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शुक्रवार, 31 मई 2013

वसिअतनामा




सु०केँ व्याह दूतीवरसँ भेलन्हि | हुनक बएससँ करीब बीस बर्खक बेसी हुनक वर | हुनक वरकेँ पहिलुक कनियाँसँ एकटा बारह बर्खक बेटा | व्याहक पाँच वर्ख बादो सु०केँ एखन धरि कोनो संतान नहि | अपन माएक आग्रहपर सु० दू दिनक लेल अपन नैहर एली | एहिठाम माएकेँ केशमे तेल दैत –
सु० केर छोट भाइ, “दीदीसँ पैघ पतिवरता स्त्री आइकेँ दुनियाँमे कियो नहि होएत |”
सु०, “ ई एनाहिते कहैत छैक |”
छोट भाइ, “नहि गे माए, दीदीकेँ देखलहुँ अपन बुढ़बा वरकेँ एतेक सेवा करैत जतेक आजुक समयमे कियोक नहि करतै | नहबैत-सुनाबैत तीन तीन घंटापर हुनका चाह नास्ता भोजन दैत भरि दिन हुनके सेवामे लागल आ हुनकासँ कनी समय भेटलै तँ हुनक बेटामे लागल अपन देहक तँ एकरा सुधियो नहि रहै छै |”
सु०, “एहन कोनो गप्प नहि छै आ नहि हम कोनो पतिवरता छी | ओ तँ, ओ अपन वसिअतनामा बनोने छथि जेकर हिसाबे हुनक एखन मुइलापर हुनक सभटा सम्पतिकेँ मालिक हुनक बेटा होएत | आ जखन हमरा एकगो संतान भए जाएत तखन हुनक सम्पति, हुनक पहिलका बेटा आ हमर संतान दुनूमे बराबर बटा जाएत ताहि दुवारे बुढ़बाकेँ एतेक सेवा कए कऽ जीएने छी जे कहुना कतौसँ एकटा बेटा की बेटी भऽ जे नहि तँ एहेन बुढ़बाकेँ के पूछैए |”

बुढ़ारीक डर




नेना, “माए बाबीकेँ हमरा सभसंगे भोजन किएक नहि दै छियनि ?”
माए, “बौआ बड्ड बुढ़ भेलाक कारणे हुनका अपन कोठलीसँ निकलैमे दिक्कत होइत छनि तैँ दुवारे हुनकर भोजन हुनके कोठरीमे पठा दै छियनि |”
नेना, “मुदा बाबी तँ दिन कए बारीयोसँ घुमि कऽ आबि जाइ छथि तखन भोजनक समय एतेक किएक नहि चलल हेतैन |”
माए, “एहि गप्प सभपर धियान नहि दियौ, एखन ई सभ अहाँ नहि बुझबै | बुढ़ सभकेँ एनाहिते है छैक |”
नेना, “अच्छा तँ अहुँक बुढ़ भेलापर अहाँक भोजन एनाहिते एसगर अहाँक कोठरीमे पठाएल जाएत |”
अबोध नेनक गप्पक उत्तर तँ माए नहि दए सकलखिन मुदा अगिला दिनसँ बाबीक भोजन सभक संगे होबए लगलन्हि |

*****
जगदानन्द झा 'मनु'

जादूक छड़ी




चुनाब प्रचारक सभा | जनसमूहक भीर उमरल | नेताजी अपन दुनू हाथकेँ भँजैत माइकमे चिकैर-चिकैर कए भाषण दैत, “आदरणीय भाइ-बहिन आ समस्त काका काकीकेँ प्रणाम, एहि बेर पुनः अपन धरतीक एहि (अपन छाती दिस इशारा कए) लालकेँ भोट दए कऽ जीता दिअ फेर देखू चमत्कार | कोना नै सभक घरमे दुनू साँझ चूल्हा जरऽत | कोना कियो अस्पताल आ डॉक्टरक अभाबमे मरत | हमर दाबा अछि आबै बला पाँच बर्खमे एहि परोपट्टाक गली गलीमे पक्का पीच होएत | युवाकेँ रोजगार भेटत | बुढ़, बिधवा आर्थिक रूपसँ कमजोर वर्गक लोककेँ राजक तरफसँ पेंशन भेटत | भुखमरीक नामो निशान नहि रहत | बस ! एक बेर अपन एहि सेबककेँ जीता दिअ |”
थोपरीक गरगराहटसँ पंडाल हिलए लागल | नेताजी जिन्दाबादक नारासँ एक किलोमीटर दूर धरि हल्ला होबए लागल | भीरमे सँ निकलि एकटा बुढ़ मंचपर आबि, “एहि सभामे उपस्थित सभ गण्यमान आ आदरणीय, नेताजी एकदम ठीक कहैत छथि |”
ततबामे नेताजीक चाटुकार सभ, “वाह–वाह, बाबा केर स्वागत करू |” पाछूसँ दू तीनटा कार्यकर्ता आबि बाबाकेँ मालासँ तोपि देलकनि | बाबा अपन गरदैनसँ माला निकालि कए, “नेताजी एकदम ठीक कहैत छथि | एतेक रास असमान्य कार्य हिनकर अलाबा दोसर कियो कैए नहि सकैत अछि | जे काज ६६ बर्खमे नहि भेल ओ मात्र पाँच बर्खमे भए जाएत किएक की ओ जदुक छड़ी मात्र हिनके लग छनि जे एखने एहि सभामे अबैसँ पहिले भेतलन्हिए |” 
*****
जगदानन्द झा ‘मनु’ 

एहनो कतउ भेलइए ?

परूँका साल ३१ मई क' 

भोरे भोर जतेक समाचार सुनबामे आबए सभटा अचम्भिते करै बला । टेलीविजन चालू करिते देखै छी जे सगरो दिल्ली आ देशक आन आन भागमे यत्र-तत्र बाट जामक खबरि, यातायातकेँ  सुविधा बाधित । कारण की ?  कारण ई जे, पेट्रोलक मूल्यमे असामान्य वृद्धिकेँ विरुद्ध जनमोर्चा, आ ताहि जनमोर्चामे अपसियांत लोक । सभ वर्गक मिश्रित आम आदमी जिनक प्रतिनिधित्व करैत किछु नवोदित, किछु परिपक्व आ किछु वरिष्ठ राजनीतिक व्यक्ति लोकनि । ओना हिनका लोकनिक हस्तक्षेप भेनाइ सेहो परमावाश्यके , कारण जे हमरा लोकनिक बीच एहेन जनधारणा अछि जे विपक्षी लोकनि अगुएता तखने सत्ताधारीक आँखि खुजतन्हि, भने ओ स्वयं सत्तामे एलाक बाद जे करथि, आ जँ से नहि होईतै तँ आइ ई दिन कियैक  देखऽ परैइयै । महंगाइकेँ विरोध तँ आदि काल सँ होइत आएल अछि, अंतर एतबे छै जे पहिले सामान्य वृद्धि होइत छल आ आब असामान्य वृद्धि (अनिश्चित अनुपातमे) होइत अछि, आओर इएह अनिश्चितता हमरा लोकनिकेँ बाटपर ठाढ़ करबा लेल बाध्य कऽ दैत अछि । आब एकर नतीज़ा संध्या कालक समाचारमे  देखल जे पूर्ण हास्यास्पदे अर्थात असामान्य वृद्धिकेँ विरोधमे हो-हल्ला भेलाक बाद सामान्य कमी, किएक तँ सरकारकेँ ई आभास तँ रहिते छैक जे हो-हल्ला हेबे करतै तँ चलू कनेक उसास कए देल जेतै आ ठीक तहिना दोसर दिनसँ सभ किछु पूर्ववते अर्थात सरकार महगाई बढ़बैमे एक बेर फेर सफल ।
हड़ताल रहितहु लोक अपन अपन गंतव्य तक जेना तेना पहुँच रहल छलाह, तकर एकटा भुक्तभोगी हमहूँ रही । बसमे बैसल बैसल मोन अकच्छ भगेल रहय कानमे ठप्पी लगाय एफ.एम सुनय लगलहुँ, आहि रे बा ! ई की ? शाहरुख खानकेँ दम्मा कहिया भगेलन्हि, कहियो नै समाचारमे आयल छल, ने अखबारमे छपल छल । ई चैनल आ पेपर बला सभ तँ बड़ दाबा करै छथिन्ह जे हम सभसँ बेसी तेज, सभसँ पहिने, सभसँ आगाँ, मुदा एहिमे तँ सभ गोटे पछुआ गेलाह । ई मीडियाकर्मी लोकनि तँ एहेन-एहेन चर्चित लोकक छींकोकेँ ब्रेकिंग न्यूज़ बना दै छथिन्ह आ एतेक बड़का बीमारीकेँ जानतब सँ वंचित कोना रहि गेलाह ? मुदा औ बाबू ! वंचित ई सभ नै  रहि गेलाह, वंचित तँ हम स्वयं रहि गेलहुँ एहि एफ. एम. बला नकलची लोकक भाषासँ । संयोगवश ओहि दिन तमाकुल निषेध दिवस छल आ एहि अवसरपर शाहरुख़ खानकेँ शुभचिंतक लोकनि हुनका धुम्रपानसँ सम्बंधित विषय वस्तुपर अपन अपन नसीहत दए रहल छलथिन्ह आ ताहि क्रम कियो हुनके आवाज़मे नक़ल करैत एकटा संवादकेँ दम्मा बला अंदाजमे सुना रहल छलाह । एहि तरहे हड़ताल आ तमाकुलक सिट्ठीसँ कन्छिआइत-कन्छिआइत अपन गंतव्य धरि पहुँचलहूँ । भरि दिन काज धंधा कए कऽ संध्या काल जखन अपन मरैयामे एलहुँ आ फेर समाचार देखए लगलहुँ जे, कतौ हमरो युवावस्थाक फोटो आबि जए, मुदा से व्यर्थ सोचल कारण फोटो तँ नहिये ऐल आ उलटे युवावस्था पर पूर्ण विराम लागि चुकल छल ।
