पीठ पर छै बैग बौआ चलल इस्कुल,
लाल पियर ड्रेस चमकै भरल इस्कुल
मांथ टोपी घेँट मे छै लंच लटकल
दाइ संगे चलल मोने रमल इस्कुल
खेल सेहो नीक खेलै छोट बौआ
वर्ग छै मैदान खेलक बनल इस्कुल
चित्र पाड़ै मे लगै छै मोन ओकर
मीठ झगड़ो पर त' खूबे हँसल इस्कुल
नै पहाड़ा पढ़ब नै सीखब ककहरा
आब छै कंपुटर सीखा रहल इस्कुल
भेल छुट्टी संग हल्ला घर चलल ओ
नाम जहिया "अमित" अपनो लिखल इस्कुल
फाइलातुन
2122 तीन बेर
बहरे-रमल
अमित मिश्र
रविवार, 6 मई 2012
गजल
कतय पुरनका गाम हेरायल
किंचित् हमरो नाम हेरायल
प्रेम-सहज, सद्भाव, समर्पण
सचमुच ई परिणाम हेरायल
बुधियरका सब गेल शहर मे
हुनको छन्हि आराम हेरायल
शहर सँ टाका, गामक खेती
सब छूटल, अंजाम हेरायल
सुख-दुख मे जे छल सहयोगी
हृदय-भाव, सत्काम हेरायल
मान करय छल छोट, पैघ के
लागय एखन लगाम हेरायल
सुमन सहोदर भाग्य सँ भेटल
पुनि ताकू अछि राम हेरायल
किंचित् हमरो नाम हेरायल
प्रेम-सहज, सद्भाव, समर्पण
सचमुच ई परिणाम हेरायल
बुधियरका सब गेल शहर मे
हुनको छन्हि आराम हेरायल
शहर सँ टाका, गामक खेती
सब छूटल, अंजाम हेरायल
सुख-दुख मे जे छल सहयोगी
हृदय-भाव, सत्काम हेरायल
मान करय छल छोट, पैघ के
लागय एखन लगाम हेरायल
सुमन सहोदर भाग्य सँ भेटल
पुनि ताकू अछि राम हेरायल
शनिवार, 5 मई 2012
गजल-मैथिल मिथिला नाज हमर
भेद भाव बिनु सबकय जोड़ू, बाँचत तखन समाज हमर
सबकियो मिलिकय बाजू सगरे, चाही मिथिला राज हमर
राज बहुत पहिने सँ मिथिला, छिना गेल अछि साजिश मे
जाबत ओ सम्मान भेटत नहि, बाँचत कोना लाज हमर
विविध विषय के ज्ञानी मैथिल, दुनिया मे भेटत सगरे
मुँह बन्द राखब कहिया तक, के सुनतय आवाज हमर
आजादी के बादो सब दिन, भेल उपेक्षा सरकारी
बहल विकासक गंगा प्रायः, बाँचल खाली काज हमर
सज्जनता श्रृंगार सुमन छी, दिल्ली बुझलक कमजोरी
जागू मिथिलावासी आबो, मैथिल मिथिला नाज हमर
सबकियो मिलिकय बाजू सगरे, चाही मिथिला राज हमर
राज बहुत पहिने सँ मिथिला, छिना गेल अछि साजिश मे
जाबत ओ सम्मान भेटत नहि, बाँचत कोना लाज हमर
विविध विषय के ज्ञानी मैथिल, दुनिया मे भेटत सगरे
मुँह बन्द राखब कहिया तक, के सुनतय आवाज हमर
आजादी के बादो सब दिन, भेल उपेक्षा सरकारी
बहल विकासक गंगा प्रायः, बाँचल खाली काज हमर
सज्जनता श्रृंगार सुमन छी, दिल्ली बुझलक कमजोरी
जागू मिथिलावासी आबो, मैथिल मिथिला नाज हमर
शुक्रवार, 4 मई 2012
गजल- भास्कर झा
लाज करैत जं बात जे करबै , निरलज हम करबे करब
आंखि नुका कए जौं अहां देखब, नैनक ताप सहबे करब ।
सखी बहिनपा संग चोरबा नुक्की, खेलैत काया कितकित
एना करब जं सदिखन खेला, प्रेमक खिस्सा कहबे करब ।
कोमल अंगसं फ़ुटैत तरेगन, करेज इजोरिया भेल दपदप
नैसर्गिक सौन्द्रर्य देखि कए, गजलक पाति लिखबे करब ।
मधुर भाव के गाम बनल जौं, रचनाक मन मचान बनत
आसीन भए शान्त -प्रान्त में, सुन्नर दृश्य देखबे करब ।
----------------------------भास्कर झा 04/05/2012
लेबल:
गजल,
भास्करानंद झा भास्कर
गजल
जहिया सँ अहाँ गेलौँ हमर कलमे नै चलै यै
मोनहि मोन सबटा रचना कुहरि क मरै यै
लिखबा क अछि देखू बात बहुत रास हमरा
अहाँक बिरह में त'जरलाहा हाथो नै बढ़ै यै
जानि नै बुझि की भेल अछि किछ दिन सौं हमरा
मोन में त' ऐछ बहुते किएक नै शब्द फुरै यै
आबू शिघ्रहीं हमर मोनक अहिं छि त' रचना
रहए छी आगू अहाँ सबटा मोती सन जरै यै
रहब आँखी सोझ में सुझाई अछि जेना सबटा
जहिना महाकाव्य कवि पोथी छन में भरयै यै
सरल वर्णिक बहर वर्ण ---18
गजल
किछु कुबेर के चक्रव्यूह मे, कानूनन मजबूर छी
रही कृषक आ खेत छिनाओल, तहिये सँ मजदूर छी
छलय घर मे जमघट हरदम, हित नाता सम्बन्धी के
कतऽ अबय छथि आब एखन ओ, प्रायः सब सँ दूर छी
काज करय छी राति दिना हम, तैयो मोन उदास हमर
साहस दैत बुझाओल कनिया, अहाँ हमर सिन्दूर छी
एहेन व्यवस्था हो परिवर्तित, लोकक सँग आवाज दियौ
एखनहुँ आगि बचल अछि भीतर, झाँपल तोपल घूर छी
बलिदानी संकल्प सुमन के, कहुना दुनिया बाँचि सकय
नहि बाजब नढ़िया केर भाषा, ई खटहा अंगूर छी
रही कृषक आ खेत छिनाओल, तहिये सँ मजदूर छी
छलय घर मे जमघट हरदम, हित नाता सम्बन्धी के
कतऽ अबय छथि आब एखन ओ, प्रायः सब सँ दूर छी
काज करय छी राति दिना हम, तैयो मोन उदास हमर
साहस दैत बुझाओल कनिया, अहाँ हमर सिन्दूर छी
एहेन व्यवस्था हो परिवर्तित, लोकक सँग आवाज दियौ
एखनहुँ आगि बचल अछि भीतर, झाँपल तोपल घूर छी
बलिदानी संकल्प सुमन के, कहुना दुनिया बाँचि सकय
नहि बाजब नढ़िया केर भाषा, ई खटहा अंगूर छी
गजल
धीया-पुता दुख नहि बूझय, हँसी मुँह पर साटय छी
खरचा एक पुराबय खातिर, दोसर खरचा काटय छी
आजुक युग मे कम्प्यूटर बिनु, नवतुरिया सब की पढ़तय
मुदा माँग पर, टाका नहि तेँ, बच्चा सब केँ डाँटय छी
बनल बसूला सम्बन्धी-जन, बाजय मीठगर बोली यौ
दुख मे रहितहुँ पर विवेक सँ, सभहक हिस्सा बाँटय छी
अपन हृदय मे भाव जेहेन छल, बुझलहुँ छै तेहने दुनिया
चीन्हा गेल अछि अप्पन-अदना, हुनके सबकेँ छाँटय छी
सुमन संगिनी जीवन भेटल, रूप मनोहर काया संग
दुख भीजल तऽ चोकर आमक, रूप देखिकय फाटय छी
खरचा एक पुराबय खातिर, दोसर खरचा काटय छी
आजुक युग मे कम्प्यूटर बिनु, नवतुरिया सब की पढ़तय
मुदा माँग पर, टाका नहि तेँ, बच्चा सब केँ डाँटय छी
बनल बसूला सम्बन्धी-जन, बाजय मीठगर बोली यौ
दुख मे रहितहुँ पर विवेक सँ, सभहक हिस्सा बाँटय छी
