की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। संपर्क करी मो०/ वाट्सएप न० +91 92124 61006

सोमवार, 25 मार्च 2013

गजल


खाल रंगेल गीदड़ बड्ड फरि  गेलै
एहने आइ सभतरि ढंग परि  गेलै

घुरि कऽ इसकूल जे नै गेल जिनगीमे  
नांघिते तीनबटिया सगर  तरि  गेलै

देखलक भरल पूरल घर जँ कनखी भरि
आँखि फटलै दुनू डाहेसँ मरि गेलै

सभ अपन अपनमे बहटरल कोना अछि
मनुखकेँ मनुख बास्ते मोन जरि   गेलै  

बीछतै ‘मनु’ करेजाकेँ दरद कोना
जहरकेँ घूंट सगरो  पी कऽ भरि  गेलै

(बहरे मुशाकिल, मात्रा क्रम २१२२-१२२२-१२२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें