की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। sadhnajnjha@gmail.com पर e-mail करी Or call to Manish Karn Mo. 91 95600 73336

शनिवार, 8 सितंबर 2012

गजल



जँ करबै विश्वास भेटत दर्द सगरो
खसल लोकक नेत संगे नेह नजरो

गजल माँगै भाव संगे शब्द हल्लुक
अपन भाषा संग राखू मोन बहरो

सिनेहसँ छै भरल पति-पत्नी जगतमे
मुदा ओतौ होइ छै कखनो कऽ झगड़ो

बरसि जेतै मेघ रौदी भागि जेतै
खसै छै अमृत बहै ठनकाक नहरो

कते मोनक बात मोनेमे रहै छै
हुनक चुप्पी अमित देलक तोड़ि हमरो

मफाईलुन-फाइलातुन-फाइलातुन
1222-2122-2122

बहरे-सरीम

अमित मिश्र



गजल


नैन खोलिकऽ कने देखू ने भवानी
काँट पसरल सगर सोचू ने भवानी

बाट दरबार के माँ देखल तऽ नै अछि
अंगुरी पकड़ि देखाबू ने भवानी

राति कारी बनल दिन तऽ स्याह भेलै
घोर युग समय फरिछाबू ने भवानी

झूठ छल हम कऽ मिझरेलौँ आगि पेटक
आब की करब किछु बाजू ने भवानी

एतऽ नेता पड़ल हिँसा ओतऽ भड़कल
"अमित" थाकल कहै जागू ने भवानी

फाइलातुन-मफाईलुन-फाइलातुन
2122-1222-2122
बहरे-असम

अमित मिश्र

गजल


चुप्प रहलासँ दुनियाँ नीक मानै छै
देख लिअ गाम घर शमसान लागै छै

घैल छै फूटल मुदा छै पानि के चिन्ता
देश तेँए सुखारक हाल जानै छै

आँपरेसन भऽ गेलै छोट सन घावक
चोट जकरा बहुत से हकन कानै छै

मोन मानै कहाँ छै जे अड़ल रहतै
घोषणा मदति के सुनि लोक फानै छै

जाड़ि देलक सभ ज्ञानसँ भरल पोथी
देखियौ "अमित" केहन समय आनै छै

फाइलातुन-मफाईलुन-मफाईलुन
2122-1222-1222
बहरे-मुशाकिल

अमित मिश्र

शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

गजल

सुख भरल संसार चाही
हमर सब अधिकार चाही

धार शोणित संग बहतै
बायुमे टंकार चाही

नै महल गाड़ी नम्हर नै
छोट सन ओहार चाही

नै दहेजक माँग राखब
बस मखानक भार चाही

दैव नै देखै मनुख केँ
भगतकेँ गोहार चाही

चुल्हि अलगे भाइ केलक
माइ के पेटार चाही

नीक कनियाँ संग लुरि बुधि
दोखदर नै सार चाही

फाइलातुन
2122 दू बेर

बहरे रमल

अमित मिश्र

बाल रूबाइ

बाल रूबाइ-1

बौआ कान नै चोरबा आबि जेतै
चन्ना गेलै सूतऽ फेर काल्हि एतै
बौए लेल जागल छै आब तरेगण 
भोरे सूर्यक संग गीत नाद हेतै

बाल रूबाइ-2

बड़का पोखरि पोखरिमे बड माँछ छै
मलहा जालसँ बौआ बंशी लऽ मारै
बड़का माँछ फँसै छै महाजालेमे
बौआ मात्र टेँगरा पोठिये पकड़ै


बाल रूबाइ-3

पोथी पढ़ब इस्कूलमे मोनसँ आइ
खेबै खूब इमली तोड़ि गाछसँ आइ
खेलब साँझमे कबड्डी खूब दौड़ब
ज्ञानक बात सीखब हमहुँ खेलसँ आइ



बाल रूबाइ-4

भोरक नव लाल इजोत छेँ तूँ बुचिया
देशक जीत लेल खेलाड़ी तूँ बौआ
माँ बाबूक लाठी साँस तूँहीँ तऽ छेँ
उड़िया नै मातल हवामे तूँ बेटा


बाल रुबाइ-5

बौआ रे चोरी नै करबाक चाही
सदिखन पैघक बात मानबाक चाही
बुचिया तोहर नाम हेतौ दुनियाँमे
अपनामे कखनो नै लड़बाक चाही



बाल रूबाइ-6

हे गै करिकी गाय गरम दूध दे ने
तोरो दऽ दै छी हरियर जनेर ले ने
देबेँ दूध तऽ दही पेड़ा घी खेबौ
मानेँ मैया नै तऽ उपास भेले ने


बाल रुबाइ-7

पीठपर झोरा और हाथमे बोरा
बौआ चलल इस्कूल लऽ पोथी जोड़ा
कारी सिलेट चारि टा उजरा पेन्सिल
संगी बनि नीक पेन्सिल देतौ तोरा

कर्तव्य निर्वाह


शहरक एक मात्र नामी सरकारी हाँस्पिटलक इमरजेँसी वार्डमे होइत कन्ना-रोहट पूरा प्रांगनकेँ कपाँ रहल छल । अगल-बगलकेँ लोक सेहो जुटि नोराएल नैन लेने ठाढ़ छलैए । 50 वर्षक बूढ़ मरीजकेँ नाँकसँ आँक्सीजनक पाइप बान्हल छलै मुदा साँस बड तेजीसँ उपर-नीच्चा होइत छलै । 14 वर्षक बच्चा दौड़ कऽ डाँक्टर साहेबकेँ कहलक मुदा डाँक्टर साहेब कहलनि ,"नर्सकेँ कहू सुइया लगा दै लेए।"
बच्चा हाँफैत नर्सकेँ  खोजऽ लागल मुदा नर्स नञि भेटलै ओ दोसर वार्डकेँ नर्सकेँ कहलक सुइया लगा दै लेए ,नर्स जबाब देलनि ,"हम एखन ड्यूटीपर नञिछी , किनको दोसरकेँ कहू ।"
बच्चाकेँ आँखिसँ खसैत नोर गालके भीजाबैत उज्जर फर्शपर पसरि रहल छल ।ओ फेर डाँक्टरकेँ जा कऽ कहलक । डाँक्टर साहेब फटकारैत बाजलाह ,"हम डाँक्टरीके डिगरी सुइया भोँकै लेल नञि लेलौँ ।"
बच्चा हतास भेल ओहि मरैत शरीर लग बैसि गेल । साँस आरोह-अवरोह करैत बन्न भऽ गेलै । ओहि 14 वर्षक अनाथके आँखिसँ नोर झहरैत रहल आ एहि ब्रम्हांडक दोसर भगवान अपन कर्तव्य निर्वाह करैत रहलाह ।

अमित मिश्र

बाल गजल


बेलगोबना नहि सुनलक गप्प 
ओकर माथसँ बेल खसल धप्प 

बरखा बुनि ल' क' एलै कारी मेघ 
पएर तर पानि करे छप्प छप्प 

बोगला भेल देखू कतेक चलाक
एके पएरे करे दिन भरि जप्प 

बुढ़िया नानीकेँ दुनू काने हरेलै   
चाह पीबे भरि दिनमे दस कप्प 

बैस 'मनु' झोँटा छटा ले चुपचाप
नै तँ काटि देतौ कान हजमा खप्प 

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१३)     

गजल


सुख भरल संसार चाही
दुखक नै अंबार चाही

मोन सदिखन खूब हरखे 
बमक नै टंकार चाही

भरल घर मिथलाक ज्ञानसँ 
अन्नकेँ भंडार चाही 

डोलि अम्बर फूल बरखे 
भक्तकेँ झंकार चाही  

सभ कियो 'मनु' हँसिक' भेटे 
एहने संसार चाही  
 
बहरे रमल, (२१२२-२१२२)  

मैथिलपुत्र पुरस्कार योजना मास प्रथम (अगस्त २०१२)




बहुत हर्खक गप्प जे मैथिलपुत्र मासिक पुरस्कार योजनाक, प्रथम मासक (अगस्त २०१२) चयन भ' गेल अछि | किशन कारीगर "नादान" जीकेँ हुनक  हास्य कविता  "घोंघाउज आ उपराउंज"  के लेल  चयन कएल गेलैन्हि । हुनका बधाइ।
 किशन कारीगर "नादान" 


घोंघाउज आ उपराउंज

हम अहाँ के गरिअबैत छि
अहाँ हमरा गरिआउ
बेमतलब के करू उपराउंज
धक्कम-धुक्की करू खूम घोघाउंज.

कोने काजे कहाँ अछि
आब ताहि दुआरे त
आरोप-प्रत्यारोप मे ओझराएल रहू
मुक्कम-मुक्की क करू उपराउंज .

श्रेय लेबाक होड़ मचल अछि
अहाँ जूनि पछुआउ
कंट्रोवर्सी मे बनल रहू
फेसबुक पर करू खूम घोघाउंज.

मिथिला-मैथिल के नाम पर
अहाँ अप्पन रोटी सेकू
अपना-अपना चक्कर चालि मे
रंग-विरंगक गोटी फेकू.

अहाँ चक्कर चालि मे
लोक भन्ने ओझराएल अछि
अहाँ फेसबूकिया ग्रुप बनाऊ
अपनों ओझराएल रहू हमरो ओझराऊ.

ई काज हमही शुरू केलौहं
नहि नहि एक्कर श्रे त हमरा अछि
धू जी ई त फेक आई.डी छि
अहाँ माफ़ी किएक नहि मंगैत छी?

बेमतलब के बड़-बड़ बजैत छी
त अहाँ मने की हम चुप्पे रहू?
हम की एक्को रति कम छी
फेसबुक फरिछाऊ मुक्कम-मुक्की करू.

आहि रे बा बड्ड बढियां काज
गारि परहू, लगाऊ कोनो भांज
कोनो स्थाई फरिछौठ नहि करू
सभ मिली करू उपराउंज आ घोंघाउज.
***************************

सोमवार, 3 सितंबर 2012

गजल


दड़ड़िते खेसारी     बखाडी बनेलक
बीच तरहत्थीपर दही ओ जमेलक

बिसरि रौदी दाही   अपन कष्ट सभटा
कर्म पथपर खेतिहर चलि हर चलेलक

केखनो नहि पढ़ि रहल मड़राति सगरो 
राजमंत्री बनि    जीनगी भरी कमेलक

पहिर चश्मा दिन राति जे खूब पढ़लक
घूस दय चपरासी      किरानी कहेलक

देख आगाँ इस्कूलकेँ   घुरि परेए
बनि कवी 'मनु' सभकेँ गजल ओ सुनेलक

(बहरे खफीक, मात्राक्रम- २१२२-२२१२-२१२२)

