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शनिवार, 29 दिसंबर 2012

गजल

दिल्लीँ मेँ भेल हिंसा आ बलात्कार पीड़िता के फोटो देख के मोनसँ अनायास निकलल किछु पाँति -

गजल

बिना दागक हमर छल ई चान सन मुँह
कुकर्मी नोचि लेलक मिल राण सन मुँह

कि सपना देखलौँ आ लुटि गेल जिनगी
घटल एहन बनल देखूँ आन सन मुँह

रमल रहियै अपन धुनमेँ आ कि एलै
चिबा गेलै हमर सुन्नर पान सन मुँह

बनल नै स्त्री समाजक उपभोग चलते
किए तैयो मनुख नोचै चान सन मुँह

हमर सभ लूटि गेलै ईज्जत व चामोँ
कि करबै जी कऽ लेने छुछुआन सन मुँह

बहरे-करीब मने
"मफाईलुन - मफाईलुन-फाइलातुन"
मात्रा क्रम-1222 - 1222 - 2122
©बाल मुकुन्द पाठक ।।

गजल

गजल

प्रेम नै भाइ ई जहर छै
पोखिरसँ उठल बुझु लहर छै

प्रेम मेँ जान जाएत चलि
तड़पि के मरब ई जहर छै

नै परु प्रेमके जाल मेँ
एखनो एकरे पहर छै

नै करु प्रेमके ई नशा
ई तँ मिसरी धुलल जहर छै

ई मुकुन्दोँ फसिकँ ऐहिमेँ
कहलक प्रेम नै जहर छै

*बहरे- मुतदारिक ।
फाइलुन मने दीर्ध-ह्रस्व-दी ­र्ध चारि बेर ।
© बाल मुकुन्द पाठक ।।

हजल

हजल

देखियौ देखियौ जुग केहन भऽ गेलै कक्का यौ
टोपी चश्मा पहिर कऽ चलै छै छौड़ा उचक्का यौ

छमकि कऽ चलैए संगे नटुआ सन केश छै
जीँस टीशर्ट पहिर कऽ अंग्रेज भेल पक्का यौ

चौक पर घूमैत छै बोतल चढ़ा कऽ भोरेसँ
सिगरेटक दिन भरि ई उड़ाबै छोहक्का यौ

अपनाकेँ बड़का ई बुझैत अछि हीरो छौड़ा
मुहँ नै लगाबूँ एकरासँ अछि ई लड़क्का यौ

स्त्री जकाँ श्रृंगार करै छै लगाबैये ठोररंगा
भोरेसँ कटाके दाढ़ी मोछ लागे जेना छक्का यौ

छौड़ी पाछाँ पागल भेल छै काज धाज छोड़िकेँ
हुलिया एकर देखि कऽ मुकुन्द हक्काबक्का यौ

सरल वर्णिक बहर ,वर्ण17
©बाल मुकुन्द पाठक ।।

गजल

गजल

हमरासँ जौँ दूर जाएब अहाँ
रहि रहि इयादि आएब अहाँ

सिनेह लेल अहीँके बेकल छी
छोड़ि कऽ हमरा कि पाएब अहाँ

खोजि खोजि के तँ पागल बनलौँ
बताउ कि कतऽ भेँटाएब अहाँ

किएक लेल एहन प्रेम केलौँ
जौँ ई बुझलौँ नै निभाएब अहाँ

बदलि गेलियै अहाँ कोना कऽ यै
हमरासँ नै बिसराएब अहाँ

हमरा छोड़ि गेलौँ मुकुन्द संग
आब कतेक के फसाँएब अहाँ

सरल वर्णिक बहर ,वर्ण12
©बाल मुकुन्द पाठक ।।

गजल

गजल

सुनु अहाँ कियै हमरा सँ दूर गेलौँ यै
अहीँक चलतै हम तँ नाको कटेलौँ यै

रुप अहाँक देखिकऽ हम तँ मुग्ध भेलौँ
ओहि परसँ कियै ई कनखी चलेलौँ यै

मगन छलौँ अहाँ मेँ काज धाज छोड़िकऽ
प्रेम मेँ तँ हे प्रेयसी जग बिसरेलौँ यै

पढ़बाक उमरि छल छलौँ इक्कीस के
काँलेज के छोड़िकऽ अहाँमेँ ओझरेलौँ यै

मुकुन्द अछि प्रेमी अहाँकँ सभ जानैये
जानसँ बेसी चाहे जे तकरा गंवेलौँ यै

सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 15
©बाल मुकुन्द पाठक ।।

गजल

गजल

आइ हमर मोन बड्ड खनहन अछि
ककरोसँ हमरा तँ नै अनबन अछि

तरुआ तरकारी आ पापड बनि गेल
देखूँ चूल्हा पर भातो ले अदहन अछि

आसिन एलै बजरखसुआँ गर्मी गेलै
ठंढा ठंढा पुरबा बहै सनसन अछि


फेर दुर्गा मेला हेतै नाच आ लीला हेतै
देखूँ खुदरा पैसा बाजै झनझन अछि

घर परिवार मे तिहार के दिन एलै
अंगना मे चलैत नेना ढ़नमन अछि

कनिये दिनके तँ छै ई पावैनक मजा
कातिकक बाद तँ ऊहे अगहन अछि

सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 15
€€बाल मुकुंद पाठक

गजल

गजल

अहाँ बैसला पर कि पाएब एतौ
रहब काजके बिन कि खाएब एतौ
कतोऽ दुख कतोऽ सुख लिखल अछि तँ सबटा
कियै हाथ कर्मसँ हटाएब एतौ