युवा मित्र लोकनिक लेल ई अविस्मरणीय दिवस छल, किएक तँ सरकार आइ खुलि कए घोषणा कदेलक जे - जे व्यक्ति १६ सँ ३० बरखक अवस्थाकेँ छथि, हुनके टा युवा वर्गकेँ श्रेणीमे राखल जेतन्हि । आजुक दिन हड़ताल झेलब आ की तमाकुल झेलब ओतेक भारी नै छल जतेक की ई वृद्धावस्था झेलब (सरकारक अनुसारे) मोस्किल छल । नै जानि आइ किएक बाजपेयी जीक बड्ड यादि अबै छल, एहि दुआरे की कमसँ कम अपनाकेँ एखन धरि युवा तँ बुझै छलहुँ किएक की हुनक युवा उमेर निर्धारण सीमा छल १३ सँ ३५ बरख धरि छल । मोने मोने ई सोचि बैसल रही जे एखन विवाहक वैधता पाँच बरख धरि आरो अछि,  मुदा ई की ? ई तँ एकाएक राताराती वैधता समाप्त ।
आब कल्पना करए लगलहुँ जे, काल्हि सँ जे घटक एताह, हुनका आँगुरपर गानि-गानि कऽ जन्म तिथि , मैट्रिक, इंटर, बी.ए. पासकेँ इसवी कहबन्हि आ ताहि गणनामे जँ कतहु चूक भेल तँ बुझू जे ई कलिजुग बिना गृहस्थाश्रमे केँ समाज सेवामे बीति जाएत । मोनेमोन फेर भोला बाबाकेँ गोहराबए लगलहुँ, “हे बाबा ! एहेन अनर्थ किएक केलहुं ? कम सँ  कम हमर वियाह जवानीमे तँ होमय दैतौं।
बड़ बेस! रातिमे सूतल रही, की देखै छी स्वप्नमे साक्षात् त्रिलोकीनाथ, गर्दैनमे फुफकारैत जुआएल गहुँमन साँप, हाथमे त्रिशूल आ डमरू, बाघक चामक ठेहुन धरि गमछा बना नुरियेने, सौंसे  देहमे शमसानक छाउर हसोथने, हमरा सिरमा लग आबि ठाढ़ भऽ गेलाह आ कहए लगलाह, “हौ बौआ! हम दिने तोहर बात सुनै छलहु, मुदा ओतेक लोकक बीचमे कोना भेंट करितौं तैं एखन एकांतमे कहै छियह! तोहर मोन एतेक छोट किएक छह ?”
कहलियैंह, ‘मोन छोट कोना नै हैत बाबा ? ई सरकार दुखी कऽ देने अछि । कहू तँ? वस्तुक दाम बढ़ा कए आकाश ठेका देने छै आ मनुक्खक युवा उमेर निर्धारण सीमामे दिनसँ दिन कोताहिये केने जाइ छै । देखियौ तँ बाजपेयी जी कतेक बढ़िया केने रहथिन्ह,  उमेर सीमा निर्धारण ।
बाबा हमरा हतोत्साहित देखि कहलाह, “सुनअ पढ़ल लिखल छह बात बुझबाक चेष्टा करअ । हौ ! बाजपेयीकेँ समयमे प्रधानमंत्रीसँ लऽ राष्ट्रपति तक केकरो देखलहक जे सोंगर पर ठाढ़ छल ? किएक तँ बेसी अवस्थाक रहितहु सभ अपनाकेँ जवान बुझैत छल, तैं ओ सीमा नमहर छलैक, ओनहियो ई सरकार संतुलन बनबए लेल महगी बढ़ा कऽ उमेर घटा रहल अछि किएक तँ बूझल छैक जे एहेन महगाईमे लोकक गुज़र बसर केनाइ आ जीयब कतेक मोसकिल छ,ै तैं मनुक्ख जतबा दिन जीत तहीमे अवस्थाक वर्गीकरण तालिका बनाओल जए । मोन छोट नहि करअ आ चिंता छोड़अ आ हमरा ई वचन दए जे काल्हि सँ तोँ अपन समयकेँ अनाप सनापमे एक्कहु क्षण व्यर्थ नहि करबह, आ जतबा दिनक ओरदा छह ओतबे दिनमे गृहस्थ जीवनकेँ संग संग सामाजिक दायित्वक निर्वाहमे ततेक बेसी समर्पित भजाऽ  जे दिनानुदिन तोहर कीर्तिसँ ई समाज, देश, कर-कुटुम, परिवार सभ तोरापर गर्व करए  लागअ । एकटा बात आर मोन रखिहजे, जे व्यक्ति कर्मठ अछि ओ सतत जुआने रहैत अछि किएक तँ ओ अपन लक्ष्यकेँ पाबए लेल दृढसंकल्पित रहैत अछि ओकर लक्ष्यकेँ आगाँ वृद्धावस्था सेहो युवावस्था सदृश्य लगैत छैक । अंतमे शुभानि सन्तु !!
कहि कए अन्तर्ध्यान भऽ गेलाह । जखनसँ निन्न खुजल तखनसँ अपनाकेँ एकदमसँ हट्ठा-कट्ठा जवान प्रतीत होमय लागल आ भोला बाबाकेँ ध्यानमे रखैत अपन कर्ममे लागि गेलहुँ ।


मनीष झा "बौआभाइ"
ग्राम+पो.-बड़हारा,भाया-अंधराठाढी(मधुबनी)  
मो.-09717347995 (दिल्ली)
उपलब्धि संग्रह: http://writermanishjha.blogspot.com

बुधवार, 29 मई 2013

बुढ़ारी

- प्रणाम टी॰टी॰ बाबू, हम राम बाजै छी ।
- खुश रहू ।की हाल-चाल ?
- ठीक अछि ।कने एकटा प्रयागक टीकट कन्फॉर्म करबा दिअ ने ।
- भऽ जेतै, मुदा एकाएक कोन काज पड़ि गेल?
- हमरा काज नै अछि ।ओ बौआ काका मास करऽ जेथिन तेँ चाही ।
- बौआ झा मास कऽ की करथिन ? जुआनीमे एक्को टा साधुकें जलखइ नै करेलनि आब भण्डारा कऽ की हेतनि ?
- नै बुझलियै आब बुढ़ारी आबि गेलै ने ।जुआनीमे अपनाकें बलगर बुझलखिन, मुदा मनुखक कमजोरी तँ बुढ़ारियेमे पता चलै छै । पुरनका शेर आब बिलाइ बनि गेल छै ।

अमित मिश्र

मंगलवार, 28 मई 2013

मेला


"चलू. . .चलू . . . सगरो गाम जा रहल छै . . .अहूँ चलू ।" कमला बाबू सत्तर वर्षक उमरिमे बीस वर्ष बला जोश देखबैत कहलनि " यौ रमेश जी, की सोचै छी? चलू ने, बड नीक मेला लागल छै ।"
रमेश बाबू लुंगी आ हाफ गंजीमे दलानक एकातमे बनाओल छोट-छीन उपवनमे टहलैत छलथि ।कमला बाबूक निमन्त्रण सूनि बाटपर आबि उपहास करैत कहलनि " अहीं जाउ, हम जा कऽ की करब? हमरा घरमे तँ सदिखन मेले रहैत अछि ।" फेर छाती छत्तीस इन्च फुलबैत बाजलनि "असली मेला तँ तखन छै जखन बेटा-पुतहु बिन झगड़ा-झाँटी केने एक छप्परक तऽर खुशी-खुशी जीबैत अछि । जा ! कोन बात पसारि देलौं, अहाँक बेटा तँ अहाँकें बारि कऽ अलग रहैत अछि ।अहाँ की बुझबै एहि मेलाक रस ।"
रमेश बाबूक जबाब सूनि कमला बाबू बिनु किछु बाजने घऽर घुरि गेलाह ।

अमित मिश्र

जोगार

- की यौ सर, सुनलौं कम्पनीसँ कर्मचारीकें हटाओल जा रहल छै ?
- ठीके सुनलौ रानी, मुदा एहिसँ अहाँकें कोन लेना-देना अछि ?
- डर अछि जे कहीं हमरो नै हटा देल जाए ।
- जे काजमे कमजोर छै तकरा हटाओल जाएत, अहाँकें तँ . . . ।
- काज तँ हमहूँ कम्मे करै छी सर ।
- दिनका काजमे रतुको काज जोड़ि दियौ ।तखन बेसी भऽ जेतै ।
- हँ, एहि कम्पनीमे रहबाक लेल तँ रतुके काज जोगारक काज करै छै ।
- अहाँ तँ सब बुझिते छी ।फूलक बिछौन बिछा कऽ राखब ।आइ राति आबि जाएब ।भोरे अहाँक नोकरी पक्का ।

अमित मिश्र

रविवार, 26 मई 2013

जमाना

- यौ, कते मास भऽ गेल ।एक मासक पाइ गाम पठा दिऔ ।
- ठीके कहलौं अहाँ, हम तँ बिसरिये गेल छलौं ।
- जे-जेना । काल्हि मनीआर्डर कऽ देबै ।
- हाय रे पगली ।तोहर सुझावपर चलब तँ दिन-दहाड़े लुटा जाएब ।
- से कोना ?
- से एना जे गामक लोक आ डाकपीन लाख टकाक मनिआर्डर देखतै तँ सब बुझि जेतै जे छौड़ा बड कमाइ छै ।
-ई तँ खुशीक बात ने ? इलाकामे नाम भऽ जाएत ।
- सत्तमे मौगीकें दिमाग नै होइ छै ।गे, आब पहिले बला जमाना नै छै ।आब जखने पता चलतै जे फल्लाँ मातबर छै बस अपहरण आ लूटक योजना बनऽ लागतै ।
- सत्त कहै छी अहाँ ।आब जमाना बड खराब भऽ गेलै ।मनुखता निपत्ता भऽ गेलै ।

अमित मिश्र

दरमाहा

-नमस्कार घनश्याम बाबू, सब नीके ने?
-नमस्कार, नमस्कार ।सब कुशल अछि ।अपन बताउ?
-की कहौं, हालत पस्त अछि ।
-से किए यौ? हम तँ मजामे छी ।
- छऽ माससँ दरमाहा नै भेटल ।ओना अहाँक तँ अनुबन्धपर छी तखन एते ठाठ-बाठ कोना ?
-असलमे सरकारी दरमाहा नै अछि तँ की भेल, जनताक दरमाहमे कोनो कमी नै अछि ।
-जनता अहाँकें पाइ किए देत?
-आब मूर्खकें के समझेतै? टेबुलपर नै जा कऽ हमरा मार्फत काज करबाएत तँ दरमाहा देबैये पड़तै ने ?

