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शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

गजल

रूप मारूक तोहर देखते कनियाँ
ख़ून देहक सगर भेलै हमर पनियाँ

नै कतौ केर विश्वामित्र छी हमहूँ
प्राण लेलक हइर ई तोर चौवनियाँ

जरि क' तोहर पजारल आगिमे दुनियाँ
माय बापक नजरिमे बनल छै बनियाँ

नीक बहुते गजल कहने छलहुँ हमहूँ
आइ सभ किछु बिसरि बेचैत छी धनियाँ

झाँपि राखू अपन रूपक महलकेँ 'मनु'
भेल पागल कतेको देखि यौवनियाँ
(बहरे मुशाकिल, मात्रा क्रम; 2122-1222-1222)
जगदानन्द झा 'मनु'

शनिवार, 21 फ़रवरी 2015


21 फरवरी के मनाबु अप्पन 'मातृ भाषा दिवस'
मिथिला धरोहर : 21 फरवरी यानी कि मातृ भाषा दिवस .. अंहा मे सँ बहुते कम लोग के पता होयत कि आय कोन दिन अछि। आधहा सँ ज्यादा लोग के तऽ फरवरी खाली वैलेंनटाइन डे कs लेल याद रहैत अछि।
आय के दिन अपन माँ भाषा के सेलिब्रेट करैय के अछि। आय के दिन अंहा अपन मातृ भाषा चाहे मैथिलि, अंगिका, भोजपुरी, मगही, वजिजका, जे भी होय ओकरा सेलिब्रेट कऽ सकय छि। कियाकि विविध भाषा के अय मोति के पिरोये कऽ भारत देशक एकता के माला बनय अछि, जय मे प्रेमक धागा होयत अछि।
हिंदी दिवस : हर हिंदुस्तानी के आवाज हिंदी..
मुदा बदलैत परिवेश मे जतय आय लोग के लेल वक्त नय अछि ओतय आय लोग सव भाषा के खिचड़ी कऽ देलक अछि। अंहा अपन आस-पासक लोगक बात पर गौर करव तऽ अंहा पैव जे आय शायदे ही कुनो एहन पुरूष औऱ महिला हैत जे कि शुद्ध भाषा के प्रयोग करैत होयत..जेना कि हिंदी बाजैत समय अंग्रेजी के प्रयोग, मैथिलि बाजैत हिंदी आ इंग्लिश शब्दक प्रयोग।
आय तऽ लोग महिलाओं सँ बात करैत कहैत अछि. आप खा रहे हो..या फेर बड़े सँ बात करैत समयो तू-तड़ाके क प्रयोग करैत अछि जेना कि तू खा ले, आप निकलो वगैरह..वगैरह।
दोसर अहम बात जे आय-काइल हर जगह अछि ओ अछि अंग्रेजी के बोलबाला। भौतिकतावादी युग मे स्टेटस मेंटेन करय के चक्कर मे हम विदेशी भाषा के तऽ तेजी सँ अपना रहल छि कियाकि इ बेहद जरूरी अछि, मुदा अपन पहचान ऑउर अपन मातृभाषा के बिसरैत जा रहल छि।
आय अगर मिथिलांचल दंपति दिल्ली, पुणे ऑउर बैंगलोर मे रहैत अछि तऽ हुनका बच्चा के मैथिलि नय आवैत अछि कियाकि ओ अपन बच्चा के कखनो मैथिलि बाजनय सिखेवे नय केलक, अगर बच्चा कखनो काल नकल करैतो अछि तऽ डांट-फटकार परैत अछि कियाकि हुनका लागैत यऽ जे कि हमर बच्चा मातृभाषा सीखे कs की करत ओकरा अंग्रेजी एवा चाहि कियाकि इहे सँ ओ स्मार्ट कहलैत जहनकि अपन क्षेत्रीय भाषा बाइज के पिछडल लागत।
इ सवटा लोगक ग्रसित मानसिकता कऽ सबूत अछि जेकर कारणे आय हमार क्षेत्रीय भाषा के ओ बढ़ावा नय मिलैत अछ जे कि अंग्रेजी कs मिल रहल अछ। हम देशक आन-बान ऑउर शानक बरकरार राखय के लेल कसम तऽ खाइत छि मुदा की मातृभाषा के अनदेखा कऽ के हम वाकई मऽ अपन सप्पत निभा रहल छि।
जय  मैथिलि  जय  मिथिला 

