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शनिवार, 21 अप्रैल 2012

गजल

टोना ओहे जे टोनै सभकेँ
तारी  ओहे जे तारै सभकेँ 

लेखक ओहे जे मानै मनकेँ  
रचना सभ हुनकर छूबै सभकेँ  

कनियाँ  ओहे जे भाबै वरकेँ   
सासुरमे अपना बूझै सभकेँ 

नेता ओहे जे माने विधि नै 
जूता मुक्का जे खालै सभकेँ  

घरकेँ  बेटा  नै राखे  मनदू 
आश्रम आगू ओ जीतै सभकेँ  

(मात्राक्रम - नअ नअटा दीर्घ सभ पाँतिमे)  

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

विहनि कथा


विहनि कथा
कपारक लिखल
शर्माजीक आफिस शनि आओर रवि सप्ताह मे दू दिन बन्न रहै छैन्हि। आइ शनि छल। आफिस बन्न छल आ शर्माजी दरबज्जा पर बैसल छलाह। तावत एकटा भिखमंगा दरबज्जा पर आएल आ बाजल- "मालिक दस टाका दियौ। बड्ड भूख लागलए।" शर्माजी बजलाह- "लाज नै होइ छौ। हाथ पएर दुरूस्त छौ। भीख माँगै छैं। छी छी छी।" भिखमंगा बाजल- "यौ मालिक, पाई नै देबाक हुए तँ नै दियऽ, एना दुर्दशा किएक करै छी। हम जाइ छी।" ओकरा गेलाक बाद शर्माजी खूब बडबडयला। देशक खराप स्थित सँ लऽ कऽ भिखमंगाक अधिकताक कारण आ नै जानि की की, सब विषय पर अपन मुख्य श्रोता कनियाँ केँ सुनबैत रहलाह।
दुपहर मे भोजन कएलाक उपरान्त आराम करै छला की कियो गेट ठकठकाबऽ लगलै। निकलि कऽ देखैत छथि एकटा त्रिपुण्ड धारी बबाजी ठाढ छल। हिनका देखैत ओ बबाजी बाजऽ लागल- "जय हो जजमान। दरिभंगा मे एकटा यज्ञक आयोजन अछि। अपन सहयोगक राशि पाँच सय टाका दऽ दियौक।" शर्माजी- "हम किया देब?" बबाजी- "राम राम एना नै बाजी। पुण्यक भागी बनू। फलाँ बाबू सेहो पाँच सय देलखिन्ह। अहूँ पुण्यक भागी लेल टाका दियौ।" शर्मा जी- "हमरा पुण्य नै चाही। हम नरक जाइ चाहै छी। अहाँ केँ कोनो दिक्कत? बडका ने एला हमरा पुण्य दियाबैबला।" ओ बबाजी बूझि गेल जे किछु नै भेंटत आ ओतय सँ पडा गेल।
साँझ मे शर्माजी लाउन मे टहलै छलाह। सामने सँ तीन टा खद्दरधारी ढुकल आ हुनका प्रणाम कऽ कहलक- "विधान सभाक चुनाव छैक। दिल्ली सँ फलाँ बाबू एकटा रैली निकालबाक लेल आबि रहल छथि। ऐ मे बड्ड खरचा छैक। अपने सँ निवेदन जे दस हजार टाकाक सहयोग करियौक।" शर्माजी बिदकैत बाजलाह- "एहि लाउन मे टाकाक एकटा गाछ छै। अहाँ सब ओहि मे सँ टाका झारि लियऽ।" एकटा खद्दरधारी बाजल- "हम सब मजाक नै कऽ रहल छी आ आइ कोनो बहन्ना नै चलत। टाका दियौ अहाँ। अहाँक बूझल अछि ने जे हमरे सभक पार्टीक सरकार छै। अहाँक बदली तेहन ठाम भऽ जायत जे माथ धुनबाक अलावा कोनो काज नै रहत।" शर्माजी गरमाइत बाजलाह- "ठीक छै हम माथ धुनबा लेल तैयार छी। अहाँ सब जाउ आ बदली करबा दियऽ। निकलै छी की पुलिस बजाबी।" खद्दरधारी सब धमकी दैत ओतय सँ भागि गेल।
रातिक तेसर पहर छल। शर्माजी निसभेर सुतल छलाह। एकाएक हुनकर निन्न ठकठक आवाज पर उचटि गेलैन्हि। कनियाँ केँ उठा कऽ कहलखिन्ह जे कियो दरबज्जाक गेट तोडि रहल अछि। दुनू परानी डरे ओछाओन मे दुबकि गेलैथ। तावत गेट टूटबाक आवाज भेलै आ टूटलहा गेट दऽ कऽ सात टा मोस्चंड शर्माजी केँ गरियाबैत भीतर ढुकि गेलै। सब अपन मूँह गमछी सँ लपेटने छल। एकटाक हाथ मे नलकटुआ सेहो छलै। बाकी दराती, कुरहरि, कचिया आ लाठी रखने छल। एकटा लाठी बला आबि कऽ हुनका जोरगर लाठी पीठ पर दैत कहलकन्हि- "सार, सबटा टाका आ गहना निकालि कऽ सामने राख। नै तँ परान लैत देरी नै लगतौ।" शर्माजी गोंगयाइत बजलाह- "हमरा नै मारै जाउ। हम हार्टक पेशेन्ट छी। इ लियऽ चाबी आ आलमीरा मे सँ सब लऽ जाउ।" ओ सब पूरा घर हसौथि लेलक। पचास हजार टाका आ दस भरि गहना भेंटलै। फेर हिनकर घेंट धरैत डकूबाक सरदार बाजल- "तौं तँ परम कंजूस थीकैं। कतौ खरचो तक नै करै छैं। एतबी टाका छौ। सत बाज, नै तँ नलकटुआ मूँह मे ढुका कऽ फायर कऽ देबौ।" इ कहैत ओ नलकटुआ हुनकर मूँह मे ढुकेलक। ओ थर थर काँपैत बाजऽ लगलाह लैट्रिनक उपरका दूछत्ती मे दू लाख टाका आ बीस भरि गहना राखल छै। लऽ लियऽ आ हमरा छोडि दियऽ। सरदार दू जोरगर थापर दैत कहलकैन्हि आब लैन पर एले ने, आर कतऽ छौ बाज। शर्माजी किरिया खाइत बजलाह आब किछो नै छै बाबू, छोडि दियऽ हमरा। डकैत सब सबटा सामान समटि कऽ विदा भऽ गेल। थोडेक कालक बाद हिम्मति कऽ कऽ ओ चिचियाबऽ लगलाह- "बचाबू, बचाबू डकूबा........।" अडोसी पडोसी दौगल एलथि। कियो पुलिस बजा लेलक। पुलिस खानापूर्ति कऽ कऽ चारि बजे भोरबा मे चलि गेलै। शर्माजी अपन माथ पीटैत बाजै छलाह- "आइ भोरे सँ शनिक कुदृष्टि पडि गेल छल। कतेको सँ लुटाई सँ बचलौं, मुदा कपारक लिखल छल लुटेनाई से लुटाइये गेलौं।"

प्रेमक अंत (कथा )

प्रेमक अंत ( हमर तेसर कथा )

आइ भोरे सँ आनंदक मोन कतौ अनत' अटकि गेल छलै । की करबाक चाही , की नै करबाक चाही ? गाम -घर मे की भ रहल छै ? एहि तरहक कोनो प्रश्नक जबाब पता नहि छलै । अपन सूधि-बूधि बिसरि गामक अबारा पशु जकाँ इम्हर-उम्हर भटकि रहल छल । पैघ केश-दाढ़ी , मैल-चिकाठि गंजी-पेँट मे अपना -आप सँ बतियाइत देख जँ केउ अनचिन्हार पागल बूझि ढेपा मारत त' कोनो आश्चर्यक बात नहि । आनंदक इ डेराउन रूप देख क' गामक लोक सब अपना मे बतियाइ छल जे परसू जखन दिल्ली सँ गाम आएल छल त' बड-बढ़ियाँ सब कए गोर लागि , काकी-कक्का , कहि क' नीक-नीक गप करै छलैए मुदा इ एके राति मे की भ' गेलै जानि नहि? लागै छै जे मगज कए कोनो नस दबा गेलै आ रक्तसंचार बंद भ' जाएबाक कारण मोन भटकि रहल छै । इहो भ' सकै यै जे बेसी पाइ कमा लेलकै तेए दिमाग खराप भ' गेलै वा भ' सकै छै जे पागल कए दौड़ा पड़ल होइ । आब एसगर कनियाँ काकी की सब करथिन , आब टोलबैये कए मिल क' राँची कए पागल वला अस्पताल मे भर्ती कराब' पड़तै , नै त' काल्हि जँ टोलक कोनो नेना कए पटकि देतै त' ओकर जबाबदेही के लेतै ? अनेक तरहक प्रश्न-उतर , सोच-बिचार के बाद टोलबैया सब निर्णय लेलक जे आइ साँझ धरि देखै छीये ,जँ ठीक नै हेतै त' साँझ मे सब गोटा मिल जउर सँ हाथ पएर बान्हि देबै आ काल्हि भोरका ट्रेन सँ राँची चलि जेबै । जे खर्च-बर्च लागतै से कनियाँ काकी देथिन ,जँ एन.एच लग बला एको कट्ठा घसि देथिन त' ओतबे मे आनंदक बेरा पार भ' जेतै ,आखीर जमीन बेचथिन किएक नहि ,बेटो त' एके टा छेन । कनियाँ काकी मतलब आनंदक माए सँ बीन पुछने टोलबैया ,सब हिसाब-किताब क' लेलक ।

उम्हर टोलबैया सब जमीन बेचेबाक ,आनंद कए पागल बना राँची पहुँचेबाक जोगार मे छल आ इम्हर आनंद एहि सब सँ अंजान अपन धुन मे कखनो बड़बड़ाइत , कखनो हाथ चमकाबैत गामक पूब गाछी दिश कए बाट धेने जा रहल छल । गाछी मे एकटा झमटगर आमक गाछ त'र बैस रहल ,गाछ सँ खसल टिकुला बिछ क' जमा केलक आ एक-एक टिकुला उठा सामने पड़ल पत्थर पर मारैए जखन सब टिकुला खतम भ' जाए त' फेर सँ बीछ पहिले जकाँ पत्थर पर मार' लागैए । कतेको घंटा एनाहिते करैत रहल । समय आ सुरूज उपर चढ़ैत गेलन्हि आ आब सुरूज देब सीधे माँथ पर आबि गेलन्हि । रौद सीधे आनंदक देह पर पड़लै , जखन गरम लागलै त' ओत' सँ उठि क' गाछक जैड़ मे सटि क' बैस रहल , टिकुला फेकनाइ बंद क' सामने देखलक ,सब किछ बदलल-बदलल बूझहेलै , नै पहिलुका रंग आ नै पहिलुका आनंदक लहर भेटल |

तीन वर्ष पहिले एत' भीड़ लागल रहै छलै गामक युवा वर्गक पहिल पसंद छलै इ मैदान जे आब खेत बनि गेल छलै , गामक नेना-भुटका सँ नम्हर धरि गेंद-बल्ला- बिकेट ल' भोरे सँ मस्त भेल एत' खेलै छलै ।एहि ठामक मजा ल'ग टि.भी वला आइ .पि .एल एको क्षण नै टीक सकै छलैए , मुदा मैदानक मालिक कए इ खेल नीक नहि लागै छलै तेँए एक दिन राता-राती सौँसे मैदान जोति देलक आ राहरि बाउग क' देलक । तहिये सँ खेलक इ आशियाना उजरि गेलै । आनंद कए एहि मैदान मे पाकल गहुमक बालि देखेलै जे हवा सँ टकरा कोनो कमसीन नाच' वाली के पातर डाँर कए लचक जकाँ बेली डाँन्स करैत छलैए । सुरूजक किरण ओहि पाकल बालि कए और स्वर्ण रंग द' रहल छल ।पूरा खेत रावणक सोना कए लंका जकाँ रौद मे चमकि रहल छल , दुपहर कए गर्मी मे चलैत लू सँ काँपैत हवा मे फराक-फराक आकृती सब बनबै छलै कखनो डेराउन त' कखनो मनोरम , एहि दृश्य मे डूबल कखन आँखि लागि गेलै जानि नहि । आँखि लागैत देर नहि आनंद एहि दुनियाँ कए छोड़ि श्वप्न नगर मे चल गेल । ओहि अद्भुत श्वप्न परी कए देश मे यादि आब' लागलै आइ सँ तीन साल पहिलुक ओ दिन . . . ।