अमित मिश्र

हँसी



-कतऽ गेलियै यै ? किछु बाजू तँ ।
-दुर . . .हमर बाँहि छोरू ।अहाँसँ बात नै करब हम ।
-हे हे एना जुनि करू ।अहाँ बतिआएब नै तँ हमर प्राणे चलि जाएत ।
-जाए दिऔ ।बढ़ियें हेतै ।
-आखिर हमरापर एतेक तामस कोन बातक अछि ?
-सभक पति अपन पत्निकें सिनेमा-सर्कस घुमाबै छै आ अहाँ दिन-राति दर्शनो नै दैत छी ।काजो करैक एकटा सीमा होइ छै ।
-अच्छे, एकर तामस छै ।कने लऽग आउ . . .हम पाइ कामाइ छी जाहिसँ नून-हरदि चलैत रहए आ अहाँ चिन्ता मुक्त भऽ सदिखन हँसैत रहू ।असलमे अहाँक हँसी किनबाक लेल घरसँ बाहर रहै छी ।

अमित मिश्र

शनिवार, 25 मई 2013

दया

एक बेर एकटा कविसँ किछु कविताक माँग भेलै ।कवि जी लिखबाक लेल बैसि गेलाह, मुद किछु फुराइते नै छलन्हि ।ओ दया, नि:स्वार्थ भरल भावपर लिखऽ चाहैत छलथि मुदा एहन भाव निपत्ता भऽ गेलै ।भरि दिन परेशान रहलाक बादो स्थिती जसकें तस ।थाकि-हारि झलफल बेर टहलऽ निकलि गेलनि ।बाटमे एकटा भीखमंगाकें होटल बला गरिया रहल छल, मुदा भीखमंगा टससँ मस नै भेल ।बेर-बेर पेट देखा रहल छल ।हारि कऽ होटल बला किछु बासी कचौड़ी दऽ देलकै ।भीखमंगा खुशी-खुशी चलि देलक ।चारिये डेग गेलापर एकटा दोसर भीखमंगाकें भूखे कुहरैत देखलक ।ओ अपन भीख बला कचौड़ी ओकरा दऽ अपन बाट धऽ लेलक ।ई देख कवि जीकें सबटा शब्द भावक संग फुराए लागलनि ।ओ खुश छलथि जे एखनो देशमे दया बचल अछि ।

अमित मिश्र

शुक्रवार, 24 मई 2013

धर्म

विहनि कथा-29
* धर्म *

सकीना अपन पति रहमाक संग बड सुन्दरसँ जिनगी काटि रहल छलीह ।एक दिन रहमान बड प्रेमसँ एकटा कथा सकीनाकें सुनबैत छल ।ओहि कथामे एक ठाम तीन बेर तलाक . . .तलाक . . .तलाक लिखल छल ।रहमान एकरो पढ़ि देलक ।ओकर सबटा बात अब्बा सुनैत छलै ।ओ रहमान लऽग आबि बिगड़ैत बाजल "ई की कऽ देलें ?आब तोहर तलाक मान्य भऽ गेलौ ।"
आब मियाँ-बीबीपर पहाड़ खसि पड़लै ।रहमान कतबो मनेलक जे ओकरा तलाकक कोनो जरूरति नै छै ।ई प्रेमे छल ।मुदा धर्म मानै लेल तैयार नै भेलै ।आब सकीना आन पुरूषसँ निकाह कऽ, तीन मास काटि ,ओकरासँ तलाक लेलाक बादे रहमानसँ निकाह कऽ सकतै ।टोलक लोक सकीनाकें घरसँ निकालि देलकै ।रहमान आ सकीनाक नोर पूछि रहल छल जे एहन धर्म बनाएले किए गेलै जे प्रेमो नै बुझै छै ?

*हम किनको ठेस नै पहुँचाबऽ चाहै छी आ नै कोनो धर्मपर कटाक्ष करै छी ।ई कथाकें मात्र मनोरंजनक नजरिसँ देखल जाए । *
अमित मिश्र

डेराउन चिन्ता

बड़की टा हवेलीक बड़का आँगनमे भाए-बहिन खेलैमे व्यस्त अछि ।भाए डकैतक आ बहिन बटोहीक अभिनय कऽ रहल छल ।भाए बहिनकें पकड़ैत बाजल " सुन बटोही, जतेक पाइ, सोना-चानी छौ सबटा निकाल ।नै तँ एतै टपका देबौ ।"
बहिन कानैत बाजल "हमरा लऽग किछु नै छै ।हमरा छोड़ि दे ।"
भाए भरिगर आवाजमे "छोड़ि कोना देबौ ।संगमे नै तँ घरपर हेतौ ।चल घर ओतै दऽ दिहें ।"
बहिन जोरसँ कानैत "नै नै ।हमरा घरोपर तोरा दै बाला किछु नै छै ।धन स्वरूप मात्र माँ-बाबू छथि ।"
भाए बहिनकें छोड़ैत बाजल "दुर, सबसँ पैघ भीखमंगा तूँ छें ।माँ-बाबू लऽ कऽ की हम अचार बनेबै, राख अपने लऽग ।
दुनूक वार्तालाप सूनि बगलमे बैसल माए-बापकें भविष्यक डेराउन चिन्ता धऽ लेलकै ।

अमित मिश्र

गुरुवार, 23 मई 2013

गंगा स्नान

"एहि बेर तँ गंगा असनान कैये लिअ काकी ।"बलहाबाली लाल काकीकें एहि बेरक कुम्भक महिमाक बखान करैत कहलनि ।अन्तमे लाल काकी तैयार भऽ गेलनि ।निश्चित दिन जीपसँ दरभंगा आबि गेलनि ।
गाड़ी आबैमे देरी छलै तें टीसनसँ बाहर आबि गेलनि ।तखने देखैत छथि जे तीन टा पुलिस एकटा बीस-बाइस वर्षक नवयुवककें लठियाबैत लऽ जाइत छल ।युवक चिचियाइत छल "हम छात्र छी, पाकेटमार नै ।हम किछु नै केलौं ।छोड़ि दिअ . . ."
पुलिस ओकरा फटकारैत कहलकै "उ तँ हमरो पता है ।लेकिन रुपैया दो तखन छोड़ेगा ।"
काकीकें रहल नै गेलै ।गंगा स्नान लेल जे पाइ छल सब पुलिसकें दऽ युवककें छोड़ा लेलनि ।युवककें पुछलापर कहलनि "तोरामे हमर भुतलाएल बेटा देखाइ देलक तें हम तोरा छोड़ेलिअ ।"
ई कहि लाल काकी पाइक खगतामे पएरे गाम दिश चलि देलनि ।

अमित मिश्र

बुधवार, 22 मई 2013

परिणाम

एकटा महिला डाक्टरसँ" डाक्टर साहेब कने अल्ट्रासाउण्ड कऽ दिअ ।"
डाक्टर बाजल "किए बेटी नै सोहाइत अछि की ?जँ भ्रुण हत्या चाहैत छी तँ हम नै करब ।"
ओ महिला कने हड़बड़ाइत बाजल "नै नै, हमर खानदानमे बेटी नै अछि ।बेटीये चाही ।" ओकर मुखारबिन्दपर झूठ झलकि रहल छल ।बात बढ़बैत "जँ बेटी हएत तँ दूना फीस देब ।"
दूना फीस सूनि लोभ वस डाक्टर झूठ कहलकै जे बेटीये अछि ।
किछु दिन बाद ओ महिला बच्चा खसा लेलक ।एहि क्रममे माए बनबाक क्षमतो नै बचलै ।तखन पता चललै जे असलमे भ्रुण बेटेक छलै ।आँखि नोरा गेलै ।आब जीवन भरि नि:सन्तान रहबाक दुख जीवाक ताकत खतम कऽ देने छलै । झूठ आ हत्याक बड भारी परिणाम भेटलै ओकरा ।

अमित मिश्र