मिथिलामे जमेएकें भोजन परसैत काल साउस पुछलथिन : "झा जी खीर खेबइ कि हलुआ..??"
जमेए : "किएक घरमे कटोरी एक्के टा छैक की ?''
मैथिली साहित्य आ भाषा लेल समर्पित Maithiliputra - Dedicated to Maithili Literature & Language
मिथिलामे जमेएकें भोजन परसैत काल साउस पुछलथिन : "झा जी खीर खेबइ कि हलुआ..??"
जमेए : "किएक घरमे कटोरी एक्के टा छैक की ?''
मैया हमर जगतारनि कल्याणी
सबहक अहाँ सुधि लेलौं महरानी
नै हम मिलब माँ बाटक गरदामे
चिंता किए जेकर माय भवानी
जग ठोकरेलक सदिखन ढेपासन
देलौं शरण निर्बलके हे दानी
दर्शन अपन दिअ हे अम्बे माता
नै सोन झूठक चाही नै चानी
धेलक चरण 'मनु' तोहर हे मैया
नै आब जगमे ककरो हम जानी
(मात्रा क्रम : २२१२-२२२-२२२)
जगदानन्द झा 'मनु'
रेवती रमण झा "रमण "हम तँ ढोलक छी सगर बाजिते रहलहुँ
बात सुनलक नहि कियो पीबिते रहलहुँ
प्रेम मोनक बंद रहिगेल मोनेमे
गप्प कोना ई कहब सोचिते रहलहुँ
छल जकर सभ आश ओ छोरि चलि देलक
दर्द लेने मोनमे जीविते रहलहुँ
फाड़ि देखायब करेजा तँ मानत के
तेँ अपन टूटल हिया जोड़िते रहलहुँ
बंद भेलै ई शराबो करत की ‘मनु’
आँखि पथने गाममे ताकिते रहलहुँ
(बहरे कलीब, मात्राक्रम - 2122-2122-1222)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’