की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। sadhnajnjha@gmail.com पर e-mail करी Or call to Manish Karn Mo. 91 95600 73336

शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

होएत जँ



हाथक मुरली हमर खुरपी बनल
गोबरधन बनल अछि ढाकी,
प्रजा हमर सभ हराए गेल
माए बनल अछि बूढ़ीया काकी।

एखनो हम गाए चरबै छी
प्रिय नहि लम्पट कहबै छी,
इस्कूलक फीस दए नहि सकलहुँ
तैँ हम चरवाहा कहबै छी।

हमर गीतक स्वर महीसे बुझैत अछि
वा खेतक हरियर मज्जर, सुनि झुमैत अछि
 हमर बालिंग नही  लोक देखने अछि
भरि गामक बासनपर  लिखल अछि।

के लऽ गेल यमुनाकेँ दूर एतेक
जँ कनिको नाम हुनक हम जनितहुँ
हाथ जोड़ि दुनू विनती करितहुँ
यमुनाकेँ हुनकासँ हम माँगितहुँ।

हमरो गाममे जँ यमुना बहैत
विषधर कलियाकेँ हम नथितहुँ,
मुरली बजा कए गैया चरबितहुँ
यमुना कातमे हम नचितहुँ।

होएत जँ  हमरो माए यशोदा
सभक प्रिय हम बनितहुँ
होएत जँ दाऊ भाइ हमर
कतेक बलशाली हम रहितहुँ।
*****

जगदानन्द झा 'मनु'

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

मनुक्ख बनब कोना?


छीः छीः धूर छीः आ छीः
मनुक्ख भ मनुक्ख सँ घृणा करैत छी
ओही परमेश्वर के बनाउल
माटिक मूरत हमहूँ छी अहूँ छी।

केकरो देह मे भिरला सँ
कियो छुबा ने जाइत अछि
आबो संकीर्ण सोच बदलू
ई गप अहाँ बुझहब कोना?

अहिं कहू के ब्राह्मण के सोल्हकन?
के मैथिल के सभ अमैथिल
सभ त मिथिलाक मैथिल छी
आबो सोच बदलू मनुक्ख बनब कोना?

अपना स्वार्थ दुआरे अहाँ
जाति-पाति के फेरी लगबैत छी
मुदा ई गप कहिया बुझहब
सभ त माँ मिथिले के संतान छी।

पाग दोपटा मोर-मुकुट
सभटा त एक्के रंग रूप छी
मिथिलाक लोक मैथिल संस्कार
एसकर केकरो बपौती नहि छी।

एकटा गप अहाँ करु धियान
सभ गोटे मिथिलाक संतान
जाति-पातिक रोग दूर भगाउ
सभ मिली कए लियअ गारा मिलान।

अपने मे झगरा-झांटी बखरा-बांटी
एहि सँ किछु भेटल नहि ने?
सोचब के फर्क अछि नहि कोनो जादू टोना
अहिं कहू आब मनुक्ख बनब कोना?

बेमतलब के गप पर यौ मैथिल
अहाँ एक दोसरा स’ झगरा करैत छी
माए जानकी दुखित भए कानि रहल छथि
ई गप किएक नहि अहाँ बुझहैत छी?

सामाजिक-आर्थिक विकास लेल काज करु
मिथिलाक माटि-पानि उन्नति करत कोना
केकरो स’ कोनो भेदभाव नहि करु
सप्पत खाउ अहाँ मनुक्ख बनब कोना?

रुबाइ

कर्जा कय क जीवन हम जीव रहल छी 

फाटल अपनकेँ कहुना सीब रहल छी 

सभ किछु लूटा क ‘मनु’ अपन जीवनकेँ

निर्लज जकाँ हम ताड़ी पीब रहल छी   

          ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

गजल


हमर मिथिलाक माटिसँ सोन उपजैए
कऽलसँ बनि पानि अमृत धार निकलैए 

सगर पोखरिक छह छह पानिमे गामक
रुपैया बनि मखानसँ माछ गमकैए

घरे घर सभ छटैए बड्ड बुधियारी
दलानसँ राजनीतिक जैड़ जनमैए

युवाकेँ हाथ बल छै ओ बढ़त आँगा
जँ लेलै ठानि छनमे चान पकरैए

अपन माटिसँ भएलहुँ दूर ‘मनु’ कोना
विरहमे हमर आँखिसँ नोर झहरैए

(बहरे हजज, मात्रा क्रम- १२२२-१२२२-१२२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’ 

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

समयक संग




नै शेष बचल कोनो उमंग
ठमकल सन जिनगीक तरंग
कोना कऽ उड़तै मोनक पतंग
आशक डोर बीच्चेमे भेल भंग
सब ठाम राजनीतिक बड़का जंग
अपनौती भैयारी भेल अपंग
सालक साल एक्के ठाम सब प्रसंग
टूटल छै देशक समाजक विकासक अंग

मुदा सदिखन बदलै छै जीवनक रंग
बैसल रहलासँ नै जीतब कोनो जंग
छोरू सबहक चिन्ता बनबू अपन एक ढंग
अपन विकासक लेल करू अपनेकेँ तंग
रूकू नै बढ़ैत रहू सदिखन समयक संग

अमित मिश्र


जीवन एहिना चलैत रहै छै




कखनो घटाउ आ कखनो जोड़ै छै
कखनो गुणा कखनो भाग करै छै
कखनो आगू कखनो पाछू घुसकै छै
जीवन एहिना सतत चलैत रहै छै

कखनो दुखक भूकंप सुनामी आबै छै
कखनो सुखक गमगम फूल बरसै छै
कखनो भीड़मे कखनो एकान्त जीबै छै
जीवन एहिना सतत चलैत रहै छै

कखनो पिछरै कखनो दौड़ै छै
कर्मक पथपर काँट-रोड़ो भेटै छै
नदी नाला सब बाधा लाँघै छै
जीवन एहिना सतत चलैत रहै छै

किछुए दिनकेँ साँस भेटै छै
जे किओ एक्को पल नै रुकै छै
घड़ीक सुइया संग जे किओ बढ़ै छै
वएह मानव एतऽ अमर रहै छै
जे बैसल समय व्यर्थ करै छै
वएह मनुख सब दिन कानै छै
एहन लोक लेल किओ नै रूकै छै
जीवन एहिना सतत चलैत रहै छै

अमित मिश्र

स्वस्थ गणतंत्र




बताह सन भेल मोनमे
गाम-गाम शहर-शहर बोनमे
सब सजीवसँ पुछैत रहलौँ
बिनु रुकने बुझू बनि यंत्र
नै भेटल स्वस्थ गणतंत्र

जनतासँ जनता लेल शासन
जनते बैसल चढ़ि सिंहासान
ई परिभाषा एहन जेहन पुरना बासन
आब धधकै नव परिभाषाक जारन
अमीरसँ गरीबक लेल शासन
चोर ,ठक ,धूर्त बैसल चढ़ि सिंहासन
इएह छै गणतंत्रक नवका मंत्र
नै भेटल स्वस्थ गणतंत्र

नव संविधानमे शाइद एहने लिखल
चोर बनै निर्दोष ,निर्दोष चोर बनि जाइ जहल
विश्वक सबसँ पैघ संविधान एतैकेँ रचल
किछु लोकक मुट्ठीमे बन्न भेल छटपटा रहल
हे जनता! एखनो अछि किछु समय बचल
निज अधिकारक समुचित प्रयोगपर करू पहल
उपयोगी मतसँ तोड़ि-ताड़ि दिऔ ई तंत्र
तखने भेटत एकटा स्वच्छ स्वस्थ गणतंत्र

अमित मिश्र

भोर भऽ रहल




जन जनकेँ आवाज दऽ रहल
पहिल अंशु नव दिवस गढ़ि रहल
ललका थारी शक्तिक संचार कऽ रहल
खगक हल्ला मजगूत नीन्न तोड़ि रहल
मंद मंद पुरबा सबकेँ प्रणाम कऽ रहल
सुमनक सुगंध मोन स्वस्थय कऽ रहल
भौँरा गुनगुन मधुर गीत सुना रहल
रंगबिरही तितली फूल संग अरिपन बना रहल
कुहेसक मटमैला कम्बल फाटि रहल
दूइभपर ओस मोती बनि हँसि रहल
बरदक घण्टी खूरक थाप अनघोल कऽ रहल
युग लग बेकार हऽर खेतिहर फाड़ि रहल
आलस छोड़ह समय बाट जोहि रहल
नैन खोलह देखह दुनियाँ भागि रहल
साँझ धरि तोरा चलैत रहैकेँ छऽ
प्रतियोगिता बड तोरा आगू बढ़ैके छऽ
कुल खानदानक नाउ रोशन करैके छऽ
तोरो चन्ना बनि नभमे चमकैके छऽ
हे युवा तोरे देशक अगुआ बनैके छऽ
अन्हार केने रीति रेवाज तोरे तोड़ैके छऽ
दुर्व्यवहार अत्याचार भ्रष्टाचार तोरे हटबैके छऽ
हे मनुज निज कर्तव्य तोरे बूझि पालन करै के छऽ
जागह जागह आगि बनि अहं आ दुष्टकेँ जड़बैके छऽ
तेँ रौद सिरहन लग ठाढ़ स्वागत कऽ रहल
उठह मनुज देखह तोरे लेल नव भोर भऽ रहल

अमित मिश्र

बढ़ैत चल



नजरि उठा देखें चहुँ ओर
तोरे छौ साँझ आ तोरे भोर
मानलौँ बाट बहुत कठिन छै
मुदा हिम्मत आगू सब सरल छै
सदिखन कूदैत-फानैत चल
हिम्मतसँ तूँ बढ़ैत चल

नस-नसमे ले बिजली भरि
वाधा विपदासँ लड़ि -झगड़ि
काँट-कूश जंगल-झाड़ीकेँ उखाड़ि
मेघ-खण्ड पाथरकेँ फोड़ि-फाड़ि
डेगे डेग ससरैत चल
हिम्मतसँ तूँ बढ़ैत चल

रण ई जीवन पीठ देखा नै
स्वाभिमान भर माँथ झुका नै
अपना संग दोसरोकेँ बचेने
गंजन सहि अपन मुँह सीने
तीत-मीठ सब पीबैत चल
हिम्मतसँ तूँ बढ़ैत चल

चान देखलें आब सूरज धरि जो
हिमालयक अंग-अंगपर जीतक छाप पड़ि जो
धरती फोड़ि नव उर्जाक खान निकाल
किछुए दिन शेष नै समयकेँ टाल
अपने कानि सबकेँ हँसबैत चल
हिम्मतसँ तूँ बढ़ैत चल

धरती सदिखन चलैत रहै छै
घड़ी संग-संग चन्नो नाचै छै
अपनो बढ़ दोसरोकेँ बढ़बैत
भूत ,भविष्य ,वर्तमानकेँ देखैत
दसो दिशामे पसरैत चल
हिम्मतसँ तूँ बढ़ैत चल

अमित मिश्र

सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

अमित मिश्रजीक नअटा कविता


1.
"आब किछु नै लिखब"

तखन धरि आब किछु नै लिखब
जखन धरि हमर रचनामे
कोनो गरीबक वा दुखितक
दुख दूर करैकेँ क्षमता नै भऽ जाए
जखन धरि पाथर करेजसँ निकलल आखर
कोनो भिखमंगाक देहपर कपड़ा आ
पेटमे दू टा दाना(ऐँठे सही) नै दऽ सकत
तखन धरि हम नै लिखब
किन्नौँह नै लिखब
किएतँ हमरा इयाद अछि ओ कारी साँझ
जहिया देखने छलौँह
बीच बजार लूटैत नारिक इज्जत
आ फेर दोसर दिन हेंजक हेंज कवि
अपन कलमसँ शब्द उगलि कऽ
ओहि घटनापर छंद रचि रचि
नाउ कमा रहल छलाह
मुदा घटनाक बेर
कोनो कविक हाथ नै उठलै
ओकर इज्जत बचेबाक लेल
जँ एहने कवि बनि हमहूँ रहब
तँ धिक्कार अछि हमर जीवनपर
तेँ हम किछु नै लिखब
ओना करेजक भाव रूकै नै छै
अनवरत अष्टयाम जकाँ
सदिखन बहराइ छै कागतपर
सागरक ढ़ेह जकाँ दिमागक नसपर चोट करै छै
मुदा हम तखनो नै लिख सकै छी
कारण हमर देहक खून
भाफ बनि सूखि गेल अछि
भाव एहि स्वार्थी समाजकेँ देख पतनुकान देने अछि
आ कलमक आगि मिझा कऽ चिरनिद्रामे सुतल अछि
तेँ हम किछु नै लिखब
किन्नौँह नै लिखब

2.
"हँसी"

कोनो चौकक चाह दोकानपर
बूढ़बा भजारक बीच चौल
आब नै होइ छै एहन साँझ
नवका सासुरमे सारि सरहोजि संग
फोनेपर भऽ जाइ छै सबटा गप
आब नै भेटैछ पहिने सन प्रेम
आब नै गुंजैछ पहिने सन हँसी
एहन गप नै छै जे लोक आब नै हँसै यै
पहिनहितो हँसै छल ,एखनो हँसै यै
मुदा मोनहि मोन ,दोसरक नाकामीपर
एहि वातावरणसँ ठहक्का शाइत बिला गेलै
वा लागि गेलै पूर्ण सूर्यग्रहणसँ बड़का ग्रहण
इहो भऽ सकै छै जे एहि व्यस्त जीवनमे
लोक बिसरि गेल ठिठिएनाइ
आब मात्र भेटै यै ,परिवहनक हल्ला बीच कन्नारोहट
किओ टाकाक खगतासँ कानैए तँ किओ बढ़तासँ
किओ काजक अभावमे तँ किओ काजक बोझसँ कानैए
चाहे कोनो कारण किए नै होइ
मुदा मुँहसँ सिसकिए निकलै छै
हमरा सब ठाम सुनाइत अछि
शमशानक कोनो कोणपर मचल कन्नारोहट
जे पानिक स्पर्शसँ और तीव्र भँ जाइत अछि
ई कन्नारोहट चलिते रहत ,एहिना चलत
जखन धरि लोक स्वार्थ नै छोड़त
आपसी प्रेम आ सहयोगक भावना नै जनमतै
तखन धरि नै सूनि सकै छै
युवा ,बूढ़ वा कोनो जनमौटी नेनोक हँसी

अमित मिश्र

3.
"लूरि"

भगवान बड कोमल करेज बला छथि
तेँ दै छथि सबकेँ सोझ-साझ हाथ-पएर
मुदा कखनो कऽ ककरो लेल
भऽ जाइ छथि नर्मोहिया
आ गढ़ि दै छथि टेढ़-बाकुच
टाँग-हाथ वा कोनो और अंग
मिझा दै छथि आँखिक इजोत
एहि सोझ अंग बला समाजमे
बना दै छथि ओकरा मजाख
मुदा हमरा नजरिमे ओ अपंग श्रेष्ठ अछि
पएर ,हाथ ,आँखि बला सब किछु रहितो
नै कऽ सकै छथि एहन काज
नै चला सकै छथि हाथसँ तीनपहिया साइकिल
नै घुसकि सकै छथि चुत्तरपर मिलक-मिल
मात्र कऽ सकै छथि कुर्सीपर बैसल मेहनत
आइ आँखि बला मनुख ककरोसँ गप नै करै छथि
मुदा एकटा आन्हर अपन वाकपटुतासँ
हमरा अहाँक जेबीक टाका
अपना जेबीमे आनि सकै छथि
सोझ अंग बलाक गपसँ भऽ सकै छै हंगामा
मुदा सबहक करेज पघिल जाइ छै
टेढ़-बाकुच अंग बलाक गपपर
तेँ हमरा नजरिमे श्रेष्ट वएह छै
जेकरा लग छै
गपसँ मोन मोहि लेबाक लूरि ।

अमित मिश्र
4.

"नारिक रूप"

सब दिन देखैत छी
सब अखबारक पहिल पन्नापर
आइ एतऽ तँ काल्हि ओतऽ
छीन लेल गेल नारिक इज्जत
डाहि देल गेल कोमल कायाकेँ
वा चापि देल गेल घेँट कोनो निसबद रातिमे
हाट बजार सब ठाम देखैत छी
छेड़छाड़ होइत कोनो नवयौवना संग
आ ओहि नवयौवनाक राँगल चामपर
आबै छै कने लाजक वा क्रोधक लाली
सुरमासँ कारी भेल आँखि आ रंगीन पिपनीपर
खीँच जाइ छै गोस्साक चेन्ह
संगहि राँगल ठोरसँ निकलैछ मीठ तरंग
"की तोरा घरमे बहिन नै छौ?"
कहबाक मने रहै छै एक्के टा जे
हमर सम्मान कर
भऽ सकै यै ,हमरा बहिन नइ होइ
भऽ सकै यै ,हम कहियो पति बनबे नै करी
तखन नारिक ई दुनू रुपकेँ हम सम्मान नै करब
तँ की हम नारिक अपमान करब?
नै ।हम एखनो नारिक एकटा रूपकेँ मानै छी
जे रुप हमरा जीवन देलक
ओ रूप जेकर कोरामे खेलल छी
ओ रूप थिक माएक रूप
तेँ हम नारिक इज्जत कोनो पत्नी-बहिन रूपमे नै
बल्कि अपन जननीक रूपमे करब

5.
"फूसि बाजै छी"

हम फूसि बाजै छी
सदिखन फूसिये बाजै छी
मुदा तखन
जखन ककरो करेज
कोनो वेदनामे धुआँ फेकैत होइ
आ हमरा पता होइ ,जे
हमर कोनो गपसँ
दर्दक पाथर पघिल कऽ
सुखक फूल बनि जाएत
तखन हम फूसि बाजै छी
जखन हमर कनपट्टीपर
यमराजक(चोर-डकैत) बंदूक रहैत अछि
तखन हम फूसि बाजै छी
हम जानैत छी ,समयक कोनो ठेकान नै
नीक-खराप कोनो घटना कखनो घटि सकै यै
तखनो काल्हि भेँट करबाक सप्पत खाइ छी
सत्तमे तखन सदयह फूसि बाजै छी
जखन जीवन-मरणकेँ सवाल होइ
वा ककरो पेटपर पड़ल होइ
तखन हम फूसि नहियोँ बजै छी
कोनो जनसमुदाय बीच
अपन स्वार्थ पूर्तिलेल फूसि नै बाजै छी
मंचासिन देशक कर्ता-धर्ता बनल
कोनो बाबा वा नेता जकाँ ।

6.
दोषी के?

जेठक दुपहरियामे
घरसँ बाहरक काज करेबाक लेल
कोनो नेनाकेँ दै छी चाँकलेट वा टाकाक घूस
अपन काज सफल करेबाक लेल
भगवानोकेँ दै छी प्रसादक घूस
अपने कनियाँकेँ मुँह देखबाक लेल
मुँहदेखाइ नाउसँ दै छी घूस
अपन बेटीक जिनगीमे सुख भरबाक लेल
हुनक बाप दै छथि दहेज रूपी घूस
वोट बैलेंस बटेबाक लेल
नेतो जी दै छथि
दारू ,कपड़ा वा टाकाक घूस
मोटामोटी ई दुनियेँ चलै छै घूसपर
तखन ककरा पठाओल जाए जहलमे?
के छथि असली दोषी?
ई बात सत्त छै जे
खतम नै होइ छै मनुखक भूख
चाहे अन्नक हो वा टाकाक
जतेक देबै ततेक खेतै
तेँ घूस लै बाला दोषी नै छथि
हमरा नजरिमे वएह दोषी छथि
जे दै छथि ,अपन काज करेबाक लेल घूस ।
तँ की घूस लै बालाकेँ किछु नै कहब
वा मंचपर फूल-माला पहिरा पुरस्कृत करब
नै नै ,एहन नै करब
मानलौं भूख लगनाइ मनुखक वशमे नै छै
आ भोजनकेँ अपमानो करब नीक कर्म नै छै

मुदा एतबे भोजनपर अधिकार छै
जते भूख आ जरूरति छै ओकर देहक
आ जँ बेसी अन्न अपने खा
दोसरकेँ भूखल राखै छथि
तँ ओ भुक्खर मनुखो दोषी छथि
तेँ हमरा नजरिमे घूस लैयो बला दोषी छथि
जतबे सजा दै बलाकेँ भेटत
ओतबे सजा लैयो बलाकेँ भेटबाक चाही

अमित मिश्र

7.
भोथ धार

कतौ हड़ताल कतौ धरना
अपने नै दोसरोकेँ अंगना
बनबऽ चाहै छथि राज अपन
तेँ करै छथि जहिं-तहिं अनसन
कतौ कथा कतौ कविता गोष्ठी
जरबै छै कोनो पर्वक बाती
दीर्घायु करै लेल भाषा अपन
बैसार करै छथि क्षणे-क्षण
पुरस्कार ,भाषण आ नीक भोजन-साजन
नृत्य लीला आ गायन-वादन
आन भाषा-भाषी नेतासँ उद्घाटन
इएह नियम सब सम्मेलनमे पालन
जंतर-मंतर वा कोनो चौकपर जाइ छथि पसरि
दिन भरि बैसल चिकरैत सरकारसँ झगड़ि
साँझ पड़िते बिसरि जाइ छथि राजक माँग
भाषो बिसरै छथि चढ़िते लोटा भरि भाँग
फूसिये करै छथि एते हल्ला
बाजै नै जँ भाषा हुनके लल्ला
तेँ चमकै छै मात्र संघर्षक हथियार
मुदा छै एकर भोथ भेल धार ।

8. जागू

कान्हपर धेने झोरा-झपटा
सौँसे माँथ चानन-ठोप्पा
हाथ कमण्डल आरो चुट्टा
दाढ़ी लटकल कोशो जट्टा
नङ-धरङ रगरने भभूत
नेने भागै बूझि कऽ भूत
टाका-अन्न माँगैथ लऽ रामक नाम
पैदल जाथि घर घर सब गाम
एहिमे किछु छथि सत्ते भक्त
आ किछु छथि ढोंगी ससक्त
गलत काज आ अंधविश्वास
हुनक खूनमे केने छै वास
सब रोगक उपचारक दावा
एह भेषमे ई सब छथि गामक बाबा
ए .सी घर आ फूलक ओछेनपर
धुमन आगरबत्तीक महक आठो पहर
शिष्य मण्डलीमे नर कम बेसी नारी
सरकारी वा नीजी लागल पहरेदारी
ई छथि सब शहरक बाबा
हिनको छै बड पैघ पैघ दाबा
सब समस्याक हिनका लग उपचार
लाखक-लाख टाका देलापर भेटत साक्षात्कार
किओ फेकबेलनि घरसँ बाहर मूर्ति
किओ अपनेकेँ बतबै छथि अवतरित देवी
अंधविश्वासक हिनको लग हल्ला
पढ़ल जनताकेँ मूर्ख बनाबथि खुल्लम खुल्ला

जागू जागू एखनो यौ भाइ
बादमे की हएत पछताइ
दऽ दिऔ भूखलकेँ दूध-मेवा
बाँटि दिऔ गरीबमे सब टाका
नाङटकेँ पहिरा दिऔ कपड़ा
एकरे दुआसँ शान्त हएत ग्रह-नछतरा
तखने करताह भगवानो भलाइ
जागू जागू एखनो यौ भाइ

अमित मिश्र

9.
मित्र

किछु पुरना मित्र जेकर
बस इयादे टा छल बचल
बाधक गीत इस्कूलक खेल
क्षणमे झगड़ा क्षणमे मेल
किछु नीक किछु बेजाए गपशप
बाल दिनक खून करै रपरप
जेकरे संगे होइ छल साँझ-भोर
ओ चन्ना आ हम चकोर
मुदा समयक संग सब किछु बदलल
सबपर आब टाकाक रंग पोतल
सबहक मोन एना बदलि देलक
आब देखिते ओ मित्र मुँह फेर लेलक ।

अमित मिश्र



हारल विजेता

  हारल विजेता


                             
      पात्र

 1 . रोहित-  20 साल
2.मानू-    20 साल-   रोहितक दोस्त
3.चिट्ठी चाचा-  45 साल-  डाकिया
4.डाँक्टर बाबू -35 साल-  डाक्टर



( रोहितक दलान परक दृश्य एक कोणमे मौसमी फसलक किछु बोझ राखल अछि ।माँझमे टाटक घरपर हरियर तिलकोरक लत्ती लतरल अछि ।एकटा पुरान साइकिल टाटसँ सटा कऽ राखल अछि ।भऽ सकैए तँ एकटा नादि आ खुट्टा देल जा सकैछ ।रोहित साधारण कपड़ामे घरक आगू ,सोचैक मुद्रामे एक कातसँ दोसर कात टहलि रहल अछि ।रोहितसँ नीक परिधानमे मोनू पर्दाक पाछूसँ "रोहित-रोहित" चिकरैत मंचपर आबैत अछि ।आवाज सूनि रोहितक धियान टूटैत अछि आ फेर दुनू गला मिलैत अछि ।)

रोहित- मोनू ,ई क्रिचदार कपड़ा पहिर दुपहरियामे कतऽ जा रहल छें ।की कोनो खास गप छै की?

मोनू- खास गप की रहतै ।मोन भऽ गेलै ,पहिर लेलौं।ओना रहित ,आगूक की प्लान छौ?
रोहित- (आश्चर्यसँ)प्लान।तोहर गप नै बुझलियौ ,कने फरिछा कऽ कह ।
मोनू- अरे मूर्ख करियरकेँ प्लान ।
रोहित- अच्छे-अच्छे बूझि गेलियै ।
मोनू- इएह तँ तोहर प्रोबलेम छौ ,तूँ बुझिते बड देरसँ छेँ ।कने सोच ,इन्टर केला दू वर्ष भऽ गेलै आ एखन धरि बेरोजगारे बैसल छी ।कोना पार हेतै जीवनक डगरिया रे भेया ।

रोहित- ठीके कहलें तूँ ।पिछला एक घण्टासँ हमहूँ इएह सोचै छलौं ।तोरा तँ बाबुओ जीक सहारा छौ मुदा हमर के? एकटा बूढ़ माए जे खाटो परसँ नै उठै छै ।कतौसँ एक्को टाकाक आमदनी नै छै हमरा ।बटैया करै छी ,दूध बेचै छी आ दवाइ-दारूक बाद जँ टाका बचै अछि तँ पोथी कीन पढ़ै छी ।तोरा की कहबौ ,हमर हालत तँ जानिते छें ।

मोनू- हँ हमरा बुझल अछि  तेँ ने दुनू गोटाकेँ आब नोकरीक बारेमे सोचऽ पड़तै ।जँ नोकरी नै भेल तँ जीनाइ मोशकिल भऽ जेतै ।
रोहित-  गप तँ सत्ते कहलें दोस ।दोस ,चरि चक्किया ए.सी बला गाड़ी देख मोन होइत अछि जे एक बेर हमहूँ चढ़ितौँ ।बजारक गप सूनि बजारेमे अपन छोट परिवार संग रहबाक मोन होइत अछि ।मुखिया जीक हाथमे मोबाइल देख कोनो नेना जकाँ मोन कानि जाइत अछि ।मुदा ई सब एकटा मरनासन्न सपना जकाँ लागैत अछि ,दोस ।भागमे लिखल छै दिल्ली-बम्बइमे बोरा उठेनाइ तँ चरिचक्किया कतऽसँ भेटत ।

मोनू- गलत बात ,बिल्कुल गलत बात ।मनुखकेँ एते उदास नै हेबाक चाही ,जँ जीलाकेँ तेसर टाँपर ,तोरा सन मनुख एते नकारात्मक सोच रखतै तँ बूझें प्रलय आबि गेलै ।
रोहित- सोच नकारात्मक नै छै भाइ ,मुदा हालत एहन नै छै जे सकारात्मक सोचब ।ई घोर मँहगाइक युगमे जीनगी जीबाक लेल टाका चाही आ टाकाक लेल बोरा उठबैये पड़तै ।
मोनू- फेर वएह बात ।अरे हम कहै छीयौ ,तोरा बोरा नै उठबऽ पड़तौ ,तोरा एहन गुणीकेँ तँ नोकरी डिबिया लऽ कऽ ताकै छै ।
रोहित-  एहनो कतौ भेलै यै ।आइ-काल्हि सरकारी नोकरी तँ ईदक चाने बनल छै ।
मोनू-  आ प्राइवेट ।
रोहित-  ओकरो लेल पहुँच चाही ।

मोनू- ( कर जोड़ैत) चूप रहू महराज ,चूप रहू ।एते भाषण जुनि मारू ।नोकरी लेल फारम भरऽ पड़ै छै ,अहाँ कतौ भरलौँ की नै?
रोहित- हँ ,एकटा परीक्षा देने छी  ।अपन एक सालक बचाओल टाकाक हवण कऽ कऽ ।
मोनू- तँ फिकिर कथी के ?प्रतिक्षा करू ।एहि हवणक कुण्डसँ अमृतक घैल जरूर बहरेतै ।हमरा विश्वास अछि अहाँ जरूर पास करब ।
रोहित- तोहर मुँहमे मिश्री ।(गम्भीर होइत)जँ अमृत नै बहरेलै तँ बूझ हमर जीवन बेकार भऽ जेतै ।

(मंचक पाछूसँ साइकिलक घण्टी धिरेसँ बजनाइ शुरू होइत अछि आ धिरे-धिरे ध्वनी तीव्र होइत अछि ।रोहित आ मोनू उम्हरे देखऽ लगैत अछि ।पोस्टमैनक ड्रेसमे ।एक हाथमे किछु चिट्ठी आ कन्हपर एकटा बैग ,दोसर हाथसँ साइकिलक हेण्डिल पकड़ने ,मंचक एक कोणसँ चिट्ठी चाचाक प्रवेश होइत अछि ।)

रोहित ,मोनू- (एक साथ ,एक स्वरमे) प्रणाम चिट्ठी चाचा ।
चिट्ठी चाचा - खुश रहऽ बौआ ।
मोनू- कक्का ,आइ हम एकटा बात जानिये कऽ रहब ।
चिट्ठी चाचा- हँ हँ ,किएक नै जानबऽ ,जानि लए ।कोन बात जानबाक छऽ ।
मोनू- रोहित अहाँकेँ चिट्ठी चाचा किए कहै यै?

चिट्ठी चाचा-  बड पुरान गप छै ।(रोहित दिश इशारा करैत) ई तीन-चारि वर्षक हेतै ।हम सब दिन चिट्ठी बाँटैक लेल इएह बाटे जाइ छलियै आ एहिना जोरसँ घण्टी बजबैत छलियै ।हमर घण्टीक आबाज सूनि ई नाङटे गाँरि ,हँसैत -कूदैत सड़क धरि आबि जाइ ।

(रोहित लजा जाइत अछि)

मोनू- फेर की होइत छलै ।
चिट्ठी चाचा- पहिने ई सड़क कच्ची छलै ।पैघ-पैघ खाधि छलै सड़कपर ।साउन-भादो सौँसे सड़कपर थाल-कादोक शासन भऽ जाइ ।जखन ई कूदैत आबै तँ चुभ दऽ ओहि खाधिमे खसि पड़ै आ थाल-कादोमे सना कऽ भूत बनि जाइ छलै ।हा . .हा . .हा . . (सब हँसऽ लागैत अछि आ रोहित लाजे मूड़ि गोँति लैत अछि )

रोहित -  छोरू ने चाचा ,अहूँ कोन गप उठा देलौँ ।
मोनू-  नै नै ,हुअ दिऔ ।
चिट्ठी चाचा-  तकरा बाद जखन कखनो इ कानै तँ एकर बाबी कहथिन जे चिट्ठी बाला चाचा आबै छथुन ।ई बात सुनिते ई हँसऽ लागै आ वएह दिनसँ हमर नाम चिट्ठी चाचा पड़ि गेलै ।की हौ रोहित ,इएह गप छै ने?
(रोहित स्वीकार करैत उपर-नीच्चा दू बेर मूड़ि डोलबैत अछि)

मोनू-चाचा ,तखन तँ अहाँक घण्टीमे बड पैघ जादू छै जे एकरा सनक उदास रहै बला मनुखकेँ हँसा दै छलै ।
चिट्ठी चाचा-  (आश्चर्यसँ ) उदास ।उदास किए रहै छै ।
मोनू-  इएह नोकरी चाकरीक चिन्तामे ।
चिट्ठी चाचा-  ले बलैया ।हम तँ गपक चक्करमे ओरिजने गप बिसरि गेलौँ ।नोकरीसँ इयादि आएल ,तोरा दुनूक नामे चिट्ठी एलै यै ।(दू टा चिट्ठी निकालि ,रोहित दिश घूमि) ई तोहर (मोनूकेँ दैत) आ ई तोहर ।
(दुनू लिफाफा फाड़ि , चिट्ठी पढ़ऽ लागैत अछि ।धिरे-धिरे रोहितक मौलाइल मुँहपर हर्षक रेखा आबऽ लागै छै ।एहने सन मोनूक मुँहपर सेहो )
मोनू- (खुशीसँ चिकरैत) मीता ,हमरा नोकरि लागि गेल ।
रोहित- (खुशीसँ) मीता ,हमहूँ परीक्षा पास कऽ गेलौँ ।इन्टरभ्यू परसू अछि ।
चिट्ठी चाचा- भगवानक घर देर छै ,अन्हेर नै ।तोरा दुनूकेँ नोकरी लगाइये देलखुन मैया रानी ।
रोहित-  चाचा ,एखन नोकरी नै लागल ।एकटा मौखिक परीक्षा एखनो बाँकिए अछि ।
चिट्ठी चाचा-  अरे जखन लिखित निकलि गेलै तँ मौखिको निकलिए जेतै ।चिन्ता जुनि करऽ ।नीके नीके जा ,परीक्षा दऽ ,नोकरी लऽ कऽ आबऽ ।मैया रानी भला करथुन ।अच्छेए ,हमरा और चिट्ठी बँटबाक अछि हम जाइ छीअ ।
रोहित-  ठीक छै चाचा ।
(घण्टी बजबैत चिट्ठी चाचा चलि जाइत छथि )

रोहित-  मीता ,तोरा कतऽसँ चिट्ठी एलौ ,कोन ठाम ,कोन कम्पनीमे ,केहन नोकरी लागलौ?
मोनू-  कने साँस लऽ कऽ बाज ।एना जँ एक्के बेर प्रश्नक बाढ़ि आनबें तखन तँ हम भसिआइये जाएब ।
रोहित-  बुझलियै ,बुझलियै ।नै एक फेर ,बेरा-बेरी तँ उत्तर दे ।
मोनू-  दिल्लीसँ चिट्ठी आएल छलै ।जाहि कम्पनीमे बाबू काज करै छथिन ,ओहि कम्पनीमे सुपरवाइजरकेँ जरूरति छलै ,वएह पोस्ट हमरा भेटल अछि ।
रोहित-  मुदा कोना?
मोनू-  ओकर ठिकेदार अपने इम्हरकेँ छलै ।बाबूजी ओकरा हमर पैरवी केलखिन तँ ओ तैयार भऽ गेलै ।बाबू जी दिल्ली एबाक लेल चिट्ठी भेजने छथिन ।
रोहित-  मीता ,जखन एगो दोस्त कामयाब होइ छै तखन दोसर दोस्तक करेजक एक कोणमे खुशीक वर्षा होइ छै आ दोसर कोणमे दुखक ठनका खसै छै ।खैर ,तोहर कामयाबीसँ हम खुश छी ,बड खुश छी ।हमर कामयाबी तँ एखनो माँझ सागरमे हेल रहल छै ,जानि नै भेटतै कि नै भेटतै ।

मोनू-  अपनेक बहुत-बहुत धन्यवाद खुश हेबाक लेल ।आब अहूँ इन्टरभ्यू देबाक ओरियान करू ,हमहूँ जाइ छी दिल्लीक लेल रिजर्वेसन कराबऽ ।
रोहित-  ठीक छै ।फेर इन्टरभ्यूसँ एलाक बाद भेँट हेतै ।
मोनू-  बेस्ट आफ लक ।
रोहित-  रूक ।एकटा बात और हमरा आबै धरि तूँ गामेमे रहिहेँ ।
मोनू-  से किएक ?
रोहित-  जँ हम कामयाब भऽ जेबै तँ खुश हेबाक लेल ।
मोन-  हम तँ सदिखन खुश रहै छी ।ओना तोरा आबै धरि हम दिल्ली नै जेबौ ।
रोहित-  धन्यवाद ।
मोनू-(गाबैत अछि) हम होगेँ कामयाब ,हम होगेँ कामयाब ।

(दुनू पर्दाक पाछू चलि जाइत अछि )

                               *************** पट-परिवर्तन **********************

(मंचपर बाटक दृश्य अछि ।पर्दाक एक कोणसँ रोहित मंचपर आबैत अछि ।पीठपर एकटा बैग लादल छै ,केश छिड़ियाएल ।उदास ,कननमुँह केने ,मंद चालसँ चलि रहल अछि ।तखने गीत गाबैत मोनूक मंचपर प्रवेश)

मोनू-   आबि गेलें नोकरी लऽ कऽ ।
(रोहित बिनु किछु बाजने चलिते रहैत अछि)

मोनू-  अरे रोहित ,तोरे कहै छीयौ ।रूक . .रूक ने ।
(रोहित फेर बिनु बाजने चलिते रहैत अछि ।मोनू दौड़ कऽ रोहित लऽग पहुँचैत अछि आ रोहितक हाथ पकरि लैत अछि ।रोहित रूकि जाइत अछि ।)

मोनू- कते देरसँ तोरा सोर करै छीयौ ।तूँ किछु सुनिते नै छें ।किछु तँ बाज ।कि भेलौ ।
(रोहित चूप अछि)

मोनू-  धन्य छी महराज ।एक दिश बाजैत-बाजैत हमर मुँह दुखा गेल आ दोसर दिश अहाँ फेविकाँलसँ अपन ठोर साटि लेने छी ।ठीके कहै छै परचारमे ,एक बार सट गया तो सौ साल धरि नै उखड़ेगा ।
(रोहित बिनु उत्तर देने चलबाक कोशिश करैत अछि ।मुदा मोनू बाँहि पकड़ि रोकि लैत अछि ।)
मोनू-  लगैत अछि बौआ नोकरी लऽ लेलनि । ई जीतक खुशीमे बौक भऽ गेलनि ।की महराज ,जीतैये बला गप छै ने?
रोहित-  (दुख भरल आवाजमे ,धिरेसँ) नै ,हम ई खेल हारि गेलौं मीता ,हम नाकामयाब भऽ गेलौँ ।
मोनू- झूठ ,सरासर झूठ ।हम मानिये नै सकै छी ।तोरा सन मेधावी छात्र ई परीक्षामे फेल नै भऽ सकै छै ,किन्नौह नै ।
रोहित-  हम सत्त कहै छी मीता। एहि रेसमे जीतलौँ तँ मुदा सबसँ पाछु रहि कऽ ।
(मोनूक हँसैत मुँह उदास भऽ जाइत अछि )

मोनू- मूदा ई भेलै कोना?
रोहित- टाका और पैरवीक चलते ।
मोनू- नै बुझलियौ ।कने फरिछा कऽ कह ।
रोहित-  संगमे पाइ नै छल । दस किलोमीटर धरि पैदल चलऽ पड़ल ।
मोनू-  की ओतऽ देरीसँ पहुँचलहीं ।
रोहित-   नै ,पहुँचलियै तँ सबेरे मुदा अंग-अंग थाकि गेल ।
मोनू -  तखन की भेलै |
रोहित-  सब छात्रकेँ बेरा-बेरी बजाओल जाइत छलै ।इन्टरभ्यू कक्षसँ किओ मुस्कैत  तँ किओ काननमुँह केने निकलै छलै ।बेसी कानिते निकलै ।थाकल तँ पहिनेसँ छलौं ओकरा सबकेँ देख हम बड डरि गेलौं ।
मोनू- अच्छए ,से बात ।आब बुझलौं ।महराज डरि कऽ भागि एलनि ।
रोहित- नै नै ,एहन गप नै छै ।

मोनू-  तँ केहन छै से ने कह ।
रोहि-  पहिने पूरा सुन तँ बीच्चेमे लोकि लै छेँ ।
मोनू-  कह ।
रोहित-  साँझ होइत-होइत सबहक इन्टरभ्यू भऽ गेलै ।सबसँ अंतीममे हमर बारी एलै ।हमरा बजाओल गेल ।डेराइत-डेराइत हम अंदर गेलौं ।एकटा बड़का टाबूलक एक दिश तीन टा अफसर बैसल छलै ।दोसर दिश एकटा  कुर्सी खाली छलै ।हमरा बैसै लेल कहलकै तँ हम ओहि कुर्सीपर बैस गेलौं ,मुदा थाकल मोन एखनो डेराएले छल ।हम अपन सबटा सार्टिफिकेट देलियै ।ओ तीनू अफसर सार्टिफिकेट देखऽ लागलै ।
मोनू-सार्टिफिकेट देख तँ प्रसन्न भऽ गेल हेतै अफसर सब ।

रोहित-  हँ ।ओकर बाद तीनू बेरा-बेरी प्रश्न पूछऽ लागल ।अलग-अलग क्षेत्रसँ अलग-अलग तरहकेँ प्रश्न ।पहिने तँ हम घबरा गेलौं मुदा बादमे हमहूँ सब प्रश्नक उत्तर फटाक-फटाक देबऽ लगलियै ।जतबे जबाब दियै ततबे प्रश्न पूछै ।हमर जबाब सूनि तीनू अफसरक ठोरपर मुश्कान नाचऽ लागलै ।दस-पनरह मीनट धरि प्रश्न पुछिते गेलै आ हम जबाब दैत गेलियै ।अन्तमे ओ सब चुप भऽ गेल आ अपनामे तीनू कानाफूसी करऽ लागल ।ओहिमेसँ एकटा एजगर अफसर उठि कऽ हमरा लग आबि गेल ।हमहूँ ठाढ़ भऽ गेलौं ।ओ हमर पीठ ठोकि देलक आ बाहर जाइ लेल कहलक ।हम अपन सार्टिफिकेट सब समटि बाहर आबऽ लागलौं ।

मोनू-  जखन एते नीक इन्टरभ्यू गेलौ ।अफसर तोहर पीठ ठोकि देलकौ तखन नौकरी किएक नै भेटलौ ?तूँ फेल कोना कऽ गेलेँ ?शाइद तूँ मजाक करै छें ।झूठ बाजै छेँ ।

रोहित-  नै नै ।ने हम मजाक करै छी आ ने झूठ बाजै छी ।हम बिल्कुल सत्त बाजि रहल छी ।
मोनू-  तखन असलमे भेलै की?
रोहित-   जखन हम बाहर आबै छलियै तखने एकटा अफसरक मोबाइल बाजलै ।ओ फोन उठा कऽ बतियाए लागलै ।ओकर बार्तालापसँ बुझना गेल जे कोनो बड़का नेताक फोन छै ।ओम्हरसँ किछु कहलकै तँ ओ अफसर कहलकै जे "सर ,आपका कनडिडेट इस लड़का से बहुत ज्यादा कमजोर है ।एक हीं सीट बचा है इसलिए नौकरी इसी लड़के को मिलेगा ।"उम्हरसँ और किछु किछु कहल गेलै मुदा अफसर ना-नुकुर करैत रहल ।अन्तमे अफसर कहलकै"अब सर आप नहीँ मानियेगा तो आपका काम करना हीँ पड़ेगा लेकिन दाम दस लाख लगेगा ।" ई कहि ओ फोन काटि देलकै ।तखन धरि हम बाहर आबि गेल छलौं ।


मोनू-  लागै छै पैरवीकेँ दानव पहुँच गेल छलै ।
रोहित-  शाइद ।एकर बाद जखन पास भेल छत्रक लिस्ट साटल गेलै तँ ओहिमे हमर नाम नै छलै ।
मोनू-  आब सब गप हम साफ-साफ बूझि गेलियै ।जा धरि टाका आ पैरवी बला रहतै ,जा धरि घूस लै बला लोभी अफसर रहतै ,ता धरि कोनो गरीबक कल्याण नै भऽ सकै छै ।
रोहित-  हम तँ पहिने कहने छलियौ , हमर कर्ममे सरकारी नोकरी नै ,बोरा उठेनाइ लिखल छै ।
मोनू-  चिन्ता जुनि कर ।मेहनत आ इन्तजारक फल मीठ होइ छै ।आइ नै तँ काल्हि तूँ सफल हेबे करबेँ ।

रोहित-  मोनू ।आब नै टाका अछि आ नै साहस बचल अछि ।आब कतौ कोनो परीक्षा देबाक इच्छा नै बचल अछि ।एतबेमे हमर जिनगी तहस-नहस भऽ गेल ।

मोनू-   एना जुनि फाज ।सदिखन अपन सोच पोजीटीभ बना कऽ राख ।
रोहित-   पोजीटीभ नै बनि पाबै छै यार ।माएक दबाइ खतम छै ।हाथमे एक्को टाका नै छै ।पहिनेसँ कर्जाक बोझ तऽर दबल छी ।आब तँ किओ कर्जो-पैंचो नै दै छै ।की करब ,कोना जीयब ,किछु नै फुराइत अछि ।एहनमे तूँ कहै छें पोजीटीभ सोचैक लेल ।एतऽ जीवन नीगेटीभ भेल अछि ,पोजीटीभ सोच कोन कुम्हारक चाकपर गढ़ब ।

मोनू-  मीता टाकाक चिन्ता जुनि कर ।काल्हि हम दिल्ली जा रहल छी ।हम अपन दरमाहा भेज देल करबौ ।तूँ खाली मेहनत कर ।मोन लगा कऽ पढ़ आ सरकारी नोकरी ले ।
रोहित   -- तूँ भेजबेँ वा किओ और देत ,हएत तँ कर्जे ने?
मोनू-    हमर मदतिकेँ कर्जा नै मान ।एते दिन पढ़ैमे तूँ हमर मदति अपन ज्ञानसँ केलें  ,हमर टास्क बना कऽ केलें ,आइ हम तोहर मदति पाइसँ करबौ ।हिसाब बराबर ।
रोहित-  तैयो ।
मोनू-   तैयो ,तैयो की? तैयो-बैयो किछु नै ।मोन बेसी छोट नै कर ।सफरसँ थाकल हेबेँ ।जो स्नान -धियान कऽ ,पेट पूजा कर ।कने कालमे हमहूँ आबै छीयौ ।
रोहित-  की करबै पेट पूजा ।चाउरो-दालि तँ नै छै घरमे ।जीनगी गाराक घेघ भऽ गेल अछि ।कखनो कऽ होइत अछि एहन जीनगीसँ मरनाइ नीक ।
मोनू-   बेसी बात नै बना ।खुशी खुशी जो ।आराम कर ।थाकल देह छौ तेँ अल-बल सोचाइ छौ ।जो . . .जो . . . ।
(दुनू पर्दाक पाछू चलि जाइत अछि)




                                                    ********************** पट -परिवर्तन ********************


(रोहितक दलानक दृश्य ।रोहित धरतीपर बेहोश पड़ल अछि ।वायाँ हाथक कलाइसँ खून बहि रहल अछि ।दायाँ हाथक लऽग एकटा चक्कू राखल अछि ।पर्दाक पाछूसँ रमेशकेँ सोर पाड़ैत मोनूक प्रवेश)

मोनू-  देखू ।यात्रासँ एतेक थाकि गेलै जे बीच्चे दलानपर सूति रहलै ।(रोहितक लऽग आबि ।घबराएल) ।अरे बाप रे बाप ।ई की भेलै? एकरा हाथसँ तँ खून बहै छै । (झूकि कऽ चक्कू उठा लैत अछि) अशांत मोनमे शाइद आत्महत्या करबाक प्रयास केलक ।अपनेसँ हाथक नस काटि लेलक ।अरे बाप रे बाप ।आब की करियै हम . . .डाँक्टर . . .डाँक्टर . . .किओ डाँक्टर के बजा . . .के . . .के . . .के जे . . .हमरे जाए पड़तै ।(चिकरैत) डाँक्टर बाबू ,यौ डाँक्टर बाबू ,दौरू यौ डाँक्टर बाबू . . .अनर्थ भऽ गेलै ,अनर्थ ।

(डाँक्टर बाबूकेँ सोर करैत मोनू मंचक एक कोणसँ पर्दाक पाछू जाइत अछि आ दोसर कोणसँ डाँक्टर बाबूक संग मंचपर आबैत अछि ।)

डाँक्टर बाबू- की भेलै? मरीज कतऽ छै?
मोनू-  (रोहित दिश इशारा करैत अछि) इएह छै मरीज डाँक्टर बाबू ।
डाँक्टर बाबू-  की भेलै एकरा?
मोनू-  हाथक नस काटि लेलकै ।बड खून बहि रहल छै ।जल्दी करू नै तँ मरि जेतै ।
डाँक्टर बाबू-   हम एकर इलाज नै कऽ सकै छी ।ई पुलिस केस अछि ,हम फँसि जाएब ।

(डाँक्टर बाबू बैग उठा जाए लागै छथि ,मोनू लपकि कऽ हुनक गट्टा पकड़ि लैत अछि )

मोनू-  (कानैत) अहाँ एहि धरती परक भगवान छी ।अहाँ एना जुनि बाजू ।एकर इलाज कऽ दिऔ । कर प्राण बचा लिऔ ।(डाँक्टर बाबूक पएर पकड़ैत) हम अहाँक पएर पकड़ै छी ,हमर मीतकेँ जीया दिअ ।अहाँकेँ हमर सप्पत ।इलाज शुरू करू ।

डाँक्टर बाबू-   पएर छोड़ हमर ।हम एकर इलाज कोनो कीमतपर नै करबै ।एकर इलाज कऽ कोनो संकट मोल नै लेब ।पहिने पुलिसकेँ बजा ।ओकरा एलाक बादे किछु हेतै ।
(डाँक्टर बाबू पएर छोड़बैक लेल जोरसँ झटका दैत अछि ।मोनू कने दूर गुरकि जाइ छै ।डाँक्टर बाबू जाए लागै छथि ।मोनू फेर हुनक बैग पकड़ि लैत अछि ।)

मोनू- जखन धरि पुलिस एतै तखन धरि हमर मीता मरि जेतै ।
डाँक्टर बाबू-  मरि जेतै तँ हम की करी?अपन प्राण दऽ दी ।मरि जेतै तँ मरऽ दहीं ई हमर टेन्सन नै छै ।
मोनू-  (जोरसँ बाजैत) धिक्कार अछि एहन डाँक्टरीपर ।एतऽ लोक मरि रहल छै आ अहाँ प्रवचण दऽ रहल छी ,कानून पढ़ा रहल छी ।की इएह सिखाओल गेल छल डाँक्टरी कालेजमे ।धिक्कार अछि एहन डिग्रीपर ।धिक्कार अछि मनुखतापर ।जाहि मनुखकेँ करेजमे मसियो दरेग नै हेतै ।जकरामे मनुखताकेँ सड़लो-गलल अंश नै बचल हेतै ,हमरा हिसाबसँ ओ एक माए-बापक जनमल भैये नै सकै छै ।

डाँक्टर बाबू-   (पिनकैत) रे छौड़ा ,तूँ हमरा गारि पढ़लें ।थम्ह तोरा देखबै छीयौं ।
मोनू-  (उपहास करैत) गारि ककरो उमरि देख नै पढ़ल जाइ छै ।किओ अपन नीक कर्मक प्रतापे इज्जत पाबै छै तँ किओ अपन खराप कर्मक प्रतापसँ गारि सुनै छै ।मुदा अफसोस अहाँ दुनूमे सँ एक्को टामे नै छी ।मनुखते नै तँ कर्म कतऽसँ ।

(तखने साइकिलक घण्टी बजबैत चिट्टी चाचाक प्रवेश)

चिट्ठी चाचा -  की भेलै ।एते हल्ला किए करै छऽ ।
मोनू-  हित आत्महत्या करबाक प्रयास केलक ।ओ वेहोश अछि ,आ ई (डाँक्टर बाबू दिश इशारा करैत) डाँक्टर इलाज करैसँ मना करै छथिन ।
चिट्ठी चाचा-   हौ डाँक्टर ।तोरा लऽग लूरि छऽ तखन तँ लोक पूछारि करै छऽ ।समाजक प्राणी भऽ समाजसँ एते कतिआएल रहनाइ नीक नै छै ।(हाथ जोड़ैत) हम तोरा आगू हाथ जोड़ै छीअ ।तोरासँ जेठ भऽ विनती करै छीअ ।एकरा जीया दहक ।एकरा गरीबक कल्याण कऽ दहक ।

डाँक्टर बाबू-   नै कक्का ।हमरा माँफ करू ।कोर्ट कचहरीक चक्करमे हम नै पड़ब ।
(डाँक्टर चलनाइ शुरू करैत अछि ।मोनू पाछूसँ डाँक्टरक गर्दनपर चक्कू राखि दैत अछि ।)

मोनू- (चिकरैत) डाँक्टर बाबू ।आइ जँ एतऽसँ हमर मीताक लहाश उठतै तँ हम अहूँक राम नाम सत्य कऽ देब ।

डाँक्टर बाबू-  (घबराइत) हे ,हे ,चक्कू हटा ,चक्कू हटा ।ई गलत कऽ रहल छें ।
मोनू-   आब सही -गलत फरिछेबाक शक्ति नै अछि हमरामे ।हम बस एतबे जानै छी ।आइ जँ एकर इलाज नै हेतै तँ हम एखने तोहर इलाज कऽ देबौ ।

(डाँक्टर घूरि कऽ रोहित लऽग आबैत अछि ।बैगसँ रूइ निकालि खून साफ करैत अछि ।मरहम पट्टी करैत अछि ।)

चिट्ठी चाचा-   केहन युग आबि गेलै ।युवा वर्गमे आब लड़ैक साहस बचबे नै केलै ।छोट-छोट सन दुख भेलापर आत्महत्या ।लागैछ एहि यांत्रिक युगमे लोको सब रोबोट बनि गेलै ,जकरामे कोनो संवेदना नै होइ छै ।नीक- बेजाए सोचबाक शक्ति नै होइ छै ।प्रतिस्पर्धाक दौड़मे जानि नै कते युवा मृत्युक माला पहिर लै छै ।छोट-छोट विपतिसँ डारा कऽ प्राण तियागि दै छै ।जानि नै कतऽ जा रहल छै ई देश ।जानि नै कहिया जागतै युवामे चेतना ।

(रोहितकेँ होश आबै छै ।ओ उठि कऽ ठाढ़ हुअ लागै छै ।मोनू सहारा दऽ कऽ उठबै छै ।)

रोहित-   (चारू कात  घूमि)  की हम स्वर्गमे छी ? की हमरा संग पूरा समाज मरि गेलै ?
मोनू-  (चिट्टी चाचा दिश घूमि ।) चाचा होश आबि गेलै ।देखियौ ,देखियौ ,हमर मीत बचि गेलै ।जी गेलै ।
(डाँक्टर बाबू आ चिट्ठी चाचा रोहित लऽग आबि जाइ छथि ।)

रोहित-  हम मरऽ चाहै छी । हमरा किए जीएलें ।हमरा मरऽ दे ।
डाँक्टर बाबू-   भगवान जीवन देलखिन जीबाक लेल ,मरबाक लेल नै ।जँ मरनाइ नीक बात रहितै तँ आइ दुनियाँमे एक्को टा मनुख नै रहितै ।सब स्वर्गवासी भऽ गेल रहितै ।जीवनमे सदिखन खुश रहबाक चाही ,मरबाक नै ।देखै छऽ ,तोहर केस तँ हमर आँखि खोलि देलक ,तोरा सन युवाक आँखि आब कहिया खुलतै ?जानि नै ।

रोहित-   खुश ,कोना रहब खुश ।जीनगीमे जखन हारक सामना होइ छै तँ हँसी-खुशी ओहि हारक संग हेरा जाइ छै ,तखन मरनाइये नीक लागै छै ।
चिट्ठी चाचा-    एक बेर हारि जेबाक मतलब ई तँ नै छै जे जीवन भरि लेल हारि गेलियै ।एकटा घोंघा बेर-बेर देवालपर चढ़ैत अछि ,बेर-बेर खसैत अछि ,मुदा हारि नै मानैत अछि ।लगातार प्रयास करैत अछि आ एक दिन ओ देबालपर चढ़िये जाइत अछि ।हारि कऽ जीतैमे जे मजा छै से और किछुमे नै ।

डाँक्टर बाबू-   जे सब दिन जीतै छै ओ अपना-आपकेँ बलगर समझि लै छै ।ओकरा घमण्ड भऽ जाइ छै आ फेर ओ कहियो मेहनत नै करै छै ।मुदा जे सब दिन हारै छै ,ओ सब दिन मेहनत करै छै आ ओ जखन जीतै छै तँ विश्वविजेता बनै छै ।बुझलऽ ।
मोनू -   अरे ,एकटा परीक्षामे फेल भेलासँ कोनो प्रलय नै आबि जेतै ।जीवनमे एखन कतेको परीक्षा बाँकिए छै । मनुखक जिनगीत दोसर नाम थिक परीक्षा ।मनुख कते परीक्षासँ भागत ।डेग-डेगपर एकटा नव चुनौती भेटै छै ।तेँ हिम्मर राख आ सब किला फतह कर ।

चिट्ठी चाचा-   दू सए साल धरि प्रत्येक दिन ,प्रत्येक क्षण अंग्रेजसँ हम सब हारैत एलौं ।मुदा एक ने एक दिन जीत भेटबे केलै ।मनुखक जीवनमे हार जीत तँ चलिते रहै छै ।एहिमे आश्चर्यक कोन गप ? घबराइकेँ कोन गप ?

डाँक्टर बाबू-   मनुखकेँ अपन सब हारसँ सीख लेबाक चाही ।अपन कमजोरी दूर करबाक चाही ,नै अनुतिर्ण भेलापर परेशान भऽ आत्महत्या सन खराप डेग उठेबाक चाही । अजुक युवाकेँ ई सोच दिमागसँ निकालऽ पड़तै जे कोनो काजमे फेल भेलाक बाद एकर समाधान मात्र आत्महत्या छै ।

चिट्ठी चाचा-   रोहित । ई हार तोहर हार नै छलौ ।ई हार तँ ओ पैरवी बलाकेँ हार छलै जे तोहर ज्ञानक आगू हारि गेलै ।तूँ आब नव उर्जा संग ठाढ़ हो ,नव शक्तिक संग चोट कर ।तोहर विजय जरूर है ।कहाबत तँ सुनने हेबेँ , सए सोनारकेँ तँ एक लोहारकेँ ।एक ने एक दिन जिनगीक सब बाधा ,सब परीक्षा तूँ उतिर्ण हेबेँ ।

मोनू-   हँ मीता ,तूँ एखनो जीतल छेँ ।सब दिन जीतल रहबेँ ।

रोहित-   क्षमा करू ।माँफ करू ।हमर आत्मबल डोलि गेल छल ।हम भटकि गेल छलौं ।मुदा आब हम देबर मेहनत करब ।तखन धरि मेहनत करब जखन धरि ओ जीतल टाका आ पैरवी बलाक गालपर ई हारल विजेताक जीतक थप्पर नै पड़ि जाइ ।हम हमरा सन सब युवासँ कहऽ चाहब जे हमरा जकाँ आत्महत्या सन डेग किओ नै उठबू ।फेल भेलापर और बेसी जोशक संग जीतक मार्गपर आगू बढ़ैत चलू ।जीत भेटबे करत ।जाइ छी हमहूँ आब बेसी मेहनत कऽ अपन लक्ष्य धरि पहुँचब । हँ ,ई कहाबत सदिखन मोन राखब ,सए दिन सोनारकेँ तँ एक दिन लोहारकेँ ।

(मंचपर सब हँसऽ लागैत अछि आ धिरे-धिरे पर्दा खसऽ लगैत अछि ।)

                                                                                        समाप्त


अमित मिश्र
करियन ,समस्तीपुर
(मिथिला ,बिहार)

हाइकू


1.फूलक नशा
तड़पाबै सदति
भौंरा सबकेँ

2.पीबि पराग
हर्षित भऽ मधुप
दै मीठ मधु

3.दाँतक बाड़ी
रौदक संगममेँ
वर्फक खेत

4.होलीक रंग
पनिसोखा सन छै
गाल सजल

5.द्वेषक गर्मी
जेठक रौद सन
मोन पैसल

6.प्रेमक आशा
सत्त ,मज्जर जकाँ
छै कतौ कतौ

7.पेटक मूसा
राहु-केतू बनल
कूदि रहल

8.मैथिल रीत
कस्तुरी ईत्र जकाँ
छै गमगम

9.नव कनियाँ
सासुरमे आबिते
छै लाजबन्ती

10.बूढ़क देह
बिनु पँखिक मैना
ठामे खसल

11.पवनपुत्र
राम लेल उड़ल
पवन बनि

12.तृप्प केलक
कण कणकेँ देखू
पहिल अंशु

13.छोटका बौआ
नै नहाइ एखन
जाड़क डरे

अमित मिश्र
हाइकू

1. बाजल मुर्गा
भ्रष्टाचारक बोल
आजुक भोर

2.महगाइसँ
भेल पानि निपत्ता
पैघ शहर

3.गिरगिटसँ
सिखने छैक नेता
रंग छोड़ब

5.झरना बनि
खसैत ताजा नोर
विरहिनकेँ

6.बापक टाका
डिस्कोएमे खतम
पाण्डाक जकाँ

7.नव कनियाँ
लाजाए छथि बेसी
लजबिज्जीसँ

8.बहै छै घाम
किसानक देहसँ
खेतीक बेर

9.कादो खेतमे
निहुरल छै जोन
धान रोपै छै

10.बाँट बखरा
घर घर होइ छै
प्रेम कतऽ छै

11.बाबाक संगे
गाछी-बिरछी बाध
घूमत बौआ

12.जागऽ मैथिल
जागल दिनकर
पूब अकाश

अमित मिश्र
हाइकू/शेर्न्यू

1.के देखलक
अमर आत्मा आर
हवाक रंग

2.समाज बीच
गेन्हाएल रिश्ता आ
एहने हवा

3.शीत पवन
लेने आ तूँ समाद
मोर पियाकेँ

4.घूस खेलासँ
ककरो नै होइ छै
वायु-विकार

5.हवण लेल
जड़ै खूब अन्न तँ
भूखलकेँ की

6.गामक गंध
पहुँचाबै पवन
परदेशीकेँ

7.मधुमासमे
खेलै सुग्गा आ मैना
मज्जर बीच

8.चाउर दालि
थारीसँ भेल दूर
बढ़िते दाम

9.करत के की
जँ माँझ माँथ पड़ै
दैवक डाँग

10.पाकल आम
थकुचल बूढ़मे
कोन अंतर

11.खुशी मनाबै
आजुक पुरजन
देखिते हारि

12.अपंगपर
हँसै बला नै देखै
निज टेटर

अमित मिश्र

शेर्न्यू

1.फँसल सब
एहि जगमे आबि
मायाजालमे

2.रौद-छाहरि
होइते रहै छैक
जीवन भरि

3.उठह कवि
विद्रोहक आगिसँ
कागत रंगऽ

4.जड़ै नै सीता
ककरो आँगनमे
टाकाक लेल

हाइकू
कुछ हाइकु
~ श्री अमित मिश्र

घना कोहरा
भ्रष्टाचार का छाया
कलयुग मेँ

श्रृंगार रस
रचना कठिन है
पतझड़ में

पागल भौंरा
बसंत मेँ हो जाता
फूलोँ के लिए

दिवानी मीरा
वन वन ढ़ूँढ़े है
वंशी की धुन

काँपता रूह
वक्त जब बढ़ता
इन्तजार का

हाइकू

भोरका रौद
नवका उर्जा आनै
जोश जगबै

मंगल लेल
मनुख जल ढ़ारै
तुलसीचौरा

कारी कम्बल
आकाशकेँ झाँपने
नाचल मोर

कुचरै काग
लागै घरमे एतै
शुभ सनेस

माँक करेजा
मोमक गढ़लनि
ओतै देवता

साँपक माला
मुदा शांत मोन छै
महादेवकेँ

अमित मिश्र

हाइकू

खूनक नदी
माँटिपर बहेलौँ
भेलौँ आजाद

नालीक कीड़ा
लोभी कामी लोकमे
कोनो फर्क नै

शान तिरंगा
झुकै नै जहिं तहिं
रबर जाकाँ

पहाड़ सन
उच्चविचारक छै
भारतवासी

कटैत घेंट
धानक जड़ि जकाँ
देशप्रेमीक

हाइकू

शहीदो सुनो
तिरंगे का कफन
तेरे लिए है

पल रहा है
विधवा के कोख मेँ
दूजा सेनानी

हर युद्ध मेँ
कटते गये सर
आलू प्याज सा

अन्धा कानून
कोरा है संविधान
नये युग में

सूखे पत्ते भी
जानते मतलब
देशप्रेम का

पल भर भी
तिरंगे के नीचे मिल
करें नमन

अमित मिश्र


हाइकू

धवल चन्ना
तरेगणक बीच
छै हेराएल

हँसै सुमन
नाचै तितली भौँरा
उपवनमे

साउन भादो
उबडुब पोखरि
प्रेम मेघसँ

युवा वसन्त
कोयलक गीतसँ
झूठो छै सत्त

मादक हवा
फूलाएल सरसो
पियर खेत

ने मीठ लगै
ने बेसी तीत लगै
प्रेमक स्वाद

माँझ रातिमे
एतै मोसिबत तेँ
बाजै कुकुर

झूठक पर्दा
आ मखानक पात
गलबे करै

माँथक बिन्दी
नन्हकी तरेगण
लागि रहल

पानक पात
लाल टमाटर छौ
तोहर ठोर

गोरी तोहर
आँखिक सुरमा छै
नेताक मोन

प्रेमी दुनियाँ
सिनेह पाबै लेल
घनचक्कर

खेतिहरकेँ
गोबर-करसीमे
दिन बितै छै

दबानल छै
समाजमे लागल
आगि दहेज

जड़लै कीड़ा
आगिसँ नेह कऽ कऽ
एक्कै क्षणमे

मोनक चोर
अनकर करेजा
चोरेबे करै

फाटल कुर्ता
ओहि भिखमंगाकेँ
जाड़ोमे शोभै

लाल गुलाब
प्रेमक पहिचान
भरि जगमे

लैला मजनु
अपन जान दऽ कऽ
अमर भेलै

सबसँ नीक
प्रकृतिक कोरामे
मिथिला धाम

अमित मिश्र

हाइकू/शेर्न्यू

शान्त जीवन
ठमकल पानिमे
किटाणु लागै

ककरो खुशी
पुरनि पर पानि
ठहरै नै छै

साहित्योमे
पैसल अधसर
और लठैत

आलसी लोक
ई इनारक बेंग
एक समान

पोताक हँसी
बाबाक लेल बनल
चमेली सन

माएक प्रीत
कस्तुरी सन अछि
गमकै खूब

केराक पात
उठि गेलै भोजमे
पलेट लग

एकटा गीत
मधु सन प्रेमक
जीबाक लेल

खाधि पोखरि
भरल मखान छै
मिथिला भरि

साँझ पराती
खूब गाबै चिड़ैयाँ
जेड़क-जेड़

अमित मिश्र

हाइकू/शेर्न्यू

कष्टसँ कानै
सुखकेँ खोजै तैयो
बलि चढ़ाबै

गेना गुलाब
सिगरहार सन
तोहर मुस्की

पुष्प -विमान
ई मोन बनल छै
थम्है कतौ नै

सुखल धार
डूबेबै कतऽ बेटी
घैल बान्हि कऽ

पुतना माँ छै
दुलार नै ,मारै छै
नोन चटा कऽ

यमुना तीर
बदलाम खेलसँ
कृष्ण-गोपीक

लिखल कहाँ
वनबासी रामकेँ
सीताक संग

कुहकै पीक
पाकल छै रसाल
एहि महिना

प्रेम सानल
चन्ना चकोर सन
होलीक रंग

अमित मिश्र

हाइकू/शेर्न्यू

कानैत हेतै
पेटमे गेलापर
अण्डाक मुर्गा

लाज नै होउ
निज खून जड़ा कऽ
भूणक हत्या

सामा-चकेवा
सबहक प्रेममे
चुगला आबै

नोन खुआ दे
नेनपनेमे तूँ जँ
इज्जत लेबें

हारिक जीत
मजेदार होइ छै
अजमा लिअ

एहि जगमे
उपमा रहित छै
प्रेमक ताग

माँथ चढ़ल
कलंकसँ खराप
और किछु नै

बिनु चलितो
गाछ ,बूढ़ अपंग
सजीव रहै

जूही-चमेली
पसरल ओछैन
कोहबरमे

माँथक बिन्दी
सौँसे जे लाल ठोप
चंन्द्रमा सन

अमित मिश्र



शेर्न्यू

1.फाटल धरा
समा गेली जानकी
गंजन सहि

2.टाका चाहियै
कोनो काजक नै छै
प्रीतक बोनि

3.एकटा शब्द
भुकम्प आनि दै छै
सम्बन्ध बीच

4.अन्हार घर
साँपे साँप पसरल
चौबगली छै

5.भोजक बेर
अनकर खर्च जानि
बनै चटोरी

6.पाथर मोन
बोलिएसँ बनै छै
मोम सनक

7.झगड़ा -झाँटी
करा दै छै वचन
तौल कऽ बाजू

8.बसन्त संग
अजबे छवि चढ़ै
यौवन पर

अमित मिश्र
हाइकू/शेर्न्यू

नाह मनुख
सुख दुख दू कात
जीवन नदी

पानक पात
प्रेमक कत्था पाबि
अमर भेल

पिज्जा-बर्गर
करतै परतर
तिलकोरक

माँछक भोज
मिथिलेमे होइ छै
मीठ मखान

खाइ कचरा
करै छै मैल साफ
दुषित गंगा

एतै चुनाव
दारू टाका बँटतै
फँसतै दंगा

छोड़ि दै ऐंठा
नै दै ककरो भीख
नै बाँटै अंगा

करू अहं नै
शनिक चोट खा कऽ
जड़त लंका

अमित मिश्र



शेर्न्यू

शब्दक घाव
खोधै छी कलमसँ
भावक लेल

मरबै तैयो
जीबाक पियाससँ
तड़पै सब

बापकेँ फेकै
पुरना अखबार
बेचैछ जेना

रिश्ताक स्वाद
मिरचाइक गुण्डी
नीमक पात

धनक भूख
पियास नै मिझाइ
ओस चाटि कऽ

अनका दोष
नै दे जँ निज मोन
प्रदुषित छै

फैसनेबुल
भीख माँगै बाटी लऽ
दहेज जे लै

अमित मिश्र


शेर्न्यू

जग मरू भू
डेग डेग तिलस्म
फूसिक खेल

आठो पहर
धड़कैत करेज
डरक राज

मैल मोनसँ
पूण्य करू यात्रा कऽ
चारू धामक

माँटि बिकाइ
प्रताप एहन छै
उदयनक

बदनामीसँ
नारिक इज्जत तँ
चूर चूर छै

अमित मिश्र

हाइकू/शेर्न्यू

1.जागल आँखि
स्वस्थय समाजक
सपना देखै

2.सूतल मोन
नै देकै पसरल
कूव्यवस्थाकेँ

3.एकता नै छै
अनेकतामे जीबै
भारतवासी

4.मातल हवा
मदहोश करै छै
एलै फागुन

5.गन्दोमे फूल
कादोमे छै कमल
शीपमे मोती

6.धर्म नै जानै
बमक गर्म लुत्ती
जड़ै छै सब

7.छै जन्मदिन
सालमे एकबेर
उम्र घटाबै

8.नीक-बेजाए
आगिक प्रेममे तँ
फतिंगे जड़ै

9.गन्ध लोभाबै
लपटल भुजंग
चन्दन गाछ

अमित मिश्र

हाइकू

1 .जाड़क भूत
पराण लऽ जाएत
भरि रातिमे
2.
निर्मोही सूर्य 
कोना संग पड़ेलै
चोरबा रौद
3.
पूसक राति
वर्फक पैघ गोला
खसले हेतै
4.
मोन होइ छै
कूदि जाउँ एखने
आगिक बीच
5.
चारि कुकुर
कुहरै छै बहुते
पुआर तऽर
6.
उघारे देह
काँपैत दौड़ै आइ
ओ भिखमंगा

अमित मिश्र

शीतल वायु , ल' एलै हरियाली , सावन भादो

भेल अन्हार ,आकाश करै हल्ला , इजोत संग

प्रसन्न इंद्र , दै छथि आइ पानि , बोझक बोझ

भरल खेत , हरियर कजली , सगरो कादो

भरि आँगन , छै सहसह चाली , जाएब कत'

दौड़ल छौड़ा , नैका पोकरि दिश , मारत माँछ

गरम चाह , छै सवहक प्रिय , एहि वर्षा मे

अमित मिश्र




हाइकू

आब की हेतै , उफानपर कोसी , टूटलै बान्ह

बाढिक पानि , खेतमे पसरल , डूबल धान

खसल कोठा , कते जन रहत , ऊँच मचान

केराक थम्ह , राख बालुक बोरा , रोक कटान

भासल लाश , माल-जाल लोकक ,फँसल प्राण

बरसै वर्षा ,खसि गेल ठनका , अदृश्य चान

टूटल आरि , धसि गेल धसना , पानिक गान

काँपैत रोआँ ,उजड़ल दुनियाँ , उड़ल प्राण

अमित मिश्र



सावन मास , लागल कारी मेघ , बाजल बेँग

झूकल डाँर , रोपै धानक बीया , जोन-मजूर

अचार रोटी , भेल पनिपियाइ , भरल मोन

भरल पेट , छै ठोर त'र खैनी , उसरै काज

सिहकै हवा , हरियाएल बाध , झूमैत खेत

सामा-चकेबा , खेलै सब बहिना , धानक बालि

तीला संक्राति , तीलबा गुड़लाई , नवका चूरा

अमित मिश्र
शांत पवन , भेल कारी आकाश , फाटतै मेघ

सून सड़क , घर दिश दौड़ल , थाकल लोक

मोटका बूँद , सड़कपर ढेह , भासल माटि

तारक गाछ . खसि गेल ठनका , जड़ल पात

एलै बिहाड़ि , टूटलै डाढ़ि-पात , फूटलै अण्डा

अमित मिश्र

पढ़ल लोक , जेठ दुपहरिया , घास छीलैए

मेघक बिनु , सावन मे देहसँ , घाम चूबैए

पानिक बिनु , छै फाटि गेल खेत , सक्कत माटि

अमित मिश्र

जंगल बीच , गरजैत झड़ना , निकलै गंगा

शोभै पहाड़ , सगरो हरियरी , गाछक अंगा

फूलक गंध , पराग पीबि भौँरा , मचेने दंगा

अमित मिश्र







शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

गजल

गजल

पिया बिन ऐहि घर रहिये कऽ की करबै

विरह सन आगिमे जड़िये कऽ की करबै

अपन कनियाँ जखन कहि नै सकब हमरा
पिया करमे अपन धरिये कऽ की करबै

निवाला जखन नै भेटत तँ बुझबै दुख
गरीबक दुख अहाँ सुनिये कऽ की करबै

उड़ाबै देखि खिल्ली लोक हमरा यौ
समाजक बनि हँसी रहिये कऽ की करबै

जखन दर्दक इलाजेँ नै अहाँ लग यौ
तखन बेथा हमर सुनिये कऽ की करबै

बहरे हजज ,मात्रा क्रम १२२२ तीन बेर
© बाल मुकुन्द पाठक ।।

रुबाइ



नैन्हेटा हाथमे केहन लकीड़ छै
नै माय बाप ई केहन तकदीर छै
धो धो कऽ ऐँठ कप लकीड़ो खीएलै
नै सुनै कियो ई दुनियाँ बहीर छै