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शुक्रवार, 21 जून 2013

गजल

प्रस्तुत अछि, दीप नारायण'विद्यार्थी' जीकँ गजल


आब कथी राखल अछि पिआर मे
लोक फुसिए बौआइए बोखार मे

हमरा तँ खरबो मे नहि भेटल
आहाँक मुदा भेटगेल हजार मे

'फुसियांहू साय लेल निन्न कामय
कतेक मुर्ख छथि लोक संसार मे

साँच कहब तँ ओल जका लागत
तैं किया किछु कहब बेकार मे

एहि दुनियाँ सँ कुन आश 'दीपक'
चलु चलै छी माय के दरबार मे
 
वर्ण~~१३
दीप नारायण'विद्यार्थी'
 

असली स्वर्ग




विज्ञापन, मिडिया टीभी चेनलसँ दूर मिथिलाक पावन धरतीक एकटा गामक पोखरि भिरपर  कुटीमे रहैत बाबा । गामक नजरिमे ओ पागल मुदा हुनक नजरिमे ई दुनियाँ पागल। एक दिन हुनकर दर्शनक सौभाग्य भेटल । समान्य देखाए बला ओहि बाबाक भीतर हमरा आलोकिक शक्तिक अनुभूति भेल । अप्पन मोनक जिज्ञासा शांत करैक लेल हम हुनकासँ एकटा प्रश्न पुछलहुँ, “बाबा स्वर्ग की छैक ।”
बाबा मुस्काइत, “ई तोहर जिज्ञासा छऽ की हमर परीक्षा ?”
“क्षमा करब बाबा, ई अहाँक परीक्षा नहि अछि । जखन तखन सभक मुँहसँ सुनैत छी फल्लाँ काज करब तँ स्वर्ग जाएब फल्लाँ काज करब तँ नर्क जाएब मुदा हम आइ धरि नहि बुझि पेलहुँ जे स्वर्ग की अछि । हमरा विश्वास अछि जे अपनेक उत्तरसँ हमर मोनक जिज्ञासा अवश्य शांत होएत ।”
बाबा, “स्वर्ग नामक कोनो जगह वा चीज नहि छैक, (किछु काल शांत रहला बाद) ई मात्र अहाँक मोनक सुखद अनुभूति अछि । जाहिखन अहाँ दुख आ सुखकेँ अबस्थासँ उपर भऽ जाइ छी, अर्थात दुखसँ दुखी नहि आ सुखसँ सुखी नहि । जाहिखन अहाँ समुच्चा चर अचर अस्तित्वसँ प्रेम करए लगै छी, काम, क्रोध, लोभ, अहंकार, घृणा आदि बिकारसँ अपनाकेँ दूर रखैमे समर्थ भए जाइ छी । डर अहाँक भीतरसँ खत्म भऽ जाइए । सदिखन आनन्दक अबस्थामे रहैत छी..... इहे स्वर्ग अछि ।”
“कि ई सभ सम्भब छैक ।”
“सम्भब तँ छैक मुदा बड़ कठीन । सभ बूते ई नहि भए सकै छैक । एतेक कठीन छै जे लोककेँ असम्भब जकाँ बुझाइत छै । कियो एहिपर विश्वास करै लेल तैयार नहि अछि आ एकरा जीवनसँ फराक मुइला बादक क्रिया बता देल गेल छैक ।” 

मंगलवार, 18 जून 2013

कुम्भ




दिनानाथ आ हुनक कनियाँक गप्प, “सुनै छीयैक गामक बहुत रास लोग कइल्ह कुम्भ असनान लेल जा रहल छैक ।“
“हुँ ।“
“चलू ने अप्पनो सभ एहि बेर कुम्भ भए आबी ।“
“नहि, हम तँ नहि जाएब अहाँकेँ मोन होइए तँ चलि जाउ हम व्यबस्था कए दए छी ।“
“अहाँ किएक नहि जाएब ।“
“हमर तँ कुम्भ साक्षात हमर घरेमे छथि, हिनका छोरि कए हम कोना जा सकैत छी ।“
दिनानाथजी अप्पन ९५-१०० बर्खक माए बाबूक तन-मनसँ सेवामे लागल छथि 

सोमवार, 17 जून 2013

खापरि धिपा कए




“यै छोटकी कनियाँ, सुनै छीयै ललिताक वर एलखीन्हेँ जाउ हुनकासँ कनीक नीक मुँहें हँसि बाजि लियौन, खुश भए जेता तँ टिकुली सेनुर लेल किछु दएओ कए जेता ।“
“एहन हँसै बजै बला आ खुश होएबला मरदाबाकेँ हम खापरि धिपा कए चेन नहि फोरि देबैन, अप्पन जमएक बड़ चिंता छनि तँ अपने जा कए किएक नहि खुश कऽ लै छथि ।”

पिआस




“की यौ ललनजी एना टुकुर टुकुर की तकै छी ?”
अप्पन गामक मुँहलागल भाउजक मुँहसँ ई सुनि ललन एकदमसँ सकपका गेला, जिनका कि बहुत कालसँ घुरि रहल छल ।
“नहि किछु नहि ।“
“धूर जाऊ ! इनार लग पिआसल जाइ छै की पिआसल लग इनार । अहाँ एहन पहिल मरद  छी जकरा लग इनार चलि कए एलैए आ एना टुकुर टुकुर तकने कोनो पिआस मिझाइ छैक की ? पिआस मिझाबैक लेल इनारमे कूदए परैक छै ।“