हयौ दोष आ गुणतँ हाएत सभँमेँ
बिना गलत हम नै पराएब एतौ

अहाँ बिसरि अप्पन पुरनका बबंडर
चलूँ नव विचारसँ नहाएब एतौ

कहल केकरो मानबै बात नै जौँ
तँ भूखल अहाँ मरि कनाएब एतौ

बहरे-मुतकारिब ।फऊलुन(मने122)चारि बेर।
~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ बाल मुकुन्द पाठक ।।

गजल

गजल

अहाँ हमरा बिसरि रहलौँ
वियोगे हम तँ मरि रहलौँ
घुसिकँ कोनाकँ देहेमेँ
अहाँ हमरा पसरि रहलौँ

बिसरऽ ई लाख चाही हम
बनिकऽ लस्सा लसरि रहलौँ

कियै केलौँ अहाँ ऐना
करेजसँ नै ससरि रहलौँ

छुटल घर आ अहूँ छुटलौँ
दुखेँ हम आब मरि रहलौँ

बहरे -हजज ।
'मफाईलुन' (मने 1222) दू बेर ।
~ ~ ~ ~ ~ बाल मुकुन्द पाठक ।।

बाल गजल

बाल गजल

मेला चलब हमहुँ कक्का यौ
पहिरब आइ सूट पक्का यौ

खेबै जिलेबी आ झूलब झूला
संगे संग किनब फटक्का यौ

बैट किनब क्रिकेट खेलै ले
आबि कऽ खूब मारब छक्का यौ


साझेसँ अखारामे कुश्ती हेतै
पहलवानोँ तँ छै लडक्का यौ

अन्तिम बेर छी एतौ हम तँ
जाएब बाबू लऽग फरक्का यौ

कोरा मे कने लिअ ने हमरा
ई भीड़ मेँ मारि देत धक्का यौ

चलू ने जल्दी किनै ले जिलेबी
नै तँ उड़ि जाएत छोहक्का यौ

बाबूओसँ बेसी अहीँ मानै छी
छी बड्ड नीक हमर कक्का यौ

सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 11
~ ~बाल मुकुन्द पाठक ।।

गजल

गजल

आँखिसँ खसैत नोर रुकत की नै
नोरक सरस आबो सुखत की नै
सुखिकऽ ठोर आब गेल अछि फाटि
फाटल ठोर फेरोसँ जुटत की नै

बेकल जिनगी भरि गेल दर्दसँ
करेजक बेकलता मेटत की नै

आँखिक पलक फूलि गेल कानि कऽ
बंद भेल आँखि फेरो खुजत की नै

जीबाक चाह तँ हटि गेल मोनसँ
मरलोऽ पर दुख ई छुटत की नै

सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
...............बाल मुकुंद पाठक ।।

बाल गजल

बाल गजल

हाएत दिवाली जड़तै दीप
आँगने आँगन बड़तै दीप
घर दुआरि आँगन सँभमेँ
डेगे डेऽग पर जड़तै दीप

अन्हार रातिमेँ इजोत दैले
मोमबत्ती संगे लड़तै दीप

हम सब खेलब हुक्का पाती
लेसै लेल काज पड़तै दीप

चुक्का डिबिया सबसँ मिलके
गाम प्रकाशसँ भरतै दीप

करै लेल घरकँ द्वारपाली
अन्हार रातिसँ लड़तै दीप

सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 11.
.................................................
..............बाल मुकुंद पाठक ।।

गजल

गजल

आस टूटल भाग भूटल
आँखि इनहोरे सँ शीतल

घुरिकँ आबूँ ई जिनगी मेँ
यै छी अहाँ कियैक रुसल

सिनेह केलौँ तेँऽ दुख पेलौँ
कानियोँ के नै चैन भेटल


लहर उठल करेजासँ
लागै कि जेना साँस छूटल

कि करबै जीके ई जिनगी
अहाँक जौँ ना संग भेटल

आस टूटल भाग भूटल
आँखि इनहोरे सँ शीतल 
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 10

- - - - - - - बालमुकुंद पाठक ।।

गजल

गजल

कि लिखूँ हम गजल उमर नादान अछि
हुनकर दीवाना ई दुनिया जहान अछि

रुपकँ जलवा देखूँ लागै छथि चान सन
गोल गोल गोर गाल पूर्णिमा समान अछि

केश अहाँक रेशम सन आँखि मृग जेना
धायल भेलौँ देखिकँ होश नै ठेकान अछि
...


गुलाबी गाल पर नीक लागै ठोरक लाली
अहीँमे अटिकगेल छौड़ासभँकँ जान अछि

कमर जे लचकैये देखि मोन बहकैये
'मुकुन्द' के लागे जेना हुस्नके दोकान अछि

सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 16
. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .
. . . . . . . . .बाल मुकुन्द पाठक ।।

गजल

गजल

फेर आइ आँखिसँ नोर बहाबै छी

रहि रहि अहीकँ बात घुराबै छी

कतै छै सिनेह ई कोना हम कहूँ

चलि आउ एखनो कियै सताबै छी ।

...

गेलौँ चलि कतौ हमरा बिसरिकँ

साँझेसँ अँहीँ लेल नोर खसाबै छी ।

देखूँ कानि कानि साँझसँ भोर भेलै

भोरे भोर हम मदिरा चढाबै छी ।

मदिरोसँ बढिकँ अँहीँ मे नशा ये

ओहि नशा लेल फेरसँ बजाबै छी ।

नीन्नोँ नै आबै जौँ सपनो मेँ देखतौँ

सुतबा ले कतै मोनकेँ मनाबै छी ।

हाथ जोडिकँ ई कहौँ हे भगवान

कियै नै अहाँ मुकुन्दसँ मिलाबै छी ।।

सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
€€ "बाल मुकुन्द पाठक"