मैथिलीपुत्र ब्लॉग पर अपनेक स्वागत अछि। मैथिलीपुत्र ब्लॉग मैथिली साहित्य आ भाषा लेल समर्पित अछि। अपन कोनो तरहक रचना / सुझाव jagdanandjha@gmail.com पर पठा सकैत छी। कृपया एहि ब्लॉगकेँ subscribe/ फ़ॉलो करब नहि बिसरब, जाहिसँ नव पोस्ट होएबाक जानकारी अपने लोकनिकेँ भेटैत रहत।

सोमवार, 28 मई 2012

रुबाइ

भेटल नहि सिनेह   तेँ शराबे पीलौं

दर्शन हुनक हरदम गिलासमे केलौं 

के अछि कहैत शराब छैक खराब ‘मनु’

बिन रहितौं हुनक शराबेसँ हम जीलौं 

                ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’


रुबाइ

ढोलक धम-धमा-धम बजैत किएक छै

घुंघरू खन-खना-खन नचैत किएक छै

भीतरसँ छैक दुनू एक्केसन  खाली 

संजोग इ दुनू नहि बुझैत किएक छै 

                ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’


गजल

चान सँ सुन्नर सजनी हमर एहेन  नै  केखनो सोचलौं हम
भाग में लिखलाहा छल हमर जे अहाँ केँ  अपन  बनेलौं हम
 
एक चान अछि धरती केँ  ऊपर जेकरा सभ  कियो देखते छी
दोसर हमर हृदय में बसल पाँज में जकरा भरलौं हम
 
अहाँ छी सुन्नर हे मनमोहनी तन मन सभ निश्छल अहाँ केँ
एहि सादगी पर मरि मीटलौं अहीँक पूजा करै लगलौं हम
 
आँखि मुनि आ खोलि हम  सामने हमर अहाँ रहै छी सदिखन
सुन्नर छबी निहारैत अहाँ केँ अहीँक लौलसा में रहलौं हम
 
चन्ना ताराक संग जेना छैक सुख दुख पल-पल जीबन भरि
रहि जीबन भरि 'मनु' सुगँधाक जीबन अहाँ केँ सोपलौं हम 
 
(वर्ण- २४)  
जगदानन्द झा 'मनु'
 

रविवार, 27 मई 2012

बचल रहय परिवार

बात कहय मे नीक छल, बेटा गेल विदेश।
मुदा सत्य ई बात छी, असगर बहुत कलेश।।

विश्व-ग्राम केर व्यूह मे, टूटि रहल परिवार।
बिसरि गेल धीया-पुता, दादी केर दुलार।।

हेरा गेल अछि भावना, आपस के विश्वास।
भाव बसूला के बनल, भोगि रहल संत्रास।।

शिक्षित केलहुँ कष्ट मे, पूजि पूजि भगवान।
जखन जरूरत भेल तऽ, दूर भेल सन्तान।।

शिक्षित नहि करबय अगर, लोक कहत छी पाप।
मुदा एखन सन्तान लय, मातु-पिता अभिशाप।।

लागय अछि जिनगी एखन, बनल एक अनुबन्ध।
सभहक घर मे देखियौ, टूटि रहल सम्बन्ध।।

बेसी टाका की करब, करियौ सुमन विचार।
सुन्दर एहि सँ बात की, बचल रहय परिवार।।

गजल



 

आई फेर पुछैय लोक हमरा अहाँ किएक उदास छि
आ हम पूछलएन हुनका सं अहाँ किएक नीरास छि

जातपातक भेदभाव कोना उत्तपन भेल मधेश में
ताहि चिंतन में हम डुबल छि अहाँ किएक नीरास छि

थरुहट अबध मिथिला भोजपुरा नै चाही मधेश के
मधेशी के चाही स्वतंत्र मधेश अहाँ किएक नीरास छि

अखंड मधेश केर विखंडन में शाषक अछि लागल
हेतै क्रूरशाषक के अवसान अहाँ किएक नीरास छि

सहिदक सपना मधेश एक प्रदेश बनबे करतै
निरंकुश शाषक मुईल जेतै अहाँ किएक नीरास छि
............वर्ण-२१..............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शनिवार, 26 मई 2012

गजल

ओ निसाँ शराब में कतए चाहि जे पिबैक लेल 
बहाँना माहुर  में कतए चाहि जे चिखैक लेल   
 
सगरो बहल अछि धाड आब शराबक देखू
लाबू कतय सँ सूई-ताग ई धाड सिबैक लेल
 
बचल किए आब शराबे टूटल करेज लेल
बहुतो छै  जीबन में एकर बादो जिबैक लेल 
 
जँ डगमगएल डेग शराबे किएक थामलौं   
बाँकी अछि एकर बादो बहुत सिखैक लेल
 
बहाँना बहुत अछि दुनियाँ में एखनो जिबै के
आबू मनु देखू बहुत किछ अछि पिबैक लेल  
 
वर्ण- १८
जगदानन्द झा 'मनु'

रुबाइ

पीलौं शराब तँ दुनियाँ कहलक बताह 

बिन पीने ई दुनियाँ भेल अछि कटाह

जे नहि पीलक कहाँ अछि ओकरो महल

पीबिए क' किएक नहि बनि जाइ घताह 

                  ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’


 

गुरुवार, 24 मई 2012

नाकाम

हर दम दुःख अपन भुलाबै चाहलौं

एकरा आन सँ हमेशा बचाबै चाहलौं

वोहे किस्सा हमरा दिस बढ़ि रहल अछि अखनिधरि

वोहे आगि सीना में धधकि रहल अछि अखनिधरि

वोहे व्यर्थ के चुभन अछि छाती में अखनिधरि

वोहे बेकार इच्छा हमर बनल अछि अखनिधरि

दुःख बढैत गेल मुदा इलाज नहि भए सकल

हमर बेचैन हालात के आराम कहाँ भेटल

मोन दुनिया के हर दर्द के अपना त' लेलक

व्याकुल आत्मा के उन्मादक ढंग नहि भेटल

हमर कल्पना के बिखरल क्रम अछि वहै

हमर बुझैत अहसास के स्तिथि अछि वहै

वोहे बेजान इरादा आ वोहे बेरंग सवाल

वोहे बेकार खींचातानि आर बेचैन ख्याल

आह ! ई रोजक कश्मकश्क के अंजाम

हमहुं नाकाम, हमर  कोशिशो नाकाम !!!!!!!!!!!!!

रुबाइ

नै पीब शराब तँ हम जीब कोना कय

फाटल करेजकेँ हम सीब कोना कय

सगरो जमाना भेल दुश्मन शराबक

सबहक सोंझा तँ आब पीब कोना कय 

                ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

 


मानु ने मानु.....

मानु ने मानु,
नव चेतना स दूर,
हम मैथिल मजबूर,
सभ्य होबाक मुखौटा लगौने,
स्वयं अपन रीढ़क हड्डी तोरै छि,
जागलो में किछ नई बुझै छि,
युवा छि,
पर साहस कहाँ ?
स्वाभिमान बनेबाक
सामर्थ्य कहाँ ?
समय संग चलैक,
दृष्टी कहाँ ?
प्रतिकार करैक,
तर्क कहाँ ?
मानु ने मानु,
अहाँक अधोगतिक,
बिज पहिनहि रोपल गेल अई,
दहेजक   बिष पैन स,
अहाँक नहौल गेल,
अहाँ महैक गेल छि,
भिनैक गेल छि,
प्रखर संस्कृति स लुढैक गेल छि,
आनक पुरुसार्थ पर,
ठाढ़ होबाक कोशिस,
अपाहिजे त बनाओत,
क्रमशः  और,
निस्तेज निर्बल होइत जैब,
प्रागतिक भ्रम में फँसल,
स्वयं  स हारैत,
कोन रेस में भगैत छि,
ठहरू  !
थोरेक सोचु ,
अहाँ स्वयं के कतेक सम्मान करै छि,

बुधवार, 23 मई 2012

रंग श्यामल रंग मे

गीत लिखलहुँ आयतक जे, भावना के सँग मे
ताहि कारण अछि सुमन के, रंग श्यामल रंग मे

जे एखन तक भोगि चुकलहुँ, गीत आ कविता लिखल
किछु समाजिक व्यंग्य दोहा, किछ गज़ल के ढंग मे

याद आबय खूब एखनहुँ, कष्ट नेनपन के सोझाँ
नौकरी तऽ नीक भेटल, पर फँसल छी जंग मे

छोट सन जिनगी कोनाकय, हो सफल नित सोचलहुँ
ज्ञान अर्जन करैत जिनगीक, डेग सबटा उमंग मे


सोचिकय चललहुँ जेहेन, परिणाम तेहेन नहि भेटल
हार नहि मानब पुनः, कोशिश करब नवरंग
मे

रुबाइ

आँचर नहि उठाबू आँखिसँ पीबय दिअ
हम जन्मसँ पियासल करेज जुड़बय दिअ

ताड़ीसँ  बेसी निसा  अहाँक  आँखिमे

प्रेमक निसामे अपन कनी जीबय दिअ 

                   ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

 


रुबाइ

पीलौं हम तँ लोक कहलक शराबी अछि 

एतअ के नहि कहु बहसल कबाबी अछि

बुझलौं अहाँ सभ   दुनियाक ठेकेदार 

हमरो  आँखिसँ देखू की खराबी अछि  

                 ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’


 

रुबाइ


कखनो तँ हम अहाँ केँ मोन पडिते हैब
यादिक दीप बनि करेज मे जरिते हैब
बनि सकलहुँ नै हम फूल अहाँक कहियो यै
मुदा काँट बनि नस नस मे तँ गडिते हैब

रविवार, 20 मई 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट

 



गजल

भ्रम में किएक रखने छि सत्य तथ्य बताबु यौ
नै बनत मधेश तं सरकार छोइड आबू यौ

दिवा स्वप्न में भ्रमित छि जनता केर भ्रमौने छि
मातृभूमि रक्षा हेतु चिर निंद्रा सं जागु यौ

माए मधेश के छाती पर चलल हर फार
खण्ड खण्ड कोना भेल मधेश किछ तं सुनाबू यौ

आब कियो सपूत नै देत वलिदान अहि ठाम
कोना भेल नीलाम मधेश कारन देखाबू यौ

सहिद्क आत्मा के सुनलौ नै चितकार कियो
नहीं भेटल कुनु अधिकार आब नै लडाबू यौ

मधेशी गर्दन पर चलल स्वार्थक तलवार
आब अप्पन संविधान अप्पने लिख बनाबू यौ
............वर्ण-१८.............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट