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सोमवार, 23 जनवरी 2012

हमरो जीबऽ दिअ

कोइखेमे छटपटा रहल छी हम
ई दुनियाँ हमरो देखऽ दिअ
बेटी भऽ कऽ जनम लेनहि कोनो अपराध नै
बाबू यौ ई जिनगी हमरो जीबऽ दिअ

डाक्टरक आला कहि रहल अछि
नै बचतहु आब तोहर प्राण
अल्ट्रासाउण्डक रिपोर्ट किछुए कालमे
आब लऽ लेतहु तोहर जान

करेलहुँ अल्ट्रासाउण्ड यौ बाबू
मुँह भेल अहाँक मलीन
डाक्टर संगे केलहुँ ई प्लान
कोइखेमे ऐ बेटीकेँ कऽ दिहक क्लीन

हम बुझैत छी हमरा जनमलाक बाद
नै बाँटब अहाँ जिलेबी बुनिया
दुखित भेल अछि मोन अहाँक / नै आनब
हमरा माए लेल नाक केर नथुनियाँ

जँ होइतहुँ हम बेटा
करितहुँ अहाँ सगरे अनघोल
अड़ोसी-पड़ोसी शुभकामना दितथि
रसगुल्ला बँटितहुँ अहाँ टोले-टोल

बेटीक जनम भेलापर एहेन बेइमानी किएक
आइ किछु हमरो कहऽ दिअ
बेटी भऽ कऽ जनम लेनहि कोनो अपराध नै
बाबू यौ ई जिनगी हमरो जीबऽ दिअ

लेखक - किशन कारीगर

मुन्नी बदनाम भेलैए किएक ? एकटा हास्य कथा।

इंडिया टी वि में एकटा संगी सँ भेंट केने फिल्म सिटी नोएडा स अबैत रही। समाचार बूलेटिन के समय भ गेल रहै तही दुआरे हरबड़ाएल आकाशवाणी अबैत रही। हम सेक्टर 16 मेट्रो स्टेशन लक आएले रही की ओतए एकटा मित्र मदन भेंट भए गेलाह कुशल छेमक गप भेलाक बाद हम बजलहू-
"भाए एखन हमरा जाए दियअ फेर कहियो गप नाद करब ।"
ओ बजलाह- "यौ किशन अहू हरबड़ाएल नोएडा अबैत छी आ फूर सिन पड़ा जायत छी कहियो भेंटो घांट ने पहिन हमरा एकटा गप समझा दियअ तखन जाएब ।"
हम बजलहु-"जल्दी कहू"
त ओ बजलाह- "ई कहू त मुन्नी बदनाम भेलैए किएक?"
हम किछु बजितहु कि ताबैत डमरू डूगडूग के अवाज सुनलियै ओतए मेट्रो सीढ़ि लक बाबा भेंट भए गेलाह हमरा देखैत मातर ओ बजलाह-
"हौ कारीगर बच्चा तोरे तकैत तकैत अई ठाम अएलहू पहिने हमरा जल्दी स एकटा गप बुझहाए दैए।"
हम बजलहू- "कोन गप यौ बाबा"
की ओ बजलाह- "हौ बच्चा एकटा गप कहअ त मुन्नी बदनाम भेलैए किएक?"
हम बजलहु- "इ त हमरो नहि बुझहल अछि मुदा अहॉ कोन मुन्नी के गप कहि रहल छी।"
बाबा हॅसैत बजलाह- "हौ कारीगर तहू बड्ड अनठा अनठा के पुछैत छह कहअ त सौंसे दुनिया अनघोल भेल छै जे मुन्नी बदनाम भेलै शिला के जवानी तेरे हाथ न आनी। तई मे तोंही मीडियावला सभ और बेसी हल्ला केने छहक मुन्नी फिर से बदनाम हुई मुन्नी को देख डोला इमान। एतबाक नहि चैनलो में बचिया सभ देहदेखौआ कपड़ा पहिर खालि एहने समाचार सभ पढ़ैत छैक देखू वालीवुड मसल्ला मुन्नी बदनाम भेलै देखैत छहक इ समाचार देख सुनि दोसरो मुन्नी सभ बदनाम होइ लेल एखने स आतुर भेल छै। तहि दुआरे त हम पुछलियअ जे मुन्नी बदनाम भेलै किएक?"
बाबाक प्रशन सुनि त हम गुम भए गेलहु किछु ने फुरा रहल छहल आ हॅसी सेहो लागि रहल छह। बाबा फेर बजलाह-
"हौ एतेक कथि सौचै मे लागल छह ज कहि दिमाग तिमाग भंगैठ जेतह तs कोन ठिक तहू बदनाम भ जहियअ। देखहक एकटा गप त हम बुझहलियै जे जेबी मे एक्को टा पाइ नहि रहतह आ थूथून निक नहि रहतह त कतबो नाक रगरब त बापो जिनगी मे शिला के जवानी हाथ न आनी मुदा ई दोसर गप हमरा दिमागे मे ने घूसी रहल अछि जे मुन्नी बदनाम हुई। तहि दुआरे तोरा पुछलियअ जे मुन्नी बदनाम भेलै किएक?"
हम बजलहु-"अच्छा बाबा एकटा गप कहू त अहा केना बुझहलियै जे मुन्नी बदनाम भेलै।"
बाबा बजलाह- "कहअ त सौंसे दुनिया ई गप अनघोल भेल छै तहू मे त आब शहर बजार स ल के गाम घर तक ई मुन्नी बदनाम ने भेलै कि हमरा रहनाई मुशकिल भए गेल। आब त कान दै जोग नहि रहलै जतै देखहक ततै मुन्नी बदनाम।"
हम बजलहू- "अई यौ बाबा मुन्नी बदनाम भेलै तs अहा किएक अकक्ष भेल छी।"
बाबा बजलाह- "हौ कारीगर अकक्ष की जान बचाएब मुशकिल भए गेल अछि देखैत छहक छौंडा मारेर सभ पूजा करैत काल मंदिरे मे गाबअ लगतह मुन्नी बदनाम भेलै हेतै यै मुन्नी अहा के गली गली मे चर्चा किदैन कहा । ततबेक नहि यै छौंडी सभ मंदिरे मे सप्पत खा खा बदनाम होइए के फिराक मे लागल रहतह। कहतह हे भोला बाबा तोंही जान बचबिहअ तोरा दू लोटा बेसी के जल चढ़ेबह। मुदा गारजियन सभ हमरा आबि आबि पुछतह यौ बाबा एतए कोनो मुन्ना मुन्नी के देखलियैए। आब त हमरा डरो होइए जे कहिं बदनाम होइ के झोंक मे कोइ हमरो लेल ने बदनाम भए जाय। तहू मे नबका तूरक धिया पूताक कोनो भरोस नहि एकरा सभ के पढ़नाइ लिखनाई मे कम आ बदनाम होइ मे बेसी मोन लगैत छैक। औग ने पौछ देखतह आ खाली बदनाम होइए के फिराक मे लागल रहतह।"
हम बजलहू- "अई यौ बाबा अहा लेल के बदनाम होइए।"
बाबा बजलाह-"हौ बच्चा जूनि पूछह कि कहियअ पछिला कोजगरा मे हम अप्पन सासुर हरीपुर गेल रही कुशल छेमक गप भेलाक बाद हमर छोटकी सारि टुन्नी बजलीह यौ पाहुन एकटा गप कहू । हम कहलियैन कहू ने की एतबाक मे केम्हरो स हमर बीरपुर वाली सरहोइज चाह पान नेने दौगल अएलीह। हम एक घोंट चाह पीनैहे रही की बीरपुर वाली बजलीह पाहुन एकटा गप बुझहलियैए हम हुनका पुछलियैन कोन गप यै त ओ बाजल चुपू अनठिया कहि के बुरहारी मे खाली गप अनठा अनठा बजैत छी आ हमर सरहोइज सारि खूम जोर सॅ हा हा के हसैए लगलीह। फेर बीरपुर वाली खिखिआ के हसैत बजलीह टुन्नी बदनाम हेतै यै बुरहबा पाहुन अहि के लिए। टुन्नी ताली बजा बजा सुर मे ताल मिला गाबए लागल टुन्नी बदनाम हेतै यौ बुरहबा पाहुन अहि के लिए । हौ बच्चा टुन्नी के गप सुनी त कि कहियअ हम असमंजस मे परि गेलहु जे इ अपनो बदनाम होएत आ बुरहारी मे हमरा गंजन टा कराउत। डरे हम दोसर घोंट चाहो नहि पिलहु चाह सेरा के पानि भ गेल।"
"फेर कि भेल यौ"- हम उत्सुकतावस बाबा स पुछलियैन त ओ बजलाह-
"हौ बच्चा सभटा गप तोरा कि कहियअ टुन्नी के हम कहलियै अई यै टुन्नी एतेक छौंडा मारेर सभ साइकिल ल के ओइ बाध स ओई बाध शहर स बजार मुन्नी के तकने फिरै छै तेकरा सभ लेल बदनाम हएब से नहि त फुसियाहि के हमरा पाछु लागल छी। टुन्नी बजलीह नहि यौ पाहुन हम त अहि लेल बदनाम होएब तब ने लोको हमरा चिनहत जे हमहू बदनाम होइ लेल आतुर भेल छी। भने मीडियावला सभ के एकटा खबर सेहो भेट जेतैए जे मुन्नी फिर बदनाम हुई आ हमरो कोनो धारावाहिक मे झगरलगौन माउगी वा कि कोनो फिल्म मे आइटम गर्ल के काज भेट जाएत। कि कहियअ टुन्नी के बदनाम हेबाक प्रबल इच्छा देखि हम फुर दिस अपना सासुर स बिदा भगलहु आ फेर कहियो हरीपुर नहि गेलहु। ओकर गप सुनि त डरे हमरा हुकहुकी धए लेलक जे कहि ठीके मे टुन्नी बदनाम भेलै आ कि एना केलकै त हमहू बदनाम भए जाएब। तहि दुआरे त कहलियअ हौ बच्चा जे कहिं कोई हमरो लेल ने बदनाम भए जाए तहू मे आबक धिया पूता के कोनो ठेकान नहि बदनाम होइ दुआरे फिलमी फंडा अपनौतह। गारजिअन के इ कहतह जे हम टीशन पढ़ै लेल जाइत छी आ पढ़नाइ छोड़ि के पार्क कॉफि हाउस घूमै लेल चलि जेतह आ बदनाम होइ के फिराक में लागल रहतह। जेना ओकरा सभ के और कोनो काजे नहि रहै तहिना। बाबा बजलाह हौ बच्चा तू ख़बर लेल हाट बजार स ल के शहर गाम सभ ठाम जाइत छह मुदा हमरा एकटा गप नहि बुझहा देलह।"
हम पुछलियैन- "कोन गप यौ बाबा"
की ओ बजलाह- "अईं हौ कारीगर तहू बड्ड अनठाह भ गेलह तोरा त ई गप बुझहले हेतह जे मुन्नी भेलै आ तहू मे मीडियावला सभ और बेसी हल्ला केने छहक। कतए कोन मुन्नी बदनाम भेलै सेहो ख़बर रखैत छह मुदा हमरा सिरिफ एक्के टा गप बुझहा दए ने जे मुन्नी बदनाम भेलै किएक?"

लेखक - किशन कारीगर

गजल


टूटि-टूटि क' हम त' जोडाइत रहै छी।
मोनक विचार सुनि पतियाइत रहै छी।

गौरवे आन्हर पडल अपने घरारी,
सदिखन मुँह उठा क' अगधाइत रहै छी।

हाट मे प्रेमक खरीद करै सब किया,
बूझि नै, आब त' हम बिकाइत रहै छी।

फहरतै झंडा हमर सब दिस हवा मे,
एहि आसेँ खूब फहराइत रहै छी।

"ओम"क कपार पर कानि क' की करत ओ,
फूसियों हम ताकि औनाइत रहै छी।

गजल


टीस उठैए करेज में कोना कहु बितैए की
कोन लगन लगेलौं अहाँ सँ याद अबैए की

जतय देखु जिम्हर देखु अहीँ केँ देखै छीक 
कोना बितत दिन-राति कोना कए बितैए की

की करू कोना करू आब नै किछ फुराईए 
रहि-रहि  क ' याद अहुँ  केँ  हमर आबैए की

प्रियतम 'मनु' केँ  किएक इना तरपाबै छी
मोन में लहर उठल से अहुँ केँ  लगैए की 

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१७)
जगदानन्द झा 'मनु' : गजल संख्या-१० 

शनिवार, 21 जनवरी 2012

ओढ़ी चादर गरदेन मस्लंग,

ढाढस बन्ही सुतल छि हमहूं,
ओढ़ी चादर गरदेन मस्लंग,
आ गप के बेरा उठालौ हमहूं
द क गोली पिसुवा भंग.

ज्ञानी छि नै ककरो स कम,
नै बुझी हम दोसरक ढंग,
हम बुधियरबा हमरा की कहब,
हमारा स काबिल अई आहा के संग?

सुनु सिर्फ जे हमही कही,
नै त क देब आहा के तंग,
आ दल बना क रखने छि हम,
करय लेल बस आहा स जंग.

आहा कोना करब जखन नै,
पार लागल कायल हमरा संग,
आ कोशिश करब त चिन्ह लिया जै,
हम बक्थोथर केहन दबंग.

नई किछु करब नई करा देब,
इ अईछ हमर अपन रंग,
आहा के आगा कोना बढ़ दी,
जिनगी बीतल नेता के संग.

रचना:- पंकज झा

शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

भक्त और भगवान - अजय ठाकुर (मोहन जी)


भक्त और भगवान के गज़ब रिश्ता अछि ई युग में
पूजा पाठ के बदला घर दुआर मँगे अछि कलयुग में
मंदिर में घंटा बजोता बहुत जोर स देखाबा के लेल
पीठ पाछु सभहक गर्दन कटे छथि ई कलयुग में 
भगवान के पता छैन हरिदम हम साथ नहीं देबैन
धरती पर तै माय-बाप के भेजला ई कलयुग में
गुमान कम नहीं होयत अछि चुटपुजिय पंडितो के 
कॉज होय त टाँका मुह फोली क मंगता कलयुग में
भक्त और भगवान के गज़ब रिश्ता अछि ई युग में
पूजा पाठ के बदला घर दुआर मँगे अछि कलयुग में

बुधवार, 18 जनवरी 2012

गजल



निर्धन जानि कऽ छोरि गेलहुँ  माँ     
कोन अपराध हम केलहुँ माँ

केहनो छी तँ हम पुत्र अहींकेँ
सभ सनेश अहींसँ पेलहुँ माँ   

मूल्यक तराजुमे नै एना जोखू 
ममताकेँ  पियासल भेलहुँ माँ

दर-दर भटकि खाक छनै छी
दर्शन अपन नै दखेलहुँ माँ

मनु’केँ अपन सिनेह नै देलहुँ
सोंझाँ सँ दूर आब भगेलहुँ माँ

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१२)
जगदानन्द झा मनु

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

गजल


मुस्की सँ झाँपि रखने छी जरल करेज अपन।
सब सँ नुकेने छी दुख भरल करेज अपन।

दिल्लगी करै लेल चाही एकटा जीबैत करेज,
ककरा परसियै हम मरल करेज अपन।

मोहक जुन्ना मे बान्हल हम जोताईत रहै छी,
देखैत रहै छी माया मे गडल करेज अपन।

कियो देखै नै, तैं केने छी करेज केँ ताला मे बन्न,
देखबियै ककरा आब डरल करेज अपन।

कोनो गप पर नै चिहुँकै आब करेज "ओम"क,
अपने सँ हम घोंटै छी ठरल करेज अपन।
---------------- वर्ण १८ ---------------

सोमवार, 16 जनवरी 2012

हम छी मिथिला धाम के ना

हम छी मिथिला धाम के ना,
हम छी मिथिला धाम के ना,
नहि दरभंगा नहि मधुबनी,
नहि छी हम मधेश के,
नहि एहि पारक नहि ओहि पारक,
बाबा जनक केर गाम के ना,
हम छी मिथिला धाम के ना।  

बाबा जनक के बागक फुल,
जुनि करू अहाँ कुनो गुरुतर भूल,
अरहुल, चम्पाऔर चमेली,
तीरा गेंदा कियो छईथ बेली,
एहि बागक सब श्रिंगार गे ना,
हम छी मिथिला धाम के ना।

नहि भंडारिसम नहि शिवरामक,
नहि नवटोलक नहि कोनो गामक,
पूत-सपूत भेलहू मिथिला के,
मंडन मिश्रक गाम के ना,
हम छी मिथिला धाम के ना।

नहि भागलपुर नहि सहरसा,
नहि छी हम कटिहारक के,
ई सब मिथिला गामक टोल,
सुन्नर मैथिली बोल गे ना,
हम छी मिथिला धाम के ना।

जाति-पाति के नहि अछि बंधन,
भातृप्रेम के भेटय संरक्षण,
नारी छईथ जतय पूजल जाइत,
वैह सीता केर गाम के ना,
हम छी मिथिला धाम के ना।

खट्टर काका के तर्क “अमित” अछि,
विद्यापति के गीत यौ,
चंदा, लाललिखल रामायण,
सुग्गा सुनाबईथ वेद यौ ना,
हम छी मिथिला धाम के ना।

रचनाकार--अमितमोहन झा
ग्राम-भंडारिसम(वाणेश्वरी स्थान),मनीगाछी, दरभंगा, बिहार,भारत।

नोट..... महाशय एवंमहाशया से हमर ई विनम्र निवेदन अछि जे हमर कुनो भी रचना व हमर रचना के कुनो भी अंशके प्रकाशित नहि कैल जाय।

रविवार, 15 जनवरी 2012

गजल


की -की  बनब चाहै छलौं हम की बनि गेलौंह 
सुगँधा   अहीँ केँ  सनेह  में हम सनि गेलौंह 

आस हमर करेज केँ करेजे में रहि गेल 
अहाँक  पिआर में परि सबके जनि गेलौंह 

रहल नहि होश हमरा दुनियाँक दुख केँ 
अहाँक  लोभ में हम  भटकैत कनि गेलौंह 

सैदखन ख्याल में अहीं कए बसेने रहै छी 
सब कुछ हम अपन अहीं केँ मनि गेलौंह 

हमर स्नेह जे अहाँ सँ स्नेह नहि रहि गेल 
हमर मोन में बसि अहाँ प्राण बनि गेलौंह

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१७)
जगदानंद झा 'मनु'

कविता -धन हमर मिथिला

जुनि हमरा चाहि, धनक गठडिया |
दए दिय हमरा,हमर माटी कए पुडिया ||
लए लियअ हमरा सँ,हमर कमायल धन |
धन हमर मिथिला, माटी एकर धन ||
मायक आँचर सँ,हमर मिथिलाक धरती |
पायब एहन कहु, दोसर कतए धरती ||
दूर भए कए बुझलौंह, मोल एकर हम |
कि थिक हमर, आ कि एकर हम ||
जाहि आँगन में, जनमलौंह खेलेलौंह |
दाबा पकैर जतए, चलब हम सिखलौंह ||
आई ओही आँगन सँ,एतेक दूर भएलौंह |
कचोतैए मोन कए,दर्शनों नहि कएलौंह ||
*** जगदानंद झा 'मनु'

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"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका,१५ नवम्बर २०११,में प्रकाशित
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कविता - कथा अमर अपन मिथिला कए



कथा अमर अपन मिथिलाकेँ 

एकरा जुनि बिसरू |
समस्त संसार मैथिलीमय हुए
आब ओ दिन सुमरु ||

बहुत पिसएलहुँ सत्ताक जाँतमे
आब जुनि पिसल जाउ |
बहुत पछुएलहुँ  पाँछा चलि कए
आबो आगु डेग बढाउ ||
निरादर किएक माएक भाषाकेँ
एकरा जुनि बिसराउ |
आबो जागू होश सम्हारु
मैथिलीकेँ  बचाउ ||

उठू सुतल शिंह  जगाबु
अपन स्वाभिमानकेँ  |
आसमानसँ  ऊँच उठाबू
अपन मिथिलाक पहचानकेँ  ||
*****
जगदानन्द झा 'मनु'

शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

हास्य कविता--आधुनिक बैण्ड

काल्हि छलौँ सुतल मचान पर ,
तखने किछु बड्ड जोर सँ बाजलै ,
लड़खड़ा क' खसलौँ दलान पर ,
झट पुछलौँ बड़का बेटा सँ ,
कहलक भुटकुनमा के विआह छै .
ओही ठाम बैण्ड बाजए छै ,
बैण्ड ! आश्चर्य सँ खुजल रही गेल आँखि ,
बैण्ड एहन होई छै .
हमरा जमाना मे होइ छलै एकटा ठेला .
मधुरगर शहनाई के स्वर ,
ढोलक थाप .
झाइलक झंकार ,
आ गीक गाबैत गबैया ,
मुदा आब ,
चारि चकिया धुआँ उड़ाबैत ट्रक ,
ताही पर 10-20 टा ध्वनी विस्तारक यंत्र ,
तेज धुन ,
अश्लिल बोल ,
दारू पि नाचैत छौड़ा छौड़ी ,
ई पहचान अछि आधुनिक बैण्ड कए ,
फाटी जाइ ककरो कानक पर्दा ,
पैड़ जाइ दिल के दौड़ा ,
भ जाइ ब्रेन हैमरेज ,
त कोनो जुलुम नइ ,
ई बैण्डक धुन सुनि क'
खुशी वा डर सँ जानवरो नाच लागै छै
सच मे जमाना बदलि गेलै यै , . . । ।

{जौँ किनको दिल के ठेस पहुँत त' हम क्षमा चाहब}
अमित मिश्र

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

‎[एलखिन नवकि कनिया ]

एलखिन केहन देखू नवकि कनिया ,
मांथ पर नै आँचर पैर में नै पएजनिया,

आइंख में लागोने छथ वो करिया चश्मा,
काजरक आइंख में नै दरस बुझाबेयेन,

सिन्नुर क त गप छोइर दीआ ,
कनिको टा कपार पर में नै टिकुली,

अंग में नै वो पहिरने छथ साडी ,
कानो में नै छैन पहिरथ बाली ,

टुकुर-टुकुर कोना मुहं तके छथ ,
जेना छथ वो लड़की लन्दन वाली ,

जींस पेंट आ शर्ट पहिरने ,
लड़का सन छथ केश कटोने,

हाथ में देखू छथ मोबाइल दबोने ,
सास ससुर की वो सेवा करती ,
दूल्हा से अपन जे टहल करोती,

दूल्हा के समझथीन जेना नचनिया ,
एलखिन केहन नवकि कनिया ,

आइल छलो देखई लेल नवकि कनिया ,
अजगुत देखल अजबे अछि दुनिया ,

[रूबी झा

गजल


कखनो छूबि दियौ हमरो फुलवारीक फूल बूझि क'।
किया केने छी यै कात हमरा करेजक शूल बूझि क'।

हमरा सँ नीक झूलनियाँ, जे बनल अहाँक सिहन्ता,
हमरो दिस फेरू नजरि झूलनियाँक झूल बूझि क'।

अहाँक नैनक मस्ती बनल प्रेमक पोथी सब लेल,
हमहुँ पढब प्रेम-पाठ अहाँ सँ इसकूल बूझि क'।

बहत प्रेमक पवित्र धार, करेज बनत संगम,
प्रेम छै पूजा, नै छोडू एकरा जिनगीक भूल बूझि क'।

प्रेमक घर अहाँक अछि किया फूजल केवाडी बिना,
ठोकि लियौ "ओम"क प्रेम ओहि केवाडीक चूल बूझि क'।
----------------------- वर्ण २० -----------------------