की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। sadhnajnjha@gmail.com पर e-mail करी Or call to Manish Karn Mo. 91 95600 73336

सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

गजल

प्रेम कलशसँ अमरित अहाँ पीया तँ दिअ
मुइल जीवन फेरसँ हमर जीया तँ दिअ 
   
काल्हि नै बाँचत शेष जीवन केर किछु
एकटा सुन्नर सन अपन धीया तँ दिअ
 
रहअ दिअ हमरा आब चाही प्राण नै 
मैरतो  बेरीया अपन हीया तँ दिअ

प्राण बिनु देहक हाल देखू आब नै
बाटपर ओगरने आँखिकेँ सीया तँ दिअ 

जाइ छी ‘मनु’ पाछूसँ  नै टोकब अहाँ 
अपन हाथसँ काठी कने दीया तँ दिअ
(बहरे हमीम, मात्रा क्रम : २१२२-२२१२-२२१२)
जगदानन्द झा 'मनु'

सोमवार, 15 मई 2017

भक्ति गजल

हम्मर अँगना मैया एली
गमके चहुदिस अरहुल बेली

धन हम छी धन हम्मर अँगना 
मैया जतए दर्शन देली

आबू बहिना संगी हम्मर 
मैया संगे    सामाँ खेली 

जे किछू अछि एखन हमरा ल'ग 
ओ  सबटा  मैया   द'क  गेली

बड़ भागसँ 'मनु' भेटल अवसर 
मैया अप्पन   चरण लगेली

(सब पाँतिमे आठ-आठटा दीर्घ, मकताक दोसर पाँतिमे दूटा अलग अलग लघुकेँ दीर्घ मानक छूट लेल गेल अछि)
जगदानन्द झा 'मनु'

शनिवार, 6 अगस्त 2016

गजल

बनेलहुँ अपन हम जान अहाँकेँ
जँ कहि लाबि देबै चान अहाँकेँ

हँसीमे सभक माहुर झलकैए
सिनेहसँ भरल मुस्कान अहाँकेँ

कमल फूल सन गमकैत अहाँ छी
जहर भरल आँखिक बाण अहाँकेँ

पियासल अहाँ बिनु रहल सगर मन
सिनेहक तँ चाही दान अहाँकेँ

करेजक भितर 'मनु' अछि कि बसेने
रहल नै कनीको  भान अहाँकेँ 
(मात्रा क्रम ; १२२-१२२-२१ १२२)
(सुझाव सादर आमंत्रित अछि)
© जगदानन्द झा 'मनु' 

शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

बेटाक बाप


        "ई जे भरि दिन नेतागिरीमे लागल रहै छी कि एहिसँ पेट भरत? चलू अप्पन पेटक आगि तँ जेना तेना मिझा लेब कनिक बेटीक ब्याहो केर चिंतासँ तँ डरू । भेल तँ ३-४ वर्खमे ओकरो ब्याह करए परत, ओहु लेल १०-१५ लाख रूपैया चाही ।"
         "केहेन गप्प करै छी ? आब ओ ज़माना नहि रहलै । बेटा आ बेटीमे फराके की? जेना बेटाक पढ़ाइ-लिखाइ लालन पालनमे ख़र्चा तेँनाहिते बेटीमे । बेटी बेटासँ कतौ कम नहि । आ हम्मर बेटी तँ लाखोमे एक अछि ।"
         "ई अहाँ बुझै छीयै मुदा समाजमे दहेज लोभी बेटाक बाप नहि ।"
© जगदानंद झा 'मनु' 

रभसल

"धूर भौजी ! अहुँ बड़ रभसल जकाँ किनादन करैत रहै छी ।"
"यौ लाल बाबु रहै दियौ, जँ हम एना रभसल जकाँ नहि करितौँ तँ, ई जे कोरामे भतिजाकेँ लदने रहै छी से मनोरथ अहाँक भैया बुते तँ रहिए गेल रहिते ।"
© जगदानंद झा 'मनु' 

मामासार (बीहनि कथा)


मामा आ सार पर केखनो विश्वास नहि करी । इतिहास गबाह अछि । नहि कोनो मामा भगिना के भेलै आ नहि कोनो सार बहिनोइ के भेलै । कंस, शकुनि, बंगाल रियासत केर बादशाह सिराजुदौल्लाक सार(मिर कासीम आ मिर साकी) , जायचन्द आ एहेन एहेन कतेको मामा आ सार घर-घरमे नुकेएल अछि । 
एकटा पूरान फकरा छै, जखन गिदड़के मौत अबै छै तँ ओ शहर दिस भागैत अछि । एहि फकराके आब एना बूझल जेए, जखन कोनो मनुखके बिपैत आबै बला होइ तँ ओ सासुर क भगैए वा सारके पोसैए । सार आ गहुमन साँपमे कोनो फराक नहि । ई दुनू कखन डैस लेत बिधने बुझता । आ जूएस गहुमन भेला मामा । (ई खालि हमर मंतव्य अछि जरूरि नहि जे अहुँ एकरा मानी । मामा अहाँके सार अहाँके जीवन अहाँके मर्ज़ी अहाँकेँ । हम तँ मात्र इतिहास आ अपन मंतव्य शेयर केलहुँ । 😊😊😊)
© जगदानंद झा 'मनु' 

गजल


साँप चलि गेल लाठी पीटे रहल छी
बाप मुइला पछाइत भोजक टहल छी

पानि नै अन्न कहियो जीवैत देबै
गाम नोतब सराधे सबहक कहल छी

आँखिकेँ पानि आइ तँ सगरो मरल अछि
राति दिन हम मुदा ताड़ीमे बहल छी 

कहब ककरा करेजा हम खोलि अप्पन 
नै कियो बूझलक हम धेने जहल छी

सुनि क' हम्मर गजल जग पागल बुझैए
दर्द मुस्कीसँ झपने 'मनु' सब सहल छी 
(बहरे असम, मात्रा क्रम- २१२२-१२२२-२१२२)
© जगदानन्दझा 'मनु' 

मंगलवार, 21 जून 2016

हमरा मिथिला राज चाही

भीख नहि अधिकार चाही, हमरा मिथिला राज चाही 
जे हमर अछि खूनमे खूनक अधिकार चाही 

जनक वाचस्पतिकेँ पुत्र हम, हमर चुप्पीकेँ नै किछु आओर बुझू
शांतचित्त हम समुद्र सन, हमर क्रोधकेँ सोनित चाही 

सिंह सन हम बलवान रहितो, मेघ सन हम शांत छी 
जुनि बिसरी ऊधियाइत मेघकेँ, मुठ्ठीमे संसार चाही

जाहि कोखिसँ सीता छथि जनमल, ओहि कोखिक संतान छी 
बाँहिमे प्रज्वलित अछि अग्णि, बस एकटा संकेत चाही 

भूखसँ व्याकुल छी,   मुदा उठाएब नहि फेकल टुकड़ी 
कर्ण बनि जे नहि भेटल, ममता केर अधिकार चाही

माए मैथिली रहती किएक,  निसहाय एना एतेक दिन 
होम करे जे तन मन अप्पन,  'मनु' लव कुश सन संतान चाही
जगदानन्द झा 'मनु'

सोहागिन

हल्द्वानी, हम आ सा । क़ब्रिस्तान पार कय क' हम दुनू पहाड़क उपर चढ़ैत, समतल जगह ताकि पार्ककेँ एकटा वेंचपर बैसि, देहक गर्मीकेँ कम करैक हेतु बर्फमलाइ (आइस्क्रीम) कीन खेनाइ शुरू केलौंहँ ।
दुनू गोटा अप्पन अप्पन आधा बर्फमलाइ खेने होएब कि, सा "जँ हम अहाँक सामने मरि गेलौं तँ हमर सारापर चबूतरा बना देब ।"
मेघ धरि उँच उँच पहाड़, चारू कात प्राकृतिक सौंदर्य, मखमल सन घास, स्वर्गसन वातावरण, बर्फमलाइ केर आनन्दक बिच अचानक एहेन गप्प सुनि, बर्फमलाइ हमर मुँहसँ छूटि हाथमे ठिठैक गेल । कनिक काल सा केर मुँह पढ़ैक असफल प्रयास केलाक बाद; "अवस्य एकटा नीक चबूतरा । जँ हम पहिने मरि गेलौं तँ एतेक व्यवस्था ज़रूर कय जाएब जे एकटा नीक चबू.... "
बिच्चेमे सा हमर मुँहकेँ अप्पन हाथसँ दाबैत, "नीक नहि साधारणे चबूतरा मुदा अहाँक हाथे आ ओहिपर लिखल हुए "सोहागिन सा" ।
@ जगदानन्द झा 'मनु'

