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गुरुवार, 12 जनवरी 2012

गजल


हम सब पूछी अहाँ सँ एकेटा सवाल, किछ बाजू ने।
अहाँ केलियै किया देशक एहेन हाल, किछ बाजू ने।

आसक धार मे हेलैत मनुक्खक कोनो हेतै कछेर,
आस पूरत, कहियो एतै एहन साल, किछ बाजू ने।

भूखल आँखिक नोर सुखा केँ बनि गेल अछि यौ नून,
वादाक अचार चटा, करब कते ताल, किछ बाजू ने।

कदम ताल करै सँ कतौ देशक भ्रष्टाचार मेटेतै,
गुमस बेसी हेतै त' भ' जैत यौ बवाल, किछ बाजू ने।

राशन होय की शासन अहाँ सभ ठाँ पेंच लगौने छी,
कर जोडि कहै ए "ओम", तोडू इ जंजाल, किछ बाजू ने।
------------------- वर्ण २० ---------------------

गजल

गजल  संख्या-७

छुपि -छुपि  दिन राति  हम अहाँक छवि निंघारै छी 
एक अहाँ छी की  नइँ हमरा करेजा सँ लगबै छी 


एक दिन पूरा होयत हमरो करेजक कामना 
अहुँ कि याद करब की ककरा सँ नेह लगाबै छी 


एक दिन ओहो एतै जहिया हमर स्नेहिया एबै
तखन अहीँकेँ निंघारब एखन छबि निंघारै छी 


नहि मिलन कए ओ घडी आब अहाँ रोकल करू 
ओ मधुर घडी जल्दी आबे हम इंतजार करै छी 


हमर जे चाहत अछि से सुनायब हम जरुर 
नै रोकने अहाँ हमरा आब कहै सँ रोकी सकै छी 


(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१९)
जगदानन्द झा 'मनु' 

बुधवार, 11 जनवरी 2012

गजल


जिनगीक गीत अहाँ सदिखन गाबैत रहू।
एहिना इ राग अहाँ अपन सुनाबैत रहू।

ककरो कहै सँ कहाँ सरगम रूकै कखनो,
कहियो कियो सुनबे करत बजाबैत रहू।

खनकैत पायल रातिक तडपाबै हमरा,
हम मोन मारि कते दिन धरि दाबैत रहू।

हमरा कहै छथि जे फुरसति नै भेंटल यौ,
घर नै, अहाँ कखनो सपनहुँ आबैत रहू।

सुनियौ कहै इ करेजक दहकै भाव कनी,
कखनो त' नैन सँ देखि हिय जुराबैत रहू।
------------- वर्ण १७ ---------------

पावसक आगमन

सालक पहिल दिन पावसक आगमन
आमोद सँ भैर गेल तन-मन
वसुन्धरा के कण-कण तृप्त भेलै
गाछक पात सिँचित भेलै
सबहक रोआँ भिज गेलै
जमल गर्दा बहा लs गेलै
शुभ काज मे जौँ वर्षा भs जाए
तs शुभ मानल जाइ छै
जानै छी वर्षा भेलै तs की केलकै
धो देलकै पुरनका पाप
बहा लs गेलै मोनक दम्भ
रसालक रस जीभ पर देलकै
तम भरल दिल अंशु सँ चमका देलकै
प्रेमक अंचल मे बैसल छी
आब "अमित" आदर्श मनुष्य छी . . .।
{अमित मिश्र}

हास्य कविता -‎गुलाम छी कनियाँ के

‎‎आई हम बता रहल छी हालात इ दुनिया के
कोना कs सुनाबी खिस्सा अपन कनियाँ के |

दिन भैर खटैत-खटैत सुखी गेल खुन शरीर के
कनियाँ मोटा गेला मात्र एक बरिस मेँ
फूली कs भेल फुक्का अंग-अंग ओकर शरीर के
आइ हम बता रहल छी हालात इ दुनिया के |

घर के सुप्रिम जज इ बात कोना नै मानी
अपना लेल मधुर मलाई दोसर लेल छुच्छ पानि
दौरैत रहै छी पैदल कोन काज स्कुटर के
आई हम बता रहल छी हालात इ दुनिया के |

नै पान खा सकए छी नै लौँग नै इलायची
कानून जौँ तोड़ब गर्दन पर चलत कैँची
बेलना के माइर खाइ छी होई साफ हम झाड़ू से
आइ हम बता रहल छी हालात इ दुनिया के |

मैडम के जुल्म छै या तकदिर के सितम छै
कोना क' हम बताबी कतेक उदास हम छी
तुफान मे फसल छी आश नै किनारा के
आइ हम बता रहल छी हालात इ दुनिया के |

एकटा हमहीँ नै छी गुलाम कनियाँ के
हमरा सन कतेक भाई आओर छै दुनिया मे
कहियो लेब " अमित" सहारा बोतल इ जहर के
आइ हम बता रहल छी हालात इ दुनिया के . . , , , , ,|


इ कविता सोच सँ लिखल आ काल्पनिक अछि । । हम नीक लिखलौँ की नइ जानी नै । ।अनुभव नै अछि विवाहक जीवनक ।{ अमित मिश्र }

अन्हारक अर्थ

अन्हार भिन्न-भिन्न संदेश दै छै सब कए
जेहन सोच,जेहन काज,तेहन अर्थ
चोरक लेल चोरिक समय
प्रेमी लेल जोड़ा-जोड़ीक समय
जानवरक लेल शिकार कए
पहरा देब पहरेदार कए
गृहस्थ लेल आराम कए
सन्याश लेल राम कए
गायकक लेल रियाज कए
बिछुरल मितक लेल विरह कए
विद्यार्थी के लेल पढाई कए
कवि कए लेल रचनाई कए
जहिना अनेको रूप पालनहार कए
ओहिना बहुतो अर्थ छै "अमित" अन्हार के . . . . ।

{अमित मिश्र}

इश्क कए मारल छी

दिल कए बात करै छी ,
बुझु नै हम किताबी छी ,
मैखाना मे रहए छी जरूर ,
समझू नै हम शराबी छी ,
राति जखन जुआन भ' जाए ,
आँखि सँ बारीस करै छी ,
मुंह देख डर लागैत होयत .
बुझु नै हम गुलाबी छी ,
अपने आप सँ बात करैत चलै छी
शायद फाटल लिवास मे ,
इश्क कए मारल छी "अमित",
बुझु नै हम मवाली छी . . , । ।

(अमित मिश्र)

मंगलवार, 10 जनवरी 2012

''गर्भ में बेटी ''

तोहर कोइख में ता अछि दुनिया हमर गै माँ ,
तू नै करबें ता करते के हमरा पर दया हमर गै माँ ,

हम ता तोरे छि छांह ,राखो दे एही जग में पाँव ,
अछि मन में लालसा बहुत देखि दुनिया केर रंग ,
रहब तोरे हम संग ,करबैन किनको ना तंग ,

निर्मोही छथि दाई, बाबा, आ बाप ,
कतेक केलो बिनय कतेक केलो बिलाप ,

नै अछि कोनो एही जग में हमर सहारा हे गै माँ ,
तू नै करबें ता करते के हमरा पर दया हे गै माँ ,

जहिया पढ़ब, लिखब पोथी भाईऐ के पढ़ी लेब ,
छोरल भैया के आइंठ खाई हम जीबन जीबी लेब ,

खुजे दे त हमर आँखी एक बेर हे गै माँ ,
करब उजागर नाम हम पुरखा के, हैत नै देर हे गै माँ ,

कनी सोचहिं चिंतित भये हेते ज्यौं केवल बेटा ,
लेती ना जनम बेटी ता ऐ बेटा कतए सां एता ,

स्व स्नेह
'' रूबी झा ''

''अक्खियाश ''

सुगंध सुमनक जेना गामेइक उठेत अछि ,
प्रेम हुनक ओहिना मन में कसैक उठेत अछि ,

बात कहबाक जे छल से कहलो न जाई,
प्रीतम अहाँ बिनु हमरा रहलो न जाई ,

अक्खिआशे अहाँ के बैसल भोर सां ,
देखयो ता कोना साँझ भये गेल ,
चिकश सनेत छलो सेहो घोर भय गेल ,

पहिलुक ओ रंग रभस बिसरल नै जैएत अछि ,
जखन इ सोची त नयन बर्बसे झुकी जायेत अछि ,

कखनो बुझाइत अछि आगम अहाँ के ,
भागी-भागी देखि मुह दर्पण में जाके ,

सजी धजी के जखन चोकैठ लग गेल छि ,
धुर जाओ की भेल इ बताश हंसी का गेल अछि ,

[रूबी झा]

माँ केर ममता

माँ केर ममता होई अछि जेना सागर ,
कखनो न ख़ाली होई अछि इ गागर ,

फूसीयो जो कखनो हम रुसी जायेत छि ,
आबी -आबी देखू कोना हमरा मनाबथी,

सदिखन हमर ओ त हिम्मत बढआबथी ,
बाट क सदिखन दूर करतीं अँधियारा ,
माँ लेल बच्चा होई अछि बड़ प्यारा ,

सत्य क मार्ग ओ त सदिखन देखाबथी,
राइत में जखन हमरा नींन नै आबे ,
लोरी बैस क सगरो राइत वो सुनाबथी ,

जखन- जखन भय सां हम घबराबी,
हाथ में आँचल हुनके त हम पाबी ,

माँ त होइत अछि सब गुण केर आगर,
माँ केर ममता होई अछि जेना सागर ,

'' रूबी झा ''

‎''दहेजक कहर''

कतेक कहू,कहिआ हेतै खतम इ दहेज कहर,
किनको आइग लगेनाइ किनको देनाइ जहर,

बृद् होइते सासु जी किय् इ बिसैर जाइ छथ् एहसास,
काइल वोहो छलथ्हि कनिया आइ बनल छथ् सास्,

ननोइद् नै इ सोचअथ्हि जेहने वो छथ्हि अपन माँ केर प्यारी ,
हुनक घर जे एली भाऊज सेहो छथ्हि अपन माँ के दुलारी ,

इ बात क कहिया बुझ्थिन अहि बातक त रोनाई अछि ,
आई जे भाऊज पर होई छैन काइल हुनको पर होनाई अछि ,

सात फेरा लेलैन जे हमरा संग प्रेमक नगरी बसऊलनि ,
देवता बुझी के जिनका लग एलहूं सेहो कसाई भा गेलनि,

‎''आब इ देश में''

आब देखु एही देश में ,
लाल कम लाला बेसी अछि ,
काम कम घोटाला बेसि अछि ,
आब देखू एही देश में ........!

सामान अछि बड़ कम,
महंगाई बेसी अछि ,
आब देखू एही देश में ........!

नोकरी अछि बड़ कम ,
बेरोजगारी कतेक बेसी अछि ,
आब देखू एही देश में ........!

ईमान कतेक कम अछि ,
खरीदारी कतेक बेसी अछि ,
आब देखू एही देश में .........!

सेवा अछि बड़ कम ,
स्वार्थ कतेक बेसी अछि ,
आब देखू एही देश में .......!

शब्द अछि बड़ कम ,
शब्दार्थ कतेक बेसी अछि ,
आब देखू एही देश में ........!

''रूबी झा''

‎''बिरह गीत ''

कोन अगुन अपराध हरी जी के ,
केलियन हे ऊधो ........!

ज्यूँ हम रहितऊँ बन के मयुरनी ,
कृष्ण करथि श्रिंगार मुकुट बिच ,
शोभितहूँ हे ऊधो ........!

ज्यूँ हम रहितऊँ ब्येजंत्री के माला ,
कृष्ण पहिरथी हार ह्रदय बिच रहितहूँ ,
हे ऊधो .........!

ज्यूँ हम रहितऊँ वांसक बांसुरी ,
कृष्ण करथि स्वर गान मधुर स्वर ,
बजित्हूँ हे ऊधो .......!

ज्यूँ हम रहितऊँ जल के मछली ,
कृष्ण करथि स्नान चरण हम,
छूबितऊँ हे ऊधो ....!

कोन अगुन अपराध हरी जी के ,
केलियन हे ऊधो .......!!

रूबी झा

''हास्य कविता ''

फिट -फाट बबुआन बनैत छथ ,
नॉकरी लेल जे पढ़े लिखे छथ ,

ज्यूँ किओ हिनका कह्तेंन नौकर,
लगतेंन इ बात छक द,
हे यौ कहबैन त लगतैन छक द ,

पियोज देखि क आँखी मुने छथ,
लहसुन देखि क मुह बनबई छथ,

सवँसे मुर्गा गिड़े छथ गट द ,
हे यौ कहब त लगतैन छक द ,

मांथ पर बरका पाग बन्हेत छथ ,
दहेज़ प्रथा पर भाषण दये छथ,

अपन जखन बेर अबैई छैन ,
नमरी तहिअबे छथ बक द ,
हे यौ कहबेन त लगतैन छक द ,


[ruby jha]

''बिरह गीत ''

आम गाछ कुहके कारी कोयलिया,
बिजुबन कुह्कई मयूर यौ,

नैहर में कुहके सुन्नरी कामिनी ,
जिनकर बालम परदेश यौ ,

घर के पाछू में कयेथा रे भैया ,
एक कलम चिठ्ठी लिखी देहु यौ ,

चारू कात लिखब हमर मिनतीया,
माँझे ठाम धनि के बियोग यौ ,

घर के पाछू में हजामा रे भैया ,
एक कलम चिठ्ठी चुहुपैब यौ ,

जाही ठाम देखब भैया दस पाँच लोक ,
ओही ठाम चिठ्ठीया नुकैब यौ ,

जाही ठाम देखब एसगर बालम जी,
ओही ठाम चिठ्ठीया देखैब यौ,

चिठ्ठी पढेत बालम मन मुसकाबेथ,
कतेक धनि लिखलैन बियोग यौ ,

लियो राजा लियो राजा अहाँ नौकरिया,
हम जाइब धनि केर उदेश यौ ,

खोलू -खोलू हे ये धनि बज्र केवार,
हम एलहुं अहाँ के उदेश यौ ,

हम कोना खोलब यौ बालम ,
बज्र केवार आँचर सुतल लाल यौ ,

हम ता छलहूँ धनि देस बिदेश ,
कतय सं आइल नन्द लाल यौ ,

अहूँ स सुन्नर छोटका दीयर जी ,
हुनके स भेल नन्द लाल यौ ,
[रूबी झा]