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गुरुवार, 3 मई 2012

गजल


अहाँक साधना मात्र सौं हम प्रेम करै छी
अहाँक भावना मात्र सौं हम प्रेम करै छी

देखू त' हमरा अगल- बगल नै छी मुदा
अहाँक कामना मात्र सौं हम प्रेम करै छी

कहिओ एको घरी अहूँ याइद केने हैब
त' ओहि तुलना मात्र सौं हम प्रेम करै छी

हम जतए छी अहिंक छी आ सपना सेहो
त' ओहि सपना मात्र सौं हम प्रेम करै छी

एको दिन हमरा सौं अहूँ प्रेम केने हैब
अहाँक प्रेरणा मात्र सौं हम प्रेम करै छी

प्रतिक्षा करैत रहे छी ब्याकुल भ' अहाँ के
अहाँक सामना मात्र सौं हम प्रेम करै छी


(सरल वर्णिक बहर,वर्ण-१६)
रूबी झा

गजल



साओंन आओल नै आओल हुनक याइद आबिए गेल मुदा 
आइंख हमर क्यो रंजित नै देखल नोर  बहिए गेल मुदा 

हस्त लिखित मेहँदी भठरंगल डाढ़ियो सौं पात बिलायेल 
जहिये प्रितम के आगमन सबटा पात झरिए गेल मुदा 

कोनो मधुर भावना उमरल पियासल मोनक आँगन में 
नाचो लागल मोनक पखेरू पहुँच एता  डरिए गेल मुदा 

आबू कागा बैसु मुडेर चढ़ी नीक सौं कुचरि- कुचरि क जाऊ 
आवन सुनि प्रीतम क' कने काळ आर अटकिए गेल  मुदा 

कतेक दिन सौं गप्पो नै भेल अछि नै कोनो चिठ्ठी पत्री भेंटल
सबटा इ मन्ग्रन्थ कथा  ''रूबी''  त' सपन में रचिए गेल मुदा 

(सरल वर्णिक बहर,वर्ण -२३)
रूबी झा 

गजल


कहू की, कियो बूझि नै सकल हमरा
हँसी सभक लागल बहुत ठरल हमरा

कियो पूछलक नै हमर हाल एतय
कपारे तँ भेंटल छलै जरल हमरा

करेजा सँ शोणित बहाबैत रहलौं
विरह-नोर कखनो कहाँ खसल हमरा

तमाशा बनल छी, अपन फूँकि हम घर
जरै मे मजा आबिते रहल हमरा

रहल "ओम" सदिखन सिनेहक पुजारी
इ दुनिया तँ 'काफिर' मुदा कहल हमरा
बहरे-मुतकारिब
फऊलुन (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ) - प्रत्येक पाँति मे चारि बेर

गजल


हम जन्म कें टुगर छी प्रेमक लेल तरसैत रहलौं
भेटल किरण एक आसक तकरो त' मिझबैत रहलौं

दुख एहि कें केखनो नै की प्रेम किछ नै पएलौं
अफसोस की एहि दुनिआ में हमहुँ जीबैत रहलौं

चमकैत सभ बस्तु कें हम अनजान में सोन बुझलौं
सोना जखन हम पएलौं नै बुझि क' हरबैत रहलौं

किछु नै रहल आब अपने कें बिसरि में लागि गेलौं
लोटा भरल भाँग में सब किछु अपन गमबैत रहलौं

आँखिक बिसरि गेल आसा,अनुराग सबटा बिसरलौं
गेलौं हराएब दुख तन-मन अपन बिसरैत रहलौं

( बहरे मुजस्सम वा मुजास
2212-2122, दु-दु बेर सभ पांति में )
जगदानन्द झा 'मनु'

गजल

किछु कुबेर के चक्रव्यूह मे, कानूनन मजबूर छी
रही कृषक आ खेत छिनाओल, तहिये सँ मजदूर छी

छलय घर मे जमघट हरदम, हित नाता सम्बन्धी के

कतऽ अबय छथि आब एखन ओ, प्रायः सब सँ दूर छी

काज करय छी राति दिना हम, तैयो मोन उदास हमर

साहस दैत बुझाओल कनिया, अहाँ हमर सिन्दूर छी

एहेन व्यवस्था हो परिवर्तित, लोकक सँग आवाज दियौ

एखनहुँ आगि बचल अछि भीतर, झाँपल तोपल घूर छी

बलिदानी संकल्प सुमन के, कहुना दुनिया बाँचि सकय 

नहि बाजब नढ़िया केर भाषा, ई खटहा अंगूर छी

मंगलवार, 1 मई 2012

गजल

खून सँ भिजलै धरती  मिथला बनबे करतै 
आब  जोड लगाबे कियो झंडा फहरेबे करतै

सुनु बलिदानी सुनु शैनानी आब दिन दूर नै 
विश्वक नक्सा में मिथिलाक नाम देखेबे करतै

कतबो चलतै बम निकलै चाहे हमर दम 
क्रांति बढल आगु आब जुनि इ रुकबे करतै

बहुत छिनलक सभ नै सहबौ आब ककरो 
गर्म सोनित त आब हिलकोर मारबे करतै
रंजू झा

एक खुनक बूंद सँ सय-सय रंजू जन्म लेतै 
आताताई सँ बदला ओ चूनि-चूनि लेबे करतै

(सरल वर्णिक बहर, वर्ण-१८)
जगदानन्द झा 'मनु'
-

संस्कार सन्तान मे


स्वजन मृत्यु पर कानैत बाजैत, गेल छलहुँ शमशान मे
आनल जायब एहिना हमहुँ, आयल अचानक ध्यान मे


बाजी सब कियो राम नाम संग, सभहक गाति एहने होइछै
बाहर आबिते फूसि फटक्कर, केलहुँ शुरू दलान मे


बात सदरिखन की लऽ एलहुँ, की लऽ जायब दुनिया सँ
मुदा सहोदर सँ झगड़ा नित, जुड़ल स्वार्थ सम्मान मे


भाग्य लिखल जे हेबे करतय, काज करय के काज की
बाजू एतबे चिकरि चिकरि कय, खेलू ताश मचान मे


सुमन मनुक्खक जीवन भेटल, घटना छी अनमोल यौ
सफल तखन पल पल जीवन के, संस्कार सन्तान मे

सोमवार, 30 अप्रैल 2012

गजल

किए एखन दिल हमर शाइर बनल छै
लिखल जेकर नाम ओ एखन कटल छै
बनाबी हम रूप जे शब्दक नगर मे
नगर ओकर नैन के लागै जहल छै
गजल जेहन हम लिखै सबदिन छलौँ से
कहाँ हमरा मोन मे ओहन गजल छै
दिनक काटै रौद रातिक चान धधकै
बहर मारै जान पथ काँटक बनल छै
कखन हारब जीवनक अनमोल पारी
"अमित" जा धरि छी करै शेरक कहल छै
मफाईलुन-फाइलातुन-फाइलातुन
1222-2122-2122
बहरे - सरीम
अमित मिश्र

गजल

करेजक नस मांसके पाथर बना लिअ
गरीबक दुख दर्दके मोहर बना लिअ
मरै छै बेटी जँ कोखे दिन दहारे
पवनपुत्रक धामके कोबर{कोहबर} बना लिअ
सिनेहक बीया असंभव भेल रोपब
मनोजक नद मोनके विषधर बना लिअ
कलह करबै भूख नेता देखियौ ने
जवानक सब बातके सोँगर बना लिअ
अपन हेतै देश संगे प्रात हेतै
कटारक कर "अमित" के भोथर बना लिअ
मफाईलुन-फइलातुन-फइलातुन
1222-2122-2122
बहरे -सरीम
अमित मिश्र

गजल@प्रभात राय भट्ट


साबन में बरसै छै बदरिया गाम आबू ने पिया सिनेहिया
अंग अंग में उठल दरदिया गाम आबू ने पिया सिनेहिया

प्रेम मिलन के आएल महिना बड मोन भावन छै सावन
कुहू कुहू कुह्कैय कोईलिया गाम आबू ने पिया सिनेहिया

नील गगन सीतल पवन लेलक चढ़ल जोवन उफान
इआद अबैय प्रेम पिरितिया गाम आबू ने पिया सिनेहिया

मोन उपवन साजन प्रेम रासक रस सं भरल जोवन
मोन पडैय अहाँक सुरतिया गाम आबू ने पिया सिनेहिया

मोन बौआइए किछु ने फुराइए जागी जागी वितैय रतिया
पिया कटैय छि हम अहुरिया गाम आबू ने पिया सिनेहिया
.................वर्ण:-२३.....................

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट


सावन भादव कमला कोशी जवान भSगेलै
कमला कोशी मारैय हिलोर तूफान भSगेलै


कोशी केर कमला सेहो पैंच दैछई पईन
कोशीक बहाब सं मिथिला में डूबान भSगेलै


कोशी के जुवानी उठलै प्रलयंकारी उन्माद
दहिगेलै वलिनाली बर्बाद किसान भSगेलै


गिरलै महल अटारी आओर कोठी भखारी
खेत बारी घर घर घरारी सभ धसान भSगेलै


निरीह अछि मिथिलावासी के सुनत पुकार
खेतक अन्न घरक धन अवसान भSगेलै


कोशिक कहर नहि जानी की गाम की शहर
घुईट घुईट जहर सभ हैरान भSगेलै


खेत में झुलैत हरियर धान बारीमे पान
दाहर में डुबिक नगरी समसान भSगेलै


भूखल देह सुखल "प्रभात" मचान भSगेलै
कोशिक प्रकोप सं मिथिला परेशान भSगेलै
...........वर्ण-१७..............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गजल

हुनक नाम लिखि-लिखि मेटेनाई बिसैर गेलहुँ
हुनका याइद क' क' बिसरनाई बिसैर गेलहुँ

बहुत रास गप त' अछि करेजे गरल हमरा
जखन भेलैन ओ सोझा सूनेनाई बिसैर गेलहुँ

हुनका बाद त' एक छण कटै अछि असमंजस
स्वप्न में रातिओ हुनका बतेनाई बिसैर गेलहुँ

साँझ में प्रतिदिन सोचेई छि बिसरायेब हुनका
मुदा भेल भिनसर बिसरनाई बिसैर गेलहुँ

आएँख में ओना त' अखनो सागर छूपेने छि हम
हुनका लग एको बुन खसेनाई बिसैर गेलहुँ

(सरल वार्णिक बहर,वर्ण -१९)

रूबी झा 

गजल


तकियो कनी कानैए उघारल लोक
गाडब कते, दुख मे बड्ड गाडल लोक

धरले रहत सब हथियार शस्त्रागार
बनलै मिसाइल भूखे झमारल लोक

छै भरल चिनगीये टा करेजा जरल
अहुँ केँ उखाडत सबठाँ, उखाडल लोक

लोकक बले राजभवन, इ गेलौं बिसरि
खाली करू आबैए खिहारल लोक

माँगी अहाँ "ओम"क वोट मुस्की मारि
पटिया सकत नै एतय बिसारल लोक
बहरे-सलीम
दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ, दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व, दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व
मुस्तफइलुन-मफऊलातु-मफऊलातु (पाँति मे एक बेर)

मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

गजल


कनिया निक लगैय श्रृंगार कने सैज धैजके चलु
गला शोभैय हिरा हार कने चमैक चमैकके चलु

शोरह वसंतक जोवन लगैय हिमगिरी पहार
गोरी भगेल अहाँ से पियार कने सैट सैटके चलु

अहाँक रूपरंगक छाया में भSगेलैय लोक बीमार
चढ़ल छै कतेको कें बोखार कने हैट हैटके चलु

सोनपरी के देख दुनिया फेकी रहल छै मायाजाल
गोरी बड जालिम छै संसार कने बैच बैचके चलु

इन्द्रपरी गगन सं उतरी चलैय प्रभातक संग
देखैला लोक लागल बजार कने हैंस हैंसके चलू
............वर्ण-२०..................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गजल

 कहियौ छोड़ब नै  अहाँक पछोर यौ अहाँ जायब कतऽ
राखब संगे अहाँ के साँझ सँ भोर यौ अहाँ जायब कतऽ

चिन्हलौ नहि जानलौ अहाँ किएक एखन धरि हमरा
प्रेम बरखा सँ करब सराबोर यौ अहाँ जायब कत़ऽ

अहाँ लेल तियागल लाजो तियागल धाखो अहीँक लेल
प्रेम सरिता बहाएल पोरे पोर यौ अहाँ जायब कतऽ

छोरलहुँ हम नैहर सासुरो छोरलहुँ अहिँक लेल
मायक ममताक छोड़लहुँ कोर यौ अहाँ जाएब कतऽ

अहाँ बाजु एकबेर  किरीया खाउ हम ककरा लगा के
मात्र अहीँटा छी "रूबी"के चितचोर यौ अहाँ जाएब कतऽ

         (सरळ वार्िणक़ बहर ) बर्ण-२१

रुबी झा