की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। sadhnajnjha@gmail.com पर e-mail करी Or call to Manish Karn Mo. 91 95600 73336

गुरुवार, 28 मार्च 2013

मिथिला राज्य लेल ४ दिना अनशन






           मिथिला राज्य लेल ४ दिना अनशन: - युवा पीढी द्वारा (पृष्ठभूमि आ कार्यक्रम आयोजन: विस्तृत समीक्षा). अनशनकारी कवि एकान्त द्वारा ४ दिनक अनशनक फैसलाक संग मिथिला राज्यक माँग प्रति युवामें चेतना जागृतिक एक महान अवसर भेटल से सोचि जनबरी ९, २०१३ केर 'कन्नारोहट कार्यक्रम'में कार्यक्रमके भव्यतापूर्व आयोजन करबाक निर्णय लेल गेल छल। कवि एकान्तक हृदयमें अनशन प्रति जिम्मेवारी आ कार्यपथ-निर्माण संग योजनाक सुन्दर निष्कर्ष निम्नरूपे कैल गेल छल: "आन्दोलन मे ऐबाक उद्देश्य इहो रहय " मिथिला राज्य लेल संघर्ष आ संघर्ष मे लागल मैथिल आ संगठन के एका "। क्रमशः एका बनय आ से होईत प्रतीत भ रहल अईछ। एहि कार्यक्रम मे जे रहथि मैथिल रहथि। अप्पन पार्टी आ बिचारधारा स उप्पर उठी के एकटा मैथिल मात्र आर किछो नहि। आरंभिक कन्नारोहट आ अप्पन अप्पन क्वाथ के बोकर्लाक उपरांत शुद्ध भय सब मैथिल सभक बिचार रहय जे एहि आन्दोलन के एक भ'य उद्देश्य लेल लाड़ल जाई। प्रवीन भाई के बैजू बाबू सँ सेहो गप्प भेलैन, ओहो आशीर्वाद देलाह आ हुनक समर्थन सेहो भेटल (प्रवीन भाई के वार्तानुरुप आ उपश्थित अमरेन्द्र भाई के कथनानुसार )। ज्ञात हो की एहि आन्दोलन के एकटा मैथिल बनि लड़बाक निर्णय के सर्प्रथम समर्थन पूज्य धनाकर बाबू आ आदरनीय रत्नेश्वर बाबू केने रहथि आ संस्थाक रूप मे AMP के पूर्णिया ईकाई केने अछि। आन्दोलन मे अनशन के एहि अध्याय के संचालन लेल प्रवीन भाई आ दिवाकर भाई मे नीक बहस आ सार्थक बर्तालाप के परिणाम सुखद रहल जे सब अप्पन अप्पन बेदना के मुखर भ' क' रखलाह आ प्रस्ताब रहल जे: * मिथिला राज्य के निर्माण आ मिथिला मैथिली मैथिल के बिकाश के आधारभूत कारक मानि आन्दोलन के आगाँ बढेबाक आवश्यकता अईछ। * समग्र मिथिला राज्य के माँग के छोड़ी, भारत मे मिथिला राज्य के माँग के लक्ष्य कयल जाई। * आन्दोलन international border के आदर करैत नेपाल स्थित अप्पन मैथिल स्वजन के लेल संबेदना के प्रति सदैब कटिबद्ध रहय, जेना नेपाल स्थित मैथिल छथि। अस्मिताक संघर्ष दुनू दिस चलि रहल अईछ। * आन्दोलन ब्यक्ति स उप्पर उठी कय हो उद्देश्य लेल हो, मैथिल के संगठित आ एकाकार करबाक माद्दा मात्र मुद्दा मे अछि आ ताहि हेतु मुद्दा भेल नायक। समस्त आन्दोलन के स्वाभाबिक प्रतिनिधित्व मिथिला राज्य निर्माण के उद्देश्य हो। * कहब बहुत आवश्यक नहि जे आन्दोलन मे समस्त मैथिल संगठन के समर्थन देबाक लेल आग्रह करबाक बिचार भेल। * उद्देश्य के साधबाक लेल Joint Committee बनेबाक प्रस्ताब भेल। * अनशन के उपरान्त मिथिला राज्य निर्माण लेल एकटा joint memorendum देबाक बिचार भेल, से हो कोना ई बिचार के बिषय रहल। * प्रवीन भाई आन्दोलन के एहि गुटनिरपेक्ष स्वरुप के अधिक स अधिक मैथिल तक पहुँचेबाक सार्थकता पर जोर देलाह। हम एतबे कहब मिथिला आ मैथिली सब मैथिलक के छी, चाहे ओ कतुको होथि, बजैत कोनो भाषा होथि मुदा ह्रदये मैथिल होथि। मिथिला राज्य के निर्माण के एहि महायज्ञ मे अप्पन भूमिका निर्धारण पर बिचार करू, इतिहास के बनबा के प्रक्रिया मे अप्पन योगदान पर बिचार करू। समय आबी गेल जे "मूक दर्शक के भुमिका के तलांजलि दय इतिहास निर्माण मे आबी, अप्पन मैथिली बचाबी, अप्पन मिथिला बनाबी" जय मिथिला !! जय मैथिली !! जय मैथिल !!" (कवि एकान्तक विचार, जनवरी १०, २०१३ फेसबुकपर)। -------------- दिल्ली सऽ वापसी करबाक क्रममें अपन विचार जे सभक समक्ष प्रेषित केने रही जनवरी ११, २०१३ केँ: "आउ दिल्ली यात्रा के समेटी। काल्हि प्रस्थान करबाक अछि, से सभक ध्यानाकर्षण महत्त्वपूर्ण विन्दु तरफ चाहब, कृपया ध्यान दी आ सहयोग हेतु वचन दी। १. कवि एकान्त द्वारा मिथिला राज्यके माँग लेल ४ दिनक अनशन कार्यक्रम। प्रस्तावित तारीख मार्च २२-२५, २०१३। स्थान: जन्तर-मन्तर, दिल्ली। संयोजन भार: दिवाकर बाबु। २. मैथिल युवा द्वारा मिथिला राज्य लेल वृहत धरना-प्रदर्शन कार्यक्रम। स्थान, तिथि उपरोक्त कार्यक्रम के समापन दिन घोषणा कैल जायत। संयोजन भार: सागर मिश्र। उपरोक्त कार्यक्रम १ लेल कवि एकान्तजी अपन जन-सम्पर्क दिल्ली लगायत समस्त मिथिलामें कय रहल छथि। जतेक संघ-संस्था आ सहयोगी मैथिल व्यक्तित्व सभ छथि तिनका सभसँ दिल्लीमें सभ जगह घूमि-घूमि सहयोग सदेह उपस्थिति लेल प्रथम द्वितीय सदाचार-विचार अनुरूप जे स्वेच्छा हो ताहि तरहें याचना कैल जा रहल छैक। सभकेँ अपन माटि-पानि-इतिहास आ पहचान लेल राज्य निर्माण जरुरी कहि सहयोग हेतु अग्रसर होयबाक निवेदन कैल जा रहल छैक। ई पहिल बेर हिम्मत देखौनिहार मिथिलाक युवा वर्ग सँ मैथिलीसेवी कवि थिकाह जिनका प्रति अपार समर्थन बनेबाक जिम्मा हमहुँ लेलहुँ, स्वेच्छा सँ। हम ई नहि देखय लगलहुँ जे एहिमें के-के छथि आ किनका-किनका सँ हमरा पटरी बैसैत अछि आ कि हमर सिद्धान्तके माननिहार छथि। हम केवल यैह देखलहुँ जे हम कि कय सकैत छी, आ कि करबाक अछि, कोना करब। आर ताहि अनुरूप आन्दोलनक प्रासंगिकता ऊपर समस्त मिथिला समाजमें विभिन्न मिडिया द्वारा एहि बात के प्रसार जे उपरोक्त कार्यक्रम जे मिथिलाक अस्मिता जोगेबाक लेल कैल जा रहल अछि ताहिमें सभक शुभकामना आ वाँछित सहयोग देल जाय। अही क्रममें जन-जन तक बात पहुँचय जे आइ धरि मिथिला लेल कि-कि भेल, कतेक सफलता-असफलता, आदि पर उल्लेखणीय चर्चा कराओल जायत आ बेसी सँ बेसी लोक के जोडल जायत। जोडय लेल किनको ५०० टाका के नोट पठाय वा गर्दैनमें गमछी बान्हि बलजोरी राजनीतिक रैला जेकाँ नहि आनल जायत, बल्कि समस्त मिथिला सँ जतेक कलाकार-रंगकर्मी-पेशाकर्मी-जातिय संगठनकर्मी आदि छथि तिनका सभकेँ आह्वान कैल जायत जे एक जोरदार प्रदर्शन लेल दिल्ली आबी आ भारत सरकारकेँ मजबूर करी जे मिथिला राज्य निर्माण लेल सोचैथ आ शीघ्रातिशीघ्र सम्बोधन करैथ। खाली भाषणमें बिहार राज्य द्वारा मिथिलाक विकासक बात बहुत भेल, मुदा असलियत एतबी जे दलाल-ठीकेदार-हाकिम-होशियार लेल छूद्र-लूट-खसोट के ललीपप आ आम जनतामें जातिवादिताके झगडाके अलावा मिथिलाके दोसर किछु नहि देल गेल एखन धरि। सुशासनके सरकार सेहो बस गपहि टा देलक, जमिनी सुधार बस खोखला प्रमाणित भेल। एकर सभक लेखा-जोखा कैल जाय आ केन्द्रके विशेष पर्यवेक्छक मिथिलाक जमिनी यात्रा करय आ उपेक्छा के हर संभव वैकल्पिक समाधान ताकय। मिथिलासँ आयल सांसद-विधायक सभकेँ ई सोचय पडत जे आखिर विकासक कोन गति मिथिला लेल चलल, राज्य वा केन्द्र सरकार के द्वारा। विकास लेल सेहो राज्यक निर्माण वांछणीय अछि। पहिल कार्यक्रमके सफलतापूर्वक पूरा भेला उपरान्त बस दोसर महत्त्वपूर्ण कदम यैह जे मैथिल युवा द्वारा धरना आ प्रदर्शन के संपूर्ण भार लैत आन्दोलन के ताबत निरन्तरता देल जाय जाबत मिथिला राज्य ससम्मानपूर्वक बनि नहि जायत। हरि: हर:!" -----------