शनिवार, 1 सितंबर 2012

गजल


कतेक छल टीश कतेक दर्द उमरैत रहल
छल दर्द करेजा में आंखि सँ नोर खसैत रहल

बनि हम माटि क' मूरति ठार बकोर भेल ओत'
सोंझा में हमर घरारि टूटि क' पसरैत रहल

दियाद क' झगरा में बखरा लागल केहन देखू
माँ किनको दीश बाप भेल मनुखो बंटैत रहल

खचा-खच करेज में घोंपी रहल छुरा जेना कियो
आब नै निकालि सकै कियो आर इ धसैत रहल

बिनु बाँट बखरा क' जीबी नै सकै मनुख कहुना
ब्याकुल भेल माई आ बाप सोचि क' मरैत रहल

एहन होश उरल 'रूबी' क' आन्हर भेल छैक ओ
नोर बहल कखनो रक्त जनु बरसैत रहल

सरल वार्णिक बहर वर्ण -१९
रूबी झा

गजल


बिनु बातक ऐना भs के अपन नै रुसय ककरो
बिनु चोटक सपन नै ऐना कs के टुटय ककरो

राखल आगु में होय लाखे कियेक नै भोग छप्पन
प्रेमक बिहीन आ स्वादक बिनु नै रुचय ककरो

ईर्ष्या जलन में भs गेल छैक सबटा नाश चौपट
मुदा अन्तोकाल में आंखि किएक नै खुजय ककरो

नारी के छै नारी शत्रु छी हम कुरूप छै ओ सुन्नरि
ढारि तेज़ाब खुश ऐना करेजो नै जरय ककरो

व्यर्थहिं जनु अपन मांथ कs खपा रहल छै 'रूबी'
जानि बुझी बनल अज्ञानी बातो नै बुझय ककरो
-----------------------वर्ण १९ -------------------
रूबी झा

गजल


हे यै सुन्नरी कनेक अहाँ त' सम्हारि चलु
ऐना बहकैत नै आँचर सँ बहारि चलु

भरल यौबन अहाँक मादकता अपार
लोक हुलकै नै अहाँ घोघक' उघारि चलु

अल्हर छी एहन बयार पुरबैया जेना
एलो सासुरक' लगीच नै झटकारि चलु

अछि कांचे वयस कनेक पपनी खसाओ
करबै चौपट नै एना आंखि तरारि चलु

हमर इज्जत सम्मानक नै करू भंडूल
हे यै नहु नहु कने पियाक' दुलारि चलु

------------------वर्ण -१६ -------------
रूबी झा

गजल


जीबन धन अहाँ बिनु जीबन कोना कs बचतय यौ
हँसे छी फुसिये अहाँ बिनु मुस्की कोना कs सजतय यौ

छोरि गेलौ झरकैत आगि में कहुना जीबैत रहलौ
मुदा बिनु पानि कs चानन कियो कोना कs घसतय यौ

बीतल बात हम कतेक दिन राखब जोगा जोगा कs
नै जौं हेते नव बात तs पूरना कतेक चलतय यौ

पलक कs पंखुरी में अहिं केर सुधि समाहित अछि
आंखि केर काजर अशोधार भs कतेक बहतय यौ

उलहन आ उपरागक तs पोथी भरने अछि रूबी
शरिपहूँ नै अहाँ एबे तs कतेक दिन जपतय यौ

-----------------वर्ण -२० -----------------
रूबी झा

हजल


देखियो ई बबुआन कs केश बुझू मांथ पर की छत्ते बुझू
छथ सिकीया पहलवान मुदा पेट जनु कोनो खत्ते बुझू

अछि आगु मे चुरा दही कs पुजौर अधक्की जकाँ परसने
फूँक मारू तs ऊरता मनुख बुझू चाहे सुखेल पत्ते बुझू

कार्यक बिहून आ बाजब में छथ कने बेसिए होशियार
मजलिस लगेता सौंसे जा' रोपल जेना गोबरछत्ते बुझू

लाज शर्मक शब्दों नै बुझल ग्लानी हिनका ओतs की हेतेन
हर्ष विषाद हिनका लेल की ईहो पुरुख अलबत्ते बुझू

धोती अंगा कहिये छोरलैन जिन्सक पेन्ट चुबैत रहे छै
शहर कs ओ अंखियो नै देखल रहै मुदा कलकत्ते बुझू

बेगारी बैसल 'रूबी' लिखs चाहलक किछ लिखा गेल किछ
जनु कियो लेब अपना पर एहनो नै सबटा सत्ते बुझू

वर्ण -२२

रूबी झा