की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। sadhnajnjha@gmail.com पर e-mail करी Or call to Manish Karn Mo. 91 95600 73336

गुरुवार, 5 जनवरी 2023

गजल

भगवती जकर माए ओ टुगर कहल कोना 

हाथ छै दुनू भेटल रंक ओ रहल कोना

  

माथ पर हमर सदिखन जखन हाथ मैयाकेँ

एहिठाम रहलै कोनो  कठिन टहल कोना 

 

लेब छोरि कखनो देबाक बात कनि सोचू

सगर गाम देखू सुख शांति नहि बहल कोना

 

शेरकेँ घरे बैसल   नहि शिकार भेटै छै

घरसँ जे निकलबै नहि घर बनत महल कोना

 

काज नहि अपन हिस्सा केर ‘मनु’ करी हम सब

ई सहज सगर दुनिया नहि  बनत जहल कोना

(मात्राक्रम : 212-1222/ 212-1222 सभ पाँतिमे)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

मंगलवार, 27 दिसंबर 2022

रुबाइ

नेह पजाड़ल अहाँक धधैक रहल अछि

एसगर करेज हमर तड़ैप रहल अछि 

कोन लगने अहाँसँ  मनु नेह लगेलौं

प्रेमक गरमीसँ देह बरैक रहल अछि

© जगदानन्द झा ‘मनु’

 

 

रविवार, 25 दिसंबर 2022

रुबाइ

घुमि अहाँ कनखीसँ कनि जे ताकि देलहुँ 

अपन तन मन एहि पर हम हारि देलहुँ

आब नहि बैकुंठकेँ रहि गेल इच्छा 

‘मनु’ अहाँके लेल सगरो बारि देलहुँ 

© जगदानन्द झा ‘मनु’

बुधवार, 21 दिसंबर 2022

रुबाइ

धाब जे अहाँ हमर करेजकेँ देलहुँ

 सबटा दर्द दुनियाँसँ नुका लेलहुँ  

मुस्कीसँ हमर नै बुझू जे हम खुश छी

अहाँक खुशी लेल नोरकेँ पी गेलहुँ 

© जगदानन्द झा ‘मनु’

 

बुधवार, 14 दिसंबर 2022

गजल

जखन सगरो दर्द भेटल 

अपन सीलौं ठोर रेतल 

 

द’बल अपने हाथ गरदनि 

तखन के ई नोर मेटल 

 

घरक बन्हन छोरि दुनिया

सटल जतए नोट गेटल 

 

भरोसा करु आब कोना 

लखन भेषे चोर फेटल 

 

दहेजक ‘मनु’ चारिचक्का  

बियाहक पहिनेसँ सेटल 

(बहरे मजरिअ, मात्राक्रम 1222-2122)

जगदानन्द झा ‘मनु’

शनिवार, 10 दिसंबर 2022

हमरा तँ चिन्हते होएब ?

आइ भोरे भोर एकटा अजोध वयोवृद्ध मैथिली साहित्यकार, गीतकार सो कॉल ग़ज़लकारकेँ फ़ोन आएल- “ट्रीन ट्रीन ट्रीन….”
हम- “हेलो”
उम्हरसँ- “के ? मनु।”
हम– “जी”
उम्हरसँ खूब खिसीयाति- “ई की अहाँ सभ फ़ेसबुकपर उल्टासिधा लिखैत रहै छी ? एक दू, एक दू। हम सब तँ भरि ज़िंदगी घास छिललौं।”
हम – “अपने के ?”
उम्हरसँ- “हम सा रे गा मा, हमरा तँ चिन्हते होएब ?”
हम – “हाँ”
उम्हरसँ- “कतेक ?”
हम – “जतेक अहाँ हमरा चिन्है छी।”
की ओ झट फोन राखि देला।
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’


शुक्रवार, 9 दिसंबर 2022

गजल

जखन मोन कानल गजल कहलौं

रहल कोंढ़ छानल गजल कहलौं 

 

जमाना सुतल छल जखन नींदसँ

तहन राति जानल गजल कहलौं 

 

लगन भेल तीसम बरख धरि नहि

पड़ोसनसँ गानल गजल कहलौं 

 

जुआ छल लदल कांहपर लोकक

पसीनासँ सानल गजल कहलौं 

 

उमर ‘मनु’ बितल आर की करबै 

अपन मोन ठानल गजल कहलौं 

(मात्राक्रम सभ पाँतिमे 122-122-1222)

जगदानन्द झा ‘मनु’

गुरुवार, 8 दिसंबर 2022

रुबाइ

देख तोरा सुन्नरी सीटी बजैए 

बन्द धरकन ई कतेकोकेँ करैए 

फालतू परमाणु बम दुनिया बनेलक

तोर कनखीपर मनुख लाखो मरैए 

© जगदानन्द झा ‘मनु’

 

सोमवार, 28 नवंबर 2022

रुबाइ

हम जरैत छी की अहाँ प्रकाशित रही

अहाँक सुख लेल खुशीसँ हम आँच सही 

बातीकेँ जरैत  दुनिया देखलक

तेल बनि हम तँ जरलौं दुख कतेक कही 

© जगदानन्द झा 'मनु' 

 

शनिवार, 3 सितंबर 2022

सरकारी नौकरी

"गै दाई ! लाल कक्का, ई करीक्का वऽर कतएसँ  लअ अनलनि ?"
"रहअ दहक ! सुनलह नै जे काम पियारा की चाम पियारा, ई करीक्का सरकारी नौकरी करै छै।"
✒ जगदानन्द झा 'मनु' 


रविवार, 11 जुलाई 2021

एकटा मैथिली जमेएकें उत्तर

मिथिलामे जमेएकें भोजन परसैत काल साउस पुछलथिन : "झा जी खीर खेबइ कि हलुआ..??"

जमेए : "किएक घरमे कटोरी एक्के टा छैक की ?''

गुरुवार, 20 मई 2021

गजल

अहाँ रहूँ घरे हम   ठानि अबै छी
एहि पापी पेट लेल छानि अबै छी

रोटी पर नून नै घी पीबि सपना 
हुनक भोजक मंत्र जानि अबै छी 

कमौआ पुतक लातो सोहनगर 
गरीब घरक कोड़ो गानि अबै छी 

चानि पर तेलक अभाबे केश नै
कनियाँगतक खेत फानि अबै छी 

गप्पक कोनो खतिहान नै भेलैए
'मनु' बैसू हम पीबि पानि अबे छी
(सरल वार्णिक बहर - वर्ण १३)
जगदानन्द झा 'मनु'

शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

भक्ति गजल

मैया हमर जगतारनि कल्याणी 

सबहक अहाँ सुधि लेलौं महरानी 


नै हम मिलब माँ बाटक गरदामे

चिंता किए जेकर माय भवानी  


जग ठोकरेलक सदिखन ढेपासन 

देलौं शरण निर्बलके हे दानी


दर्शन अपन दिअ हे अम्बे माता 

नै सोन झूठक चाही नै चानी


धेलक चरण 'मनुतोहर हे मैया 

नै आब जगमे ककरो हम जानी 

(मात्रा क्रम : २२१२-२२२-२२२)

जगदानन्द झा 'मनु'

रविवार, 12 अप्रैल 2020

मोनक प्रश्न

की कवियो सभक धर्म होइ छै ?
कि सभ कवि बेधर्मी होइ छै ?
हाँ हाँ ई जुनि कहि देब, कविक धर्म
हमरा कविक धर्म नहि
हमरा बुझैके अछि कविके घर्म
धर्म ! ओ धर्म
अहाँक पुरखाक घर्म
जे अहाँके वैष्णव बनेलक
जे अहाँके टीक रखब सिखेलक
जे अहाँके माय भगवतीक सेबक बनेलक
आ जे केकरो गायभक्क्षी बनेलक
ओ धर्म

किएक
अनायास ई प्रश्न किएक ?
आइ देख रहल छी
जाहि कविके दाढ़ी नै भेलैए
ओहो गड़ीया रहल अछि
धर्मके टीक आ चाननके
गड़ीया रहल अछि
धर्मक गप्प करै बलाके
गड़ीया रहल अछि
धर्मक स्थानके
आ धर्म देवीके

कमोबेस मैथिलीक कविक सभक
इहे चालि अछि
हाँ ! कियों चिन्हार
तँ कियों अनचिन्हार अछि
तें पुछए परल ई प्रश्न
की कवियो सभक धर्म होइ छै ?
कि सभ कवि बेधर्मी होइ छै ?
यदि बेधर्मी भेनाई अनिवार्य होय कविके
तँ हमहूँ अपन जनउ तोरि ली
टीक काटि
गड़ीयाबै लागू झा मिसरके
खए लागू पाया आ लेग
कवि बनी की नै
मन बुझए अबे की नै
मुदा अकादमी पुरस्कार
भेटत हमरे
सभ परहत हमरे
कर्मे नहि तँ कुकर्मे
सभ परहत हमरे ।
        *****
        जगदानन्द झा "मनु"

शुक्रवार, 11 जनवरी 2019

कविता - भरल चगेंरी मुरही चुरा


                          || तिलासंक्रान्ति ||
                      " भरल चगेंरी मुरही चुरा "
                                       

उठ - उठ बौआ रै निनियाँ तोर ।
अजुका   पाबनि   भोरे   भोर ।।
पहिने  जेकियो   नहयबे  आई ।
        भेटतौ तिलबा रे मुरही लाइ ।।  उठ....

ई पावनि छी मिथिलाक पावनि
सब  पावनि   सं   बड़का  छी ।
भरल     चगेंरी      मुरही     चुरा
तिलवा   लाई   उपरका   छी ।।

उपर  देहिया  थर - थर  काँपय
        भीतर मनुआँ भेल विभोर ।।  उठ....

   चहल पहल भरि मिथिला आँगन
 अइ पावनि के  अजब मिठाई ।
आई   देत   जे   जतेक   डुब्बी
 भेटतै   ततेक   तिलबा  लाई ।।

मुन्ना   देखि  भरय   किलकारी
            जहिना वन में कोइलिक शोर ।।  उठ...

बुढ़िया   दादी   बजा   पुरोहित
छपुआ साडी   कयलक दान ।
तील चाऊर बाँटथि मिथिलानी
    एहि पावनि केर अतेक विधान ।।

     "रमण" खिचड़ी केर चारि यार संग
              परसि रहल माँ पहिर पटोर ।।  उठ......

  गीतकार
     रेवती रमण झा "रमण"