 यैह आन्दोलनक पृष्ठभूमिमें छल निम्न सोच: "मिथिलाक माँग केकरा लेल अवाञ्छित? हालहि २८ दिसम्बर, २०१२ ई. विराटनगर में आयोजित विद्यापति स्मृति पर्व समारोह २०६९ में आयल छलाह विशिष्ट अतिथि भू.पू. अररिया साँसद मा. सुखदेव पासवानजी, ओ दिल्ली रहैथ वा कतहु, लेकिन हर वर्ष एहि समारोह में अपन गरिमामय उपस्थिति सँ आम जनमानस के ओ दाकियानूस धारणा के झूठलाबैत छथि जे मैथिली आ मिथिला बस किछु उच्च जातिके माँग मात्र थीक। हमरा लिखैत हर्ष भऽ रहल अछि जे सम्माननीय अतिथि ओहि मंच सँ घोषणा कयलाह - बहुत जोर दैत बजलाह जे हम आइ यैह मंच सऽ घोषणा करैत छी जे बिहारके १८ जिला मिलाय मिथिला राज्य बनय। ओ किछु जिला के नाम तक लेलाह आ ताहिमें शामिल छल कटिहार, किशनगंज, अररिया, पुर्णिया, मधेपुरा, सहरसा, खगडिया, समस्तीपुर.... आदि। छद्म बुद्धिके पत्रकार आ बिना पेंदी के लोटा समान कतेको चुटपुट नेता एहि आह्लाद के शायद नहि बुझि सकत, लेकिन हमरा गर्व अछि सुखदेव पासवान जी पर, गर्व अछि मेहताजी (फारबिसगंज पूर्व विधायक) पर आ गर्व अछि हर ओ गूढ रहस्य बुझनिहार बुजुर्ग अनुभवी पत्रकार आ नेतापर जे मिथिलाक सम्मान लेल हर समय तैयार रहैत छथि आ हर सतह पर आवाज उठबैत छथि। तहिना नेपाल सरकार के उप-प्रधान तथा गृहमंत्री आ उपरोक्त समारोहके प्रमुख अतिथि मिथिलाक गरिमाके प्राचिनतम् कहैत संवैधानिक सम्मान हेतु वचन देलाह आ बजलाह जे बिना मिथिलाक सम्मान देने नेपाल देशके सम्मान नहि भेटतैक। ओ खूलिके बजलाह जे मधेस एक बनेनाय बहुत कारण सँ संभव नहि छैक तऽ बारा सऽ पूब झापा धरि एक राज्य बनाउ जेकर नाम मिथिला मधेस राखू, हमरा एतराज नहि अछि। ई दू घोषणा उपरोक्त मंच सँ साधारण नहि छलैक। लोक आइ-काल्हि १७ नव नाम के पाछू जमानी-दीवानी गबैत अछि, मुदा गहिराई में जाय सोचैत नहि अछि जे केवल नामकरण कैला सऽ सीमाँचल-धर्मांचल-बूरिराजान्चल-पूर्वान्चल कयला सऽ मिथिलाक गरिमा ऊपर ग्रहण नहि लगा सकैत अछि। मिथिलाक जे महासागर भूगोल, इतिहास, भाषा, साहित्य, संस्कृति, पहचान आ हरेक सन्दर्भ जे एक राज्य हेतु गणतंत्रमें पूरा करैत अछि से स्वत: प्रमाण बनि पहाड समान ठाड्ह होइछ आ भूकयवाला अदूरदर्शी लोक के सीना तानिके कहैछ जे मिथिला के सम्मान बिना तोहर कोनो मान नहि। तदापि मिथिला अवाञ्छित अछि आ एहि सत्य सँ हम सभ पाछू नहि हँटि सकैत छी। प्रश्न उठल जे अवाञ्छित अछि... तऽ केकरा लेल? आउ मंथन करी! १. जनसाधारण जनमानस: जे आइ धरि बोनि - मजदूरी करैत रोजी कमेलक, ओकरा लेल धैन सन! ओकरा तऽ लालटेन धरा दियौक आ ईशारा कय दियौक... बुझि गेलहक न... यैह छाप थिकैक। केओ दोसर दिस सऽ आयत आ गाँधीजी छाप मैन्जनके हाथमें दैत कहत जे बस एहि बेर प्रभाकर बाबु के पार लगा देबैन, छह महीना के जोगार बखारी सऽ उठा लेब। मैन्जन तैयार तऽ सभ तैयार। ओकरा लग राज्य के कि माने छैक आ कि पहचान के महत्त्व ताहि सभ सऽ सरोकार कि? तखन प्रयासो किछु नहि भेलैक अछि केकरो द्वारा जे राज्य किऐक आ तेकर सार्थक प्रभाव कोना से मानय पडत। १३३-१३४ बेर यात्रा प्रवीण केलक लेकिन ध्यान सभ दिन ओहि बकथोंथी करयवाला टा पर रहलैक। आबो यदि नजैर खुलल छैक तऽ आगू जाय किछु करय, बस! बुझबय ओहि मिथिलाक गणकेँ जे विदेह राजा जे सम्पन्नता, ऐश्वर्य, रिद्धि आ सिद्धिके संग समस्त मिथिला भूमिके शुद्ध-शिक्त रखलाह जे केरो के पात पर देवता के इहा-गच्छ - इहि-अतिष्ठ कहलापर दौडल आबय पडैत छन्हि से फेरो होयत आ अहीं सभक प्रत्यक्छ सहभागिता सँ पूर्ण समावेशी आ प्रदेश-विकास सरकार बनत जे बस मिथिले लेल सोचत। आइ धरि जे ६० वरख अहिना बहलाबैत-फुसियाबैत बिता देलक स्वतंत्र भारतमें से मिथिला बनेनहिये कल्याणक मार्ग प्रशस्त होयत। जे शिक्छा हिन्दी आ अंग्रेजीमें देबाक चलते सभक धियापुता पढाइ करबा सऽ वञ्चित रहि जाइत अछि से मातृभाषा मैथिलीमें पढेलापर सभ आराम सऽ साक्छर बनत। मजदूरी करबाक लेल दिल्ली-मुंबई नहि जाय अपन राज्यमें रोजगार भेटत। अपन खेत के पटाबय लेल उधारके दमकल नहि अलग-अलग नदी सँ चिरल अपनहि नहर होयत। पानिक कमी थोरेक न अछि, बस बेईमान व्यवस्थापन आ जाहि नामपर बिहारी नेता लूट-खसोट मचबैत अछि तेकरा नियंत्रण करबा सऽ काज होयत। आ मनमें शंका जे ब्राह्मण बडका जातिक लोक सभ ऊपर बैसि लूटत तेकर प्रतिकार बहुल्यजन कोना करैत छैक से आब ककरो सऽ छूपल नहि अछि। अत: अपन राज्य अपनहि अधिकारवाली सूत्रपर सभके जुडैत काज करबा लेल मिथिला राज्य निर्माण करू। २. मैथिली बिसरल लोक: अफसोस जे मैथिली ऊपर ततेक रास डांग मारल गेलैक, अपनो आ सहजहि बहरियो द्वारा जे रोजीके भाषा पूर्णरूपेण मैथिली नहि बनि सकल आ स्वत: लोक मैथिली बिसरय लागल। आब जे मैथिली बिसरि गेलाह तिनका लेल मिथिला राज्य के प्रासंगिकता पुन: एक उच्च बुझनुक तवका मात्र लेल बाँचल, बाकी सभ जहिना-तहिनामें खुश छथि। कोनो आत्मसम्मानके भूख नहि, जखन मैथिली बिसरा गेल, दोसर भाषा अपना लेलहुँ तऽ आब मिथिला हो, बज्जिकाँचल हो, अंग प्रदेश हो, सीमांचल हो, कोसी प्रदेश हो, झारखंड हो, दियारा प्रदेश हो या जे भी हो - सभ सऽ उत्तम बिहारहि में रहब। खूब जाति-जाति भोकरब आ कहियो लालटेन जरायब तऽ कहियो तीरे मारब, कमल तऽ फूलाइ सऽ रहल आ हाथ तऽ कहिया नऽ कटि गेल जे मिल बन्द भेने पार। अहू दिस ध्यान कि देबय पडतैक जे मैथिली भाषा हो या मैथिली के भाषिका, सभके मिथिलाक पूर्ण भाषा मानि बस ऐतिहासिक पहचान प्रति सम्मान लेल जोडय के काज करैत मिथिला निर्माण लेल एकजूट करय पडतैक। संगठन एक बेर तऽ नेताजीके डायरीमें बनैत छैक लेकिन पुन: संगठनात्मक कार्य कि करी, प्रगति कि भेल, कतेक दिन प्रखंड पर धरना भेल, कतेक गरीब के राशन उपलब्ध करबाओल गेल, कतेक विकासक काजके लेखा-जोखा लेल गेल.... सभ नदारद! आ जे स्थापित राष्ट्रीय पार्टी सभ छैक तेकरा तऽ कोन योजना अन्तर्गत कतेक पाइ निर्गत भेल आ लूटय लेल के सभ छें ताहि सऽ फूर्सते नहि, भाँडमें गेल मिथिला या बिहार या भारत या पहचान या आत्मसम्मान! ३. बिहार सरकार के कर्मचारी: मलफाइ उडबय लेल मोट तनख्वाह भेटिते यऽ आ हमरा कोन लेना-देना है ई आन्दोलन-फान्दोलन से! होत तब अच्छा है, ना होत तबो अच्छे है। एहि वर्गके जोडबाक लेल आर्थिक भार दैत आन्दोलन करय के आवश्यकता, जाबत ई वर्ग चाप महसूस नहि करतैक तऽ आन्दोलन नहि सफल होयत आ सभ दिन खाली आली-हौसे चलैत रहत। ओना कोनो कार्य लेल बुद्धिजीवी प्रकोष्ठके निर्देशन जरुरी! ४. कलेजिया विद्यार्थी: 'यार! हमरे सेन्टर पर तऽ खूब चोरी हुवा, तोरा सेन्टरपर केना हुवा?' यैह अर-दर बहस चलैत छैक कारण नागेन्दर बाबु के समय सऽ जे रोग लगायल गेल चोरी सेन्टर के तेकर दुष्परिणाम आइ धरि भोगि रहल अछि विद्यार्थी वर्ग। आदर्शता गायब छैक। धोइधफूल्ला मास्टर सब पढेतैक कि कपार बस गप लडबैत छैक, नोट लिखबैत छेक, खूब घोंकबैत छैक, पास करबैत छैक। ओ विद्यार्थी भला कि बुझय गेलैक आत्मसम्मान-संस्कृति-पहचान? तऽ झंडा धराय कार्यकर्ता एकरहि सभके बनाबय पडतैक। स्वत: धीरे-धीरे जानकारी बढैत जेतैक। काजो प्रबलताके संग आगू बढतैक। ५. मैथिलानी: 'चुल्हा फूकय सऽ फुर्सत भेटय बौआ तऽ अहाँके आन्दोलनमें आबी?....' 'धू जाउ! हुनका एहि सभ सऽ घृणा छन्हि।......' 