बनेलहुँ अपन हम जान अहाँकेँ
जँ कहि लाबि देबै चान अहाँकेँ
हँसीमे सभक माहुर झलकैए
सिनेहसँ भरल मुस्कान अहाँकेँ
कमल फूल सन गमकैत अहाँ छी
जहर भरल आँखिक बाण अहाँकेँ
पियासल अहाँ बिनु रहल सगर मन
सिनेहक तँ चाही दान अहाँकेँ
करेजक भितर 'मनु' अछि कि बसेने
रहल नै कनीको भान अहाँकेँ
(मात्रा क्रम ; १२२-१२२-२१ १२२)
(सुझाव सादर आमंत्रित अछि)
© जगदानन्द झा 'मनु'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें