मैथिली साहित्य आ भाषा लेल समर्पित Maithiliputra - Dedicated to Maithili Literature & Language
मंगलवार, 27 जनवरी 2015
बाल गजल
शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014
श्रद्धांजलि ( स्वर्गीय श्री शैलेन्द्र मिश्र भाइके )
२१ दिसम्बर २०१४
१६ दिसम्बर २०१४ के शैलेन्द्र मिश्र बिमारी सं ग्रषित के कारन मात्र - ५२ वर्ष के अवस्था में स्वर्गवशी भगेलहा , हुनक श्रद्धांजलि देबाक लेल मिथिला कला मंच आ सुगति - सोपान के सानिंध्य में श्री मति - कुमकुम झा और A -वन फिल्ल्म इंडिस्ट्री के संचालक सुनील झा पवन के अगुवाई में विभिन् प्रकार के डेल्ही एन सी आर में जतेक भी संस्था अच्छी हुनका सब के समक्ष शैलेन्द्र मिश्रा नामक बल्ड बैंक के योजना बनबै के मार्गसं अविगत केला । जे गति शैलेद्र भाई , हेमकान्त झा , अंशुमाला झा के संग भेल । ओहि विपप्ति सं दोसर किनको नै गुजरै परैं । कियाक नै हम सब मिल एकटा एहन काज करी जाहिसं मैथिलि कला मंच के हित में राखी हुनका लेल किछु राशि निवित राखल जय और ओहि राशि के शैलेन्द्र भाई एहन लोक लेल जरुरत परला पर मैथिल कला मंच काम आबैथि ।
एवं प्रकारे सेकड़ो के संख्या में आवि भाई शैलेन्द्र के श्रद्धांजलि दय प्रणाम करैत हुनक आत्मा के शांति प्रदान होयक लेल गयत्री मन्त्र के उच्चारण करैत २ मिनट के मोन धारण कइल गेल ।
शैलेन्द्र भाई के गुजरालसं खास के कला और साहित्य दुनू में बहुत नुकसान अच्छी । कही नै सकैत छी कतेको शैलेन्द्र भाई के चेला रंग कर्मी कला मंच सं पाछू छुटी गेला । मिथिला मैथिलि के प्रति हुनक एकटा बस अवाज बानी रही गेल --
हे मिथिला अहाँ मरैय सन पहिने हम मरीय जय
गुरुवार, 25 दिसंबर 2014
मिथिला महोत्सव - २०१४
गजल
रविवार, 21 दिसंबर 2014
भक्ति गजल
शनिवार, 20 दिसंबर 2014
मैयाक गीत
शुक्रवार, 19 दिसंबर 2014
गजल
जे देशकेँ अपमान करै
ओकर करेजक तीर बनी
सबहक सिनेहक मीत रही
ककरो मनक नै पीर बनी
आबी समाजक काज सदति
धरतीक नै हम भीर बनी
किछु काज ‘मनु’ एहन तँ करी
मरियो कऽ आँखिक नीर बनी
© जगदानन्द झा 'मनु'
सोमवार, 1 दिसंबर 2014
गजल
कही की राति कोना काटैत छी हम
अहाँक प्रेम नै बुझलहुँ संग रहितो
परोक्षमे कते छुपि कानैत छी हम
करेजा केर भीतर छबि दाबि रखने
अहीँकेँ प्राण अप्पन मानैत छी हम
बुझू नै हम खिलाड़ी एतेक कचिया
अहाँ जीती सखी तेँ हारैत छी हम
अहाँ जगमे रही खुश जतए कतौ 'मनु'
दुआ ई मनसँ सदिखन मांगैत छी हम
(बहरे करीब, मात्रा क्रम : 1222- 1222- 2122)
जगदानन्द झा ‘मनु’
शुक्रवार, 14 नवंबर 2014
गजल
बेथा करेजक लहकि गेलै, सभक झरकल मान छै
बैसल रहै छी प्रभुक दरबारमे न्यायक आसमे
हम बूझलौं नै बात, भगवान ऐ नगरक आन छै
सदिखन रहैए मगन अपने बुनल ऐ संसारमे
चमकैत मोनक गगनमे जे विचारक ई चान छै
आसक दुआरिक माटि कोडैत रहलौं आठो पहर
सुनगैत मोनक साज पर नेहमे गुंजित गान छै
सूखल मुँहक खेती सगर की कहू धरती मौन छै
मुस्की सभक ठोरक रहै यैह "ओम"क अभिमान छै
- ओम प्रकाश
दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ, दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ, दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ, दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ,
मुस्तफइलुन-मुस्तफइलुन-फाइलातुन-मुस्तफइलुन (प्रत्येक पाँतिमे एक बेर)
गजल
छलै खिस्सा लिखल फाडि बैसल छी
हँसी हुनकर हमर मोनमे गाडल
करेजा अपन हम हारि बैसल छी
पढू भाषा नजरि बाजि रहलै जे
किए हमरा अहाँ बारि बैसल छी
सिनेहक बूझलौं मोल नै कहियो
अहाँ गर्दा जकाँ झारि बैसल छी
जमाना कहल मानैत छी सदिखन
कहल "ओम"क अहाँ टारि बैसल छी
- ओम प्रकाश
मफाईलुन-फऊलुन-मफाईलुन (प्रत्येक पाँतिमे एक बेर)
मंगलवार, 11 नवंबर 2014
गजल
लगैए ई दूर भय गर्म आबा सन
दियावाती भेल नै चौरचन भेलै
मनोरथ भसि गेल ताड़ीक डाबा सन
अपन अँगने छोरि एलहुँ सगर हित हम
फरल दुश्मन एतए बड्ड झाबा सन
करेजामे दर्द गामक बसल एना
बिलोका बनि ओ तँ चमकैत लाबा सन
पिया बैसल दूर परदेशमे 'मनु' छथि
विरहमे हम छी हुनक बनल बाबा सन
(मात्रा क्रम : १२२२-२१२२-१२२२)
जगदानन्द झा 'मनु'
गुरुवार, 16 अक्टूबर 2014
गजल
गजल
रविवार, 5 अक्टूबर 2014
अभागल जनता
कोनो मोल नहि सधारण मनुषक जिनगीक
कीड़ा मकोड़ा जेना समा जाइत अछि
अकाल कालके गालमे
बड़का बड़का कहाबे वाला जनसेवक
जनताके बुझैत अछि भेड़ बकड़ी
कटवा दैत अछि अपन कुर्सी खातिर
मृत्यु परल लाशपर सेहो होइत अछि राजनिती
खूब घोषणा होइत अछि क्षतिपूर्तिक हेतु
हर बेर बनैत अछि जाँच आयोग
मुदा परीणाम घासके तीन पात
लाशक मुआवजामे सेहो घूसखोरी
ताहुपर साहबक सिनाजोड़ी
के किछु कहतै ओकरा
ओकरे शाशन ओकरे प्रशाशन
जनसाधारण बहाएत नोर
मुदा "अभागल जनताक" नोरक नहि कोनो मोल !!!!!!!!!!!
:गणेश कुमार झा "बावरा "
गुवाहाटी
रविवार, 14 सितंबर 2014
काल
छोरु गौरवमय गाथा भूतकाल केर
आब जीवू वर्तमानमे
जरल जुन्ना जकाँ ऐँठल
देखैएमे खाली
छुबैत मातर जे छाउर बनि जए
जितैक लेल मान दान आ प्रतिस्था
पाछू जुनि,
देखू आगूक
ओहो तँ कियो छैक
जे चानकेँ छुलक
तँ हमहीँ कहिया धरि
चानक पूजा करब
ओहो तँ कियो छैक
जे मंगलपर पेएर रखलक
तँ हमहीँ कहिया धरि
मंगलकेँ अमंगल मानि
काज नहि करब
ओहो तँ कियो छैक
जे पाँतिक आगू चलैत छैक
तँ हमहीँ कहिया धरि
झंडा लऽ कऽ पाँतिक पाछू चलब
मानलहुँ हमर भूत
बड़ नीक आ उत्तम छल
मुदा वर्तमान किएक एहेन अछि
आबू देखू, बैस कए सोचू
कि सनेस हम अपन भविष्यकेँ देब ?
जँ रहलहुँ चूप
हाथपर हाथ धेने
तँ ओकरा लग
कोनो नीक भूतो नहि रहत
आ जाकरा लग
वर्तमान आ भूत दुनू शून्य
ओहि लोकक
ओहि संस्कृतिक
आ ओहि समाजक लुप्त भेनाइ
अवस्यसम्भाविक छैक
आब अहीँ कहू
कि हम सभ
हमर सबहक संस्कृति
हमर समाज, कि लुप्त भए जाएत ?
कि लुप्त भए जाएत ?
कि लुप्त भए .......
© जगदानन्द झा ‘मनु’