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शुक्रवार, 19 दिसंबर 2014

गजल

सपना हमर हम वीर बनी
करतब करी आ धीर बनी

जे देशकेँ अपमान करै
ओकर करेजक तीर बनी

सबहक सिनेहक मीत रही
ककरो मनक नै पीर बनी

आबी समाजक काज सदति
धरतीक नै हम भीर बनी

किछु काज ‘मनु’ एहन तँ करी
मरियो क आँखिक नीर बनी

(मत्रा क्रम : २२१२-२२१-१२)
© जगदानन्द झा 'मनु'

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