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शुक्रवार, 9 मार्च 2012

निर्मोहिया (कथा)


हुनकर नाम छल सदानन्द मंडल। माता-पिता हुनका सदन कहैत छलखिन्ह। हुनका नेनपने सँ नाटक-नौटंकी सब मे पार्ट लेबाक शौक छलैन्हि। कनी कऽ कविता शेर सब मे सेहो हुनका मोन लागैत रहैन्हि। ओ अपन उपनाम निर्मोही राखि लेने छलैथ। नाम पूछबा पर अपन नाम सदन निर्मोही बताबैत छलाह। शनैः-शनैः हुनकर नाम निर्मोही जी, निर्मोही आ निर्मोहिया प्रसिद्ध भऽ गेल छलैन्हि। घर-परिवारक लोकक अलावे दोस्त महिम सब हुनका निर्मोही नाम सँ जानऽ लागल छल। हुनकर एकटा बाल सखा छलैथ जिनकर नाम छल घूरन सदा। घूरन सेहो निर्मोही जकाँ नाटक कविताक शौकीन छलाह आ एहि सब मे भाग लैत छलाह। ओ अपन नाम दीवाना राखने छलाह। निर्मोही-दीवानाक जोडी पूरा परोपट्टा मे प्रसिद्ध छल। दुर्गा पूजा मे गाम मे नाटक बिना निर्मोही-दीवाना केर सम्भव नै छल। कोनो आयोजन हुए वा ककरो एहिठाम बरियाती आबै आ की कतौ अष्टजाम होय, सबठाँ निर्मोही आ दीवानाक उपस्थिति परम आवश्यक रहै। निर्मोही-दीवाना गामक लेल नौशाद, खैय्याम, रफी, मुकेश, किशोर आदि सब छलाह। जखने गाम मे कोनो सान्स्कृतिक कार्यक्रम होय की लोक जल्दी सँ जा कऽ अगिला सीट लेबाक कोशिश करैत छल जाहि सँ निर्मोही-दीवानाक नीक जकाँ देख सकल जाइ। कहै केर इ तात्पर्य की निर्मोही आ दीवाना सबहक मनोरंजनक पूर्त्ति करैत छलाह। नाटकक आयोजन मे उद्घोषक जखने कहै की आब निर्मोही दीवाना मन्च पर आबि रहल छथि की तालीक गडगडी सँ पूरा आकाश बडी काल धरि गनगनाईत रहै छल। मन्च पर आबैत देरी दुनू गोटे जनता केँ नमस्कार कऽ कए शुरू करैत छलाह- "हम छी निर्मोही-दीवाना, सब दुख सँ अनजाना, लऽ कए आबि गेल छी, मनोरंजनक खजाना।" आ की लोक ताली बजबय लागै। तकर बाद फिल्मी गाना, पैरोडी, कविता, शाईरी आदि सँ ओ दुनू गोटे पूरा मनोरंजन करैत छलखिन्ह। तहिना गाम मे कोनो बरियाती आबै तऽ इ दुनू गोटे ओहि दरबज्जा पर पहुँचि जाइ छलाह। हुनकर सबहक इ सेवा निशुल्क रहैत छल। कियो भोजन करा दैत छल, तऽ ठीक, नै तऽ कोनो बात नै। हिनकर सबहक कोनो माँग नै छलैन्हि। नेनपने सँ हमरा मोन मे हिनका सबहक प्रति बड्ड आदर छल। हिनकर सबहक निस्वार्थ सेवा देखि हमरा सदिखन यैह लागल जे इ सब सही मे साधु छथि। हिनका सबहक परिवारक खर्चा कहुना कऽ चलैत छल। कखनो माता-पिताक हुथनाइ आ कखनो कनियाँक बात कथा। मुदा हिनका सब पर कोनो असर नै छल। साँझ होइत देरी दुनू मुखियाजीक पोखरिक भिंडा पर आबि जाइत छलाह, जतय पहिने सँ छौंडा आ जुआन सब हिनकर सबहक प्रतीक्षा मे बैसल रहैत छलाह। तकर बाद शुरू भऽ जाइत छल मुशायरा इ शायर-द्वय केर।

समयक गाडी तेजी सँ भागैत रहल। हम पढि कऽ किरानीक नौकरी करऽ लागलौं। गाम एनाई कम भऽ गेल। शुरु मे तऽ नियम बना कऽ होली, दुर्गा पूजा, छठि मे आबैत रहलौं। बाद मे इहो एनाई जेनाई बड्ड कम भऽ गेल। गाम मे धीरे धीरे सब किछ बदलि गेल। नाटकक चलन सेहो खतम भेल जाईत छल। ओकर बदला मे थेटर आ बाईजीक चलन बढल जाईत छल। बरियातीक स्वागत सत्कार मे अपनैतीक स्थान पर यान्त्रीकरण जकाँ बेबहार हुए लागल छल। निर्मोही आ दीवानाक पूछनिहारक संख्या सेहो घटल जाईत छल। घूरन सदा अपन परिवारक दारूण स्थिति देखि नौकरीक जोगाड मे लागि गेलाह आ कहुना कऽ एकटा प्राइवेट प्रेस मे दरिभंगा मे नौकरी करऽ लागलाह। ओ अपन बाल सखा सदानन्द मंडल उर्फ सदन निर्मोही केँ सेहो लऽ जेबाक प्रयास केलखिन्ह, मुदा निर्मोही नहि गेलथि। निर्मोहीक स्थिति आरो खराप भेल गेल आ तमाकूलक खर्ची तक निकलनाई भारी हुअ लागल। मुदा निर्मोही अपन कविता शाईरीक शौक नै छोडलैन्हि। एक बेर दुर्गा पूजा मे गाम एलहुँ। साँझ मे मेला घूमै लेल गेलौं। पता चलल जे एहि बेर एकटा पैघ थेटर आयल अछि। हम कक्का सँ निर्मोहीजी दिया पूछलियैन्हि। कक्का कहलथि जे ओ बताह भऽ गेल छथि। कतौ कोनटा मे ठाढ भऽ कऽ अपन बडबडाईत हेताह। हम चारू कात ताकऽ लागलौं। देखलौं जे मेलाक एकटा अन्हार कोन मे ओ वीर रसक कविता पूरा जोश मे पाठ करैत छलाह आ बच्चा सब हुनकर चारू कात घेरा बना कऽ ताली बजबैत छल। हम लग गेलौं। निर्मोहीजीक दाढी पूरा बढल छल। आँखि मे काँची, उजडल केश, फाटल कुरता.... हमर मोन करूणा सँ भरि गेल। हम गोर लागलियैन्हि आ पूछलियैन्हि- "कक्का चिन्हलौं?" ओ हमरा धेआन सँ देखि बजलाह- "अहाँ ओम थीकौं ने।" हम- "अहाँ अपन की हाल बना लेने छी। काकी आ बच्चा सबहक की हाल?" निर्मोही- "यौ सब कहुना कऽ जीबि रहल छै। खेनाईक जोगाड कहुना भऽ जाईत अछि।" हम- "कविता शाईरीक की हाल?" निर्मोही- "कियो पूछनिहार तऽ रहल नै। बस अपने रचना करैत छी आ नित्य साँझ मे पोखरिक भिंडा पर जा कऽ असगरे पाठ करैत छी। लोक बताह कहैत ए। सब बुडिबक छथि। साहित्य आ रचनाक महत्व की बूझताह।" हम- "कोनो नौकरी नै केलियै अहाँ?" निर्मोही- "हमर जन्म नौकरी करबा लेल नै भेल अछि। हम अपन जिनगी गीत-संगीत आ शाईरीक नाम लिख देने छी।" हम- "इ तऽ ठीक अछि। मुदा काकी आ बच्चा सभक तऽ सोचियौ।" निर्मोही- "अरे सभक देखनिहार भगवान छथि। भगवान सभक जोगाड करथिन्ह।" हमरा रहल नै गेल आ हम किछ आर्थिक मदति करबाक कोशिश केलौं, मुदा ओ लेबा सँ मनाही कऽ देलथि। कहलथि- "अहाँक चाह पीबि लेलौं, बस वैह बहुत अछि। हमरा कोनो मदति नै चाही।" हम हुनका सँ अनुमति लऽ कऽ मेला सँ गाम दिस चललहुँ। सोचऽ लागलहुँ जे इ कोन बतहपनी भेल। परिवारक विषय मे नै सोचबाक छलैन्हि तऽ बियाह किया केलाह निर्मोही जी। फेर इहो सोचऽ लागलौं की समाजक लोक मनोरंजन तऽ चाहै छथि, मुदा मनोरंजन पर पाई नै खर्च करऽ चाहै छथि, से किया। नीक सँ नीक कलाकार जँ अपन कोनो रोजगार नै करै तऽ भूखले मरि जाईत ए। समाज एहन निर्मोही कियाक अछि। जे कहियो सबहक तालीक केन्द्र रहैत छलाह, से आब सब केँ बताह किया बूझा रहल छथिन्ह। यैह सब सोचैत हम निर्मोहीजीक आंगन पहुँचि गेलौं। आंगन मे हुनकर कनियाँ बैसि कऽ तरकारी काटै छलीह। हम गोर लागैत कहलियैन्हि- "काकी की हाल चाल?" ओ फाटल आँचर सँ अपन माथ झाँपैत कहलथि- "कहुना कऽ जीबि रहल छी बउआ। तेहेन निर्मोही सँ बाबू बियाह करा देलथि, जिनका पर-परिवारक कोनो मोह नै छैन्हि।" हम- "काकी, कक्का तऽ साहित्य संगीत मे लागल छथि। हुनका एना निर्मोही जूनि कहू।" काकी- "जँ एहन गप अछि तँ साहित्ये संगीत सँ बियाह किया नै कऽ लेलथि? दू टा बेटा जुआन भऽ कऽ कतौ पलदारी करैत छैन्हि। बेटी केँ बियाहक कोनो चिन्ता नहि। एहन कोन साहित्य प्रेम? हमर ससुर बीमार भऽ कऽ दवाईक अभाव मे तडपि तडपि कऽ मरि गेलाह। हुनकर मरलाक बाद ओ केश आ दाढियो नै कटेलथि। इ कोन बतहपनी भेलै?" हम ओतय सँ चलि देलहुँ। सोचऽ लागलौं जे सब लेल ओ निर्मोही आ हुनका लेल सब निर्मोही।

समयक पहिया घूमैत रहल। १० बरख बीत गेल। गरमी छुट्टी मे बच्चा सब केँ लऽ कऽ गाम आयल छलहुँ। एक दिन दलान पर बैसल छलहुँ की रमन भाई कहैत अयलाह- "निर्मोही गोल भऽ गेलाह। किछ दिन सँ बिछौन धेने छलाह। कोनो गम्भीर रोग सँ पीडित भऽ गेल छलाह।" हम रमन भाईक संग निर्मोही जीक दलान पर गेलौं। ओतुक्का दृश्य बड्ड कारूणिक छल। काकी उठा उठा देह पटकै छलीह आ कानैत छलीह इ बाजि बाजि जे जिनगी भरि निर्मोहिया रहलौं आ आइयो निर्मोहिया बनि उडि गेलौं। हम आंगन मे पडल लहाश केँ देखलहुँ। बाँसक चचरी पर सदानन्द मंडल उर्फ सदन निर्मोही उर्फ निर्मोहिया शांति सँ पडल छलथि। एकदम शांत, बिना कोनो मोह केँ दीर्घ विश्राम मे छलाह निर्मोही जी। पूरा गाम ओतय जुटल छल आ निर्मोहीक संगीत कविताक चर्चा करैत छल। हम दलानक कोठरी मे गेलहुँ जतय निर्मोही रहै छलाह। एकटा टूटलाहा काठक अलमीरा मे हुनक हाथ सँ लिखल ढेरी पाण्डुलिपि पडल छल। किछ दीमक सँ खाएल छल आ किछ कागतक सियाही पसरि गेल छलै। हुनकर सिरमा तर मे एकटा कागत छल जै पर किछ लिखल छल। इ हुनकर अन्तिम रचना छल, जे पूरा नै छल। ऐ मे लिखल छलः-
इ जग छै निर्मोही, बन्धन तोडि कऽ उडि जाउ।
आब नै घूमू, कियो कतबो कहै जे घुरि जाउ।.............................................................................

बुधवार, 7 मार्च 2012

कक्का हमर उचक्का होली पर हास्य कविता)




 कक्का हमर उचक्का ।

                     होली पर हास्य कविता

 

 

ओंघराइत पोंघराइत हरबड़ाइत धड़फराइत धांई दिस

बान्हे पर खसलाह कक्का हमर उचक्का

होरी मे बरजोरी देखी मुस्की मारैत

काकी मारलखिन दू-चारि मुक्का।।

 

धिया-पूता हरियर पीयर रंग सॅं भिजौलकनि

बड़की काकी हॅसी क घिची देलखिन धोतीक ढे़का

पिचकारी मे रंग भरने दौगलाह हमर कक्का

अछैर पिछैर के बान्हे पर खसलाह कक्का हमर उचक्का।।

 

होरी खेलबाक नएका ई बसंती उमंग

ततेक गोटे रंग लगौलकनि मुॅंह भेलैन बदरंग

काकी के देखैत मातर कक्का बजलाह

आई होरी खेलाएब हम अहींक संग।।

 

कक्का के देखैत मातर काकी निछोहे परेलीह आ बजलीह

होरी ने खेलाएब हम कोनो अनठीयाक संग

जल्दी बाजू के छी अहॉं नहि त मुॅंह छछारि देब

घोरने छी आई हम करिक्का रंग।।

 

भाउजी हम छी अहॉक दुलरूआ दिअर 

होरी खेला भेल छी हम लाल पिअर

आई त भैयओ नहि किछू बजताह जल्दी होरी खेलाउ

एहेन मजा फेर भेटत नेक्सट ईअर।।

 

सुहर्दे मुॅंहे मानि जाउ यै भाउजी

नहि त करब हम कनि बरजोरी

होरी मे त अहॉ जबान बुझाइत छी

लगैत छी सोलह सालक छाउंड़ी।।

 

आस्ते बाजू अहॉक भैया सुनि लेताह 

कहता किशन भए गेल केहेन उच्का

केम्हरो सॅ हरबड़ाएल धड़फराएल औताह

छिनी क फेक देताह हमर पिनी हुक्का।।

 

आई ने मानब हम यै भाउजी

फुॅसियाहिक नहि करू एक्को टा बहन्ना

आई दिउर के भाउजी लगैत अछि कुमारि छांउड़ी

रंग अबीर लगा भिजा देब हम अहॉक नएका चोली।।

 

ठीक छै रंग लगाउ होरी मे करू बरजोरी

आई बुरहबो लगैत छथि दुलरूआ दिअर

ई सुनि पुतहू के भाउजी बुझि होरी खेलाई लेल

बान्हे पर दौगल अएलाह कक्का हमर उचक्का।।

लेखक :- किशन कारीगर 

 

मंगलवार, 6 मार्च 2012

निबंध प्रतियोगिता

दिल्ली सँ प्रकाशित मासिक मैथिलि पत्रिका मिथिलांचल पत्रिका के द्वारा कक्षा ८  सँ ल के बी.ए/बी.एस.सी/ बी.कॉम/इंजीनियरिंग /चिकित्सा विज्ञानं के छात्र हेतु एकटा निबंध प्रतियोगिता रखल गेल अछि .
निबंध के विषय :- "मातृभाषाक माध्यम सँ विज्ञानं एवं प्रोद्योगिकी के शिक्षा कतेक सार्थक अछि "
 जाही में प्रतिभागी हेतु नियम :-
१. कक्षा ९ सँ - स्नातक तक के छात्र भाग लय सकैत छथि
२. उम्र सीमा - १२ वर्ष -२२ वर्ष
३.रचना मौलिक हेबाक चाही एवं स्व लिखित हेबाक चाही
४.आलेख मैथिलि भाषा में हेबाक चाही
५.रचना पठेबक अंतिम तिथि - २५ मार्च २०१२
६. प्रतिभागी लोकनि अप्पन आलेख mithilanchalpatrika@gmail.com   या   B-2/333 Tara Nagar, Old Palam Road Sec-15 Dwarka New Delhi-110078. पर पठाबी
७. आलेखक संग अप्पन परिचय एवं पत्राचारक पता अबश्य पठाबी
८. विशेष जानकारी हेतु संपर्क करी Mob -9990065181 /9312460150/ 09762126759.

निर्णयाक मण्डली में छैथि :- १.डॉ. कैलाश कुमार मिश्र २.डॉ. प्रेम मोहन मिश्र ३. श्री गजेन्द्र ठाकुर ४. डॉ. शशिधर कुमार
पुरस्कार :- निबंध प्रतियोगिता में चयनित प्रतिभागी के समुचित पुरस्कार राशी एवं प्रमाणपत्र  पठौल जाएत

भबदीय
डॉ. किशन कारीगर
(संपादक ) मिथिलांचल पत्रिका

गीत

गीत
होली मे राँगल धरती उड़ै छै अबीरीया // 2//
मोरा आंगना सून लागैए सून रे शरीरीया //२// १/2//
फगुआ कए धुन पर नाचै छै सगर गाम
रंगक बर्षा मे भिजै सब ठामे ठाम //२//२//
हर्ष रानी बैसल छथि सब कए दुअरीया //->१/२//
मोरा आंगना सून लागैए सून रे शरीरीया.....
नैका साड़ी पहिर रानी खेलै छै राजा संग
देखियौ आइ बुच्ची मस्त भेल जीजा संग //२//२//
ककरा संग खेलब होली पिया परदेशीया //->१/२//
मोरा आंगना सून लागैए सून रे शरीरीया....
मातल बसात बहै गाम स्वर्ग लागैए
हमरा लेल हमर जीवन नरक लागैए //२//२//
"अमित " जल्दी आबु छोड़ि क शहरीया//->१/२//
मोरा आंगना सून लागैए सून रे शरीरीया.....
होली मे राँगल धरती उड़ै छै अबीरीया ...
मोरा आंगना सून लागैए सून रे शरीरीया...
अमित मिश्र

एहन रंग लगाबू

‎**एहन रंग लगाबू **
जँ लगा सकी ,हे सखी
तs एहन रंग लगाबू
जाहि सँ
लाल भs जाए नवका उज्जर साड़ी
हे सखी ,एहन रंग लगाबू जाहि सँ ,
हरियर भs जाए बंजर परती
हे सखी, एहन रंग लगाबू जाहि सँ ,
पियर भs जाए गरीबक बेटी कए हाथ
हे सखी ,एहन रंग लगाबू जाहि सँ ,
कारी भs जाए दहेज लेबs बला कए मुँह
भ्रष्टाचारी अत्याचारी इज्जत बेचै बला कए मुँह
हे सखी, एहन रंग लगाबू जाहि सँ ,
गुलाबी भs जाए बाल मजदुरक गाल
हे सखी, एहन रंग लगाबू जाहि सँ ,
नीला भs जाए अंबर अनंत
हे सखी, एहन रंग लगाबू जाहि सँ ,
बहि जाए बेमौसम बसंत
हे सखी, एहन रंग लगाबू जाहि सँ ,
आम जनता खास भs जाए
हे सखी, एहन रंग लगाबू जाहि सँ ,
राति कs चैन सँ मिठगर नीन आबैए
अमित मिश्र

“जय मिथिला जय मैथिली” के हुनक पहिल स्थापना दिवस पर समर्पित स्वागत पुष्प




मिथिला के हम वासी मैथिल,
मिथिला अछि बड्ड पुण्यक धाम,
उमा रमा बनि धिया उतरलइथ,
आ बनली शिव राम के बाम।

जय मिथिला जय मैथिली भाषा,
जतय शांति-प्रेम पौलइथ परिभाषा,
मोह-कपट-छल-छद्म जतय नहि,
पूर्ण जतय हृदयक सब आशा।

संस्कार जतय हृदय बसई अछि,
कर’, कर्म मे निरत रहइत अछि,
चिंतन मे नित ईशक वास,
सत्कर्म मे अछि सबहक विश्वास।

किये से मिथिला आइ उजैर गेलई?
किये मिथिला के एहेन पतन भेलई?
किये ज्ञानक गंगा ठमकि गेलई?
किये सब मानवता बिसरि गेलई?

कलियुग अछि मिथिलो मे आयल,
संस्कार जतय-ततय हेरायल,
बिसरल मानव, मानवताक मोल,
हेरा देलहु किछु धन अनमोल।

शुश्रुत, विदेह के पुनः बजाबय,
आर्यभट्ट, अयाचीक के फेर स जगाबय,
घोषा, अपाला, भारती के लाबय,
फेर स शंख पांचजन्य बजाबय,

विश्व-पटल पर मिथिला के पहुंचाबय,
मैथिली के जन-जन के भाषा बनाबय,
मिथिला मैथिली के दियाबइल सम्मान,
भेल “जय मिथिला जय मैथिली” क निर्माण।

नवयुवकक अछि ई पुकार,
नहि केवल पुकार, सिंहक दहाड़,
चलु भेल भोर निद्रा त्यागु,
अहि मुहिम मे चलु आगु-आगु।

नहि भेटत पुनः माँ के सेवाक वरदान,
पूर्ण करू हृदयक अरमान,
समस्त मैथिल के एक सूत्र मे बान्हय,
अमित करू “जय मिथिला जय मैथिलीक संग प्रयाण।

हमर ई रचना जय मिथिला जय मैथिली” ग्रुप जे मैथिल कला, संस्कृति, लोक-व्यवहार आदि के उत्थान के हेतु कृतसंकल्पित अछि, के हिनक पहिल स्थापना दिवस पर हमरा सब “जय मिथिला जय मैथिली” परिवार के तरफ से छोटछिन उपहार।

रचनाकार- अमित मोहन झा
ग्राम- भंडारिसम(वाणेश्वरी स्थान), मनीगाछी, दरभंगा, बिहार, भारत।

नोट..... महाशय एवं महाशया से हमर ई विनम्र निवेदन अछि जे हमर कुनो भी रचना व हमर रचना के कुनो भी अंश के प्रकाशित नहि कैल जाय।
                            
                              (“जय मिथिला जय मैथिली परिवार”)

सोमवार, 5 मार्च 2012

मैथिलि--काव्य: GAJAL

मैथिलि--काव्य: GAJAL: जोइड़ अपन ह्रदय अहाँ सँ तोइड़ देलहूँ सम्बन्ध जहाँ सँ रहब सदिखन संगे खेलहूँ शपति छोइड़ देलहूँ जखने पड़ल विपति मनक आश हमर मने रहिग...

{< मुन्ना कक्का होली मे>}

{< मुन्ना कक्का होली मे>}
किनको मुँहेँ सुनने छलौँ इ गान हौ
"बुढ़बा कए दिल होइ छै बेसी जुआन हौ"
होलीका दहन मे जरबै सब लाज-लेहाज छै ,
होली सन दिन मे लाजक कोन काज छै ,
चारि बजे भोरे मुन्ना कक्का उठि गेलाह ,
बड़का टा शंक्वाकार टोपी पहिर लेलाह ,
बड़का टा बाल्टी मे रंग छलै घोरल ,
गोला छल भांगक आधा किलो पिसल ,
होली कए उमंग सबटा सिगनल तोड़ैए ,
केउ अपन केउ भैया कए सासुर धरि दौड़ैए ,
भोर सँ दुपहर .दुपहर सँ साँझ भ गेलै ,
मुन्ना कक्का सँ होली खेल= केउ नै एलै ,
थाकि-हारि चललाह गाम घुमै लए ,
भरल बाल्टी रंग ककरो पर उझलै लए ,
कक्का कए देख सब केउ पड़ाई छल ,
नवका-नवका गाल खोजि रंग लगबै छल ,
ककरा अबीर लगेता ,कनियाँ भेल स्बर्ग वासी ,
भौजी बिमार छेन .सारि बसैए काशी .
मुन्ना कक्का देख इ बड तमसा गेलाह ,
अन्त मे भरल बाल्टी रंग अपने पर उझैल लेलाह ,
ऐ तरह सँ मुन्ना कक्का होली मनेलाह . . . । ।
कविता रूपि लाल गुलाल अपने सबहक चरण मे आ जे छोट छथि हुनकर गाल पर । खराप नै मानब होली छै ।
अमित मिश्र

होली स्पेसल २१ टा हुरदंग शेर

एक साथ होली स्पेसल २१ टा हुरदंग शेर द रहल छी जकरा परंपरागत रूप सन ऍम घर में गायन होई यै \
होली मे किछु अलगे तरहक शेर साब गाओल जाइ छै ।किछ शेर हम द रहल छी ।जँ कत्तौ कोनो शब्द नीक लागैए त क्षमा चाहब । ।
{सारा रा रा //8 । वाह भाइ वाह //8 बेर वा अपन तरीका सँ सब शेर मे लगा लेब }
{1} होली मेँ रंग बरसै, उड़ै अबीरा
(पहिल शेरक अन्त वाला आधा भाग सब मे दोहराएब) मुँह किय तुम्मा केने गाबू जोगीरा । ।
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया (सब शेर में द सके छी )
{2} आमक पत्ता छोट होइ छै, पैघ केला कए पत्ता
बुढ़बा लाठी ल' क' दौगल, खसलै बड़का खत्ता । ।
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{3} सगरो अन्हार पसरल , डुबि रहल छै देश
बाबा जी पड़ा रहल छथि ध' नारी कए भेश । ।
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{4} केऊ पिबै भांग दारू ,केऊ पिबै यै ताड़ी
नटुआ बनि नाचि रहल छै दियौ जोड़ा साड़ी ।
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{5}मौगी भेलै मुखिया ,आ बनलै प्रधान
मनसा करै उठक-बैठक पकड़ै छै कान । ।
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{6}हुलुत-बुलुक कुदैत-फानैत ,सासुर सब पहुँचल
ऊहो ठाम मारि पड़लै गाल दुनू फुलल
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{7}उड़लै खुब एरोपलेन ,हावाजहाज
उड़बै हमरा कनियाँ देखू करी सब काज
{8} ऐ दफ्तर ओइ दफ्दर ,करी दौड़ा-दौड़ी
गामक छौड़ा संग भागलै गामे कए छौड़ी
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{9} कुत्ता गदहा गाय भैँस ,सब कए होइ छै नंगरी
भौजी संग होली खेलै मे टूटि गेल टंगरी
{10}गाम छोड़ि शहर गेलै ,शहर छोड़ि विदेश
हकन कानै छौड़ा सब छोड़ि अपन देश ।
{11}मुखिया कए करिखा लागलै ,तैयो नाचै छैँया-छैँया
घोरि क' पि गेलै इंदरा आवास वाला रूपैया । ।
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{12}कुरती-सलबार केऊ नै पहिरै ,पहिरै छै जींस
मोछ कटा छौड़ा सब लागै अलच्छे प्रिँस
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{13}राति विधायक जीक ,घर मे लागलै आगि
मुखिया जीक कनियाँ गेलै चमचा संग भागि
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{14}सारि सँ रंग लगेबै ,सरहोजि सँ पिबै भांग
सार बुढ़बा की करतै खीच देबै टाँग
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{15}बहकल छै ढोल वाला ,मातल सब लोग
दारू पिनाइ भ गेलै एड्स बाला रोग
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{16}भिरहा मे नाच भेलै ,भुतहा मे उड़लै पैसा
रोसड़ा मे देख भाई जाम लागल कैसा
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{17} नेना सब करै ,दोकान पर नोकरी
नशा करै लए बाप लगेलक बेटा कए फसरी
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{18}प्रेम मे पागल भ' क' ,मुन्ना खेलक जहर
मुन्ना कए दोस्त कए बनेलकै छौड़ी शौहर
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{19}तमाकुल होइ छै करू आ ,चिन्नी होइ छै मिठ
लैते जनम आइ-काल्हि बच्चा भ जाए ढिठ
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{20} दरभंगा मे दंगा भेलै ,रन्नी मे उड़लै ओढ़नी
समस्तीपुर मे आबिते सब कए काटि लेलकै बिढ़नी
सा रा रा रा रा रा रा हो भैया धीरे भ जा हो भैया
{21} बान्हि ले झालि-ढोल ,आ मंजीरा मित
जोर सँ बाज सा रा रा रा खतम भेलै गीत ।
बोल बोल रे सा रा रा रा रा रा रा रा रा रा रा . . . । ।
एकरा होली अहन सब गायब से आशा अछि
सब रंगक शेर सँ भरल बाल्टी अपने सबहक लेल । खराप नै मानब होली छै । ।
अमित मिश्र

रविवार, 4 मार्च 2012

"विआह"


सुनि गप्प विआह कें

मन अध्हर्षित अध्दुखित भेल |


सुझाए लागल ब्रह्माण्ड हमरा

तन-मन आकुल-व्याकुल भेल ||



क्षणिक सोइच आनन्द विआह कें

हम कुदअ लगलौं चाईर-चाईर हाथ |


द' चौबनियाँ मुस्कान

हम गुद्गुदाए लगलौं भईर-भईर राइत ||



नै छलौं देखने हुनका

नै छल हुनकर कोनो ज्ञान |


नै जानि तइयौ हुनके

कियाक बुझैत छलौं अपन प्राण ||



अचानक केखनो क' हमरा

मन मे भ' जाइत छल  साइत --

नै जानि ओ केहन हेती

अनाड़ी हेती या व्यावहारिक हेती !

