मिथिला के कण-कण मगन भेल रहैछ। मगन होयबाक बहुत रास कारण छैक। एहि मासके मधुमास सेहो कहल जाइछ - आममें मज्जड़ लागि गेल छैक आ रस टपैक रहल छैक, मौह सन कठोर काठके गाछ सेहो एहि मास फुलायल छैक आ फूलसँ रस एक सुन्दर भावभिनी सुगंधसँ सराबोर टपैक रहल अछि - समूचा वातावरण में जेना कामदेव किछु विशेष छटा पसैर देने होइथ, रति संग विचरण करैत समूचा संसारके अपन विशेष पुष्पवाणसँ बेध के कामित-कल्पित सुधारसमें डूबा देने होइथ। ऊपर सँ होलीके खुमारी - रंग-अबीर आ भांगक मद पसरि रहल अछि। मुनिगामें फूल - लिचीमें मज्जर - नेबो में मज्जर - सुन्दर-सुहावन फूल चारू दिस खिलल - सभ गाछ-वृक्ष नवपल्लवसँ लदब शुरु भऽ गेल अछि। वातावरणमें प्रकृति एहेन सुगंध पसारने आ ताहिपर सँ पछवा हवा के झोंक - ठोड़ धिपल, रक्त-संचार तीव्र, आँखि लड़लड़, प्रेयसी ओजसँ भरल चारुकात देखाय लागलि छथि। सजनीके कोनो वस्तु नीक नहि लागि रहल छन्हि - बस एकटकी सजनाके बाट जोहय लगलीह छथि। लोक के कि कहू - चरा-चुनमुनी-जीव-जन्तु सभ अपन बिपरीतलिंगीके तरफ आकर्षित होइत मानू प्रकृति द्वारा प्रदत्त विशिष्ट प्रजननशक्तिसँ लवरेज केवल किछु क्षण प्रेममें डूबय चाहि रहल अछि। हाय रे बसन्त! बसन्तके पूर्वैयाके शीतलता तऽ आरो मारूख! जनलेवा! बस स्नेहीजन अपन खोंतामें गुप्तवास-सहवास लेल आतूर छथि। कोयली के कुहू-कुहू एहि मस्त वातावरणमें प्राकृतिक संगीतके धुन भरैछ। अपन धुनसँ प्रेमी-प्रेयसीकेँ मानू किछु विशेष दिव्य संदेश प्रदान कय रहल हो। यैह मासमें कोयली सेहो अपन डीम पाड़ैछ। लेकिन फगुवाके धुनकीके इलाज लेल प्रकृति नीमक टूस्सी - मुनिगाके फूल सेवन लेल कहैछ तऽ मिथिलाके निछच्छ गाममें भाँग सेवनके विशेष परंपरा चलैछ। हर तरहें तीव्र रक्त संचारकेँ अपन नियंत्रणमें राखय लेल विवेकी मनुष्य तत्पर रहैछ। एहि मासक दुपहरिया आ अर्द्धरात्रि विशेष रूपसँ ऊफान पर रहैछ - चारू कात जखन सभ किछु शान्त रहैछ ताहि घड़ी प्रेमी-प्रेयसी एक-दोसरके स्मृतिमें डूबल ओ सजल नेत्र सँ एक-दोसरक दिव्यताके दर्शन लेल व्याकुल रहैछ। हवाके रुइख एहेन जे असगरे घूमैत किछु नजैर पर चैढ गेल तँ मदमस्तीमें आँखि भैर जैछ। खेत आ गाछी भ्रमण के विशेष चलन मिथिलाके बसन्तक अलगे शान - भ्रमित घूमैत युवा लेल अलगे ध्यान के परिचायक एहि मासकेँ होलीके रंग आ रगड़ संग रभस मात्र ओरिया सकैत अछि। होलीके आगमन जौँ -जौँ नजदीक भेल जा रहल अछि - बसन्त तौँ-तौँ परवान चढल जा रहल अछि। गीतक बोल फगुआ के रस घोरैछ आ चैतावर सऽ शमन करैछ। एहेन में कोयली जँ अर्द्धरात्रिकाल कुहकय तऽ प्रेयसीकेँ तामस चढब उचिते कहल गेल छैक। तामसो एहेन जे भिनसर होइते ओकर खोता उजड़बा देतीह। हाय रे प्रकृति! हाय रे बसन्त! हार रे रस-मद भरल मधुमास! आ, हाय रे कोयलियाके कुहुकब!

लेकिन चिन्ता नहि करू हे सन्त-ज्ञानीजन! पहिले तऽ होली दिन भीतरका अहंरूपी हिरण्यकशिपुके मारैत आत्मारूपी प्रह्लादके रक्षार्थ प्रभुजी स्वयं नरसिंहरूपमें खंभा फाड़िके प्रकट हेताह आ तदोपरान्त खेलल जायत दानवकेर खून सँ होली आ रिझायल जायत प्रह्लादकेँ - आ फेर सभके अवलम्ब राम स्वयं अवतरित हेताह चैतक नवमी अर्थात्‌ रामनवमी!

स्मरण करब हम सभ - सीताराम चरित अति पावन - मधुर सरस अरु अति मनभावन!

हरिः हरः!

गजल-२६


खूर देलखिन्ह ओ
सोधि लेलखिन्ह ओ

देख मोका नीक सँ
चाभि पेलखिन्ह ओ

माय-बेटा के देखू
फूट केलखिन्ह ओ

नीक-नीक साडी में
फीट भेलखिन्ह ओ

गाम-गाम घूमी क
नाम केलखिन्ह ओ

(सरल  वार्णिक बहर, वर्ण-७)
जगदानन्द झा 'मनु' : गजल संख्या-२४ 

*+* गजल *+*

‎ की भाइ, किछु लिखै छी तs गजल लिखू ,
धुन-ताल कए फुल सँ सजल लिखू ,
प्रेम करै छी बड अहाँ आ शायरी नै ,
प्रेम प्रगाढ़ हेएत पल-पल लिखू ,
खुशी- गम संग सब रंग समाजक .
धोरि एक्के घैला मे ताड़क जल लिखू ,
कल्पना कते दिन टिकतै ,दिल सँ लिखू ,
गामक हवा मे साँस लs गजल लिखू ,
सबहक मोन मे उठै नव तरंग ,
फाग रंग-अबिर लगा अटल लिखू ,
बड भेल प्रेम आ शराबक गजल ,
समाज उत्थान लेल भs बेकल लिखू ,
किछ नव शीर्षक नव शब्द चुनि कs ,
" अमित" नव समाज मे रमल लिखू . . . । ।
अमित मिश्र

{ गजल }

देह मे सटलै जखन देह सिहरि गेलै देह ,
अंग-अंग फड़क= लागलैए लसरि गेलै देह ,
एकाएक बसंतक हमला भेलै मौसम पर ,
नव पात भरल गाछ जेकाँ मजरि गेलै देह
जेना आलसी मनुष्य लेल समय नै ठहरै छै ,
ओहिना कँप-कँपा क= क्षण मे ससरि गेलै देह ,
साँस मे तेजी ,खूनक प्रवाह बढ़ि गेलै पल मे ,
लड़ाइ मे ज्ञानी पुरूष जेकाँ सम्हरि गेलै देह ,
भाइ डर सँ नै खुशी सँ सिहरल देह बुझू ,
शनी कए प्रकोप हटल से उचरि गेलै, देह ,
पहिलुक बेर सिनेह मे एहने सन होइ छै ,
"अमित" वहशी लोक कए त= उजरि गेलै देह . . . । ।
अमित मिश्र

‎[{ होली गीत }]

होली एलै जोगीरा गयबाक मोन होइ यै .
मस्त धुन पर नचबाक मोन होइ यै ,
जाइ छी होली गीतक सीडी किनै लए ,
शहर मे रहि गामक यादि किनै लए ,
हौ भाइ ,घुमि एलौँ पुरा बजार ,
कत्तौ नै भेटल परंपरागत गीतक भंडार ,
नै भेटल "शिव मठ पर लाल धुजा"
नै भेटल "आजु जनकपुर होरी रे रसिया"
खुब बिकै छै द्विअर्थी अश्लील गीत ,
छिनरपन कए बान्ह तोड़ै छै नव गीत .
जीजा-शाली , देवर-भौजी कए बेपर्द गीत ,
लाज लागै यै कहैत , कत्त-कत्त रंग लागाबैए नव गीत ,
होली रातिक खेल बुझू सब पागल भ गेलै ,
माँ-बाप कए सामने छौड़ा दारू-भांग हवश कए प्यासल भ गेलै ,
नहि जी सकै छी होली मे पुरान लोक आब ,
आँखि-कान मुनि लिअ पुरान लोक आब .
हमहूँ जाइ छी कोठी कोन मे नुका सुतै लए ,
अपन कविता कए इज्जत बचबै लए . . . । ।
अमित मिश्र

गजल


करेज घँसै सँ साजक राग निखरै छै।
बिना धुनने तुरक नै ताग निखरै छै।

अहाँ मस्त अपने मे आन धिपल दुख सँ,
जँ लोकक दर्द बाँटब, लाग निखरै छै।

इ दुनिया मेहनतिक गुलाम छै सदिखन,
बहै घाम जखन, सुतल भाग निखरै छै।

हक बढै केर छै सबहक, इ नै छीनू,
बढत सब गाछ, तखने बाग निखरै छै।

कटऽ दियौ "ओम"क मुडी आब दुनिया ले,
जँ गाम बचै झुकै सँ, तँ पाग निखरै छै।
(बहरे-हजज)

