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मंगलवार, 24 सितंबर 2013

जखन ओ मन पड़य छथि

हँसेति छी जेखन ओ मन पड़य छथि 
कानैति छी जेखन ओ मन पड़य छथि

बितलाहा दिन आबि जायक्मअ अछि सोझा 
बहुत ओ जेखन मन पड़य छथि

गीत

गे पसिनियॉ भौजी पिया दे कनीक ताड़ी गे — 4
एक लबनी ताड़ीकेँ  खातिर, किए  करे छें एना गे
तोहर हम परमामेन्ट ग्राहक , किए  करे छें एना गे — 2
काल्हि हम पाइ देबे करबो — 2 आई पिया दे उधारी गे
गे पसिनियॉ भौजी पिया दे कनीक ताड़ी गे —2
बिन ताड़ीकेँ  कोना हम जीयब , ताड़ी हमर जीवन छी
मानय हमर बात गे भौजी , ताड़ी हमर जीवन छी — 2
ताड़ी जौं नहिं पियैम आई त —2 भ जएतो मारामारी गे
गे पसिनियॉ भौजी पिया दे कनी के ताड़ी गे —2
गाछ बला जौं ताड़ी नहिं छउ , आखिसॅ पिया दे गे
पियासल हम छी जनम जनम के , आखिसॅ पिया दे गे
मिसिया भरि मुस्कान पर आशिक — 2 लिख देतौ घड़ारी गे
गे पसिनियॉ भौजी पिया दे कनी के ताड़ी गे — 4

नोट — हमर उद्धेश्य सिर्फ मनोरंजन अछि , कियो गोटे व्यक्तिगत नहिं लेति जौं किनको एतराज छन्हि त आदेश करी ई पोस्ट हटा देलि जायत । धन्यवाद

आशिक ' राज'

शनिवार, 21 सितंबर 2013

माए


कोना कए बिसरबै माए
अहाँक सिनेह ओ
आँचर तर अहाँक बसलहुँ
पिलहुँ ममताक नीर ओ

हम सुती सुखलमे
आ अहाँ तीतलमे
अपने भूखे सुति कए माए
पोसलहुँ हमरा घीमे

रौद पानि अपने सहलहुँ
हमरापर नहि आएल आँच
हम सुती राति राति भरि
अहाँक रहेए निन्न काँच

नव नव कपड़ा पएलहुँ
हम, सब पावनि तिहारमे
एक जोड़ साड़ीमे माए
अहाँक जीवन बीतल बिचारमे

सब शिक्षा सब दीक्षा
अहाँ हाथे अप्पन देलहुँ
सुख छोरि हमरा लेल
दुख सबटा अहाँ लेलहुँ

हे माए आइ धरि  
अहाँक एतेक सिनेह
छोरि अहाँ लग
दोसर कतौ नहि पेलहुँ।                       
   

शनिवार, 14 सितंबर 2013

भगवानकेँ जे नीक लगनि


बाबा भोलेनाथक विशाल मन्दिर। मुख्य शिवलिंग आ समस्त शिव परिवारक भव्य आ सुन्दर मूर्ति। साँझक समय एक-एक कए भक्त सब अबैत आ बाबाक स्तुति वन्दना करैत जाएत। एकटा चारि बर्खक नेना आबि बाबा दिस धियानसँ देखैत। ताबएतमे एकटा भक्त आबि बाबाक सोंझाँ श्लोक, कर्पुर गौरं करुणाव

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

गजल

हम गजल कोना कहू भीड़मे रसगर
सगर मुँह बेने मनुख भेसमे अजगर

पाइ घोटाला हबालाक खाएकेँ
रोग छै सबकेँ पकरने किए कसगर

बहिन माए भाइ बाबू अपन कनियाँ
सब तकै सम्बन्धमे दाम ली जथगर

गामकेँ बेटा परेलै शहर सबटा
खेत एकोटा रहल आब नै चसगर

छै बिकाइ प्रेम दू-दू टका मोले
रीत मनुकेँ नै लगै छै कनी जसगर

(बहरे कलील, मात्रा क्रम २१२२-२१२२-१२२२)

जगदानन्द झा मनु’    

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

गजल

आइ किछु मोन पडलै फेरसँ किए
भाव मोनक ससरलै फेरसँ किए

टाल लागल लहासक खरिहानमे
गाम ककरो उजडलै फेरसँ किए

आँखि खोलू, किए छी आन्हर बनल
नोर देशक झहरलै फेरसँ किए

चान शोभा बनै छै गगनक सदति
चान नीचा उतरलै फेरसँ किए

"ओम" जिनगी अन्हारक जीबै छलै
प्राण-बाती पजरलै फेरसँ किए
(दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)-(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)-(दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ)
(फाइलातुन-फऊलुन-मुस्तफइलुन) - १ बेर प्रत्येक पाँतिमे

गुरुवार, 5 सितंबर 2013

गजल

कहियो तँ हमर घरमे चान एतै
नेनाक ठोर बिसरल गान गेतै

निर्जीव भेल बस्ती सगर सूतल
सुतनाइ यैह सबहक जान लेतै

मानक गुमान धरले रहत एतय
नोरक लपटिसँ झरकिकऽ मान जेतै

सुर ताल मिलत जखने सभक ऐठाँ
क्रान्तिक बिगुलसँ गुंजित तान हेतै

हक अपन "ओम" छीनत ताल ठोकिकऽ
छोडब किया, कियो की दान देतै

(दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ)-(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ)-(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)
(मुस्तफइलुन-मफाईलुन-फऊलुन)- प्रत्येक पाँतिमे एक बेर

बुधवार, 4 सितंबर 2013

आँच

जिला अस्पताल। डा० श्रीमती देवी सिंह। पेशेंटकेँ शुक्ष्म परिक्षण कएला बाद परिक्षण कक्षसँ बाहर आबि कुर्सीपर बैसैत, सामने अपन कॉलेजक संगी सुधासँ, ई कि अहाँ तँ कहलहुँ सुटीयाक वर दू वर्ख पहिने मरि गेल छै मुदा ओ तँ तीन महिनाक गर्भसँ अछि।
से कोना ! हमरा तँ ओ कहलक ब्लडींग बेसी भए रहल छै, तेँ हम ओकरा लए कऽ अहाँ लग आबि गेलहुँ नहि तँ हमरा कोन काज छल एहि पापक मोटरीकेँ लए कऽ एतए आबैकेँ
से कोनो नहि, कएखनो-कएखनो कए एना हैत छैक। गर्भ रहला उतरो संजम नहि कएलासँ ब्लडींग बेसी होइत छैक परञ्च पतिकें मुइला बादो ई गर्भ कतएसँ।
से की पता ई पाप कतएसँ पोइस लेलक मुदा ओकरो कि दोख बएसे की भेलैए मात्र बीस वर्खक बएसमे ओकर घरबला छोरि कए परलोक चलि गेलै। एहिठाम पच्चपन वर्खक पुरुखकेँ ब्याहक अधिकार छै मुदा ओहि समाजक लोक बीस वर्खक विधवाकेँ एहि अधिकारसँ बंचित केने अछि आ जखन आँच पजरतै तँ किछु नहि किछु पकबे करतै ओ चाहे रोटी होइ वा हाथ।

रविवार, 25 अगस्त 2013

गजल

गजल-1.66
एक ठोप प्रेम चलते तड़पैत छी
मान तोहर चित्र नोरसँ पोछैत छी

प्रीतकेँ पकड़ब सहज नै आँखिसँ बुझू
सत हियाकेँ हाथ लेने हँकमैत छी

आइ बदलल सन लगै छै दुषित हवा
एक जोड़ा मोर तन-मन मिलबैत छी

सोन सन जीवन निशामे मातल रहय
तेँ उधारी माँगि दुख पिबैत छी

धातुकेँ सोना तँ बनबै छै आगिये
तेँ सिनेहक आगिमे तन जड़बैत छी

बहरे जदीद
2122-2122-2212
अमित मिश्र

विदेह भाषा सम्मान २०१३-१४ (वैकल्पिक साहित्य अकादेमी पुरस्कारक रूपमे प्रसिद्ध)

विदेह भाषा सम्मान २०१-१ (वैकल्पिक साहित्य अकादेमी पुरस्कारक रूपमे प्रसिद्ध)
२०१ बाल साहित्य पुरस्कार श्रीमती ज्योति सुनीत चौधरी- “देवीजी” (बाल निबन्ध संग्रह) लेल।
२०१ मूल पुरस्कार - श्री बेचन ठाकुरकेँ "बेटीक अपमान आ छीनरदेवी" (नाटक संग्रह) लेल।
२०१३ युवा पुरस्कार- श्री उमेश मण्डलकेँ “निश्तुकी” (कविता संग्रह)लेल।
२०१४ अनुवाद पुरस्कार- श्री विनीत उत्पलकेँ “मोहनदास” (हिन्दी उपन्यास श्री उदय प्रकाश)क मैथिली अनुवाद लेल।

गुरुवार, 22 अगस्त 2013

सेल्समेन


गामक दलानपर नून तेलक दुकान चलेनाहर, साहजी अपन मुस्काइत मुँह आ शांत स्वभावकेँ कारण गाम भरिमे सभक सिनेहगर बनल मुदा किछु गोटे हुनकर एहि स्वभाबकेँ कारणे हुनका हँसीक पात्र बनोने। आइ साहजी अपने किछु काजसँ बाध दिस गेल। दुकानपर हुनकर १४ बर्खक बेटा समान दैत-लैत। एकटा बिस्कुट चकलेटक सेल्समेन साइकिल ठार करैत साहजीक बेटासँ, की रौ बौआ तोहर पगला बाबू कतए गेलखुन्ह।

गुरुवार, 15 अगस्त 2013

मैथिलपुत्र वार्षिक पुरस्कार २०१२-१३

स्वतन्त्रा दिवसकेँ पावन अबसरपर अपने सभ लोकनिकेँ मंगलमय शुभकामना सहित बहुत हर्खक गप्प जे मैथिलपुत्र वार्षिक पुरस्कार २०१२-१३ केर चयन भए गेल अछि। चयन समितिमे समिलित छथि श्री उमेश मंडलजी, श्री आशीष अनचिन्हारजी आ डा० कैलाश मिश्रजी। तीनुक समक्ष बारहो महिनाक बरहटा श्रेष्ठ रचना राखल गेल। काज कठिन छल, तीनु विद्वान गुरुजनकेँ अपन स्वविवेकसँ निर्णय लेबक छलनि मुदा अन्ततः एकटापर निर्णय नहि भए सकल।
अप्रैल-२०१३मे प्रकाशित अमित मिश्र जीक गजल  जनवरी, २०१३मे प्रकाशित बाल मुकुन्द पाठक जीक गजल, दुनू समान अंक पाबि बराबरपर रहला कारणे  दुनूकेँ समिलित रुपे २०१२-१३ केँ वार्षिक पुरस्कारसँ सम्मानित कएल जा रहल अछि। अमित मिश्र आ वाल मुकुन्द पाठक सहित बारहो महिनाक बारहो विजेताकेँ बधाइ संगे बर्ख भरिमे समिलित सभ रचनाकार लोकनिकेँ बहुत-बहुत बधाइ।JJJ

शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

बुधवार, 7 अगस्त 2013

माँछक महिमा

साँझक छह बजे पशीनासँ तरबतर सात कोस साईकिल चला कए अ०बाबू अपन बेटीक ओहिठाम पहुँचला हुनक साईकिल केर घंटीक अबाज सुनि नाना-नाना करैत हुनक सात बर्खक नैत हुनका लग दौरल आएल अपन पोताक किलोल सुनि अ०बाबूक समधि सेहो आँगनसँ निकैल दलानपर एला दुनू समधि आमने सामने-
“नमस्कार समधि।”

शनिवार, 3 अगस्त 2013

प्रेम : वरदान वा अभिशाप

गर्मीक दिन छल, साँझक समय। ऐहन समयमे डूबैत सूरूजक दृश्ये किछु अजीब होएत अछि ,जेना किछु व्याकुल, किछु उदास-सन, किछु कहैत मुदा चुपे - चाप सूरूज डूबि रहल छल । साउनक मासमे गंगाक कातसँ अथाह पानिक पाछाँ सूरूज डूबबाक चित्रे मोनमे कए तरहक प्रश्न प्रकट कऽ दैत