बुधवार, 12 जून 2013

मीडिया


घर पहुँचिते लागल जे स्वर्गमे पहुँचि गेलौं ।सजल घर-दुआरि एना लागैत छल जे दिबाली छै ।कनियाँकेँ खुश देख लागल जे जरूर किओ नैहरसँ आएल हेतै ।हमरा देख ओ हँसैत बाजलनि "हे एकटा बात बुझलियै ।आइ तँ कमाल भऽ गेलै ।आइ आबि गेलै ।"
हमर शक मजगूत भऽ रहल छल ।बूझि गेलौ जे आब जेबी कटबे करत ।मन्हुआएल कहलियै " की आबि गेलै ?फरिछा कऽ बाजू ने ।"
ओ खुशीक सीमा पार करैत कहलनि "आइ छबो बलत्कारीक फाँसीक निर्णय आबि गेलै ।"
आब तँ हमहूँ खुश छलौं ।आखिर केतकीकेँ न्याय भेँटि गेलै ।"यै ई चमत्कार कोना भेलै ?" हमर सबालपर ओ उत्तर देलनि "ई मीडिया बला तते ने छापलकै जे सरकारकेँ मजबूर हुअऽ पड़लै ।सत्तमे अपन देशक मीडिया बड मजगूत अछि ।"
आइ हमरा मीडिया लेल सम्मान सए गुणा बढ़ि गेल ।

अमित मिश्र

बिजनेस


-बड आशा लऽ कऽ आएल छी अहाँ लऽग सम्पादक जी ।
-आशा लऽ कऽ आबू वा नै आबू ।हमरासँ अहाँक काज नै हएत ।
-एना जुनि बाजू सर ।ई तँ अहाँक धर्म अछि ।एकटा लड़कीक बलत्कार कएल गेलै आ अहाँ ओकर रिपोर्ट छापैसँ मना कऽ रहल छी ।मीडियाक ई काज नै छै ।
- हमर क्षेत्रक कोन काज अछि आ कोन नै, से हमरा नै सिखाउ ।बलत्कारी राजा भैया छथि ।हुनकर बिरोधमे छापि कऽ हमरा नोकसान नै करबेबाक अछि ।
- एहिमे नोकसानक कोन काज छै ?अहाँकेँ खबर चाही, हम दऽ रहल छी ।लिअ ।
- यौ ।हम खैरातक दोकान नै खोलने छी ।राजा भैया मारिते विज्ञापन दै छथि ।टाका दै छथि ।हुनकर बिरोधमे किए छापब ।अहाँकेँ बुझबाक चाही जे अखबारो एकटा बिजनेसे अछि ।
-हँ ।हमहीं बिसरि गेल छलौं ।बिजनेसमे लोक घटा तँ नहिये सहत ।हुअऽ दियौ आरो बलत्कार ।

अमित मिश्र

रविवार, 9 जून 2013

हारि




साँझु पहर फोनक घंटी बाजल । “ट्रिन न न ट्रिन न न न ट्रिन न न न न... “  
बिना अप्पन नाम बतोने रिसीवर उठेलहुँ । कोनो जवाब नहि । दोसर कातसँ शांत ।
मुश्किलसँ पन्द्रह मिनट बाद फेर फोनक घंटी बाजल । दोसर दिससँ फेरो कोनो आवाज नहि । शाइद हमर स्वर पशंद नहि हेतै अथवा कएकरो आओरसँ गप्प करैक हेतै ।
रातिक एगारह बजे फेर फोन आएल, फोन उठेलहुँ, “हेलो ।“
कनिक कालक चूप्पीकेँ बाद उम्हरसँ, “हम मालकी बजै छी, बहुत दिनक बाद फोन कए रहल छी, ठीक तँ छी ने ? साँझेसँ ट्राइ कए रहल छलहुँ मुदा हिम्मत नहि भए रहल छल । ई कहै लेल एतेक राति कए फोन केलहुँ जे हमर ब्याह भए गेल ।“
“हमरा बुझल अछि ।“
“कोना ।“
“दुबईसँ एला बाद हम अहाँक गाम गेल रही ओहिठाम कएकरोसँ बुझलहुँ जे दू महिना पाहिले अहाँक ब्याह दुरागमन दुनू संगे भऽ गेल मुदा ई की महर इंतजार नहि कए पएलहुँ ।“
“हम बेबस रही..... अहाँक बच्चाकेँ पाँच महिनासँ अपना पेटमे रखने-रखने, आगू दुनियाँक नजरिसँ बचेनाइ असम्भब छल ।“
“हम कहि कए तँ गेल रहि जे छह महिनासँ पहिले पहिले आबि जाएब कि हमरापर बिश्वास नहि रहल ।“
“एहन गप्प नहि छै, हमर तन एहिठाम अछि मुदा मोन एखनो अहीँ लग अछि परञ्च ई समाज, गाम आ परिवारक सामने हम हारि गेलहुँ ।“
“की अहाँक पतिकेँ ई गप्प सभ बुझल छनि ।“
“ हाँ ! अहाँक दऽ नहि मुदा बच्चा दऽ बुझल छनि । ओ देवतुल्य लोक छथि, होइ बला हमर बच्चाकेँ सेहो अप्पन नाम दै लेल तैयार छथि ... (कनिकाल दुनू कातसँ चुप्पीकेँ बाद)  हम एखन एहि द्वारे फोन कएलहुँ जे हमरा आब ताकैक वा फोन करैक चेष्टा नहि करब ओहि सभकेँ बितल गप्प जानि बिसरि जाएब...हुँऽऽ हुँऽऽऽ !” कानेक स्वर संगे रिसीवर राखैक खटखटाहट, फोन बंद ।  

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जगदानन्द झा 'मनु'
मो० 09212461006