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काँलेजक पहिल दिन , गामक उच्च विद्यालय सँ पास भ' लाखो छात्र-छात्रा नव सपना संग पैघ-पैघ शहर कए नामी काँलेज सब मे नामाँकन करेलक आ तकर बाद 10-10 टा किताब क झोरा छोड़ि दू टा काँपि ल' काँलेजक गेट पर स्वतंत्र मोन सँ छात्र-छात्रा सब कए लागै जे स्वतंत्रताक लड़ाइ जीत लेलक ,गजब कए मुस्कान सबहक अधर पर नाचि रहल छल । स्कुलक टाँप आनंदो अपन काँलेज पहुँचल मुदा काँलेज कए गेट पार करै कए साथ ओहि ठामक काज देख अधरक मुस्कान बीला गेलै । छ'-सात टा लड़का-लड़की एकरा घेर लेलक आ सबाल-जबाब कर' लागल कखनो एकर त' कखनो हेयर स्टाइलक , कखनो पहिराबा कए त' कखनो गाम-खानदान कए मजाक कर' लागल । आनंद कए तामस तरबा सँ मगज धरि पहुँचि गेलै मुदा नव अछि कैये की सकै यै ?

तखने एकटा लड़का एगो गुलाबक फूल दैत कहलक ,"रै , सामने ललकी ओढ़नी मे पिछु घुमल जे लड़की ठाढ़ छौ ओकरा हमरा दिश सँ आइ लव यू कहि क' इ गुलाब देने आ ।"

आनंदक मोन नहि मानै छलै तेँए ओ हिलबे नै केलै ,जखन सब देखलक जे इ नहि जा रहल अछि त' एक चमेटा मारैत घेकलि देलक जै सँ आनंद खसैत-खसैत बचल , ओ समझि गेल जे जँ एकर बात नहि मानब त' मारत तेँए मोन मसोसि क' गुलाब उठा ओहि लड़की लग चल गेल । ओकर पिछ आनंद दिश छलै तेँए ओकर मुँह देखाइ नै पड़लै खैर आनंद कहलक ,"मैडम ,"

इ सुनि लड़की पलटल , आनंद के ओकर मुँह चिन्हार लागलै , लाल लिपिस्टीक सँ रांगल ठोर आँखिल काजर , केशक स्टाइल आ एकर चिर-परिचित परफ्युमक खुशबू , सब किछ चिन्हार सन लागलै मुदा मोन नहि पड़ि रहल छल जे ओ के छथि?

आनंद अपन बात आगु बढ़ेलक ,"मैडम , हम जे किछ कहब सँ हमरा सँ ओ छौड़ा सब कहबा रहल अछि तेँए हमरा माँफ करब ओ हरीयरका टिशर्ट वला अहाँ कए आइ लव यू कहलक यै आ इ गुलाब देलक यै ।"

गुलाब दै काल ओहि चिन्हार मुदा अनचिन्हार सन लड़की कए हाथक स्पर्श मात्र सँ अंग-अंग एना सिहरि गेलै मानु जे 440 वोल्ट कए झटका लागल हो ।
ओ लड़की गुलाब ल' बाजल ," कोनो बात नै हम खराप नहि मानलौँ ,ओ अबारा छौड़ा-छौड़ी हब हमरो रैगीँग लेलक आ अहूँ कए ल' रहल अछि , ओना अहाँ . . . "
ओ लड़की अपन बात खतमो नहि केने छलै की प्रिंसपल साहेब ओहि ठाम आबि गेलन्हि , प्रिँसपल साहेब कए देख रैगीँग लेनिहार सब छौड़ा-छौड़ी पड़ा गेल । आनंद आ ओ लड़की दूनू प्रिंसपल साहेब कए गोर लागलक आ हुनके संगे क्लास दिश चलि देलक । गामक स्कुल मे लड़का-लड़की अलग-अलग बेँच पर बैसै छलै मुदा एहि ठाम एहन भेद-भाव नहि छलै , जेकरा जत' मोन होइ ओ ओत' जा क' बैसल । आनंद आ ओ लड़की संग एके बेँच पर बैसल , ऐ दिनक बात संयोगे सँ वा जानि-बूझि क' तीन दिन धरि संग उठला बैसला कए बादो कोनो तरहक बात-चित नै भेलै । चारिम दिन पहचान -पत्र पर मोहर लगाबै लेल जखन दूनू समान्य कक्ष गेल त' ओहि लड़की कए नाम-गाम पढ़लक तकरा बाद ओ अनचिन्हार लड़की पूर्णत: चिन्हार भ' गेल तेँए आनंद बाजल ," सीमा , हमर नाम आनंद अछि आ अहीक गाम के छी । दूनू गोटे सतमाँ धरि एकै स्कुल मे पढ़लियै आ तकरा बाद अहाँ बजार आबि गेलौँ आ हम गामे मे रहि गेलौँ , यादि ऐल की नै ?"

सीमा जखन अपना बारे मे एतेक बात सुनलक त' उहो बाजल ,"हाँ आनंद ,सब किछ यादि अछि ।हमरा पहिले दिन सँ होइ छलैए जे अहाँ कए कतौ देखने छी मुदा लाजे किछ नहि बाजै छलौँ" "

आनंद मोने-मोने बड खूश छल कारण एहि अंजान शहर मे केउ त' चिन्हार अछि ।मोहर मरबा दूनू बगीचा मे जा क' बैसल आ पुरना बात कए मोन पाड़' लागल , पाकरि त'र गर्दा आ कंकर भरल भाटि मे बोरा पर बैस क' पढ़ाइ , बूढ़बा इमली गाछक मीठगर इमली . भूट्टू मास्टर साहेब , अपन बचपन मे एतेक हेरा गेल जे कखन साँझ भ' गेलै पता नहि चलल । जखन गाछ पर चिड़ाँइ अनघोल कर' लागल तखन दूनू बचपन सँ निकलल ।

एहिना समय बीतैत गेलै । एहि व्यस्त शहर कए व्यस्त जीवन मे एक पटरी पर दौड़ैत दूनू कए दोस्ती एक्सप्रेस कखन प्रेमक स्टेशन पर आबि गेलै , दूनू मे सँ ककरो पता नहि चलल । नव उमरि मे प्रेम भेटला कए बाद एकटा अलगे उर्जा कए संचार अंग-अंग मे होब' लागलै , दूनू कए नजरीया सत प्रतीशत बदलि गेलै , काल्हि धरि किताब-काँपि ,पढ़ाइ-लिखाइ कए बारे मे सोचै वला आइ अपन भविष्यक बारे मे सेच' लागलै , अपन-अपन कैरियर कए लेल सोचबाक लेल नव-नव सपना कए महल बनब' लागलै , राति दिन भोर-साँझ एक-दोसरक नैनक झील मे डूबि जीबनक सब सँ पैघ आनंदक अनुभूति कर' लागलै । बाट चलैत जग सँ अंजान भ' इएह पाँति गुनगुनाब' लागलै

भेटल अहाँ के संग हमरा जहियेसँ
जिनगी हमर लेलक करोटो तहियेसँ

हम एकरा की कहब छल एहन भाग
बैसल छलौँ हम बाट मे दुपहरियेसँ

गेलौँ शिखर पर भेल जे एगो स्पर्श
जुड़ि गेल साँस प्राण संगे कहियेसँ

छी ग्यान{GYAN} के पेटी अहाँ जादू गजल
शाइरक कोनो कलम लागै हँसियेसँ

हम भेल नतमस्तक लिखब कोना शब्द
शाइर "अमित" छी संग हमरा जहियेसँ

कहल गेलै यै जे जँ सच्चाइ कए संदुक मे बंद क' सात ताला मारि सागर मे भसा देल जाए तैयो एक-ने-एक दिन ओ ताला तोड़ि समाजक सामने जरूर आबै छै , आ जँ ओ सच्चाइ लड़का-लड़की कए प्रेमक होइ त' ओ जंगल कए आगि-जकाँ क्षण मे सगरो पसरि जाइ छै । इ समाज एहन सच्चाइ पर हास्य-व्यंग आ चुटकी लेब' लागै छै । आनंद-सीमा कए प्रेमक खिस्सा काँलेजक बाउण्ड्री तोड़ि सीमा कए बाबू जी डाँ. देबेन्द्र धरि पहूँचि गेल ।ओ आनंद कए डराब'-धमकाब' लागलन्हि मुदा आनंद आधुनिक लोक रहितो आधुनिक नहि छल , आइ -काल्हि कए लोक प्रेम-प्रेम नहि वासना बूझैत छथि , हुनका लेल आ आधुनिक प्रेमक अंत मात्र शारीरीक मिलन होइत धेन आ तकरा बाद ओ प्रेम गटर कए कीड़ा जकाँ अशुद्ध भ' जाइ छै ।
मुदा आनंदक मोन मे ऐ तरहक कोनो बात नहि छलै , ओ अपन प्रेम कए सम्मान द' वियाह धरि पहुँचाब' चाहै छलैए तेँए कोनो तरहक धमकी एकरा पर असर नहि क' सकलै , संगे सीमा सेहो डाँ . देबेन्द्र पर अपन प्रेम सफल करबाक लेल दबाब देब' लागलै । तीनू अपन-अपन बात पर अड़ि गेल । इएह घिचम-तीड़ा कए बीच दूनू इंटर कए पढ़ाइ खतम केलक । समय बढ़ैत गेल संगे प्रेमक गाछ फूलाइत रहल आ डाँ . देबेन्द्र पैघ-पैघ ढेला फेक एहि फूलाइल गाछ कए फूल तोड़ैत रहलन्हि , अंतत: एक दिन डाँ. साहेब आनंद कए अपन डेरा बजौलनि ।

आनंद गुनधुन मे पड़ल जखन सीमा कए डेरा पहुँचल त' डाँ . देबेन्द्र कहलनि ,"देखू अहाँ दूनू कए प्रेमक आगू हम हारि गेलौँ , हम एहि वियाहक लेल तैयार छी मुदा वियाह कोनो बच्चा कए खेल नहि छै , वियाहक पश्चात बहुतो रास जीम्मेदारी माँथ पर आबि जाइ छै । बियाहक बाद सीमा कए कत' राखब ? "

आनंद बाजल ," हमहू जानै छी जे वियाह कोनो खेल नहि छै आ जहाँ धरि वियाहक बाद रहै कए सबाल छै त' गाम मे अपन-घर अछि । अहाँ जानिते छी अपन जमीनो अछि त' ओत' हमरा दूनू गोटा कए जीवन बढ़ियाँ जकाँ कटि जाएत ।"

"मुदा हमर बेटी गाम मे नहि रहि सकै यै किएक त' ओ बजार मे सब सुबिधा सम्पन्न घर मे रहि रहल अछि । हमरहमर बेटी गामक भनसा घर मे घुआँ नै पियत ।"

"आब गामो मे विकास भ' रहल छै हमरो गाम मे गैस .सड़क , रेल आ बिजली कए सुविधा अछि तेँए कोनो तरहक दिक्कत नहि हेतै । तैयो जँ सीमा कए इच्छा बजार मे रहबाक हेतै त' गामक कोनो जमीन बेचि बजार मे घर बना लेब । " आनंद सँ लबालब भरल बाजल ।

देबेन्द्र बाबू चाह आ बिस्कुट कए ट्रे आनंद दिश बढ़ाबैत बाजलन्हि ." से सब त' ठीक छै मुदा एतेक जल्दी इ सब नहि भ' सकै यै ।" दु -तीन चुस्की चाह सँ घेँट भिजेला कए बाद बात आगू बढ़ेलन्हि ," एखन अहाँ दूनू कए उमरि कम अछि आ ऐ उमरि मे कानून वियाहक आदेश नहि दै छै .दोसर विआहक बाद घरक खर्चा बैढ़ जाइ छै ।एखन अहाँ अपन माए पर निर्भर छी आ माए खेती-बाड़ी पर , आ सब जानै यै जे खेती सँ एतेक कमाइ नहि होइ छै जै सँ आधुनिक साज-समान कए साथ बजार मे जीवन ऐश-मोज सँ कटि सकै । जा धरि अहाँ अपन पएर पर नहि ठाढ़ हेएब ता धरि केऊ बेटी वला अपन बेटी कए हाथ अहाँ कए हाथ मे कोना द' देत आखिर सब माए-बाप कए किछ स'ख-मनोरथ होइ छै की नै?"

चाहक कप राखैत आनंद कने चिन्तीत मुद्रा मे बाजल ," अहाँक बात सत्य अछि हमहुँ इ नहि कहै छी जे एखने हमर वियाह क' दिअ , जहाँ घरि अपन पएर पर खड़ा होइ कए बात छै त' हमर इंटर भैये गेल ।हमर नानी गामक किछ लोक दिल्ली मे रहै छथि त' हम सोचै छी जे ओतै जा किछ दिन काज करब , तखन धरि उमरि भ' जाएत तकर बाद हमर वियाह क' देब ।"

डाँ0 साहेब अधर पर कुटिल मुस्कान फैलाबैत बाजलन्हि ." अहाँक इ बात हमरा नीक लागल ।अहाँ अपन पएर पर ठाढ़ भ' जाउ हम अश्वासन दै छी अहाँ प्रेम सफल करबा देब ।"

एहि भेँट कए बाद आनंद के सीमा सँ वियाह करबाक सपना सच लाग' लागलै । ओ अपन प्रेमक सफलाता कए लेल कठीन सँ कठीन काज करबाक लेल तैयार छल । अपन पढ़ाइ बीच मे छोड़ि दिल्ली जाएबाक मोन बना लेलक । कनियाँ काकी कए सब बात बता तीन दिन कए बाद दिल्ली कए गाड़ी पकरि दिल्ल चलि गेल । अपन प्यार , अपन गाम . अपन सीमा सँ हजारो किलोमीटर दूर दिल्ली कए भीड़-भाड़ वला गली , बड़का-बड़का सोसाइटी मे हेराएल-भुतलाएल काज खोज' लागल । बड दौड़ धूप कए बाद रिश्ता कए मामा अपन सेठ सँ बात क' 12 घंटा कए नोकरी आ पाँच हजार दरमाहा पर काज धरा देलकै । भोर सँ साँझ धरि हड्डी तोड़ला कए बादो एते कमाइ नहि होइ छलै जाहि सँ कहि सकैए जे आब परिबारक भार उठा सकै छी । सब राति सीमा कए फोटो करेजा सँ साटि कसम खाए जे काल्हि आइ सँ बेसी मेहनत करब । उम्हर आनंद सीमाक प्रेम मे अपन देह गला रहल छल आ इम्हर सीमा अपन पढ़ाइ आगु बढ़ा रह छलै । समय तीब्र गती सँ बढ़ैत गेलै , आनंदो कए परमोसन होइत गेलै , आब 15000 टका कमाइ बला सुपरबाइजर भ' गेल । आफ ओकरा लाग' लागरै जे ओ अपन आ सीमा कए बजार मे रहै कए खर्च कमा लै यै त' ट्रेन ध' गाम आबि गेल । गाम आबिते देर नहि , सब सँ अपन दोस्त सब सँ सीमा कए बारे मे पुछलक त' पता लागलै जे देबेन्द्र बाबू ओकर वियाह अपने हाँस्पिटलक डाँ0 सँ ठीक क' देने छथिन ।सीमा कए मोन बदलि गेल छै आ दू दिन बाद गामे मे वियाह छै । इ शुभ सन अशुभ समाचर सूनै कए साथ आनंद बौक भ' गेल , किछ फुरेबे नै करै , जकरा लेल पढ़ाइ छोड़लक , 12-12 घंटा देह गलेल , से ओकरा छोड़ि दोसर सँ वियाह क' रहल छै ।
आनंद कए विश्वास नहि भेलै तेँए ओ सीमा कए घर सँ बहराए कए बाट जोह' लागल । सँयोग सँ ओहि साँझ गामक बजार मे भेँट भ' गेलै , सीमा कए संगे केउ नहि छलै तेँए बीना कोनो झंझट कए आनंद सीधे सीमा लग गेर । सीमो आनंद कए देख रूकि गेलै ।
आनंद सीमा लग जा बाजल ." सीमा , अहाँक बाबू जे किछ चाहैत छलथि ओ सब हम पूरा क' देलौँ । आइ हम 15000 टका कमा लै छी आ कानून कए मुताबीक उमरि भ' गेल तेँए अपन वियाह मेँ आब कोनो रूकाबट नहि अछि । अहाँक बाबू जी हमरा अश्वासन देने छलथि मुदा हम सूनि रहल छी जे अहाँक वियाह काल्हि कोनो डाँक्टर सँ भ' रहल अछि । अहाँ हमरा सँ प्रेम केरै छलौँ तखन आ सब की भ' रहल छै ? अहाँ एकबेर अपना मुँह सँ कहि दिअ जे अहाँ मात्र हमरे सँ प्रेम करै छी आ इ वियाहक बात झूठ अछि ।"

आनंदक बात सूनि ओ मृग समान कारी नैन लाल भ' गेलै ,मुँह पर कठोरता कए भाव नाच' लागलै , ओ मीठ बाजै बला जवान सँ आगिक धधरा जकाँ शब्द बहरेलै
," इ सबटा बात एकदम सत्य छै ,जहिया अहाँ सँ प्रेम केलौँ तहिया हम बच्चा छलौँ मुदा बाबू जी हमर आँखि खोलि देलनि । हमर बराबरी क' सकी एतेक अहाँ क ओकाइध नहि अछि । अहाँ मात्र इंटर पास छी आ हमर M.B.B.S कए फाइनल इयर छै । एकटा 15 हजार कमाइ वला कए हाथ मे अपन हाथ द' हम अपन जीवन किएक बर्बाद करब ? जतेक अहाँ एक महिना मे कमाइ छी ओतेक हम एक दिन मे खर्च करै छीयै । जीवनक ग्राफ पर अहाँ बाँटम मे छी आ हम टाँप पर , बाँटम आ टाँप सदिखन पैरलल रहै छै रहै छै आ अहाँ त' जानिते छी जे पैरलल लाइन कखनो मिलै नहि छै तेँए अपन दूनूक मिलन संभबे नहि अछि ।अहाँ अपध दिल आ दिमाग सँ हमर नाम मेटा लिअ । अहाँ हमर संगी छी तेँए वियाह मे आएबाक निमंत्रण द' रहल छी ,मोन हेएत त' आबि क' देख लेब हमर होइ वला ब'र कए । हमरा बहुत काज अछि ,हम जा रहल छी ।अहूँ हमरा बिसरि क' घर जाउ|"

इ कहि सीमा कार मे बसि गर्दा उड़ाबैत ओहि ठाम सँ चलि गेल । आनंद ओहि गर्दा सँ नहा गेल । दुनियाँ नाच' लागलै ,चक्कर आब' लागलै आ आनंद बीच्चे सड़क पर खसि पड़ल ।
*********************************

इ सब सपना बनि गाछ तर सूतल आनंदक आँखि मे नाचि रहल छल तखने गाछ सँ एकटा टिकुला टूटि आनंदक मुँह पर खसलै । टिकुला के चोट लागैते नीन खुजि गेलै । उपर चंदा मामा चमकि रहल छरखिन ,तारा टिमटिमा रहल छर , चारू कात अन्हार पसरि गेल छलै । गाम दिश देखलक त' गामक छोर पर नव कनियाँ सन सजल घर साफ-साफ देखाइ देलकै । लाल-पियर-हरीयर बाँल भूक-भूक क' रहल छलै ।डि.जे वला बैण्ड पर बाजैत नवका धुन बाताबरण मे अनघोल क' रहल छलै ।आनंदक मोन मेँ गजबे तूफान उठ' लागलै ।सोचै , जकरा लेल एतेक मेहनक केलौँ सएह नै भेटल । की हमर गलती इ अछि जे हम गरीब छी? जाति त' एकै छै तखन की हमर गलती इ अछि जे हम एक समाज आ एक गामकए छी वा इ जे हम कहियो प्रेम केलौँ ?
बहुतो रास सबाल मन मे उठै छल आ बहुतो सबाल आँखि सँ बहैत नोर क' रहल छल ।
तखने अकाश मे बिजुरी जेना चमकि उठलै , उपर लाल-पियर - हरीयर आगिक चिनगी चमक' लागलै ,ब्राम-ब्रूम क' फटक्का फूट' लागलै । आनंदक आँखि सँ नोरक धार गाछक जरि के पटा रहल छल । ब्राम ब्रूम फटक्का फूटि रहल छल आ आइ फेर एकटा प्रेमक अंत भ' रहल छल ।


समाप्त

केहन लागल से जरूर कहब
साभार विदेह इ -मैथिली पाक्षिक पत्रिका

अमित मिश्र

कुण्डलिया


निर्मल मोन सँ बाबाजी दए छथि आशीष।
खाता नंबर अहाँ लिखू, जमा कराबू फीस।
जमा कराबू फीस, बिगडल काज बनत,
केनेए जे हरान, से सबटा कष्ट जरत।
कहैए "ओम" धरू बाबाक चरण-कमल,
फीसक लियौ रसीद, भेंटत कृपा-निर्मल।

गजल


नैनक छुरी नै चलाबू यै सजनियाँ
कोना कऽ जीयब बताबू यै सजनियाँ

नै चोरि केलौं किया डरबै हम-अहाँ
सुनतै जमाना सुनाबू यै सजनियाँ

छी हम पियासल अहाँ प्रेमक धार छी
आँजुर सँ हमरा पियाबू यै सजनियाँ

बेथा करेजक किया नै सुनलौं अहाँ
हमरा सँ नेहा लगाबू यै सजनियाँ

छटपट करै प्राण तकियो एम्हर अहाँ
"ओम"क करेजा जुडाबू यै सजनियाँ
बहरे-सगीर
मुस्तफइलुन-फाइलातुन-मुस्तफइलुन
दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ, दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ, दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

गजल

प्रस्तुत अछि रुबी झा जीक गजल--

कहियौ छोड़ब नै अहाँक पछोर यौ अहाँ जायब कतऽ
राखब संगे अहाँ के साँझ सँ भोर यौ अहाँ जायब कतऽ

चिन्हलौ नहि जानलौ अहाँ किएक एखन धरि हमरा
प्रेम बरखा सँ करब सराबोर यौ अहाँ जायब कत़ऽ

अहाँ लेल तियागल लाजो तियागल धाखो अहीँक लेल
प्रेम सरिता बहाएल पोरे पोर यौ अहाँ जायब कतऽ

छोरलहुँ हम नैहर सासुरो छोरलहुँ अहिँक लेल
मायक ममताक छोड़लहुँ कोर यौ अहाँ जाएब कतऽ

अहाँ बाजु एकबेर किरीया खाउ हम ककरा लगा के
मात्र अहीँ टा छी" रूबी "के चितचोर यौ अहाँ जाएब कतऽ

(सरळ वार्णिक बहर बर्ण-२१)

रुबी झा

गजल@प्रभात राय भट्ट



गजल

हमरा बिसैइर प्रीतम अहाँ जाएब कतय
एहन प्रगाढ़ प्रेम स्नेह अहाँ पाएब कतय

टुईट नै सकैय प्रीतम साँच प्रेमक बन्हन
चिर प्रेमक बन्हन तोड़ी अहाँ जाएब कतय

बिसैइर केर हमरा दिल लगाएब कतय
छोड़ी कें एसगर हमरा अहाँ जाएब कतय

अहाँक करेजक धड़कन में हम धड्कैत छि
कहू दिल से धड़कन निकाली जाएब कतय

"प्रभात"करेज में पसरल अछि हमर माया
अहाँक छाया हम छि छाया छोड़ी जाएब कतय
................वर्ण:-१८................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

कुण्ठित मानवता

घरमे मुरारीजिक कनियाँ अपन आठ बर्खक बेटा आ पाञ्च बर्खक बेटीकेँ  कोनोना सम्हारैमे लागल, मुदा हुनक मोनक भावसँ साफ देखा रहल छल जे हुनकर मोन पुर्णतः मुरारीजीपर लागल छलनि, जे की रातिक दस बजला बादो एखन धरि  नोकरीसँ घर नहि एलथि |
कोनोना दुनू  बच्चाकेँ  सुतेलथि | समयक सुइया सेहो आगू  वरहल | दससँ एगारह बाजल | हुनक मोनमे संका सभक आक्रमण भेनाइ स्वभाबिक छल | एना तँ एतेक राति पहिले कहियोक नहि भेल रहनि  | सहास करैत घरसँ बाहर निकैल, अपन भैंसुरक अँगना पहुँचली | हुनका सभकेँ  कहला बाद शुरू भेल युद्धस्तरपर मुरारीजिक खोज | मुदा सभ  मेहनत खाली मुरारीजिक कोनो पता नहि | हुनक आड़ामिल जाहिठाम ओ काज करैत छलथिसँ ज्ञात भेल जे हुनक छुट्टी तँ  साँझु पहर पाँचे बजए भए गेल रहनि आ ओ अपन साईकिलसँ एहिठामसँ बिदा सेहो भए गेल रहथि |
तकैत-तकैत भोरे चारि बजे हुनक लाश  पिपरा घाटक सतघारा बला धूरि पर भेटल | देखते मातर सभक हाथ-पएर सुन्न | कनाहोर मचल | बादमे स्थानीय प्रतक्षदर्शीसँ ज्ञात भेल की ओ एहिठाम साँझकेँ  साते बजेसँ छथि, किछु गोटे हुनका हाथ-पएर मारैत देखि बैजतो रहेजे, 'बेसी शराब पि क' ड्रामा कए  रहल अछि |'
मुदा हाय रे कुण्ठित मानवता कियोक हुनक बास्तबीक कारण बुझहक प्रयास नहि कएलक, नहि तँ ओ एखन जिबैत रहितथि | हुनका तँ  एपेडेंसीक दर्दक बेग रहैन आ समय पर उपचार नहि हेबाक कारणे ओ चलि बसला |

*****
जगदानन्द झा 'मनु'

गजल@प्रभात राय भट्ट



गजल
दिल के दर्द दिल में दबौने नैयन में नोर नुकौने छि
के जानत हमर दिल के ब्यथा मुश्कैत ठोर देखौने छि

वेदना कियो कोना देखत चमकैत चेहरा कें भीतर
प्रियम्बदा केर एकटा राज हम बड जोर दबौने छि

वेकल अछ मोन धधकैत आईग में जरैत करेज
अशांत मोन भीतर मधुकर भावक शोर मचौने छि

तिरोहित भगेल अछि जीवनक उत्कर्ष केर संगम
मधुर मिलन कें अनुपम राग सं भोर गमकौने छि

आएल अमावस खत्म भेल ख़ुशी केर अनमोल पल
"प्रभात" इआदके बाती नोरक तेल सं ईजोर कौने छि

.......................वर्ण-२१...............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

गजल

रहबय कोहबर कत्तेक दिन
बनिकय अजगर कत्तेक दिन

शादी तऽ एक संस्कार छी
जीबय असगर कत्तेक दिन

बिना काज के मान घटत नित
फूसिये दीदगर कत्तेक दिन

बैसल देहक काज कोन छै
एहने मोटगर कत्तेक दिन

आबहुँ जागू सुमन आलसी
खेबय नोनगर कत्तेक दिन

कविता-मिथिला में मचल हुर्दंग

मिथिला में मिथिलाक कर्णधार सभक बिच किछुदीन सं शीतयुद्ध चली रहलअछ कखनो होलिक रंग भजेतअछ वेरंग कखनो जुड़सीतल में फेकल थाल कादो क दाग कखनो फागक चर्चा उगलैय आईग यही विषय पर हमर मोनक व्यथा कविताक रूप में प्रस्तुत कएलगेलअछ ! साधुवाद !!होली में देखलौं अजब गजब के रंग

कविता
शब्दक प्रहार सं भेलाह कतेको तंग
आपतिजनक शब्द शब्द सं घोरल छल रंग
अपमानक पिचकारी मारैय में कियो छलाह मतंग

मैथिल सभ में छै एकटा बड़का हुनर
आन के बेवकूफ बना अपना के कहत सुनर
फन्ना गदहा चिन्ना कीनर
मिथिला में मचल हुर्दंग हुलर

वितगेल होली मुदा रंगक दाग लागले रहिगेल
ईर्ष्या द्वेष प्रतिशोधक भावना जागले रहिगेल
देश दुनिया नर्क सं स्वर्ग भगेल
मुदा मिथिला स्वर्ग सं नर्क बनिगेल

होली पर भगेल जुड़ सीतल के प्रहार भारी
एक दोसर के गर्दन पर चलल चरित्र हत्या के आरी
जातपातक भेद भाव अछि विनाशकारी
संवेदनशील मुदा पर भरहलअछ घीऊढारी

अपने में अछि सभ एक दोसर के विरुद्ध
मिथिलाक विद्द्वजन में भरहलअछ शीतयुद्ध
जातपात सं नै होइअछ कियो शुद्ध अशुद्ध
धर्म पुन्य सत्कर्म ज्ञान विवेक होइतअछ शुद्ध

मातल छथि सभ पी कS अभिमानक तारी
समय समय सं पढैय एक दोसर के गारी
लागल ऐछ फेक आईडी कय महामारी
छद्मभेदी सभक बिच भरहल छै मारामारी

हे मैथिल मिथिलाक कर्मनिष्ठ कर्णधार
कने देखाउ सद्भाव सद्प्रेमक उद्दगार
भलाबुरा तं छै समूचा जग संसार
एना कटाउंझ केला सं नै लागत कोनो जोगार

अवगुण दुर्गुण वैर भाव कय दूर भगाऊ
गुण शील विवेक प्रेम स्नेह मोन में जगाऊ
भाईचारा प्रेमक एकता दुनिया के देखाऊ
सुन्दर शांत समृद्ध विशाल मिथिला बनाऊ

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट


एकटा बात कहू सजनी जौं हम नै रहब तं अहाँ रहब कोना
छोड़ी चलिजाएब जौं परदेश विरह कें दुःख अहाँ सहब कोना

पल पल हर पल हम रहैत छि प्रिया अहाँक संग सदिखन
हमर रूचि सं श्रृंगार करैत छि हमरा बिनु अहाँ सजब कोना

हमरा सँ सजनी अहाँ नुका कS नहि रखने छि दिल में राज कोनो
किछु बात जे हमही जानैत छि लाज सं ककरो अहाँ कहब कोना

मधुर मिलन लेल जी तरसत पिया पिया अहाँक मोन कहत
नैना सँ अहाँक नीर बहत तडपी तडपी अहाँ सम्हरब कोना

श्रृंगार बहत नोरक धार सँ ह्रिदय तडपत विछोडक पीड़ा सँ
भूख पियास नीन सभ त्यागी कें "प्रभातक"बाट अहाँ जोहब कोना
..............वर्ण-२५......................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

सोमवार, 16 अप्रैल 2012

आयी फेर याद आयल, किएक मिथिला देश कें

आयी फेर याद आयल, किएक मिथिला देश कें

छोरी देने छी जहन, हम सब अप्पन खेत कें

आयी फेर याद ..............................
माय के कोना बिसरलौं , की भेले इ की कहू

चली परल छी लय पिपासा, छोरी अप्पन भेष कें

भाई छुटल , मित्र छुटल, छुटि गेल सब याद सब

हम तरपी क रही गेलौं, बस हाथ धेने केस कें

आयी फेर याद आयल ........................

नया जमाना आबी गेलय, पाई टा भगवन छई

जाकरा देखू एके रस्ता , पायी के इन्सान छई

सखी छुटल मीत छुटल, रुसी गेल सबटा कोना

आब त बिसरी रहल छी, नेंपन के खेल कें

आयी......................................

गाम पर पीपर तर में , खेलाइत रहिये कोना कहू

रोज एतय परदेश में छी , दिन खुजिते रोज बहु

मोन कनाल अंखि कनाल, देखि के कोना सहू

सोचिते सबटा मिटा मितायल, सपना अपने देखि कें

आयी .....................................
संस्कार सेहो बिसरलौं , चललौं पश्चिम के बाट पर

मिथिला बस कल्पैत रहली, उएह टूटलहिया खाट पर

अंत में मिथिले टा पूछती , राखू नै एकरा ताख पर

सुनु आनंद के बात मिता, घर नै बनाबू बालू आ रेत कें

आयी फेरो .................................

रचनाकार

आनंद झा 'परदेशी'


(रचनाकार आनंद झा एकरा कतौ हमरा स बिना पूछने नै उपयोग करी )

गजल

गलती बारम्बार करू
अधलाहा सँ प्यार करू

दुर्गुण सँ के दूर जगत मे
निज-दुर्गुण स्वीकार करू

दाम समय के सब सँ बेसी
सदिखन किछु व्यापार करू

अपने नीचा, मोन पालकी
एहि पर कने विचार करू

बल भेटत स्थायी, पढ़िकय
ज्ञानो पर अधिकार करू

भाग्य बनत कर्मे टा फल सँ
आलस केँ धिक्कार करू

प्रेमक बाहर किछु नहि भेटत
प्रीति सुमन-श्रृंगार करू

अगिला अंक मे छपत (हास्य कविता)

 अगिला अंक मे छपत
(हास्य कविता)
रचना भेटल अहाँ के
मुदा अगिला अंक मे ओ छपत
बेसी फोन फान करब त
फुसयाँहिक आश्वासन टा भेटत।

अहाँ के लिखल कहाँ होइए
तयइो हमरा अहाँ तंग करैत छी
हमरा त लिखैत लिखैत आँखि चोन्हराएल
अहाँक रचना हम स्तरीय कहाँ देखैत छी।

रचना कोना क स्तरीय हेतैय सेहो त
फरिछा के अहाँ किएक नहि कहैत छी
हम रचना पर रचना पठबैत छी
मुदा अहाँ त कोनो प्रत्युतरो ने दैत छी।

हम त कहलहुँ अहाँ के लिखल ने होइए
नवसिखुआ के ने लिखबाक ढ़ग अछि
कोनो पत्रिका में त छैपिए जाएत
इहए टा एकटा भ्रम अछि।

ई भ्रम नहि सच्चाई थिक
नवसिखुओ एक दिन नीक लिखत
नहि छपबाक अछि त नहि छापू
लिखनाहर के कतेक दिन के रोकत।

संपादक छी हम अहाँ की कए लेब
मोन होएत त नहि त नै छापब
बेसी बाजब त कहि दैत छी
अहाँ के कनि दिन और टरकाएब।

रचना नुकाउ आ की हमरा टरकाऊ
आँखि तरेरू अहाँ खूम खिसियाऊ
कारीगर ने अछि डरैए वला
किएक ने अहाँ पंचैती बैसाउ।

हे यौ वरीय रचनाकार महोदय
पहिने अहुँ त नवसिखुए रही
आ कि एक्के आध टा रचना लिखी
समकालीन सर्वश्रेष्ठ बनि गेल रही।

सच गप सुनि अहाँ के तामस उठत
तहि दुआरे किछु ने कहब कविता हम लिखब
आश्वासन भेटिए गेल त आब की
ओ त अगिला अंक मे छपत।