प्रेम

गुदड़ी बाजारक भीड़ भाड़सँ निकलैत, एकटा दुकानक आँगा टीवीक आबाज सुनि डेग रूकि गेल । टीवीसँ अबैत ओकर अबाजे टा सुनाइ द' रहल छल । ओकर देह नहि देखा रहल छल मुदा अबाजेसँ ओकरा चिन्हनाइ कतेक आसान छै ।
आइसँ तीस वर्ष पहिने, हमरे संगे संग नमी वर्ग धरि पढ़ै बाली, सुन्दर, चंचल मात्र मूठ्ठी भरि डाँड़ बाली सु.....
"कि प्रेम इहे छैक की मात्र देहक प्रजनन अंगपर एकाधिकार बना कय राखैमे सफल भेनाइ?"
@ जगदानन्द झा 'मनु

बेगरता

दोसर मुँहेेँ करोटिया दय सुतल मकेँ अपना दिस घुमाबैत - "धूर जाउ ! कोना मुँह घूमेने सुतल छी, दस मिनट पहिने अप्पन बेगरता काल बिसरि गेलियै कोना जोँक जकाँ सटल छलौं।"

अगिला जनम

“डाँड़ टूटल जाइए भरि राति सूतलहुँ नहि बड़ तंग करै छी, अगिला जन्ममे अहाँ हिजड़ा होएब जे कोनो आओर मौगीकेँ एना तंग नहि कए सकब।”
“ठीक छै ! अगिला जन्म अगिला जन्ममे देखल जेतै, एहि जन्मक आनन्द तँ लए लिअ। आ अगिला जन्ममे ओहि हिजड़ाक ब्याह जँ अहिँक संगे भए गेलहि तँ ।"
© जगदानन्द झा 'मनु' 

मुँहझौँसा

“गै दैया ! एतेक आँखि किएक फूलल छौ ? लगैए राति भरि पहुना सुतए नहि देलकौ।”
“छोर, मुँह झौँसा किएक नहि सुतए देत, अपने तँ ओ बिछानपर परैत मातर कुम्भकरन जकाँ सुति रहल आ हम भरि राति कोरो गनैत बितेलहुँ।”

एसगर - प्रेम बीहनि कथा

बासोपत्ती बस अड्डा। बाउकेँ दिल्ली जेए बला ट्रेन दरभंगासँ पकरैक छलै । बासोपत्तीसँ दरभंगाक धरिक यात्रा बससँ । बसक इन्तजारमे बाउ एकटा लगेज हाथमे नेने ठाड़ । ततबामे सुधा अफसीयाँत भागि कय आबि बाउ लग ठाड़ होति, टूकुर टूकुर ओकर मुँह तकैत । दुनू आँखिसँ नोर निकलि सुधाकेँ गाल होति गरदनि धरि टघरि गेल ।
बाउ - "तु एतेक कनै किएक छेँ?"
सुधा बाउ केर दुनू हाथ खीच, ओकर हाथपर अपन मुँह रखैत, "हम कहाँ कनि रहल छी।"
ओकरा उदास आ कनैत देखि बाउ दूटा बस छोरि देलकै ।
"हमरो ल' चलू, अहाँ बिनु हम एहिठाम नहि जी सकब । ओहीठाम हम सबकेँ कहबै जे हम अहाँक नोकरानी छी । अहाँक नेनाकेँ खेलाएब, घरमे पोछा लगाएब, बर्तन धोब ।"
ई कथन छल एकटा बिधबा माएक जेकर बेटा दिल्ली बाली संगे ब्याह कय दिल्लीए बसि गेल छल आ माए एसगर गाममे ।
@ जगदानन्द झा 'मनु'

गजल

हारिकेँ बाद जीतो ' अबिते छै 
रातिकेँ बाद सगरो इजोते छै 

दुखक माला जपै छी किए दिन भरि
एहि जगमे घड़ी सुखक बहुते छै

नोर राखू पजारब गजल एहिसँ
किछु पुरनका खड़ेएल रहिते छै

बेंगकेँ जिन्दगी  नै इनारे भरि
भादबक बाढ़िमे जनिते छै

छोरि तकनाइ मुँह  हाथ नम्हर करु
किछु पबै लेल 'मनु' दाम लगिते छै

(मात्रा क्रम ; २१२-२१२-२१२-२२)
जगदानन्द झा 'मनु