बुझल छल हमरा एतबाए

हुनक व्यस(उम्र) छनि सोलह साल |


तांए डेराइत छलौं हम

कोना करब "प्रेमक' बात ||



बुझल छल हमरा एतबाए

ओ नैन्ना हम स्यान |

तांए डेराइत छलौं हम

कोना करब एकहि घाट हम स्नान ||



मुदा मन के बुझअलौं- की करबअ ?

मिथिला कें छै इहाए विधान

"कनियाँ नैन्ना " आ "वर स्यान " ||



:गणेश कुमार झा "बावरा"

गुवाहाटी
गजल:- होली
रंग विरंगक रसरंग सं भौजी के रंगाएल चोली
रंग उडैए छै अवीर उडैए छै देखू आएल होली

होली के रंग में रंगाएल सभक एकही रूपरंग
... दोस्ती के रंग में रंगाएल दुश्मन देखू आएल होली

प्रेम स्नेहक पावैन होली गाबैए गीत फगुआ टोली
रसरंग सरोवर भेल दुनिया देखू आएल होली

रंग में रंगाएल शरीर गाबैए गीत जोगी फकीर
गाबैए जोगीरा बजाबैए मृदंग देखू आएल होली

रंग उड़ाबैए रंगरसिया कियो उड़ाबैए अवीर
तन मोन सभक रंगाएल देखू आएल होली

......................वर्ण-२०.............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शनिवार, 3 मार्च 2012

गजल-२७

अहाँ कखनो तँ बाट हमर घरक धरबै
अहाँक हाथे ओहि दिन हम वरक धरबै

लाली सेनुर टुकली श्रृंगार हमर सबटा
अहाँ बिनु एकरा हम कोनो सरक धरबै

एही जीबन में सिनेहिया अहाँ नहि भेटबै
जिबते जीबैत हम तs बुझु नरक धरबै

अहाँ हमर जिबनक पूर्निमाक इजोरिया
अहीं हमर मोन में इजोत भोरक धरबै

अहाँ आब त फूसीयो सँ आबियो घर जाउ यौ
मनु कखनो त कनिको कोनो सरक धरबै
***जगदानन्द झा 'मनु'

गजल

अहाँ कखनो तs बाट हमर घरक धरबै ,,
हमरा संगे-संगे अहूँ एक्के सड़क धरबै ,
भाग्य मे जे लिखल अछि तें विरह मे मरै छी ,
आशा केने छी कहियो तs मान नोरक धरबै ,
राहू-केतू केने अन्हरीया ताशक सियाह छी ,
हेतै जँ तेज मंगल तs ध्यान भोरक धरबै ,
काँट कलपाबैए कने काल कनेक दर्द दs ,
फुलो भेटबे करत , बाट नै ने डरक धरबै ,
सिनेह जँ हारत तs समझू दुनियाँ डोलत ,
लड़ाइ जीत, कहियो तs झण्डा प्यारक धरबै ,
ठार दलान पर स्वागतक थारी सजेने छी ,
माँग हमर राँगल हाथ सेनुरक धरबै ,
नै मागै छी अकाशक लाख तरेगण हम यौ ,
"अमित" कहियो तs गजल हजारक धरबै . . . । ।
अमित मिश्र

गीत:-

गीत:-
टुईट नै सकैय विधना के विधानक लकीर
बदैल नै सकैय कियो अप्पन तक़दीर //२

पंचतत्व रचित इ अधम शरीर
घाऊ अछि सभक मोन में गंभीर
सुख के खोज में दुनिया लागल
राजा रंक जोगी फकीर .............
हो भैया, राजा रंक जोगी फकीर
टुईट नै सकैय विधना के विधानक लकीर//
बदैल नै सकैय कियो अप्पन तक़दीर //२

सुख नहि हुनका भेटल जग में
जे दुःख सं मुह मोड़ी पड़ाएल

जराबू मोन में जीवन दर्शन ज्योति
दुःख क सागरमे भेटै छैक
सुख स्वरुप अपार हिरामोती
टुईट नै सकैय विधना के विधानक लकीर//
बदैल नै सकैय कियो अप्पन तक़दीर //२

भाग्य सं बढ़ी के जगमे किछु नहीं बलवान
पल में राजा रंक भेल विप्र बनल धनवान
राजपाठ सभ त्यागी भेल राम लखन वनवासी
बिक गेल राजा हरिश्चंद्र बनल डोमक दासी
हो भैया,राजा हरिश्चंद्र बनल डोमक दासी
टुईट नै सकैय विधना के विधानक लकीर //
बदैल नै सकैय कियो अप्पन तक़दीर //२

जीवन एक संघर्ष दुःख छै महा संग्राम
कांटक डगैर चलैत रहू लिय नै विश्राम
दुःख क संघर्ष सं भेटैय छै सुख आराम
दुःख सुख छै जीवन,जिनगी एकरे नाम
हो भैया,जिनगी एकरे नाम ..............
टुईट नै सकैय विधना के विधानक लकीर //
बदैल नै सकैय कियो अप्पन तक़दीर //२
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शुक्रवार, 2 मार्च 2012

शिवताण्डवस्तोत्रम् : अनुवाद :-डा0 चन्द्रमणि

जटारूप अटवी वन निकसलि जाह्नवीक पावन धारा
गरदनि अवलम्बित फणिमाला ताण्डव नृत्य प्रचण्ड परा,
डिमिक डिमिक डिम डमरु बाजे स्वर लहरी अनुगुंज करे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।1।
जटा कड़ाही मध्य तरंगित गंग सुशोभित शीश जनिक,
धह-धह ज्वाल ललाटक मध्ये राजित बालक शोम तनिक,
शुचि शरीर सुन्दर शशि शेखर सदा हृदय अनुराग भरे
करु कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।2।
धन-धन गिरि तनया विलास निर्लिप्त निरासक्ते योगी,
हुलसित लखि चहुँदिशि प्रकाश निज शिर-भूषण जन-उपयोगी,
सतत् कृपा दृग पाबि दिगम्बर कष्ट हरे आमोद भरे,
करु कल्याण हमर शिव शंकर जयशिव जयशिव हरे-हरे ।3।
जटाजूट आवर्तित फणि-मणि कुंकुम रागालेप प्रभा,
आलोकित चहुँ दिशा हस्ति चर्माम्बर पहिरन हरक सदा,
ताहि विलक्षण भूतनाथ मे मन विनोद सदिकाल करे,
करू कल्याण हमर शिव शंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।4।
इन्द्रादिक मस्तक आवर्तित पुष्प पराग चरण-पनही,
नागराज केर हार निबद्धित जटा शिखर शशि टा धनही,
चिर संपत्ति घटय नहि कहियो रिक्त हमर भंडार भरे,
करु कल्याण हमर शिव शंकर जयशिव जयशिव हरे-हरे ।5।
अग्नि प्रज्वलित भालक वेदी मन्मथ शमन तेज सं भेल,
भाल विशाल कलाधर शोभित छथि आराध्य इन्द्रहुक लेल,
मस्तक महाजटिल शिवशंभुक मम अभिष्ट श्री सिद्ध करे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे ।6।
धह धह अनल भाल विकराले कयल कामदेवहुक हवन,
गिरितनया-कुच पत्रभंग रचना कारीगर शिवा रमण,
अटल भक्ति एकाग्रचित्त हो तीन नयन मे ध्यान धरे,
करू कल्याण हमर शिव शंकर जयशिव जयशिव हरे हरे ।7।
अमारात्रि केर नवल मेघमाला सन कारी कण्ठ जनिक,
हस्तिचर्म धारक तारक विश्वेश गंगपति चन्द्रमणिक,
परम मनोहर कान्तिवान भगवान धनक विस्तार करे,
करू कल्याण हमर शिव शंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।8।
नील कमल दल श्याम प्रभा अनुगमना हरिणी-छवि ग्रीवा,
त्रिपुर काम भव दक्ष यक्ष हरि अन्धक यम हति देव-शिवा,
विघ्न विनाशक पिता महादेव सकल ताप परिताप हरे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।9।
दंभ रहित गिरिजाक मधुप जे कला कदम्ब मंजरी पान,
दक्ष यक्ष हरि यम भव अन्तक मन्मथ त्रिपुर असुर अवशान,
महादेव मम कष्ट विनाशक दिवा राति मन भजन करे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।10।
सिर भुजंग फुफकार वेग सं अनल ललाट धधकि रहलइ,
शिव प्रचणड ताण्डव आलोकित धिमि धिमि नाद धमकि रहलइ,
गुंजित मंगल घोष चहुँदिशि मंगल मंगल सदा करे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।11।
पाथरवत् पुनि कोमल सेजे साँप आर मुक्ता माला,
रत्न माँटि मित शत्रु अभेदे दुर्वादल अक्षी-कमला,
प्रजा आर पृथ्वीपति में समभाव राखि मन जपन करे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे।12।
ललित ललाट भाल चन्दा मे सदिखन स्थिर चित्त रहय,
सुरसरि तट करजोरि भाव निर्मल मन शिव केँ जाप करय,
सजल नेत्र शिव चरण कमल मे पल पल छिन छिन नमन करे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव हरे हरे ।13।
अति उत्तम स्तोत्रक वर्णन पाठ नित्य स्मरण करय,
शिवगुरू भक्ति मिलय तहि जन केँ नहि विलोम गति लेश रहय,
गिरिजापति पद भक्ति अहर्निश भवबंधन सं मुक्त करे,
करू कल्याण हमर शिव शंकर जयशिव जयशिव हरे हरे ।14।
इति पूजा संध्याकाले दसकंधर पठितक पाठ करे,
से नर गज रथ सुत धन पावे सदा सुखी संतान रहे,
अटल भक्ति सं अचल संपदा आशुतोष धन धान्य भरे,
करू कल्याण हमर शिवशंकर जयशिव जयशिव जयशिव हरे हरे ।15।
अनुवादक: डा0 चन्द्रमणि.