की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। संपर्क करी मो०/ वाट्सएप न० +91 92124 61006

शनिवार, 6 अगस्त 2016

गजल

बनेलहुँ अपन हम जान अहाँकेँ
जँ कहि लाबि देबै चान अहाँकेँ

हँसीमे सभक माहुर झलकैए
सिनेहसँ भरल मुस्कान अहाँकेँ

कमल फूल सन गमकैत अहाँ छी
जहर भरल आँखिक बाण अहाँकेँ

पियासल अहाँ बिनु रहल सगर मन
सिनेहक तँ चाही दान अहाँकेँ

करेजक भितर 'मनु' अछि कि बसेने
रहल नै कनीको  भान अहाँकेँ 
(मात्रा क्रम ; १२२-१२२-२१ १२२)
(सुझाव सादर आमंत्रित अछि)
© जगदानन्द झा 'मनु' 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें