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शनिवार, 26 जनवरी 2013

जुग-जुग जीबए...




“एखन ओ कतए अछि, कोना अछि, की करैत अछि, हमरा किछु पता नै, बस एतबेए बुझल अछि जे आइ ओकर जन्म दिन छैक |”
पचपन बर्खक, उज्जर सारीमे लपटल बूढ़ बिधबा माएक दिमागक ई गप्प | एककेँ बाद एक खोल हुनक इआदक केथरीसँ निकैल-निकैल कए इन्द्रधनुषी आकाशमे हिलकोर मारि रहल छल | बैसल, हुनक सामने माटिक एकचूल्हीयापर चढ़ल भातक हाँड़ीसँ बरकैकेँ खड़-खड़-खड़केँ अबाज आबि रहल छल | भात जड़ि कए कोयला भऽ गेल रहति जँ चेराक आँच अपने जड़ैत-जड़ैत चूल्हासँ निकैल कए बाहर नहि जड़ए लगितै |
“पन्द्रह बर्ख पहिने कहि गेल दिल्ली जाइ छी, खूब पाइ कमाएब | नीक घर बनाएब | तोरा नीक नीक सारी कीन कऽ आनि देबौ | बाबूक लेल सुन्नर साईकिल कीनब | मुदा ! सभ बिसैर गेल | शुरू-शुरूमे दू-तिन मासपर चिठ्ठीयो आबेए, छह महिना बरखपर किछु पाइयो आबेए मुदा बादमे सभ बन्द | कोनो खोज खबरे नै | ओकर गेलाक छह बरखक बाद बलचनमा मुँहे सुनलहुँ जे ओ दिल्ली बाली मेमसँ बियाह कए लेलक | आर कोनो समाद नाहि | बापोकेँ मुइला आइ पाँच बरख भऽ गेलन्हि, ओइहोमे नहि आएल | ओकरा तँ बापक दिया बुझलो हेतै की नै---- | आइ ओकर जन्म दिन छैक, लऽगमे रहैत तँ बड्ड रास आशीर्वाद दैतियैक मुदा दूरे बड्ड अछि | जतए अछि खुश रहेए.... जुग-जुग जीबए... हमर लाल |”   
*** 
जगदानन्द झा ‘मनु’         

बुधवार, 23 जनवरी 2013

गजल



चलि अहाँ कतए किए गेलहुँ मुरारी
एहि दुखियाकेँ हरत के कष्ट भारी

तान ओ मुरलीक फेरसँ आबि टारू
बिकल भेलहुँ एतए एसगर नारी

द्रोपतीकेँ लाज बचबै लेल एलहुँ
नित्य सय सय बहिनकेँ कोना बिसारी

बनि कऽ फेरसँ सारथी भारत बचाबू
सभक रक्षक हे मधुसुदन चक्रधारी  

वचन जे रक्षाक देलहुँ ओ निभाबू
कहत कोना ‘मनु’ अहाँकेँ हे बिहारी

जगदानन्द झा ‘मनु’
(बहरे रमल, वज्न – २१२२-२१२२-२१२२)   

शनिवार, 19 जनवरी 2013

गजल


कखनो कियो हमरो प्रेम करबे करत
गेलहुँ जँ नै हम घर बाट तकबे करत

भागैत अछि टोलक लोक नामसँ हमर
एकदिन सभ हमरो संग चलबे करत

बैसल घरे घर सभ कान मुनने अपन
दोसर मुँहे हमरो लेल सुनबे करत

के एतए अमृत पी कए आएल
सभ एक नै दोसर दिन मरबे करत

जे प्रेम केलक कहियो जँ मिसियो ‘मनु’सँ
दू नोर मरलापर ओ तँ कनबे करत

(बहरे सलीम, वज्न – २२१२-२२२१-२२२१)
जगदानन्द झा ‘मनु’

बुधवार, 16 जनवरी 2013

बाल गजल


तिला संक्रातिकेँ खिच्चैर खाले रौ हमर बौआ
ल’जेतौ नै तँ कनिए कालमे ओ आबिते कौआ

चलै बुच्ची सखी सभ लाइ मुरही किन कए आनी
अपन माएसँ झटपट माँगि नेने आबि जो ढौआ

बलानक घाट मेलामे कते घुमि घुमि मजा केलक
किए घर आबिते मातर बुढ़ीया गेल भय थौआ

कियो खुश भेल गुर तिल पाबि मुरही खुब कियो फाँकेँ
ललन बाबा किए झूमैत एना पी कए पौआ

सगर कमलाक धारक बाटमे बड़ रमणगर मेला
किए सभ एतए एलै कि भेलै ‘मनु’ कुनो हौआ

(बहरे हजज, मात्रा क्रम १२२२-१२२२-१२२२-१२२२)

सोमवार, 14 जनवरी 2013

गजल

भाइ भाइसँ बैरीन केलक रुपैया
गाम छोड़ा सभकेँ भगेलक रुपैया

आँखि मुँह मुनि परदेसमे जा क’ बसलहुँ
सगर बुझितो माहुर पियेलक रुपैया

आइड़े आइड़ खर बटोरैत माए
खेतमे बाबूकेँ कनेलक रुपैया

गोल चश्मा मुन्सी लगा ताकए की
खून चुसि चुसि सभटा दबेलक रुपैया

भाइ बाबूकेँ ‘मनु’ बिसरि जाउ छनमे
राज नै आबसँ घर चलेलक  रुपैया

(बहरे खफीक, मात्रा क्रम – २१२२-२२१२-२१२२)  
जगदानन्द झा 'मनु' : गजल संख्या- १००   

सोमवार, 7 जनवरी 2013

गजल- भास्करान्द झा भास्कर


गाम- घरमें बड्ड कहबैका, सबके नीक लगैया
बाप हुनक छैथ ज्ञानी- दानी बेटा भीख मंगैया

लोकक लागल भीड़ घरमें निजस्व प्रयोजन संगे
सबहक घर निर्माणमें लागल हुनकर चार कनैया

सखा सहोदर नोरे डुबल, दहि गेल सगरो घरारी
शीत बसातमें कठुआयल, मन मोने मोन मरैया

भेल निठल्ला दलाने बैसल, पैसल बूढबा बीमारी
परिवारक झरि बहैत नोर पर सगरो गाम हसैया

खरहीक टूटल टाट कात बिना पगहा मरल बरद
नाइदक सान्ही खाली देखीकए बरदो आब लड़ैया 

-----------------------भास्करानन्द झा भास्कर

समय चक्र



किशुनक विशाल ड्राइंग रूम । तीन बीएचके फ्लेटमे आलीशान 250 वर्गफूटक हॉल नूमा ड्राइंग रूम ओहिमे 48 इंचक सोनीक एलसीडी  टीवी लागल । डीस टीवी, म्यूजिक प्लेयर, फर्सपर जड़ीदार लाल रंगक विदेशी  क़ालीन । दवाल सभपर मनभावन मधुबनी पेंटिंग घरक सोभामे चारि चान लगाबैत । मोट- मोट गद्दाक बनल मखमली सोफा सेट, ओहिपर किशुनक मामा-मामी ओकर वेसबरीसँ बाट जोहैत, जे कखन ओ आएत आ ओकरासँ दूटा गप्प कए अपन समस्याक समाधन करी । हुनक दुनू प्राणीक  दू घंटाक प्रतीक्षा बाद किशुन, बोगला सन उज्जर चमचमाइत  बरका कारसँ आएल । घरक डोरवेल बजेलक घर खुजल । भीतर प्रवेश कएलक । भीतर पएर धरैत देरी ओकर नजैर अपन मामा- मामीपर परलैक । तुरन्त आगू बढ़ि हुनकर दुनू पएर छुबि आशीर्वाद लेलक । हाल समाचार पुछैत अपनो एकटा सोफापर बैसैत - "कएखन एलीऐ" ।
मामी - "इहे करीब दू घंटा भएले" ।
किशुन अप्पन कनियाँकेँ आवाज़ दैत - "यै, सुनैछीयै ! किछु चाह पानि नास्ता देलियैन्हेकी" ।
मामा - "ओसभ भए गेलै, बस अहाँसँ किछु जरूरी गप्प करैक  छल" ।
किशुन - "हाँ हाँ कहु ने, हमर सोभाग्य जे अपनेक किछु सेबाक मोंका भेटत" ।
मामा कनखीसँ इसारा कए मामीक दिस देखलाह, आ ओकर बाद मामी - " बौआ ! अहाँ तँ सभटा बुझिते छियै जे मामाक नोकरीक आइ- काल्हि की दशा छनि । कएखनो छनि तँ कएखनो नहि । रहलो उत्तर ई सात- आठ हजार रुपैया महिनाक नोकरीसँ की है छैक ...... (कनी काल चूप, आगू  सोचैत ) अहाँकेँ तँ बुझले अछि, बरुण आइ आइ टीक प्रवेश परीक्षा पास कए लेलक । आब ओकर एडमिशनकेँ आ किताब आदी लेल दू लाख रुपैया चाहीऐ । हिनका अपना लग तँ एको रुपैया नहि छनि, आ अहाँ तँ बुझिते छियै दियाद बाद कएकराकेँ दै छैक । बहुत आशा लए कए अहाँ लग एलहुँहेँ , अहाँ किछु रुपैयाक व्यवस्था कए देबै तँ छौड़ाक जिनगी बनि जेतै" ।  
सभ चूप्प । पिन ड्राप सैलेन्श । किशुन अपन आँखिसँ चश्मा निकालि दुनू आँखिक कोन कए सभसँ नूका कए पोछ्लक । कियो ओकर आँखिक कोनसँ खसैत नोरकेँ नहि देखने हेतै मुदा ओकर दुनू आँखिक कोनसँ नोरक दू दू टा मोती सरैक कए ओकर रुमालमे हड़ा गेलै । पुनः अपन चश्मा पहिरलक आ अपन आँखिक नोरक पाँछाँ करैत बीस बर्ख पाछू चलि गेल ।
जखन किशुनक माए बाबू आ मामा मामी एके झोपड़पट्टीक एके गलीमे रहैत छला । एक दिन ! महिनाक अन्त तक ओकर बाबूक हाथ खाली भए जेबाक कारण घरमे अन्नक अभाबे ओ अपन माएकेँ कहलापर एहि मामीसँ जा कहने रहनि दू सेर चौर देबएक लेल । मामी चौर तँ देलखिन मुदा ओहिसँ पहिने ठोर चिब्बैत कहने रहथिन - " की बाप पाइ नहि दए क गेलाह, एहिठाम कोन बखाड़ी लागल छैक " ।
ओ गप्प किशन आइ तक नहि बिसरल । आ ओकर आँखिक नोरक कारण इहे गप्प छल । ओहि  गप्पक कारणे आइ ओ झोपरपट्टीसँ निकैल एकटा नव दुनियाँमे पएर रखलक । पुनः अपनाकेँ वर्तमानमे आनैत किशन चट्टे अपन कोटक जेबीसँ चैक बुक निकालि, ओहिपर दू लाख रुपैया भरि मामाक दिस बढ़ेलक ।
मामा चैक लैत - "बौआ अहाँक ई उपकार हम कहियो नहि बिसरब, एखन तँ नहि चारि वर्खक बाद वरुणक नोकरी लगलापर सभसँ पहिने अहींक पाइ वापस करत" ।
किशन - "की मामा अहुँ लज्जित करै छी ई सभ कएकर छैक, की वरुण हमर भाइ नहि अछि । ई हमरा दिससँ एकटा छोट भेंट अछि । एकर चिंता अहाँ नहि करब ।
*****
जगदानन्द झा 'मनु'  

रुबाइ



गोड़ी तोर मुस्कीमे छौ जहर भरल 
नै एना मुँह खोल कते घायल परल 
जँ निकैल गएलौ फूलझड़ी सन हँसी 
बाटपर भेटत कतेको छौंड़ा मरल 

मंगलवार, 1 जनवरी 2013

बाल गजल


एकटा नेनाक संग भेल गपक किछु अंश एहि राखबाक कोशिश


इनारक जल कतऽसँ एलै
जतऽसँ पोखरि भरल गेलै

तखन भेलै खेत कादो
जँ पटबन भरि राति भेलै

जखन एलै बाढ़ि आँगन
तखन चौकी कोच हेलै

जखन बाबू हाट गेलनि
तखन बुचिया खूब खेलै

जखन गाड़ी भेल गड़बड़
तखन जोरसँ लोक ठेलै

रहै मेला पैघ लागल
हमर पिपही तखन एलै

उगल रौदा जखन कड़गड़
तखन हमर स्नान भेलै

मफईलुन-फाइलातुन
1222-2122
बहरे-मजरिअ

अमित मिश्र

बाल गजल


नव वर्षक पहिल दिन नेना सबमे बेसी उत्साह देखलौं तेँ नेनाक लेल एहि रचनाक संग सब गोटाकेँ नव वर्षक मंगलकामना ।

नव शर्ट नव टोपी भेल नव सालमे हमरा लेल
बड माँछ छल छानल तेल नव सालमे हमरा लेल

बस्ता कत्तौ फेकल अपन पोथी कत्तौ राखल अपन
इस्कूलमे छूट्टी भेल नव सालमे हमरा लेल

आ रे अमन आबें पेटला आ सुमन हमरा संग
भरि दिन कत्ते बनतै खेल नव सालमे हमरा लेल

पपिता तँ थुर्री गाछपर छै धातरी बहुते फड़ल
भेटल कत्तौ पाकल बेल नव सालमे हमरा लेल

छोरू अपन झगड़ा आइ नव जागरण करियौ आइ
नव दिवसमे हेतै मेल नव सालमे हमरा लेल

(बहरे-मुन्सरह, मुस्तफइलुन-मफऊलात
2212-2221 दू बेर सब पाँतिमे)


अमित मिश्र, (बाल गजल-79)

सुभाषचन्द्र यादवकेँ प्रबोध सम्मान 2013

सुभाषचन्द्र यादवकेँ प्रबोध सम्मान 2013

सुभाषचन्द्र यादव1948-
जन्म ०५ मार्च १९४८, मातृकदीवानगंज, सुपौलमे। पैतृकस्थान: बलबा-मेनाही, सुपौल।घरदेखिया (मैथिलीकथा-संग्रह), मैथिलीअकादमी, पटना, १९८३, हाली(अंग्रेजीसँ मैथिली अनुवाद),साहित्य अकादमी, नईदिल्ली, १९८८, बीछल कथा(हरिमोहन झाक कथाक चयनएवं भूमिका), साहित्यअकादमी, नई दिल्ली, १९९९,बिहाड़ि आउ (बंगला सँ मैथिलीअनुवाद), किसुन संकल्पलोक, सुपौल, १९९५,भारत-विभाजन और हिन्दीउपन्यास (हिन्दी आलोचना),बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्,पटना, २००१, राजकमलचौधरी का सफर (हिन्दीजीवनी) सारांश प्रकाशन, नईदिल्ली, २००१, बनैत-बिगड़ैत (कथा-संग्रह) २००९। मैथिलीमे करीब सत्तरि टाकथा, तीस टा समीक्षा आहिन्दी, बंगला तथा अंग्रेजी मेअनेक अनुवाद प्रकाशित।




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