अपन हृदय मे भाव जेहेन छल, बुझलहुँ छै तेहने दुनिया
चीन्हा गेल अछि अप्पन-अदना, हुनके सबकेँ छाँटय छी
सुमन संगिनी जीवन भेटल, रूप मनोहर काया संग
दुख भीजल तऽ चोकर आमक, रूप देखिकय फाटय छी
गुरुवार, 3 मई 2012
गजल
एक दू रंजू सन सेनानी शहीद भेली सौ रंजू उपारजन अवश्य हेतै
शोणितक एक-एक बुन के लो' क' छोरत हिसाब मिथिला सब दुश्मन सौं
किछ भ' जाय आब त' मिथला पृथक राज बनि क' स्वर्गासन अवश्य हेतै
उज्जर बान्हने छी कफ़न मांथ पर क्रांति ध्वज आब फहरायेत रहत
सूर्य सन चमके मुखमंडल मिथिला रिपु मुख चूरासन अवश्य हेतै
निश्चय स्वर्ण आखर में नाम शहीदक मानचित्र लिखायेत मिथिला क'
गोबर सौं पोति देब नाम दानव कए जरल कोयलासन अवश्य हेतै
अपन स्वराज्यक जौं देखलौं सपन हम त' कोन बरका अपराध छैक
कतबो खौन्झेते दुश्मन सब मिथिला बस आब मिथिलासन अवश्य हेतै
{रूबी झा }
गजल
अहाँक साधना मात्र सौं हम प्रेम करै छी
अहाँक भावना मात्र सौं हम प्रेम करै छी
देखू त' हमरा अगल- बगल नै छी मुदा
अहाँक कामना मात्र सौं हम प्रेम करै छी
कहिओ एको घरी अहूँ याइद केने हैब
त' ओहि तुलना मात्र सौं हम प्रेम करै छी
हम जतए छी अहिंक छी आ सपना सेहो
त' ओहि सपना मात्र सौं हम प्रेम करै छी
एको दिन हमरा सौं अहूँ प्रेम केने हैब
अहाँक प्रेरणा मात्र सौं हम प्रेम करै छी
प्रतिक्षा करैत रहे छी ब्याकुल भ' अहाँ के
अहाँक सामना मात्र सौं हम प्रेम करै छी
(सरल वर्णिक बहर,वर्ण-१६)
रूबी झा
गजल
साओंन आओल नै आओल हुनक याइद आबिए गेल मुदा
आइंख हमर क्यो रंजित नै देखल नोर बहिए गेल मुदा
हस्त लिखित मेहँदी भठरंगल डाढ़ियो सौं पात बिलायेल
जहिये प्रितम के आगमन सबटा पात झरिए गेल मुदा
कोनो मधुर भावना उमरल पियासल मोनक आँगन में
नाचो लागल मोनक पखेरू पहुँच एता डरिए गेल मुदा
आबू कागा बैसु मुडेर चढ़ी नीक सौं कुचरि- कुचरि क जाऊ
आवन सुनि प्रीतम क' कने काळ आर अटकिए गेल मुदा
कतेक दिन सौं गप्पो नै भेल अछि नै कोनो चिठ्ठी पत्री भेंटल
सबटा इ मन्ग्रन्थ कथा ''रूबी'' त' सपन में रचिए गेल मुदा
(सरल वर्णिक बहर,वर्ण -२३)
रूबी झा
गजल
कहू की, कियो बूझि नै सकल हमरा
हँसी सभक लागल बहुत ठरल हमरा
कियो पूछलक नै हमर हाल एतय
कपारे तँ भेंटल छलै जरल हमरा
करेजा सँ शोणित बहाबैत रहलौं
विरह-नोर कखनो कहाँ खसल हमरा
तमाशा बनल छी, अपन फूँकि हम घर
जरै मे मजा आबिते रहल हमरा
रहल "ओम" सदिखन सिनेहक पुजारी
इ दुनिया तँ 'काफिर' मुदा कहल हमरा
बहरे-मुतकारिब
फऊलुन (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ) - प्रत्येक पाँति मे चारि बेर
गजल
हम जन्म कें टुगर छी प्रेमक लेल तरसैत रहलौं
भेटल किरण एक आसक तकरो त' मिझबैत रहलौं
दुख एहि कें केखनो नै की प्रेम किछ नै पएलौं
अफसोस की एहि दुनिआ में हमहुँ जीबैत रहलौं
चमकैत सभ बस्तु कें हम अनजान में सोन बुझलौं
सोना जखन हम पएलौं नै बुझि क' हरबैत रहलौं
किछु नै रहल आब अपने कें बिसरि में लागि गेलौं
लोटा भरल भाँग में सब किछु अपन गमबैत रहलौं
आँखिक बिसरि गेल आसा,अनुराग सबटा बिसरलौं
गेलौं हराएब दुख तन-मन अपन बिसरैत रहलौं
( बहरे मुजस्सम वा मुजास
2212-2122, दु-दु बेर सभ पांति में )
जगदानन्द झा 'मनु'
लेबल:
गजल,
जगदानन्द झा 'मनु'
गजल
किछु कुबेर के चक्रव्यूह मे, कानूनन मजबूर छी
रही कृषक आ खेत छिनाओल, तहिये सँ मजदूर छी
छलय घर मे जमघट हरदम, हित नाता सम्बन्धी के
कतऽ अबय छथि आब एखन ओ, प्रायः सब सँ दूर छी
काज करय छी राति दिना हम, तैयो मोन उदास हमर
साहस दैत बुझाओल कनिया, अहाँ हमर सिन्दूर छी
एहेन व्यवस्था हो परिवर्तित, लोकक सँग आवाज दियौ
एखनहुँ आगि बचल अछि भीतर, झाँपल तोपल घूर छी
बलिदानी संकल्प सुमन के, कहुना दुनिया बाँचि सकय
नहि बाजब नढ़िया केर भाषा, ई खटहा अंगूर छी
रही कृषक आ खेत छिनाओल, तहिये सँ मजदूर छी
छलय घर मे जमघट हरदम, हित नाता सम्बन्धी के
कतऽ अबय छथि आब एखन ओ, प्रायः सब सँ दूर छी
काज करय छी राति दिना हम, तैयो मोन उदास हमर
साहस दैत बुझाओल कनिया, अहाँ हमर सिन्दूर छी
एहेन व्यवस्था हो परिवर्तित, लोकक सँग आवाज दियौ
एखनहुँ आगि बचल अछि भीतर, झाँपल तोपल घूर छी
बलिदानी संकल्प सुमन के, कहुना दुनिया बाँचि सकय
नहि बाजब नढ़िया केर भाषा, ई खटहा अंगूर छी
मंगलवार, 1 मई 2012
गजल
खून सँ भिजलै धरती मिथला बनबे करतै
आब जोड लगाबे कियो झंडा फहरेबे करतै
सुनु बलिदानी सुनु शैनानी आब दिन दूर नै
विश्वक नक्सा में मिथिलाक नाम देखेबे करतै
कतबो चलतै बम निकलै चाहे हमर दम
क्रांति बढल आगु आब जुनि इ रुकबे करतै
बहुत छिनलक सभ नै सहबौ आब ककरो
गर्म सोनित त आब हिलकोर मारबे करतै
एक खुनक बूंद सँ सय-सय रंजू जन्म लेतै
आताताई सँ बदला ओ चूनि-चूनि लेबे करतै
(सरल वर्णिक बहर, वर्ण-१८)
जगदानन्द झा 'मनु'
-
लेबल:
गजल,
जगदानन्द झा 'मनु'
संस्कार सन्तान मे
आनल जायब एहिना हमहुँ, आयल अचानक ध्यान मे
बाजी सब कियो राम नाम संग, सभहक गाति एहने होइछै
बाहर आबिते फूसि फटक्कर, केलहुँ शुरू दलान मे
बात सदरिखन की लऽ एलहुँ, की लऽ जायब दुनिया सँ
मुदा सहोदर सँ झगड़ा नित, जुड़ल स्वार्थ सम्मान मे
भाग्य लिखल जे हेबे करतय, काज करय के काज की
बाजू एतबे चिकरि चिकरि कय, खेलू ताश मचान मे
सुमन मनुक्खक जीवन भेटल, घटना छी अनमोल यौ
सफल तखन पल पल जीवन के, संस्कार सन्तान मे
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