बुधवार, 18 फ़रवरी 2015

हम कवि नै छी

हम कवि नै छी
वस ! हमरा भीतर किछु आक्रोश अछि
जे समय-समयपर
लाबा बनि फूटि परैत अछि
जँ हम कवि
तँ हमरा एहेन असंख्य आक्रोशी
पटकैत अछि
अपन-अपन आक्रोशकेँ
पाथरपर अपन-अपन हथौरी नेने
जेठक रौदमे पिआसे
माघक बरसाती जाड़मे भूखे
मुदा ओकर कविताकेँ
के सुनैत अछि
सब बौक बहीर बनल
अपन-अपन टेढ़ आँखिसँ देखैत
मनक कोनो कोणमे
हथौरी आ पाथरक
चोटक वेदनाकेँ नुकोने
चलि जाइत अछि
कतौ केकरो कोनो कविक करेजक
आँखिक दुनू कोणा गिल भऽ जाइत अछि
तैयो कविता के सुनैत अछि
नै पाथरक
नै हथोरीक
आ नै भूख पिआससँ विकल पेटक।
©जगदानन्द झा 'मनु'

रविवार, 8 फ़रवरी 2015

गजल

चाही आश नै कनिको चमत्कारकेँ
मेहनतसँ बसायब अपन संसारकेँ

आजुक नवयुवक हम डरब धमकीसँ नै
छोरब नै अपन कनिको तँ अधिकारकेँ

बुझि अप्पन कियो छनमे करेजा ल' लिअ
टेढ़ीमे जँ छी नै सहब सरकारकेँ

धरतीपर जते बासन पकल काँच छै
एक्के हाथ सगरो गढ़ल कुम्हारकेँ

सहलों चोट सय भरि जन्म सोनारकेँ
'मनु'  के सहत एक्को चोट लोहारकेँ

(बहरे कबीर, मात्रा क्रम; २२२१-२२२१-२२१२)
जगदानन्द झा 'मनु'

मंगलवार, 27 जनवरी 2015

बाल गजल

नानी गेलै देखै लेए बारीमे आलू
लाइ उठा क' ओकर भगलै लालू

आँखि मुनि चारमे बेंग नुकाबै छै
कालू कौआ बनल कतेक छै चालू

केहेन होइ छै ई भोटक नाटक 
बनि गेलै राज मंत्री चोरबा कालू

झट पट नेना सभ दौड़ क' आबै
देखही देखही कते नचै छै भालू

' दे नानी आब 'मनु'केँ दू रुपैया
नै सोचै मनमे कोना एकरा टालू
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण १३)

जगदानन्द झा 'मनु'

शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

श्रद्धांजलि ( स्वर्गीय श्री शैलेन्द्र मिश्र भाइके )

श्रद्धांजलि ( स्वर्गीय श्री  शैलेन्द्र मिश्र भाइके )
M  S अपार्टमेंट  सिविल  सर्विस  ऑफ़िसर कलव  के जी  मार्ग देल्ही
२१ दिसम्बर २०१४ 
 
१६ दिसम्बर  २०१४  के  शैलेन्द्र  मिश्र  बिमारी सं ग्रषित  के  कारन  मात्र  - ५२ वर्ष के अवस्था  में  स्वर्गवशी  भगेलहा , हुनक श्रद्धांजलि  देबाक लेल  मिथिला कला मंच आ सुगति - सोपान  के  सानिंध्य  में श्री मति - कुमकुम झा   और  A -वन फिल्ल्म  इंडिस्ट्री    के  संचालक  सुनील झा पवन के अगुवाई  में  विभिन्  प्रकार के डेल्ही   एन सी आर  में  जतेक  भी संस्था  अच्छी  हुनका  सब  के  समक्ष  शैलेन्द्र  मिश्रा नामक  बल्ड  बैंक  के योजना  बनबै  के  मार्गसं अविगत  केला ।  जे  गति शैलेद्र  भाई , हेमकान्त  झा , अंशुमाला झा  के  संग  भेल ।  ओहि विपप्ति  सं  दोसर किनको  नै  गुजरै परैं ।  कियाक  नै  हम  सब  मिल  एकटा  एहन  काज  करी  जाहिसं  मैथिलि कला मंच के हित  में राखी  हुनका  लेल  किछु  राशि निवित  राखल  जय और  ओहि  राशि  के  शैलेन्द्र  भाई  एहन  लोक  लेल  जरुरत  परला पर  मैथिल कला मंच  काम  आबैथि  ।
      
       ब्लड  बैंक के  जिम्बारी  डॉक्टर  विद्यानन्द  ठाकुर  आ  ममता  ठाकुर  जी  स्वीकार  करैत  अपन  मार्ग   सं  सब  के  अबगति  करेला ।   ओतय  दहेज़  मुक्त  मिथिला   डेल्ही  प्रभाड़ी  मदन कुमार  ठाकुर   सेहो   अप्पन  जिम्मेबारी  के  निर्वाह  करैत  डी म म  के  पूर्ण सहयोग  के  अस्वाशन  देला  ।

         आखिर मिथिला कला मंच सन  पिछरल  कियाक ? से  मैलोरंग  के  समस्त  टीमसं जानकारी  और   रहस्य मय  बात के  पूर्ण  सहयोग भेटल ।   मैथिल  कला  रंगकर्मी सं  जे  भी  जुरल  छथि  हुंकर  जिनगी  कोनो  खास  नै  कहल  जय  ओहिसं जिनगी के गुजर - वसर  नै  कैइयल जा  सकइत  अच्छी ।  ताहि  हेतु  भारत  सरकार  से  उचित न्याय  के  मांग  कइल जैय ।

        एवं प्रकारे   सेकड़ो  के  संख्या   में आवि  भाई  शैलेन्द्र के  श्रद्धांजलि  दय  प्रणाम  करैत  हुनक  आत्मा के  शांति  प्रदान  होयक  लेल   गयत्री  मन्त्र  के  उच्चारण  करैत   २ मिनट  के  मोन धारण  कइल  गेल  ।

 
   शैलेन्द्र  भाई  के  गुजरालसं खास के  कला और  साहित्य  दुनू  में  बहुत  नुकसान  अच्छी ।   कही  नै  सकैत  छी  कतेको   शैलेन्द्र भाई  के  चेला  रंग कर्मी  कला  मंच  सं पाछू छुटी गेला ।  मिथिला  मैथिलि के प्रति  हुनक  एकटा  बस  अवाज  बानी  रही  गेल --
 हे  मिथिला  अहाँ  मरैय  सन  पहिने  हम  मरीय   जय    

गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

मिथिला महोत्सव - २०१४

मिथिला महोत्सव - २०१४
दहेज़ मुक्त  मिथिला  के  सानिध्य में  - 28  दिसम्बर - 2014  के  देहिसर  मुंबई में   मिथिला  मोहोसव के  आयोजन  होबय जा रहल  अच्छी ,  जाहि  में  अपनेक समस्त परिवार के  उपस्थिति  अनिवार्य  अच्छी  ,  दहेज़  खास क मिथिला  में एकटा  बहुत  पैघ समस्या अच्छी , जाहि  के  निवारण  हेतु , दहेज़ मुक्त मिथिला  परिवार  अपन  कर्तव्  के  पालन  करैत  बेर - बेर  देल्ही  आ   मुंबईटा  नै पूरा विस्व  में  दहेज़ समस्या के  खत्म  कराय  में  लागल  अच्छी , चाहे  नेपाल  सन  करुणा  झा  होयत या प्रवीण जी   आई  तक  अपन  कर्तवय  सं  पाछू  नै हैट पोलैथि  ,  ओहे जिम्बारी के  पालन  करैक  लेल  दहेज़ मुक्त  मिथिला  अध्यक्ष , पंकज झा (मुम्बई ) आ संरक्ष   पंडित  श्री  धर्मनद  झा  , संजय मिश्र  इतियादी  अनेको  भी  सहयोगी शामिल  छैथि , हुनक  अभिलाषा  कइ  पूरा  करैक  लेल  अपनेक  सहयोग  अनिवार्य  अच्छी  । 

याद रखाब - 28 दिसम्बर - २०१४  रवि  दिन 
जय मैथिल जय  मिथिला 

गजल

गालपर तिलबा कते शान मारैए
निकलु नै बाहर सभक जान मारैए

जतअ देखलौं अहीँपर नजरि सभकेँ 
सभ तरे तर नजरिकेँ वाण मारैए

तिर्थमे पंडित तँ मुल्ला मदीनामे
सभ अहीँकेँ राति दिन तान मारैए

अछि अहीँकेँ मोहमे बूढ़ नव डूबल
देखिते मुँह फारि मुस्कान मारैए

काज कोनो नै बनेए जँ जीवनमे
'मनु' अहीँ लग फूल आ पान मारैए

(बहरे कलीब, मात्रा क्रम : २१२२-२१२२-१२२२)

© जगदानन्द झा 'मनु'

रविवार, 21 दिसंबर 2014

भक्ति गजल


शिव केर महिमा के नै जनैत अछि
सबहक मनोरथ  पूरा करैत अछि

दिन राति भोला पीबैत भांग छथि
हुनकर चरणकेँ के नै गहैत अछि

पति ओ उमाकेँ सबहक पतित हरन 
भोला हमर सबकेँ दुख हरैत अछि

बसहा सवारी बघछाल अंगपर
शमशानमे रहि दुनियाँ हँकैत अछि

नै मूँगबा खाजा चाहिएनि जल
‘मनु’ आक धथुरसँ हिनका पबैत अछि

(मात्रा क्रम : २२१२-२२२१-२१२) 
© जगदानन्द झा 'मनु'

शनिवार, 20 दिसंबर 2014

मैयाक गीत

मैया मैया मैया बाजू
करेजा अपन खोलि कए
छन्नेमे मैया सबटा देखती
आँखि अपन खोलि कए 

तनसँ तँ बहुत जपलहुँ
नाम मैयाकेँ दिन राति
आबू कनी जपै छी मनसँ
आइ छी जगराताकेँ राति 

नअ पूजा नबो मैयाक
ई तँ नअ महिनाक कर्ज अछि
एकरा उतारि सकब जीवन भरि
ई तँ मनक भर्म अछि

पहिल मैया जगजननी
दोसर हमरा जे जन्म देलनि
सुख सबटा हमरा दए  
दुख अपन आँचरमे लेलनि

अपन जननीकेँ जँ दए पेलहुँ
रत्तीयो भरि जीवनमे सुख
जगजननी मैया लए लेथिन
जीवनक हमर सबटा दुख

चाहै छी जँ भक्ति आ दया  
मनसँ मैया रानीक हमसभ
ली संकल्प नहि नोर खसाएब
‘मनु’ अपन जननीक हमसभ                          
© जगदानन्द झा ‘मनु’


शुक्रवार, 19 दिसंबर 2014

गजल

सपना हमर हम वीर बनी
करतब करी आ धीर बनी

जे देशकेँ अपमान करै
ओकर करेजक तीर बनी

सबहक सिनेहक मीत रही
ककरो मनक नै पीर बनी

आबी समाजक काज सदति
धरतीक नै हम भीर बनी

किछु काज ‘मनु’ एहन तँ करी
मरियो क आँखिक नीर बनी

(मत्रा क्रम : २२१२-२२१-१२)
© जगदानन्द झा 'मनु'

सोमवार, 1 दिसंबर 2014

गजल

अहाँ बिनु नै सुतै नै जागैत छी हम
कही की राति कोना काटैत छी हम

अहाँक प्रेम नै बुझलहुँ संग रहितो
परोक्षमे कते छुपि कानैत छी हम

करेजा केर भीतर छबि दाबि रखने
अहीँकेँ प्राण अप्पन मानैत छी हम

बुझू नै हम खिलाड़ी एतेक कचिया
अहाँ जीती सखी तेँ हारैत  छी हम

अहाँ जगमे रही खुश जतए कतौ 'मनु'
दुआ ई मनसँ सदिखन मांगैत छी हम

(बहरे करीब, मात्रा क्रम : 1222- 1222- 2122)
जगदानन्द झा ‘मनु’

शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

गजल

कानैत आँखिक आगिमे जरल आकाशक शान छै
बेथा करेजक लहकि गेलै, सभक झरकल मान छै

बैसल रहै छी प्रभुक दरबारमे न्यायक आसमे
हम बूझलौं नै बात, भगवान ऐ नगरक आन छै

सदिखन रहैए मगन अपने बुनल ऐ संसारमे
चमकैत मोनक गगनमे जे विचारक ई चान छै

आसक दुआरिक माटि कोडैत रहलौं आठो पहर
सुनगैत मोनक साज पर नेहमे गुंजित गान छै

सूखल मुँहक खेती सगर की कहू धरती मौन छै
मुस्की सभक ठोरक रहै यैह "ओम"क अभिमान छै
- ओम प्रकाश
दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ, दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ, दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ, दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ,
मुस्तफइलुन-मुस्तफइलुन-फाइलातुन-मुस्तफइलुन (प्रत्येक पाँतिमे एक बेर)

गजल

अपन मोनक कहल मारि बैसल छी
छलै खिस्सा लिखल फाडि बैसल छी

हँसी हुनकर हमर मोनमे गाडल
करेजा अपन हम हारि बैसल छी

पढू भाषा नजरि बाजि रहलै जे
किए हमरा अहाँ बारि बैसल छी

सिनेहक बूझलौं मोल नै कहियो
अहाँ गर्दा जकाँ झारि बैसल छी

जमाना कहल मानैत छी सदिखन
कहल "ओम"क अहाँ टारि बैसल छी
- ओम प्रकाश
मफाईलुन-फऊलुन-मफाईलुन (प्रत्येक पाँतिमे एक बेर)

मंगलवार, 11 नवंबर 2014

गजल

मनक भीतर माटिक प्रेम काबा सन
लगैए ई दूर भय गर्म आबा सन

दियावाती भेल  नै  चौरचन भेलै
मनोरथ भसि गेल ताड़ीक डाबा सन

अपन अँगने छोरि एलहुँ सगर हित हम
फरल दुश्मन एतए बड्ड झाबा सन

करेजामे दर्द गामक बसल एना
बिलोका बनि ओ तँ चमकैत लाबा सन

पिया बैसल  दूर परदेशमे  'मनु' छथि
विरहमे हम छी हुनक बनल बाबा सन

(मात्रा क्रम : १२२२-२१२२-१२२२)
जगदानन्द झा 'मनु'