गुरुवार, 1 मार्च 2012

चाय के चुस्की मुस्की के संग – अजय ठाकुर (मोहन जी)


विजय जी और रंजना के प्रेम बिवाह किछु माह पहीले भेल अछि ! दुरागमन सेहो संगे भऽ गेल किछु दिन के बाद विजय जिक कनियाँ रंजना कहलखिन, हमरा बिवाह के दु माश भ गेल और अखन तक आहा हमरा कतो घुमाव नहीं ल गेलो हन्!  
विजय जी किछु देर चुप रहला और फेर बजला हे हमरा जावेत धरी माँ और बाबुजी नहीं कहता तावेत तक हम आहा के कतो घुमाव नहीं ल जायब बुझलो ! रंजना के मोन कने उदाश भ गेल फेर दुनो गोटे अपन अपन कॉज में लागी गेला ! विजय जी फेर रंजना के समझा क ओ अपन बाबु जिक पास गेला और कहलखिन जे रंजना के इच्छा भ रहल छै जे कतो घुमे लेल जय के से जओ आहा के आज्ञा होय त हम दुनो गोटे घुमी आबि ! बाबु जी हाँ कही देलखिन !

विजय जी और रंजना यात्रा केरी तयारी शुरू क देला ! दुनो प्राणी माँ बाबुजी के आशीर्वाद लेलाह और घर सऽ निकैल गेला ! सकरी टीसन पर जा क टिकट कटेला ताबैत धरी शहीद एक्सप्रेस सेहो टीसन पर आबि गेल दुनो गोटे गाड़ी पर जाकऽ बैसी गेला ! आब गाड़ी के ड्राईवर बाबु सेहो पुक्की मारला पु....पु..पुपुपुपुपुपू....छु..क.. छुक..छुकछुक  छुक..., गाड़ी आगू बढ़ऽ लागल !

गाड़ी जहान पांच-छः टीसन आगा बरहल ताहि के बाद एकर लेन किलयर नहीं छल ताहि लक् गाड़ी के २-३ घंटा रोकी देलक ! ताबैत में ओमहर सऽ चाय वला गर्म चाय-गर्म चाय कहैत आयल रंजना अपन स्वामी के कहैत छथि एक कॉप चाह पीबी लिय आहा भोर में सेहो नहीं पिलो आब विजय जी दु कॉप चाह के पाई देलखिन और दुनो गोटे पिबऽ लगला ! रंजना दु घुट पीब क खिड़की स बाहर फेक देलक, विजय जी पुछलखिन कि भेल ? रंजना कहलखिन चाह में स्वाद नहीं लगाल !
विजय जी कहलखिन ठीक छै गाड़ी लेट या चलू उतरी क कोनो दोकान पर चाह पीबी लई छी, दरभँगा में ओनाहू जान-पहचान के बहुत दोकानदार अछि ! विजय जी और रंजना दोनों गोटे गाड़ी स उतरी क दोकान दिश बढला ! एक दोकान पर जा क दु टा चाह और दु टा सिंघारा के आर्डर देलखिन ! थोरबे देर में चाह और सिंघारा लक् आबि ग्लेन दुनो गोटे सिंघारा पावऽ लगला और चाह सऽ ठोड़ पकावऽ लगला ! रंजना चाह पीबी कने मुस्किया देलखिन आब दुनो गोटे अपना आप में टकटकी लगा क देखऽ लगला और बिशैर गेलखिन कि हमरा गाड़ी पकरबाक अछि!

लगभग आधा घंटा के बाद दोकानदार अपन कप लै आयल त देख क कह: लागल अऊ जी महराज लिय चाय के चुस्की मुस्की के संग, मगर हमर कप त छोरी दिय औरो ग्राहक चाय के लेल ठाढ या ! ई बात सुनी क रंजना और विजय के मोन लज्जा गेलैन और ओत् स परेलो बाट नहीं सुझलैन ! और ओ जे टीसन पर अयला त देखैत छथि जे ओ गाड़ी फुजी गेल छल आब दुनो गोटे अपना घर आबि गेला ! माँ और बाबुजी पुछलखिन कि आहा दुनो गेलिये नहीं, विजय जी बजला बाबुजी गाड़ी हमर छुइट गेल त हम दुनो गोटे सोचलो कि बाद में कहियो चली जायब ! बाबुजी बजला अत्ति उत्तम जे विचार हुये से करू !

रचनाकार :- अजय ठाकुर (मोहन जी)