विकास ओ अर्थतंत्र (विचार) : नरेन्द्र झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 250.00
संग समय के (कविता-संग्रह) : महाप्रकाश प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
एक टा हेरायल दुनिया (कविता-संग्रह) : कृष्णमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 60.00
दकचल देबाल (कथा-संग्रह) : बलराम प्रकाशन वर्ष 2000 मूल्य रु. 40.00
सम्बन्ध (कथा-संग्रह) : मानेश्वर मनुज प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 165.00
अनुभूति (कथा-संग्रह) : पन्ना झा प्रकाशन वर्ष 2010 मूल्य रु. 180.00
भोथर पेंसिल सं लिखल (कथा-संग्रह) : आदि यायावर प्रकाशन वर्ष 2010 मूल्य रु. 180.00
कि (कविता-संग्रह) : मानेश्वर मनुज प्रकाशन वर्ष 2010 मूल्य रु. 200.00
पुस्तक मंगवाने के लिए मनीआर्डर/ चेक/ ड्राफ्ट अंतिका प्रकाशन के नाम से भेजें। दिल्ली से बाहर के एट पार बैंकिंग (at par banking) चेक के अलावा अन्य चेक एक हजार से कम का न भेजें। रु.200/- से ज्यादा की पुस्तकों पर डाक खर्च हम वहन करेंगे। रु.300/- से रु.500/- तक की पुस्तकों पर 10% की छूट, रु.500/- से ऊपर रु.1000/- तक 15% और उससे ज्यादा की किताबों पर 20% की छूट व्यक्तिगत खरीद पर दी जाएगी ।
शनिवार, 25 फ़रवरी 2012
अंतिका, मैथिली त्रैमासिक
अंतिका, मैथिली त्रैमासिक, सम्पादक- अनलकांत

अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4, शालीमारगार्डन, एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-2648212,मोबाइल नं.9868380797,9871856053, ई-मेल: antika56@gmail.com वार्षिक सदस्यता शु्ल्क : 80/- नेपाल : 300 रु. (भारतीय) अन्य देश : 25 डालर/15 पाउण्ड, आजीवन सदस्यता (सिर्फ़ भारत में) शुल्क भा.रु.2100/- चेक/ ड्राफ्ट द्वारा “अंतिका” क नाम सँ पठाऊ। दिल्लीक बाहरक चेक मे जे मल्टीसीटी सुविधा सं रहित होअय, ताहि में 60/- अतिरिक्त जोडिक’ पठाबी।

अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4, शालीमारगार्डन, एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-2648212,मोबाइल नं.9868380797,9871856053, ई-मेल: antika56@gmail.com वार्षिक सदस्यता शु्ल्क : 80/- नेपाल : 300 रु. (भारतीय) अन्य देश : 25 डालर/15 पाउण्ड, आजीवन सदस्यता (सिर्फ़ भारत में) शुल्क भा.रु.2100/- चेक/ ड्राफ्ट द्वारा “अंतिका” क नाम सँ पठाऊ। दिल्लीक बाहरक चेक मे जे मल्टीसीटी सुविधा सं रहित होअय, ताहि में 60/- अतिरिक्त जोडिक’ पठाबी।
बिसरि गेलौं सब किछु लेकिन की बिसरलौं ओ मन अछि
बिसरि गेल छी हुनका लेकिन हुनकर सब बात मन अछि
बितलाहा बात के बिसरि गेनाय ई सभ बुधियारक काज छी
हमहूँ बिसरि गेलौं सब किछु लेकिन बिसरलौं से मन अछि
ओ पहिल मिलन , धारक कात आयल छलीह गुलाबी ड्रेस में
एतबी बिसरलौं और किछु नहिं बिसरलौं बाकी सब मन अछि
हुनकर संग बितायल एक एक पल ओहिना सुना सकय छी
की करी बिसरलाहा के बादो ओहिना सब किछु मन अछि
लाखों करोड़ो नहिं पूरा दुनिया में हुनका चीन्ह सकय छी
हुनकर रुपक ओ छटा कोना बिसरब आई धरि मन अछि
षिकायत छन्हि हुनका जे कहियो हम फोनो नहिं करेत छी
हुनकर देल ओ एयरटेल के नम्बर एखन धरि मन अछि
हुनका ई लागेत छन्हि जे हम हुनका बिसरि गेल छी
हुनका की पता छन्हि हुनकर सब बात हमरा मन अछि
’आशिक ’ की कही अजब अछि अहाँ के आशिकी के दंग
ई त कहू की बिसरलौं , सब किछु त मन अछि
आशिक ’राज ’
बिसरि गेल छी हुनका लेकिन हुनकर सब बात मन अछि
बितलाहा बात के बिसरि गेनाय ई सभ बुधियारक काज छी
हमहूँ बिसरि गेलौं सब किछु लेकिन बिसरलौं से मन अछि
ओ पहिल मिलन , धारक कात आयल छलीह गुलाबी ड्रेस में
एतबी बिसरलौं और किछु नहिं बिसरलौं बाकी सब मन अछि
हुनकर संग बितायल एक एक पल ओहिना सुना सकय छी
की करी बिसरलाहा के बादो ओहिना सब किछु मन अछि
लाखों करोड़ो नहिं पूरा दुनिया में हुनका चीन्ह सकय छी
हुनकर रुपक ओ छटा कोना बिसरब आई धरि मन अछि
षिकायत छन्हि हुनका जे कहियो हम फोनो नहिं करेत छी
हुनकर देल ओ एयरटेल के नम्बर एखन धरि मन अछि
हुनका ई लागेत छन्हि जे हम हुनका बिसरि गेल छी
हुनका की पता छन्हि हुनकर सब बात हमरा मन अछि
’आशिक ’ की कही अजब अछि अहाँ के आशिकी के दंग
ई त कहू की बिसरलौं , सब किछु त मन अछि
आशिक ’राज ’
< मिथिलाक पोखरि >
मिथिलाक गाम गाम में चर्चा छै घर -घर
दू-चरि टा छै सब ठाम सरोबर
पुरैनक पात हरियर - हरियर
कमलक फुल सुन्नर -सुन्नर
मखानक फुल मन कए लोभाबई
अनुपम दृश्य मुर्झायल फुल खिलाबई
रंग -बिरंगक माछ बसै छै
मिथालक जे शान कहाइ छै
पोखरि किनार शिव जी बिराजैथ
नहा एतै सब जल चढ़ाबैथ
बरखा रानी सब साल आबू
मिथिलाक पोखरि भरि कए राखू
हमहूँ जाइ छी माछ मारै लेल
पोखरि में स्नान करै लेल
अमित मिश्र
शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012
खुश रहय के लेल अहांके हजार बहाना अछि ,
कलि स दोस्ती अहांके गुल स अहंक याराना अछि ,,
हमर ख़्वाब तू आसमान स उंच भ जो ,
हमरो आय अपन हौसला कनी आजमायक अछि ,,
साकी तू बस पियेने जो वजह नय पूछ पीये के ,
सबहक दर्द अपन अपन सबहक अपन अफसाना अछि ,,
एक चूक भेल की तोहर ऩजइर स उतैर गेलौ ,
ऐना छौ तोहर आएंख की अदब के पेमाना अछि ,,
ख़ामोशी तन्हाई नाकामी रुसवाई ,
'निशांत ' भेटलौ तोरा मोहबत के नजराना अछि ,,,,
कलि स दोस्ती अहांके गुल स अहंक याराना अछि ,,
हमर ख़्वाब तू आसमान स उंच भ जो ,
हमरो आय अपन हौसला कनी आजमायक अछि ,,
साकी तू बस पियेने जो वजह नय पूछ पीये के ,
सबहक दर्द अपन अपन सबहक अपन अफसाना अछि ,,
एक चूक भेल की तोहर ऩजइर स उतैर गेलौ ,
ऐना छौ तोहर आएंख की अदब के पेमाना अछि ,,
ख़ामोशी तन्हाई नाकामी रुसवाई ,
'निशांत ' भेटलौ तोरा मोहबत के नजराना अछि ,,,,
गीत:-
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२
देह देखार देख कS एकर
चढ़ल हमरा बोखार रौ
कोना उतरतै हमर बोखार
करहि कोनो जोगार रौ
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२
छ इन्चक घघरी पर
पेन्है छै तिन इन्चक चोली
चढ़ल जोवन सँ मारै छै
छौरा सभक दिल पर गोली
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२
देख कS एकर चालढाल
सगरो मचल छै बबाल रौ
जर जुवानक बाते छोड़
बुढबो एकरा पाछू बेहाल रौ
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२
अजब गजब छै रूप रंग
देखही चलै छै कोना उतंग रौ
बेलाईती बिलाई सन केस लगै छै
देसी बिलाई सन आइंख रौ
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२
चौक चौराहा हाट बाजार
सभ करै छै एकरे इन्तजार रौ
सुन रे भजना सुन रे फेकना
कर ने हमरो लेल कोनो जोगार रौ
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२
देह देखार देख कS एकर
चढ़ल हमरा बोखार रौ
कोना उतरतै हमर बोखार
करहि कोनो जोगार रौ
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२
छ इन्चक घघरी पर
पेन्है छै तिन इन्चक चोली
चढ़ल जोवन सँ मारै छै
छौरा सभक दिल पर गोली
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२
देख कS एकर चालढाल
सगरो मचल छै बबाल रौ
जर जुवानक बाते छोड़
बुढबो एकरा पाछू बेहाल रौ
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२
अजब गजब छै रूप रंग
देखही चलै छै कोना उतंग रौ
बेलाईती बिलाई सन केस लगै छै
देसी बिलाई सन आइंख रौ
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२
चौक चौराहा हाट बाजार
सभ करै छै एकरे इन्तजार रौ
सुन रे भजना सुन रे फेकना
कर ने हमरो लेल कोनो जोगार रौ
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012
गजल
हमर मुस्कीक तर झाँपल करेजक दर्द देखलक नहि इ जमाना।
सिनेहक चोट मारूक छल पीडा जकर बूझलक नहि इ जमाना।
हमर हालत पर कहाँ नोर खसबैक फुरसति ककरो रहल कखनो,
कहैत रहल अहाँ छी बेसम्हार, मुदा सम्हारलक नहि इ जमाना।
करैत रहल उघार प्रेमक इ दर्द भरल करेज हमरा सगरो,
हमर घावक तँ चुटकी लैत रहल, कखनहुँ झाँपलक नहि इ जमाना।
मरूभूमि दुनिया लागैत रहल, सिनेहक बिला गेल धार कतौ,
करेज तँ माँगलक दू ठोप टा प्रेमक, किछ सुनलक नहि इ जमाना।
कियो "ओम"क सिनेहक बूझतै कहियो सनेस पता कहाँ इ चलै,
करेजक हमर टुकडी छींटल, मुदा देखि जोडलक नहि इ जमाना।
(बहरे-हजज)
बुधवार, 22 फ़रवरी 2012
गजल @प्रभात राय भट्ट
गजल
एसगर कान्ह पर जुआ उठौने,कतेक दिन हम बहु
दर्द सं भरल कथा जीवनके,ककरा सं कोना हम कहू अपने सुख आन्हर जग,के सुनत हमर मोनक बात
कहला विनु रहलो नै जाइय,कोना चुपी साधी हम रहू
अप्पन बनल सेहो कसाई,जगमे भाई बाप नहीं माए
सभ कें चाही वस् हमर कमाई,दुःख ककरा हम कहू
देह सुईख कS भेल पलाश,भगेल हह्रैत मोन निरास
बुझल नै ककरो स्वार्थक पिआस,कतेक दुःख हम सहुमोन होइए पञ्चतत्व देह त्यागी,हमहू भS जाए विदेह
विदेहक मंथन सेहो होएत,कोना चुपी साधी हम रहू नैन कियो करेज,कियो अधिकार जमाएत किडनी पर
होएत किडनीक मोलजोल, सेहो दुःख ककरा हम कहू बेच देत हमर अंग अंग, रहत सभ मस्ती में मतंग
बजत मृदंग जरत शव चितंग सेहो कोना हम कहू.........................वर्ण:-२२.............................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012
मैथिलि--काव्य: कविता - साम्प्रदायिकताक आगि
मैथिलि--काव्य: कविता - साम्प्रदायिकताक आगि: "साम्प्रदायिकताक आगि" नै लगाऊ साम्प्रदायिकताक आगि एहि मे होएब हम सब जरि क छाई एहि आगि मे हम जरि वा आहाँ मुदा, होएत कुनू 'नैन्ना टु...
रूबाइ
कोना कऽ रंगलक करेज केँ इ रंगरेज, रंग छूटै नै।
नैन पियासल छोडि गेल, मुदा आस मिलनक टूटै नै।
हमरा छोडि तडपैत पिया अपने जा बसला मोरंग,
बूझथि विरहक नै मोल, भाग्य इ ककरो एना फूटै नै।
सोमवार, 20 फ़रवरी 2012
गीत
शिवरात्रिक अवसर पर एकटा प्रस्तुति-
गौरी रहि-रहि देखथि बाट, कखन एता भोलेनाथ।
आंगन मे मैना कानि रहल छथि,
मुनि नारद केँ कोसि रहल छथि।
ताकि अनलाह केहन बर बौराह,
गौराक जिनगी भेल आब तबाह।
मैना पीटै छथि अपन माथ, कखन एता....................
भूत-बेतालक लागल अछि मेला,
प्रेत पिशाचक अछि ठेलम ठेला।
पूडी पकवान कियो नै तकै छै,
सब भाँग धथूरक खोज करै छै।
कियो नंगटे, कियो ओढने टाट, कखन एता...................
कोना कऽ गौरी अपन सासुर बसतीह,
विषधर साँप सँ कोना कऽ बचतीह।
पिताक घरक छलीह जे बनल रानी,
कोना लगेतीह आब ओ बडदक सानी।
आब तऽ किछ नै रहलै हाथ, कखन एता.....................
गौरीक मोनक आस आइ पूरा हएत,
बर बनि अयलाह शम्भू त्रिभुवन नाथ।
जगज्जननी माँ गौरी शंकर छथि स्वामी,
जग उद्धारक शिव छथि अन्तर्यामी।
फेरियो हमरो माथ पर हाथ, कखन एता.......................
"ओम" बुझाबै, सुनू हे मैना महारानी,
इ छथि जगतक स्वामी औढरदानी।
भोला नाथक छथि नाथ कहाबथि,
सबहक ओ बिगडल काज बनाबथि।
शिव छथि एहि सृष्टि केर नाथ, कखन एता...................
गजल
कतौ बैसार मे जँ अहाँक बात चलल।
तँ हमर करेज मे ठंढा बसात चलल।
विरह देख हमर झरल पात सब गाछ सँ,
सनेस प्रेमक लऽ गाछक इ पात चलल।
मदन-मुस्की सँ भरल अहाँक अछि चितवन,
करेजक दुखक भारी बोझ कात चलल।
बुझाबी मोन केँ कतबो, इ नै मानै,
अहीं लेल सब आइ धरि शह-मात चलल।
छल घर हमर इजोत सँ भरल जे सदिखन,
जखन गेलौं अहाँ, "ओम"क परात चलल।
(बहरे हजज)
गजल
किछ हमर मोन आइ बस कहऽ चाहै ए।
अहींक बनि कऽ सदिखन तँ इ रहऽ चाहै ए।
इ लाली ठोरक तँ अछि जानलेवा यै,
अछि इ धार रसगर, संग बहऽ चाहै ए।
अहाँ काजर लगा कऽ अन्हार केने छी,
बरखत सिनेह घन कखन दहऽ चाहै ए।
अहाँ फेंकू नहि इ मारूक सन मुस्की,
बिना मोल हमर करेज ढहऽ चाहै ए।
बिन अहाँ "ओम"क सुखो छै दुख बरोबरि,
सब दुख अहाँक इ करेज सहऽ चाहै ए।
(बहरे-हजज)
गीत-4
भोलेबाबा हौ
खोलबअ केखन अपन द्वार ) -२
हम दुखिया जन्मे कए दुखल
एलहुँ तोहरे द्वार
भोलेबाबा हो - - - - - अपन द्वार
तन दुखिया अछि मन अछि दुखिया
दुखिए जन्म हमार
सुनि महिमां भोले एलहुँ तोरे द्वारे
करबअ केखन हमर उद्धार
भोलेबाबा हो - - - - - अपन द्वार
मुनलह तु अपन नयना
मुनलह हमर कपार
एलहुँ भटकैत,भटकैत तोरे द्वारे
मुनलह किएक अपन केबार
भोलेबाबा हो - - - - - अपन द्वार ) -२
***जगदानन्द झा 'मनु'
लेबल:
गीत,
जगदानन्द झा 'मनु'
रविवार, 19 फ़रवरी 2012
गजल-२१
केहन-केहन दुनियाँ, केहन-केहन रंग एकर
कियो हँसैए कियो कनैए,कियो झुमैए संग एकर
कियो मरैए दुधक द्वारे,कियो भाँग में डुबल अछि
बुझि नहि पएलहुँ आइतक कनिको ढंग एकर
लक्ष्मीके देखलौं पथैत चिपड़ी,कुबेड चराबे पारी
गंगा-यमुना पानि भरैत,की हमहुँ छी अंग एकर
भोट मांगे पोहला-पोहला कs,गदहो के बाप बना कs
जितैत देखु गिरगिट जेकाँ बदलैत रंग एकर
'मनु' छल कारिझाम चिन्हार बनोलन्हि अनचिन्हार
घरी-घरी में बदलैत देखु आब तs उमंग एकर
- - - - - - - - - - - -वर्ण-२० - - - - - - - - - - -
***जगदानंद झा 'मनु'
कियो हँसैए कियो कनैए,कियो झुमैए संग एकर
कियो मरैए दुधक द्वारे,कियो भाँग में डुबल अछि
बुझि नहि पएलहुँ आइतक कनिको ढंग एकर
लक्ष्मीके देखलौं पथैत चिपड़ी,कुबेड चराबे पारी
गंगा-यमुना पानि भरैत,की हमहुँ छी अंग एकर
भोट मांगे पोहला-पोहला कs,गदहो के बाप बना कs
जितैत देखु गिरगिट जेकाँ बदलैत रंग एकर
'मनु' छल कारिझाम चिन्हार बनोलन्हि अनचिन्हार
घरी-घरी में बदलैत देखु आब तs उमंग एकर
- - - - - - - - - - - -वर्ण-२० - - - - - - - - - - -
***जगदानंद झा 'मनु'
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गजल,
जगदानन्द झा 'मनु'
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