'अहाँ सभ हमरा सभके पूछबो करैत छी?....' ईत्यादि! बस बाजिके खानापुर्ति! बाकी किछु नहि। केओ लाजे परेती तऽ केओ कुनु बहन्ने! संगठन विशुद्ध हिनकहि सभके हो आ किछु काज लेल संपूर्ण जिम्मेवारी हिनकहि सभके देल जाय तऽ सुधारक गुंजाईश छैक। बाकी हम अनुभवहीन छी एहि मामले! अपने घरवाली नहि टेरती तऽ दोसर के के पूछैत अछि। ;) एहिमें बहुत रास विन्दुपर सोचब हमरा लेल समयाभावमें नहि भऽ पायल, यदि संभव हो तऽ किछु महत्त्वपूर्ण विन्दु जरुर जोडी! हरि: हर:!" तदोपरान्त जेना सामान्यतया मैथिल द्वारा घोषित हरेक कार्यक्रममें होइत छैक जे गूट-निरपेक्ष मानितो खूब गूटबाजी आ वैमनस्यता पसारबाक नांगट खेल, किछु तहिना सकारात्मक सोच संग नियोजित एहि कार्यक्रममें भेलैक आ संवादविहीनताक कारण, एक-दोसराक पीठ पाछू कूचेष्टापूर्ण निन्दाक खेल सँ सशक्त आन्दोलनके जगह निरीह आ कामचलाउ आन्दोलन सेहो कठोर प्रतिबद्धता आ सात्त्विकताक संग २२-२५ मार्च, २०१३ केर ४ दिना अनशन अपार सफलतापूर्वक इतिहास रचैत पूरा भेल। मिथिला निर्माण में एहि आन्दोलनक भूमिका युवावर्गमें मिथिला-राज्यक माँग प्रति सचेतना जाग्रत केलक। उतार-चढाव सेहो भेल कारण हमर बात सऽ केकरो टीस आ केकरो बात-व्यवहार सऽ हमरा टीस उठब मैथिलक पुरान पहचान थीक। लेकिन जे मूल उद्देश्य छलैक से पूरा भेलैक। एक कवि सऽ अनशनकारी तीन मिथिलाक धरतीपुत्र बनि गेलाह - नमन कौशल कुमार व मनोज झा केँ जे स्वस्फुर्त आ बिना केकरो कोनो उकसाहटक एहि पवित्र आन्दोलनकेँ चारि चाँद लगा देलाह। कवि एकान्तकेँ मना केला के बावजूदो अनशनक प्रारूपपर असगर ठाड्ह राखब आ बहुत अन्तिम क्षणमें ई स्पष्ट करब जे समन्वय समिति या कार्यक्रम आयोजन हेतु एक संयुक्त कार्यदल नहि बनल, कोष निर्माण नहि भेल, के सब औता तय नहि भेल, ज्ञापन पत्र कोना बनत, कि बनत... किछु स्पष्ट नहि भेल... मिडिया सहयोग, भारत सरकारसँ वार्ता करबाक लेल प्रतिनिधि मंडल.... सभ बात लेल कोनो पूर्व योजना नहि तैयार भेल.... एतेक तक कि मंच केना बनत, साउण्ड सिस्टम, उपस्थिति पुस्तिका.... कोनो पूर्वाधार के किछुओ इन्तजाम नहि भेल... ई समस्त बात मानू जे अपने आप में कतेक भयंकर डरावनापूर्ण आ लज्जास्पद छैक... तखन दोष केकरो नहि बस अनुभवहीनता मात्र हावी बनल। अनुभवहीनता तऽ सोझाँ देखायवाला वस्तु थीक, मूल में कारक किछु आर रहल जे कोनो सार्वजनिक स्थलपर रखला सऽ हमरा सभक नुकसान अछि, बस ई बुझू जे मैथिलक आपसी मेलमें व्यक्तिगत स्वार्थक भयानक मारि अछि आ दुष्परिणाम जे गूटबाजी नहि छूटि रहल अछि। लेकिन अपन थोर-बहुत अनुभव सँ कहयमें संकोच नहि भऽ रहल अछि जे 'महादेव सर्वोपरि छथि' आ कोनो हृदय सँ विचारल कार्य पूरा करबाक लेल आइ धरि ओ स्वयं ठाड्ह होइत रहलाह छथि, ठीक तहिना कवि एकान्त पूर्व-संध्यापर विचारल योजना तहत बस माँ काली के शरणापन्न होइत अनशन स्थलपर विदा भेलाह आ बाकी अपनहि महादेव त्रिशूल नचबैत सभ कार्य अपराह्न होइत-होइत डोरिया देलखिन। दुनियामें ढिंढोरा पीटनिहार भले किछु बाजि एहि आन्दोलनक मर्मके तुच्छता आ छूद्र नाम लेल झाइल बजबैथ, मुदा काजक रहल केवल बाबा बैद्यनाथक कृपा! :) बस शरणागत भक्त लेल ओ स्वयं सेहो साक्षात् माँ पार्वती (काली) केर कृपा संग ४ दिनक अनशन मानू ४० मिनटमें तय कय देलनि। एक सऽ एक विचार कयलनि, क्रान्तिक बिगूल बाजल, नवपथ सोझाँ आयल आ आब जल्दिये निरंतरताक क्रम बनत। मिथिलाक धरतीपर - भारतक राजधानीमें - दुनू जगह तऽ कम से कम मैथिल प्रण कय लेलाह जे अपन सुसुप्त शक्तिकेँ जगायब। उपरोक्त अनशन मानू जे जाम्बवन्तजी समान हरेक सुच्चा मैथिलमें हनुमानजीक शक्तिके आभान करौलक। आब जल्दिये नव-नव घोषणा सँ पुरान संस्थाक संग नवयुवा डेग बढबैत चलताह से हमरा विश्वास अछि।

