मैथिली साहित्य आ भाषा लेल समर्पित Maithiliputra- Dedicated to Maithili Literature and Language
सोमवार, 25 मार्च 2013
गजल
खाल रंगेल गीदड़ बड्ड फरि गेलै
एहने आइ सभतरि ढंग परि गेलै
घुरि कऽ इसकूल जे नै गेल जिनगीमे
नांघिते तीनबटिया सगर तरि गेलै
देखलक भरल पूरल घर जँ कनखी भरि
आँखि फटलै दुनू डाहेसँ मरि गेलै
सभ अपन अपनमे बहटरल कोना अछि
मनुखकेँ मनुख बास्ते मोन जरि गेलै
बीछतै ‘मनु’ करेजाकेँ दरद कोना
जहरकेँ घूंट सगरो पी कऽ भरि गेलै
(बहरे मुशाकिल, मात्रा क्रम २१२२-१२२२-१२२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें