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शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

संविधान में संशोधन हो

संविधान में संशोधन हो…!
प्रावधान में परिवर्तन हो…!

पाप पातर लोभ लटले द्वेषो नै देह्गर छलय
भ्रष्टाचार कोखे तखन आतंको नै बलगर छलय
छल संचरित संवेदना करेज नै उस्सर छलय
स्वतन्त्र भारत में ऐना लोक नै असगर छलय

सतयुगी अवधारणा के
कलयुगी अवलोकन हो…!
संविधान में संशोधन हो..!

जाति-धर्म आधार उचित नै लोलुप ई उपहार उचित नै
आरक्षण अक्षम के चाही आरक्षित सरकार उचित नै
प्रतिभा के अवरोधित कऽ मुर्खक जय-जयकार उचित नै
पात्रता जों होय कलम के देब हाथ तलवार उचित नै

आरक्षण जों आवश्यक तऽ
कर्मशील लेल आरक्षण हो…!
संविधान में संशोधन हो..!

संस्कृति के आयात कियै साहित्य भेल एकात कियै
सोना के चिड़ै छलै कहियो उपटल आइ जयात कियै
जे पैर धरै लेल ठाम देलक तकरे पर फेंकी लात कियै
सृजन करू श्रृंगार करू होय मानवता पर घात कियै

मानव मूल्यक हो सम्मान
संस्कार के संरक्षण हो…!
संविधान में संशोधन हो..!

पक्षपात नै नीति-नियम में न्यायोचित व्यवहार करू
जाति-पाति आ भेद-भाव सँ जुनि देशक बंटाधार करू
पद भेटल तऽ पदवी राखू भ्रष्ट नै निज आचार करू
घूस-दहेज दुनु अछि घातक दुन्नू के प्रतिकार करू

नीक प्रथा के चलन चलाबू
कुरीति केर उन्मूलन हो…!
संविधान में संशोधन हो..!

बाहुबलिक नै चलतै धाही आब नै सहबै तानाशाही
लोकक धन सँ लड़ै चुनाव लोके सँ फेर करै उगाही
शंखनाद सँ चेता रहल छै जन-क्रांति के वीर सिपाही
जनतंत्र में जनता मालिक नेता नै जनसेवक चाही

बहिष्कार हो राज-नीति के
जन-नीतिक अभिनन्दन हो..!
संविधान में संशोधन हो..!
संविधान में संशोधन हो..!

©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-१०.०८.२०१२)

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

गजल

आबए छैक  मजा रसिक पर कलम चलाबएसँ
बनि गेल जे गजल हुनक चौअन्नी बिहुँसाबएसँ

प्रेम होबएमे नै  लगैत छैक बरख दस बरख
भ जाए छैक प्रेम बस कनेक नजैर झुकाबएसँ

जँ  प्रेममे  कपट होए   टूटीतौ नहि लागै छैक देर
जेना टूटि जाइ  छैक काँच कनीके हाथ लगाबएसँ

जँ नहि बुझि पेलौं आंखिक कोनो इशारा कहियो अहाँ
आईए  की  बुझब  आँखिसँ हमर नोर  बहाबएसँ

ताग टूटल जोरबासँ परि जाइ  छैक गीरह जेना
रूबी ओझरेब ओहिना  बेर बेर प्रेम लगाबएसँ

(आखर -२०)
रूबी झा

गजल



नव लोकक केहेन नव चलन देखियौ
एक दोसर सँ कतेक छै जरण देखियौ

खोलि क राखने बगल में रमक बोतल
आ मुहं मे रामक केहेन भजन देखियौ

दिने दहार झोंकि रहल छै आंखि मे धूल
बनि रहल छैक कतेक सजन देखियौ

चपर चपर सब तैर बजैत चलै छै
बेर काल मे नाप तौल आ वजन देखियौ

देखि सुनि रुबी क लागि रहल छै अचरज
भ्रष्ट जुग मे भ रहल ये मरण देखियौ

आखर -१६
रूबी झा

गजल

बन्न घरमें भोरमें कानै किए छी
आंखिक नोर सँ सभ सानै किए छी

बुझै छी जनु लगै हमरा सँ भय
प्रिय आन बुझि मोन आनै किए छी

प्रथम भेंट क' अछि आजुक भोर
डॉर होय अहाँ क इ ठानै किए छी

संगे-संग गमायेब सुख आ दुःख
तहन गप अहाँ नै मानै किए छी

लाजे मरै छैक ''रूबी'' यौ प्रियबर
रहस्य एतबो टा नै जानै किए छी

सरल वार्णिक बहर वर्ण -१३
रूबी झा

गजल

आइ हमरा निन्न भैए ने रहल अछि
कल्पना जनि कोन मोने में गरल अछि

किछ लिखा चाही खुशी सौ छी अहाँ बिन
इंक नै पहिने हमर नोरे खसल अछि

सौन माषक पैन इन्होरे बुझाई
सगर जिनगी में अनल हमरा भरल अछि

पंचमी इ प्रथम केहन  बितल   पिय  बिन
सौंस पख बिरहन बनि क आशे बितल अछि

पहर राइत आध में जागल चिहुक के
मोन वेकल अछि रूबी भाग्ये जरल अछि

२१२२-२१२२ -२१२२ सभ पांति में
रूबी झा

गजल

अछि हाथ में केहेन समय कs खंजर देखियौ
सगरो पसरल अछि जंतर मंतर देखियौ

किनको सँ सत्य आ बिश्वासक हाल जुनि पूछियौ
पसरल सौंसे तs एकर अस्थि पंजर देखियौ

गुणा भाग में लागल ब्यस्त रहै अछि सभ कियो
भूखे ब्याकुल धरती प्यासल समंदर देखियौ

सभ कियो अपना अपनी कs जिवैथ स्वार्थे बस
भ रहल ये सुखार में भावना बंजर देखियौ

कहिया धरि जनम लs सम्भारता धरती राम
घरे घर जखन जन्मल दसकंधर देखियौ

जुनि जाऊ रहस्ये नुकैल जहरी मुस्कान पर
''रूबी'' रक्त पिव सँ भरल घाव अंदर देखियौ

.......................वर्ण १८  .......................
रूबी झा


भक्ति गजल


श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर राधा कृष्ण क नोक झोंक क रूप में इ हमर बिनु रदिफक गजल :>


छोट यमुना केर निर्झर राधा गेलि नहाए
बाट पछोरल श्रीकृष्ण रहलि राधा लजाए

कहियो माँगे कान्हा ढूध दधि माखन कहियो
केलेंन हद एक दिन लेलैन चीर चोराए

मटकी फोरलैन छल सँ बाहीं झकझोरल
ओही झकझोरि में त देलैन चुरी ओ गराए

राधा रिसियाओल मनहि मन गरियाओल
कदम बृक्ष तड ओ तैयौ लेलैन अंगराए

छल हाथ चीर राधा क डाँर छल मटकी
पाछुए सँ कृष्ण देलैन मधुर बंसी बजाए

अछि अनुपम प्रेम लीला त राधे कृष्ण केर
नैन बिभोर भेल देवगन पुष्प बरसाए
आखर -१७
रूबी झा

भक्ति गजल

हे यौ कमल नयन किशन कन्हैया शीघ्र पधारू
हे यौ मुरली मनोहर बंशी बजैया शीघ्र पधारू

जहिना मौसी पुतन मारल दूध पीबि क बाला में
हे श्याम सुन्नर बलदाऊ केर भैया शीघ्र पधारू

चीर चोराओल गोपीन सभ क संगे राधा प्यारी क
नंदलाला माखन चोर धेनु चरैया शीघ्र पधारू

संकट में अछि अहाँ क धरती बाट जोहै सेवक
सौंसे सर्प बिष भरलै नाग नथैया शीघ्र पधारू

केलौ सोहावन नन्द यशोदा क आँगन द्वापर में
ऐ युग में बेकल नैन पार लगैया शीघ्र पधारु

कते करू विनय करूणामय लाज बचाबू आबि
हे मोहन द्रोपदि केर लाज बचैया शीघ्र पधारू

देवकी वासुदेव क मुक्त केलौ अहाँ करी बेरी सँ
देवकी नंदन कंसक प्राण हरैया शीघ्र पधारू

बृंदाबन में रास रचाओल सहस्त्र गोपीन संग
हे यउ बृजकिशोर छी रास रचैया शीघ्र पधारू

आखर- १९
रूबी झा

गजल



हमर ठोढ़क चौकैठ पर आबि किए नुकाबए छी
बनि क हमर ठोढ़क मुस्की जानि बूझि सताबए छी


निःशब्द राति में चिहुंकि जगलौं आहट सुनि अहाँके
कहू त अहाँ कतेक निर्दय सूतल सँ जगाबए छी


हम अहाँ बिनु कोना जीयब इहो नै बूझल अखन
क रहल छी प्रयास जे मुश्किल किएक बनाबए छी


कहने छलौ अहाँक करेजक घर में रहै छी हम
सभ के केवार करेजक खोलि किएक देखाबए छी


एतबो बकलेल जुनि बूझू हमरा अहाँ यौ प्रीतम
"रूबी" सबटा बुझै छैक जानि बूझि क खिसयाबए छी

आखर --२०
{रूबी झा }

मंगलवार, 7 अगस्त 2012

मैथिलपुत्र पुरस्कार योजना

बहुत हर्खक गप्प  जे मैथिलपुत्र ब्लॉग  मासीक आ वार्षिक दूटा पुरस्कारकेँ घोषणा कए  रहल अछि। पहील मासिक पुरस्कार - मासक श्रेष्ठ रचन पर आ दोसर बारहो मासक श्रेष्ठ छान्टल रचनामे सँ सर्बश्रेष्ठ रचनापर वार्षिक पुरस्कार। मासक पुरस्कारमे अगस्त, २०१२ पहील मास आ वार्षिक पुरस्कारमे पहील वार्षिक पुरस्कार अगस्त २०१२ सँ जुलाइ २०१३ तककेँ। छान्टल रचनाक बिच, चयन कए १५ अगस्त २०१३ कए घोषित कएल जाएत।
मैथिलपुत्र मासीक पुरस्कारक मानक रासी अछि रु० २५१/-
मैथिलपुत्र वार्षिक पुरस्कारक मानक रासी अछि रु० १००१/-

> रचना मैथिलीक कोनो बिधा जेना कथा, विहीन कथा, कविता, गजल, आ आन कोनो।
> रचना अप्रकाशित, नव एवं स्वं लिखित हेबाक चाही।
> निर्णायक मंडलक निर्णय अंतिम होएत।
> जिनकर नाम मैथिलपुत्र लेखक दलमे नहि अछि ओ अपन रचना jagdanandjha@gmail.com पर पठाऊ।
> ब्लॉग व्यबस्थापक आ हुनक समांग एहि प्रतियोगतामे सामिल नहि हेता।


मासिक पुरस्कार विजेता --
१. अगस्त २०१२- किशन कारीगर
२. सितम्बर २०१२-गुंजन श्री
३. अक्तूबर २०१२-अमित मिश्र
४. नबम्बर २०१२-ओम प्रकाश झा
५. दिसम्बर २०१२-भाष्कर झा 
६. जनबरी २०१३-बाल मुकुंद पाठक 
७. फरवरी २०१३-ओम प्रकाश झा 
८. मार्च २०१३-अमित मिश्र 
९. अप्रैल २०१३-अमित मिश्र 
१०.मइ २०१३-मनीष झा "बौआभाई'' 
११.जून २०१३-अमित मिश्र 
१२.जुलाइ २०१३-आशिक राज 

अन्तिम जगह


फेकना | मए बाऊ की नाम रखलकै गाम में केकरो  नहि बुझल आ किंचीत ओकरा अपनों इआद होए की नहि | ओ एहि उपनाम सँ गाम भरि में जानल जाइत छल | खेतिहर मजदूर मुदा जीवन भरि उर्मील बाबूक  छोरि दोसर केँ खेत पर काज नहि कएलक | हुनके जमीन पर जनमल आ हुनक एवं हुनके परिवार केँ जीवन भरि  सेबा  करैत एहि संसार सँ अपन पार्थिक शरीर छोरि बिदा भए गेल | जेकर जन्म भेलैक ओकर मृत्यु निश्चिन्त छैक एहि सत्य केँ मोन राखि फेकना समांग सब ओकर अन्तिम क्रियाक तैयारी में लागि गेल |
उर्मिल बाबू नोत पुरै लेल दोसर गाम गेल रहथि | गामक सीमा में पएर राखिते  मांतर कएकरो सँ फेकनाक मृत्युक समाचार भेट गेलैंह | सुनि दुखी मोने  घर दिस डेग झटकारलैंह | किछु दूर एला बाद रस्ते में हुनका फेकनाक  शवयात्राक दर्शन भेलैंह | फेकनाक  समांग सभ हुनका देख ठमैक गेल | उर्मिल बाबू चटे जा कए फेकनाक  झाँपल मूह उघारि ओकर मूह देखला आ नम आँखि सँ फेकनाक  बेटा सँ पूछलथि - "अग्निदाह केँ व्यबस्था कतए छैक |"
"  ठूठी गाछी में मालीक |"
" दूर बुरि कहिंके, कनीक हमरो आबैक इंतजार तँ  करै जैतअ, जीवन भरि हमर जमीन पर काज केलक आ आब मूइला बाद ठूठी  गाछी.... | चलअ हमर कsलम चलअ, हमर कsलम में नहि जगह केँ कमी अछि आ नहि गाछक ओतए दुनूक व्यबस्था छैक " ई कहैत उर्मिलबाबू आगू-आगू आ सभ हुनक पाछु-पाछु हुनकर कsलम दीस बिदा भए गेल |  
*****
जगदानन्द झा 'मनु'

शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

रोटीक स्वाद

आइ दस बर्खक  बाद कियोक पाहून छोटकी काकीक अँगना एलैंह।  पहुनो परख गरीबक घर अँगना किएक एता।  छोटकी काकी ओनाहितो गरीब मसोमात एहनठाम कि सेबासत्कार भेटक उम्मीद।

पाहुनोकेँ तँ हुनकर बहिनक बेटा। ओकरा बारह बर्ख पहीले देखने रहथि आब सत्रह बरखक पाँच हाथक जबान भए  गेल अछि। आबिते अपन मौसीकेँ पएर छू कए  गोर लगलक।

के? चिन्हलहुँ नहि बौआ ?”

मौसी ! हम लोटन, अहाँक बहीन मालतीक बेटा।

मौसी (छोटकी काकी) दुनू हाथे स्नेहसँ लोटनकेँ माथ पकैर अपन  करेजासँ सटा, “चिन्हबौ कोना, मूड़नेमे  पाँच बर्खक अवस्थामे जे देखलीयै से देखने देखने, आइ  कोना गरीब मौसीक इआद  आबि गेलौ।

लोटन, “मौसी मधुबनीमे हमर परीक्षाक सेंटर परल छल आइ परीक्षा खत्म भेल  तँ  मोनमे भेल मौसीक घर सौराठ  तँ  एहिठामसँ कनिके दूर छैक भेट कए  आबी।

मौसी, “जुग- जुग जीबअ नेन्ना, एहि दुखिया मौसीक इआद  तँ  रहलै। मालती केहन ? ओझाजी केहन ?”

लोटन, “सब कियो एकदम फस्ट किलास, दनादन, सब आब छोरु पहिले किछ नास्ता कराऊ, मधुबनीसँ सौराठ पएरे अबैत-अबैत बड्ड भूख लागि गेल।

सुनिते मातर मौसीक छातीमे धकसँ उठल, मने-मन सोचए लगलि –“नेन्नाकेँ की खुवाऊ ? घरमे किछो नहि अपने तँ  माँगि बेसए कऽ गुजरा कए  लै छी एकर नास्ता भोजनक व्यवस्था कतएसँ होएत।

हुनक सोचकेँ बिचेमे तोरैत लोटन फेरसँ बाजल, “मौसी जल्दी बड्ड भूख लागल अछि।

अपनाकेँ सम्हारैत मौसी, “हाँ एखने हम भात, दालि, भुजिया, तरुआ, नीकसँ बना कए नेन्नाकेँ दै छी, अहाँ कनी बैसू।”  ई  कहैत मौसी भंसा घर दिस बिदा भेली, जहन की हुनका बुझल जे घरमे किछु नहि अछि।

मुदा हुनका पाँछा-पाँछा लोटन सेहो आबि, “नहि मौसी एतेक काल हम नहि रुकब पाँच बजे मधुबनीसँ बाबूबरहीक अन्तीम बस छै चारि एखने बाजि गेलै।

मौसी अपन घरक हालत देखि लोटनक गप्पक उतर नहि दए  सोचय लगलि, “आह ! मजबूरी नेन्नाकेँ रूकैयो लेल नहि कैह सकै छी।

एतबामे लोटन भंसा घरक बर्तन सबकेँ देखि बाजल, “एहि बासन सबमे सँ जे किछ अछि दए दिए।

हे राम !”- मौसीक मन कनाल, बासनमे किछु रहैक तहन नहि। आगू  हुनक मुँह बंद भए गेलन्हि, बकोर लगलेकेँ लगले रहलनि। बड्ड सहाससँ गप्पकेँ समटैत बजली, “नहि बौआ किछु  नहि छौ, हम एखने बिना देरी केने बनाबै छी।”   

लोटन, “नहि नहि मौसी बनाबैकेँ नहि छै, बस छुटि जाएत।एतबेमे लोटनक नजैर टीनही ढकनासँ झाँपल कोनो समानपर पर। आगू जा ढकना उठा, “हे मौसी की ?”

मौसी अबाक, की  बजति, पहील बेर नेन्ना आएल ओकरा खूददीक रोटी खुआउ ओहो राइतेकेँ बनल। रातिमे एकटा खूददीक रोटी बनेने रहथि, आधा खा आधा ढकनीसँ झाँपि राखि देने रहथि। 

लोटन ओहि रोटीकेँ दाँतसँ काटि कए  खाइत आगाँ बाजल,  “एतेक नीक रोटी तँ  हम कहीयो खेन्हें नहि छलहुँ, मए तँ  खाली छाल्ही भात, दूध-भात, दूध-रोटी, खुआ-खुआ कए  मोन घोर कऽ  दैए। आहा एतेक स्वाद  तँ  पहील बेर भेट रहल अछि।

मौसी लोटनक गप्प ओकर खएक तेजी देख बजली,  “रुक-रुक कनी आचारो तँ  आनि देबअ दए।”  कहि मौसी अचार ताकै लेल एम्हर-उम्हर ताकै लगली मुदा अचार कतौ रहै तहन तँ  भेटै।

लोटन, “रहअ दीयौ, एतेक नीक ई  मोटका रोटी रहै अचारकेँ कोन काज। रोटी तँ  खतमो भए गेल।”  मौसी बकर-बकर ओकर मुँह तकैत रहली

लोटन, “अच्छा आब हम जाइ छी, घर देख लेलीयै फेर मधुबनी एलहुँ  तँ  अहाँ लग जरुर आएबमुदा हाँ एहने नीकगर मोटका रोटी बनेने रहब।”

कहैत मौसीकेँ गोर लागि लोटन गोली जकाँ बाहर आबि गेल मुदा बाहर अबैत-अबैत मौसीक दयनीय  हालत देखि  ओकर दुनू आँखिसँ  नोरक टधार बहए लगलै।

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’