बुधवार, 27 मार्च 2013

सबपर चढ़ल नशा

सबपर चढ़ल नशा

भूजल किछु माँउसक बुट्टी
ताहिपर छल भाँगक घुट्टी
आ भौजीक हाथ पिचकारी
लागै भेलै सब लाजक छुट्टी

संग सारि सेहो दस-दस टा
लेने रंग-अबीर भरि मुट्ठी
लागै दिनेमे देखै छी सपना
किओ काट आबि कऽ चुट्टी

कनियाँ जे रूपक प्रियगर
कोना खराप केलक ब्यूटी
रंग लाल-पियर-हरियर
देह संग राँगल छल जुट्टी

छल सार बनल अलबटहा
पी-पी कऽ शराबक घुट्टी
ने माए-बाप बुझै नै भैया
पकड़ि लै बाइजीक जुट्टी

सबपर चढ़ल फागक नशा
ककरो ऊपर ककरो तरघुसकी
हम खा कऽ खूब मलपूआ
बैसल मारै छी मुस्की

अमित मिश्र

नेनाक सनेस




साँझकेँ छह बाजि गेलहि एखन धरि बौआ नहि आएल | भगवानपुर बालीक सेहो अता पता नहि | जा कए भगवानपुर बालीक अँगना देखै छी कि भेलहि |” ई द्वंद अछि एक गोट माएक मनक जीनक दस बरखक नेना दिनक एगारह बजे अपन काकी भगवानपुर बालीक संगे काली पूजाक मेला देखै लेल गेल छल मुदा साँझ परि गेला बादो एखन धरि नहि आएल छल | नेनाकेँ अपनासँ दूर केखनो छोरैक लेल ओ तैयार नहि मुदा नेनाक मेला देखैक लौलसाकेँ देखि ओकरा नहि रोकि पएलिह | जँ अपने जाइतथि तँ बोनिक हर्जाना आ ओहिपर सँ बेसी खर्चाक डर सेहो, कोनो ना पच्चीस रुपैयाक इन्तजाम कए नेनाकेँ काकी संगे पठा देने रहथि |
की भेलै किएक देरी भेलहि एहि उधेरबुनमे रहथि की भगवानपुर बालीक शव्द हुनका कानमे कतौसँ परलनि | देखलनि तँ भगवानपुर बालीक आ हुनक नेनाक संगे संग गामक आओर लोकसभ हँसैत बजैत हाथमे माथपर झोड़ा मोटरी नेने आबैत |
माए झटसँ आगू बढ़ि अपन नेना लग जा ओकर दाढ़ी छुबि, “ऐना मुँह किएक सुखएल छौ, किछु खेलएँ पीलएँ नहि? पाइ हएरा गेलौ की ?”
मुदा नेना चूपचाप ठार |
भगवानपुर बाली, “हे बहिन तोहर ई नेना, नेना नै बूढ़बा छौ |”
माए, “किएक की भेलै |”
भगवानपुर बाली, “सगरो मेला घूमक बादो किएक एक्को पाइ खर्च करत, नै खिलौना, नै मिठाइ, नै कोनो खाए पीबक चीज, भरि मेला पाइकेँ मुठ्ठीमे दबने चूपचाप सभ वस्तुकेँ देखैत रहेए |”
माए, “किएक बौआ, किछु खेलएँ पीलएँ किए नै |”
नेना चूपचाप अपन हाथ पाछू केने ठार | माएकेँ चूप भेला बाद अपन हाथकेँ पाछुसँ आगू अनि, हाथमे राखल डिब्बा माएकेँ दैत, “
माए डिब्बाकेँ देख कए, “ई चप्पल, केकरा लेल ?”
नेना, “तोहर लेल, तुँ खाली पेएरे चलैत छलेँ ने |”
माए झट नेनाकेँ अपन करेजसँ लगा सिनेह करैत, “हमर सोन सन नेना, भरि दिन भूखे पियासे अपन सभटा सऽखकेँ मारि कए हमर चिन्ता कएलक, हमरो औरदा लए कऽ जीबए हमर लाल |”   
*****
 जगदानन्द झा 'मनु'                                                                                                                                

मंगलवार, 26 मार्च 2013

भोजी-सरहोजि-सजनी-सारि

भौजी-सरहोजि-सजनी-सारि

रंगक वर्षामे भीजल छी
भाँगक नशामे माँतल छी
ने सूतल छी ने जागल छी
फागक धारमे भासल छी
यै भौजी भऽ जाउ तैयार
छोड़ब अहींपर रंगक धार

जुनि काँच बुझू हम पाकल छी
बड सक्कत छी जुनि फाटल छी
सासुरक दुलरूआ हम छाँटल छी
अहीं लेल एतऽ आयल छी
राँगबे करब तँ की करतै सार
यै सरहोजि बिसरि जाउ सासुरक संसार

ने ठीक छी ने पागल छी
ई बात सत्त जे पियासल छी
काज-धाज छोड़ि आयल छी
विरह बड भेल तें घायल छी
मुदा आनलौं जेबी भरि अबीर प्यार
यै सजनी रंग लगबा लिअ यार

छी छोट मुदा मोन जीतल छी
लोंगिया मिरचाइ मुदा शीतल छी
यौवनक नव रससँ भीजल छी
ठंढियोमे बड धीपल छी
अहाँ लेल तँ छै नोट हजार
आउ सारि करब रंगक बौछार

भौजी-सरहोजि-सजनी-सारि
सब थाकि गेल पिचकारी मारि

अमित मिश्र

सोमवार, 25 मार्च 2013

दर्दक खजाना

विहनि कथा- दर्दक खजाना


एकटा वृद्ध पथिक अति व्यस्त सड़कपर डगमगाइत डेगसँ चलैत जा रहल छल ।खन सड़कक कातमे तँ खन माँझमे चलैत, लागैत छल जे सुधि-बुधि हेरा गेल छै ।कतेको गाड़ी बाला ओहि पथिककें बचबैत चलि गेल मुदा एकटा मोटरसाइकिल बाला अपनाकें सम्हारि नै सकलै ।मोटरसाइकिलक अगिला चक्का वृद्ध पथिकक टाँगक मध्यमे सन्हिया गेलै ।एहि टक्करसँ ओ पथिक मुँहे भरे खसल ।मुँह हाथ आ ठेहुनमे बड जोरसँ चोट लागलै आ पथिक अचेत भऽ गेल ।फाटि गेल धोती खूनसँ ललिया गेलै ।मोटरसाइकिल बालाक संग अड़ोस-पड़ोसक लोक दौड़ल आ पथिककें उठा कऽ एकटा दोकानपर राखल बेन्चपर सुता देलकै ।किछु कालक बाद वृद्धकें होश एलै ।होश आबिते ओ जाए लागलै तँ एकटा नवयुवक कहलकै ,"बाबा, कने बिलमि जाउ ।डाँक्टर बाबू आबिते हेथिन्ह ।कमसँ कम पेन किलर तँ लऽ लिअ ।बड दर्द होइत हएत ।"

ई सुनिते पथिक घूरि गेल आ नवयुवक लऽग आबि शान्त स्वरमे बाजल, "बौआ, हमर अपन बेटा-पुतौह हमरा बोझ बूझि हमरे घरसँ निकालि कऽ जे दर्द देलक, ओहि दर्द लऽग ई दर्द पासङगो बराबर नै छै ।"

एहिसँ पहिने कि किओ किछु बाजितै ओ वृद्ध पथिक ईनाम भेटल दर्दक खजाना समेटने भीड़मे हेरा गेल ।

अमित मिश्र

अंग्रेज नेना

अंग्रेज नेना



दस वर्षक बाद श्याम बाबू गाम आएल छलाह । इंजीनियर बनलाक बाद दिल्लीएमे अपार्टमेण्ट कीन ओतै बसि गेल छलखिन ।10 वर्ष पहिने, जखन विआह ठीक भेल छलन्हि तखन गाम आएल छलाह ।दुनू प्राणी एक्के पेशामे तें बजारे बसनाइ नीक बुझेलन्हि ।मुदा आब माए अंतीम साँस लऽ रहल छन्हि तें कनियाँ आ बेटाक मोन नै रहितो, आबऽ पड़लनि ।गाम एलापर टोलक दोस्त-महिम सब भेंट करऽ आबऽ लागलनि ।एक दिन हुनक बेटाकें देख बुचनू कक्का पुछलन्हि ,"बौआ, अपनेक शुभ नाम की अछि ?"


6 वर्षक नेना बुचनू कक्काक नंग-धरंग देहपर गोबर लाग आ हाथमे छीट्टा देखैत बाजल,"ह्वाट आर यू टेलिंग, पूअर भिलेजर, आइ विल नाँट टाक विद यू ।"


बुचनू कक्काकें समझमे किछु नै एलै मुदा बूझि गेलखिन जे नेना इंग्लिस बाजै छै ,हुनका बड छगुन्ता भेलै ।मोने- मोन सोचऽ लागलाह जे श्याम बाबू मैथिल छथि, कनियों मैथिलानी छथिन्ह, तखन हुनकर अंशसँ कोना जनमि गेलै अंग्रेज नेना ।



अमित मिश्र

गजल


खाल रंगेल गीदड़ बड्ड फरि  गेलै
एहने आइ सभतरि ढंग परि  गेलै

घुरि कऽ इसकूल जे नै गेल जिनगीमे  
नांघिते तीनबटिया सगर  तरि  गेलै

देखलक भरल पूरल घर जँ कनखी भरि
आँखि फटलै दुनू डाहेसँ मरि गेलै

सभ अपन अपनमे बहटरल कोना अछि
मनुखकेँ मनुख बास्ते मोन जरि   गेलै  

बीछतै ‘मनु’ करेजाकेँ दरद कोना
जहरकेँ घूंट सगरो  पी कऽ भरि  गेलै

(बहरे मुशाकिल, मात्रा क्रम २१२२-१२२२-१२२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’  

गजल



आइ सगरो गाममे हाहाकार छै
मचल एना ई किए अत्याचार छै

आँखि मुनने बोगला बैसल भगत बनि
खून पीबै लेल कोना तैयार छै

देखतै के केकरा आजुक समयमे
देशकेँ सिस्टम तँ अपने बेमार छै

देखते मुँह पाइकेँ कोना मुँह मोरलक
मांगि नै लेए खगल सभ बेकार छै

भरल भिरमे एखनो धरि एसगर छी
केकरो मनपर ‘मनु’क नै अधिकार छै

(बहरे जदीद, मात्रा क्रम – २१२२-२१२२-२२१२)
जगदानन्द झा ‘मनु’        

शुक्रवार, 22 मार्च 2013

गजल

गजल-1.57



नै ककरोसँ कखनो फसल झगड़ा रहितै

यदि जगमे बनल नै नेह भाषा रहितै



नै डरतै महल शीशाक, पाथर लऽग जा

यदि सब नेउँमे मजगूत ईटा रहितै



चहुँ दिश भेटितै कननी दरद आ विरहिन

सभक प्रेमिका भागसँ जँ राधा रहितै



आधा ज्ञान सदिखन बनल घातक दुश्मन

सब बनितै अपन घट भरल पूरा रहितै



बीच्चे सड़कपर नवजात तन नै रहितै

यदि मिसियो बचल माएक ममता रहितै



2221-2221-2222

अमित मिश्र

गुरुवार, 21 मार्च 2013

परिवर्तन

हमर (वा सभक) प्रवास ,जतऽ हम(सभ) रहैत छी
परिवर्तनपर परिवर्तन होइत देखैत छी
पहिराबा-ओढ़ाबासँ लऽ कऽ  खान-पान धरि
बाजब-भुकबसँ लऽ कऽ स्वागत-सम्मान धरि
कखनो पुबरिया तँ कखनो पछबरिया झोंका उठैत अछि
कखनो जुअनका तँ कखनो बुढ़बा ढेका कसि झूमैत अछि
बातक खोइँचा छोड़बैत गप्पीक हमजोली
मरनासन्न भऽ गेल अछि नुक्कर परहक टोली
जखने-तखने बेटा खिसिया उठैत अछि बापपर
पथराएल आँखि कानैत अछि बाप बनबाक पापपर
क्षणे-क्षणे एकमहला घर और नम्हर भेल जाइत अछि
मुदा उपरसँ देखैत छी तँ लोके छोट भेल जाइत अछि
परिवर्तन तँ एहि संसारक अकाट्य नियम अछि
मुदा वर्जित अति तँ सदिखन प्राण हरैत यम अछि
एहि परिवर्तनशील समाजमे जुनि होउ एते परिवर्तित
जे समयसँ पहिने भऽ जाएब काल ग्रसित

अमित मिश्र

बुधवार, 20 मार्च 2013

गजल


अहाँ पिआर करु हमरा हमर बसन्ती पिया
अपन बाबूक नहि हम  आब रहलहुँ  धिया

बहुत जतनसँ  सोलह बसन्त सम्हारलहुँ
आब नहि सहल जाइए हमर टूटेए  हिया

नेह रखने छी नुका कए कोंढ़ तर अहाँ लए
रुकि नहि जुलूम करु हमर तरसेए जिया

आब आँकुर फूटल पिआरक अछि चारू दिस
अहाँ जे रोपलौं  करेजामे हमर प्रेमक बिया

आउ हमरा सम्हाइर लिअ हमर सिनेहिया
अहाँकेँ सप्पत दै छी करियौ नै ‘मनु’ एना छिया

(सरल वार्णिक बहर,  वर्ण-१८)
जगदानन्द झा ‘मनु’

सोमवार, 18 मार्च 2013

हमहूँ जेबै बरियाती

बाल कविता-19

हमहूँ जेबौ बरियाती

मामाक विआह छै, एथिन मामी
आनी-मूनी हम किछु नै जानी
नै गुड़िया लेबौ, नै लेबौ हाथी
बनि लोकनियाँ हमहूँ जेबौ बरियाती

चानन-ठोप लगा कऽ हमरो सजा दे
चुरीदार पैजामा, उजरा कुर्ता सिया दे
हमरो चुमा दे, आबि कऽ नानी
किछु भऽ जाए, जेबौ बरियाती


http://navanshu.blogspot.com/2013/03/blog-post_18.html

अरिछन-परिछन हमरो सब करतै
बड दुलारसँ रसगुल्ला, खीर खुएतै
कोरामे बैसा दुलार करतै मामी
आइ नै मानबौ, जेबौ बरियाती

नै आगू हेतौ तँ पाछुए बैसबौ
मिसियो नै आब बदमाशी करबौ
नै मानबें तँ रूसि बैसबौ बाड़ी
गाड़ियोपर लटकि, जेबौ बरियाती

अमित मिश्र

बिल्लो मौसी बड खुरलुच्ची (बाल कविता)

बिल्लो मौसी छै बड खुरलुच्ची
पी गेल दूध, खा गेल लुच्ची
फोड़ि देलक पैसा बला चुक्की
आतंक मचेलक घरमे बुच्ची

चारि-पाँच मोछ ठाढ़ सुइया सन
मूस राजासँ रहै छै अनबन
अटकि-पटकि दै बर्तन-बासन
जियान केलक भरि मासक राशन

चमकै आँखि चमचम चमचम
म्याँऊ-म्याँऊ केर सदिखन सरगम
तोड़ि दै नीन्न खसि-खसि धम्म
बड़का खुरलुच्ची छै बिल्लो बम

अमित मिश्र

शुक्रवार, 15 मार्च 2013

बाबाक हाथी


दिल्लीक कनाट प्लेशक प्रशिद्ध कॉफी हॉउसक आँगन | लूकझिक साँझ मुदा महानगरीय बिजलीक दूधसन इजोतसँ कॉफी हॉउसक आँगन चमचमाइत | एकटा गोल टेबुलक चारू कात रखल चारिटा कुर्सीमे सँ तीनटापर ’, ‘बैसल गप्प करैत संगे कॉफीक चुस्कीक आनन्द सेहो लैत |
केँ बिचक बात-चितमे गरमाहट आबि गेलै | ‘’, “रहए दियौ अहाँक बूते नहि होएत |”
’, “हाँ ई की कहलीयै हमरा बूते नहि  होएत, अहाँ बुझिते कि छियै हमरा बारेमे |”
’, “हम अहाँक बारेमे बेसी नहि बुझै छी परञ्च ई नै .......
’, “हे आगु जुनि किछु बाजु, अहाँकेँ नहि बुझल जे अहाँक सोंझा के बैसल अछि ? हमर बाबाकेँ नअटा बखाड़ी रहनि, दलानपर सदिखन एकटा हाथी बान्हल रहैत छलनि | हमर परबाबाकेँ चालीस गामक मौजे छलनि | हमर मामा एखनो बिहारक राजदरवारमे तैनात छथि | हम स्वम एहिठाम योगाक क्लास राष्टपतिकेँ दै छीयनि |”
क गप्प बहुते देरीसँ चुपचाप सुनैत अपन कॉफीक घूंट खत्म कएला बाद खाली कपकेँ टेबुलपर रखैत, “यौ हम आब चली, अहाँक दुनूकेँ हाइक्लासक गप्प हमरा नहि पचि रहल अछि, हम तँ बस एतबे बुझै छी जे हमर अहाँक बाबू-बाबा आ स्वयं हमरा सभमे एतेक बूता होइत तँ हम सभ एना दिल्लीमे १५-२० हजारक नोकरी कए कआ भराक मकानमे जीवन बिता कए अपन-अपन जिनगीकेँ नरकमय नहि बनाबितहुँ | ओनाहितो आजुक समयमे हाथी भिखमंगा रखै छैक आ दोसर राजमे पेट ओ पोसैत अछि जेकरा अपन घरमे पेट नहि भरि रहल छैक |”
केँ एकटुक तित मुदा सत्य गप्प सुनि दुनूक मुँह चूप | ‘सेहो ई गप्प बजैत हिलैत डुलैत निसाक सरूरमे ओतएसँ बिदा भए गेल | मुदा ओकर बगलक टेबुलपर बैसल हमरा केँ ई गप्प सए टका सत्य लागल |   
*****
जगदानन्द झा मनु’                                                               

सिहरी गेल मोन

सिहरी गेल मोन,
चौंकि गेलहूँ हम,
चेहा उठल स्मृति,
मेज पर राखल टेबुललैंप,
बेजान सन,
भुकभुकाईत रहल,
आ हम,
एही भुकभुकी में,
ताकि लेलहूँ,
अपन जिनगी,
आ जिनगीक सब रंग के,
अबधाईर लेलहूँ,
हमहूँ आब मशीन जकाँ,
स्विच स’ ओन आ ऑफ,
होइत रहैत छी,
जखन तखन,

बीती जो रे जिनगी,
नहीं अछि सहाज,
आब बस ......